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शुक्रवार, 16 अगस्त 2013

कटाक्ष -2 / अनामी शरण बबल








अनामी शरण बबल


हम भारतवासी बड़े सौभाग्यशाली है कि हमारे प्रधानमंत्री इतने विद्वान होनहार और ईमानदार है। ईमानदारी से भी बड़ी इनकी खूबी है कि ये नाम की तरह ही मनमोहन मनभावन होकर भी बहुत ही कम बोलते है। ये इतना कम बोलते है कि इनके मुखारबिंद से निकली हर बोली से  लोग चकित रह जाते है। ये इतने शालीन और सौम्य है कि चाहे हालात जो हो पाकिस्तान भले ही हमारी सीमा में घुस जाए, गोलियां बरसाकर हमारे जवानों को ढेर कर दे या कई हजार गोलियों की ईदी आतिशबाजी ही क्यों ना कर दे, मगर मनमोहन जी के चेहरे पर एक शिकन तक नहीं आती। ये जग में रहकर भी इतने र्निलिप्त हैं कि कभी कभी तो हमारे देश के संत, ऋषि मुनि भी मनमोहन को देखकर शर्मिंदा हो जाते होंगे। पूरा देश भले ही उबल रहा है हो, पर हमारे मनमोहन मीठे स्वर में नवाज शरीफ को ईदी बधाईयां और भारत आने का न्यौता भी दे रहे है। कमाल है मन साहब, आप गुरूशरण कौर जी से किस तरह संवाद करते होंगे यह भी एक रोचक शोध का विषय हो सकता है ?, मगर हर बात पर उबलने वाले और अनाप शनाप बकने वाले हमारे कुख्यात जाति सूचक नेताओं को भी युवराज बाबा और सोगा मैड़म की तरह ही  मुन्ना साहब से प्रेरणा लेनी चाहिए कि खामोश रहकर कैसे मामले को ठंडा किया जाता है। और तो और लाल किला तक से मन साहब ने कोई तीखी बात नहीं की, शायद यही वजह है कि विशाल देश होने के बाद भी हमारे नन्हे मुन्हे पड़ोसी अक्सर हमारे सब्र की परीक्षा लेने से नहीं चूकते।
संगत का गुण
 संगत में बहुत दम होता है। जैसे फिरंगियो से लोहा लेने के लिए हमारे बापूजी ने अहिंसा को हथियार बनाया था, ठीक उसी तरह हमारे पीएमजी ने खामोशी को अपना हथियार बनाया है। पीएमजी साहब के हथियार को इनके दो चार वाचालों को छोड़ दे तो ज्यादातर साथियों ने भी इनका पालन करना चालू कर दिया है।. है। हमारे रक्षा मंत्री ने कमाल ही कर दिया। पाकिस्तानी गोलीबारी से ढेर हुए अपने सैनिको को देखकर भी एक पाकिस्तानी रक्षा मंत्री की तरह पाक हमले को नकारा और एनओसी देते हुए इस शहादत के पीछे आंतकी साजिश को माना एक दिन तक तो रक्षामंत्री इतने शालीन हो गए कि वे भूल ही गए कि वे किस देश के मंत्री है और क्या बोलना है। पूरे देश में जब पंजे की भद्द पीटने लगी, तब जाकर अगले दिन हमारे रक्षामंत्री ने अपनी रक्षा करते हुए अपनी बातों को किंतु परंतु लेकिन वेकिन अगर मगर के जुगलबंदी के साथ माना कि इस शहादत के पीछे सीमा के पीछे पाक की कारस्तानी हुई है।
सलमान के अरमान  
   
पाक सेना ने जब कई दिनों तक ईदी आतिशबाजी करके ईद मना ली तब कहीं जाकर हमारे फॉरेन मंत्री ने अपने दिल के अरमान को जुबान दिया। बकौल सलमान ने पाक को नसीहत दी कि सीमा नियमों का पालन हो.। हमारे नेताओं ने रस्मी तौर पर अपने फर्ज की अदायगी कर ली। मगर सलमान साहब ने. पाक को क्या एक ओबिडिएंट स्टूडेंट मान कर नेक सलाह दी है? खुदा खैर करे समझ में नहीं  आता कि शांतिप्रिय देश के पंजा छाप शासक क्या वाकई इतने ठंडा हो गय है ?  बस्स दो एक दिग्गियों और तिवारियों को यदि शालीनता के पाठशाला में भेज दिया जाए तब तो पूरी यूपीए ही राहुल बाबा की तरह कहीं बाबा छाप बमभोला नजर आने लगे।

