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शनिवार, 20 दिसंबर 2014

कच्चे आम में अनुभव और ओज की रसभरी कविताएं









अनामी शरण बबल 

प्रस्तुति- रिधि सिन्हा नुपूर 

प्रधानमंत्री बनने से पहले एक मुख्यमंत्री के रूप मे नरेन्द्र दामोदर मोदी औरों से अलग साबित होते और दिखते रहे थे। अपनी बात को एक प्रभावशाली और लयात्मक ढंग से रखने में वे सिद्धहस्त है। एक सख्त प्रशासक की छवि के बाद भी जनता के बीच खासे लोकप्रिय और जनता से लगातार संवाद करने और रखने वाले मुख्यमंत्री थे।  अकेले अपने बूते लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार की धूम मचाकर जादूई अंदाज में आज वे देश के प्रधानमंत्री है।
प्रधानमंत्री मोदी के बारे में बहुत ही कम लोग शायद यह जानते होंगे कि कि वे एक कवि भी है। केवल कवि ही नहीं बल्कि नरेन्र मोदी एक कथाकार भी है।. एक कथाकार और कवि के रुप में यह पहचान कोई आज नया भी नहीं है। कथाकार के रुप में एक कथासंग्रह प्रेमतीर्थ का गुजराती भाषा में करीब सात साल पहले प्रकाशित भी है। कथासंग्रह प्रेमतीर्थ  के साथ ही साथ गुजराती में एक काव्य संग्रह भी आंख आ धन्य छे  (आंख ये धन्य है) का प्रकाशन भी उसी दौरान करीब सात साल पहले 2007 में हो चुका है। मगर राजनीतिक गहमागहमी और नरम गरम सामाजिक तापमान के चलते मोदी की एक साहित्यकार की पहचान उभर कर सामने नहीं आ सकी। हालांकि इस दौरान वे राजनीति में शिखर पर चढ़ जरूर गए। तमाम व्यस्तताओं के बावजूद हमेशा कुछ न कुछ लिखना इनकी आदत है और यही वजह है कि प्रधानमंत्री के रचनात्मक खजाने में कहानी और कविताओं की दो दो पांडुलिपियां अप्रकाशित पडी है।
हिन्दी में प्रकाशित काव्य संग्रह आंख ये धन्य है में अपनी कविताओं के बारे में कवि नरेन्द्र मोदी ने काव्यात्मक शैली में अपनी बात कही है।   
मैं साहित्यकार अथवा कवि नहीं
 अधिक से अधिक मेरी पहचान
 सरस्वती के उपासक की हो सकती है।
प्रधानमंत्री के इस काव्य संग्रह को हिन्दी के एक लगभग गुमनाम से विकल्प प्रकाशन ने छापा है। खास बात तो यह है कि कि इसका प्रकाशन भी तब हुआ है जब वे प्रधानमंत्री  बन चुके थे, इसके बावजूद यह संग्रह अभी तक लोकार्पण की बाट जोह रहा है। यही वजह है कि हिन्दी में किताब के प्रकाशन के बाद कई माह होने के बाद भी यह संग्रह और प्रधानमंत्री की कविताएं हिन्दी साहित्य और पाठकों के लिए अभी तक गुमनाम ही है। इस संग्रह में प्रकाशित 67  कविताओं के बारे में बात शुरू करने से पहले मैं कवि मोदी द्वारा अपनी कविता के बारे में की अभिव्यक्ति को ही फोकस कर रहा हूं, जो यहां पर खासा उल्लेखनीय भी हो जाता है।  अपने पाठकों से निवेदन करते हुए कवि मोदी कहते है-
मेरी प्रार्थना है, पुस्तक में मेरी पद प्रतिष्ठा को न देखे, कविता के पद का आनंद लीजिए, मेरी कल्पनाओं की खुली खिड़की, छोटी सी खिड़की में से दुनिया को, जैसा देखा, अनुभव किया
जैसा जाना आनंद लिया, उसी पर अक्षरों से अभिषेक किया
अपनी काव्य संस्कृति संस्कार और काव्य अनुशासन के बारे में भी कवि मोदी कहते है-
