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शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

भारत के खिलाफ विदेशी शक्तियां रच रहीं साजिश

दस कलमाड़ी + एक राजा = शरद पवार

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गोविंद गोयलराजनीति की चटर पटर और बात का बतंगड़ : क्या यह संभव है कि कोई मंत्री, किसी विभाग का मुखिया सीएमओ को महत्व ना दे! ऐसा नामुमकिन नहीं तो मुश्किल बहुत है। आरपीएस की तबादला लिस्ट के बाद इस प्रकार की चटर-पटर कई जगह सामने आई। कुछ समय पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और गृह मंत्री शांति धारीवाल के बीच दूरी या वैचारिक, राजनीतिक मतभेद थे। तब सीएमओ की लिस्ट ही विभाग की तबादला सूची होती थी। जनप्रतिनिधि सीएमओ में डिजायर भेजते। इन दिनों दोनों में सम्बन्ध सामान्य है। इसलिए सीएम आम तौर पर डिजायर सीधे गृहमंत्री को देने का संकेत करते थे। फिर भी मुख्यमंत्री को गृह विभाग से सम्बंधित डिजायर मिलती ही रही। सीएमओ ने किसकी सिफारिश की किसकी नहीं की। यह तो वही जाने। मगर बहुत सी डिजायर का परिणाम नहीं निकला। इस वजह से चर्चा ये होने लगी कि गृह मंत्री सीएमओ की सिफारिश की अधिक परवाह नहीं करते।
अब डीजीपी और गृहमंत्री में खटपट की खुसर-फुसर है। दोनों एक दूसरे की बात पर कभी कभी कान नहीं धरते। फ़िलहाल जिसकी डिजायर के माफिक नियुक्ति नहीं हुई उनको सीएम के पास जाने को कहा जाता है। वहां तक जाने की हिम्मत कम ही करेंगे। यही तो वे चाहते हैं। तभी तो बड़े अफसर कई स्थानों पर अपने प्यादे फिट करने में सफल हो जाते हैं। हालाँकि इस प्रकार की खटपट को कोई साबित नहीं कर सकता। लेकिन कार्यप्रणाली से कहाँ, क्या और क्यूँ हो रहा है इसका अंदाजा जरुर लग जाता है।
ये तो पहले सोचते : बीएसपी छोड़ कांग्रेस का पल्लू पकड़कर मंत्री बने विधायक बेबस हैं। ऐसे ही एक मंत्री ने बैठक में सीएम से कहा कि उसके इलाके में छह क़त्ल हो गए। बार-बार कहने के बावजूद सीआई नहीं बदला गया। दूसरे मंत्री ने कहा कि दौरे के समय कांग्रेस के दफ्तर खुले नहीं मिलते। असली कांग्रेस का मंत्री बोला, तो अपने दफ्तर में चले जाया करो। इस ताने पर दलबदलू मंत्री को ताव आ गया। आइन्दा हम अपने दफ्तर में ही रुका करेंगे, वह बोला। बैठक के बाद उनको कई शुभचिंतकों ने बताया कि अपना घर छोड़ने का क्या नुकसान होता है। मंत्री तो हैं परन्तु चलने चलाने को तो राम जी का नाम ही है।
बात का बतंगड़ : कृषि विपणन मंत्री गुरमीत सिंह कुनर के लिफ्ट में फंसने की खबर ने खासकर इस इलाके में खूब पाठक बटोरे। असल में तो कोई बात ही नहीं थी। श्री कुनर अपने एक अधिकारी के साथ लिफ्ट में दाखिल हुए। लिफ्ट मैन तो था ही। एक मंडी समिति का अध्यक्ष आ गया जो बीजेपी का था। लिफ्ट का बटन दबाया वह चली नहीं। लिफ्ट मैन ने यह कहकर कि वजन अधिक है अध्यक्ष को लिफ्ट से बाहर कर दिया। लिफ्ट फिर भी ऊपर नहीं उठी। लिफ्टमैन खुद भी निकल आया। श्री कुनर ने एक, दो मिनट बटन दबाया, लिफ्टमें कोई हरकत नहीं हुई। श्री कुनर बाहर आ गए। हाँ लिफ्ट में फंसने की खबर छपने के बाद श्री कुनर के पास शुभचिंतकों के फोन बहुत आए। इसके अलावा जो भी उनको मिलता यही सवाल करता, लिफ्ट में कैसे फंस गए? किसी को बता देते किसी के सामने बस मुस्करा कर रह जाते।
