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शनिवार, 30 सितंबर 2017

जब मैं बाल बाल बच गया।







Anami Sharan Babal

आज नवरात्रि का अष्टमी हैं। पिछले साल (आठ अक्टूबर 2016) आज दिनभर पिछले साल की याद आती रही। रांची से रात को हजारीबाग जाना था। दशहरा में पूरा शहर ही मानो जाम सा हो जाता है। हजारीबाग जाने के लिए हमारे साले राकेश कुमार की कार को  अपने पास ही रख ली और नवरात्रि  कर रहे चालक रणजीत को सिर्फ मेरे को ले जाने की मेरे संवंधी नीतिन पाराशर ने व्यवस्था कर दी। रात आठ बजे तक मैं  किसी तरह नवनीत नंदन पत्रकार के संग पिस्का मोड़ मछली बाजार तक पहुंचाया गया। जहां पर कार के साथ चालक रंजीत मेरा इंतज़ार कर रहे थे। और तमाम सड़के जाम होने के कारण हमलोग खराब मौसम में ही कांके की तरफ से होकर  हजारीबाग के लिए निकले। खस्ताहाल सड़कों और घुप्प अंधेरा के बीच से होकर किसी तरह हमलोग रामगढ़ पहुंच गए। आंधी और बारिश के बीच कुज्जू घाटी की घुमावदार पहाड़ी क्षेत्र पास आते ही सडकों के साथ घूमने की बजाय गाडी असंतुलित होकर सीधे पहाड़ से जाकर टकरा गयी। और देखते दी देखते मेरी तरफ कार उलट गयी। उस समय रात के करीब साढ़े दस बज रहे थे। नीचे गाड़ी बीच में मैं और चालक रंजीत धड़ाम से मेरे उपर आ गिरा। कमर और पीठ पर चोट थी मगर दो मिनट के अंदर मै सचेत हो गया और सबसे पहले अपने मोबाइल को खोजने लगा। फौरन पाते ही सबसे पहले हजारीबाग में राकेश को फोन लगाकर अपनी कुशलता और गाड़ी के चोटिल होने की सूचना दी। दिल्ली फोन करके अपनी पत्नी को कुशलक्षेम की सूचना देकर नो घबराहट नो घबराहट का मंत्र दिया। तबतक रंजीत भी संभल गया था। तेज बारिश में भी पास से गुजर रही सात आठ गाडि़यां रुकी और बाहर निकल कर लोगों ने गाड़ी में फंसे हमदोंनो को बाहर निकालने का जुगाड़ लगाने लगे। किसी तरह खिड़की तोड़ कर में मुझे उपर चढने की कोशिश करने लगे। रंजीत नीचे से सहारा देकर मुझे उठाया तो बरसात की परवाह किए बिना मदद में लगे मेरे तमाम अनजान मित्रों ने किसी तरह मुझे पकड़ कर पहले उपर खीचा और फिर कईयों कें कंधों के सहारें नीचे उतरा। जबकि खिड़की से बाहर आते ही रंजीत कूदने के चक्कर में पहाड से टकराकर घायल हो बैठे।
 किस संयोग का सुफल था कि एक वाहन का चालक मुमताज प्रकट हुआ। उसने अपनी स्कॉर्पियो में बैठाया और मेरे सामान को भी क्षतिग्रस्त कार से निकालकर मेरे पास ही रख दिया। बारिश के बीच मुझे कमर और पीठ में दर्द महसूस होने लगी थी।  थोडी देर में रांची पुलिस  में डीएसपी  और राकेश के घनिष्ठ मित्र विकास कुमार श्रीवास्तव ने लोकल पुलिस को फोन करके क्रेन भिजवाया। तब तक हमारे बड़े साले दीपक भैय्या भी कईयों के साथ आ गये।  चालक मुमताज के साथ हम सब गाड़ी को लोकल पुलिस, के हवाले कर हजारीबाग के लिए चल पड़े। अस्पताल में मेरे ढेरों संबंधी पहले से ही मौजूद थे। आवश्यक जांच आदि के बाद मैं फारिग हुआ। चालक मुमताज मेरे साथ लगा रहा। जबकि नवमी खोलने के लिए बेताब रंजीत को रात दो बजे रांची के लिए रवाना करके हमलोग  रामनगर में दीपक  भैया के नवनिर्मित मकान में दाखिल हुआ। वहां पर मां भाभी सब लोग मेरा इंतजार कर रहे थे।
रांची जाने के एक सप्ताह के बाद ही मैं दिल्ली चला आया। दो सप्ताह तक रहकर और ठीक से तमाम जांच कराने के बाद कोई 15 दिन के बाद रांची वापस लौटा। तब जाकर दुर्घटना की भयावहता का पता चला । पहाड़ से टकराकर गाड़ी पूरी तरह डैमेज हो गयी थी। बस गाड़ी में से हम दोनों ही सुरक्षित निकले। करीब पांच सप्ताह तक रांची में और रहा।  मैं  सामान सहित सदा सदा के लिए रांची शहर को 11 दिसम्बर को छोड़ दिल्ली आ गया।
अलबत्ता इस घटना के एक साल हो गए हैं पर मन में सारा घटनाक्रम आज भी सजीव है। मेरा मन आज भी बारम्बार अपने मालिक राधास्वामी के प्रति मन वंदित हो रहा है। मैं अपने तमाम मित्रों के प्रति भी काफी नरम और विन्रम  हूँ। जिनकी मंगलमय कामनाएँ ही मेरे लिए संजीवनी साबित हुई।