मेरा चिंतन मनन ,अथवा अभिव्यक्ति, मौलिक है, ऐसा मेरा कोई दावा नहीं, पढ़े सुने की छाया से भी वह मुक्त नहीं हो सकती है।
 अपनी कविताओं में संभावित त्रुटि या भाषाई गठन की कमी के बारे मे भी कवि नरेन्द्र मोदी का यह स्पष्टीकरण विशेष उल्लेखनीय सा प्रतीत होता है।  
मेरी कविताएं कभी भी सार्वजनिक कसौटी पर उतरी नहीं है, इसलिए उनकी खामियों की तरफ भी मेरा भी ध्यान गया नहीं है, मगर सब रचनाएं श्रेष्ठ हो, ऐसा भी नहीं  परंतु कभी कभी
कच्चे आम का स्वाद भी, अलग तरह का स्वाद दे जाता है। 
अपनी कविताओं को कच्चे आम से तुलना करके का वे पाठकों को अलग तरह के स्वाद देने की लालसा जरूर करते और रखते है। तभी तो पाठकों से कवि मोदी यह कहना भी नहीं भूले कि
मेरी रचनाओं का ये नीड़ आपको निमंत्रण देता है, पल दो पल आराम लेने पधारो, मेरे इस नीड़ में आपको भावजगत मिलेगा और भावनाएं लहराएंगी कविता के साथ साथ। प्रकृति यात्रा की कल्पना मुझे अच्छी लगी और आपको भी पसंद आएगी।   
अपनी बात में ही वे अपनी काव्य यात्रा या यत्र तत्र बिखरी तमाम कविताओं को एकत्रित करके उसको संग्रहित रखने में सुरेश भाई के योगदान पर आभार भई जताते है। सुरेश भाई से वे इस कदर अभिभूत रहे कि उनकी शिल्पकार की भूमिका के प्रति वे सदैव भावुक दिखे।
मैं कवि मोदी की कविताओं पर बात करने से पहले इनके प्रकाशन और अनुवाद को लेकर सक्रिय एक पूरी टीम की ललक योगदान और उत्साह पर रौशनी डाल रहा हूं कि किन किन हालातों से गुजरने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ये रचनाएं हमारे बीच आयी है। हिन्दी की मशहूर शायरा और कवि डा. अंजना संधीर ने इन कविताओं का अनुवाद किया है । एक साहित्यकार के  रूप में विख्यात डा. अंजना पिछले दो दशक से अमरीका में रह रही थी। डा. अंजना  संधीर के अनुसार गांधीनगर के एक हायर सेकेणडरी स्कूल प्रिंसीपल डा. ललित अग्रवाल ने इन कविताओं के अनुवाद करने का आग्रह किया, और 2008 में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदीसे मुलाकात के बाद इस किताब की हिन्दी में प्रकाशन की संपूर्ण रूपरेखा के साथ साथ यह भी तय हो गया कि डा. संधीर ही इसे  हिन्दी में अनुदित करेंगी।
इतने लोगों की मेहनत और सामूहिक प्रयास के बावजूद हिन्दी में इस किताब को आने में छह साल लग गए। मगर बात यहीं पर खत्म नहीं होती है, अब सवाल उठा कि इस किताब का लोकार्पण कौन करेगा ? क्या खुद मोदी जी करेंगे या उनकी माताजी के हाथों इसका लोकार्पण कराया जाए या कोई और तीसरा ?  इसी उहापोह में प्रकाशन के चार माह बीत जाने के बाद भी किताब की केवल कुछ प्रतियां ही कुछ खास लोगों तक ही पहुंच सकी है। डा. संधीर मेरी बहुत पुरानी परिचित है,लिहाजा  सितम्बर माह में ही यह किताब मुझे खास तौर पर भेजी, मगर हमारे कुछ मित्रों ने आंख ये धन्य है की इकलौती प्रति पत्ता नहीं कब मेरे घर से पार कर दी। किताब नहीं मिलने से मैं बड़ा परेशान था और उधर डा. संधीर लगातार कुछ लिखने के लिए कहती रही। तब कहीं जाकर मुझे बताना पडा कि मोदीजी कि यह किताब मेरे घर से लापता हो हो गयी है।  