अब एक एसएमएस : भेजने वाले का नाम नहीं पता। सन्देश है : एक करोड़ को कहते हैं एक खोखा। पांच सौ करोड़ को एक कोड़ा। अब एक हजार करोड़ का मतलब है एक राडिया। दस हजार करोड़ अर्थात एक कलमाड़ी। एक लाख करोड़ को एक राजा। दस कलमाड़ी प्लस एक राजा बराबर एक शरद पवार।

भारत के खिलाफ विदेशी शक्तियां रच रहीं साजिश

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देहरादूनविदेश शक्तियां भारत को कमजोर करने की साजिश रच रही हैं। ऐसी शक्तियों की साजिशें कहीं आतंकवाद कहीं नक्सलवाद और कहीं माओवाद के रूप में सामने आ रही हैं। ऐसी शक्तियों में चीन प्रमुख है। चीनी ड्रैगन आज हमारे देश के लिए सबसे बड़ा खतरा है। चीन हमारी सीमाओं पर बसे जनजातीय और आदिवासी समाज में घुसपैठ कर उनकों देश के खिलाफ बरगला रहा है और उन्हें भारत के खिलाफ हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। ये कहना है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह सुरेश राव उपाख्य भैयाजी जोशी का। श्री जोशी शनिवार को राजधानी देहरादून के झांझरा स्थित बनवासी कल्याण आश्रम में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय जनजाति सम्मेलन एवं युवा महोत्सव को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।
भारत में जनजातीय और आदिवासी समाज के इतिहास पर प्रकाश्‍ा डालते हुए श्री जोशी ने कहा कि भारतीय आदिवासी समाज का इतिहास गौरवशाली इतिहास रहा है। उन्होंने कहा कि जनजातीय समाज ने प्राचीन काल से ही देशभक्ति का उदाहरण प्रस्तुत किया है। इस समाज ने हर समय अन्याय और अत्याचार का दमन किया है। चाहे मुगल सल्तनत रही हो या फिर अंग्रेजों की गुलामी का काल, इस समाज ने सबसे जमकर लोहा लिया। छत्रपति शिवाजी महाराज और फडके जी जैसे देशप्रेमियों को इस समाज ने जो मदद की वह इतिहास में दर्ज है।
उन्होंने कहा कि भारत की परंपरा कभी भी शोषण की नहीं रही है। और इस समाज में शोषण को बर्दास्त करना भी अपराध माना जाता है। लेकिन इस सीधे-साधे समाज का आज जिस तरह से शोषण किया जा रहा है वह चिंतनीय है। उन्होंने कहा कि इस देश के खिलाफ शत्रुओं की साजिश हमेशा चलती रहती है। लेकिन इसके साथ ही इस देश की जनता शत्रुओं की साजिशों से हमेशा लड़ती रहती है। लेकिन आज ये लड़ाई और गंभीर हो गई है। आज कहीं पर आतंकवाद तो कहीं पर नक्सलवाद व माओवाद ने अपने पांव पसारे हैं। उन्होंने कहा कि इन विदेशी शक्तियों की सफलता के पीछे हमारे ऐसे समाजों के दुर्बल व्यक्तियों की कमजोरी भी मददगार है। जिसका लाभ उठाकर विदेशी शक्तियां अपने कार्य को अंजाम दे रही हैं। उन्होंने कहा कि चीन का प्रतीक ड्रैगन है और वह कहीं न कहीं प्रकट हो कर अनिष्ट करता रहता हैं।
