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शुक्रवार, 25 मार्च 2011

प्रेमचंद-मीडिया-पत्रकारिता तीन खंड पत्रकार प्रेमचंद को पढ़ते हुए (भाग-3)

प्रेमचंद की पत्रकारिता भाग-3
की भूमिका

पत्रकार प्रेमचंद की सार्थकता


कल 24 मार्च को हमारे प्रकाशक ...(पूरा नाम.....राघव जी ) का फोन आया कि प्रेमचंद की पत्रकारिता 1200 पेज से ज्यादा हो गया है, लिहाजा आप आकर इसे देखे और इसे या तो 900 पृष्ठों में समेटे या दो खंड़ को तीन खंड़ों में करे। सारा मैटर लगभग पूरी तरह तैयार है, बस आप कोई फैसला करके इसे फौरन फाईनल करे। मेरे लिए बड़ी दुविधा आ खड़ी हो गई। मुझे एक सप्ताह के लिए बाहर जाना है, मगर राघवजी कोई बहाना मानने को राजी नहीं थे। वे खुद पिछले सात माह से इस किताब को लेकर परेशान है। पहले इसे आठ अक्टूबर 2010 को प्रेमचंद के निधन के 75 साल पूरा होने के अवसर पर लाना चाह रहे थे, जो किसी कारणवश साकार नहीं हो पाया। वाकई प्रेमचंद की रचनाओं के साथ रहते हुए काम करना बेहद कठिन सा है। प्रकाशक के फोन आने के बाद एक बार फिर उसी रचना संसार में जाने का मेरा मन नहीं कर रहा था। मगर मजबूरी थी। लिहाजा तमाम कठिनाईयों और ज्यादातर सामग्री लुप्त हो जाने के बावजूद साहित्य सम्राट प्रेमचंद द्वारा पत्रकारिता के क्षेत्र में किए गए उल्लेखनीय रपटों टिप्पणियों,आलेखों, समीक्षा, विश्लेषण, तथा समसामयिक हालात काम से हैरानी होती है। पूरी दुनिया पर प्रेमचंद की पैनी नजर और सबसे अलहदा रपटों को देखकर यह बार बार सोचने के लिए मन लाचार हो जाता है कि यदि वे केवल पत्रकार होते तो पता नहीं क्या करते ? वे एकदम कमाल के थे। जहां विचारो की कोई कमी नहीं थी।
जब पत्रकार प्रेमचंद को लेकर काम करना आरंभ किया गया था। तब इसे दो खंडों में समायोजित करने की योजना थी। मगर, जब इनकी पत्रकारिता के मूल्यांकन की बारी आई, तो हमें एक साथ इतनी सामग्री मिली कि हम लगभग अवाक रह गए। पत्रकारिता में उल्लेखनीय सामग्री चयन करने की जब बारी आई, तो किसे रखा जाए या किसे छोड़ा जाए ?  यह एक बड़ी दुविधा बन गई। पत्रकारिता के जिस काम को आज तक उल्लेखनीय तक नहीं माना गया उन्हीं रचनाओं को उनके दिवगंत होने के 75 साल के बाद देखना, पढ़ना और मूल्यांकन करना एक रोमाचंक अनुभव सा लग रहा है।
 भारी मन से इसे तीन भागों में बांट तो दिया गया, मगर खबर है भी और खबर नहीं भी है की तर्ज पर प्रेमचंद की 100 से भी ज्यादा उन छोटी छोटी रपटो, टिप्पणियों या कमेंट्स को चाह कर भी हम यहां पर नहीं ले सके है। जिसको देखकर घटना विशेष पर प्रेमचंद के नजरिए को देखना मुमकिन नहीं हो पाया। उन चुटीली टिप्पणियों में एक अलग प्रेमचंद सामने आते हैं. जो ना केवल एक सजग पत्रकार थे, अपितु एक सार्थक सामाजिक प्रवक्ता के रूप में भी अपनी छाप प्रकट करते है।
समय समाज,सत्ता संघर्ष, स्वराज, स्वाधीनता दमन, संग्राम और इनसे पीस रही जनता की पीड़ा को प्रेमचंद ने सामने रखा है। उनकी नजर से ना कोई दलित, महिला अभावग्रस्त समाज बाकी रहा और ना ही कोई क्रूर जालिम जमींदार या फिरंगी फौज की दमनकारी  नीतियां ही  बच पाई। एक पत्रकार के रूप में वे हमारी उम्मीदों से भी बड़े और महान और कालजयी पत्रकार के रूप में उभरते है। इस पहचान को सर्वमान्यता की जरूरत है। ताकि हिन्दी समेत पूरा साहित्य समाज प्रेमचंद को एक तेजस्वी पत्रकार की पत्रकारिता को देख देख कर अपने आपको धन्य माने। पत्रकार प्रेमचंद को लेकर कमसे कम दो और पुस्तकों की योजना चल रही है।
पिछले एक दशक में जापान और भारत श्रीलंका मे सुनामी के ज्वार से लाखों लोगों की बर्बादी और तबाही का खतरनाक मंजर अभी तक यादों में है। पत्रकार प्रेमचंद ने 1934 में बिहार में आए प्रलंयकारी भूकंप और जान माल की तबाही को जो चित्र खींचा है। इस मार्मिक रपट को पढ़कर आज की तबाही, के खतरनाक मंजर का सहज में अंदाजा लगाया जा सकता है। एक पत्रकार के रूप में प्रेमचंद पर बहुत सारी बातें की जा सकती है, मगर यहां पर इस चर्चा को विराम लगाने की बजाय इसे और तेज करना ही मेरा लक्ष्य है। देखना है कि क्या आज के मीडिया वार एज में प्रेमचंद कितना और किस तरह नए रूप में स्वीकार पाना क्या सहज होगा?
अपने तमाम पाठकों से पत्रकार प्रेमचंद पर प्रतिक्रिया और बेबाक राय विचारों की  आवश्यकता है, ताकि बाद के संस्करणों में आपके विचारों को भी समायोजित किया जा सके।
अनामी शरण बबल
25 मार्च 2011
ए-3/ 154 एच ,मयूर विहार फेज तीन
दिल्ली-110096
011-22615150,
09868568701,09312223412