तब वे और नाराज हुई कि तो क्या हुआ मैं दूसरी कॉपी भिजवा देती। इस उलाहने के साथ चौथे ही दिन  आंख ये धन्य है कि दूसरी प्रति कूरियर से मेरे पास इस उलाहने के साथ आई कि इस किताब की दो प्रति तो फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी जी के पास भी नहीं है। कवि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही खुद को एक कवि मानने में थोडा संकोच करें, मगर सच तो यह है कि वे अपनी काव्यात्मक सौंदर्य और लालित्यपूर्ण शाब्दिक अनुशासन की वजह से ही सबसे अच्छे कम्यूनिकेटर है ।
यह एक अजीब संयोग है कि आज से ठीक 30 साल पहले  1984 में प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने 21 सदी का सपना दिखाया था। उत्साह उमंग सपनों और कल को बदलने की ललक को दिवंगत गांधी मुहाबरेदार  शैली में जनता के समक्ष सामने रखते थे। हम देख रहे है, हम देखते है और हम देखेंगे की मीठी मीठी बातों ने देश को सपना देखने का मौका दिया। करीब 30 साल के बाद  दिवंगत प्रधानमंत्री के सपनों को और सुनहरे पंख लगाते हुए धारदार अंदाज में प्रधानमंत्री मोदी ने अच्छे दिन आएंगे के सपने को साकार करने की मुहिम में लगे है। प्रधानमंत्री बने अभी केवल सात माह  ही हुए है मग अपनी नियोजित प्रचार अभियान से पूरे विश्व में मोदी की धाक दिखने लगी है।
एक कवि से ज्यादा सफल राजनीतिज्ञ नरेन्द्र मोदी की कविताओं का एक खास अर्थ यहां पर यह है कि इन कविताओं और मंचीय भाषणों में खास अंतर नहीं है । जैसे मोदी को मंच पर से सुनना अच्छा लगता है, ठीक उसी प्रकार इनकी कविताएं भी पढने से ज्यादा सुनने में ज्यादा कर्णप्रिय लगती है। अपनी वाक पटुता और भाषण कला को सनातन मौसम कविता में व्यक्त करते है। -
रोज रोज ये सभा, लोगों की भीड़,
 घेरता तस्वीरकारों का समूह, 
 आंखों को चौंधियाता तेज प्रकाश, आवाज को एन्लार्ज करता ये माइक,
इन सबकी आदत नहीं पड़ी है, ये प्रभू की माया है। 
अभी तो मुझे आश्चर्य होता है
 कि कहां से फूटते है ये शब्दों का झरना
 कभी अन्याय के सामने मेरी आवाज उंची हो जाती है  
तो कभी शब्दों की शांत नदी शांति से बहती है।
 कभी बहता है शब्दों का बसंती वैभव.शब्द
अपने आप अर्थो के चोले पहन लेते है,
 शब्दों का काफिला चलता रहता है और मैं देखता रहता हूं केवल उसकी गति।
इतने सारे शब्दों के बीच
, मैं बचाता हूं अपना एकांत,
तथा मौन के गर्भ में प्रवेश कर लेता हूं
 आनंद किसी सनातन मौसम का। 
यह एक कविता भी है और प्रधानमंत्री मोदी का आत्मकथ्य भी।  एक राजनीतिज्ञ के तौर पर नरेन्द्र मोदी उमंग उत्साह हौसला और आज एक सपने का नाम है। देश की जड़ता को तोडने के लिए वे कहीं सफाई सुशासन रोजगार कम्प्यूटर मोबाइल के सपने को उछालते है तो कहीं युवाओं को हर स्तर पर आगे आने की ललक जगाते है। वे एक बहुत बड़े सकारात्मक प्रेरक की तरह जनता से संवाद करते है। सपनों के बीज कविता में कवि मोदी ने कहा है ..
