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गुरुवार, 21 मई 2020

अनामी शरण बबल / प्रेमनगर में प्रेम की तलाश

वेश्याओं के गांव में कई बार जाने की यातना / अनामी शरण बबल



(लड़की को लेकर इन गलियों में घूमते देखकर यौनकर्मियों को बड़ी हैरानी हो रही थी. कई तरह की भद्दी और अश्लील टिप्पणियों से वे लोग हमें नवाजती रहीं और बोलीं ऐसी-ऐसी बहुत सारी थूथनियों को हम देख चुकी हैं.....)
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नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास जीबीरोड यानी  जिस्म की मंडी है, जहां पर सरकार और पुलिस के तमाम दावों के बावजूद पिछले कई सदियों से जिस्म का बाजार चल रहा है. मगर दिल्ली के एक गांव में भी जिस्म का धंधा होता है. क्या आपको यौनकर्मियों के इस बस्ती के बारे में पता है?

बाहरी दिल्ली के रेवला खानपुर गांव के पास प्रेमनगर एक ऐसी ही बस्ती है, जो शाम ढलते ही रंगीन होने लगती है. हालांकि पुलिस प्रशासन और कथित नेताओं द्वारा इसे उजाड़ने की यदा-कदा कोशिश भी होती रहती है, इसके बावजूद बदनाम प्रेमनगर की रंगीनी में बहुत अँधेरा नहीं है. अलबत्ता, महंगाई और आधुनिकता की मार से प्रेमनगर में क्षणिक प्यार का यह धंधा अब उदास सा जरूर होता जा रहा है.


आज से करीब 16 साल पहले अपने दोस्त और बाहरी दिल्ली के अपने सबसे मजबूत संपर्क सूत्रों में एक थान सिंह यादव के साथ इस प्रेमगनर बस्ती के भीतर जाने का मौका मिला. ढांसा रोड की तरफ से एक चाय की दुकान के बगल से निकल कर हमलोग बस्ती के भीतर दाखिल हुए. चाय की दुकान से ही एक बंदा हमारे साथ हो लिया. कुछ ही देर में हम उसके घर पर थे.

उसने स्वीकार किया कि धंधा के नाम पर बस्ती में दो फाड़ हो चुका है. एक खेमा इस पुश्तैनी धंधे को बरकरार रखना चाहता है, तो दूसरा खेमा अब इस धंधे से बाहर निकलना चाहता है. हमलोग किसके घर में बैठे थे, इसका नाम तो अब मुझे याद नहीं है, मगर (सुविधा के लिए उसका नाम राजू रख लेते हैं) राजू ने बताया प्रेमनगर में पिछले 300 से हमारे पूर्वज रह रहे है. अपनी बहूओं से धंधा कराने के साथ ही कुंवारी बेटियों से भी धंधा कराने में इन्हें कोई संकोच नहीं होता.

आमतौर पर दिन में ज्यादातर मर्द खेती, मजदूरी या कोई भी काम से घर से बाहर निकल जाते है, तब यहां की औरते( लड़कियां भी) ग्राहक के आने पर निपट लेती है. इस मामले में पूरा लोकतंत्र है कि मर्द(ग्राहक) द्वारा पसंद की गई यौनकर्मी के अलावा और सारी धंधेवाली वहां से फौरन चली जाती हैं. ग्राहक को लेकर घर में घुसते ही घर के और लोग दूसरे कमरे में या बाहर निकल जाते है. यानी घर में उसके परिजनों की मौजूदगी में ही धंधा होने के बावजूद ग्राहक को किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता है.

देखने में बेहद खूबसूरत तीन बच्चों की मान पानी लाकर हमलोग के पास रखा. एकदम सामान्य शिष्टाचार और एक अतिथि की तरह सत्कार कर रही धन्नो और उसके पति से अनुरोध कर हमलोग करीब एक घंटे तक वहां रहकर जानकारी लेते रहे. इस दौरान हमने राजू और धन्नों के यहां चाय पी.

राजू ने बताया कि रेवला खानपुर में कभी प्रेमबाबू नामक कोई ग्राम प्रधान हुआ करते थे, जिन्होंने इन कंजरों पर दया करके रेवला खानपुर ग्रामसभा की जमीन पर इन्हें आबाद कर दिया. ग्रामसभा की तरफ से पट्टा दिए जाने की वजह से यह बस्ती पुरी तरह वैधानिक और मान्य है. अपना पक्का मकान बना लेने वाले राजू से धंधे के विरोध के बाबत पूछे जाने पर वह कोई जवाब नहीं दे पाया.

हालांकि उसने यह माना कि घर का खर्च चलाने में धन्नों की आय का भी एक बड़ा हिस्सा होता है. घर से बाहर निकलते समय थान सिंह ने धन्नों के छोटे बच्चे को एक सौ रूपए का एक नोट थमाया. रूपए को वापस करने के लिए धन्नो और राजू अड़ गए. खासकर धन्नो बोली, नहीं साब मुफ्त में तो हम एक पैसा भी नहीं लेते.
काफी देर तक ना नुकूर करने के बाद अंततः वे लोग किसी तरह नोट रखने पर राजी हुए.

धंधे का भी लिहाज होता है

करीब एक साल के बाद प्रेमनगर में फिर दोबारा जाने का मौका मिला. 1998 में दिल्ली विधानसभा चुनाव के मतदान के दिन बाहरी दिल्ली का चक्कर काटते हुए हमारी गाड़ी रेवला खानपुर गांव के आसपास थी. हमारे साथ हरीश लखेड़ा (अभी अमर उजाला में) और कंचन आजाद (अब मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पीआरओ) साथ थे. एकाएक चुनाव के प्रति यौनकर्मियों की रूचि को जानने के लिए मैनें गाड़ी को प्रेमनगर की तरफ ले चलने को कहा.

हमारे साथ आए दो पत्रकार मित्रों के संकोच के बावजूद धड़धड़ाते हुए मैं वहां पर जा पहुंचा, जहां पर सात-आठ महिलाएं बैठी थीं. मुझे देखते ही एक उम्रदराज महिला का चेहरा खिल उठा. मुझे संबोधित करती हुई एक ने कहा का बात है राजा, बहुत दिनों के बाद इधर आना हुआ ? तभी महिला ने टोका ये सब बाबू (दूर खड़ी कार से उतरकर हरीश और कांचन मेरा इंतजार कर रहे थे) भी क्या तुम्हारे साथ ही है ? एक दूसरी महिला ने चुटकी ली. आज तो तुम बाबू फौज के साथ आए हो.

बात बदलते हुए मैंने कहा आज चुनाव है ना, इन बाबूओं को कहां कहां पर मतदान कैसे होता है, यहीं दिखाने निकला था. अपनी बात को जारी रखते हुए मैंने सवाल किया क्या तुमलोग वोट डालकर आ गई ? मैने एक को टोका बड़ी मस्ती में बैठी हो, किसे वोट दी. मेरी बात सुनकर सारी महिलाएं (और लड़कियां भी) खिलखिला पड़ी.

खिलखिलाते हुए किसी और ने टोका बड़ा चालू हो बाबू एक ही बार में सब जान लोगे या कुछ खर्चा-पानी भी करोगे. गलती का अहसास करने का नाटक करते हुए फट अपनी जेब से एक सौ रूपए का एक नोट निकालकर मैनें आगे कर दिया. नोट थामने से पहले उसने कहा बस्सस. मैने फौरन कहा, ये तो तुमलोग के चाय के लिए है, बाकी बाद में. मैंने उठने की चेष्टा की भी नहीं कि एक बहुत सुंदर सी महिला ने अपने शिशु को किसी और को थमाकर सामने के कमरे के दरवाजे पर जाकर खड़ी हो गयी.

उधर जाने की बजाय मैं वहीं पर खड़ा होकर दोनों हाथ ऊपर करके अपने पूरे बदन को खोलने की कोशिश की. इस पर एक साथ कई महिलाएं एक साथ सित्कार सी उठी, हाय यहां पर जान क्यों मार रहे हो. बदन और खाट अंदर जाकर तोड़ो ना. फिर भी मैं वहीं पर खड़ा रहा और चुनाव की चर्चा करते हुए यह पूछा कि तुमलोगों ने किसे वोट दिया ? मेरे सवाल पर मेरी मौजूदगी को बड़े अनमने तरीके से लेती हुई सबों ने जवाब देने की बजाय अपना मुंह बिदकाने लगी. तभी मैने देखा कि 18-20 साल के दो लडके न जाने किधर से आए और इतनी सारी झुंड़ में बैठी महिलाओं की परवाह किए बगैर ही दनदनाते हुए कमरे में घुस गए.

