पेज

पेज

मंगलवार, 28 जून 2011

माफ करना

माफ करना
हम अलग नहीं है साथी, फिर भी नदी के, रेल की पटरियों की तरह
एक साथ होकर भी अलग है।
लगा था कि इस बार होगी मुलाकात , मगर माफ करना मेरे मित्र
चाहकर भी नहीं बुला सकता माफ करना -3 ।
लग गई है दुनिया की नजर, नजर से बचाना है  ।
रिश्तो को बचाना है।हर पल हर कदम पर साथ हो हम यादो के बंधन मे होकर कैद भी नहीं चाहते रिहाई
शाजद फिर हो ना हो कभी मुलाकात
मैं भीम अर्जुन कर्ण या कोई भी नाम हो नहीं हूं कि खड़ा हो जाउं महाभारत में
एक बंधन है मेरे साथ, उसको भी निभाना दूर तलक साथ साथ जाना है।
माफ करना यार चाहत के बाद भी खामोश हूं।
( आप अपने किसी एक ब्लाग को इनबाक्स की तरह संपंन्न करे उसमें नाना प्रकार की खबरों सूचनाओं का पिटारा बनाए ताकि वो विविधता से भरपूर हो)


गुरुवार, 23 जून 2011

पत्रकार प्रेमचंद



एक विश्लेषण: कालजयी पत्रकार प्रेमचंद


anami-sharan.gif
अनामी शरण बबल
वरिष्ठ पत्रकार
क्या प्रेमचंद को पत्रकार कहना, कोई गुनाह है? यदि नहीं तो फिर हिन्दी साहित्य के कथा सम्राट और महान उपन्यासकार प्रेमचंद को पत्रकार कहने पर बहुतों को आपत्ति क्यों होने लगती है? प्रेमचंद के नाम पर वे लोग हैं जिन्होंने आजतक प्रेमचंद की महानता का बखान करते-करते प्रेमचंद के साहित्य के अलावा उनके अन्य लेखन को कभी प्रकाश में लाने की पहल ही नहीं की। शोध और मूल्यांकन के नाम पर संपूर्ण रचनात्मकता को ही गलत सांचे में ढालने का काम किया है। शायद इसे एक गंभीर अपराध की श्रेणी में भी रखा जाए तो किसी को आज आपत्ति नहीं होगी।
शोध और आलोचना की गलत अवधारणा की वजह से ही प्रेमचंद जैसे समर्थ और कालजयी पत्रकार को आज तक एक पत्रकार और उनकी पत्रकारिता में किए योगदान का समग्र विश्लेषण को लेकर तथाकथित आलोचकों, विद्वानों, शोधाथिर्यों समेत समीक्षकों में पता नहीं वह कौन सी गलत धारणा इस तरह पैठ गई कि प्रेमचंद को एक पत्रकार की तरह देखने की कभी किसी ने कोई पहल ही नहीं की। यहां पर यह सवाल भी जरूर उठना चाहिए कि हिन्दी के तथाकथित विद्वानों ने प्रेमचंद को एक पत्रकार की तरह भी देखने का साहस या प्रयास क्यों नहीं किया?
मैं प्रेमचंद का मात्र एक पाठक होने से ज्यादा और कोई दावा नहीं कर सकता। एकदम सामान्य सा पाठक और राजधानी के भागमभाग वाले माहौल में सब कुछ जल्दी-जल्दी देखने और फौरन धारणा बना लेने की मानसिकता के बीच पत्रकार प्रेमचंद को विहंगम नजरिए से देखने के बाद यही महसूस किया कि पत्रकार प्रेमचंद न केवल सजग, समर्थ, सक्रिय और बेहद सक्षम पत्रकार थे, अपितु साहित्य सत्ता, स्वाधीनता संग्राम के हाल को बेहद गंभीरता के साथ देखते हुए उसे प्रभावशाली तरीके से पाठकों के सामने रखने का महत्वपूर्ण काम किया। एक तरह से प्रेमचंद ने तमाम हालात पर अपनी कलम चलाकर स्वाधीनता संग्राम के उस पहलू को मानवीय और रचनात्मक तरह से देखा है, जिस पर आज तक किसी साहित्यकार, इतिहासकार या शोधार्थियों ने नजर भी नहीं डाली है। इस लिहाज से प्रेमचंद की पत्रकारिता को देखना ही उचित होगा, क्योंकि प्रेमचंद की नजर से देखते हुए सम सामयिक हालात की फिर से मूल्यांकन की आवश्यकता हो सकती है। इसी बहाने सवाधीनता संग्राम पर शोध की जरूरत को भी नकारा नहीं जा सकता है।
एक पत्रकार के रूप में प्रेमचंद में वरिष्ठता का कोई गरूर नहीं था। यही कारण था कि प्रेमचंद की कलम खासकर देश दुनिया, समाज, साहित्य, सत्ता, स्वाधीनता संग्राम, आर्थिक संवैधानिक हलचलों से लेकर स्थानीय निकायों की हालत और जन समस्याओं को भी पूरी शिद्दत के साथ सामने रखा। स्थानीय निकाय चुनाव से लेकर राष्ट्रीय राजनीति समेत लोकल स्तर की जनसभाओं के सार को भी वे काफी सार्थक तरीके से प्रस्तुत करते थे। वे गुलाम भारत में सत्ता-संघर्ष-स्वाधीनता संग्राम से लेकर हर तरह की सामाजिक विषमता और भेदभाव को एक साक्षी की तरह सामने रखते थे। विराट सामाजिक परख के साथ गहरी और पैनी नजर रखने वाले एक समर्थ पत्रकार प्रेमचंद की यही सबसे बड़ी विशेषता थी, जो उन्हें समकालीन तमाम पत्रकारों से अलग करके उन्हें खास जगह प्रदान करती है।
पत्रकार प्रेमचंद को पढ़ते हुए बार-बार और हर बार मुझे यही लगता है कि प्रेमचंद के नाम पर साहित्य की अपनी दुकान चलाने वाले विद्वानों, लेखकों, समीक्षकों ने अब तक प्रेमचंद के पत्रकार वाली छवि को सामने लाने की पहल आखिरकार क्यों नहीं की? प्रेमचंद साहित्य के विद्वानों की दृष्टि और साहित्यिक समाज पर मुझे तरस के साथ-साथ दया आती है। करीब 50 साल पहले मुंशी प्रेमचंद के पुत्र अमृतराय जी ने जब पत्रकार प्रेमचंद की पत्रकारिता को सामने लाते हुए प्रेमचंद की सैकडों आलेख, टिप्पणी, नोट्स और रिपोर्ताज को सामने लाने का दुर्लभ और महान काम कर दिया था।, इसके बावजूद पत्रकार प्रेमचंद द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में किए गए अनमोल और दुर्लभ योगदान की अब तक क्यों उपेक्षा की गयी। हालांकि पत्रकार प्रेमचंद की पत्रकारिता की हो रही उपेक्षा के पीछे के मकसद को जान पाना अब संभव है। मगर सूरज की तरह तेजस्वी रचनाकार और पत्रकार प्रेमचंद को गुमनाम बनाकर अंधेरे में रखना क्या कभी संभव हो पाता? प्रेमचंद की पत्रकारिता को आंशिक तौर पर ही सही देखकर मेरी इस धारणा को लगातार बल मिलता रहा है कि पत्रकार प्रेमचंद के मूल्याकंन में बरती गयी लापरवाही को भले ही कोई साजिश न माना जाए, मगर जाने-अनजाने में ही प्रेमचंद से ज्यादा हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता के साथ गंभीर खिलवाड़ किया गया, और इसकी भरपाई करना शायद मुमकिन नहीं है। हालांकि ऐसा नहीं है कि पत्रकार प्रेमचंद पर कोई काम नहीं हुआ। प्रेमचंद को एक पत्रकार प्रेमचंद के रूप में देखने और प्रेमचंद की पत्रकारिता के महत्व पर काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने सार्थक काम किया है। मगर पत्रकार प्रेमचंद की पत्रकारिता पर स्वनाम धन्य रत्नाकर पांडेय का सारा काम हंस और साहित्यिक पत्रकारिता के इर्द-गिर्द ही सिमटी रही। करीब-50 साल पहले प्रकाशित रत्नाकरजी की इस पुस्तक में पत्रकार प्रेमचंद की झलक तो मिलती है, मगर पत्रकार प्रेमचंद के महत्व को पूरी तरह प्रस्तुत नहीं किया गया है। पत्रकार के रूप में उनके योगदान की भी झलक नही मिलती है।
आम पाठकों की तरह मैं भी प्रेमचंद को एक साहित्यकार की तरह ही देखता और मानता आ रहा था। मेरे निजी पुस्तकालय में भी प्रेमचंद के कई उपन्यास और कथा समग्र सुरक्षित हैं। जिसे यदा-कदा फिर से पढ़ने-देखने का लोभ आज तक नहीं रोक पाता। प्रेमचंद को लेकर अक्सर उठते और उठाये जाने वाले विवादों के बाद जब प्रेमचंद पर दोबारा नजर डालता हूँ तो कभी दलित विरोधी प्रेमचंद तो कभी महाजनों के मुंशी आदि तगमों से नवाजे गए तोहमतों को देखकर तथाकथित प्रेमचंद विरोधी विद्वानों पर तरस आता है। दरअसल इस तरह के तोहमत से प्रेमचंद की छवि, महानता, रचनात्मक महत्व और प्रसंगिकता पर तो कोई असर ना पड़ा है और ना कभी पड़ेगा। इन आरोपों से तो लगता है मानो इस तरह की मुहिम चलाने- और लगाने वाले लोग ही खुद को मुख्यधारा में बनाए रखने के लिए ही ऐसे आरोपों का सहारा लेते हैं। प्रेमचंद का साहित्य किताबों से ज्यादा पाठकों के दिल में अंकित है। जिस तरह सूर, तुलसी, कबीर, रहीम, मीरा, जायसी का पुतला जलाकर भी उनके साहित्य को कभी खारिज नहीं किया जा सकता, उसी प्रकार प्रेमचंद के खिलाफ मुहिम चलाकर भी प्रेमचंद को खारिज नहीं किया जा सकता। हैरानी तो यह है कि जिस लेखक की एक-एक पंक्तियों पर अलग-अलग तरीके से सैकड़ों विद्वानों और छात्रों ने मूल्यांकन और शोध किया हो। इसके बावजूद प्रेमचंद की पत्रकारिता के हजारों पृष्ठ को कभी महत्व के लायक भी नहीं माना गया। पत्रकार प्रेमचंद पर क्यों नहीं दिया गया ध्यान यह एक अबूझ पहेली है?
मेरे पास पत्रकार प्रेमचंद की पुस्तक 'विविध प्रसंग' भाग-2 है। जिस पर 11 अगस्त 1997 की तिथि अंकित है। इस पुस्तक को कब, कहां कैसे, किससे खरीदा था, इसकी याद नहीं है। करीब 14 साल पहले इस पुस्तक को देखा, पढ़ा और सामान्य तरीके से अपने पुस्तकालय में सहेज कर रख दिया। सक्रिय पत्रकारिता में व्यस्त रहने के बावजूद इस पुस्तक को पिछले 14 साल के दौरान सैकड़ों बार उलटने-पलटने का मौका मिला। साल 2000 में कहीं पत्रकार प्रेमचंद को लेकर हो रही चर्चा के बाद एकाएक इस पुस्तक के महत्व का बोध हुआ। और पत्रकार प्रेमचंद को और ज्यादा जानने की ललक मन में पैदा हुई। प्रेमचंद की पत्रकारिता के प्रति एकाएक मेरी लालसा बढ़ती ही चली गयी। विविध प्रसंग भाग-2 के अलावा भाग एक और तीन को पाने की ललक जागी। इसकी खोज में दिल्ली के कई दुकानों समेत दर्जनों बार दरियागंज पुस्तक बाजार का चक्कर काटा। मगर विविध प्रसंग के भाग एक और तीन को पाने में विफल रहा। नयी दिल्ली विश्व पुस्तक मेलों में भी इसे पाने की मेरी हर चेष्टा के बाद भी इस पुस्तक से मेरी दूरी बनीं रही।
एक पत्रकार होने के नाते प्रेमचंद को पत्रकार प्रेमचंद की पत्रकारिता को सामने लाने की लालसा मन में लगातार बनी रही। इसी दौरान रत्नाकर पांडेय जी की पुस्तक को देखकर मेरे उद्वेलित मन को काफी शांति मिली। पांडेय जी के प्रति मन नतमस्तक हो गया। मेरे मन में पांडेय जी के अधूरे काम को और आगे बढ़ाने की ललक और प्रबल हो गयी। एक पत्रकार का काम महत्वपूर्ण होने के बावजूद उसकी क्षणिक प्रासंगिकता अंततः मिट ही जाती है। पत्रकारिता में रोजाना के जीवन का हाल जानना ही नया और रोमांचक सा होता है। हमेशा पुराना होकर कबाड़ी में बिक जाना ही हर अखबार की नियति होती है। इसके बावजूद पत्रकारिता में रोजाना के इसी संघर्ष को सामने लाना एक पत्रकार का शगल और सनक होता है। विषम हालात में पत्रकार प्रेमचंद के काम को भी मुख्यधारा में लाने की लालसा मन में बनीं रहीं। कहानीकार और उपन्यासकार की तरह ही वे एक समर्थ पत्रकार थे। उनकी क्षमता को नकारना कभी संभव नहीं हो सकता, मगर उनके दिवंगत होने के 75 साल बाद भी पत्रकार प्रेमचंद अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहा है। क्योंकि इसका अभी मूल्यांकन होना बाकी है।
दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला 2010 में अंततः विविध प्रसंग को प्रेमचंद के विचार के नाम से पाने का सुअवसर मिला। किताब पाने की तड़प और बेकली तो खत्म हो गयी। तीनों खंडों को गंभीरता से देखा और मेरी यह धारणा यकीन में बदल गयी कि पत्रकार प्रेमचंद ना केवल एक बड़े पत्रकार थे। मेरी यह धारणा और पुख्ता हो गई कि यदि वे कथाकार या उपन्यासकार होने की बजाय केवल पत्रकार भी होते तो भी प्रेमचंद आज तक हमारे बीच एक बेहद महत्वपूर्ण और जागरूक पत्रकार की तरह निश्चित तौर पर रहते। अपने समकालीन कालजयी पत्रकारों में पराड़कर, गणेश शंकर विद्यार्थी, बनारसी दास चतुर्वेदी जैसे पत्रकारों की श्रेणी में गिने और माने जाते। हालांकि प्रेमचंद की पत्रकारिता को नकारने या महत्वहीन करार देने वालों में अमृतलाल नागर भी हैं, जो एक साहित्यकार के रूप में साहित्यकार प्रेमचंद की तो भूरि-भूरि सराहना करते हुए कभी नहीं थकते हैं। मगर पत्रकार प्रेमचंद को पहचानने में भूल की।
कथाकार और उपन्यासकार प्रेमचंद की विराट पहचान से अलग अब एक पत्रकार प्रेमचंद को देखने की आवश्यकता है। पत्रकार प्रेमचंद यदि आज हमारे बीच जीवित है तो इसके लिए अमृतराय से भी ज्यादा उन लोगों के प्रति हमें कृतज्ञ होना चाहिए, जिन्होंने पत्रकार प्रेमचंद की ख्याति और रचनात्मक थाती को संभालकर सालों तक सुरक्षित रखा। अमृतरायजी ने लिखा भी है कि ''मुंशी जी''  के इस खजाने की तरफ किसी का भी ध्यान नही गया था, और शायद मेरा भी ध्यान इस ओर कभी नहीं जाता। अगर मुंशी जी की प्रामाणिक जीवनी लिखने के तकाजों ने उसे मजबूर नहीं किया होता। उन सब चीजों की छानबीन की। जिसे मुंशी जी ने जब-तब और जहां-तहां लिखी। पुरातत्व विभाग की इसी खुदाई में ही यह खजाना हाथ लगा। यह लगभग 1600 पृष्ठों की सामग्री थी। अमृतराय ने पत्रकार प्रेमचंद की लगभग लुप्त और दफन हो गयी इन रचनाओं को सहेजने और सुरक्षित रखने का श्रेय लखनऊ और अलीगढ़ विश्वविद्यालय को दिया है।
उर्दू के मशहूर आलोचक प्रो. एहतेशाम हुसैन और डाक्टर कमर रईस को दिया है। मौलाना मोहम्मद अली, इम्तयाज अली ताज के और हमदर्द पत्रिका के प्रति भी आभार जताया है। इन लोगों के सार्थक प्रयासों से ही प्रेमचंद की अधिकांश रचनाएं करीब 25-28 साल के बाद भी सुरक्षित मिली। हिन्दी में लिखी रचनाएं पंडित विनोद शंकर व्यास जी के जरिये ही प्राप्त हो सकी। व्यास जी के काम और संरक्षण से अभिभूत अमृतराय जी ने लिखा भी हैं, कि उनके सहयोग और सविनय से ही प्रेमचंद का यह तेजस्वी पत्रकार का रूप हिन्दी संसार के सामने प्रस्तुत करना संभव हो पाया। पत्रकार प्रेमचंद को सामने लाने के पीछे महादेव साहा और कोलकाता में गहन खोज बीन और तलाश के बाद दर्जनों रचनाएं उपलब्ध कराने वाले श्री नाथ पांडेय जी के प्रति भी अमृत राय ने भाव विभोर होकर आभार जताया है।
आज से करीब 50 साल पहले प्रकाशित विविध प्रसंग में सक्रिय भूमिका निभाने वाले लोगों में शायद ही कोई आज हमारे बीच जीवित होंगे। मैं भी श्री अमृतराय जी समेत उन तमाम लोगों के प्रति भी हृदय से कृतज्ञता प्रकट करके सम्मान देना अपना धर्म समझता हूँ कि सभी ने पत्रकार प्रेमचंद को पहचान दिलाने की पहल की। इन सभी के काम के सामने सही मायने में मेरे काम का तो कोई महत्व ही नहीं है। इस पुस्तक के प्रकाशन के 50 साल हो जाने के बाद भी पत्रकार प्रेमचंद के महत्व को बड़े फलक पर नये तरीके से सामने लाना ही मेरा एकमात्र उद्देश्य है। ताकि मीडिया के सौजन्य से पत्रकार प्रेमचंद को पढ़ने के बहाने हर भारतीय नागरिकों को गुलाम भारत की असली तस्वीर को जानने का एक सुअवसर भी मिल सके।
प्रेमचंद के दिवंगत होने के 75 साल के बाद उनका महत्व तब और ज्यादा बढ़ जाता है जब आज के ग्लैमर युग में टेलीविजन का खबरिया चैनल फाइव सी यानी क्राइम, सेलेब्रिटी, कॉमेडी, सिनेमा और क्लास के इर्द-गिर्द ही घूमते हुए पत्रकारिता को जनसरोकार से जोड़ने की बजाय मीडिया से विमुख कर रहा है। प्रेमचंद के तमाम विद्वानों, समीक्षकों, शोधकर्ताओं, से मेरा यह निवेदन है कि वे पत्रकार प्रेमचंद के तेजस्वी स्वरूप को सामने लाने की पहल को आगे ले जाए। इसके लिए प्रेमचंद की प्राथमिकताओं को नए सिरे से मूल्यांकन की जरूरत है। यह हम सबके लिए सबसे दुःखद पहलू है कि प्रेमचंद की पत्रकारिता की जो सामग्री हमारे बीच है, शायद उससे भी ज्यादा सामग्री नष्ट हो चुकी है। जिसे गहन खोजबीन के बावजूद प्राप्त नहीं किया जा सका है।
खैर, हमारे बीच प्रेमचंद की जो रचनायें उपलब्ध हैं, उससे ही यह दावा और पुख्ता होता है कि वे काफी समर्थ पत्रकार थे। एक पत्रकार के रूप में प्रेमचंद के काम को कभी महत्व के लायक समझा ही नहीं गया। यही लापरवाही हम सबकी सबसे बड़ी पीड़ा है। विद्वानों आलोचकों की तमाम ख्यालों के विपरीत मेरा यह दावा है कि पत्रकार प्रेमचंद की छवि, किसी भी मायने में कमतर नहीं है। इस पुस्तक के पीछे मेरी मेहनत से ज्यादा मेरी बेबसी को देखकर कभी नाराज तो कभी उत्साहित होने वालों की एक लंबी सूची है। मेरे माता-पिता राजेन्द्र प्रसाद सिन्हा और मां उषा रानी सिन्हा और सास माँ रेणु दत्ता के अलावा मेरी पत्नी डा. ममता शरण और बेटी कृति शरण ने मेरे प्रेमचंद प्रेम को देखकर ही प्रेमचंद को पढ़ना चालू किया। हंसराज पाटिल सुमन और सरिता पाटिल सुमन के प्रति आभार नहीं जताना एक अपराध सा होगा। इससे पहले भी प्रकाशित किताबों के प्रकाशन का यह सिलसिला हंसराजजी के सहयोग से ही आरंभ हुआ। प्रेमचंद को लेकर किस्तों में दर्जनों बार हंसराजजी से मशविरा करने का संयोग बना। खासकर दुर्गेश कुमार द्विवेदी और देवेश श्रीवास्तव समेत शिशिर शुक्ला के प्रति भी आभार जताना मेरा फर्ज है, क्योंकि मैंने जिस अधिकार के साथ रचना संकलन, संपादन और सामग्री चयन के मामले में इन लोगों का समय जाया किया, इसके बावजूद पत्रकारिता के इन नवांकुरों ने कभी शिकायत ना करके हमेशा पूरे उत्साह के साथ मेरे आदेश का पालन किया। मैं इन तीनों उत्साही पत्रकारों के उज्ज्‍वल भविष्य की कामना करता हूं। और भी काफी लोग है, जिन्होंने पत्रकार प्रेमचंद के प्रति अपनी दिलचस्पी जाहिर की।
खंड एक में शामिल सभी लेखकों के प्रति भी मैं आभार प्रकट करता हूं, जिनकी वजह से ही मुझे इस पुस्तक को साकार करने में काफी मदद मिली है। शायद यह कहना ज्यादा बेहतर होगा कि इन रचनाओं के बगैर इस पुस्तक की कल्पना कर पाना मेरे लिए लगभग नामुमकिन सा था।
जारी....
लेखक अनामी शरण बबल दिल्‍ली में पत्रकार हैं.

