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बुधवार, 30 अप्रैल 2014

यादों की गली ले जाएगा गूगल





प्रस्तुति- निम्मी नर्गिस , अभिषेक रस्तोगी
         वर्धा,


गूगल का डिजिटल मैप आपको यादों की गली में ले जाने को तैयार है. अब ऐसे मानचित्र बन रहे हैं, जो आपको अलग अलग वक्त के दौर की तस्वीरें दिखाएंगे. गूगल की इस पहल को मील का पत्थर माना जा रहा है.
गूगल के स्ट्रीट व्यू पर हर महीने एक अरब विजिटर आते हैं. इसी में अब ऐसे ऑप्शन होंगे कि अलग अलग वर्षों के चित्र देखे जा सकते हैं. गूगल अपनी खास कारों से स्ट्रीट व्यू के लिए तस्वीरें लिया करता है. गूगल प्रोडक्ट मैनेजर विनय सेठ का कहना है, "वक्त के साथ कई तस्वीरें खास पुरानी याद बन जाएंगी. हम पूरे विश्व का एक डिजिटल आईना बनाना चाह रहे हैं और इस दिशा में हमारे मैप बहुत विस्तृत होंगे."
गूगल मैप में यह सारी सुविधा मुफ्त होगी. कैलिफोर्निया के माउंटेन व्यू की यह कंपनी अपना ज्यादातर राजस्व इश्तिहार से निकालती है, लिहाजा यूजरों के लिए कोई दिक्कत नहीं होने वाली है. गूगल स्ट्रीट व्यू के पास 2007 से ही तस्वीरें हैं और इस तरह सिर्फ सात सालों में हुए बदलावों पर ही नजर डाली जा सकेगी. लेकिन इस दौरान भी दुनिया के कई हिस्सों में अजीबोगरीब बदलाव आए हैं. मिसाल के तौर पर जापान के तोहोकू में मार्च 2011 में आए भूकंप के बाद की तस्वीरें उससे पहले की तस्वीरों से बिलकुल अलग दिख रही हैं.
दूसरी तरफ कैटरीना तूफान से उबर रहे अमेरिकी प्रांत न्यू ऑरलींस में तस्वीर बेहतर होती जा रही है. वॉशिंगटन डीसी में दिख रहा है कि किस तरह से हावर्ड थियेटर की मरम्मत का काम चल रहा है.
गूगल के नए फीचर में शहर के प्रमुख जगहों की ज्यादा तस्वीरें शामिल की जाएंगी और इसके लिए गूगल की खास कारें इन इलाकों में ज्यादा से ज्यादा बार दौरा करेंगी. समझा जाता है कि स्ट्रीट व्यू में अगले दो दिन में तस्वीरें दोगुनी हो जाएंगी. दुनिया भर के 55 देशों की तस्वीरें स्ट्रीट व्यू में शामिल हैं. हालांकि गूगल यह नहीं बताता है कि इन तस्वीरों की संख्या कितनी है.
जर्मनी और स्विट्जरलैंड में रहने वाले इस खास फीचर का इस्तेमाल नहीं कर पाएंगे, जहां के कानून गूगल को पुरानी तस्वीरों का इस्तेमाल नहीं करने देंगे. जबकि दक्षिण अफ्रीका में तकनीकी गड़बड़ी की वजह से ऐसा नहीं किया जा सकेगा. इस फीचर के तहत तस्वीर के साथ एक छोटी सी घड़ी स्ट्रीट व्यू में नजर आएगी, जिस पर क्लिक करके अलग अलग वक्त की तस्वीरों को देखा जा सकेगा.
गूगल का कहना है कि तस्वीरों में जो लोग होते हैं, उनके लिए यह बहुत मायने रखती है. लेकिन उन लोगों के लिए यह मुसीबत साबित हो सकती है, जो खुद को तस्वीरों में नहीं देखना चाहते हैं. अब जो लोग चाहते हैं कि उनके चेहरे नहीं दिखें, वे गूगल से संपर्क कर सकते हैं और उसके बाद उनके चेहरों को ब्लर कर दिया जाता है.
एजेए/एमजे (एपी)