दरवाजे पर मेरे इंतजार में खड़ी यौनकर्मी भी कमरे में मेरे इंतजार को भूलकर फौरन कमरे के भीतर चली गई. दरवाजा अभी बंद नहीं हुआ था, लिहाजा मैं फौरन कमरे की तरफ भागा. इसपर एक साथ कई महिलाओं ने आपत्ति की और जरा सख्त लहजे में अंदर जाने से मुझे रोका. सबों की अनसुनी करते हुए दूसरे ही पल मैं कमरे में था. जहां पर लड़कों से लेनदेन को लेकर मोलतोल हो रहा था.

एकाएक कमरे में मुझे देखकर उसका लहजा बदल गया. उसने बाहर जाकर किसी और के लिए बात करने पर जोर देने लगी. फौरन 100 रूपए का नोट दिखाते हुए मैनें जिद की, जब मेरी बात हो गई है, तब दूसरे से मैं क्यों बात करूं ? इसपर सख्त लहजे में उसने कहा मैं किसी की रखैल नहीं हूं जो तुम भाव दिखा रहे हो. फिलहाल तेरी बारी खत्म, अब बाहर जाओ.

कमरे से बाहर निकलते ही मैंने गौर किया कि तमाम यौनकर्मियों का चेहरा लाल था. बाबू धंधे का कोई लिहाज भी होता है? किसी एक ने मेरे उपर कटाक्ष किया क्या तुम्हें वोट डालना है या किसे वोट डाली हो यह पूछते ही रहोगे ? इस पर सारी खिलखिला पड़ी. मैं भी ठिठाई से कहा यहां पर नहीं किसी को तीन चार घंटे के लिए हमारे साथ भेजो गाड़ी में और पैसा बताओ ?

इस पर सबों ने अपनी अंगूली को दांतों से काटते हुए बोल पड़ी. हाय रे दईया, पैसे वाला लाला है. किसी ने पूरी सख्ती से कहा कोई और मेम को ले जाना अपने साथ गाड़ी में. प्रेमनगर की हम औरतें कहीं बाहर गाड़ी में नहीं जाती. इस बीच कहीं से चाय बनकर आ गई. तब वे सारी औरतें फौरन नरम हो गई और सभी यौनकर्मियों ने चाय पीने का अनुरोध किया.

मैनें नाराजगी दिखाते हुए फिर कभी आने का घिस्सा पीटा जवाब दोहराया. इस बीच अब तक खुला कमरा भीतर से बंद हो चुका था. लौटने के लिए मैं ज्यों ही मुड़ा तो दो एक ने चीखकर कटाक्ष किया. वर्मा (तत्कालीन मुख्यमंत्री साहब सिंह वर्मा) हो या सोलंकी (तत्कालीन स्थानीय विधायक धर्मदेव सोलंकी) सब भीतर से खल्लास हैं, खल्लास. एक ने मेरे ऊपर तोहमत मढ़ा कही तुम भी तो kवर्मा- सोलंकी नहीं हो ?

इस पर कोई प्रतिवाद करने की बजाय वहां से खिसकने में ही अपनी भलाई दिखी. प्रेमनगर को लेकर मेरे द्वारा दो-तीन खबरें लिखने के बाद तब पॉयनीयर में (बाद में इंडियन एक्सप्रेस) में काम करने वाली ऐश्वर्या (अभी कहां पर है, इसकी जानकारी नही) ने मुझसे प्रेमनगर पर एक रिपोर्ट कराने का आग्रह किया. यह बात लगभग 2000 की है. हमलोग एक बार फिर प्रेमनगर की उन्ही गलियों की ओर निकल पड़े.

साथ में एक लड़की को लेकर इन गलियों में घूमते देखकर यौनकर्मियों को बड़ी हैरानी हो रही थी. कई तरह की भद्दी और अश्लील टिप्पणियों से वे लोग हमें नवाजती रहीं. मैंने कुछ उम्रदराज यौनकर्मियों को बताया कि ये एक एनजीओ से जुड़ी हैं और यहां पर वे आपलोग की सेहत और रहनसहन पर काम करने आई हैं. ये एक बड़ी अधिकारी है, और ये कई तरह से आपलोग को फायदा पहुंचाना चाहती है.

prostitutes-indiaमेरी बातों का उनपर कोई असर नहीं पड़ा. उल्टे टिप्पणी की कि ऐसी-ऐसी बहुत सारी थूथनियों को मैं देख चूकी हूं. कईयों ने उपहास के साथ कटाक्ष भी किया कि अपनी हेमा मालिनी को लेकर जल्दी यहां से फूटो अपना और मेरा समय बर्बाद ना करो.


मैंने जोर देकर कहा कि चिंता ना करो, हमलोग पूरा पैसा देकर जाएंगे. इतना सुनते ही कई यौनकर्मी आग बबूला हो गईं. एक ने कहा बाबू यहां पर रोजाना मेला लगता है, जहां पर तुम जैसे डेढ़ सौ बाबू आकर अपनी थैली दे जाते है. पैसे का रौब ना गांठों. यहां तो हमारे मूतने से भी पैसे की बारिश होती है, अभी तुम बच्चे हो. हमलोगों की आंखें नागिन की होती है, एक बार देखने पर चेहरा नहीं भूलती. तुम तो कई बार शो रूम देखने यहां आ चुके हो. दम है तो कमरे में चलकर बातें कर.

मैनें फौरन क्षमा मांगते हुए किसी तरह यौनकर्मियों को शांत करने की गुजारिश में लग गया. एक ने कहा कि हमलोगों को तुम जितना उल्लू समझते हो, उतना हम होती नहीं है. बड़े बड़े फन्ने तीसमार खांन भी यहां आकर मेमना बन जाते है. हम ईमानदारी से केवल अपना पैसा लेती है. एक यौनकर्मी ने जोड़ा, 'हम रंडियों का अपना कानून होता है, मगर तुम एय्याश मर्दो में तो कोई ईमान ही नहीं होता.'

यौनकर्मियों के एकाएक इस बौछार से मैं लगभग निरूतर सा हो गया. महिला पत्रकार को लेकर फौरन खिसकना ही उचित लगा. एक उम्रदराज यौनकर्मी से बिनती करते हुए मैंने पूछा कि क्या इसे (महिला पत्रकार) पूरे गांव में घूमा दूं? उसकी सहमति मिलने पर हमलोगों ने प्रेमनगर की गलियों को देखना शुरू किया. अब हमलोगों ने फैसला किया कि किसी से उलझने या सवाल जवाब करने की बजाय केवल माहौल को देखकर ही हालात का जायजा लेना ज्यादा ठीक और सुरक्षित है.

मर्द आते इज्ज़त उतरवाने

हमलोग अभी एक गली में प्रवेश ही किए थे कि गली के अंतिम छोर पर दो लड़कियां और दो लड़कों के बीच पैसे को लेकर मोलतोल जारी था. 18-19 साल के लड़के 17-18 साल का मासूम सी लड़कियों को 20 रूपए देना चाह रहे थे, जबकि लड़कियां 30 रूपए की मांग पर अड़ी थी. लगता है जब बात नहीं बनी होगी तो एक लड़की बौखला सी गई और बोलती है. साले जेब में पैसे रखोगे नहीं और अपना मुंह लेकर सीधे चले आओगे अपनी अम्मां के पास आम चूसने. चल भाग वरना एक झापड़ दूंगी तो साले तेरा केला कटकर यहीं पर रह जाएगा.

शर्म से पानी पानी से हो गए दोनों लड़के हमलोगों के मौके पर आने से पहले ही निकल लिए. मैं बीच में ही बोल पड़ा, क्या हुआ इतना गरम क्यों हो. इस पर लगभग पूरी बदतमीजी से एक बोली मंगलाचरण की बेला है, तेरा हंटर गरम है तो चल वरना तू भी यहां से फूट. मैने बड़े प्यार से कहा कि चिंता ना कर तू हमलोग से बात तो कर तेरे को पैसे मिल जाएंगे. मैनें अपनी जेब से 50 रूपए का एक नोट निकाल कर आगे कर दिया. नोट को देखकर हुड़की देती हुई एक ने कहा सिर पर पटाखा बांधकर क्या हमें दिखाने आया है, जा मरा ना उसी से.

sex-workers-indiaमैंने झिड़की देते हुए टोका इतनी गरम क्यों हो रही है, हम बात ही तो कर रहे है. गंदी सी गाली देती हुई एक ने कहा हम बात करने की नहीं नहाने की चीज है. कुंए में तैरने की हिम्मत है तो चल बात भी करेंगे और बर्दाश्त भी करेंगे. दूसरी ने अपने साथी को उलाहना दी, तू भी कहां फंस रही है साले के पास डंड़ा रहेगा तभी तो गिल्ली से खेलेगा. दोनों जोरदार ठहाका लगाती हुई जानें लगीं.

