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शनिवार, 17 दिसंबर 2011

'खोजी पत्रकारिता ने जान ली'





शहज़ाद

पाकिस्तान के दो पत्रकारों ने सैयद सलीम शहज़ाद को श्रद्धांजलि दी है.इन दोनों का कहना है कि सलीम शहज़ाद एक खोजी पत्रकार थे और उनकी सनसनीख़ेज ख़बर पाकिस्तान के खुफ़िया विभाग में हलचल मचा देती थी और शायद इसी वजह से उनकी जान गई.

हसन मंसूर,एएफ़पी संवाददाता,कराची

मुझे सलीम शहज़ाद से अपनी पहली मुलाक़ात अच्छी तरह से याद है.
मैं उनसे कराची में वर्ष 1995 में मिला था. मैंने उस समय एक प्रसिद्ध समाचारपत्र, दी स्टार में नई-नई नौकरी पकड़ी थी.
मेरे, दी स्टार में आने के चंद दिनों बाद ही शहज़ाद ने भी वहीं नौकरी पकड़ ली थी.
वह उस समय दुबले पतले हुआ करते थे, उनकी छोटी दाढ़ी थी, बिखरे हुए बाल और खोजी आंखे थीं. वह एक सस्ती जीन्स पहने हुए थे और उनकी शर्ट पसीने से भरी हुई थी.
हम पत्रकार एक गोलाकार टेबल के चारों ओर बैठे हुए थे और शहज़ाद ने अपना परिचय देते हुए कहा था,"मैं सलीम शहज़ाद हूं और मैंने अभी ज्वाइन किया है."


हम अगले पांच या छह साल तक अलग-अलग मेहनताने पर काम करते रहे और हमारी तनख़्वाह इस बात पर निर्भर करती थी कि संपादक हमारी रिपोर्ट अख़बार के लिए इस्तेमाल करेगें या नहीं
हमने सभी अच्छे बुरे दिन एक साथ झेले.
अगर किसी दिन मेरी कोई कहानी पहले पन्नें पर छप जाती तो शहज़ाद मुझसे मांग करता और मैं उसे सिगेरट दे देता.
हमारी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी फिर भी हम एक दूसरे से हंसी मज़ाक करते रहते थे.
अभावों के बावजूद हम दोनों ने दो महीनों के अंतराल में वर्ष 1997 में शादी कर ली.
सलीम में झगड़ने की प्रवृति थी लेकिन बिना वजह वह ऐसा नहीं करते थे.
दी स्टार में सबसे पहले उन्हें स्थानीय रिपर्टिंग की बीट थमाई गई जिसके तहत उन्हें कराची इलेक्ट्रिक सपलाई कंपनी यानि केईएससी में जो कुछ हो रहा है उसकी रिपोर्टिंग का काम सौंपा गया.
लेकिन अन्य पत्रकारों की तरह वह कभी भी केईएससी के वक्तव्य पर विश्वास नहीं करते थे बल्कि वह ग्रिड स्टेशन के चारों ओर घुम कर कुछ अलग ख़बर निकालने की कोशिश करते थे.
शहज़ाद ने केईएससी के भीतर हो रहे भ्रष्टाचार पर ख़बर छापी. इससे उन्हें न केवल केईएससी के अधिकारियों ने परेशान करना शुरु कर दिया बल्कि अख़बार प्रबंधन ने भी उनके लिए मुशिकलें खड़ी करनी शुरु कर दी.
कई महीनों तक न्यूज़ डेस्क ने उनकी ख़बर चलाने से मना कर दिया जिसकी वजह से उनकी आर्थिक स्थिति कमज़ोर होती गई.
लेकिन जब अख़बार का संपादक बदला तो उनकी स्थिति में बदलाव आया और उन्होंने शहज़ाद को काम करने की खुली छूट दे दी.
इसके बाद उन्होंने कहा था," मुझे अब काम करने की आज़ादी है और अब मैं गलत लोगों के ख़िलाफ़ ख़बरे छाप सकता हुं. "
ये अक्खड़पन उनके चरित्र में शामिल था और यही शायद उनके अंत का कारण बना.
2001 में उन्होंने एशिया टाइम्स ऑनलाइन में नया काम शुरु किया.
ग्रिड
शहज़ाद को दी स्टार में केईएससी में जो कुछ हो रहा है उसकी रिपोर्टिंग का काम सौंपा गया.
इस बीच मैंने भी एएफपी न्यूज़ एजेंसी की नौकरी कर ली.
इसके बाद हम लोग बहुत कम ही मिलते थे लेकिन यदा-कदा मुलाक़ात हो जाती थी.
लेकिन दो साल पहले जब वह इस्लामाबाद चले गए तब से हमारी मुलाक़ात नहीं हो पाई.
मुझे पता था कि उन्होंने पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान में चरमपंथी संगठनों के अंदर काफ़ी पैठ बना ली है और तभी मुझे लग रहा था कि वह किन समस्याओं को अपने पास बुला रहे है.
कुछ साल पहले जब दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ने उन्हें अग़वा कर लिया था उस समय ' दी स्टार' के प्रबंधन ने शहज़ाद की जान बचाने में बड़ी अहम भूमिका निभाई थी.
पाकिस्तानी खुफ़िया एजेंसी के साथ उलझना शायद उनके अक्खड़पन रवैये का आख़िरी सबूत था.
वह यक़ीनन पाकिस्तान के सबसे बेहतर पत्रकारों में से एक नहीं थे, लेकिन किसी भी ग़लत चीज़ के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने के मामले में उनका कोई मुक़ाबला नहीं था.
मैं सोचता हूं कि काश उन्हें पता होता कि आप हमेशा नहीं जीत सकते.