चीन हमारी सीमाओं पर बसे आदिवासी व जनजातीय समाज को बरगलाकर सीमाओं में घुसपैठ करने का प्रयास कर रहा है। आज नक्सलवादियों, माओवादियों व आतंकियों का कोई  सिद्धान्त नहीं रह गया है। वे भी ऐनकेन प्रकारेण सत्ता पाना चाहते र्है और यही कारण है कि आज वे नक्सलवाद की आड़ में सत्ता की लड़ाई लड़ रहे हैं। हमारे देश का आदिवासी जनजातीय समाज इनके कुचक्र का शिकार हो गया है। आज की सबसे बड़ी जरूरत इस समाज की इन शक्तियों से रक्षा करना है। आज सोचने का समय है कि दलित आदिवासी और हरिजन शब्दों के प्रयोग से समाज में खाई बढ़ रही है या घट रही है। इन क्षेत्रों में काम करने वाले संगठनों को इस पर विचार कर एकजुट होने की जरूरत है। सभी को इन साजिशों को समझ कर एकजुट होकर खड़ा होना होगा और अपनी अपनी भूमिकाओं को समझना पड़ेगा। राजनीतिक कटुता ने देश का बहुत नुकसान किया है इसलिए आज राजनीतिक संकुचन से हट कर विदेशी शक्तियों को मुंहतोड जवाब देने वाले अन्तःकरण के निर्माण की आवश्‍यकता है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए विशिष्ठ अतिथि के तौर पर मौजूद छत्तीसगढ के राज्यसभा सांसद नन्द कुमार साय ने देश की सबसे अधिक प्राकृतिक संपदा जनजातीय और आदिवासी समाज के पास है, लेकिन उनको इसका कोई लाभ नहीं मिलता जिससे उस समाज में आक्रोश का संचार होता है। उन्होंने कहा कि सामाजिक आर्थिक और शैक्षणिक रूप से अत्यन्त पिछड़ा होने के चलते इस समाज को लगातार छला जाता है। पेशा कानून के तहत आदिवासी समाज की जमीन को कोई नहीं खरीद सकता है, लेकिन इसके विपरीत इनकी जमीनों को पूंजीपतियों और सरकारों द्वारा लगातार छीना जा रहा है।
उन्होंने कहा कि 80 के दशक में नक्सलवादी मानवाधिकारवादी कार्यकर्ता के रूप में छत्तीसगढ़ में घुसे थे और धीरे-धीरे उन्होंने वहां की जनता को बरगलाकर शासन और प्रशासन के खिलाफ खड़ा कर दिया। आज उस प्रदेश में स्थिति कितनी जटिल हो गई है, इसका अंदाजा इससे समझा जा सकता है कि तीन भाई हैं, एक पुलिस वाला है, दूसरा सलवा जुडुम का कार्यकर्ता है तो तीसरा नक्सलवादी है। अब इन तीनों में संघर्ष होगा तो कोई न कोई एक तो मरेगा, लेकिन कोई भी मरे नुकसान तो पूरे परिवार का ही होगा। यही स्थिति आज पूरे नक्सली क्षेत्र में देखने को मिल रही है।
श्री साय ने कहा आदिवासी समाज में नक्सलवादी और आतंकी घटनाओं के घटने का सबसे बड़ा कारण अशिक्षा और गरीबी के साथ-साथ सरकारों की लापरवाही भी है। उन्होंने कहा कि विकास की आपाधापी में इस समाज के साथ जो अन्याय होता है उसका परिणाम नक्सलवाद के रूप में सामने आता है। उन्होंने कहा कि बड़े-बड़े बांधों के निर्माण से आदिवासी समाज की बड़ी जनसंख्या विस्थापित होती है। लेकिन इस विस्थापित जनसंख्या का क्या होता है ये किसी को मालूम नहीं। आखिर ये विस्थापित कहां गए इसका पता लगाने की जरूरत क्यों नहीं समझी जाती। उन्होंने कहा कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ऐसी घटनाओं के बढ़ने में धर्म परिवर्तन भी एक बड़ा कारण है। धर्म परिवर्तन होने से आतंकवाद जैसी घटनाओं में बढ़ोतरी हो जाती है। हमारे आदिवासी क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों की प्रचुरता होती है लेकिन उसका लाभ हमें मिलने की बजाय उसे कोई और ही लूट ले जाता है। आदिवासी समाज को कुछ भी नहीं मिलता है।