सोमवार, 28 अप्रैल 2014

भारतीय रमेश अग्रवाल को मिला ग्रीन नोबेल






प्रस्तुति - निम्मी नर्गिस, अमित कुमार
वर्धा

वह शख्स रमेश अग्रवाल के छोटे से इंटरनेट कैफे में घुसा और रिवॉल्वर भिड़ा कर बोला, "बहुत बोलते हो." रमेश जब तक कुछ बोलते, वह दो गोली दाग कर मोटरसाइकिल से फरार हो गया. गोलियां पैर को छलनी कर गईं.
कोई दो साल पहले हुए इस हमले के पीछे एक कहानी है. अग्रवाल के मुकदमा करने के बाद छत्तीसगढ़ के गांव में जिंदल स्टील और पावर लिमिटेड का कांट्रैक्ट रोक दिया गया था. करीब एक दशक से अग्रवाल गांव वालों को कानूनी मदद दे रहे हैं और बता रहे हैं कि किस तरह पर्यावरण को बचाया जा सकता है. उन्होंने बड़ी कंपनियों के खिलाफ तीन मुकदमे जीते हैं और सात अभी अदालतों में हैं.
फिर निशाना बनूंगा
योग में महारथ रखने वाले अग्रवाल का कहना है, "जब मैंने यह संघर्ष शुरू किया, तो मुझे पता था कि मुझे निशाना बनाया जाएगा. यह दोबारा भी होगा. होने दीजिए. मैं कहीं नहीं जा रहा हूं." गोली लगने के बाद उन्हें चलने में दिक्कत होती है और छड़ी का सहारा लेना पड़ता है.
Kohle Indien कोयला खदान में लगा मजदूर
लेकिन उनके संघर्ष का नतीजा है कि 60 साल के रमेश अग्रवाल को इस साल सैन फ्रांसिस्को में गोल्डमैन इनवॉयरमेंटल पुरस्कार के लिए चुना गया, जिसे "ग्रीन नोबेल" भी कहते हैं. छह लोगों को दिए जाने वाले इस पुरस्कार में 1,75,000 डॉलर की इनामी राशि दी जाती है. कैलिफोर्निया जाने से पहले उन्होंने कहा, "यह मेरे जीवन में सबसे बड़ा पड़ाव है. लेकिन यह मुझे दुखी भी करता है कि विदेश में बैठा कोई आदमी, जिसे मैं जानता तक नहीं, वह कुछ करने को तैयार है और यहां लोगों को पता ही नहीं कि हमारा काम क्या है."
अग्रवाल के अलावा अमेरिका की वकील हेलेन स्लॉटये, दक्षिण अफ्रीका के डेसमंड डीसा, पेरू की रूथ बोएंडिया, रूस की सूरेन गाजार्यन और इंडोनेशिया के रूडी पुत्रा को भी ग्रीन नोबेल के लिए चुना गया.
बढ़ी जागरूकता
भारत में कार्यकर्ता, वकील और विश्लेषकों का कहना है कि सैकड़ों छोटे बड़े अभियानों से भारत में पर्यावरण को लेकर लोगों का नजरिया बदल रहा है. नई दिल्ली में पर्यावरणविद ऋत्विक दत्ता का कहना है, "लोगों में विश्वास बढ़ रहा है और वे आपा खो रहे हैं. ये लोग कोई जमी जमाई संस्था के लोग नहीं हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आंदोलन कर रहे हों. ये तो आम लोग हैं, जो रोजमर्रा की जिंदगी से परेशान हो चुके हैं."
कुछ ही दिन पहले मध्य प्रदेश में एक गांव के लोगों ने नदी के बीचों बीच भूख हड़ताल की थी, जिसे मीडिया ने काफी प्रचारित किया था. हिमाचल प्रदेश में सेब उपजाने वाले किसान बांध बनाने वालों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. अग्रवाल का कहना है, "आम तौर पर लोग कह देते हैं कि बड़े लोगों से आप नहीं भिड़ सकते हैं. लेकिन जब हमने एक दो केस जीतने शुरू किए, लोगों में भरोसा जगा और उन्हें इस देश में भी भरोसा हुआ."
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गुरुवार, 24 अप्रैल 2014