बुधवार, 22 जून 2011











इंटरनेट और लघुकथा
रामेश्वर काम्बोज हिमांशु

 
इक्कीसवीं सदी इण्टरनेट की सदी है और साथ ही साहित्य की उन विधाओं की भी सदी है; जो समयाभाव से जूझते पाठक को भले ही कुछ एक पल लिए, साहित्य से जोड़ने का कार्य कर रही हैं । इसी सशक्त माध्यम के कारण लघुकथा , ग़ज़ल और हाइकु जैसी विधाएँ तमाम अवरोधों और अधकचरे रचनाकारों की मार खाकर भी पाठकों के बीच अपना स्थान बनाए रखने के लिए प्रयासरत हैं । लघुकथा ने लघुकथा डॉट कॉम (सुकेश साहनी एवं निशान्त काम्बोज) के माध्यम से 2000 में इण्टनेट की दुनिया में कदम रखा । फ़ोण्ट की समस्याओं का समाधान होने पर जुलाई 2007 से सुकेश साहनी एवं रामेश्वर काम्बोज ने इसे नियमित मासिक का रूप दिया । तब से आज तक इसकी यात्रा हिन्दी जगत में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा रही है और विश्व के 40 देशों तक अपनी पहुँच बना चुकी है । नवम्बर-दिसम्बर 2007 में इसके ‘बाल मनोवैज्ञानिक लघुकथाएँ’ विशेषांक ने पाठकों में काफ़ी लोकप्रियता हासिल की है । सत्य साईं केन्द्र दिल्ली ने इस अंक का उपयोग विभिन्न केन्द्रीय और नवोदय विद्यालयों के प्राचार्यों की वर्कशॉप में प्रेरक सामग्री के रूप में किया । किताबघर ने इसे पुस्तक रूप में भी प्रस्तुत किया है । भाषान्तर के माध्यम से अंग्रेज़ी , जर्मन , संस्कृत , पंजाबी , सिन्धी , मराठी , नेपाली और उर्दू भाषाओं में भी लघुकथाएँ प्रस्तुत की गईं । नवम्बर -दिसम्बर 2009 में ‘मानव मूल्यों की लघुकथाएँ’‘ विशेषांक ने अपने सामाजिक दायित्व का भी पूरी तरह निर्वाह किया है । अब यह विशेषांक पुस्तक रूप में भी शीघ्र प्रकाश्य है । इस नेट पत्रिका के माध्यम से दस्तावेज़ के अन्तर्गत विभिन्न पुस्तकों की समीक्षाएँ , अध्ययन कक्ष और आलेख के माध्यम से लघुकथा के शिल्प पर व्यापक चर्चा होती रही है । देश भर के शोधार्थी भी इससे लाभान्वित होते रहे है ।
अन्य नेट पत्रिकाओं में अभिव्यक्ति साप्ताहिक ने (जिसकी मासिक प्रसार संख्या लगभग 5 लाख है)अपने कॉलम ‘महानगर की लघुकथाएँ’ में सुश्री पूर्णिमा वर्मन और उनकी टीम ने चुनी हुई लघुकथाएँ प्रस्तुत करके अधिकतम पाठकों तक इस विधा को पहुँचाया है । अन्यथा डॉट कॉम , लेखनी डॉट नेट , गर्भनाल डॉट कॉंम(शीघ्र ही प्रिण्ट में भी आने वाली है), साहित्य कुंज डॉट नेट ,हिन्दी कुंज डॉट कॉम ,साहित्य शिल्पी डॉट कॉम, हिन्दी युग्म ,कर्मभूमि ,लेखक मंच डॉट कॉंम आदि ने अन्य विधाओं के साथ लघुकथा का भी समावेश करके इस विधा को विश्व भर में पहुँचाया है । हिन्दी युग्म और लेखक मंच डॉट कॉंम के अलावा सभी नेट पत्रिकाओं ने चयन पर विशेष ध्यान दिया है । कोश की दृष्टि से देखें तो गद्यकोश की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है ।इसमें 15 लेख और 209 लघुकथाएँ संगृहीत हैं ।
उर्दू की नेट और प्रिण्ट पत्रिका ‘कसौटी जदीद’ डॉट कॉम(सम्पादक द्वय : अनवर शमीम , मु अफ़ज़ल खान) ने अपने सितम्बर 2010 के अंक में लघुकथा डॉट कॉम की हिन्दी और विदेशी लेखकों की रचनाओं को उर्दू में प्रस्तुत किया है । नवम्बर -दिसम्बर 2009 में ‘मानव मूल्यों की लघुकथाएँ’ विशेषांक की लघुकथाओं को उर्दू के पाठकों तक पहुँचाने की योजना पर भी कसौटी के सम्पादक कार्य कर रहे हैं ।
हिन्दी जगत् में अपनी विशिष्ट पहचान वाली पत्रिका ‘हंस’ मासिक ने शुरू से ही इस विधा को महत्त्व दिया है । अपने इण्टरनेट संस्करण ‘हंस मंथली डॉट इन’ के माध्यम से इस विधा को और भी विस्तार दिया है । इस दिशा में पाखी डॉट इन , उदन्ती डॉट कॉम, अमर उजाला डॉट कॉम, राजस्थान पत्रिका डॉट कॉम,हिन्दी वेब दुनिया डॉट कॉम , हिन्दी गौरव डॉट कॉम( अक्तुबर से प्रिण्ट में भी उपलब्ध) आदि प्रमुख हैं । इन संस्करणों में उदन्ती डॉट कॉम और अमर उजाला डॉट कॉम , हिन्दी गौरव डॉट कॉम का चयन गुणात्मक रूप से अधिक कसा हुआ है ।राजस्थान साहित्य अकादमी की मधुमती मासिक , कथा प्रधान त्रैमासिक कथाबिम्ब ने दोनों ही संस्करणों में लघुकथा और तत्सम्बन्धी लेखों को वरीयता से प्रकाशित किया है । मधुमती ने मासिक आवर्तिका होने के कारण समीक्षा एवं कलापक्ष से जुड़े गम्भीर लेखों को ज़्यादा स्थान दिया है ।
वेब साइट के अतिरिक्त लघुकथा जगत में ब्लॉग का भी कम योगदान नहीं है । इस क्षेत्र में काम करने वालों में सर्वश्री रवि श्रीवास्तव (रचनाकार) ,सुकेश साहनी (हिन्दी-एव अंग्रेज़ी) ,बलराम अग्रवाल (जनगाथा,कथा यात्रा) श्याम सुन्दर अग्रवाल , जगदीश कश्यप ,सुभाष नीरव( कथा पंजाब) ,रूप सिह चन्देल , ओम्प्रकाश कश्यप (हिन्दी) ,सतीशराज पुष्करणा , दिलीप आचार्य और कुमुद अधिकारी (नेपाली) , तनदीप तमन्ना (पंजाबी आरसी ) सक्रिय हैं । ब्लॉग पर निरन्तर गम्भीर चर्चा होने के कारण हिन्दी और पंजाबी लघुकथा अधिक लोगों तक पहुँच रही है ।श्यामसुन्दर अग्रवाल जी का हिन्दी और पंजाबी भाषा पर समान अधिकार है ,अत: ये पंजाबी मिन्नी (पंजाबी), पंजाबी लघुकथा( पंजाबी लघुकथा हिन्दी में) , मेहमान मिन्नी(पंजाबीतर लेखक हिन्दी में) , पंजाबी मिन्नी लेख (लघुकथा विषयक लेख पंजाबी में)पंजाबी लेखकों की रचनाएँ हिन्दी जगत तक और हिन्दी रचनाएँ पंजाबी पाठकों तक पहुँचाने का कार्य अनवरत कर रहे हैं साथ ही लघुकथा के शिल्प पर भी गम्भीर लेख पाठकों तक पहुँचा रहे हैं ।
‘रचानाकार ‘ ब्लॉग के माध्यम से रवि श्रीवास्तव ने सर्वाधिक 100 पोस्ट से भी के द्वारा लघुकथाएँ पाठकों तक पहुँचाने का रिकार्ड स्थापित किया है ।
-0-
सन्दर्भ-
http://www.punjabiaarsi.blogspot.com
http://www.webdunia.com/
http://wwwrachanasamay.blogspot.com/
http://abhivyakti-hindi.org
http://anyatha.com
http://gadyakosh.org
http://garbhanal.com
http://hindigaurav.com/
http://hindisahityasarita.blogspot.com
http://jagdishkashyap.blogspot.com
http://jagdishkashyap.wordpress.com/
http://kathapunjab.blogspot.com/
http://laghukathaa.wordpress.com
http://lekhakmanch.com/
http://lekhni.net
http://mehmaanminni.blogspot.com
http://opkaashyap.wordpress.com
http://panjabilaghukatha.blogspot.com
http://punjabiminni.blogspot.com
http://punjabiminnilekh.blogspot.com
http://sahityakunj.net
http://sahityasrijan.blogspot.com/
http://satishrajpushkarana.blogspot.com/
http://shyamsunderaggarwal.blogspot.com
http://sukeshsahni.blogspot.com/
http://www.amarujala.com/
http://www.hansmonthly.in/
http://www.hindikunj.com/
http://www.hindyugm.com/
http://www.jangatha.blogspot.com/
http://www.kasautijadeed.com
http://www.kathaakaarssahni.blogspot.com/
http://www.kathabimb.com/
http://www.laghukatha.com
http://www.lakesparadise.com/madhumati/
http://www.pakhi.in
http://www.rachanakar.blogspot.com
http://www.rajasthanpatrika.com
http://www.sahityashilpi.com/
http://www.udanti.com
http://wwwlaghukatha-varta.blogspot.com
 