दामादजी के साथ यह सलूक   
लगता है कि हमारे देश के विपक्षी नेतागण सामान्य शिष्टाचार और रिश्तों का मान भी  भूल गए है। दामाद को हमारे समाज में बडा मान आदर दिया जाता है। बेटी के पतिदेव होने के चलते लोग उसको भी देव की तरह ही स्वागत सत्कार करते है। इस आदर की परंपरा को तोड़ना कोई अच्छी बात नहीं। अरे दामाद है तो क्या हुआ, अपने ही बच्चे के समान ही तो है उसकी गलतियों पर तो परदा डालना ही होगा।, मगर विपक्ष तो दामाद के साथ उसके ससुराल को ही शर्मसार करने में जुट गया। देश को कई पीएमजी देने वाले इस खानदान में अभी एक पीएम इन वेटिंग बैठा हुआ है। विदेशी होकर भी पीएम की कुर्सी को लतियाने वाली दिव्य मां की सुयोग्य बेटी के दामाद को जालसाज ठहराने में विपक्ष लगा है। अरे जमीन खरीदा और मंहगे दर पर बेच दिया तो क्या बुरा किया।  सबलोग मुनाफा कमाने के लिए यही तो करते है। कमाल है हमलोग करे तो बिजनेस और दामाद जी करे तो गलत। बुरा हो खेमका का कि हुड्डा साहब द्वारा इतना हुड्डियाने के बाद भी ईमानदी मैनिया से बाज नहीं आ रहे है। अरे सौ फीसदी मुरादाबादी पीतल की तरह खरा है अपना राजकुमार सा दामाद जी। एक एक आदमी से वोट पाने के लिए आम आदमी के सामने रिरियाने और मनुहार करने वाली पत्नी सास और साला की रिरियाहट को देखकर भी दामाद जी मैंगो मैन कहकर उपहास करते है। एक मैंगों से किराये की पहचान ओढकत मुरादाबादी ब्रांड मोगांबो बन गए आमलोग ही दामाद जी यानी पंजे दामाद को शिंकजे से शर्मसार करने में लगे है।.


ममो vs   नमो 
पीएम इन वेटिंग में सदाबहार युवराज बाबा के मुकाबले अपन नमो साहब ताल ठोककर मैदान में घूम घूम कर पीएम की दावेदारी  को मजबूत करने में लगे है। साईलेंट के सामने नमो साहब इतना बोल रहे है कि इनके चिंघाड़ने से लोग हो ना हो मगर कई पार्टियां तबाह परेशान जरूर है। जनता के मूड को भांपने में माहिर नमो साहब के निशाने पर मि.साइलेंट है। एक तरफ पब्लिक साईलेंट रहने से उब रही है तो दूसरी तरफ नमो को वाक प्रहार से पंजा आशंकित है। पीएम इन टैलेंट और पीएम इन देश के प्रोब्लम हो नमो साहब की तल्ख आवाज से यूपीए भी शरमा रही है। देखना हा कि दूसरों की बोलती बंद करने में माहिर  नमो साहब अपनी पार्टी के भीतर ही उबल रहे लोगों को शांत करने में क्या कामयाब होंगे। इनको सायद पता भी हो कि इनको बाहर से ज्यादा खतरा अपनों से ही दिख रहा है। त में एक साथ फिर आ गए।

हम सब एक साथ है

संसद में सांसदों की केवल एक जात होती है। यह तो कहने और दिखाने के लिए दल और अलग अलग नेता होते है। दलों के दलदल में सबने एक दूसरे की हाथ पकड़ रखी है, ताकि आंचआने परे एक दूसरो को सेफ कर सके। अपनी ओर खतरो को आते देखते ही सब सांसद दलगत भावना से उपर उठ कर एक ही दलदल में आ जाते है। सुप्रीम कोर्ट ने दागी सांसदों को संसद से बाहर करने का फरमान क्या सुनाया कि सारे सांसद बेचारे एक बार फिर देश और अपने हित के लिए एक साथ एक ही जहाज पर सवार हो गए, और न्यायालय को सीमा में रहने की नसीहत दी। कोर्ट को आगाह करके हमारे परम पूज्य सांसदों ने देश हित के लिए एक मिशाल कायम की। हम सब मैंगो मैन भी अपने प्रिय सांसदों की कर्तव्य परायणता को देखकर अभिभूत से रह गए।

सरकारी धन हमारा

सत्ता का सुख वाकई सामान्य नेताओं को भी खास बना देता है। अपनी जेब से तो एक भीखारी को भी एक ठेल्ला तक नहीं देने वाले ज्यादातर यही नेता सत्ता पाते ही परम उदार हो जाते है, और दानवीर कर्ण को भी शर्मसार तर देते है। कतोई लैप्टॉप बांट रहा है तो कोई वोटरों को गैस चुल्हा और सिलेण्डर घर घर तक पहुंचवा दे रहा है। कोई एक दो रूपए आटा चावल देने की बात कर रहा है तो दक्षिण में अम्मा एक रूपयो से लेकर आठ रूपये में सांभर डोसा बड़ा और ना जाने क्या खिला पीला रही है। कोई सत्ता में आकर साइकिल बॉट रहा है तो कोई राशन का पूरा सामान भिजवा रहा है। हमारे गरीब देश के नेता जनता के पैसे पर होली दीवाली करके अपनी इमेज ना रहे है। औरतो और कुछ सीएम तो करोड़ों रूपए अपनी पब्लिटी पर ही खर्च कर रहे है। कुछ तो विज्ञापनों के बूते ही चुनावी भौसागप पार उतरने में लगे है। हे राम । महात्मा जी आप कहां हो । अपने बच्चों को सरकारी धन की आतिशबाजी पर लगाम लगाने के लिए दो मिनट की प्रार्थना कर ले ताकि उनको सन्मति सुबुद्धि ।