मैं भी बुरा सा मुंह बनाते हुए तल्ख टिप्पणी की, तुम लोग भी कम बदतमीज नहीं हों. यह सुनते ही वे दोनों फिर हमलोगों के पास लौट आयीं और उनमें से एक ने कहा, 'वेश्या के घर में इज्जत की बात करने वाला तू पहला मर्द है. यहां पर आने वाला मर्द हमारी नहीं हमलोगों के हाथों अपनी इज्जत उतरवा कर जाता है.' मैंने बात को मोड़ते हुए कहा कि ये बहुत बड़ी अधिकारी है और तुमलोग की सेहत और हालात पर बातचीत करके सरकार से मदद दिलाना चाहती है. इस पर वे लोग एकाएक नाराज हो गई. बिफरते हुए एक ने कहा हमारी सेहत को क्या हुआ है. तू समझ रहा है कि हमें एड(एड़स) हो गया है. तुम्हें पता ही नहीं है बाबू हमें कोई क्या चूसेगा, चूस तो हमलोग लेती है मर्दों को.

तपाक से मैनें जोड़ा अभी लगती तो एकदम बच्ची सी हो, मगर बड़ी खेली खाई सी बातें कर रही हो. इस पर रूखे लहजे में एक ने कहा जाओ बाबू जाओ तेरे बस की ये सब नहीं है, तू केवल झुनझुना है. गंदी गंदी गालियों के साथ वे दोनों पलक झपकते गली पार करके हमलोगों की नजरों से ओझल हो गई.मूड उखड़ने के बाद भी भरी दोपहरी में हमलोग दो चार गलियों में चक्कर काटते हुए प्रेमनगर से बाहर निकल गए.

करीब तीन साल पहले 2009 में एक बार फिर थान सिंह यादव के साथ मैं प्रेमनगर में था. करीब आठ-नौ साल के बाद यहां आने पर बहुत कुछ बदला बदला सा दिखा. ज्यादातर कच्चे मकान पक्के हो चुके थे. गलियों की रंगत भी बदल सी गयी थी. कई बार यहा आने के बाद भी यहां की घुमावदार गलियां मेरे लिए हमेशा पहेली सी थी. गांव के मुहाने पर ही एक अधेड़ आदमी से मुलाकात हो गई.

हमलोंगों ने यहां आने का मकसद बताते हुए किसी ऐसी महिला या लोगों से बात कराने का आग्रह किया, जिससे प्रेमनगर की पीड़ा को ठीक से सामने रखा जा सके. पत्रकार का परिचय देते हुए उसे भरोसे में लिया. हमने यह भी बता दिया कि इससे पहले भी कई बार आया हूं, मगर अपने परिचय को जाहिर नहीं किया था. अलबता पहले भी कई बार खबर छापने के बावजूद हमने हमेशा प्रेमनगर की पीड़ा को सनसनीखेज बनाने की बजाय इस अभिशाप की नियति को प्रस्तुत किया था.

यह हमारा संयोग था कि बुजुर्ग को मेरी बातों पर यकीन आ गया, और वह हमें साथ लेकर अपने घर आ गया. घर में दो अधेड़ औरतों के सिवा दो और जवान विवाहिता थी. कई छोटे बच्चों वाले इस घर में उस समय कोई मर्द नहीं था. घर में सामान्य तौर तरीके से पानी के साथ हमारी अगवानी की गई. दूसरे कमरे में जाकर मर्द ने पता नहीं क्या कहा होगा.

थोड़ी देर में चेहरे पर मुस्कान लिए चारों महिलाएं हमारे सामने आकर बैठ गई. इस बीच थान सिंह ने अपने साथ लाए बिस्कुट, च़ाकलेट और टाफी को आस पास खड़ें बच्चों के बीच बाट दिया. बच्चों के हाथों में ढेरो चीज देखकर एक ने जाकर गैस खोलते हुए चाय बनाने की घोषणा की. इस पर थान सिंह ने अपनी थैली से दो लिटर दूध की थैली निकालते हुए इसे ले जाने का आग्रह किया. इस पर शरमाती हुई चारों औरतों ने एक साथ कहा कि घर में तो दूध है.

बाजी अपने हाथ में आते देखकर फिर थान सिंह ने एक महिला को अपने पास बुलाया और थैली से दो किलो चीनी के साथ चाय की 250 ग्राम का एक पैकेट और क्रीम बिस्कुट के कुछ पैकेट निकाल कर उसे थमाया. पास में खड़ी महिला इन सामानों को लेने से परहेज करती हुई शरमाती रही. सारी महिलाओं को यह सब एक अचंभा सा लग रहा था.

एक ने शिकायती लहजे में कहा अजी सबकुछ तो आपलोगों ने ही लाया है तो फिर हमारी चाय क्या हुई. मैने कहा अरे घर तुम्हारा, किचेन से लेकर पानी, बर्तन, कप प्लेट से लेकर चाय बनाने और देने वाली तक तुम लोग हो तो चाय तो तुमलोग की ही हुई. अधेड़ महिला ने कहा बाबू तुमने तो हमलोगों को घर सा मान देकर तो एक तरीके से खरीद ही लिया. दूसरी अधेड़ महिला ने कहा बाबू उम्र पक गई. हमने सैकड़ों लोगों को देखा, मगर तुमलोग जैसा मान देने वाला कोई दूसरा नहीं देखा. यहां तो फौरन भागने वाले मर्दो को ही देखते आ रहे है.

इस बीच हमने गौर किया कि बातचीत के दौरान ही घर में लाने वाले बुजुर्ग पता नहीं कब बगैर बताए ही घर से बाहर निकल गए. वजह पूछने पर एक अधेड़ ने बताया कि बातचीत में हमलोग को कोई दिक्कत ना हो इसी वजह से वे बाहर चले गए. हमलोगों ने बुरा मानने का अभिनय करते हुए कहा कि यह तो गलत है मैंने तो उन्हें सबकुछ बता दिया था. खैर इस बीच चाय भी आ गई.

बोलने का नहीं, यहां खोलने का रिवाज़

चारों ने लगभग अपने हथियार डालते हुए कहा अब जो पूछना है बाबू बात कर सकते हो. बातचीत का रूख बताते ही एक ने कहा बाबू तुम तो चले जाओगे, मगर हमें परिणाम भुगतना पड़ेगा. एक बार फिर इमोशनल ब्लैकमेलिंग करते हुए मैने साफ कहा कि यदि तुम्हें हमलोगों पर विश्वास नहीं है तो मैं भी बात करना नहीं चाहूंगा यह कहकर मैंने अपना बोरिया बिस्तर समेटना चालू कर दिया.

तभी एक जवान सी वेश्या ने तपाक से मेरे बगल में आकर बैठती हुई बोली अरे तुम तो नाराज ही हो गए. हमने तो केवल अपने मन का डर जाहिर किया था. शिकायती लहजे में मैंने भी तीर मारा कि जब मन में डर ही रह जाए तो फिर बात करने का क्या मतलब? इस पर दूसरी ने कहा बाबू हमलोगों को कोई खरीद नहीं सकता, मगर तुमने तो अपनी मीठी मीटी बातों में हमलोगों को खरीद ही लिया है. अब मन की सारी बाते बताऊंगी. फिर करीब एक घंटे तक अपने मन और अपनी जाति की नियति और सामाजिक पीड़ा को जाहिर करती रही.

gb-roadबुजुर्ग सी महिला ने बताया कि हमारी जाति के मर्दो की कोई अहमियत नहीं होती. पहले तो केवल बेटियों से ही शादी से पहले तक धंधा कराने की परम्परा थी, मगर पिछले 50-60 साल से बहूओं से भी धंधा कराया जाने लगा. हमारे यहां औरतों के जीवन में माहवारी के साथ ही वेश्यावृति का धंधा चालू होता है, जो करीब 45 साल की उम्र तक यानी माहवारी खत्म(रजोनिवृति) तक चलता रहता है.

इनका कहना है कि माहवारी चालू होते ही कन्या का धूमधाम से नथ उतारी जाती है. गुस्सा जाहिर करती हुई एक ने कहा कि नथ तो एक रस्म होता है, मगर अब तो पुलिस वाले ही हमारे यहां की कौमा्र्य्य को भंग करना अपनी शान मानते है. नाना प्रकार की दिक्कतों को रखते हुए सबों ने कहा कि शाम ढलते ही जो लोग यहां आने के लिए बेताब रहते हैं,वही लोग दिन के उजाले में हमें उजाड़ने घर से बाहर निकालने के लिए लोगों कों आंदोलित करते है.

एक ने कहा कि सब कुछ गंवाकर भी इस लायक हमलोग नहीं होती कि बुढ़ापा चैन से कट सके. हमारे यहां के मर्द समाज में जलील होते रहते हैं. बच्चों को इस कदर अपमानित होना पड़ता है कि वे दूसरे बच्चों के कटाक्ष से बचने के लिए हमारे बच्चे स्कूल नहीं जाते और पढ़ाई में भी पीछे ही रह जाते है. नौकरी के नाम पर निठ्ठला घूमते रहना ही हमारे यहां के मर्दो की दिनचर्या होती है. अपनी घरवाली की कमाई पर ही ये आश्रित होते है.