श्री साय ने कहा कि जब तक आदिवासी समाज को नेतृत्व का अधिकार, शिक्षा, समानता और आर्थिक आजादी नहीं दी जाती तब तक नक्सलवाद की लड़ाई जीतना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण सरगुजा है जहां हमने पुलिस, पब्लिक और प्रशासन को एक साथ खड़ा कर नक्सलवाद को जड़ से उखाड दिया है। आज सरगुजा पूरे देश में नक्सलवाद से निपटने के तौर तरीकों का सबसे बड़ा उदाहरण हैं।
सम्मेलन को संबोधित करते हुए दिल्ली से आए रक्षा विशेषज्ञ एवं पूर्व थलसेना उपाध्यक्ष पीवीएसएम लेफ्टिनेंट एनएस मलिक ने कहा कि आज नक्सलवाद के कारणों पर सोचने की सख्त जरूरत है। हमें सोचना होगा कि आखिर इस समस्या की जड़ कहां है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में बैठकर नगालैंड, असम और छत्तीसगढ की आदिवासी जनता के लिए नीतियां बनाना बहुत आसान है लेकिन उन नीतियों को क्रियान्वित करना बहुत मुश्किल है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों को लगता है कि दिल्ली में योजनाएं बनाकर हम पर थोप दी जाती हैं। इन्‍हें लगता है कि दिल्ली वाले सिर्फ अपने हितों को ध्यान में रखकर ही योजनाएं बनाते हैं। ये लोग चाहते है उनके लिए बनने वाली योजनाओं के निर्माण में उनकी भी भागीदारी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि नक्सलवादियों का कोई धर्म और सिद्धान्त नहीं है और उनका एक ही उद्देश्‍य सत्ता प्राप्त करना रह गया है। जिसका सबसे बड़ा उदाहरण नेपाल है जहां माओवादियों ने सत्ता पर कब्जा कर लिया।
श्री मलिक ने कहा कि आतंकवाद का आर्थिक पिछड़ेपन से कोई लेना-देना नहीं है। आतंकवाद के पीछे विदेशी ताकतें ही महत्वपूर्ण होती हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में जहां आतंकवाद-उग्रवाद और माओवाद के पीछे चीन है, वहीं दक्षिण राज्यों में फैले नक्सलवाद और माओवाद के पीछे नेपाल का बड़ा हाथ है। लेकिन हमारा दुर्भाग्य है कि हम इन खतरों को भांपते तो रहते हैं लेकिन समय से उनसे बचने का उपाय नहीं करते। उन्होंने कहा कि नक्सलियों को शिक्षा से डर लगता है इसीलिए वे शिक्षा संस्थानों को नष्ट करते रहते हैं। 2008-09 में इन लोगों ने 1700 से ज्यादा शिक्षा संस्थानों को नष्ट कर दिया। उन्होंने कहा कि इन पर नियंत्रण के लिए सबसे कारगर उपाय है लोकल पुलिस। लोकल पुलिस और प्रशासन अगर मिलजुल कर कार्य करें तो इनकी साजिशों को विफल किया जा सकता है। उन्होंने चीन को देश के सबसे बड़े संकट के तौर पर चिन्हित करते हुए कहा कि उसने आज रेड कॉरिडोर में प्रवेश कर लिया है जो भारत के लिए खतरे की घंटी है। उन्होंने नक्सलवाद के विकास में मजहब और राजनीति को भी मददगार बताया।