सैफई के सिपाही जिंदाबाद

यूपी के इटावा जिले में तीर्थस्थल सा एक गांव का नाम है सैफई। जहां से हमारे परम पूज्य प्रात स्मरणीय टीचरी और पहलवानी के लिए मशहूर होकर राजनीति में स्काईलैब तक जाने वाले महाधिराज नेताजी बाबू मुलायम सिंह यादव विराजते है। पैतृक गांव सैफई में मिनिस्टर साहब के नाम से पुकारे जाने वाले नेताजी की राजनीतिक लीला और दांवपेंच को देखकर तो सहोदर सखा नटवरलाल के नाम से मशहूर कृष्णजी महाराज भी चकित रह जाते  होंगे। इनकी सबसे बड़ी खासियत है कि अपनों पर हमला होते ही ये सारे भाई बंधु सहोदर एक साथ एक ही मंच पर आ धमकते है, और बचाव के लिए सबकुछ जायज है को मानते हुए सामने वाले पर टूट पड़ते है। यही वजह है कि नेताजी अपनों पर आंच नहीं आने देते और अपनी मार्केट वैल्यू को गिरने भी नहीं देते। सीएम पुत्र पर दुर्गा शक्ति परीक्षण की आंच आते ही सहोदर चाचा  ने पीएम को यूपी से सारे नौकरशाहों को वापस बुलाने की धमकी तक दे डाली । लोकतंत्र में एक खंभा कार्यपालिका है जिसके साथ भद्दा मजाक तो केवल सैफई पुत्रों से ही मुमकिन है। अब एक ही नाम में राम और गोपाल को भी रखने वाले सपाई को कौन समझाए कि यूपी कोई सैफई तो है नहीं कि गांव के लंफगों को चौकीदारी में तैनात कर देंगे। अपनी टीआरपी के लिए नेताजी को अपने सहोदरों को सेंटरफ्रेश च्यूगंम खिलाने पर जोर देना चाहिए, ताकि खुदा की दया से नेताजी का पीएम बनने का सपना मुंगेरी लाल के सदाबहार हसीन सपना ना बन सके।
  
किसकी नजर लग गयी जेएनयू को


प्यार मुहब्बत जिंदाबाद के साथ पढाई में हमेशा अव्वल रहने वाला जेएनयू देश का एक अनोखा यूनीवर्यिटी है। जहां पर सबकुछ दिखता है की तरह एक खुलापन आजादी है। वर्जनाओं ले इस कदर फ्रीडम है कि वेस्ट वाले भी यहां आकर फ्रीडम की प्रेरणा ले सकते है। सबकुछ जायज है अगर मन मिल गया जिसे दिल भी कह सकते है.। यहां के छात्रों में एक नशा है।मगर तमाम वर्जनाओं से मुक्त यह जेएनयू अपने परिणाम के चलते ही थिंक टैंक सा माना जाता है । वामपंथ से आगे की बात का दम भरने वालों की कोई कमी नहीं है, पर पिछले दिनों थर्ड ग्रेड सिनेमा की तरह.प्यार सेक्स सहमति हिंसा प्रतिशोध तेजाब गोली हत्या को मिलाकर एक के बाद एक ही तरह की कई घटनाएं हुई। जिससे आजादी के पीछे के रोमांस का काला पीला नीला चेहरा प्रकट होता है। लगता है कि समय से आगे भाग रहे यहां के प्रगतिशील छात्रों के रेस को अपनी ही नजर लग गयी.। खुदा बचाये देश के पहले प्रधानमंत्री के नाम पर इस शिक्षा के मंदिर को खुदा बचाये।

गॉडफादर की तलाश


झारखंड़ी कांग्रेसी मंत्री के एक रिश्तेदार पर कोयले की आंच आने के बाद मंत्रीपद गंवाने वाले कायस्थ नेताजी के साथ ही पतजलि वाले अपने योगगुरू भी बगैर गॉडफादर के हो गए है। देश की भावी तस्वीर को देखते हुए योगगुरू फिलहाल नए गॉडफादर की खोज में जुट गए है। गुजरात से देश की बागडोर थामने का ड्रीम देख रहे सीएम साहब को पतजंलि में बुलाया। राजस्थान की कमल छाप पूर्व सीएम से भी नजदीकी बढ़ा रहे है। कभी सत्ता के शिखर तक जाने का सपना देख रहे योगस्वामी का इस तरह बेपतवार होना हैरतनाक है। लगता है कि सत्ता और काला धन की खुमारी में देव बाबा की टीआरपी रामभरोसे हो गयी है। इनके लिए मेरी भी यह मंगल कामना है कि उनको कोई लंबे समय तक साथ देने वाला कोई गॉडफादर नसीब हो जाए।  

ईमानदारी का रोग

ईमानदारी बड़ी बुरी चीज होती है , जिसको लग जाता है वो खुद तो परेशान रहता ही है, और ना जाने कितनों को परेशान करता रहता है। यही वजह है कि हमारे देश के निर्माता नेताजी लोग सबसे पहले इस लाईलाज रोग के वायरस से बचने के लिए विदेशी बैंको की शरण लेते है। मगर यूपी की एक नवनियुक्त आईएएस ने अपनी ईमानदारी से रेत माफियाओं को जीना हराम कर रखा था। सरकारी खजाने को मालामाल कर दिया था, मगर मस्जिद की दीवार गिराने के आरोप में मुल्ला नेताजी के नाम से गौरवान्वित होने वाले के सीएम पुत्र ने एक ही झटके में निलंबन कर दिया। आरोप गलत होने पर भी सीएम की जिद के आगे कौन सिर दे मारे। निशाना खाली देखकर सीएम साहब ने अब आईएएस पति का तबादला कर डाला.। यानी आगे क्या होगा इस पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी ही मानी जाएगी। यही हाल हरियाणा के सीनियर आईएएस अशोक खेमका जी का है,जिनका अबतक करीब 40 बार तबादला किया गया है। तमाम सीएम की आंख की किरकिरी रहने के बाद भी गांधी परिवार के दामाद के खिलाप रिपोर्ट को जगजाहिर करने में नहीं चूके। इनलोगों की ईमानदारी को सलाम.