लघुकथा की भाषा

डॉ. सतीश दुबे




जब हम किसी भी विधा की भाषा का प्रश्न उठाते हैं तो पहला विचार यह उठता है कि उस लेखन का संबंध हमारी किस चेतना से जुड़ा हुआ है। उस चेतना से जो हमारे सामने काल्पनिक बिम्ब खड़ा करती है या उससे जो वर्तमान की साफ–साफ तस्वीरें देखने को आदी है। यदि उसका संबंध प्रेमचन्द की सीख के अनुसार (ऐसी चीजें क्यों नहीं लिखते, जिनमें वर्तमान की समस्याओं और ग्रन्थिथियों को उकसाया गया हो) वर्तमान से जुड़ता है तो वर्तमान को देखने का भी एक नजरिया होता है, जिसके तहत लेखक अपने समय की देखी हुई जिन्दगी के परिदृश्यों को लिपिबद्व कर देता चाहता है। हो सकता है सोच की भाषा लेखक की भाषा बल्कि साहित्य की भाषा हो जाती है। सड़क से साहित्य तक यात्रा करने वाली इस भाषा का स्वरूप कैसा होना चाहिए इसके लिए न तो कोई निर्धारित मापदण्ड होता है, न ही आचार संहिता। लेखक स्वयं यह तय करता है कि जिन्दगी से जुड़ने वाली भाषा की शब्दावली कैसी हो।
वस्तुत: लेखक जो भाषा इस्तेमाल करता है, उससे साहित्य का मापदण्ड ही नहीं बल्कि समय से जुड़ी सभ्यता के बोध का भी निर्धारण होता है। भाषा रचना के एक पात्र की जुबान के साथ पाठक के लिए एक विचार भी होती है। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि सही भाषा अर्थ गाम्भीर्य से युक्त होकर पाठक तक पहुँचे यानी लेखक और पाठक में समझ के स्तर पर मानसिक एक रूपता बनना ही चाहिए।
लघुकथा जीवन्त क्षणों को साफ सुथरी और ताकतवर भाषा में व्यक्त करने वाली ऐसी विधा है जिसका शब्दों के संयम और भाषा के विकास से सीधा संबंध आता है। आठवें दशक के प्रारम्भ में चुटकुलों या पुराने टैक्सचर के रूप में जिस लघुकथा से हिन्दी लगत को परिचित कराया गया वह न केवल कथ्य बल्कि भाषागत पर भी लघुकथा के लिए परीक्षा की घड़ी का समय रहा है। यह लघुकथा की सही भाषा से पाठकों को दूर ले जाने वाली मासूम साजिश थी। दरअसल हो यह रहा था कि विसंगत परिवेश को चित्रित करने के लिए जिस भाषा का उपयोग किया जा रहा था वह सतही होने की वजह से मजा देने वाली बनकर रह गई थी। जबकि लघुकथा जिन प्रसंगों से जुड़कर जिस भाषा से लेस होकर आना चाहती थी वह चमत्कृत या मनोरंजन से हटकर मस्तिष्क के तन्तुओं को झंकृत कर चेतना को जागृत करना चाहती थी। लघुकथा लेखकों ने इस प्रारम्भिक खतरे का जम कर मुकाबला किया। संयोग ही समझिए कालांतर में भाषा खिलवाड़ करने वाले तमाम लेखक खारिज हो गए।
वस्तुत: लघुकथा को पूरी लेखकीय ताकत के साथ व्यक्त करने के लिए जिस भाषा की जरूरत थी वह किसी बड़े याने व्यावसायिक पत्रिका से नहीं बल्कि लघुपत्रिकाओं से मिल रही थी। नए पुराने में प्रकाशित एक लेख में मैंने लिखा भी था कि मेरे सामने पचासों लघुपत्रिकाओं के नाम हैं जो कविता कहानी,लघुकथा या समीक्षा जैसी विधाओं को नए तेवर और अन्दाज में प्रस्तुत कर रही हैं। इससे भाषा और शैली की जमीन टूटी है कथन और शिल्प को विस्तृत प्रकाश मिला है तथा खलीफाई अन्दाज वाले सम्पादक तेवर बदलने को विवश हुए हैं। यह इस बात को जाहिर करता है कि बेवाक अभिव्यक्ति अब मुट्ठी भर लोगों के कृपा कटाक्ष की मोहताज नहीं रही है।
जाहिर है कि अभिव्यक्ति को विस्तृत प्रकाश मिलने के कारण लघुकथा कार भी बड़ी पत्रिकाओं के मोह को तोड़ चुके थे। लघुकथा अभिव्यक्ति की नई दिशा की ओर निरन्तर अग्रसर थी, धीरे–धीरे लघुकथा ने जो नई भाषा इजाद की,वह ताजगी के अर्थ को विस्तार देने की क्षमता अपने परिवेश की आई हवा तथा व्यक्ति की संवेदना को गति देने वाली थी।
‘इ कइमें हुइ सकत है इत हमार मेरारू पर घटल रहै, जउन अईसन करे रहा न, उहो के परमात्मा उठाए लिहिन। मर गया हरामी।’
साक्षात्कार : विक्रमसोनी
विस्तार क्षे़त्र की कमी तथा एक लक्ष्मी स्थिति के कारण लघुकथा के लिए यह खतरा हो सकता था कि सरल बयानी की जीवतंता के लिए वह परिवेशगत जबान को पाठकों के सामने ला सके। पर लघुकथा को डॉ0 यामसुन्दर व्यास (एक जीवन दर्शन) बलराम (बहू का सवाल) बलराम अग्रवाल (और नेक मर गया) चित्रा मुदगल (ऐव या गरीब की माँ) अंजना अनिल (उसके बाप की मौत) शकुन्तला ‘किरण’ (धुँधला दर्पण) जैसे अनेक उर्जावान लेखक मिले जिनके सामने ऐसे खतरों का कोई महत्त्व नहीं रहा।
सीधी सादी भाषा को आधार बनाकर कुछ शब्दों में जीवन की उथल पुथल को व्यक्त करना लघुकथा का एक तरह से अपना स्वभाव है–
–माँ भूख लगी है, रोटी दे दो’
–रोटी? अभी नहीं है बच्चे!
–कब होगी...?
–जब तेरे बाबा आएँगे।
–बाबा तो कई दिनों से नहीं आए।
–वह जरूर आएँगे मेरे बच्चे।
–अच्छा तो तुम कोई और चीज दे दो।
–घर में कोई चीज नहीं है।
–फिर पैसा ही दे दो।
–पैसा भी नहीं है।
–पर मुझे भूख लगी है, मैं क्या खाऊँ?
–तो मुझे खा ले राक्षस।
–मगर कैसे....
(माँए और बच्चे/रमेश बतरा)
रमेश बतरा की यह लघुकथा या पृथ्वीराज अरोड़ा, मधुदीप, कमल चोपड़ा की लघुकथाएँ कील। अन्त्योदय या ऊचाइयाँ जैसी लघुकथाएँ यह साबित करने के लिए पर्याप्त है कि सहजता और सपाट कलेवर में भी लघुकथाएँ भाषागत स्तर पर अर्थ गम्भीर्य से युक्त होती हैं।
कम शब्द, छोटा सा कैनवास और क्षण भर के कथ्य के प्रति भाषा के सजावट का आग्रह भी लघुकथाओं में मिलता है। यह आग्रह लघुकथा लेखक के रोमानी अंदाज से कम पर ाब्दों की बुनावट के ज्यादा निकट लगता है। भाषा के प्रति यह दोहरा व्यवहार कथा साहित्य में खतरा हो सकता है, पर लघुकथाकार इसे बखूबी निबाह रहे है।
इसी तारतम्य में कविता के टुकड़े जैसे कुछ लघुकथाओं के शीर्षक दृष्टव्य हैं कागज का आदमी/कमलेश भारतीय, चढ़ता हुआ जहर/विभारश्मि, नागफनी के फूल/कुलदीप जैन, पीले हाथों के लिए/कमल चोपड़ा, चेहरे सुबह के/राजकुमार गौतम, बड़ी मछली का आहार/विक्रमसोनी, मृगजल/बलराम, मुलाकातों के रंग/मोहन राजेश, छोटे बड़े हरे टुकड़े/राजा नरेन्द्र, विध गया सो मोती/विष्णुप्रभाकर, युग सूर्य/पूरन मुदगल।
लघुकथा अपने परिवेश में कम से कम बोलने तथा पाठकों से सीधे साक्षात्कार करने का प्रयास है। इसमें लेखकीय हिस्सेदारी या हस्तक्षेप की गुंजाइश कम ही होती है। इसलिए लघुकथा की भाषा में कसावट होती है। पर इस कसावट का मतलब संक्षिप्त प्रारूप् नहीं, बल्कि लघुकथा के तात्विक प्रभापुंजों से मंडित होना है।
सामाजिक विसंगतियों, असंगत व्यवस्था संबंधों के निर्वाह में आया बदलाव या आदमी की मन: स्थिति को कम, पर ज्यादा ताकतवर शब्दों में लघुकथा प्रस्तुत कर सकी है। इस संदर्भ में सुनो कहानी (रमेश बतरा) या अंतर (प्रचंड) अनायास याद आ जाने वाली रचनाएँ हैं।
लघुकथा एक लक्ष्मी होती है, अत; संक्षिप्त कथ्य के अनुरूवप चरित्र को उकेरने वाली गहरी भाव–व्यंजना युक्त पात्रानुकूल भाषा कथा चरित्र की सही अर्थ में पहिचान बनाने के लिए जरूरी है। एक लघुकथा ‘रोजी (महेश दर्पण) इस संदर्भ में सहज ही ध्यान आकृष्ट करती है। प्रयोगधर्मी भगीरथ की लघुकथाओं में भाषा का कमाल मिलता है। उनके हर कथ्य के साथ भाषा निरीह सी सरकती रहती है। जैसे उनकी लघुकथा ‘अफसर’ जिसमें शीर्षक के अनुरूप न केवल अफसर की अभिजात्य मानसिकता, बल्कि उसके सम्पूर्ण परिवेश को पूरी कलात्मकता के साथ अभिव्यक्ति मिली है।
कहने की जरूरत नहीं कि लघुकथा की हिन्दुस्तान की भाषा है। यह उन तमाम शब्दों से बनती है जिसे हिन्दुस्तानी बोलता है। इसीलिए मुहावरों लोकोक्तियों या आंचलिक शब्दों का प्रयोग लघुकथा में जहाँ–तहाँ भी होता है एकदम स्वाभाविक लगता है–
‘शादी के बाद आठ आल लग तुम्हारि कोखि पर शनीचर देउता क्यार असरू रही, ज्योतिषी जी बतावत रहंय।
–बलराम (बहू का सवाल)
वृद्ध पिता ने विचलित होते हुए कम्पित स्वर में कहा, ‘मन की इस आग को पानी मत बना बेटे! ठंडी आग ठुकराई जाती है, पूजी नहीं जाती।’
–डॉ. श्यामसुन्दर व्यास (ठंडी आग)
‘उसके जी में आया कि वह झकझोड़ कर कहे–राकेश तुम मुझे अपना लो, मैं टूट रही हूँ।’
–जगदीश कश्यप (संबंध)
‘वो बचना जो धनसिंह के घर काम करता है, बता रहा था कि, इसी टोपी वाले ने धनसिंह को पट्टी पट्टी पढ़ाई कि, भेड़ की उन मूड़ने के लिए ही होती है।’
–कमल चोपड़ा (जब से वह आया)
‘जो लोग अभी तक कह रहे थे कि, इतना बड़ा डूँड बज्जर करेजे का है, बापके मरने पर रोया तक नहीं...वे एकाएक खुश हो गए।’
–विक्रम सोनी (जूते के नाप का आदमी)
‘दोनों भाई गिद्ध दृष्टि से अपनी–अपनी बुद्धि खरोंच रहे थे....एक दूसरे से बीस ही पड़ना चाहते थे बरामदे में टेबुल फेन भी एक बराबर मात्रा में दोनों की ओर हवा झोंक रहा था...।’
–नंदल हितैषी (बंटवारा)
‘छांटव ऐसी हरिशचन्दर की माय नाही है बबुआइन।’
–चित्रा मुद्गल (ऐव)
‘वह कुछ पल एकटक जलती निगाहों से रग्घू को घूरती रही और अनायस फट पड़ी’–‘यह स्साला …है...।’
–महावीर प्रसाद जैन (संस्कार)
‘मिस्टर गौड़! इट्स अवर वर्क, नॉट योर्स, आपका काम है–हमारे आदेश को फालो करना, अण्डर स्टेंड....।’
–मधुदीप (ऐलान–ए–बगावत)
‘जाहिर है कि लघुकथा के विकास के साथ उसकी भाषा में भी समृद्धि हुई है। आदमी की वाणी के रूप में संवेदन के हर स्तर से जुड़े लघुकथाओं के मनोभावों को ताजा तरीन भाषा मिली है। अनेक नाम लघुकथाओं से जुड़ रहे हैं। शमीम शर्मा ने छह सौ बीस लघुकथाकारों और उनकी प्रतिनिधि लघुकथा की खोज की है याने लघुकथा के माध्यम से एक अपरिचित शब्द–भंडार हिन्दी–भाषा को मिल रहा है।
यह तो तय है कि किसी भी लेखन की तरह लघुकथाओं के लिए भी यह किसी तरह का खतरा नहीं है। दरअसल, होता यह है कि लेखन के प्रवाह में सम्मिलित होने वाली भाषागत गंदगी कभी उसकी निर्मल प्रकृति से नहीं जुड़ती, प्रवाह के थपेड़े खाकर वह अपने आप किनारे लग जाती है। लघुकथा के भाषागत प्रवाह की भी लगभग यही स्थिति है।
लघुकथा वस्तुत: लेखन कला का परिणाम है और कला से जुड़ने वाला कोई भी प्रसंग तब तक उस महत्व से नहीं जुड़ता जब तक कि प्रासंगिकता के संदर्भ में उसका कोई नोटिस नहीं लिया जाता। प्रश्न यह नहीं है कि लघुकथा की भाषा कलात्मकता से जुड़ी है या नहीं! प्रश्न यह है कि लघुकथा विकास के पथ पर जिस गति से निरंतर अग्रसर है, उसका निर्वाह भाषा के गुणत्मक स्तर पर सही संभावनाओं से जुड़ा हुआ है या नहीं।

लघुकथा क्या एक स्वतंत्र विधा है?