एक ने कहा कि जमाना बदल गया है. इस धंधे ने रंगरूप बदल लिया है, मगर हमलोग अभी पुराने ढर्रे पर ही चल रहे है. बस्ती में रहकर ही धंधा होने के चलते बहुत तरह की रूकावटों के साथ साथ समाज की भी परवाह करनी पड़ती है. एक ने बताया कि हम वेश्या होकर भी घर में रहकर अपने घर में रहते है. हम कोठा पर बैठने वाली से अलग है. बगैर बैलून (कंडोम) के हम किसी मर्द को पास तक नहीं फटकने देती. यही कारण है कि बस्ती की तमाम वेश्याएं सभी तरह से साफ और भली है.

यानी डेढ सौ से अधिक जवान वेश्याओ के अलावा, करीब एक सौ वेश्याओं की उम्र 40पार कर गई है. एक अधेड़ वेश्या ने कहा कि लोगों की पसंद 16 से 25 के बीच वाली वेश्याओं की होती है. यह देखना हमारे लिए सबसे शर्मनाक लगता है कि एक 50 साल का मर्द जो 10-15 साल पहले कभी उसके साथ आता था , वही मर्द उम्रदराज होने के बाद भी आंखों के सामने बेटी या बहू के साथ हमबिस्तर होता है और हमलोग उसे बेबसी के साथ देखती रह जाती है.

एक ने कहा कि उम्र बढ़ने के साथ ही वेश्या अपने ही घर में धोबी के घर में कुतिया जैसी हो जाती है. इस पर जवान यौनकर्मियों ने ने ठहाका लगाया, तो मंद मंद मुस्कुराती हुई अधेड़ वेश्याओं ने कहा कि हंमलोग भी कभी रानी थी, जैसे की तुमलोग अभी हो. इसपर सबों ने फिर ठहाका लगाया.

थोड़ी देर की चुप्पी के बाद फिर मैनें कहा कुछ और बोलो? किसी ने बेबसी झलकाती हुई बोली और क्या बोलूं साहब ? बोलने का इतना कभी मौका कोई कहां देता है? यहां तो खोलने का दौर चलता है. दूसरी जवान वेश्या ने कहा खोलने यानी बंद कमरे में कपड़ा खोलने का ? एक ने चुटकी लेते हुए कहा कि चलना है तो बोलो. एक अधेड़ ने समर्थन करती हुई बोली कोई बात नहीं साब, मेहमान बनकर आए हो चाहों तो माल हलाल कर सकते हो.

एक जवान ने तुरंत जोड़ा साब इसके लिए तुमलोग से कोई पैसा भी नहीं लूंगी? हम दोनों एकाएक खड़े हो गए. थान सिंह ने जेब से दो सौ रूपए निकाल कर बच्चों को देते हुए कहा कि अब तुमलोग ही नही चाहती हो कि हमलोग तुमसे बात करें. इस पर शर्मिंदा होती हुई अधेड़ों ने कहा कि माफ करना बाबू हमारी मंशा तुमलोगों को आहत करने की नहीं थी. खैर दुआ सलाम और मान मनुहार के बाद घर से बाहर निकल गए थे.

लगभग दो घंटे तक प्रेमनगर के एक घर में अतिथि बनकर रहने के बाद हमलोग बस्ती से बाहर हो गए. मगर इस बार इन यौनकर्मियों की पीड़ा काफी समय तक मन को विह्वल करती रही. इस बस्ती की खबरें यदा-कदा आज भी आती रहती हैं. ग्लोबल मंदी से भले ही भारत समेत पूरा संसार उबर गया हो, मगर अपना सबकुछ गंवाकर भी प्रेमनगर की यौनकर्मी शायद ही कभी अर्थिक तंगी से उबर पाएंगी ?

anami-sharan-babalपिछले दो दशक से पत्रकारिता कर रहे अनामी शरण बबल बाहरी दिल्ली से सम्बंधित मामलों के विशेष जानकार हैं.
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+1 #2 Nirmal Gorana 2012-06-14 12:48
Zanab aap realy super reporter hai or aap jaise reporter ko samaj ki jarurat hai. **** worker ki samaj me badi dardnak situation hai hame milkar en sabhi **** workers ke sath work shop karni chahiye......or kuch socio economic development per focus kar income generation activity start karni chahiye...
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0 #1 Nirmal Gorana 2012-06-14 12:48
Zanab aap realy super reporter hai or aap jaise reporter ko samaj ki
jarurat hai. **** worker ki samaj me badi dardnak situation hai hame
milkar en sabhi **** workers ke sath work shop karni chahiye......or
kuch socio economic development per focus kar income generation
activity start karni chahiye...


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मंगलवार, 12 मई 2020

अनामी शरण बबल / मेरे दोस्त जैसे मेरे पापाजी ससुर के विछोह की पीड़ा अनामी शरण बबल

 मेरी यादों में छोटे पापा / अनामी शरण बबल


आप हजारीबाग झारखंड निवासी दिनेश कुमार सिन्हा हैं। रिश्ते में तो आप मेरे ससुर हैं पर आपकी जीवंतता हाजिर जवाबी और बात बात पर कथा लोककथाओं अनमोल सूक्तियों और संबंधित प्रसंग को किसी और प्रसंग से जोड़ने में महारत हासिल था। रिश्ते में तो ससुर होने के बावजूद आप मेरे दोस्त की तरह थे। दोस्ताना भी इतना प्रगाढ़ कि जब भी मिलते तो हमलोग बातों में इस कदर खो जाते कि समय का कोई बंधन नहीं रहता। जब भी हमलोग मिलते तो फिर एक दूसरे के होकर रह जाते। सारे लोग अचंभित और इस बात को लेकर रोमांचित रहता कि आखिरकार हमलोग क्या-क्या और क्या बात करते हैं? और बातचीत का रस ऐसा कि शायद ही कोई विषय चाहे धर्म हो या विज्ञान साहित्य हो या भूगोल इतिहास राजनीति सब पर गहरी पकड़ और साधिकार बात करते थे। और बात करने का इतना सुंदर मोहक आकर्षक और प्रभावी शैली कि इनको सुनने का भी अपना एक अलग सुख या मजा था।  इनकी बातों में ज्ञान सूचना और संदर्भों की इतनी प्रामाणिक जानकारी कि  सहसा हैरानी होती थी कि 79 साल में भी ये कितना अध्ययन करके हर तरह से अपटूडेट रहते थे। कहीं भी जाकर किसी भी महफ़िल में छा जाना इनकीऊ विशेषता थी। मिलनसार भी वे इतने थे कि पांचू साल के बालक से लेकर 99 साल के किसी महिला पुरुष के साथ भी खिलखिलाते हुए ग़मगीन माहौल को भी सजीव बना देते थे। वे मेरे लेखन के गंभीर पाठक भी थे। फोन पर भी अक्सर साहित्य को लेकर लंबी लंबी बातें होती रहती थी। उनके प्यार स्नेह का मैं बड़ा पात्र था। मेरा यह ऐसा सौभाग्य कि मुझे देखते ही वे खिल जाते। हालांकि मिलने का संयोग साल में यदा कदा ही मिलता था पर मिलने पर हमलोग पूरा पूरा सदुपयोग करते। ऐसे बहूमुखी व्यक्तित्व के अनोखे अविस्मरणीय अद्भूत और जीवंत ससुर को पाने के सुखद अहसास को शब्दों में बयान करना संभव नहीं।  काफी दिनों से नाना प्रकारेण बीमारियों से जूझने के बाद सबको परास्त कर दिया था। एक विजेता की तरह पहले से और अधिक सेहतमंद होकर उस्तादों के उस्ताद हो गए थे। वाहन को लेकर इतने शौकीन कि मोटरसाइकिल से झारखंड को नापने वाले अपनी कार को न चलाने की वजह से सेल कर दिया। मगर फिर से बेहतर महसूसा करते ही अभी-अभी नयी गाड़ी खरीदी। और नौ दिसंबर को रात 10 बजे किसी शादी समारोह से लौटते ही दो एक दिन में पार्टी का वायदा करके अपने कमरे में गए  और कोई दस मिनट के अंदर ही उनकी सांसे उखड़ने लगी और पलभर में ही इस संसार को अलविदा करते हुए सदा सदा के लिए सबको छोडकर चले गए। रात तीन बजे मेरी नींद टूटी तो वाट्स एप्प पर छोटे भाई का संदेश था। मैने इनसे कितना और क्या क्या पाया यह बताना संभव नहीं है। ऐसे ही अनमोल व्यक्तित्व के पापाजी को खोने का गम है। पूरी विनम्रता के साथ विनम्र श्रध्दांजलि सादर नमन और अंतिम प्रणाम। यादो में आप सदैव जिंदा रहेंगे जिंदाबाद रहेंगे। आपको खोने से मैंने क्या क्या खो दिया। शायद इसकी पीडा मन को हमेशा सालती रहेगी। फिर से विनम्र श्रध्दांजलि।