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रविवार, 11 अगस्त 2013

खजाना मालामाल गांव बेहाल






अनामी शरण बबल
पंचायती व्यवस्था के खत्म होने के बाद राजधानी दिल्ली के सैकड़ों गांवों का हाल बेहाल है। हालांकि गांवों की खास सुध लेने के ले ग्रामीण समिति और यमुनापार विकास बोर्ड द्वारा यमुनापार के गांवों की देखरेख की जी रही है, इसके बावजूद दिल्ली के गांवं की बेहाली देखकर वाकई लगता है कि भारत माता ग्रामवासिनी के गांवों का कोई भविष्य नहीं है। आज से 24 साल पहले 1989 में ग्रामीण पंचायती व्यवस्था और दिल्ली नगर निगम को भंग कर दिया गया था। उस समय ग्रामीण खाते में जमा राशि पिछले 25 सालों में दोगुनी से भी ज्यादा हो चुकी है अधिकतर गांवों के खाते में करोड़ो रूपये है, इसके बावजूद इस धनराशि का उपयोग नहीं हो पा रहा है। डेडमनी की तरह अरबों रूपये के होने के बावजूद ज्यादातर गांवों का हाल बेहाल है। अलबता नाना प्रकार के फंड और योजनाओं के तहद ज्यादातर गांवों में बेहिसाब रूपयो खर्च हो रहे है, इसके बावजूद गांवों की सूरत है कि बदल नहीं रहीं है.
उल्लेखनीय है कि पंचायती राज व्यवस्था के तहत गांव के खाते की रकम को खर्च करने का अधिकार केवल पंचायती राज में चुने गए मुखिया और सरपंचो को होता है। 1989 में पंचायती राज के खात्में के बाद गांवों की पूरी राशि मंडलायुक्त कार्यालय के अधीन आ गया। गौरतलब है कि दिल्ली देहात के कई प्रकार है। दिल्ली गांवों तथा देहाती गांवों में परिवर्तित हुए ग्रामीण पंचायतों में कुल एक सौ 44 करोड़ 37 लाख हजार 266 रूपये( ,44,00,37,266 रूपये मात्र)  जमा थे।  यह रकम आज 2013 में मोटे तौर पर लगभग 300 करोड़ हो चुकी है, मगर दिल्ली सरकार की इच्छा शक्ति में कमी और नौकरशाहों की लालफीताशाही की वजह से पंचायती रकम को उपयोग नहीं हो पा रहा है। मंड़लीय आयुक्त कार्यालय ने दिल्ली सरकार पर इस रकम को लेकर उदासीनता का आरोप लगाया मंड़लीय आयुक्त कार्यालय सूत्रों ने कहा कि 2008 विधानसभा चुनाव से पहले सरकार इस मद का उपयोग करना चाहती थी और केंद्र सरकार तक कागजात भी गए, मगर बाद में चुनाव में जीत मिलने के बाद सारी सक्रियता खत्म हो गयी  एक सवाल के जवाब में सूत्रों ने कहा कि खासकर पंचायतो के भंग होने पर पंचायती राशि को फिर से उपयोग में लाने की प्रक्रिया थोड़ी जटिल जरूर है, मगर नामुमकिन कुछ भी नहीं होता
  