अध्ययन-कक्ष - डॉ सुरेन्द्र मंथन








लघुकथा : एक स्वतंत्र विधा




लघुकथा हमारी अपनी धरती की उपज है, पाश्चात्य साहित्य की मोहताज नहीं। इसके बीज पंचतंत्र, हितोपदेश, बोधकथा व नीति कथाओं में खोजे जा सकते हैं। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ने इसे नया नाम व रूप दिया है। नीति कथा आदि में आदर्श पूर्व निर्धारित रहते हैं, जबकि लघुकथा सामयिक जीवन से साक्षात्कार है। उपन्यास व कहानी में संवेदना के निर्वाह के धरातल पर जो अंतर है, वही अंतर लघुकथा को कहानी से अलग करता है। मात्र आकार का अंतर ही इन्हें अलग–अलग विधाओं में नहीं बाँटता। गद्यात्मक व कथा प्रधान होते हुए भी तीनों विधाओं की संवेदना विभिन्न धरातलों पर खड़ी हैं तात्विक समीक्षा के मापदण्डों की समानता के कारण कहानी को उपन्यास से अलग अस्तित्व स्थापित करने में जो कड़ी मेहनत करनी पड़ी थी, उसी अस्तित्व संकट से लघुकथा को जूझना पड़ रहा है। उपन्यास में जीवन के विविध पक्षों का विश्लेषण संभव है। कहानी जीवन के किसी एक पक्ष की विवेचना करती है। और लघुकथा जीवन–पक्ष के किसी अंश को उजागर भर कर देनी है। लघुकथा में जिन्दगी के विश्लेषण अथवा विवेचन की गुंजायश नहीं रहती। जिं़दगी इतनी तेज़ रफ्तार से भाग रही है कि स्थिति की पृष्ठ भूमि में जाने की अपेक्षा व्यक्ति स्थिति से साक्षात्कार भर कर लेना चाहता है। लघु कहानी आकार में लघु होने के बावजूद कहानी का एक रूप है, जबकि लघुकथा का भेद मात्र आकारगत न होकर अनुभूति की संश्लिष्टता को लेकर है।
लघुकथा कथा का लघुतम रूप है, परन्तु कथा–सारांश नहीं। गद्य में लिखी प्रत्येक लघु रचना लघुकथा नहीं होती। कथा लघुकथा का अनिवार्य तत्व है। कथ्य कथानक की विद्यमानता के बावजूद लघुकथा में कथा कहने की प्रवृत्ति का अभाव पाया जाता है। प्रासंगिक कथा की गुजांइश भी इसमें कम ही रहती है,परन्तु सांकेतिकता की विशिष्टता इसे आंतरिक कथा कहने से वंचित नहीं करती। विस्तार की गुंजाइश न होने के कारण वेग व एकाग्रता से कथ्य के चरम बिन्दु तक पहुँचना इसकी प्रमुख विशेषता मानी जा सकती है। उपन्यास व कहानी की तरह इसका भी एक चरम बिन्दु होता है। साधारणतया लघुकथा का अंतिम वाक्य एक झटके के साथ सम्पूर्ण संवेदना को अभिव्यक्त कर देता है। झटकेदार अंत के साथ चौंकाना या चोट करना लघुकथा की एक विशेषता मानी जा सकती है, अनिवार्यता नहीं। चौंकने के साथ आदमी सचेत अवश्य हो जाता है, सोचने को विवश नहीं होता। लघुकथा चाहे विश्लेषण की पक्षधर नहीं, फिर भी यह पाठक को सोचने के लिए विवश अवश्य करती है। विद्रूप स्थिति का नंगा साक्षात्कार चौंकाने की अपेक्षा सोचने का विषय है।
उपन्यास व कहानी की तरह लघुकथा का दूसरा प्रमुख तत्व मात्र है। लघुकथा केन्द्रीय पात्र की निजी अनुभूति का साक्षात्कार है, जिसे व्यापक आयाम देना लघुकथाकार की अतिरिक्त विशेषता है। पात्र व व्यक्तित्व घटना की परिणति अथवा संवाद के माध्यम से अभिव्यक्त होता है। वर्णनात्मक ढंग से व्यक्तित्व–विश्लेषण की गुंजायश लघुकथा में कतई नहीं है। लघुकथा व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को नहीं, उसके किसी विशेषक (ट्रेट) को चिह्नि करते हुए कथ्य को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त करती है।
सांकेतिकता व सारगर्भित संवाद लघुकथा की मारक प्रवृत्ति के अधिक अनुकूल है। लघुकथा संवाद–शैली में भी लिखी गई है। व्यक्तिगत अन्तविरोधों व सामाजिक विसंगतियों का पर्दापाश करने की यह सशक्त शैली है। स्थिति को प्रतिम्बिधित करने में भी संवाद अपेक्षाकृत अधिक प्रभावशाली माध्यम सिद्ध हुआ है।
वर्णनात्मकता के संकोच के कारण परिवेश–चित्रण की अधिक गुंजायश लघुकथा में नहीं है। व्यक्ति की मनोदशा को प्रभावित करने वाले परिवेशगत कारणों पर लघुकथाएँ अवश्य लिखी गई है।
लघु कलेवर के कारण लघुकथा की भाषा अपेक्षाकृत अधिक सांकेतिक रहती है। निजी अनुभूति को व्यापक आयाम देने के लिए ऐसी ही भाषा की आवश्यकता है। लघुकथा का जन–सामान्य से जुड़ा होना भाषा की सुगमता की मांग करता है। लघुकथा को पहेली बनने के संकट से भी मुक्त होना चाहिए। स्वाभाविक के चक्कर में आंचलिक भाषा का आरोपित प्रयोग भी लघुकथा को दुरूह बना सकता है। लघुकथा वर्णनात्मक शैली में अधिक लिखी गई है। संवाद शैली का सफल प्रयोग भी हुआ है। निजी अनुभूति को व्यापक आयाम में प्रस्तुत करने के लिए आत्मचरित शैली अधिक अनुकूल है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि लघुकथा उपन्यास अथवा कहानी का सारांश न होकर स्वतंत्र विधा है। यह संवेदना का सरलीकृत रूप भी नहीं है। कहानी की संवेदना लघुकथा का रूप नहीं ले सकती। लघुकथा तभी लिखी जाती है, जब उसे किसी अन्य विधा में समेटना प्रभावशाली प्रतीत नहीं होता। अतएव सूक्ष्म संवेदना लघुकथा की अनिवार्य शर्त है। यथार्थापेक्षी होने के कारण लघुकथा की संवेदना जीवनानुभूति से स्पर्शित होनी चाहिए। नाम के अनुरूप लघुता इसकी दूसरी शर्त है। सूक्ष्म अनुभूति का सीमित शब्दों में प्रतिबिम्बन सांकेतिकता की माँग करता है। सिकी विचार अथवा अनुभूति का वर्णन लघुकथा नहीं है, लघुकथा उस अनुभूति का प्रतिबिम्बित रूप है। लघुता प्रस्तुतीकरण को मारक बनाती है। सारांशत : सूक्ष्म संवेदना को प्रभावशाली ढंग से व्यापक आयाम में प्रतिबिम्बित करती है।
लघुकथा–लेखन के साथ कुछ संकट–बिन्दु भी जु़ड़े हुए हैं। स्थापित न नए हस्ताक्षरों द्वारा तेजी से लिखी जा रही लघुकथा इसका संकट–बिन्दु नहीं है। संकट–बिन्दु लघुकथा को साहित्यकार बनने की लघुविधि के रूप में दिखाई देता है। नई कलम अन्य विधाओं की अपेक्षा लघुकथा को ही अभिव्यक्ति का माध्यम क्यों चुन रही है? कथा–लेखन का यह रूप साहित्य को जटिल स्थितियों के विश्लेषण से वंचित तो नहीं कर देगा?
लघुकथा न चुटकला है न व्यंग्य का पर्यायवाची शब्द। चुटकले का कार्य गुदगुदाने तक सीमित है। व्यंग्य किसी भी साहित्यिक विधा में, चाहे वह गद्यात्मक हो या पद्यात्मक, समा सकता है, लेकिन इसी से उसे स्वतंत्र विधा या तत्व का अधिकार प्राप्त नहीं हो जाता। लघुकथा व्यंग्यहीन भी हो सकती है। व्यंग्य लघुकथा की भाषागत विशेषता है, उसकी अनिवार्यता नहीं।
लघुकथा के भविष्य के प्रति शंकाएँ पैदा की जा रही है। कहीं व्यवसायिक पत्रों द्वारा इसके व्यक्तित्वहीन होने की बात कही जाती है, तो कहीं इसे स्थिति के समग्र प्रभाव को अभिव्यक्त करने में अक्षम करार दिया जा रहा है। इस पर जुमले बाजी का आरोप भी है। इसमें सन्देह नहीं कि कुछ अधकचरे लघुकथाकारों के हाथों में पड़कर लघुकथा गाली देने का माध्यम भर बन कर रह गई है, परन्तु इसके बावजूद सशक्त लघुकथाएँ तेजी से लिखी जा रही है। सभी प्रकार की पत्र–पत्रिकाएँ इन्हें धड़ल्ले से छाप रही हैं। समय की मांग के अनुकूल किसी विधा का लोकप्रिय हो उठना, उसके केन्द्रीय विधा बनने की उन्मुखता का परिचायक है। किसी भी विधा का स्वतंत्र अस्तित्व नारे का नहीं, कृतित्व का मोहताज है। नये–पुराने हस्ताक्षरों का इस ओर उन्मुख होना इसके स्वर्णिम भविष्य के प्रति संकेत है।