काशी कथा




प्रस्तुति / अमित मिश्रा
वर्धा
वाराणसी का मूल नगर काशी था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, काशी नगर
की स्थापना हिन्दू भगवान शिव ने लगभग
५००० वर्ष पूर्व की थी, जिस कारण ये आज
एक महत्त्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। ये हिन्दुओं
की पवित्र सप्तपुरियों में से एक है। स्कंद
पुराण, रामायण एवं महाभारत सहित
प्राचीनतम ऋग्वेद सहित कई हिन्दू
ग्रन्थों में नगर का उल्लेख आता है।
सामान्यतया वाराणसी शहर को कम से
कम ३००० वर्ष प्राचीन
तो माना ही जाता है। नगर मलमल और
रेशमी कपड़ों, इत्रों, हाथी दांत और
शिल्प कला के लिये व्यापारिक एवं
औद्योगिक केन्द्र रहा है। गौतम बुद्ध (जन्म
५६७ ई.पू.) के काल में,
वाराणसी काशी राज्य
की राजधानी हुआ करता था। प्रसिद्ध
चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने नगर
को धार्मिक, शैक्षणिक एवं कलात्मक
गतिविधियों का केन्द्र बताया है और
इसका विस्तार गंगा नदी के किनारे ५
कि.मी. तक लिखा है।
अनुक्रम
1 विभूतियाँ
2 प्राचीन काशी
2.1 अतिप्राचीन
2.2 महाभारत काल
2.3 उपनिषद काल
2.4 महाजनपद युग
3 काशी नरेश और रामनगर
विभूतियाँ
काशी में प्राचीन काल से समय समय पर
अनेक महान विभूतियों का प्रादुर्भाव
या वास होता रहा हैं। इनमें से कुछ इस
प्रकार हैं:
महर्षि अगस्त्य
धन्वंतरि
गौतम बुद्ध
संत कबीर
अघोराचार्य बाबा कानीराम
लक्ष्मीबाई
पाणिनी
पार्श्वनाथ
पतञ्जलि
संत रैदास
स्वामी रामानन्दाचार्य
शंकराचार्य
गोस्वामी तुलसीदास
महर्षि वेदव्यास
वल्लभाचार्य
प्राचीन काशी
मुख्य लेख : काशी का इतिहास
गंगा तट पर
बसी काशी बड़ी पुरानी नगरी है। इतने
प्राचीन नगर संसार में बहुत नहीं हैं।
हजारों वर्ष पूर्व कुछ नाटे कद के साँवले
लोगों ने इस नगर की नींव डाली थी।
तभी यहाँ कपड़े और चाँदी का व्यापार
शुरू हुआ। कुछ समय उपरांत पश्चिम से आये ऊँचे
कद के गोरे लोगों ने उनकी नगरी छीन
ली। ये बड़े लड़ाकू थे, उनके घर-द्वार न थे, न
ही अचल संपत्ति थी। वे अपने को आर्य
यानि श्रेष्ठ व महान कहते थे।
आर्यों की अपनी जातियाँ थीं, अपने कुल
घराने थे। उनका एक राजघराना तब
काशी में भी आ जमा। काशी के पास
ही अयोध्या में भी तभी उनका राजकुल
बसा। उसे राजा इक्ष्वाकु का कुल कहते थे,
यानि सूर्यवंश। काशी में चन्द्र वंश
की स्थापना हुई। सैकड़ों वर्ष काशी नगर
पर भरत राजकुल के चन्द्रवंशी राजा राज
करते रहे। काशी तब आर्यों के पूर्वी नगरों में
से थी, पूर्व में उनके राज की सीमा। उससे
परे पूर्व का देश अपवित्र
माना जाता था।
आर्य
महाभारत पूर्व मगध में राजा जरासन्ध ने
राज्य किया और
काशी भी उसी साम्राज्य में समा गई।
आर्यों के यहां कन्या के विवाह स्वयंवर के
द्वारा होते थे। एक स्वयंवर में पाण्डव और
कौरव के पितामह भीष्म ने काशी नरेश
की तीन पुत्रियों अंबा, अंबिका और
अंबालिका का अपहरण किया था। इस
अपहरण के परिणामस्वरूप काशी और
हस्तिनापुर की शत्रुता हो गई। महाभारत
युद्ध में जरासन्ध और उसका पुत्र सहदेव
दोनों काम आये। कालांतर में
गंगा की बाढ़ ने
पाण्डवों की राजधानी हस्तिनापुर
को डुबा दिया, तब पाण्डव वर्तमान
इलाहाबाद जिला में यमुना किनारे
कौशाम्बी में नई राजधानी बनाकर बस
गए। उनका राज्य वत्स कहलाया और
काशी पर मगध की जगह अब वत्स
का अधिकार हुआ।
उपनिषद काल
इसके बाद ब्रह्मदत्त नाम के राजकुल
का काशी पर अधिकार हुआ। उस कुल में बड़े