और इन्द्रधनुष पर मर मिटता हूं
 परंतु अपना घर इन्द्रधनुष पर बनाता नहीं हूं मैं
, इन्द्रधनुषी रंग के सपने हैं मेरे पास
ये सपने रोमांटिक नहीं अपितु
जीवन भर की तपस्या के है।
तुम्हारे पास सपने हों या न हो
 पर सपनों के बीज मैं, अपनी धरती पर बीजता हूं  
और प्रतीक्षा करता हूं, पसीना बहाकर कि वे अंकुरित हों और उनका वह वृक्ष बने
सपनों के सौदागर के सपनो भरी कविताओं में केवल सपने नहीं है उसमें समानता लडने संघर्ष करने का जूझारुपन भी साफ साफ दिखता है. । मोदी की कविताओं से रूबरू होते हुए पंजाबी कवि अवतार सिंह पाश की कविता सबसे खतरनाक की बार बार याद आने लगती है , जिसमें पाश ने कहा था-
सबसे खतरनाक होता है, मुर्दा शांति से भर जाना,  न होना तडप का, सबकुछ सहन कर जाना  घर से निकल कर काम पर, और काम से लौटकर घर आना, सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना। 
 सपनों को बारे में कवि पाश ने लिखा भी है
-सपने हर किसी को नहीं आते सपनों के लिए लाजमी है सहनशील दिलों का होना, सपनों के लिए नींद की नजर होनी लाजिमी है, सपने इसीलिए सभी को नहीं आते है
लगता है कि कवि मोदी को सपनों की हकीकत और जटिलता पता है, इसीलिए देशवासियों को सबसे खतरनाक सच्चाई से बचाने के लिए सपनों के सौदागर की तरह हर उम्र हर नौजवान के लिए सपनों का कुतुबमीनार खड़ा करने की कोशिश में जुटे है ताकि सपनों की अहमियत को लोग जान समझे,। तभी तो  पूरे देश को हमारा कल इस तरह का हो सकता है का  सपने के अपने इस अभियान में सबों को जोडने की मुहिम के साथ  कवि और प्रधानमंत्री निकल पड़े है।
इन कविताओं का यहां पर  खास महत्व है, क्योंकि कविताओं में एक कवि के नाते केवल अपने मन और भावी काम काज की एक रूपरेखा खींची है। कवि मोदी की इन कविताओं को पढे और समझे बगैर प्रधानमंत्री मोदी को समझना और उनकी पूरी कार्यप्रणाली को रेखांकित नहीं किया जा सकता है।
मुझे पनिहारिन के मटके पर से
गुजरती किरण के गीत गाने है
भरी दुपहरी में पसीना बहाते श्रमिक
के पसीने से चमकती  किरणों के गीत गाने है।
मुझे छुट्टी रखनी है
बच्चों के मक्खन जैसे नरम पैरों से
उड़ते रजकणों व गोधूलि की धूल से
एक एलबम बनाना है । 
वाह यहां पर कवि की भाव संवेदना और सपनो की उड़ान का अद्रभुत चित्रण सामने आता है। एक तरफ तो हमारे प्रधानमंत्री मंगलयान बुलेट ट्रेन समेत मोबाइल मेट्रो की बात करते हैं, मगर वहीं अपनी नजरों से एक किसान पनिहारिनों की पीडा और बाल मानस की अठखेलियों से भी दूर रहना नहीं चाहते हैं। कवि मोदी एक तरफ सपनों के सच्चे संसार और आधुनिक विकास के सपने को साकार करने की ललक जगाते हैं तो दूसरी तरफ समाज के सबसे आखिरी लाईन में खड़े लोगों की मनोभाव को भी समझते है। एक कवि की संवेदना और कल्पना से वे लोगों को इस तरह जोडते है – स्वाभिमान कविता में कहा है –
 सत्य से सत्याग्रह तक
अपनी यात्रा में
हमें मिलते हैं
बिन पैर चलते प्रवासियों के पदचिन्ह्र।
अपने काम को लेकर बिना किसी संशय के कवि मोदीकहते है—
प्रार्थना बस इतनी युद्धभूमि में कांपे नहीं ये शरीर
सफल हुआको ईष्र्याका पात्र
असफल हुआ को दया का पात्र।।।
इस संग्रह में गुजराती से 67 कविताओं का हिन्दी में अनुवाद किया गया है। एक कवि होन के नाते ज्यादातर कविताओं की मौलिकता के साथ साथ उसमें गति और लय में भी एक सौंदर्य है।, मगर कुछ कविताओं में कुछ शब्दों का अनायास ज्यादा दिखना खलता है। इन तमाम खासियत और कमी के बावजूद किताब पठनीय है. खासकर जब मोदी इस समय हमारे बीच प्रधानमंत्री के रूप में सामने हैं और रोजाना देश के साथ संवाद कर रहे हैं तो इन कविताओं की प्रांसगिकता और भी ज्यादा बढ जाती है। अपने मन की बेबाक अभिव्यक्ति ही इन कविताओं की जान है।। जिसको समझे बगैर मोदी के काम काज और कार्यप्रणाली को नहीं समझा जा सकता है।      


पुस्तक आंख ये धन्य है  (काव्य संग्रह)
कवि नरेन्द्र मोदी
अनुवाद डा. अंजना संधीर
पृष्ठ 104मूल्य- 250 रुपये
प्रकाशक- विकल्प प्रकाशक
2226/ बी, प्रथम तल ,गली नंबर 33
पहला पुश्ता, सोनिया बिहार
दिल्ली-110094

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