श्रेष्ठ लघुकथाओं से गुज़रते हुए



प्रो रवीन्द्रनाथ ओझा

पहले मैं लघुकथाओं को कोई विशेष महत्त्व नहीं देता था–उन्हें मैं ‘दोयम दर्ज़े का साहित्य’ मानता था, या कहूँ साहित्य मानता ही न था–बोध कथा, नीति कथा, अखबारी रिपोर्टिंग,हास्य–व्यंग्य चुटकुले की श्रेणी में उन्हें रखता था। सोचता था इनके रचनाकार ‘दोयम श्रेणी के रचनाकार’ होते हैं या रचनाकार होते ही नहीं। उनकी दृष्टि सीमित होती है, क्षमता स्वल्प। स्वल्प क्षमता स्वल्प। स्वल्प क्षमता और सीमित दृष्टि वाले रचनाकार ही इस क्षेत्र में जाने–अनजाने प्रवेश पा लेते हैं और इस विधा का इस्तेमाल अपनी स्वल्प सर्जनात्मक ऊर्जा के प्रवाह–प्रकटन के लिए गाहे–बगाहे करते हैं। रचनाकार द्वारा इस विधा का चुनाव ही यह घोषित कर देता है। कि रचनाकार अपनी सामर्थ्य से पूर्ण परिचित है, उसके पास सृजनात्मक ऊर्जा या दृष्टि का अभाव है–वह काव्य, नाटक, उपन्यास, कहानी, ललित निबंध जैसे उत्तम कोटि के साहित्य की संरचना करने में असमर्थ है इसीलिए वह निराश हताश पराजित–पराभूत मन से सर्वाधिक सुगम विधा लघुकथा को चुनता है। लघुकथा का रचनाकार वह श्रद्धा, सम्मान, वह पद–प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर पाता जो कवि, नाटककार उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार सामान्यत: समाज में, साहित्य में, सभी जनों के बीच प्राप्त कर लेता है।
पत्र–पत्रिकाओं में मैं लघुकथाओं को अंतिम स्थिति में ही पढ़ता था। जब सब कुछ खतम हो जाता और पढ़ने को और कुछ नहीं रहता तब आधे–अधूरे मन से, बल्कि मजबूरी से विवश हो लघुकथाओं को पढ़ना शुरू करता था। उनमें कभी–कभी कुछ चमत्कृत कर देने वाली किसी–किसी की लघुकथाएँ भी होती थीं। ज्यादातर लघुकथाएँ हास्य–व्यंग्य या चुटकुले की कोटि की होती या अखबारी खबर या रिपोटिंग की कोटि की–जो जुगनू की क्षणिक रुग्ण रोशनी की तरह विस्मृति के अंधँकूप में सदा के लिए लुप्त हो जातीं। ज्यादातर लघुकथाएँ मनमानस पर कोई स्थायी भाव या टिकाऊ प्रभाव पैदा ही न कर पातीं और सहज ही विस्मृत हो जातीं। हाँ, उन्हीं में कुछ ऐसी भी लघुकथाएँ मिलतीं जिनसे अंतर उद्भासित हो उठता, चेतना झंकृत हो उठती, अंतरात्मा व्यथित–आंदोलित हो जाती और सच्ची सृजनात्कता के जीवन्त सहवास की रसोपलब्धि हो जाती। तब सोचता कि लघुकथा एक सशक्त सृंजनात्मक विधा हो सकती है–श्रेष्ठ रचनाकार के हाथों में पड़ या सृजनात्मकता के समुत्कर्ष–संप्रवाह में प्रवाहित हो लघुकथा श्रेष्ठ सृजनात्मकता की संवाहिका बन सकती है। लघुकथाओं की यदि एक ओर कटु कठोर, रुक्ष शुष्क सीमा रेखाएँ हैं तो दूसरी ओर उनकी मृदुल मधुर मोहन मनहर संभावनाएँ भी हैं–वे भी कविता, कहानी, ललित निबंध के निकट आ सकती हैं– उनमें भी काव्य की भाव–सघनता, आनुभूतिक तीव्रता, कहानी का सरस सार सूत्रात्मक प्रवाह, ललित निबंध का सम्मोहन व लालिल्य ऊर्जा व चैतन्य का समुत्कर्ष आ सकता है। कुछ लघुकथाओं से गुज़रते हुए मुझे अहसास हुआ, आभास मिला कि लघुकथाओं में अपार संभावनाएँ छिपी है जिसका सम्यक् शोधन–संधान, दोहन–मंथन सशक्त, प्राणवान व अनुभव सिद्ध सृजनाकार ही कर पाएगा।
तो अब जब डॉ0 सतीशराज पुष्करणा के चलते लघुकथाओं के सिद्धांत व प्रयोग में ,उसकी सर्जना–समीक्षण में रुचि गहरी होती गई है तो लघुकथाओं के प्रति मेरी आद्य आशाहीन उदासीनता आसवती–प्रकाशवती अभिरुचि में तब्दील होती जा रही है।
अब मैं देख रहा हूँ कि लघुकथा विधा के रूप में यदि जीवंत सशक्त नहीं हो पा रही है तो यह उस विधा का दोष नहीं है या, उसकी आकारगत सीमा का दोष नहीं है. यह उसका Native Defect या disadvantage , यह दोष है, उसके सर्जक का, उसके रचनाकार का, उसके प्रणेता का, विधाता का। रचनाकार का अंतर यदि सूखा है, रसहीन–अनुर्वर रश्मि–शून्य है तो उसकी रचना कैसे भरपूर होगी, उसकी सर्जना कैसे शक्तिशाली जीवन्त होगी, सरस रसदार होगी? तो दोष सिर्फ़ रचनाकार का है, केवल रचनाकार का है। रचनाकार अपने को श्रेष्ठ रचना के योग्य बना नहीं पाता–वह वांछित पात्रता का अर्जन नहीं करता–वह वेदना के ताप में तपता नहीं, साधना की आँच में पकता नहीं, वह सृजनात्मकता की गंगा में नहाता नहीं, उसका अंतर उद्भासित नहीं होता, उसे जीवन की ऊँचाई, गहराई–विस्तार के दर्शन नहीं होते, उसे जीवन की सूक्ष्मातिसूक्ष्म तरंगों कंपनों से मुठभेड़ नहीं होती,जीवन की अनेक अमृत रूप् छवियाँ अनदेखी रह जाती है, जीवन के अनेक वर्ण गंध अनाघ्रात अस्पृष्ट रह जाते हैं, जीवन के अनेक गीत संगीत, जीवन की अनेक राग–रागिनियाँ, जीवन के अनेक छंद–लय ताल, स्वर ,सुर, तान, ध्वनि अजात अलक्षित, अश्रुत–अश्रव्य रह जाते है, जीवन का अनंत वैभव कोष अछूता रह जाता है, अनेक रसरासायन अननुभूत–अनास्वादित। जीवन की विविधामयी बहुरंगमयी पुस्तक के अनेक पृष्ठ अनपढ़े अनदेखे–अनबूझे रह जाते हैं। ऐसी स्थिति में वह क्या खाक रचना कर पाएगा, वह क्या खाक सर्जना कर पाएगा?
रचना और सृजन के लिए बड़ी लंबी तैयारी और साधना की ज़रूरत पड़ती है, बड़ी तपस्या और तपन की जरूरत पड़ती है–ग्रीष्म की दारुण तपन के बाद ही सर्जना की सावनी समां बेधती है–सर्जन का पावन सावन सम्पूर्ण हर्षोंल्लास समेत सर्जक के अन्तराकाश में समवतीर्ण हो उठता है। उपनिषद् के ॠषि,महात्मा बुद्ध, कन्फ्यूशियस, ताओ लाओत्से, ईसप, ईसा मसीह, ख़लील जिब्रान, मुल्ला नसरुद्दीन, मुल्ला दाउद, रामकृष्ण परमहंस आदि यदि लघुकथा जैसी चीजों के माध्यम से अपने तेज, ऊर्जा और चैतन्य का सर्वोत्तम दिग्दर्शन करा पाए तो इसका श्रेय किसको जाता है? निश्चय ही उनके सर्जनात्मक ऊर्जस्वी तेजस्वी व्यक्तित्व को, उनके तप स्वाध्याय, उनके साधना–संधान को। तेजस्विता ऊर्जस्विता ऐसा पारस पत्थर है जो लोहे को भी सोना बना देता है, बूँद में सिंधु भर देता है, कलियों में बसंत खिला देता है, लघु में विराट् समाहित कर देता है, कण में असीम,क्षण में अनन्त, दूर्वादल में विराटवन का समावेश, कतिपय सिक्ता कणों में विशाल मरुभूमि के दर्शन, प्रस्तर खंडों में विंध्य–हिमाचल के रूप गौरव प्रतिष्ठित करा देता है–तो व्यक्तित्व के तेजस्वी संप्रभाव से सर्जना शाश्वतोपलब्धि कर लेता है, विस्मरण के अंध खोह को पार कर शाश्वत आलोक–लोक में संप्रतिष्ठ हो जाते हैं।
आज यदि लघुकथा दोयम दर्ज़े की साहित्यिक विधा या शैली मानी जाती है तो निश्चित रूप से दोष लघुकथा में लगे रचनाकारों–सर्जको का है। वे यदि तेज सम्प्राप्त करें, ऊर्जा हासिल करें, चैतन्य की सिद्धि करें तो निश्चय ही यह विधा भी उसी तरह संप्रतिष्ठ होगी जैसी कोई अन्य साहित्यिक विधा। तो अंतत: सिद्ध हो जाता है कि विधा का कोई दोष नहीं, दोष है प्रयोगकर्ता का। दोहा–चौपाई जैसा छन्द जिस सम्मोहक समुत्कर्ष पर समासीन हुआ उसका सारा श्रेय तुलसी के महातपी, महातेजस्वी व्यक्तित्व को जाता है, उनकी सुदीर्घ एवं लक्ष्योन्मुखी साधना को जाता है। बिहारी के दोहे जितने तेजोदीप्त होते उतने अन्यों के दोहे तेजतर्रार नहीं होते, निराला ने मुक्त छंद को जो जीवंत लयात्मकता, बिम्ब वैभव, भावोदात्य दिया, वह किसी दूसरे से संभव न हुआ।
अंग्रेजी में शेक्सपियर ने ‘सोनेट’ को जो नमनीयता, लोच, प्राणों का जो सहज प्रवाह दिया, कीट्स ने ‘ओड’ को जो निबिड़ सघनता व काव्य वैभव दिया, पोप ने ‘हीरोइक काप्लेट’ को जो समुत्कर्षण, तेजोदीप्ति, परिष्कृति दी, वाल्ट हिटमैन ने ‘फ़्रीवर्स’ ‘जो काव्य संपदा, भावावेग समर्पित किया वह किसी दूसरे रचनाकार कलाकार से संभव न हो सका। तो बाण वही है पर राम के हाथों वह राम बाण बन जाता है, अस्त्र वही है पर शिव के हाथों वह पाशुपतास्त्र और ब्रह्मास्त्र बन जाता है।
तो आज जरूरत है व्यक्तित्व–वर्धन की, संवर्धन की, तेज अर्जन की, ऊर्जा–संग्रहण व चैतन्य–संवहन की। तभी लघुकथा विधा में अमित संभावनाएँ उदित हो सकती हैं, विराट शक्ति समाहित हो सकती है, अणु बम, नाइट्रोजन बम, हाइड्रोजन बम की शक्ति आ सकती है। वैसी स्थिति में लघुकथाएँ साहित्य की शाश्वत निधि, कालजयी सारस्वत संसिद्धि हो सकती है।
लघुकथा आज के युग की महती आवश्यकता हो सकती है। जब जीवन ज्यादा व्यस्त–विकट,कर्मसंकुल, जब जीवन नाना प्रकार के घात–प्रतिघातों से आहत–प्रत्याहत, नाना प्रकार के प्रहारों से क्षत–विक्षत, क्लांत–विपन्न होता जा रहा है। नाना प्रकार की दौड़–धूप भागम–भाग,आपाधापी, कशमकश व जद्दोजहद से जीर्ण–शीर्ण, उद्विग्न–खिन्न होता जा रहा है तब हम लघुकथाओं के माध्यम से उस जीवन–मरू को नखलिस्तान प्रदान कर सकते हैं। जीवन के नैराश्यनिशीथ में आशा के दीप व आस्था के संदीप जला सकते हैं। भ्रम–भ्रांति के घनघोर जंगल में चांदनी खिला सकते हैं, दिशाहीनता के आकाश में ध्रुवतारा दिखा सकते हैं, जीवन के श्मशान में संजीवनी ला सकते हैं, लघुकथाओं के माध्यम से तंत्रों–मंत्रों–यंत्रों की रचना कर जीवन को भूत–प्रेत–पिशाचों से यानी संपूर्ण प्रेत बाधा से मुक्ति दिला सकते हैं। लघुकथाओं के माध्यम से कीटाणु नाशकों का निर्माण कर जीवन को कीटाणुओं से मुक्ति दिला सकते हैं, लड़खड़ाते जीवन को लघुकथा का टॉनिक पिला उसे सरपट दौड़ा सकते हैं यानी लघुकथा के माध्यम से हम हर तरह का Pain killer, Healing balm ,Syrup,Tablet,Capsule ,Injectionबना सकते हैं यहाँ तक कि Surgery को विकसित कर अवांछित अंग को काट सकते हैं ,पुरातन अंग को हटाकर नवीन अंग का प्रत्यारोपण कर सकते हैं यानी लघुकथा को Physocian व Surgeon दोनों रूपों में इस्तेमाल कर सकते हैं –जीवन को सर्वथा स्वस्थ ,कीटाणुमुक्त ,रोगमुक्त नीरोग बनाने के लिए ।
जीवन को स्वस्थ–रोगमुक्त, जीवन को गतिशील प्रवहमान, जीवन को विवर्धित पुष्ट समृद्ध बनाना ही तो सर्जना का अंतिम लक्ष्य है, उसकी चरम चाहना है और नवीनतम आधुनिकतम साहित्यिक विधा के रूप में लघुकथाएँ सारे काम बखूबी कर सकती हैं बशर्तें कि लघुकथाकार पहले स्वयं तपने के लिए तैयार हो जाएँ। वृह्त् सिद्धि के लिए वृहत साधना की जरूरत पड़ती है। अपने सृजन को सर्वतोभावेन संपूर्णत: समग्रत: सशक्त बलवान, वीर्यवान, तेजस्वी–ऊर्जस्वी बनाने के लिए सुदीर्घ साधना की जरूरत पड़ेगी–अपने को हिमालयी या भावभूतिक (भवभूतिक) धैर्य के साथ तपाना होगा तभी लघुकथा एक सशक्त रोगनाशक जीवनदायिनी विधा के रूप में प्रयुक्त हो सकेगी अन्यथा इसके अभाव में लघुकथा का निर्जीव, निष्प्राण, निस्पंद होना, उसका रुग्ण अल्पायु होना बिलकुल सहज स्वाभाविक है, बिल्कुल न्यायसंगत, औचित्यपूर्ण।
लघुकथाओं के मूल्यांकन–क्रम में कुछ लघुकथाओं का रसास्वादन
अपने इस प्रारम्भिक प्राक्कथन के बाद अब मैं आज की कुछ लघुकथाओं का अवलोकन–आस्वादन–मूल्यांकन करना चाहूँगा। मैं कोई पेशेवर समीक्षक–आलोचक नहीं, कोई सिद्ध सर्जक भी नहीं, कोई अधिकारिक सूत्रदाता या कोई सर्व–संप्रभुता संपन्न, सिद्धांतदाता भी नहीं। मैं तो केवल एक जिज्ञासु बौद्धिक हूँ, सत्य का संधाता, साहित्य–रस–रसिक–रसज्ञ, जीवन–रस खोजी मर्मज्ञ। जहाँ–जहाँ जीवन पाता हूँ, जीवन की ऊष्मा, जीवन का ओज, जीवन की ऊर्जा, जीवन का तप तेज, जीवन का सृजन सौंदर्य, जीवन का मोहन माधुर्य, यानी जहाँ जिधर जीवन के बहु आलोक वैभव के दर्शन होते हैं, वहाँ उधर ही सम्मोहित आकर्षित हो दौड़ पड़ता हूँ, इसलिए साहित्य और सर्जना, संगीत और साधना,शोधन और संधान मुझे प्रिय हैं, उन में मेरा मन रमता है, आनन्दित–आह्लादित होता है।
जहाँ जीवन है, जहाँ जीवन का अमित वैभव–प्रवाह है, वहीं साहित्य है, सर्जना है, संगीत है, सृष्टि है–साहित्य का महत्त्व भी उसी अनुपात से है जिस अनुपात से वहाँ जीवन तरंगित, स्पंदित, लहरायित, तरंगायित, सृजनोद्यत,प्रवहमान है। मैं साहित्य को सर्जना की दृष्टि से, जीवन को सृष्टि के रूप में देखता हूँ। यदि इस दृष्टि से साहित्य सर्जना खरी उतर गई तो निश्चय ही वह स्वागतयोग्य है, अभिनंदनीय है अन्यथा केवल शब्दों के जोड़–तोड़ या भाषा की बनावट से साहित्य का स्वर्गिक सुमन नहीं खिलता, सर्जना का अमृत मधु तैयार नहीं होता।
मैं इन लघुकथाओं को सर्जना की दृष्टि से देखूँगा–रचना की दृष्टि से स्वादित मूल्यांकित करूँगा।

मंगलवार, 21 जून 2011

प्रदीप संगम kके प्रति एक श्रद्धाजंलि

हिन्दुस्तान के वरिष्ठ सहायक सम्पादक प्रदीप संगम का निधन

by Nuj India on Tuesday, 07 June 2011 at 16:37
नई दिल्ली 07 जून (वार्ता)। दैनिक हिन्दुस्तान के वरिष्ठ सहायक सम्पादक (फीचर) प्रदीप संगम का आज हिमाचल प्रदेश के कांगडा जिले में निधन हो गया।
उनके पारिवारिक सूत्रों ने बताया कि श्री संगम अपनी पत्नी, पुत्री और पुत्र साथ चिन्तपूणीo देवी के दर्शन करने गए थे जहाँ आज सुबह टहलते हुए उन्हें दिल का दौरा पडा और निधन हो गया।
वह पहले विश्व मानव दैनिक में और वर्ष 1995 से दैनिक हिन्दुस्तान के फीचर विभाग से जुडे हुए थे और दिल्ली पत्रकार संघ में भी सक्रिय थे और इस समय कोषाध्यक्ष थे।
उनके निधन की सूचना मिलने पर नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स से सम्बद्ध दिल्ली पत्रकार संघ(डीजेए) ने यहाँ एक
शोक सभा आयोजित की, जिसमें दिल्ली के स्वास्थ्य मन्त्री अशोक वालिया (एन.यू.जे.)के राष्ट्रीय महासचिव रास बिहारी (डी.जे.ए) के अध्यक्ष मनोज वर्मा और महासचिव अनिल पाण्डे सहित अनेक पत्रकारों ने उन्हें श्रद्धाजंलि अर्पित की।
यूनीवार्ता द्वारा समाचार
· · Share



    • Ram Bhuwan Singh Kushwah यह जानकार बहुत दुख हुआ । कृपया मेरी ओर से भी संवेदनाएं भेज दें या फिर उनके घर का पता भेज दें ।
      07 June at 17:16 ·

    • Raahul Bajpai Sun kar dukh hua, eshwar unki atma ko shanti aur parivaar ko shakti pradan kare.
      07 June at 17:46 ·

    • Ajay Pandey very sad indeed.
      07 June at 17:50 ·

    • Dinesh K Yadav प्रदीप संगम जी के असमय हुई मृत्यु के बारे में सुनकर में स्तब्ध और बहुत दुखी: हूँ....मेरी भगवान से प्रार्थना की उनकी आत्मा को शांति और उनके परिवार को इस गहन दुख: को सहने की शक्ति प्रदान करें..
      07 June at 18:33 ·

    • Arun Khare प्रदीप संगम जी के ि‍नधन की खबर स्‍तब्‍ध करने वाली है अभी उनके जाने का समय नही था ईश्‍वर उनके प ि‍रवार को इस गहन दुख को सहन करने की ताकत दे यही कामना है प्रदीप जी अच्‍छे इंसान ही नहीं एक अच्‍छे प.कार भी थे/
      07 June at 20:32 ·

    • Arun Sharma मनोज जी आज कार्यकर्म में जब आपने प्रदीप जी के आकस्मिक निधन के विषय में बताया तो हृदय को एक आघात लगा ! माता रानी जी प्रदीप जी की आत्मा को शांति प्रदान करे और उनको अपने चरणों में स्थान व उनके परिवार को इस आघात को सहने की शक्ति प्रदान करे!
      ॐ शांति!
      ॐ शांति !!
      ॐ शांति !!!