पंडित शासक हुए और में ज्ञान और पंडिताई
ब्राह्मणों से क्षत्रियों के पास पहुंच गई
थी। इनके समकालीन पंजाब में कैकेय
राजकुल में राजा अश्वपति था।
तभी गंगा-यमुना के दोआब में राज करने
वाले पांचाल में राजा प्रवहण जैबलि ने
भी अपने ज्ञान का डंका बजाया था।
इसी काल में जनकपुर, मिथिला में
विदेहों के शासक जनक हुए, जिनके दरबार में
याज्ञवल्क्य जैसे ज्ञानी महर्षि और
गार्गी जैसी पंडिता नारियां शास्त्रार्थ
करती थीं। इनके समकालीन काशी राज्य
का राजा अजातशत्रु हुआ। ये आत्मा और
परमात्मा के ज्ञान में अनुपम था। ब्रह्म और
जीवन के सम्बन्ध पर, जन्म और मृत्यु पर, लोक-
परलोक पर तब देश में विचार हो रहे थे। इन
विचारों को उपनिषद् कहते हैं। इसी से यह
काल भी उपनिषद-काल कहलाता है।
महाजनपद युग
भारत के महाजनपदों की स्थिति
युग बदलने के साथ ही वैशाली और
मिथिला के लिच्छवी में साधु वर्धमान
महावीर हुए, कपिलवस्तु के शाक्य में गौतम
बुद्ध हुए।
उन्हीं दिनों काशी का राजा अश्वसेन
हुआ। इनके यहां पार्श्वनाथ हुए जो जैन धर्म
के २३वें तीर्थंकर हुए। उन दिनों भारत में
चार राज्य प्रबल थे जो एक-दूसरे को जीतने
के लिए, आपस में बराबर लड़ते रहते थे। ये
राह्य थे मगध, कोसल, वत्स और उज्जयिनी।
कभी काशी वत्सों के हाथ में जाती,
कभी मगध के और कभी कोसल के।
पार्श्वनाथ के बाद और बुद्ध से कुछ पहले,
कोसल-श्रावस्ती के राजा कंस ने
काशी को जीतकर अपने राज में
मिला लिया। उसी कुल के
राजा महाकोशल ने तब अपनी बेटी कोसल
देवी का मगध के राजा बिम्बसार से
विवाह कर दहेज के रूप में
काशी की वार्षिक आमदनी एक लाख
मुद्रा प्रतिवर्ष देना आरंभ किया और इस
प्रकार काशी मगध के नियंत्रण में पहुंच गई।
राज के लोभ से मगध के राजा बिम्बसार के
बेटे अजातशत्रु ने पिता को मारकर
गद्दी छीन ली। तब विधवा बहन
कोसलदेवी के दुःख से दुःखी उसके भाई
कोसल के राजा प्रसेनजित ने
काशी की आमदनी अजातशत्रु
को देना बन्द कर
दिया जिसका परिणाम मगध और कोसल
समर हुई। इसमें कभी काशी कोसल के,
कभी मगध के हाथ लगी। अन्ततः अजातशत्रु
की जीत हुई और काशी उसके बढ़ते हुए
साम्राज्य में समा गई। बाद में मगध
की राजधानी राजगृह से पाटलिपुत्र
चली गई और फिर कभी काशी पर
उसका आक्रमण नहीं हो पाया।
आधुनिक काशी राज्य
आधुनिक काशी राज्य
वाराणसी का भूमिहर बह्मण राज्य
बना है। भारतीय स्वतंत्रता उपरांत अन्य
सभी रजवाड़ों के समान काशी नरेश ने
भी अपनी सभी प्रशासनिक
शक्तियां छोड़ कर मात्र एक प्रसिद्ध
हस्ती की भांति रहा आरंभ किया।
वर्तमान स्थिति में ये मात्र एक सम्मान
उपाधि रह गयी है। काशी नरेश
का रामनगर किला वाराणसी शहर के
पूर्व में गंगा नदी के तट पर बना है।
काशी नरेश का एक अन्य किला चेत सिंह
महल, शिवाला घाट, वाराणसी में स्थित
है। यहीं महाराज चेत सिंह
जिनकी मा राजपुत थी को ब्रिटिश
अधिकारी ने २०० से अधिक सैनिकों के संग
मार गिराया था। रामनगर किला और
इसका संग्रहालय अब बनारस के राजाओं
का एक स्मारक बना हुआ है। इसके
अलावा १८वीं शताब्दी से ये काशी नरेश
का आधिकारिक आवास बना हुआ है। आज
भी काशी नरेश को शहर में सम्मान
की दृष्टि से देखा जाता है। ये शहर के
धार्मिक अग्रणी रहे हैं और भगवाण शिव के
अवतार माने जाते हैं। ये शहर के धार्मिक
संरक्षक भी माने जाते हैं और सभी धामिक
कार्यकलापों में अभिन्न भाग होते हैं।
— with श्री श्याम नगरी and 47 others.