1989 में नगर निगम और पंचायती राज व्यवस्था को भंग कर दिया गया. जिसमें नगर निगम को तो नौ साल के बाद फिर से बहाल कर दिया गया. दिल्ली नगर निगम तो 1998 में 143 वार्डो के साथ बहाल हो गयी., मगर दिल्ली में कई स्थानीय निकायों के होने की वजह से दिल्ली नगर निगम, नयी दिल्ली नगरपालिका परिषद और दिल्ली छावनी बोर्ड के सक्रियता के चलते सन 2000 में पंचायती व्यवस्था की तमाम संभावनाओं को समाप्त कर दिया गया. इस बीच 1954 में समाप्त कर दिए गए विधानसभा प्रणाली को 40 सालों के बाद फिर से दिल्ली में लागू कर दी गयी. 70 विधानसभा क्षेत्रों में आवंटित दिल्ली विधानसभा की बहाली के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को अभी तक पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सका है अभी भी दिल्ली केंद्र शासित राज्य की श्रेणी में ही मान्य है दिल्ली सरकार के अधीन आज भी पुलिस और भूमि अधिकार के साथ दिल्ली विकास प्राधिकरण डीडीए को दिल्ली सरकार के हाथों नहीं सौंपा गया है। अलबता परिसीमन के दैरान ही मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने एक दिल्ली नगर निगम को तीन नगर निगमों में बांट दिया, और 1998 में 134 पार्षदों वाली नगर निगम आज 272 पार्षदों वाली हो गयी है। एनडीएमसी इलाके के केवल दो विधानसभा गोल मार्केट और मिंटो रोड़ को छोड़कर शेष दिल्ली के 68 विधानसभा क्षेत्र में पहले की तरह दो पार्षद की जगह पर अब चार पार्षदों को नियुक्त कर दिया गया। यानी एक विधानसभा को एक विधायक के साथ चार पार्षद कमान थामेंगे. दिल्ली राज्य सरकारक की गद्दी पर भले ही कांग्रेस की शीला दीक्षित 15 वां साल पूरा कर रही हो , या तीन पारी के बाद अब चौथी पारी को लेकर गंभीर हो, मगर तीनों नगर निगमो में बीजेपी का एकाधिकार बना हुआ है।
दिल्ली सरकार ने दिल्ली ग्रामीण समिति को प्रमुखता दी है.मगर 1989 में दिल्ली के सभी गांवों के खाते में जमा राशि सुरक्षित पड़डी है। इस राशिको निकालने के लिए दिल्ली सरकार को विधानसभा में एक प्रस्ताव को मंजूर कराना होगा. अगर बात .यहां तक रहती तो भी हमेशा रूपयों का राग अलापने वाली शीला सरकार के लिए इस रकम का सदुपयोग करना कठिन नहीं था, मगर इस रकम के बजट को केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय और पंचायती राज के तहत ङी अपनी योजनाओं को बताने के साथ रकम के उपयोग का ब्यौरा देना होगा। इन तमाम लफड़ों की वजह से ही दिल्ली सरकार अपने सिर पर कोई नया तमाशा खड़ा करने से परहेज कर रही है।  
बैंक ब्याज को जोड़कर यह राशि करीब 300 करोड़ से उपर जा पहुंची है। 2005 के दस्तावेज के अनुसार दिल्ली के कंझावला गांव के खाते में सबसे अधिक 23 करोड़ 18 लाख 54 हजार 461 रूपये है. मोटे तोर पर यह रकम अब करीब 30 करोड़ की हो चुकी है। दिल्ली के 175 गांवों की सूची में  सबसे कम राशि मात्र 489 रूपये गांव असौला के खाते में जमा है। पिछले पांच सालों में विकास और वित मंत्रियों को लेकर उठापटक का दौर रहा।ग्रामीण विकास मंत्री रहे राजकुमार चौहान का मानना है कि इस राशि को दूसरे मद में खर्च नहीं करने की बाध्यता के चलते ही इस राशि को लेकर शंका बनी रहती है। काम के बीच में बजट खत्म होने पर भी अदूरे काम को किसी और मद के रकम से पूरा कराना कठिन हो जाता है जबकि पूर्व वित मंत्री ड़ा. अशोक कुमार वालिया ने माना कि इस मद के रकम को खर्च करने से पहले काफी तहकीकात और जांच होते है, जिससे राज्य सरकार इस पंचायती राशि को दूसरे मद में उपयोग करने से हिचकती हैं  
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इन आरोपों को नकारा कि पंचायती कोष कता उपयोग नहीं किया जा रहा है। श्री मती शीला ने कहा कि पिछले 10 साल के दौरान गांवों पर कई हजार करोड़ रूपये खर्च हुए है, लिहाजा कभी जरूरत ही नहीं पड़ी।  उन्होने कहा कि करीब 175 गांवों में लगभग एक सौ गांवों में क लाख रूपये से भी कम राशि है, जिससे एक मोहल्ले की सड़क तक नहीं बन सकती इसमें किसी और मद की राशि नहीं लगायी जा सकती है, दबकि कुछ गांवो के खजाने में करोड़ों और लाखों की रकम है, दिसको लेकर गांव के चौपाल या झीलों को ठीक कराये जा सकते है  सरकार की नजर इस मद के रकम पर है, मगर सभी गांवों में इससे समुचित विकास कराना संभव नहीं है   दिल्ली सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री अरविंदर सिंह लवली ने इस रकम को लेकर सरकार की गंभीरता पर खासा जोर दिया। बकौल श्री लवली  राज के मद को दूसरे मद में उपयोग करने से पहले लंबी प्रक्रिया से जबझना पड़ता है खासकर जब पंचायतें भंगद हो गयी हो तब तो इसके लिए केंद्र सरकार के पास योजनाओं को भेजना पड़ता है गांव की रकम को केवल उसी गांव में ही उपयोग किया जा सकता है यमुनापार विकास बोर्ड के अध्यक्ष डा.नरेन्द्र नाथ ने कहा कि यमुनापार का रूका इलाका दिल्ली में 1912 के बाद जुड़ा है, लिहाजा पंचायती राज के बावजूद गांवों के खाते में पंचायती राशि का पैसा नहीं जमा है। यमुनापार के गांवों में विकास कार्य  सरकार यमुनापार विकास बोर्ड के मार्फत कराती है बाजपा समर्थित अकाली नेता पार्षद जितेन्द्र सिंह शंटी ने सरकार पर यमुनापार के गांवों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया बाजपा के उपमहापौर और निगम ग्रामीण समिति के प्रधान रह चुके पार्षद राजेश गहलौत ने सरकार पर केवल जुबानी विकास और मामले को उलझाने का आरोप लगाया
Box    
खजाने में कहीं करोड़ो तो कहीं हजार भी नहीं
कंझावला        23 करोड़ 18 लाख 54 हजार 461 रूपये मात्र
बवाना .................11 करोड़ 96 लाख 26 हजार 255 रूपये
खेड़ाखुर्द......... 11 करोड़ 52 लाख 18 लाख 792 रूपये मात्र
शाहाबाद दौलतपुर       सात करोड़ 89 लाख 64 हजार 987 रूपये
जौनापुर .......सात करोड़ 37 लाख 87 हजार 755 रूपये
बापरौला..........चार करोड़ 60 लाख 75 हजार 17 रूपये
छावला........... दो करोड़ 12 लाख 50 हजार 959 रूपये
हसनपुर .........एक करोड़ 02 लाख 90 हजार 371 रपये
मैदानगढ़ी....... एक करोड़ 38 लाख 43 हजार 898 रूपये
सैदुल्लाजाब.... एक करोड़ 53 लाख तीन हजार 608 रूपये
बुराड़ी ....... एक करोड़ 73 लाख 78 हजार 840 रूपये
उजवा........... एक करोड़ 12 लाख 19 हजार 429 रूपये
दौलतपुर...........एक करोड़ 58 लाख 43 हजार 303 रूपये
आर्यानगर ....    .मात्र 2086 रूपये
मोलड़बंद ............मात्र 1259 रूपये
ताजपुर.............मात्र. 1868 रूपये
गढञी मांडू   ........मात्र 1529 रूपये
सतबड़ी .................मात्र 3403 रूपये
खैरा             मात्र 597 रूपये
खड़खड़ी जठमल ....... मात्र 557 रूपये
असौला .....   .... मात्र 489 रूपये
इब्राहिमपुर         मात्र 498 रूपये
दीनदानपुर .....   .... मात्र 369 रूपये
खजूरी खास ..... ..मात्र 62 रूपये 86 पैसे