      08 June at 00:06 ·

    • Prasanna Mohanty R.I.P Pradip Sangamji.
      08 June at 15:55 ·

    • Anami Sharan Babal
      आह संगम जी आप नहीं रहे। यह जानकर सुनकर मन दुखी हो गया। आपके साथ तो मेरा पहली नौकरी पहला प्यार जैसा नाता था।आपके साथ सहारनपुर में काम करने का सीखने का मौका मिला था। उस समय का प्यार सहजोग समर्थन और आत्मीयता क्या कभी भूला जा सकता है। जब आप दिल...्ली आए तो यह आपका बडप्पन था कि राष्ट्रीय सहारा के दफ्तर में आकर इसकी सूचना दी। दिल्ली में भी आपने प्यार बनाए रखा।यह जानना मेरे लिए आघात बराबर है. पर नियति के सामने हम विवश है।भगवान आपकी आत्मा को शांति और भाभी एवं बेटे को इस विपति भरे इस दुख को को सहने का ताकत प्रदान करेंSee more

      16 June at 13:09 ·

    • Manohar Singh Aaj 19 july ko trinhar men sangam ji ki atma ki chir shanti ke kiye yagnya wa shanti shabha hui. Manohor
      Sunday at 18:57 ·



गुरुवार, 16 जून 2011


ब्लॉगर अब बिल्कुल ठीक काम कर रहा है

अगर आप ब्लॉगर (ब्लॉगस्पॉट) प्लेटफॉर्म पर ब्लॉगिंग करते हैं, तो 12 व 13 मई 2011 के बीच इस संदेश से आप भी रूबरू हुए होंगे।

Blogger is currently unavailable.
Blogger is unavailable right now. We apologize for this interruption in service

36 घंटे से भी ज़्यादा समय तक बंद रहने के बाद आख़िरकार ब्लॉगर इंजीनियरों ने इसे दुरुस्त कर दिया है। अब आप इसके जरिए पोस्ट पब्लिश कर सकते हैं और कमेंट्स भी कर सकते हैं।

शायद 'फ्राइडे द थर्टीन के अपशकुन ने ब्लॉगर को भी अपनी चपेट में ले लिया। इस परेशानी की वजह क्या रही, यह ब्लॉगर ने स्पष्ट नहीं किया है, लेकिन यह संकेत ज़रूर दिए हैं कि इस दरम्यान अगर कोई पोस्ट या कमेंट डिलीट हुआ है तो ब्लॉगर उसे वापस ले आएगा। इस दौरान दर्जनों साथियों ने मुझे मेल व दूसरे संदेशों से बताया कि इस असुविधा की वजह से वे कितने परेशान हो रहे हैं।

दरअसल ब्लॉगर को पीएसटी समय के अनुसार 11 मई को रात दस बजे (भारतीय समयानुसार 12 मई को सुबह साढ़े दस बजे) कुछ मेंटेनेंस करना था। यह मेंटेनेंस करीब एक घंटे तक चलने वाला था, लेकिन शायद इस दौरान कुछ गड़बड़ हुई और ब्लॉगर की सेवाएं 36 घंटे से ज़्यादा समय के लिए बाधित रही। इस दौरान ब्लॉगर अपने ट्विटर अकाउंट, फोरम और स्टेटस ब्लॉग की सहायता से राहत की खबरें देता रहा।

ब्लॉगर ने बताया कि अगर आपने पीएसटी समय के अनुसार बुधवार सुबह 7 बजकर 37 मिनट (भारतीय समयानुसार बुधवार रात 8 बजकर 07 मिनट) के बाद कोई भी पोस्ट या कमेंट किया है, तो हो सकता है कि वे नज़र नहीं आ रहे हों। ब्लॉगर के पास उन सभी का बैकअप है और कोशिश होगी कि उन्हें बहाल किया जाए।

हालांकि ब्लॉगर ने अपनी आधिकारिक पोस्ट में कहा है कि यह 20.5 घंटे के लिए बंद रहा।

ज़्यादा जानकारी स्टेटस ब्लॉग, ट्विटर अकाउंट, फोरम या ब्लॉगर बज से मिल सकती है।

अब उम्मीद करते हैं कि ब्लॉगर को किसी की नज़र नहीं लगेगी और ठीक-ठाक काम करता रहेगा।

हैपी ब्लॉगिंग

क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए!!

हिन्दी ब्लॉग टिप्स की हर नई जानकारी अपने मेल-बॉक्स में मुफ्त मंगाइए!!!!!!!!!!


ब्लॉग पर संचालित चित्र पहेलियों का जवाब देना कितना आसान!

टिनआई ऐसी रिवर्स इमेज सर्च वेबसाइट है, जो किसी तस्वीर से समानता रखने वाली दूसरी तस्वीरों के लिंक्स को इंटरनेट पर खोजने का काम करती है।
हिन्दी ब्लॉग जगत में पहेलियों का बड़ा योगदान रहा है। कुछ ने इन्हें मनोरंजन का साधन माना है, तो कुछ ने जानकारी बढ़ाने का। कुछ लोगों का मानना है कि पहेलियां ही हैं, जिनके माध्यम से ब्लॉग जगत के साथियों के बीच नियमित वार्तालाप का सिलसिला चलता है। ताऊ डॉट इन पर हर शनिवार को संचालित पहेली को ही लीजिए। किस तरह से दर्जनों ब्लॉगर साथी नियमित जुटते हैं और एक संवाद का सिलसिला चल पड़ता है। अन्य चिट्ठों पर संचालित पहेलियों पर भी ऐसी ही स्थिति देखी जा सकती है।

इन पहेलियों की सफ़लता से विचलित होकर चँद लोग इन दिनों अनैतिक आचरण कर रहे हैं। वे पहेलियों के प्रकाशित होते ही इनके हल अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करने लगे हैं, जिससे प्रतिभागियों का मज़ा कम हो रहा है। कई बार संचालकों को ताज्जुब होता है कि किस तरह पहेली के प्रकाशन के चंद मिनट बाद ही इनके जवाब लीक हो जाते हैं। मैं आपको बताना चाहूंगा कि इसकी वजह विषय ज्ञान नहीं, बल्कि तकनीकी चालाकी है।

यह तकनीकी चालाकी बहुत आसान है और इसे तकनीक की बिल्कुल भी समझ नहीं रखने वाला व्यक्ति भी अंजाम दे सकता है। इसके लिए कुछ खास वेबसाइट्स की मदद ली जाती है, जो रिवर्स इमेज तकनीक पर आधारित है। टिनआई नामक ऐसी ही एक वेबसाइट किसी भी तस्वीर से मिलती-जुलती तस्वीर के लिंक को चुटकियों में इंटरनेट से खोज लाती है। यही नहीं, इसी तरह की और भी कई वेबसाइटें इंटरनेट पर मौजूद हैं।

आपको एक उदाहरण से समझाते हैं कि यह वेबसाइट किस तरह काम करती है। यह तस्वीर देखिए-

https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgazx_BPV6iW9eybQuDquOHqhsrBMgt_aWfvZxfsY0xrasGR7QT6Gr_ALCwlZXNxXPnBMJGDBDAPBVoZVbXEARV7wuo9yCCOkm2RbuL9kgStXpA-7ay67OhAByEx8T3GjBafLgTa6NR0CBA/s1600/100px-S120e011108.jpg
तस्लीम ब्लॉग पर यह चित्र पहेली 7 जून 2010 को पूछी गई थी। अब आप टिनआई वेबसाइट खोलिए। इसमें नियत जगह पर इमेज का पता भरिए (आप चाहें तो इमेज को कंप्यूटर में सेव कर अपलोड भी कर सकते हैं)। जैसे ही आप सर्च का बटन दबाएंगे, यह आपके सामने ऐसी ही दर्जनों तस्वीरों को उनके वेबलिंक के साथ ला देगा।


आप पहले ही रिजल्ट को देखकर पता लगा लेंगे कि यह चित्र आईएसएस का है और चुटकियों में जवाब देने में सफल हो जाएंगे।

इस वेबसाइट की क्षमता को परखने के लिए मैंने प्रमुख पहेली संचालक ब्लॉग्स को खंगाला और नतीजा कुछ इस तरह रहा-

ताऊ डॉट इन- ताऊ पहेली -106 - 1 रिज़ल्ट

मुझे शिकायत हे- बूझो तो जाने ? - 3 रिज़ल्ट

मुसाफ़िर हूँ यारों - चित्र पहेली १३ - है ना ये अजीबोगरीब पेड़ पौधे ? - 71 रिज़ल्ट

तस्लीम - बहुत सरल सी पहेली है आज तस्लीम पर ...बोले तो हलवा माफिक ! (चित्र पहेली-79) -21 रिजल्ट

दस्तक - चित्र पहेली-6 - 13 रिज़ल्ट

खामोश दिल की सुगबुगाहट - पहचान कौन चित्र पहेली :- 10 - 1 रिज़ल्ट

सरोवर - भारत प्रश्न मंच भाग - 25 ( पहले राउंड का आख़िरी प्रश्न ) - 1 रिज़ल्ट

अमर भारती - "रविवासरीय साप्ताहिक पहेली-14"- 2 रिज़ल्ट

इस पोस्ट का उद्देश्य पहेली बूझने वाले पाठकों को तकनीकी चालाकी सिखाना नहीं है, बल्कि पहेली संचालकों को आगाह करना है कि वे चित्र पहेली पूछते समय गूगल से सीधे ही चित्र उठाकर छापने की प्रथा से बचें। उन्हें या तो अपने निजी संग्रह से तस्वीरों का चयन करना चाहिए अथवा किसी फोटो एडिटिंग सॉफ्टवेयर का उपयोग करना चाहिए, जिससे वे सीधे ही आसानी से तलाशी न जा सकें और पहेली का रोमांच बरकरार रहे।

टिनआई जैसी वेबसाइट्स के मोज़िला व अन्य ब्राउजर्स के लिए प्लग-इन्स भी उपलब्ध हैं, जो आपको राइट क्लिक पर सीधे ही इमेज खोजने की सुविधा देते हैं।

हैपी ब्लॉगिंग

क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए !!

हिन्दी ब्लॉग टिप्स की हर नई जानकारी अपने मेल-बॉक्स में मुफ्त मंगाइए!!!!!!!!!!
--

pdf, word, excel, power point, pagemaker जैसी फाइलों को पोस्ट में दिखाइए (digital publication)

कई बार ज़रूरत होती है कि कंप्यूटर की किसी ड्राइव में मौजूद pdf, word, excel, power point, pagemaker या ऐसे ही किसी दूसरे फॉर्मेट की फाइल को ज्यों की त्यों पोस्ट के साथ दिखाया जाए। कई बार कुछ पुस्तकें (स्वलिखित या अन्य) सॉफ्ट कॉपी के रूप में हमारे पास होती तो है, लेकिन उन्हें पोस्ट के रूप में पब्लिश करना लगभग नामुमकिन होता है। टेक्स्ट को पब्लिश भी किया जाए, तो भी उन्हें पुस्तक के रूप में दिखाना संभव नहीं होता। ऐसी स्थिति में यह वेबसाइट कमाल की साबित हो सकती है, जो digital publication की सुविधा मुफ्त में उपलब्ध कराती है।

सबसे पहले आप यह नमूना देखिए। (ई-मेल या फीड रीडर से पढ़ने वाले पाठक कृपया मूल पोस्ट पर आएं)



अंक पूरा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

असिक्नी नाम की यह पत्रिका करीब 174 पृष्ठ की है और पेजमेकर फॉर्मेट में प्रकाश बादल जी के पास उपलब्ध थी। उन्होंने YUDU नाम की इस वेबसाइट की मदद लेकर इसे डिजिटल फॉर्मेट में प्रकाशित किया और नतीजा आपके सामने है। पोस्ट में इसकी झलक दिख रही है और पूरा पढ़ने के लिए लिंक उपलब्ध है। इस पर क्लिक कर असिक्नी को मूल पुस्तक के रूप में पढ़ा जा सकता है।

pdf फाइल का नमूना यहां देखा जा सकता है। (ई-मेल या फीड रीडर से पढ़ने वाले पाठक कृपया मूल पोस्ट पर आएं)

Click to view the full digital publication online
Read CV Ing Miguel Zamora.pdf

अगर आप भी किसी फाइल या पुस्तक को डिजिटल रूप से प्रकाशित करना चाहते हैं तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कीजिए

http://www.yudu.com/publish/upload/document

यहां दी गई आसान सूचनाओं को भरिए और अपनी फाइल को डिजिटल पब्लिकेशन के रूप में हासिल कर लीजिए। यहां आपको आपके पब्लिकेशन के लिंक के साथ ही Embed code भी मिलेगा, जिसे पोस्ट के साथ पब्लिश करने पर उसका प्रिव्यू आपकी पोस्ट में दिखाई देगा।

किसी तरह की परेशानी होने पर टिप्पणी के जरिए संपर्क किया जा सकता है।

आभारः
इस वेबसाइट की जानकारी श्री प्रकाश बादल जी से हासिल हुई। उनका आभार।

हैपी ब्लॉगिंग

क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए!!

हिन्दी ब्लॉग टिप्स की हर नई जानकारी अपने मेल-बॉक्स में मुफ्त मंगाइए!!!!!!!!!!