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

दो लाख देकर खामोश कराना चाहते थे घोटालेबाज



धीरज पांडेय

1 hr ·
फर्जीवाड़ा के खुलासे के बाद भागने के फिराक में घोटालेबाज


खुलासे के बाद फर्जी कंपनी ने दिया दो लाख का ऑफर
 ,(दो लाख लो और चुप रहो)
 -
फोटो - मदनपुर का कार्यालय और स्टेट हेड कारु प्रजापति
औरंगाबाद के कई प्रखंडो में फर्जी तरीके से ब्रांच खोलकर लोगो की गाढ़ी कमाई को चुना लगा रहा मनसार फाइनेंस नाम का यह बैंक अब अपने खुलासे के बाद भागने के फिराक में है। आप को बता दे की दो दिनों पूर्व मैंने जिलाधिकारी को इस फर्जी बैंक के बारे में जानकारियां दी थी और उसके कुछ दस्तावेज भी दिए थे जो प्रमाणित करता है की मनसार नाम का यह बैंक फर्जी तरीके से जिले में काम कर रहा है और यही नहीं जिलाधिकारी , और प्रखंड के बीडीओ का फर्जी हस्ताक्षर बना काम कर रहा है। दस्तावेजो के निरिक्षण के बाद जिलाधिकारी ने अपने बैंकिंग सेल से जांच करा कर कार्रवाई की बात कही थी। इस मामले को औरंगाबाद के मीडिया ने भी प्रमुखता से लिया। जिसके कारण यह फर्जी मनसार कंपनी अब भागने के फिराक में है। आपको बता दे की कंपनी के कुछ कर्मचारियों ने मुझे आज रास्ते में रोक और अपना नाम गुप्त रखते हुए कहा कि २ लाख लीजिये और चुप हो जाइए , न्यूज़ छापने और कंपनी को बंद करवाने से क्या मिलेगा। मित्रो मै आपको बता दू की पिछले ६ सालो से मै मीडिया में सक्रीय रूप से काम कर रहा हूँ , और मैंने इसके माध्यम से इमान्दारिता पूर्वक लोगो का विश्वास जीता है , बताया जाता है की कंपनी के कर्मचारी अपने स्टेट हेड कारु प्रजापति से लगातार संपर्क कर रहे है। मगर कंपनी के स्टेट हेड कारु प्रजापति ने अपना मोबाइल बंद कर दिया है ,कारु प्रजापति मदनपुर थाना के मंझियावा गांव का रहने वाला है ,कंपनी ने अपना ब्रांच - मदनपुर ,में ब्लॉक के पास , देव में पीएनबी बैंक के पास , रफीगंज , नवीनगर और औरंगाबाद में डॉ चंद्रशेखर जी के क्लिनिक के ऊपर वाले तल्ले में खोल रखा है।
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कम हो सकते हैं ब्रिटेन के लॉर्ड्स





