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बुधवार, 31 अगस्त 2011

यमुना किनारे यमुना संग एक सप्ताह




मन ना माने मन की बात / हरदम बह जाए मन के साथ
मन निराला मन मतवाला मन का नहीं कोई ऱखवाला
यमुना तेरा रूप निराला, तेरी आभा तेरी धार दूर दूर तक केवल रफ्तार
आगरा की भीड़ भाड़ से दूर यमुना नदी के किनारे यमुना पंप के किनारे एक सप्ताह का बसेरा। जहां पर यह कहा जाए कि दुनियां की खबरें केवल छन छन कर आ रही थी तो भी कोई हर्ज  नहीं। यमुना नदी को यदि यही एक दो माह छोड़ दे तो दिल्ली में यमुना सड़े हुए नाले की तरह दिखती रही है। मगर यहां पर तो यमुना की जवानी रवानी धार ऱफ्तार देखकर तो लगता ही नही है कि हम उसी यमुना के पास है, जिसके लिए मन में ना भाव है ना ही कोई चाव है।
मगर आगरा के इसी यमुना कोदेखकर मेरा मन मयूर नाच उठा। अपने टेंट वाले कमरे में  गप्प शप्प के बीच भी कलरव करने की बजाय बेकल बेकाबू दूर दूर तक आर्तनाद करती यमुना की आवाज मुझे हमेशा लुभाती और मैं सुबह दोपहर शाम यमुना किनारे कुएं पर खड़ा होकर उसकी प्यास बेकली सबको अपने साथ ले जाने की पागलपन को देखता रहता। पानी के खेल में रोजाना उतरती और चढ़ती यमुनाको देखना भाता। पल पल रंग और रूप बदलती यमुना की आभा में गजब का सिंगार लगता। कभी पास बुलाने का मनुहार लगता कभी नेह निमंत्रण तो कभी देह निमंत्रण सा लगता। उसकी धार के साथ प्यार भरा आमंत्रण मानो यमुना में समाहिता होने का दे रहा था निमंत्रण।
 मैं भीकब तलक रूक पाता इसके सामने। मेरे मन में भी उठने लगा सुनामी महसूस होने लगा मानो मैं भी उतरकर उसमें अपना रूप अपनी ताकत वल शौर्य कला और सौंदर्य से रोक दूं उसकी विह्वलता। होकर साकार उसमें हो जाउं समाहित। लेकर अंगड़ाई रोक दूं नदी की बेकली। बुझा दूं और सबकुछ मिटा देने की अनबुझ प्यास, फिर शांत कर दूं यमुना की ज्वाला। दूर खड़ा मैं उसके किनारे महसूस कर रहा हूं,. मानो तेज धार और लहरों के बीच मैं खड़ा होकर कर रहा हूं मंगल प्रतिवाद। तेज थपेड़ों और अपने में मिलाने मिटाने  अंगीकार कर लेने की बेताबी बेकली के साथ  वो ले जाना चाहती है दूर दूर बहुत दूर तक अपने लिए अपना बनाकर अपनी धार में रफ्तार में प्यार में करके गिरफ्तार। हमेशा के लिए अपना बनाकर।
मैं भी हार सा रहा था इस बार उस बेकाबू बेजार धार केसमीप. सदियों से विह्वल और बेताबी से करती रही संहार। आज मन मे भी किसी बाल गोपाल सा बांध देने की लालसा जागी। मेरे भीतर मानो फन उठाकर कालिया जागने लगा हो। करने संहार और टीस देकर  उसको पीने की करने लगा हो कोशिश. लगा मानो उसके संग उतराता धार में कभी होकर पस्त बह जाता साथ साथ तो कभी मैहोकर सवार रोकने में सफल हो जाता उसकी बेचैनी को। कभी होकर समाहित उसके संग धार में खो जाता तो कभी लगता मानो आनंद तृप्ति सुख संतोष समर्पण से होकर आतुर लबरेज एकाएक बाहर निकलता उसकी ठंड़ी जल मगन शीतल कोमल आगोश से। एक सप्ताह तक रोजरोज मानो करता रहा उसके संग रास लीला। अठखेलियों के साथ करता उसकोतंग।लगता मानो उसने भी अपना मानकर,अपना बनाकर सबकुछ सहती रही, झेलती रही खेलती रही मेरे संग संग होकरमचलती उछलती कूदती रहीमेरे अंग अंग को करके सराबोर करती रही भरती रही तरंग उमंग।
ना जाने कैसै और कब बीत चला एक सप्ताह का प्रवास। उदास सा मैं खड़ा किनारे लेना चाह रहा था विदाई। लगा मानो पानी के उतार से उदास है मेरी यमुना। धार में रफ्तार में नरमी आ गई थी। शांत होकर कलरव करती मानो होकर उदास दे रही हो फिर आने के भावबिह्वल निमंत्रण के साथ विदाई। कह रही हो मानो लोग आते है देखकर चले जाते है, मगर तुमने किया मेरे संग संवाद तेरा आना तेरी लीला मुझे भी लगा प्रिय। शांतदेखकर मेरा मन होकर विह्वल होचाहे जो विनाश हो, पर तेरे रंग रूप के निराले की आभा तेरा सौंदर्य मुझे हमेशा भाता और लुभाता है।
जाने से एक दिन पहले फिर चढने लगी यमुना। दिल्ली और हरियामा की बारिश ने फिर से भर दी हो जान। मेरे जैसे ही और की टेंटो मे रह रहे हरियाणा डेढगांवा पंजाब यूपी और दिल्ली के टेंटों के भीतर पानी आ गया।केवल राजस्थानी लोगों ने टेंट के चारो तरफ पहले ही गड्ढा बनाकर यमुना को रोक दिया था। दयालबाग के निर्मल रासलीला के दरवाजे को पार करते ही यमुना नदी का तट दिखता। एक तरफ दूर से ताजमहल के गुबंद मानो बाय करता हुआ दिखता.तो दूसरी तरफ रोजाना यमुना मेरे भीतर आती और अपने संग ले जाती। प्यार से दुलार कर . आखिरी दिन चढाव के बाद भी पानी की धार को देखने मैं चला। एक तरफ दिल्ली जाने की बेकली के बाद भी यमुना को देखने और विदा लेने का लोभ नहीं छोड पाया। देखते ही मानो वह बोल पड़ी। लोग आते है और छोड़ जाते है बहुत कुछ।मगर तुम हो जो छोड़ कर जा रहे हो अपनी छाप। बादलों के अपने प्रेमी से मिलने की बेताबी और पागल रफ्तार के नीचे यमुना भी मानो मेरे भीतर उतर कर मुझे अपने लायक अपने ढंग से बनाकर ले चलना चाह रही हो बांहो में भरकर निगाहों में बसाकर दूर रहकर भी शायद अपना बनाकर.
फिर आने की लालसा के साथ लौट रहा हूं तो रास्ते भर आती रही यमुना की याद जो इस बार मन में बस गई मन में उतर गई मानो हमेशा-हमेशा के लिए।










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