100 से ज़्यादा फॉलोवर वाले हिन्दी चिट्ठों का शतक

हिन्दी चिट्ठाकारी तेजी से अपने पैर पसार रही है। चिट्ठाजगत संकलक पर 15000 से भी ज़्यादा पंजीकृत हिन्दी चिट्ठे इसकी जीती-जागती मिसाल है। अब एक गहन रिसर्च के बाद मैं आपके सामने एक और पुख़्ता सबूत पेश कर रहा हूं, जो यह साबित करेगा कि जो लोग हिन्दी ब्लॉगिंग को शैशवास्था में ही मानते हैं, वे गलत हो सकते हैं। मेरी रिसर्च का नतीजा है कि अब ऐसे हिन्दी चिट्ठों की संख्या 100 को पार कर चुकी है, जिनके 100 या उससे ज़्यादा फॉलोवर हैं।

किसी ब्लॉग के अधिक फॉलोवर बनने का सीधा सा अर्थ है कि वह ब्लॉग व्यापक जनसमुदाय में पढ़ा जाता है। उसकी सामग्री दूसरे पाठकों को पसंद आती है। ब्लॉग को फॉलो करने का अर्थ यह भी हुआ कि पाठक उसे अपने फ़ीड रीडर में सीधे ही पढ़ना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि जैसे ही उस ब्लॉग पर कोई पोस्ट आए, उसकी सूचना उन्हें फीड के जरिए मिल जाए।

शनिवार (18 सितम्बर 2010) को रात 8 बजे हिन्दी चिट्ठों पर रिसर्च के दौरान पता चला कि ऐसे चिट्ठों की संख्या 100 को पार कर चुकी है। सोचा कि इस खुशखबरी को सभी साथियों के साथ बांटा जाए। साथ ही उन चिट्ठों की सूची (लिंक के साथ) प्रकाशित की जाए, जिससे उन चिट्ठों को नहीं जानने वाले पाठक भी उनके बारे में जानकारी ले सकें। सूची इस तरह से है-
Hindi Blog Tips1086 followers
शब्दों का सफर544 followers
महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर351 followers
हरकीरत ' हीर325 followers
दिल की बात325 followers
छींटें और बौछारें 304 followers
ताऊ डाट इन260 followers
काव्य मंजूषा254 followers
मेरी भावनायें...255 followers
Vyom ke Paar...व्योम के पार244 followers
GULDASTE - E - SHAYARI241 followers
लहरें227 followers
ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़र227 followers
पाल ले इक रोग नादां...222 followers
Rhythm of words... 218 followers
प्रिंट मीडिया पर ब्लॉगचर्चा214 followers
अंतर्द्वंद 214 followers
Hindi Tech Blog - तकनीक हिंदी में210 followers
उच्चारण 205 followers
नीरज205 followers
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति205 followers
चक्रधर की चकल्लस 204 followers
अमीर धरती गरीब लोग200 followers
गुलाबी कोंपलें197 followers
गत्‍यात्‍मक ज्‍योतिष196 followers
रेडियो वाणी191 followers
उड़न तश्तरी .... 190 followers
कुछ मेरी कलम से188 followers
वीर बहुटी185 followers
ज्ञान दर्पण183 followers
मेरी रचनाएँ !!!!!!!!!!!!!!!!! 183 followers
चाँद, बादल और शाम176 followers
KISHORE CHOUDHARY175 followers
सुबीर संवाद सेवा170 followers
स्पंदन SPANDAN167 followers
संवेदना संसार 166 followers
प्राइमरी का मास्टर160 followers
स्वप्न मेरे................ 160 followers
" अर्श " 158 followers
आरंभ157 followers
कुश की कलम 155 followers
JHAROKHA148 followers
अमृता प्रीतम की याद में.....147 followers
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये147 followers
आदत.. मुस्कुराने की 145 followers
मनोरमा145 followers
महाशक्ति144 followers
Albelakhatri.com142 followers
कुमाउँनी चेली142 followers
शस्वरं142 followers
ज्योतिष की सार्थकता141 followers
मसि-कागद140 followers
हिंदी ब्लॉगरों के जनमदिन138 followers
कवि योगेन्द्र मौदगिल 137 followers
ललितडॉटकॉम 136 followers
saMVAdGhar संवादघर 135 followers
गठरी135 followers
उल्लास: मीनू खरे का ब्लॉग 134 followers
क्वचिदन्यतोअपि..........!132 followers
शब्द-शिखर132 followers
घुघूतीबासूती131 followers
संचिका 131 followers
देशनामा 130 followers
मेरी छोटी सी दुनिया 129 followers
जज़्बात 128 followers
बिखरे मोती128 followers
.......चाँद पुखराज का...... 127 followers
अनामिका की सदायें ...126 followers
मनोज125 followers
मुझे कुछ कहना है 122 followers
सच्चा शरणम् 122 followers
******दिशाएं****** 122 followers
आनंद बक्षी121 followers
नारदमुनि जी 119 followers
BlogsPundit by E-Guru Rajeev 118 followers
ज़िंदगी के मेले 118 followers
Alag sa116 followers
बेचैन आत्मा116 followers
काव्य तरंग 115 followers
मेरी दुनिया मेरे सपने114 followers
सरस पायस114 followers
नवगीत की पाठशाला 114 followers
पिट्सबर्ग में एक भारतीय113 followers
काव्य तरंग110 followers
मुझे शिकायत हे110 followers
अदालत 110 followers
काजल कुमार के कार्टून 109 followers
अजित गुप्‍ता का कोना109 followers
हृदय गवाक्ष108 followers
Aaj Jaane ki Zid Na Karo108 followers
अंधड़ !106 followers
गीत मेरी अनुभूतियाँ105 followers
एक आलसी का चिठ्ठा104 followers
महावीर 104 followers
रचना गौड़ ’भारती’ की रचनाएं 103 followers
एक नीड़ ख्वाबों,ख्यालों और ख्वाहिशों का 102 followers
कल्पनाओं का वृक्ष102 followers
ZEAL102 followers
MERA SAGAR 101 followers
कुछ एहसास 100 followers
'सतरंगी यादों के इंद्रजाल 100 followers

कुछ ब्लॉग जो सामूहिक लेखन से या संग्रहित सामग्री से चलते हैं और जिनके फॉलोवर्स 100 से ज़्यादा हैं-


भड़ास blog1148 followers
रचनाकार387 followers
चिट्ठा चर्चा 300 followers
नारी , NAARI299 followers
नुक्कड़291 followers
TSALIIM 288 followers
हिन्दीकुंज 279 followers
Science Bloggers' Association272 followers
हिन्दुस्तान का दर्द 233 followers
चर्चा मंच230 followers
माँ !131 followers
चोखेर बाली227 followers
क्रिएटिव मंच-Creative Manch128 followers
ब्लॉग 4 वार्ता 115 followers
ब्लॉगोत्सव २०१०106 followers

अब कुछ ऐसे ब्लॉग्स की सूची, जो इस सैकड़े के बेहद करीब हैं। हो सकता है कि इस पोस्ट के प्रकाशित होने के बाद आपके सहयोग से ये सभी शतक लीग में शामिल हो जाएं।

मुसाफिर हूँ यारों -99 followers
कुछ भी...कभी भी..97 followers
ज्ञानवाणी 97 followers
आदित्य (Aaditya)97 followers
कथा चक्र 97 followers
मानसी97 followers
"हिन्दी भारत"95 followers
चर्चा हिन्दी चिट्ठों की !!! 93 followers
लावण्यम्` ~अन्तर्मन्`92 followers
समयचक्र92 followers
मा पलायनम ! 91 followers
Aawaaz90 followers
मेरे विचार, मेरी कवितायें 90 followers
पराया देश88 followers
Shobhna: The Mystery88 followers
मानसिक हलचल87 followers
गुलज़ार नामा86 followers
THE SOUL OF MY POEMS86 followers
"सच में!"85 followers

कृपया नोट करें-

1. यह सूची शनिवार (18 सितम्बर 2010) को रात 8 बजे की स्थिति पर आधारित है। इस संख्या और फॉलोवर्स की वर्तमान संख्या में अंतर हो सकता है।

2. मैंने इस सूची में यथासंभव उन चिट्ठों को शामिल करने की कोशिश की है, जिन पर मैं लगातार विजिट करता हूं। अधिक फॉलोवर्स वाला अगर कोई चिट्ठा इस सूची से छूट रहा है, तो कृपया टिप्पणी में उसका ज़िक्र कीजिए, जिससे उसे इस सूची में शुमार किया जा सके।

3. फॉलोवर सुविधा केवल ब्लॉगर प्लेटफॉर्म वाले ब्लॉग्स पर ही उपलब्ध है। वर्डप्रेस या स्वयं की होस्टिंग वाले दूसरे कुछ ब्लॉग भी काफी बेहतर हैं, लेकिन उन्हें इस तुलनात्मक अध्ययन में शामिल नहीं किया जा सकता है।

हिन्दी ब्लॉग टिप्स को इस सूची में शीर्ष पर रखने के लिए सभी सुधि पाठकों का शुक्रिया अदा करता हूं।

इस श्रमसाध्य कार्य को पूरा करने में मुझे ताऊ रामपुरिया जी का अथक सहयोग मिला है। मैं उनका आभार व्यक्त करता हूं।

अपडेटः टिप्पणियों से मिली जानकारी के बाद निम्नलिखित चिट्ठे उपरोक्त सूचियों में शामिल किए गए हैं-आरंभ, रचनाकार, ZEAL, क्रिएटिव मंच, ब्लॉगोत्सव २०१०, Science Bloggers' Association, मेरी भावनायें..., THE SOUL OF MY POEMS, Hindi Tech Blog, नवगीत की पाठशाला, गीत मेरी अनुभूतियाँ, महाजाल पर सुरेश चिपलूनकर, काव्य तरंग, 'सतरंगी यादों के इंद्रजाल, अंतर्द्वंद, चक्रधर की चकल्लस


हैपी ब्लॉगिंग

क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए !!

हिन्दी ब्लॉग टिप्स की हर नई जानकारी अपने मेल-बॉक्स में मुफ्त मंगाइए!!!!!!!!!!


क्या आपके ब्राउज़र के रिटायर होने का वक्त आ गया है?

एक वक्त था, जब अधिकतर कंप्यूटरों में वेब ब्राउज़िंग के लिए इंटरनेट एक्सप्लोरर के 5.5 या 6.0 वर्ज़न का प्रयोग होता था। उस वक्त ब्राउज़र्स के मामले में ज़्यादा विकल्प उपलब्ध नहीं थे। उसके बाद मोज़िला फायरफॉक्स आया और उसने ब्राउज़िंग का नया अनुभव दिया। गूगल क्रोम ने ब्राउज़िंग को और भी मज़ेदार बनाया और इसी बीच ओपेरा, सफारी और नेटस्केप जैसे ब्रॉउज़र भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते रहे।

आज भी भले ही लैपटॉप्स पर आधुनिक ब्राउज़र्स देखने को मिल जाएं, लेकिन ज़्यादातर डेस्कटॉप पर इंटरनेट एक्सप्लोरर (IE) का 6.0 वर्ज़न ही देखने को मिलता है। कुछ साथियों ने ई-मेल भेज कर जानकारी दी है कि उनके जीमेल पर इन दिनों ब्राउज़र को लेकर एक खास मैसेज आ रहा है।
You're using an old version of Gmail which will be retired in September. At that point, you'll be redirected to a basic HTML view. To get faster Gmail and the newest features, please upgrade to a modern browser.

अगर आपके जीमेल खाते में भी सबसे ऊपर इस तरह का मैसेज दिखाई दे रहा है, तो आपको अपने वर्तमान ब्राउज़र को रिटायर कर देना चाहिए। जीमेल के सभी फीचर्स के बखूबी इस्तेमाल के लिए आपको निम्न में से किसी ब्राउज़र का आधुनिक वर्ज़न अपने कंप्यूटर में इंस्टाल करना होगा।

गूगल क्रोम

फायरफॉक्स 2.0+

इंटरनेट एक्सप्लोरर 7.0+

सफारी 3.0+

ओपेरा 9.5+


यदि आपके कंप्यूटर में इनके पुराने वर्ज़न हैं, तो आपको इनके आधुनिक वर्ज़न इंस्टॉल करने होंगे। इसके लिए आप नीचे दी गई कड़ियों का इस्तेमाल कर सकते हैं।


अब कुछ सवाल व उनके जवाब

सवाल- अगर मैं अपने ब्राउज़र को अपडेट नहीं करूंगा तो क्या होगा।
जवाब- आप सिंतबर महीने के बाद जीमेल की समस्त सेवाओं का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे। मसलन टैक्स्ट, वीडियो व ऑडियो चैट आदि। आपको इसके बेसिक एचटीएमएल व्यू पर रिडायरेक्ट कर दिया जाएगा। इसके अलावा आप यूट्यूब जैसी कई दूसरी साइट्स को भी बखूबी नहीं देख पाएंगे।

सवाल- ब्राउज़र को अपडेट करने के क्या फायदे हैं?
जवाब- जीमेल जैसी साइट्स रनिंग वेब एप्लीकेशंस हैं, जो ब्राउज़र तकनीक पर निर्भर है। आधुनिक ब्राउज़र इस तरह की वेबसाइटों के खुलने की स्पीड दोगुना तक बढ़ा देते हैं?

सवाल- क्या ब्राउज़र अपडेट करने के लिए मुझे किसी तरह भुगतान करना होगा।
जवाब- नहीं, अधिकतर वेब ब्राउज़र इंटरनेट पर मुफ्त डाउनलोड करने के लिए उपलब्ध हैं। ऊपर कुछ के लिंक दिए गए हैं।

सवाल- मुझे कौनसा ब्राउज़र इस्तेमाल करना चाहिए।
जवाब- पसंद आपकी है। सभी ब्राउजर्स में अपनी खूबियां-खामियां हैं। अगर आप इंटरनेट एक्सप्लोरर पर ज़्यादा सहज हैं तो इसी का आधुनिक वर्ज़न के साथ अपग्रेड कीजिए। मेरी पसंद गूगल क्रोम है। मोज़िला फायरफॉक्स भी बुरा नहीं है।

उम्मीद है कि आप अपने पुराने ब्राउज़र को जल्द ही ससम्मान रिटायर करेंगे। इस संबंध में कोई परेशानी हो तो टिप्पणियों के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है।

हैपी ब्लॉगिंग

क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए !!

हिन्दी ब्लॉग टिप्स की हर नई जानकारी अपने मेल-बॉक्स में मुफ्त मंगाइए!!!!!!!!!!


ब्लॉगर पर कमेंट्स से जुड़ीं दो नई सुविधाएं

पिछले एक-दो दिन से आप अपने ब्लॉगर डैशबोर्ड पर कमेंट का नया विकल्प देख रहे होंगे। ब्लॉगर ने अपने कमेंटिंग सिस्टम में बदलाव किया है और इसमें दो नए विकल्प जोड़े हैं। पहला विकल्प है- कमेंट स्पैम फिल्टरिंग यानी अवांछित टिप्पणियों की स्वचलित छंटनी और दूसरा विकल्प है- ब्लॉग की सभी टिप्पणियों को एक ही जगह पर देखने की सुविधा (ई-मेल इनबॉक्स की तरह)।

अब आसान शब्दों में इन सुविधाओं को विस्तार से जानते हैं।

अवांछित टिप्पणियों की स्वचलित छंटनी (Comment Spam Filtering)

ब्लॉग पर टिप्पणियों का बड़ा महत्व है। दुर्भाग्य से कुछ ब्लॉगकंटक प्रविष्ठियों पर इस तरह की टिप्पणियां करते हैं, जिन्हें आप अपने ब्लॉग पर नहीं रख सकते। इस तरह के अनचाही (स्पैम) टिप्पणियों से बचने के लिए अभी तक कमेंट मॉडरेशन, वर्ड वेरिफिकेशन या पंजीकृत पाठकों को ही कमेंट की अनुमति जैसी सुविधाएं थीं। लेकिन ये सभी सुविधाएं टिप्पणियों के निर्बाध यातायात में बाधक हैं।

अब ब्लॉगर ने इन कमेंट्स से पीछा छुड़ाने के लिए स्पैम फिल्टरिंग तकनीक का इस्तेमाल किया है। जिस तरह से आप अपने जीमेल अकाउंट में किसी मेल को स्पैम या नॉट स्पैम के रूप में चिन्हित करते हैं, वही तकनीक अब ब्लॉगर में भी काम करेगी। इसके लिए अब ब्लॉगर के डैशबोर्ड पर आपको “Comments” टैब दिखेगा। इस टैब के तहत आपको तीन तरह की सुविधाएं नजर आएंगी। पहली सुविधा स्पैम है।