प्रस्तुति अमित कुमार / कुंदन कुमार
मगांअंहिविवि, वर्धा

आने वाले सालों में ब्रिटेन के चर्चित हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्यों की संख्या घट सकती है. ब्रिटेन की सरकार हाउस ऑफ लॉर्ड्स की नियुक्ति और संख्या के बारे में संशोधन करना चाहती है. अधिनियम इस सत्र में पास नहीं किया जा सका है.
कैमरन की सरकार ने आखिरी वक्त पर इस बारे में वोटिंग कराने का फैसला रद्द कर दिया. माना जा रहा था कि अगर इस बारे में वोटिंग कराई जाती तो सत्ताधारी पार्टी की हार तय थी. कंजर्वेटिव पार्टी के 91 सांसदों ने इस प्रस्तावित विधेयक का विरोध किया था. अब इसे शीतकालीन सत्र में दोबारा पेश किया जाएगा. संसद में सरकार का कामकाज देखने वाले जॉर्ज यंग का कहना है, "यह एक अहम संवैधानिक बदलाव होगा. इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है."
इस अधिनियम में कहा गया गया है कि हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्यों की संख्या घटाकर 450 कर दी जाएगी और इसकी सदस्यता चुनाव के जरिए तय की जाएगी. फिलहाल हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्यों की संख्या 826 है और इसके ज्यादातर सदस्यों का चुनाव ब्रिटेन की महारानी की सलाह पर प्रधानमंत्री करते हैं.
हाउस ऑफ लॉर्ड्स ब्रिटेन की संसद का ऊपरी सदन है. भारत में इसकी तुलना राज्यसभा से की जा सकती है. राज्यसभा की तर्ज पर इसके सदस्यों का चुनाव भी कुछ सालों के लिए किया जाता है.
हालांकि विपक्षी लेबर पार्टी ने इस अधिनियम का समर्थन करने का ऐलान किया है. प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने आखिरी कोशिश करते हुए कहा, "इस स्थिति में भी मैं कहूंगा कि अवसरवाद का खेल न खेलें, मुद्दे के साथ राजनीति न करें और उसके लिए वोट करें जिसे आप चाहते हैं. यह और कुछ नहीं बल्कि हाउस ऑफ लॉर्ड्स में संशोधन है."
हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्यों का काम सरकार के काम काज पर निगाह रखना और कानून की आलोचना करना है. कुछ लोगों का मानना है कि हाउस ऑफ लॉर्ड्स अलोकंतात्रिक है और यह कुलीन और विशेषाधिकार प्राप्त सदस्यता है. इसके उलट, कंजर्वेटिव पार्टी के बगावती सांसदों का कहना है कि हाउस ऑफ लॉर्ड्स के चुने गए सदस्य पक्षपाती होंगे और संसद के निचले सदन की अहमियत को कम करेंगे. इससे कामकाज में रुकावट की स्थति पैदा हो जाएगी. विरोध करने वाले सदस्यों का यह भी मानना है कि चुनाव के जरिए प्रतिनिधियों के आने से विविधिता में कमी आएगी और विशेषज्ञों की संख्या कम हो जाएगी. अगर यह अधिनियम पास हो जाता है तो इससे भारतीय मूल के कई लोग भी प्रभावित होंगे. भारत के कई जाने माने लोग ब्रिटेन के हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्य हैं. इनमें लॉर्ड स्वराज पॉल, लॉर्ड बागची, लॉर्ड मेघनाथ देसाई का नाम प्रमुख है.
वीडी/आईबी (रॉयटर्स)

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