बुधवार, 7 अगस्त 2013

मोदी के बीजेपी में जेडीयू का साथ रहना गवारा नहीं : केसी त्यागी


 22 साल के बाद राज्यसभा के रास्ते संसद में जनतादल( यूनाईटेड) के केसी त्यागी की राजनीति की मुख्यधारा में फिर से वापसी हो रही है। मगर इनकी छवि वेस्ट यूपी के एक दिग्गज और धाकड़ नेता की है। तमाम बड़े और दिग्गज नेताओं की कसौटी पर भी ये हमेशा खरे रहे है। कुशल संयोजक और हर तरह के हालात को मैनेज करने के लिए जुझारू और मशहूर होना इनकी सबसे बड़ी खासियत है। तमाम धाकड़ नेताओं में लोकप्रिय रहे राष्ट्रीय यूनाईटेड  के सांसद (  राज्यसभा  )  केसी त्यागदी से लास्ट संड़े के लिए अनामी शरण बबल ने लंबी बातचीत की। पेश है इसके मुख्य अंश  : -- 

सवाल – राष्ट्रीय  जनतांत्रिक गठबंधन ( एनडीए) से जनतादल यूनाईटेड के अलगाव के बाद नयी योजना या रणनीति क्या है ?
जवाब—एनडीए से अलग होना एक बेहद कष्टदायक फैसला रहा, जिसको लेकर घोषना करने में करीब एक साल का समय लग गया। आजादी के बाद गैरकांग्रेसवाद का यह सबसे लंबा और टिकाउ गठबंधन बना था। रोजाना इस तरह के गठबंधन नहीं बनते हैं, जिसमें एक कार्यक्रम को लेकर 17 साल तक साथ साथ रहे। गठबंधन टूटने के बाद भाजपा का रूख हमलावर हो गया है और वो पूरी तरह जेड़ीयू को दोषी ठहराना चाहती है। जिसके खिलाफ बिहार और खासकर अपने इलाके में गोष्ठी सेमिनार पैदल यात्रा जुलूस जनसभा वाद विवाद और नुक्कड़ सभाओं के जरिये बीजेपी की चाल को रखाजा रहा है। हम जनता को बताना चाहते हैं कि इस गठबंदन को तोड़ना क्यों जरूरी हो गया था।
सवाल – जरा हमें भी बताइए न कि क्या ऐसी मजबूरी आ गई कि जब लगने लगा कि बस अब मामला बर्दाश्त से बाहर हो चला है ?
जवाब – देखिए, जब तक बीजेपी में माननीय अटल बिहारी बाजपेयी और लाल कृष्ण आड़वाणी का प्रभाव और दबदबा था, तब तक सामान्य तौर पर हमें कोई तकलीफ नहीं थी, क्योंकि वे लोग आदर के साथ गठबंधन की मर्यादा को समझते थे।  मगर इन वरिष्तम नेताओं के बाद की पीढ़ी में गठबंधन को लेकर पहले जैसा सम्मान नहीं रह गया था।
 सवाल – क्यों राजनाथ सिंह का यह दूसरा कार्यकाल है और वे तो इन सीमाओ की मर्यादा को जानते है ?
जवाब-  राजनाथ जी भले ही वहीं है, पर भाजपा ही पूरी तरह बदल गयी है। एक समय दिवगंत श्रीमती इंदिरा गांधी को अपने आप पर इतना घमंड़ हो गया था कि खुद अपने आप को ही इंदिरा इज इंड़िया मानने लगी थी।.इंदिरा इज इंड़िया और कांग्रेस का फल तो आपलोगो ने 1975 के बाद देख ही लिया। यही हाल आजकल भाजपा की हो गयी है।, अटल जी और आड़वणी की जोड़ी से भाजपा एक अलग दिशा में चलती थी, मगर आज बीजेपी मोदी की हो गयी है।  मोदी इज बीजेपी या बीजेपी इज मोदी के इस आधुनिक  संस्करण को कम से कम जेड़ीयू तो बर्दाश्त नहीं कर सकती है। , लिहाजा हमें एनड़ीएक को और बदतर या बदनाम होने से ज्यादा जरूरी यह लगा कि इसको अब तोड़ दिया जाए या इसका साथ छोड़ दिया जाए।
सवाल— एनडीए से अलग होने के बाद आपलोंगों की भावी योजना और रणनीति पर क्या प्रभाव पड़ा है ?
 सवाल--  इस पर चिंतन और मंथन हो रहा। सही मायने में देखे तो एनडीए छोड़कर तो हमलोग सड़क पर आ गए है। छत से बाहर निकलने पर तो आशियाना बनाने की नौबत और जरूरत आ पड़ी है।.इस दौर में अपने आप को सुरक्षित रखने की बीजेपी से ज्यादा जरूरत और खतरा तो हमलोंगों के साथ है।
सवाल – इतनी बुरी हालत भी नहीं है त्यागी जी  एक तरफ राहुल गांधी का नीतिश प्रेम जगजाहिर हो चुका है ?
जवाब— (मुस्कुराते हुए) देखिए जब कोई एक जवान लड़की सड़क पर आकर खड़ी हो जाती है, तो उसके पीछे लाईन मारने वालों की फौज लग जाती है। जेड़ीयू के सामने कई ऑफर है, मगर हमें यह तो सोचने का मौका और अधिकार है कि कौन सा बंधन हमारे लिए सबसे भरोसेमंद रहेगा।
सवाल – अच्छा, इसीलिए पूरे ताव के साथ एनडीए को छोड़ भी दिया और गरिया भी रहे है ?