प्रेमचंद की पत्रकारिता ----1

भाग 1 के  फ्लैप का मैटर


पत्रकार प्रेमचंद। क्या प्रेमचंद को पत्रकार कहना,कोई गुनाह  है? यदि नहीं तो फिर हिन्दी साहित्य के कथा सम्राट और महान उपन्यासकार प्रेमचंद को पत्रकार कहने पर बहुतों को आपत्ति क्यों होने लगती है?  प्रेमचंद के नाम पर वे लोग हैं जिन्होंने आजतक प्रेमचंद की महानता का बखान करते-करते प्रेमचंद के साहित्य के अलावा उनके अन्य लेखन को कभी प्रकाश में लाने की पहल ही नहीं की। शोध और मूल्यांकन के नाम पर संपूर्ण रचनात्मकता को ही गलत सांचे में ढालने का काम किया है। शायद इसे एक गंभीर अपराध की श्रेणी में भी रखा जाए तो किसी को आज आपति नहीं होगी। शोध और आलोचना की गलत अवधारणा की वजह से ही प्रेमचंद जैसे समर्थ और कालजयी पत्रकार को आज तक एक पत्रकार और उनकी पत्रकारिता में किए योगदान का समग्र विश्लेषण को लेकर तथाकथित  आलोचकों, विद्वानों, शोधाथिर्यों समेत समीक्षकों में पता नहीं वह कौन सी गलत धारणा इस तरह पैठ गई कि प्रेमचंद को एक प्रत्रकार की तरह देखने की कभी किसी ने कोई पहल ही नहीं की। यहां पर यह सवाल भी जरूर उठना चाहिए कि हिन्दी के तथाकथित विद्वानों ने प्रेमचंद को एक पत्रकार की तरह भी देखने का साहस या प्रयास क्यों नहीं किया?

अनामी शरण बबल








प्रेमचंद की पत्रकारिता ----2

फ्लैप मैटर
 भाग-2

कथाकार और उपन्यासकार प्रेमचंद की विराट पहचान से अलग अब एक पत्रकार प्रेमचंद को देखने की आवश्यकता है। पत्रकार प्रेमचंद यदि आज हमारे बीच जीवित है तो इसके लिए अमृतराय से भी ज्यादा उन लोगों के प्रति हमें कृतज्ञ होना चाहिए जिन्होंने पत्रकार प्रेमचंद की ख्याति और रचनात्मक थाती को  संभालकर सालों तक सुरक्षित रखा। अमृतरायजी  ने लिखा भी है कि‘‘मुंशी जी‘‘ के इस खजाने की तरफ किसी का भी ध्यान नही गया था, और शायद मेरा भी ध्यान इस ओर कभी नहीं जाता। अगर मुंशी जी की प्रामाणिक जीवनी लिखने के तकाजों ने उसे मजबूर नहीं किया होता उन सब चीजों की छानबीन की। जिसे मुंशी जी ने जब -तब और जहां -तहां लिखी। पुरातत्व विभाग की इसी खुदाई में ही यह खजाना हाथ लगा। यह लगभग 1600 पृष्ठों की सामग्री थी। अमृतराय ने पत्रकार प्रेमचंद की लगभग लुप्त और दफन हो गयी इन रचनाओं को सहेजने और सुरक्षित रखने का  श्रेय लखनऊ और अलीगढ़ विश्वविधालय को दिया है। उर्दू के मशहूर आलोचक  प्रो. एहतेशाम हुसैन और डॉक्टर कमर रईस को दिया है। मौलाना मोहम्द अली, इम्तयाज अली ताज के और हमदर्द पत्रिका के प्रति भी आभार जताया है। इन लोगों के  सार्थक प्रयासों से ही प्रेमचंद की अधिकांश रचनाएं करीब 25-28 साल के बाद भी सुरक्षित मिली। हिन्दी में लिखी रचनाएं पंडित विनोद शंकर व्यास जी के जरिये ही प्राप्त हो सकी। व्यास जी के काम और संरक्षण से अभिभूत अमृतराय जी ने लिखा भी हैं, कि उनके सहयोग और सविनय से ही प्रेमचंद का यह तेजस्वी पत्रकार का रूप हिन्दी संसार के सामने प्रस्तुत करना संभव हो पाया। पत्रकार प्रेमचंद को सामने लाने के पीछे महादेव साहा और कोलकाता में गहन खोज बीन और तलाश के बाद दर्जनों रचनाएं उपलब्ध कराने वाले श्री नाथ पांडेय जी के प्रति भी अमृत राय ने भाव विभोर होकर आभार जताया है।