राधास्वामी
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय राधास्वामी
।।।।।।।।











बुधवार, 6 मई 2020

औरतें केवल औरत नहीं होती है




#वो_कैसी_औरतें_थीं

वो कैसी औरतें थीं
जो गीली लकड़ियों को फूंक कर चूल्हा जलाती थीं
जो सिल पर सुर्ख़ मिर्चें पीस कर सालन पकाती थीं

सुबह से शाम तक मसरूफ़, लेकिन मुस्कुराती थीं
भरी दोपहर में सर अपना ढक कर मिलने आती थीं

जो पंखे हाथ से झलती थीं और बस पान खाती थीं
जो दरवाज़े पे रुक कर देर तक रस्में निभाती थीं
पलंगों पर नफासत से दरी चादर बिछाती थीं

बसद इसरार महमानों को सिरहाने बिठाती थीं
अगर गर्मी ज़्यादा हो तो रुहआफ्ज़ा  पिलाती थीं

जो अपनी बेटियों को स्वेटर बुनना सिखाती थीं
जो "क़लमे" काढ़ कर लकड़ी के फ्रेमों में सजाती थीं

दुआयें फूंक कर बच्चो को बिस्तर पर सुलाती थीं
अपनी जा-नमाज़ें मोड़ कर तकिया लगाती थीं

कोई साईल जो दस्तक दे, उसे खाना खिलाती थीं
पड़ोसन मांग ले कुछ तो बा-ख़ुशी देती दिलाती थीं

जो रिश्तों को बरतने के कई गुर सिखाती थीं
मुहल्ले में कोई मर जाए तो आँसू बहाती थीं

कोई बीमार पड़ जाए तो उसके पास जाती थीं
कोई त्योहार पड़ जाए तो खूब मिलजुल कर मनाती थीं

वो कैसी औरतें थीं.......

मैं जब गांव अपने जाता हूँ तो फुर्सत के ज़मानों में
उन्हें ही ढूंढता फिरता हूं, गलियों और मकानों में

मगर अपना ज़माना साथ लेकर खो गईं हैं वो
किसी एक क़ब्र में सारी की सारी सो गईं हैं वो 😔

जीवन की अनिवार्यता



📍📍📍


*नीचे लिखी सभी बातों को बहुत ध्यान से पढ़िये एवं अपने परिवार के सभी लोगों तक जरूर पहुँचाये ।*

*कुल 5 से 6 महीने इन सभी आदत को अपने जीवन में लाना पड़ेगा।*

*हम सभी परिवार के जिम्मेदार व्यक्ति हैं । अतः  उपयोगी  सावधानियां*

    अगर हम इन बारीक बातों पर ध्यान  देंगे तभी सुरक्षित रह सकते हैं, देखें कितनी बारीक बातें हो सकती है। कोरोना से सावधानी के लिए, *बचना है तो करना ही पड़ेगा ।*

इसे बार बार पढ़िये, यही जीवन है।

 *जैसे*

 *1* --  नोट की अदला बदली करना, थूंक लगाकर नोट गिनने से बचें। वापस आए हुए पैसे को 3 दिनों तक न छुए, जरूरी हो तो प्रेस कर लें ।

 *2*  सब्जी को सलाद के रूप में कच्ची खाने में सावधानी बरते, धनिया, पालक से भी बचें।

 *3* - सब्जी काटते वक़्त  सब्जी फैलाकर न काटे,  जिस बर्तन में सब्जी रखी हो बाद में इन्हीं बर्तनों को, चाकू व हाथ को साबुन से धो ले।

 *4* - बाहर जाकर कहीं भी बेंच पर न बैठे ।  बाहर की हर वस्तु से टकराने से बचें।

 *5* . यदि घर के थोड़े भी बाहर गए हों चाहे टहलने या सब्जी के लिए तो रोड से आकर  अपनें पैरो को व चप्पल को घिसकर सर्फ के पानी से फिर हाथ को साबुन से 20 सेकंड तक बाहर ही धोएँ। रोड पर भी संक्रमण हो सकता है, इसलिए।

 *6* यदि ज्यादा देर तक बाहर गए हो तो  हाथ पैर धोकर सीधे बाथरूम जाकर सभी कपड़े को गर्म पानी में भिगो दे फिर नहा लें ।

 *7* - बाहर जाते वक़्त मोबाइल पन्नी में रखें बाद में  वहीं पन्नी फेंक दें या मोबाइल को बाहर जाते समय न छुए। जरूरी हो तो स्पीकर मोड़ पर बात करें । मोबाइल बड़ा खतरा है, इसलिए बाहर होने पर इसे हाथ न लगाए।

 *8* -  गैस की टंकी व पास-बुक को 4-5 दिन तक न छुए ।

 *9* - किसी से बात करते  हुए मूह से थूक उड़ता ही है इसलिए हमेशा मास्क पहने, दूरी बनाकर बात करे।

 *10* - *मित्र पड़ोसी के साथ ओवर कॉन्फिडेंस में एकजुट होकर पास पास न बैठे।*

 *11* - किसी ने भोजन दिया हो तो रोटी सब्जी को दुबारा गर्म करना न भूले ।

 *12* - गमछा, रुमाल, या मास्क पर बार बार हाथ लगाने से खतरा और ज़्यादा होता है, उसको रोज धोए । मास्क ,गमछा, रुमाल,  एक ही साइट से पहनें । ऊपरी हिस्सा अंदर कभी न आने पाए।

 *13* - बाहर से आई हुई प्रत्येक वस्तु को जल्दी हाथ न लगाए बहुत सी पालीथीन वाली चीजों को सर्फ से अच्छी तरह से धोए या गर्म पानी में खाने वाला सोड़ा डालकर धूप में रखे । **दवाई (रेपर)को तो अवश्य ही साबुन से धोए **
 *14* - सब्जी, फल के ठेले वालों व कचरे की गाड़ी से दूरी बनाएँ।

 *15* - राशन की दुकान पर कोई जाए तो वहां बहुत ही ज्यादा सावधानी रखे ।

 *16-* बाहर जाते समय मास्क व *चस्मे* का उपयोग भी ज्यादा से ज्यादा करे, क्योंकि आख में हाथ लग सकता है ।

 *17* -  3 लेयर के कपड़े के 2- 3 मास्क रखे, उसे बार बार धोए व बदले। *मास्क को बीच  से कभी न छुएं साईट से ही पकड़े*

 *18-*  अपने किचन में मक्खी, काक्रोच, छिपकली, व चूहे न आने दे सभी खाने की हर वस्तु को ढककर रखें व बर्तन दुबारा धोकर युज करे ।

 *19* - घर में बाथरूम में, सीढ़ी पर ध्यान से चले, अभी docter की कमी है ।

 *20* - देर तक सांस रोकने की प्रैक्टिस व अन्य योगा भी करे । गुड अदरक, हल्दी, तुलसी, लोंग, काली मिर्च का उपयोग काडे के रूप में अपने हिसाब से करे ।

 *21-* हींग का व अन्य सभी मसाले का उपयोग खाने में जरूर करें।
     ये सब सावधानी हटी तो बहुत बड़ी दुर्घटना घटी। आपकी ये सब *असावधानियां* पूरे परिवार को ले डूबेंगी । कृपया लापरवाह व *ज्यादा बहादुर न बनें ।* ये बात सभी को बता सकते हैं, समझा सकते है ।

*ये आपका फर्ज है इस वक़्त ।*ये बातें भोजन से भी महत्वपूर्ण है* I  इसे *बार बार पोस्ट* करने में *शर्म न करें,* ये पोस्ट सबके लाईफ की सबसे *महत्वपूर्ण* है ....
🙏🙏🙏🙏🙏

मंगलवार, 5 मई 2020

मनभावन प्रेरणादायी सुंदर मोहक सटीक उक्तियां

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 ☝🏽 *

जब हम सच्चे दिल से*
 *कोशिश करते हैं,*
 *तब परमात्मा भी हमारी सहायता* *करते हैं...

कुदरत भी हमारे अनुकूल वैसा ही वातावरण और*

*परिस्थिति बना देती है।*
 *परमात्मा की दया का हाथ सदा* *हमारे सिर पर होता है,* *चाहे पता हो या न  हो ।*
🙏🏽☝🏽🙏🏽
 🌹सुप्रभात🌹




✍🏻.....
*बात लगाव और एहसास की होती है*    *वरना...*
 *मैसेज तो कंपनी वाले भी कर देते हैं..*
          *🌞सुप्रभात🌞*


*🍃༺꧁꧂༻🍂*


*कुछ सिखाकर ये दौर भी गुजर जायेगा..*
*फिर एक बार हर इंसान मुस्कुराएगा...*
*मायूस न होना मेरे दोस्तों इस बुरे वक़्त से,*
*कल ,आज है और आज , कल हो जाएगा।*.