सम्मेलन में पिथौरागढ के मुनिस्यारी से आए आदिवासी नेता कुन्दन सिंह टोलिया ने कहा कि काली नदी का उद्गम लिपुपास से होता है। जिसके दायीं तरफ नेपाल है और बाईं तरफ उत्तराखंड है। उन्होंने कहा कि ये सीमा पूरी तरह से खुली हुई है। हालांकि इसकी सुरक्षा के लिए केन्द्र सरकार ने गोरखपुर से नेपाल बॉर्डर तक एसएसबी लगा रखी है। लेकिन यहां की सुरक्षा को और पुख्ता करने के लिए स्थानीय लोगों को भी इंटेलीजेंस में रखा जाना चाहिए। इसके साथ ही जो लोग लिपुपास से नेपाल व्‍यवसाय के लिए जाते हैं उनसे भी इंटेलीजेंस का काम लिया जा सकता है और ये पता लगाया जा सकता है कि नेपाल में किस तरह की गतिविधियां चल रही हैं। उन्होंने कहा कि बेरोजगारी के चलते सीमाओं पर पलायन की गति तेज है। जिससे सीमाएं वीरान हो रही हैं और संकट बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए जोशीमठ, मुनिस्यारी और धारचूला में ही सरकार को जडी-बूटियों के शोधन और औषधि निर्माण की इकाई लगाई जानी चाहिए जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके।
सम्मेलन में विशेषतौर पर पधारे पद्मश्री अनिल जोशी ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि देश की जनजातियों और आदिवासियों के पास प्राकृतिक संसाधन का सबसे बड़ा खजाना है, लेकिन विडंबना है कि इसका कोई लाभ उन्हें नहीं मिल पाता है। उन्हें सिर्फ शोषण और अन्याय ही मिलता है। जिसके कारण आजादी के 60 सालों बाद भी यह समाज विकास की मुख्यधारा से दूर है। उन्होंने कहा कि भले ही हमें आजादी मिले 60 साल हो गए लेकिन आर्थिक रूप से हम आज भी गुलाम हैं। उन्होंने कहा कि देश के विकास में इस समाज का अमूल्य योगदान है लेकिन आर्थिक विसंगति ने इन्हें शोषित और पीडि़त बना रखा है। उन्होंने कहा कि आज हमें इस समाज के पिछड़ेपन पर गंभीरता से विचार करने की आवश्‍यकता है। जिन संसाधन के बीच हम पैदा हुए हैं, उन्हीं संसाधनों के आधार पर विकास की योजनाएं बनाने की जरूरत है। उन्होंने इस सम्मेलन के आयोजन के लिए सांसद तरूण विजय को धन्यवाद भी दिया और कहा कि देवभूमि उत्तराखंड से शुरू हुई इस बहस का जरूर कोई सार्थक परिणाम निकलेगा।
सम्मेलन को विशिष्ठ अतिथि के तौर पर संबोधित करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार के गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने कहा कि हमें सोचना चाहिए कि आखिर क्यों नक्सलवादी आदिवासी और जनजातीय क्षेत्रों में ही पनपते हैं। