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बुधवार, 27 जुलाई 2016

मैं ही तो हूं / अनामी शरण बबल







अनामी शरण बबल  


क्या तुमको खुद पर संदेह है
खुद पर ही करती हो कभी अविश्वास ?
दिन रात सूरज चंदा तारे फूल सितारें आसमान भी
तेरे यकीन से है बाहर ?
तेरा अटल संदेह ही सबसे बड़ा है
तो मैं भी छलिया ठग मजनूं दिलफेंक रसिया हूं।
मैं छलिया छल करना ही अपना काम।
गर दृढ है चट्टान की तरह, पहाड़ सा है तेरा विश्वास
तो भला कैसे छल सकता हूं
अपने आपको कैसे दूं दगा।
अपनी ही सूरत मूरत से कैसे करूं बेईमानी
अपनी साया को ही भला कैसे करूं पराया ?  

मैं ही तो हूं
धूप हवा मिट्टी चंदन पानी सा हूं हरदम हरपल साथ
पूजाघर की पावन आस्था, रसोईघर की साफ सफाई,
खाने के टेबल की सोंधी महक 
सोफे पर परी सी मस्ती उर्जा उल्लास आराम
शयनकक्ष में कोमल सुहावन बेफ्रिक नींद
मंदिर में घंटियों की मिठास,
देवप्रतिमा का पवित्र जल कलश सिंदूर वस्त्र साज श्रृंगार
हरियाली से उत्साहित तन मन बदन तेरा
सबके साथ मै  
केवल मैं ही तो हूं।
अविश्वास की झाडू से सब निकाल दो ?
यदि कर सको ।

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