इस टैब में वे सभी कमेंट्स दिखेंगे, जो स्पैम हो सकते हैं। अर्थात ब्लॉगर का स्वचलित तंत्र जिन कमेंट्स को अनचाहा समझता है, उन्हें इस श्रेणी में डाल देता है। ये कमेंट्स सीधे ही ब्लॉग पर पब्लिश नहीं होते। आप इस श्रेणी में जाइए और देखिए कि मौजूद कमेंट्स आपके काम के हैं या नहीं। आप यहां किसी कमेंट को हमेशा के लिए डिलीट कर सकते हैं। अगर कोई कमेंट गलती से इस श्रेणी में आ गया है तो आप उसे Not Spam कर सकते हैं, जिससे भविष्य में उस पाठक के कमेंट्स इस श्रेणी में नहीं आए। जैसे ही आप किसी कमेंट के Not Spam पर क्लिक करेंगे, यह आपके ब्लॉग पर प्रकाशित हो जाएगा।

सभी टिप्पणियां एक जगह (Comments “Inbox”)

अब आप ब्लॉगर के डैशबोर्ड पर अपने सभी कमेंट्स एक ही जगह पर पा सकते हैं। Comments में Published नामक सब-टैब दिया गया है, जो बिल्कुल किसी ई-मेल इनबॉक्स की तरह दिखता है। इस सुविधा के जरिए आप पुरानी पोस्ट पर आए नए कमेंट्स को आसानी से ढूंढ़ सकते हैं। यहां भी आप किसी कमेंट को स्पैम के रूप में चिन्हित कर उसे तुरंत अपने ब्लॉग से हटा सकते हैं। आप किसी कमेंट को डिलीट भी कर सकते हैं और चाहें तो किसी कमेंट की सामग्री को निकाल कर (Remove Content) उसे अपने रिकॉर्ड में बरकरार रख सकते हैं।


जो साथी कमेंट मॉडरेशन का इस्तेमाल करते हैं, उनके लिए ई-मेल में भी स्पैम की सुविधा मौजूद है। वे सीधे ही उसे स्पैम के रूप में चिन्हित कर सकते हैं।

इस विषय पर अधिक जानकारी इस पोस्ट में दी गई है।

ध्यान दें-

1. भले ही दीर्घ अवधि में यह सुविधा काफी काम की साबित हो, लेकिन फिलहाल इसकी वजह से कुछ समस्याएं भी नज़र आ सकती है। हिन्दी ब्लॉग टिप्स की स्पैम लिस्ट में एक सुधि पाठक का निम्न कमेंट नज़र आया, जिसे तुरंत Not Spam कर दिया गया। आपको सलाह दूंगा कि आप अपनी स्पैम लिस्ट को लगातार जांचते रहे।


2. हिन्दी ब्लॉगिंग में कमेंट्स हौसलाअफज़ाई का बड़ा साधन है। अभी तक कई साथी अवांछित कमेंट्स को भी इस वजह से पब्लिश कर देते थे कि इससे उनकी पोस्ट पर कमेंट की संख्या बढ़ती थी। अब उन्हें ऐसा नहीं करना पड़ेगा। वे उस कमेंट के लिए Remove Content का सहारा लें। इससे कमेंट की अनचाही सामग्री भी पाठकों को नहीं दिखेगी और उनकी कमेंट्स की संख्या भी कम नहीं होगी।

3. अब तक ब्लॉग पर कुल कमेंट्स की संख्या का पता लगाने के लिए जावास्क्रिप्ट विजेट का सहारा लेना पड़ता था। अब इसकी ज़रूरत नहीं होगी। Comments में Published नामक सब-टैब में सभी प्रकाशित टिप्पणियों की कुल संख्या स्वतः दिखाई देगी।

उम्मीद है कि नया कमेंटिंग सिस्टम सभी पाठकों को स्पष्ट हो गया होगा। कोई उलझन हो तो टिप्पणी के जरिए संपर्क किया जा सकता है।

स्वतंत्रता दिवस की अग्रिम शुभकामनाएं

हैपी ब्लॉगिंग


क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए !!

हिन्दी ब्लॉग टिप्स की हर नई जानकारी अपने मेल-बॉक्स में मुफ्त मंगाइए!!!!!!!!!!


New Blogger Features: ब्लॉगर पर ट्विटर और फेसबुक शेयर बटन

ट्विटर औऱ फेसबुक जैसी सोशल नेटवर्किंग साइट्स की पहुंच से पूरी दुनिया चकित है। इन साइट्स के इसी असर को देखते हुए ब्लॉगर ने ब्लॉग पोस्ट को ट्विटर और फेसबुक व अन्य नेटवर्क्स पर शेयर करने की सुविधा दी है। आज ज्यादातर साथी ट्विटर और फेसबुक साइट्स पर मौजूद हैं और उनके साथ पोस्ट को शेयर कर ब्लॉग के ट्रेफिक को बढ़ाया जा सकता है। इस बटन के उपयोग से पाठक को हर पोस्ट के नीचे इसे ट्विटर या फेसबुक पर शेयर करने का विकल्प दिया जा सकता है।


ब्लॉगर अब नया शेयर बटन लेकर आया है। इस बटन को अब हर पोस्ट के नीचे लगाया जा सकता है और आपके ब्लॉग पाठकों को अगर पोस्ट पसंद आती है तो वे इसे आसानी से ई-मेल, ब्लॉगर, गूगल बज, टि्वटर और फेसबुक पर शेयर कर सकते हैं।

वैसे ब्लॉगर की नेवबार पर पहले ही शेयर बटन है। लेकिन अगर इस बटन को पोस्ट के नीचे लगाया जाए तो निश्चित तौर पर यह उपयोगी साबित हो सकता है।

इसे लगाने के लिए अपने ब्लॉग के (डिजाइन) लेआउट में जाइए। पोस्ट के एडिट पर क्लिक कीजिए और शेयरिंग बटन के विकल्प पर टिक कर दीजिए। नीचे दिए गए चित्र की तरह-



ज़्यादा जानकारी इस पोस्ट पर मौजूद है।


नोटः ब्लॉगर ने हाल ही दो नई सुविधाएं और जोड़ी हैं। पहली है बैटर पोस्ट प्रिव्यू और दूसरी है न्यू वीडियो प्लेयर

बैटर पोस्ट प्रिव्यू
पोस्ट को प्रकाशित करने से पहले उसका प्रिव्यू दिखाने की सुविधा ब्लॉगर ने पहले ब्लॉगर इन ड्राफ्ट में ही दी थी। अब यह सभी ब्लॉग्स पर दी जा रही है। ज्यादा जानकारी इस पोस्ट से ले सकते हैं।




न्यू वीडियो प्लेयर
ब्लॉगर का नया वीडियो प्लेयर इस मायने में खास है कि अब पाठक इसे फुल स्क्रीन वर्जन में भी देख सकते हैं। पहली यह सुविधा नहीं थी।

ज्यादा जानकारी इस पोस्ट में है..

हैपी ब्लॉगिंग



क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए!!

हिन्दी ब्लॉग टिप्स की हर नई जानकारी अपने मेल-बॉक्स में मुफ्त मंगाइए!!!!!!!!!!


ब्लॉगर्स में डिप्रेशन मापने वाले इस सॉफ्टवेयर को तो आना ही था

आप ब्लॉगिंग खुशी-खुशी करते हैं या आप पोस्ट लिखते समय डिप्रेशन या अवसाद में रहते हैं? इजराइल के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा सॉफ्टवेयर ईजाद कर लिया है, जो आपकी पोस्ट को देखते ही बता देगा कि इसे लिखने वाले व्यक्ति की मानसिक स्थिति कैसी है? डरिए मत... आपकी पोल फिलहाल नहीं खुलने जा रही है, क्योंकि यह सॉफ्टवेयर अभी केवल अंग्रेज़ी भाषा तक ही सीमित है।

इजराइल की बेन गुरियॉन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने इस सॉफ्टवेयर को बनाया है और इसे तीन लाख से ज्यादा ब्लॉग्स पर आजमाया जा चुका है। 78 फीसदी मामलों में इसके नतीजे पुख़्ता साबित हुए हैं। कमाल की बात यह कि अगर इसे पता चला कि ब्लॉगर की मानसिक स्थिति सही नहीं है तो यह उसे उचित परामर्श भी देगा।

इसकी विस्तृत जानकारी इस लिंक पर है...

आपको क्या लगता है? हम हिन्दी ब्लॉगर्स को इस तरह के सॉफ्टवेयर की जरूरत है या नहीं :)

हैपी ब्लॉगिंग



क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए!!

हिन्दी ब्लॉग टिप्स की हर नई जानकारी अपने मेल-बॉक्स में मुफ्त मंगाइए!!!!!!!!!!


एक घंटे में गूगल से 3497.62 रुपए पाने का मौका

नहीं, कोई मज़ाक नहीं। यकीन मानिए। गूगल ब्लॉगर साथियों को एक घंटे में 3497.62 रुपए पाने का मौका दे रहा है। इसके लिए न तो कोई विज्ञापन को लगाने या उस पर क्लिक करने का झमेला है और न ही कोई दूसरा मशक्कत वाला काम करने की ज़रूरत है। इसके लिए आपको केवल उसकी Blogger usability study में भाग लेने की जरूरत है। गूगल 17-23 जून के बीच यह स्टडी आपके घर पर ही आपके बताए दिन व समय पर ऑनलाइन करेगा।

गूगल 17-23 जून के बीच यह Blogger usability study करने जा रहा है। इसमें वह आपसे यह पूछेगा कि आप ब्लॉगर के बारे में क्या सोचते हैं। वह आपको ऐसे फीचर भी दिखा सकता है, जो अभी वह तैयार कर सकता है और उन पर आपकी महत्वपूर्ण राय जान सकता है। इस तरह स्टडी के नतीजों से वह ब्लॉगर साथियों की ज़रूरत को बेहतर तरीके से समझने का काम करेगा।

अगर आप इस स्टडी के लिए अपना एक घंटा देना चाहते हैं और इसके बदले 75 डॉलर का गिफ्ट चैक पाना चाहते हैं तो चैक कर लीजिए कि आपके पास यह सब है या नहीं?

- आपकी उम्र 18 साल या उससे ज्यादा होनी चाहिए।

- आपके पास एक कंप्यूटर हो, जो Windows 7/Vista/XP/2000 प्लेटफॉर्म पर चलता हो।

- आपके पास अच्छी स्पीड का ब्रॉ़डबैंड कनेक्शन (DSL, Cable, T1 all fine) हो।

- आपके पास एक फोन हो, जिसका इस्तेमाल आप इंटरनेट पर काम करने के दौरान भी कर सकते हों। स्पीकर-फोन और हैंड्स-फ्री फोन हो तो और भी अच्छा।


अगर आपके पास यह सब है तो आप इस लिंक पर जाइए और अपनी सूचनाएं भरकर अपने मनपसंद दिन व वक्त का चयन कर लीजिए। गूगल द्वारा चयनित होने पर वह आपसे संपर्क करेगा और आपकी बहुमूल्य राय जानेगा। याद रखिए कि 75 डॉलर का गिफ्ट चैक केवल फॉर्म भरने पर नहीं मिलेगा। अगर गूगल इस स्टडी में आपका वास्तविक फीडबैक लेता है, उसी स्थिति में आपको यह उपहार राशि दी जाएगी।

इस स्टडी में भाग लेने के लिए यहां क्लिक कीजिए

इस बारे में और जानकारी यहां दी गई है

चलते-चलते- आज आपके मेल-बॉक्स में भी ब्लॉगर की एक मेल आई होगी, जिसमें वह Blogger and Amazon.com Integration की बात कर रहा है। हिन्दी भाषी साथियों के लिए यह तरीका ज़्यादा उपयुक्त नहीं है, क्योंकि यहां ऑनलाइन शॉपिंग का उतना चलन नहीं, जितना विदेशों में। इसलिए इसके जरिए कमाई मुझे मुश्किल ही लगती है। इसकी और जानकारी आप इस पोस्ट से पा सकते हैं।


हैपी ब्लॉगिंग


क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए !!

हिन्दी ब्लॉग टिप्स की हर नई जानकारी अपने मेल-बॉक्स में मुफ्त मंगाइए!!!!!!!!!!


Better Post Preview : पब्लिश करने से पहले देखिए पोस्ट कैसी दिखेगी?

ब्लॉग पर पोस्ट पब्लिश करने से पहले हम अक्सर यह सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि हमने जो लिखा है, जो तस्वीरें लगाई हैं, वे सब ठीक से दिखेंगी भी या नहीं। ब्लॉगर पर फिलहाल एक 'प्रिव्यू' ऑप्शन है, जो पोस्ट एडिटर कम्पोज बॉक्स पर सबसे दाहिने कोने पर दिखता है। इसके जरिए पोस्ट देखने पर एक सफेद बैकग्राउंड में पोस्ट दिखती है। कई बार यहां सही दिखने वाली पोस्ट हमारे ब्लॉग पर ठीक से नहीं दिखती, क्योंकि ब्लॉग की टेम्पलेट का कलर और डिजाइन कुछ और ही होता है। ऐसे में कई ब्लॉगर साथी अपने ब्लॉग के जैसी ही टेम्पलेट का दूसरा प्राइवेट ब्लॉग बनाते हैं, पोस्ट को वहां पब्लिश कर आश्वस्त होते हैं कि पोस्ट ठीक दिख रही है और उसके बाद ही पोस्ट को अपने ब्लॉग पर पब्लिश करते हैं।

इसी परेशानी को ध्यान में रखते हुए अब ब्लॉगर एक नई सुविधा का परीक्षण कर रहा है। Better Post Preview देने वाली इस सुविधा के तहत आप पोस्ट को पब्लिश करने से पहले ही देख कर अनुमान लगा सकते हैं कि यह पोस्ट आपके ब्लॉग की टेम्पलेट के साथ कैसी दिखेगी। इस सुविधा का इस्तेमाल फिलहाल केवल ब्लॉगर इन ड्राफ्ट की मदद से ही किया जा सकता है। जानकारी के लिए बता दें कि ब्लॉगर अपनी सुविधाओं को सार्वजनिक करने से पहले उनका परीक्षण ब्लॉगर इन ड्राफ्ट पर ही करता है।

अब जानते हैं वह तरीका, जिससे आप पोस्ट को पब्लिश करने से पहले ही जांच सकते हैं कि आपकी पोस्ट आपके ब्लॉग पर कैसी दिखेगी?

1. ब्लॉगर इन ड्राफ्ट खोलिए और इस पर लॉग इन कीजिए।

2. पोस्ट एडिटर में प्रविष्ठि लिखिए, तस्वीरें लगाइए। यहां आपको नीचे की तरफ एक अतिरिक्त बटन Preview दिख रहा होगा।


3. Preview पर क्लिक कीजिए और देख लीजिए कि आपकी पोस्ट यहां कैसी दिख रही है।



आवश्यक संशोधन के बाद आप यहीं से अपनी पोस्ट को प्रकाशित कर सकते हैं।

ज़्यादा जानकारी के लिए यह पोस्ट देखी जा सकती है।

उम्मीद है कि ब्लॉगर इसी तरह अपनी सेवाओं को बेहतर बनाता रहेगा।

हैपी ब्लॉगिंग


क्या आपको यह लेख पसंद आया? अगर हां, तो ...इस ब्लॉग के प्रशंसक बनिए!!

हिन्दी ब्लॉग टिप्स की हर नई जानकारी अपने मेल-बॉक्स में मुफ्त मंगाइए!!!!!!!!!!