*”अपना व परिवारजन का ख़याल रखें...घर से बाहर ना निकले

🙏🙏🙏🙏🙏




🌹🌹🌹 *जीवन का सत्य* 🌹🌹🌹

*दिल में "बुराई" रखने से बेहतर है, कि "नाराजगी" जाहिर कर दो ।*

*जहाँ दूसरों को "समझाना" कठिन हो, वहाँ खुद को समझ लेना ही बेहतर है ।*

*"खुश" रहने का सीधा सा एक ही "मंत्र" है, कि "उम्मीद" अपने आपने किसी खास से रखो, सभी से नहीं*.

 *"गिले-शिकवों" का भी कोई "अंत" नहीं है साहिब..!*
*"पत्थरों" को शिकायत ये है कि पानी की मार से टूट रहे हैं हम...!*
                    *और*
*"पानी" का गिला ये है कि पत्थर हमें खुलकर बहने नहीं देते हैं ...!!*


 *🙏�🌺 🌾🌺🙏*




*कठिनाइयां जब आती हैं
तो कष्ट देती हैं,
पर जब जाती हैं तो

 आत्म बल का ऐसा उत्तम उपहार दे जाती है जो उन कष्टों, दुःखों की तुलना में

 हजारों गुना मूल्यवान होता है।*

                *🌹सुप्रभात🌹*




*समय
 जब निर्णय करता है
 तब उसे किसी साक्ष्य की आवश्यकता नहीं पड़ती।*



*⛳✨🙏🏻सुप्रभात🙏🏻✨⛳*




 *उम्र का बढ़ना तो*
                 *दस्तूरे-जहाँ है*
                 *महसूस न करो तो*
                   *बढ़ती कहां है*

                   *उम्र को अगर*
                   *हराना है तो..*
                   *शौक जिन्दा रखिए*
               *घुटने चले या न चले*
               *मन उड़ता परिंदा रखिए*
      *मुश्किलों का आना*
               *'Part of life' है*
    *और उनमें से हँस कर बाहर आना*
                  *'Art of life' है*

🙏🙏 🌹🌹🌹🌹🙏🙏



कामयाब व्यक्ति

 अपने चेहरे पर दो ही भाव रखते हैं l

एक मुस्कराहट, ..मसलों को हल करने के लिए,ll
और दूसरी ख़ामोशी ...मसलों से दूर रहने के लिए ll

                🙏good morning 🙏

ठंडा पानी और गरम प्रेस*

    *कपड़ों की सारी,*
  *सलवटें निकाल देती हैं..,*


*ऐसे ही ठंडा दिमाग और*
    *ऊर्जा से भरा हुआ दिल*
     *जीवन की सारी उलझन*
          *मिटा देते हैं..!!*

  *सुप्रभात*🙏🙏





*ऋतुओं के पन्ने*
*पलट*
*जाने से क्या होगा.*
*हमारे मन का सावन*
*आप सभी के स्नेह व अपनेपन से*
*ही हरा होगा🌱*

*उसको निरंतर बनाये रखिये*

     
          *🙏सुप्रभात🙏*



:

🌷 *शांत मन ही आत्मा की ताकत है, शांत मन में ही ईश्वर विराजते हैं।*
🌷 *जब पानी उबलता है तो हम उसमें अपना प्रतिबिम्ब नहीं देख सकते हैं और शांत  पानी में हम खुद को देख सकते हैं।*
🌷 *ठीक वैसे ही अगर हमारा हृदय शांत रहेगा तो हमारी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को हम देख सकेंगे।*


    🙏 Good morning🙏




*समय कभी विपरीत हो तो धैर्य पूर्वक अच्छे समय  की प्रतिक्षा भगवान स्मरण के साथ करना चाहिए।कर्म फल से भगवान् भी नही बचाते, अत:कर्म के समय सतर्कता जरुरी है।*

        *किसी से भी गलती हो ही जाय ,चाहे वह राजा ही क्यो न हो । नम्रता पूर्वक क्षमा माग लेना चाहिए।जितेन्द्रिय हूं ऐसा अभीमान् मत करो मन मे विषय सूक्ष्मरीति से बैठे है। मौका मिलते ही प्रकट होने लगेगें ।*
   
*सब तरह से शोचनीय ब्यक्ति वह जो समय और सम्पत्ति का दुरुपयोग करता है,जो दुसरो का अहित करता है एवं प्रभु भजन नही करता है।*


 *🌹🙏🙏जय श्री कृष्ण*🙏🙏🌹




: *हँसते हुए लोगो की संगत*,
*इत्तर की दूकान जैसी होती है*,

*कुछ न खरीदो तो भी,*
*रूह तो महका ही देती है*!!
 
    🌹🙏  *सुप्रभात*  🙏🌹


*हम सब एक दूसरे के बिना कुछ नहीं हैं,*
*यही रिश्तों की खूबसूरती है......*

*सुख में सौ मिले, दुख में मिले न एक.....*
*साथ कष्ट में जो रहे साथी वही है नेक....*
       
      *🌷शुभ प्रभात🌷*


*ज़िंदगी में समस्या देने*
*वाले की हस्ती कितनी*
*भी बड़ी क्यों न हो,*
*पर भगवान की "कृपादृष्टि"*
*से बड़ी नहीं हो सकती...!!*

         *🙏🏻🌞सुप्रभात🌞🙏🏻*


*💐💫चार दिन है जि़न्दगी,*
    *हंसी खुशी में काट ले*
     
*💫💐मत किसी का दिल दुखा ,*
        *दर्द सबके बाँटले*
     
*💐💫कुछ नही हैं साथ जाना,*
      *एक नेकी के सिवा,*
     
*💫💐कर भला होगा भला,*
     *गाँठ में ये बांध ले!*
           *🙏🙏सुप्रभात🙏🙏*


राधास्वामी

*ख़ौफ़ ने सड़कों को वीरान कर दिया,*                   
*वक़्त ने ज़िंदगी को हैरान कर दिया*
*काम के बोझ से दबे हर इंसान को,*
*अब आराम के अहसास ने परेशान कर दिया..*



                   *शुभप्रभात*राधास्वामी।
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी
राधास्वामी


सोमवार, 4 मई 2020

संस्कृत के बारे में




*संस्कृत के बारे में रोचक तथ्य*

1. मात्र 3,000 वर्ष पूर्व तक भारत में संस्कृत बोली जाती थी तभी तो ईसा से 500 वर्ष पूर्व पाणिणी ने दुनिया का पहला व्याकरण ग्रंथ लिखा था, जो संस्कृत का था। इसका नाम ‘अष्टाध्यायी’ है।

2. संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (ऋग्वेद) की भाषा है। इसलिये इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।

3. इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।

4. संस्कृत ही एक मात्र साधन हैं जो क्रमशः अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं।

5. संस्कृत अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।

6. संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है संस्कृत एक संस्कृति है एक संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है शांति है सहयोग है वसुदैव कुटुम्बकम् कि भावना है।

7. नासा का कहना है की 6th और 7th generation super computers संस्कृत भाषा पर आधारित होंगे।

8. संस्कृत विद्वानों के अनुसार सौर परिवार के प्रमुख सूर्य के एक ओर से 9 रश्मियां(Beams of light) निकलती हैं और ये चारों ओर से अलग-अलग निकलती हैं। इस तरह कुल 36 रश्मियां हो गईं। इन 36 रश्मियों के ध्वनियों पर संस्कृत के 36 स्वर बने।

9. कहा जाता है कि अरबी भाषा को कंठ से और अंग्रेजी को केवल होंठों से ही बोला जाता है किंतु संस्कृत में वर्णमाला को स्वरों की आवाज के आधार पर कवर्ग, चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, पवर्ग, अंतःस्थ और ऊष्म वर्गों में बांटा गया है।

10. संस्कृत उत्तराखंड की आधिकारिक राज्य(official state) भाषा है।

अरब आक्रमण से पहले संस्कृत भारत की राष्ट्रभाषा थी।

12. कर्नाटक के मट्टुर(Mattur) गाँव में आज भी लोग संस्कृत में ही बोलते हैं।

13. जर्मनी के 14 विश्वविद्यालय लोगों की भारी मांग पर संस्कृत (Sanskrit) की शिक्षा उपलब्ध करवा रहे हैं लेकिन आपूर्ति से ज्यादा मांग होने के कारन वहाँ की सरकार संस्कृत (Sanskrit) सीखने वालों को उचित शिक्षण व्यवस्था नहीं दे पा रही है।

14. हिन्दू युनिवर्सिटी के अनुसार संस्कृत में बात करने वाला मनुष्य बीपी, मधुमेह, कोलेस्ट्रॉल आदि रोग से मुक्त हो जाएगा।