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में गरीबी है लेकिन फिर भी पलायन बिल्कुल नहीं है। लेकिन शिक्षा का अभाव और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से लोगों में आक्रोश पनपता है, जिससे के परिणाम ठीक नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि इन क्षेत्रों में नक्सलवाद को बढ़ावा देने में तथाकथित मानवाधिकारवादी कार्यकर्ताओं की भी भूमिका अहम है। उन्होंने कहा कि बस्तर का आदमी जिला न्यायालय तक नहीं पहुंच सकता, लेकिन ये मानवाधिकारवादी सुप्रीमकोर्ट तक पहुंच कर सलवा जुडुम को गलत साबित करने में पूरी ताकत लगा देते हैं। इससे सरकार का मनोबल गिरता है और नक्सलवाद पर नियंत्रण लगाने में बाधा महसूस की जाती है। उन्होंने कहा कि अब धीरे-धीरे इन क्षेत्रों की जनता इनकी साजिशों को समझने लगी है और जल्द ही इनसे छुटकारा मिल जाएगा।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के अध्यक्ष जगदेवराम उरांव ने कहा कि इस समाज में जो समस्याएं हैं वो दूर होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं। हमें गंभीरता से विचार करना चाहिए कि आखिर वो कौन से कारण हैं जो इसे खत्म नहीं होने दे रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज ये समाज अपने अस्तित्‍व और अस्मिता के लिए लड़ रहा है। जबकि हम उसे विकास की मुख्य धारा में जोड़ने की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि यह समाज तब तक विकास की मुख्यधारा में नहीं आ सकता जब तक कि उसको उसकी अस्मिता और अस्तित्‍व की लड़ाई की चिंता से मुक्त नहीं कर दिया जाता है।
कार्यक्रम को आरएसएस के प्रांत संघचालक उत्तराखंड चंद्रपाल सिंह नेगी ने भी संबोधित किया। जबकि कुन्दन सिंह टोलिया ने मुख्य अतिथि भैयाजी जोशी को ब्रह्मकमल भेंट किया। भैयाजी जोशी ने समाजसेवी कुशलपाल सिंह को शाल देकर सम्मानित किया। विधायक विकास नगर कुलदीप कुमार और सहसपुर राजकुमार ने भैयाजी जोशी को शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया।  कार्यक्रम का संचालन क्रमश: भाजपा के सांसद व राष्ट्रीय प्रवक्ता तरूण विजय, विधायक राजकुमार और अजय जोशी ने किया। जबकि विश्‍वसंवाद केन्द्र के गिरीशजी ने एकल गायन और जौनसार बावर के प्रसिद्ध रंगकर्मी नन्दलाल भारती ने सांस्कृतिक प्रस्‍तुतियां देकर लोगों का मनमोह लिया।
इस दौरान आरएसएस के क्षेत्र प्रचारक शिवप्रकाश, प्रान्त प्रचारक महेन्द्र, प्रान्त कार्यवाह शशिकांत दीक्षित, सहप्रांत कार्यवाह लक्ष्मीप्रसाद जायसवाल, कैबिनेट मंत्री मातबर सिंह कंडारी, विधायक गणेश जोशी, राष्ट्रीय जनजाति आयोग के पूर्व अध्यक्ष दिलीप सिंह भूरिया, अखिल भारतीय वनवासी कल्याण आश्रम के सहमंत्री कृपा प्रसाद सिंह, वनवासी कल्याण आश्रम दिल्ली के अध्यक्ष शिवकुमार कौल, छत्तीसगढ़ के पंचायत मंत्री रामविचार नेताम, सांसद सुदर्शन भगत, छत्तीसगढ़ के मंत्री केदार कश्‍यप, मंत्री विमला प्रधान, कुलपति दुर्गसिंह चौहान, डा. देवेन्द्र भसीन, डा. प्रभाकर उनियाल, विजय स्नेही, रामप्रताप साकेती, मेयर विनोद चमोली, धीरेन्द्र प्रताप सिंह, भाजपा प्रदेश प्रवक्ता सतीश लखेड़ा, दीप्ति रावत, पुष्कर सिंह धामी समेत बड़ी संख्या में मंत्रीगण, सांसद, विधायक समेत क्षेत्रीय जनता उपस्थित रही।
देहरादून से धीरेन्‍द्र प्रताप सिंह की रिपोर्ट.
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