 जवाब--  नहीं एकदम नही। आपके आरोप में कोई सत्यता नहीं है। .यह एक दिन का फैसला नहीं था, और ना ही रोज रोज इस तरह के गठबंधन बनते हैं। एनडीए के संयोजक भी शरद यादव जी थे, लिहाजा अपनी पकड़ और प्रभाव भी था,। मैंने पहले भी जिक्र किया था कि अटल और आड़वणी के रहते कभी भी दिक्कत नहीं हुई। 2002 में गुजरात दंगों के बाद एनडीए में तनाव हुआ था, मगर अटल जी ने पूरे मामले को संभाला और काफी हद तक मामले को शांत भी कर दिया। मोदी का प्रसंग सामने आकर भी  मंच से बाहर हो गया। उस समय गठबंधन के अनुसार हमलोग भी इसे  एक राज्य का मामला मान कर छोड़ देना पड़ा। मगर 2011 से ही मोदी प्रकरण उभरने लगा और देखते ही देखते मोदी सब पर भारी होते चले गए। बार बार कहने पर भी मामले को साफ नहीं किया गया, जिससे मोदी को लेकर एनडीए में विवाद हुआ।
सवाल—  यह तो एकदम सच हो गया कि मोदी के चलते ही यह अलगाव हुआ है ?
 जवाब – नहीं इस बात में पूरी सत्यता नहीं है। मोदी एक मुद्दा रह है। हमारे बार बार कहने के बाद भी पीएम को लेकर उनकी दुविधा से जनता के बीच भी भम्र बढ़ रहा था। आड़वाणी द्वारा बेबसी जाहिर करने या गतिविधियों को लेकर बीजेपी की उपेक्षा के चलते ही एनडीए में पहले वाली सहजता नहीं रह गयी थी। कई बड़े नेताएं की उदासीनता से संवाद खत्म हो गया था। बीजेपी के नये चेहरो में भी इसको लेकर उत्सुकता नहीं थी, जिसके चलते हमलोगों को एनड़ीए से बाहर होना पड़ा। और हमलोंगो को इसका कोई मलाल भी नहीं है।
सवाल – 2013 में होने वाले कई राज्यों में विधानसभा चुनाव और 2014 के लोकसभा चुनाव को आप किस तरह देख और आंक रहे है ?  
जवाब – इन चुनावों को लेकर अभी कोई रणनीति नहीं बनी है।  हम 2013 विधानसभा के परिणाम को देखकर ही अपनी तैयारी और कार्यक्रमों को अंतिम रुप देंगे। 100 से भी कम लोकसभा सीटों पर हमारे प्रत्याशी होंगे, लिहाजा सबों को समय पर मैनेज कर लिया जाएगा।
सवाल – भाजपा के साथ मिलने पर बिहार में जेड़ीयू एक पावर थी, मगर साथ खत्म होने पर आज दोनों कुछ नहीं है। क्या 2015 में होने वाले विधानसभा चुनाव में लालू यादव और रामविलास  पासवान समेत बीजेपी से टकराना क्या जेडीयू के लिए नुकसानदेह हो सकता है ?
जवाब – हो सकता है। इन  तमाम खतरों के बाद भी केवल अपने लाभ या स्वार्थ के लिए घटक में बने रहना हमें गवारा नहीं था। बिहार में 2015 के चुनावी परिणाम कुछ भी हो सकते है। हमें नुकसान भी हो सकता है, इसके बावजूद मोदी के बीजेपी में रहना जेडीयू को गवारा नहीं है। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह से व्यक्तिगत संबंध अलग है मगर पार्टी के संबंधों की एक लक्ष्मण रेखा होती है। फिर अध्यक्ष होकर भी राजनाथ बेबस है। आप देख रहे हैं कि आज हालत यह है कि जो मोदी का जाप करेगा, वही बीजेपी में रहेगा। 1996
सवाल – यानी जेडीयू को लगा कि मोदी से मामला संतुलित नहीं हो पा रहा था ?
जवाब –  गुजरात में मोदी को लेकर कोई दिक्कत नहीं थी, मगर एक विवादास्पद आदमी को एक राज्य में तो सहन किया जा सकता है, मगर एकदम नेशनल हीरो की तरह पेश करने के मामले में जेडीयू बीजेपी के साथ कभी नहीं है।
सवाल – तो क्या मान लिया जाए कि देश में अब विपक्ष की भूमिका समाप्त सी हो चली है ?
.जवाब --  जी नहीं विरोध और खासकर लोकतंत्र में विपक्ष और विरोध कभी खत्म नहीं हो सकता। लोकतंत्र में विरोध और विपक्ष संजीवनी की तरह है, लिहाजा यह तो एक राजनैतिक परम्परा है और यह खत्म नहीं हो सकती। 1969-70 में दीन दयील उपाध्याय और तमाम गैरकांग्रेसी नेताओं ने पूरे देश में इस तरह की हवा बनायी कि देश के करीब 10 राज्यों में गैरकांग्रेसी दलों की सरकार बनी  थी। लिहाजा विपक्ष की भूमिका कब एकाकएक मुख्य हो जाए यह कहना आसान नहीं है।