अरमान साबिर,बीबीसी उर्दू

"अगर वह आपकी रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया नहीं देते तो इसका मतलब ये है कि वह आपको अग़वा करने की योजना बना रहे है. "
यहीं बात शहज़ाद ने अपने एक मित्र पत्रकार से अपने अग़वा होने के एक दिन पहले कही थी.
शहज़ाद से मेरी मुलाक़ात नब्बे के दशक में हुई थी जब वह एक न्यूज़ एजेंसी के लिए काम कर रहे थे.
उस समय तक वह एक जाने-माने पत्रकार बन चुके थे, हालांकि ज़्यादातर उनकी कहानियां कराची मे स्थानीय अपराध पर होती थीं जो शाम को प्रकाशित होने वाले अख़बार दी स्टार में छपती थी.
आप से उनकी चंद मिनटों की ही मुलाक़ात आपको ये विश्वास दिलाने के लिए काफ़ी थी कि उन्हें पत्रकार के तौर पर अभी तक अपनी "बड़ी कहानी " नहीं मिली है.
और जब तक वह कहानी उन्हें नहीं मिल जाती वह आराम से नहीं बैठगें.
दुनिया भर के सैकड़ों अन्य पत्रकारों की तरह उन्हें भी अपना ब्रेक 9/11 से मिला.
एक हॉगकॉग की न्यूज़ वेबसाइट,एशिया टाइम्स ऑनलाइन के लिए उन्होंने 'आतंकवाद' के ख़िलाफ़ लड़ाई पर रिपोर्टिंग शुरु की जिसके बाद ही लगा कि उन्हें अपनी ज़िंदगी का मक़सद मिल गया है.
काबूल से लेकर बग़दाद तक क्या हो रहा है शहज़ाद यह सारी ख़बरें रखना चाहता था और ज्यादा कुछ समय नहीं हुआ था कि मैंने सुना कि वह अपने अनुवादक के साथ अफ़ग़ानिस्तान में कहीं ग़ायब हो गए.
कई दिनों तक हमें उनके बारे में कोई जानकारी नहीं मिल पाई लेकिन बाद में वह अचानक क्वेटा में नज़र आए.
लेकिन वह इन दिनों कहा ग़ायब रहे, इस बारे में उन्होंने हमे ज़्यादा जानकारी नहीं दी.
वह एक ऐसे इंसान थे जो ये कभी नहीं सोचते थे कि ,वह एक ख़बर के लिए कहीं फंस भी सकते है और न ही इस बारे में बात करना पसंद करते थे.
कई सालों तक अल-क़ायदा और उससे जुड़ी संस्थाओं पर रिपोर्टिंग करने के बाद वह इस नतीजे पर पहुंचे थे कि 9/11 ने पाकिस्तान की सेना में वैचारिक स्तर पर मतभेद पैदा कर दिया है.
मई महीनें के तीसरे हफ़्ते में उन्होंने अपने इस विचार को विस्तृत तरीक़े से एक वेबसाइट, 'दी रीयलन्यूज़ डॉट कॉम' को एक वीडियो साक्षात्कार में बताया था.
शायद इसीलिए पाकिस्तान की शक्तिशाली खुफ़िया एजेंसी ,आईएसआई से उन्हें धमकियां मिलना एक मामूली बात हो गई थी.
एक बार शहज़ाद ने मज़ाक में कहा था कि आईएसआई में काम करने वाले एक कर्नल ने उन्हें फ़ोन कर कहा था, "हमें तुम्हारे ख़िलाफ़ लंबे समय से शिकायत नहीं मिली है इसलिए मैं चाह रहा हुं कि मैं तुम्हें चाय पर बुलाऊ. "
कुछ ही दिन पहले शहज़ाद की किताब, 'इन्साइड अल-क़ायदा एंड दी तालिबान' प्रकाशित हुई थी जिसमें उन्होंने अपने विचारों को खुले तौर पर पेश किया है.
शहज़ाद के दोस्तों के मुताबिक़ उनकी दूसरी किताब भी अल-क़ायदा की रणनीति पर है जो बहुत जल्दी बाज़ार में आने वाली है.
उनसे अक्सर पूछा जाता था कि उनके परिवार में दो छोटे बेटे और एक बेटी होने के बावजूद वह ख़तरा क्यों मोल लेते है, इसके जवाब में वह सिर्फ़ मुस्कुरा देते थे.

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