15. संस्कृत में बात करने से मानव शरीर का तंत्रिका तंत्र सक्रिय रहता है। जिससे कि व्यक्ति का शरीर सकारात्मक आवेश के साथ सक्रिय हो जाता है।

16. यूनेस्को(UNESCO) ने भी मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की अपनी सूची में संस्कृत वैदिक जाप को जोड़ने का निर्णय लिया गया है। यूनेस्को(UNESCO) ने माना है कि संस्कृत भाषा में वैदिक जप मानव मन, शरीर और आत्मा पर गहरा प्रभाव पड़ता है।

पढ़िए- वेद, ज्ञान-विज्ञान – The Power Of Vedas

17. शोध से पाया गया है कि संस्कृत (Sanskrit) पढ़ने से स्मरण शक्ति(याददाश्त) बढ़ती है।

18. संस्कृत वाक्यों में शब्दों की किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं। जैसे- अहं गृहं गच्छामि >या गच्छामि गृहं अहं दोनों ही ठीक हैं।

19. नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार जब वो अंतरिक्ष ट्रैवलर्स को मैसेज भेजते थे तो उनके वाक्य उलट हो जाते थे। इस वजह से मैसेज का अर्थ ही बदल जाता था। उन्होंने कई भाषाओं का प्रयोग किया लेकिन हर बार यही समस्या आई। आखिर में उन्होंने संस्कृत में मैसेज भेजा क्योंकि संस्कृत के वाक्य उलटे हो जाने पर भी अपना अर्थ नहीं बदलते हैं। जैसा के ऊपर बताया गया है।

20. संस्कृत भाषा में किसी भी शब्द के समानार्थी शब्दों की संख्या सर्वाधिक है. जैसे हाथी शब्द के लिए संस्कृत में १०० से अधिक समानार्थी शब्द हैं।।।।


😊😊😊😊😊😊😋😶😐😉😗😕

रविवार, 3 मई 2020

यह रामायण है / महाकवि वाट्स एप्प



हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की ,
यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की , यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की
जम्बू द्वीपे ,भरत खंडे , आर्यावर्ते , भरत वर्षे , एक नगरी है विख्यात अयोध्या नाम की

ये ही जन्म भूमि है परम पूज्य श्री राम की ...हम कथा सुनाते राम सकल गुण धाम की

यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की, यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

रघुकुल के राजा धर्मात्मा ,चक्रवर्ती दशरथ पुण्यात्मा ; संतति हेतु यज्ञ करवाया , धर्म यज्ञ का शुभ फल पाया .....

नृप घर जन्मे चार कुमारा ,रघुकुल दीप जगत आधारा ...चारों भ्रतोंके शुभ नाम : भरत शत्रुघ्न लक्ष्मण रामा...

गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल जाके अल्प काल विद्या सब पाके , पूरण हुयी शिक्षा रघुवर पूरण काम की .....यह रामायण है पुण्य कथा श्री राम की

मृदुस्वर , कोमल भावना , रोचक प्रस्तुति ढंग .....एक एक कर वर्णन करे लव -कुश ,राम प्रसंग ;

विश्वामित्र महामुनि राई , इनके संग चले दोउ भाई ; कैसे राम तड़का मारी ,कैसे नाथ अहिल्या तारी ;

मुनिवर विश्वामित्र तब संग ले लक्ष्मण , राम ; सिया स्वयंवर देखने पहुंचे मिथिला धाम ........

लव -कुश :

जनकपुर उत्सव है भारी ,जनकपुर उत्सव है भारी ....

अपने वर का चयन करेगी सीता सुकुमारी .....जनकपुर उत्सव है भारी ,

जनक राज का कठिन प्राण सुनो सुनो सब कोई .....जो तोड़े शिव धनुष को , सो सीता पति होए

जो तोरे शिव धनुष कठोर ;सब की दृष्टि राम की ओर; राम विनाय्गुन के अवतार , गुरुवार की आज्ञा सिरोद्धर ..

सहेज भाव से शिव धनु तोडा ....जनक सुता संग नाता जोड़ा .....

रघुवर जैसा और न कोई ..सीता की समता नहीं होई , जो करे पराजित कांटी कोटि रति -काम की हम कथा सुनाते राम सकल गुणधाम की

यह रामायण है पुण्य कथा सिया - राम की

सब पर शब्द मोहिनी डाली मंत्रमुग्ध भाये सब नर नारी , यूँ दिन रैन जात है बीते लव -कुश ने सब के मनन जीते .....

वन गमन , सीता हरण , हनुमत मिलन , लंका दहन , रावन मरण फिर अयोध्या पुनरागमन .......सब विस्तार कथा सुनाई ;राजा राम भये रघुराई

राम -राज आयो सुख दाई , सुख समृद्धि श्री घर ,घर आई ......

काल चक्र ने घटना क्रम में ऐसा चारा चलाया ,

राम सिया के जीवन में घोर अँधेरा छाया !!

अवध में ऐसा .........ऐसा एक दिन आया निष्कलंक सीता पे प्रजा ने मिथ्या दोष लगाया !! अवध में ऐसा .ऐसा एक दिन आया

चलदी सिया जब तोडके सब स्नेह -नाते मोह के ...पाशन हृदायों में न अंगारे जगे विद्रोह के ,

ममतामयी माओं के आँचल भी सिमट कर रह गए , गुरुदेव ज्ञान और नीति के सागर भी घाट कर रह गये ....

न रघुकुल न रघुकुल नायक , कोई न हुआ सिया का सहायक ...

मानवता को खो बैठे जब सभ्य नगर के वासी , तब सीता का हुआ सहायक वन का एक सन्यासी ....

उन ऋषि परम उदार का वाल्मीकि शुभ नाम , सीता को आश्रय दिया , ले आये निज धाम ..

रघुकुल में कुल -दीप जलाये ..राम के दो सुत ,सिया ने जाए .....

कुश : श्रोता गन , जो एक राजा की पुत्री है , एक रजा की पुत्रवधू है और एक चक्रवाती सम्राट की पत्नी है ,

लव : वोही महारानी सीता , वनवास के दुखो में अपने दिनों कैसे काटती है उसकी करुण गाथा सुनिए

जनक दुलारी कुलवधू दशरथ जी की राज रानी हो के दिन वन में बिताती है ......

रहती थी घिरी जिसे दस - दासी आठो यम ,दासी बनी अपनी उदासी को छुपाती है ...

धरम प्रवीना सती परम कुलीना सब विधि दोष -हिना जीना दुःख में सिखाती है

जगमाता हरी -प्रिय लक्ष्मी स्वरुप सिया कून्टती है धान , भोज स्वयं बनती है ;

कठिन कुल्हाड़ी लेके लकडिया काटती है , करम लिखे को पर काट नहीं पाती है ...

फूल भी उठाना भारी जिस सुकुमारी को था दुःख भरी जीवन वोह उठाती है

अर्धांग्नी रघुवीर की वोह धरे धीर , भारती है नीर , नीर जल में नेहलाती है

जिसके प्रजा के अपवादों कुचक्र में पीसती है चाकी ,स्वाभिमान बचाती है ....

पालती है बच्चों को वोह कर्मयोगिनी की भाति , स्वावलंबी सफल बनती है

ऐसी सीता माता की परीक्षा लेते दुःख देते निठुर नियति को दया भी नहीं आती है ...ओ ...उस दुखिया के राज -दुलारे ...

हम ही सुत श्री राम तिहारे .... ओ ....सीता माँ की आँख के तारे ... ... लव -कुश है पितु नाम हमारे ....

हे पितु भाग्य हमारे जागे , राम कथा कहे राम के आगे .......राम कथा कहे राम के आगे .......

श्री राम का चरण सादर प्रणाम
  जय श्री राम

शुक्रवार, 1 मई 2020

वाट्स एप्प कविताएं




: मैं गाँव हूँ
मैं वहीं गाँव हूँ जिसपर ये आरोप है कि यहाँ रहोगे तो भूखे मर जाओगे।
मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप है कि यहाँ अशिक्षा रहती है
मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर असभ्यता और जाहिल गवाँर का भी आरोप है

हाँ मैं वहीं गाँव हूँ जिस पर आरोप लगाकर मेरे ही बच्चे मुझे छोड़कर दूर बड़े बड़े शहरों में चले गए।
      जब मेरे बच्चे मुझे छोड़कर जाते हैं मैं रात भर सिसक सिसक कर रोता हूँ ,फिरभी मरा नही।मन में एक आश लिए आज भी निर्निमेष पलकों से बांट जोहता हूँ शायद मेरे बच्चे आ जायँ ,देखने की ललक में सोता भी नहीं हूँ
लेकिन हाय!जो जहाँ गया वहीं का हो गया।
मैं पूछना चाहता हूँ अपने उन सभी बच्चों से क्या मेरी इस दुर्दशा के जिम्मेदार तुम नहीं हो?
अरे मैंने तो तुम्हे कमाने के लिए शहर भेजा था और तुम मुझे छोड़ शहर के ही हो गए।मेरा हक कहाँ है?
क्या तुम्हारी कमाई से मुझे घर,मकान,बड़ा स्कूल, कालेज,इन्स्टीट्यूट,अस्पताल,आदि बनाने का अधिकार नहीं है?ये अधिकार मात्र शहर को ही क्यों ? जब सारी कमाई शहर में दे दे रहे हो तो मैं कहाँ जाऊँ?मुझे मेरा हक क्यों नहीं मिलता?