सवाल --  शायद अब फिर इस तरह का मुहिम ना हो ?
जवाब राजनीति में इस तरह का कोई दावा करना बेकार है।
सवाल --   बीजेपी द्वार नरेन्द्र मोदी को फोकस करने के बाद पूरा विपक्ष जिस तरह मोदी के खिलाफ हमलावर होकर पीछे पड़ गयी है, , विरोध के इस शैली को किस तरह देख रहे है ?
जवाबमोदी का जिस तरह विरोध हो रहा है, मैं उसको एक स्वस्थ्य परम्परा नहीं मान रहा हूं।  चारो तरफ मोदी विरोध की धूम है। मोदी पर इस तरह कांग्रेस हमलावर हो गयी है कि जबरन विवाद  के लिए विवाद हो रहा है। इससे मैं काफी आहत और चकित भी हूं कि एकाएक यह क्या हो रहा है। इसके कई खतरे है। हो सकता है कि जनमानस में मोदी को लेकर इस तरह की इमेज भी बने कि मोदी के बहाने बीजेपी को भी लोग नकार दे और काफी नुकसान हो सकता है , मगर इसका उल्टा असर भी हो सकता है। विरोध करने वाले तमाम नेता जनता की कसौटी पर परखे गए है, मगर नेशनल स्तर पर मोदी एक नया फेस है। विरोध को देखते हुए यह भी मुमकिन है कि बाकी दलों को भारी नुकसान झेलना पड़े और जनता मोदी सहित बीजेपी की नैय्या पार लगा दे। कांग्रेस समेत सभी दलों को इस खतरे पर गौर करना होगा।   
सवाल --  और क्या क्या खतरे है ?
जवाब --   कांग्रेस को भी मोदी विरोध को और हवा देने में मजा आ रहा है, क्योंकि मोदी का हौव्वा इतना बड़ा बन गया है कि पीएम मनमोहन सिंह के 10 साला कुशासन पर कहीं कोई चर्चा नहीं है। करप्शन से बेहाल कांग्रेस की सारी असफलता छिप गयी है। यूपीए के कुशासन और देश बेचने की साजिश का मुद्दा ही गौण हो गया है। मंहगाई मुद्दे को लेकर कहीं कोई धरना प्रदर्शन नहीं हो रहा है। देश बंद करने की बात ही छोड़ दीजिए। जनहित के तमाम मुद्दों पर किसी का ध्यान नहीं है। कांग्रेस की इससे पहले कोई भी इतनी खराब लाचार बेबस और दिशाहीन जनविरोधी सरकार नहीं बनी थी। मोदी को मुद्दा बनाकर यूपीए सत्ता में फिर आने का रास्ता बना रही है।
सवाल –  आपलोग भी तो यूपीए के बैंड बाजा बाराती के संग जुड़ने के लिए अपनी बारी देख रहे है ?  राहुल गांधी तो सालों से नीतिश कुमार पर लाईन दे रहे है ?
जवाब --  नहीं इस मामले में अभी कुछ भी नहीं कह सकते। नीतिश को पसंद करने का मतलब केवल व्यक्तिगत माना जा सकता है।
सवाल – नीतिश कुमार पीएम के एक साईलेंट प्रत्याशी की तरह है, जो खुद को खुलकर ना पेश कर पा रहे हैं, ना ही किसी और को बर्दाश्त कर पा रहे है  ? 
जवाब  एकदम नहीं ,नीतिश जी बार बार और हर बार इसका खंड़न करते आ रहे है, और मात्र 30-32 सांसद के बूते पीएम बनने का सपना देखना भी उनके लिए संभव नहीं है। वे लगातार कहते रहे हैं और मैं फिर आज कहना चाहूंगा कि इस तरह की बातें करने वाले लोग और नेता जेडीय के सबसे बड़े दुश्मन है।, जिससे सावधान रहने की जरूरत है। नीतिश जी बिहार को लाईन पर लाने के मिशन में लगे हैं और यहीं उनका मकसद है, बस्स।
सवाल --   कमाल है  माना तो यह जा रहा है कि मंत्रीमंडल के विस्तार में आप सहित कई लोग मनमोहन के सहयोगी बनने जा रहे है ?
जवाब --  ( मुस्कुराते हुए) हमें तो पत्ता नहीं है , मगर जब आपको कोई जानकारी मिले तो हमें भी सूचना दे दीजिएगा।।