अनामी शरण बबल

प्रेमचंद की पत्रकारिता ----3
फ्लैप मैटर
भाग-3
सचमुच, आज जो कुछ भी कहीं भारत या इंडिया में हो रहा है वह करीब 100 साल पहले ही भांप चुके प्रेमचंद की नजर से बाकी नहीं रहा था, मगर इतने बुरे हाल की कल्पना तो शायद हमारे प्रेमचंद ने भी नहीं की थी, कि अपना भारत यानी इंडिया इतना महान निकलेगा। उन्होनें उन तमाम संकटो, समस्याओ के प्रति हमें आगाह भी किया था।
एक पत्रकार के संदर्भ में देखे तो सामाजिक भेदभाव, छुआछूत,जातिवाद, दहेज, अशिक्षा मंदिर में दलित प्रवेश आदि पर तो वे एक सौ साल जो पहले लिखा था। बस समय, समाज, संदर्भ और इलाके के नाम भर बदलकर हमारे सामने इस तरह की घटनाएं हमेशा सामने रही है। विख्यात साहित्यकार दिवंगत अमृतलाला नागर ने प्रेमचंद के बारे में लिखा भी है कि प्रेमचंद से पहले तक सदा राजे महाराजे राजकुमार, जमींदार और कुलीनों से नीचे वाला कोई पात्र कथानायक के सिंहासन पर कभी नहीं बैठ पाया था। भारतीय समाज में पहली बार प्रेमचंद के सूरे, घीसू, होरी, सिलिया, पठानी,या गबन का नायक चुंगीक्लर्क जैसे सामान्य से सामान्य पात्र ही कथानायक बनकर उभरे। नागर कहते हैं कि जीवन के जिस यथार्थ को प्रेमचंद ने पहचाना और साहित्य एंव पत्रकारिता में स्थापित किया, वह एक तरह से उनका  समाज में अनेक प्रकार से भोगा गया अपना यथार्थ था। निम्न मध्यवर्ग के ग्रेजुएट प्रेमचंद खेती क्लर्की प्रधान हिन्दी भाषी इलाके का सबसे सटीक प्रतीक बन गया। साहित्य पर प्रेमचंद के प्रभाव ने यह सिद्ध किया है कि जबतक भारत देश संपंन्न नहीं हो जाता, तब तक उनके साहित्य का नायकत्व दीनहीन,दलित, और संघर्षशीलनर नारी के हाथों में ही रहेगा।
प्रेमचंद ने अपने देशनायकों को पहचाना और उसके  सबसे बड़े चितेरे बन गए। प्रेमचंद की पत्रकारिता का मूल स्वर भी सामाजिक सरोकारों से लबरेज है। दिवंगत नागर लिखते भी है कि प्रेमचंद लोकमानस के अनोखे पारखी थे। वे हमारी वह निधि है, जिस पर हम हमेशा गर्व करते रहेंगे। यहीं हाल यही व्याख्या एक पत्रकार प्रेमचंद की भी होनी चाहिए, क्योंकि  पत्रकार प्रेमचंद ने साहित्. से इतर पत्रकारिता में जो नयी शैली और नजरिया आरंभ किया था उसकी आज सबसे ज्यादा आवश्यकता है।
प्रेमचंद को एक पत्रकार की तरह देखना मेरा कोई धर्म नही है। बस आज के समय में प्रेमचंद का मूल्यांकन एक पत्रकार के रूप में भी होना चाहिए बस केवल यही मेरा मकसद है।

अनामी शरण बबल

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