इस कोरोना संकट में सारे मजदूर गाँव भाग रहे हैं,गाड़ी नहीं तो सैकड़ों मील पैदल बीबी बच्चों के साथ चल दिये आखिर क्यों?जो लोग यह कहकर मुझे छोड़ शहर चले गए थे कि गाँव में रहेंगे तो भूख से मर जाएंगे,वो किस आश विस्वास पर पैदल ही गाँव लौटने लगे?मुझे तो लगता है निश्चित रूप से उन्हें ये विस्वास है कि गाँव पहुँच जाएंगे तो जिन्दगी बच जाएगी,भर पेट भोजन मिल जाएगा, परिवार बच जाएगा।सच तो यही है कि गाँव कभी किसी को भूख से नहीं मारता ।हाँ मेरे लाल
आ जाओ मैं तुम्हें भूख से नहीं मरने दूँगा।
आओ मुझे फिर से सजाओ,मेरी गोद में फिर से चौपाल लगाओ,मेरे आंगन में चाक के पहिए घुमाओ,मेरे खेतों में अनाज उगाओ,खलिहानों में बैठकर आल्हा खाओ,खुद भी खाओ दुनिया को खिलाओ,महुआ ,पलास के पत्तों को बीनकर पत्तल बनाओ,गोपाल बनो,मेरे नदी ताल तलैया,बाग,बगीचे  गुलजार करो,बच्चू बाबा की पीस पीस कर प्यार भरी गालियाँ,रामजनम काका के उटपटांग डायलाग, पंडिताइन की अपनापन वाली खीज और पिटाई,दशरथ साहू की आटे की मिठाई हजामत और मोची की दुकान,भड़भूजे की सोंधी महक,लईया, चना कचरी,होरहा,बूट,खेसारी सब आज भी तुम्हे पुकार रहे है।
मुझे पता है वो तो आ जाएंगे जिन्हे मुझसे प्यार है लेकिन वो?वो क्यों आएंगे जो शहर की चकाचौंध में विलीन हो गए।वही घर मकान बना लिए ,सारे पर्व, त्यौहार,संस्कार वहीं से करते हैं मुझे बुलाना तो दूर पूछते तक नहीं।लगता अब मेरा उनपर  कोई अधिकार ही नहीं बचा?अरे अधिक नहीं तो कम से कम होली दिवाली में ही आ जाते तो दर्द कम होता मेरा।सारे संस्कारों पर तो मेरा अधिकार होता है न ,कम से कम मुण्डन,जनेऊ,शादी,और अन्त्येष्टि तो मेरी गोद में कर लेते। मैं इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि यह केवल मेरी इच्छा है,यह मेरी आवश्यकता भी है।मेरे गरीब बच्चे जो रोजी रोटी की तलाश में मुझसे दूर चले जाते हैं उन्हें यहीं रोजगार मिल जाएगा ,फिर कोई महामारी आने पर उन्हें सैकड़ों मील पैदल नहीं भागना पड़ेगा।मैं आत्मनिर्भर बनना चाहता हूँ।मैं अपने बच्चों को शहरों की अपेक्षा उत्तम शिक्षित और संस्कारित कर सकता  हूँ,मैं बहुतों को यहीं रोजी रोटी भी दे सकता हूँ
मैं तनाव भी कम करने का कारगर उपाय हूँ।मैं प्रकृति के गोद में जीने का प्रबन्ध कर सकता हूँ।मैं सब कुछ कर सकता हूँ मेरे लाल!बस तू समय समय पर आया कर मेरे पास,अपने बीबी बच्चों को मेरी गोद में डाल कर निश्चिंत हो जा,दुनिया की कृत्रिमता को त्याग दें।फ्रीज का नहीं घड़े का पानी पी,त्यौहारों समारोहों में पत्तलों में खाने और कुल्हड़ों में पीने की आदत डाल,अपने मोची के जूते,और दर्जी के सिरे कपड़े पर इतराने की आदत डाल,हलवाई की मिठाई,खेतों की हरी सब्जियाँ,फल फूल,गाय का दूध ,बैलों की खेती पर विस्वास रख कभी संकट में नहीं पड़ेगा।हमेशा खुशहाल जिन्दगी चाहता है तो मेरे लाल मेरी गोद में आकर कुछ दिन खेल लिया कर तू भी खुश और मैं भी खुश।


              अपने गाँव की याद मेंl

😥😥😥
                 🙏🙏🙏🙏🙏

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सोनाली बेंद्रे - कैंसर
अजय देवगन - लिट्राल अपिकोंडिलितिस
(कंधे की गंभीर बीमारी)
इरफान खान - कैंसर
मनीषा कोइराला - कैंसर
युवराज सिंह - कैंसर
सैफ अली खान - हृदय घात
रितिक रोशन - ब्रेन क्लोट
अनुराग बासु - खून का कैंसर
मुमताज - ब्रेस्ट कैंसर
शाहरुख खान - 8 सर्जरी
(घुटना, कोहनी, कंधा आदि)
ताहिरा कश्यप (आयुष्मान खुराना की पत्नी) - कैंसर
राकेश रोशन - गले का कैंसर
लीसा राय - कैंसर
राजेश खन्ना - कैंसर,
विनोद खन्ना - कैंसर
नरगिस - कैंसर
फिरोज खान - कैंसर
टोम अल्टर - कैंसर...

ये वो लोग हैं या थे-
जिनके पास पैसे की कोई कमी नहीं है/थी!
खाना हमेशा डाइटीशियन की सलाह से खाते है।
दूध भी ऐसी गाय या भैंस का पीते हैं
जो AC में रहती है और बिसलेरी का पानी पीती है।
जिम भी जाते है।
रेगुलर शरीर के सारे टेस्ट करवाते है।
सबके पास अपने हाई क्वालिफाइड डॉक्टर है।
अब सवाल उठता है कि आखिर
अपने शरीर की इतनी देखभाल के बावजूद भी इन्हें इतनी गंभीर बीमारी अचानक कैसे हो गई।

क्योंकि ये प्राक्रतिक चीजों का इस्तेमाल
बहुत कम करते है।
या मान लो बिल्कुल भी नहीं करते।
जैसा हमें प्रकृति ने दिया है ,
उसे उसी रूप में ग्रहण करो वो कभी नुकसान नहीं देगा।
कितनी भी फ्रूटी पी लो ,
वो शरीर को आम के गुण नहीं दे सकती।
अगर हम इस धरती को प्रदूषित ना करते
तो धरती से निकला पानी बोतल बन्द पानी से
लाख गुण अच्छा था।🙏🙏

आप एक बच्चे को जन्म से ऐसे स्थान पर रखिए
जहां एक भी कीटाणु ना हो।🌹🙏
बड़ा होने से बाद उसे सामान्य जगह पर रहने के लिए छोड़ दो,
वो बच्चा एक सामान्य सा बुखार भी नहीं झेल पाएगा!
क्योंकि उसके शरीर का तंत्रिका तंत्र कीटाणुओ से लड़ने के लिए विकसित ही नही हो पाया।
कंपनियों ने लोगो को इतना डरा रखा है,
मानो एक दिन साबुन से नहीं नहाओगे तो तुम्हे कीटाणु घेर लेंगे और शाम तक पक्का मर जाओगे।
समझ नहीं आता हम कहां जी रहे है।
एक दूसरे से हाथ मिलाने के बाद लोग
सेनिटाइजर लगाते हुए देखते हैं हम।🌹🙏

इंसान सोच रहा है- पैसों के दम पर हम जिंदगी जियेंगे।
आपने कभी गौर किया है--
पिज़्ज़ा बर्गर वाले शहर के लोगों की
एक बुखार में धरती घूमने लगती है।
और वहीं दूध दही छाछ के शौकीन
गांव के बुजुर्ग लोगों का वही बुखार बिना दवाई के ठीक हो जाता है।
क्योंकि उनकी डॉक्टर प्रकृति है।
क्योंकि वे पहले से ही सादा खाना खाते आए है।
प्राकृतिक चीजों को अपनाओ!
विज्ञान के द्वारा लैब में तैयार
हर एक वस्तु शरीर के लिए नुकसानदायक है!

पैसे से कभी भी स्वास्थ्य और खुशियां नहीं मिलती।।

आइए फ़िर से_  चलें
*प्रकृति की ओर...🌹🌹


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