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शनिवार, 23 अप्रैल 2016

आगरा जाते रेल वाली मेरी एक बहिन जी-1






अनामी शरण बबल

दोस्तों कल मुझे फिर आगरा जाना है। इस बार ट्रेन से जाना है तो यह वाक्या और प्रासंगिक हो जाता है। एक घटना सुनाता हूं। कई साल हो गए एक बार मैं आगरा से आ रहा था या जा रहा था यह तो ठीक से याद नहीं , पर एक छक्का बहन जी कंपार्टमेंट में घूम घूम कर और ताली बजा कर पैसा मांगने 2 मेरे पास आई तो मैने हाथ जोडकर नमस्ते की अरे मैं तो तेरा भाई हूं। इस पर रूआंसी सी होकर बोली कि भईया सब मेरे भाई ही बन जाओगे तो तेरी बहिन को पईसा कौन देगा। उसकी करूणा और कातर निगाहों को देखकर मैं तुरंत खडा हुआ और जेब से 70-80 रूपए निकाल कर उसके सामने कर दिया कि नहीं जो रखना है वो तुम रख लो । एक नोट 50 का होने के बाद भी वो केवल 20 रूपए ही ली। तब से वो रेल में मुझे दो बार और मिल चुकी है। दोनों बार मुझे देखते ही सबसे पहले भागी 2 मेरे पास आती है कैसे हो भईया। तो मैं बिना कहे कुछ नोट निकाल कर उसके आगे बढा देता हूं और वो कभी 10 तो कभी 20 रूपए लेकर मेरी मुठ्टी बंद कर देती है। भले ही उससे फिर मिले करीब डेढ़ साल हो गए हैं पर हमारा यह याराना अभी भी चल रहा है। मैं जेब में खुले नोट हमेशा लेकरचलता हूं ताकि उसको उठाने में कोई संकोच ना हो । हालांकि फिर उससे मुलाकात नहीं हुई पर जब भी मैं रेल से आगरा जाता हूं तो रास्ते भर उसको देखते हुए या तलाशते हुए ही जाता हूं। हालांकि ट्रेन में उसके जाने के बाद मेरे आस पास बैटे सहयात्रियों को बहुत अचरज होता है मगर क्या कहें यह भी तो एक याराना ही है जिसके पीछे न कोई तर्क है और ना ही बहाना। फिर भी रेल यात्रा के दौरान हमेशा वह याद आती है।।

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