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गुरुवार, 25 अगस्त 2016

अन्ना का जंतर मंतर आंदोलन 2011





नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। 2011 में अन्ना हजारे जब जंतर-मंतर पर बैठे तो उनके जजंतरम-ममंतरम का असर पूरे देश में दिखाई दिया। क्योंकि भ्रष्टाचार से हर कोई आजिज़ था। तब दुनिया भर का मीडिया भी यहां जम कर बैठ गया था। आज एक अलग प्रकार का धरना इसी जंतर-मंतर पर चल रहा है, लेकिन मीडिया को फिक्र नहीं तो जनता तो दूर की बात है।

Historic movement for the rights of Indian languages
जी हां जंतर-मंतर पर इन दिनों कड़ाके की सर्दी में ‘भारतीय भाषाओं को लागू करो, अंग्रेजी की गुलामी नहीं चलेगी ... नहीं चलेगी /भारत सरकार शर्म करो -शर्म करो' के गगनभेदी नारे लगाते हुए बहुत से लोग धरने पर बैठे है।
विगत ढाई दशक से चल रहा ऐतिहासिक भारतीय भाषा आंदोलन 21 अप्रैल 2013 से संसद की चैखट जंतर मंतर पर भाषा आंदोलन के पुरोधा पुष्पेन्द्र चोहान व महासचिव देवसिंह रावत के नेतृत्व में चल रहा है।
चौपाल भी
शीतकाल में इन दिनों भाषा आंदोलन में देश की विभिन्न ज्वलंत समस्याओं पर विशेष चर्चा व समाधान के लिए भाषा चैपाल का भी आयोजन प्रतिदिन किया जा रहा है।
कौन-कौन बैठा धरने में
भाषा आंदोलन के धरने को इन दिनों जीवंत बनाये रखने में पुरोधाओं में पुष्पेन्द्र चैहान, महासचिव देवसिंह रावत, पत्रकार चंद्रवीरसिंह, अनंत कांत मिश्र, धरना प्रभारी महेष कांत पाठक, सुनील कुमार सिंह, चैधरी सहदेव पुनिया, मध्य प्रदेश के रीवा प्रो सचेन्द्र पाण्डे, सुशील खन्ना, कल्याण योग के स्वामी श्रीओम, रमाषंकर ओझा, पत्रकार सूरवीरसिंह नेगी, गोपाल परिहार, सत्यप्रकाष गुप्ता, देवेन्द्र भगत जी, सम्पादक बाबा बिजेन्द्र, महेन्द्र रावत, राकेष जी, ज्ञान भाष्कर, मन्नु, वेदानंद, वरिश्ठ समाजसेवी ताराचंद गौतम, मोहम्मद सैफी, अंकुर जैन, रघुनाथ, यतेन्द्र वालिया, गौरव षर्मा, ज्ञानेश्वर प्रधान, बंगाल से रवीन्द्रनाथ पाल, गोपाल परिहार,भागीरथ, नरूल हसन, पत्रकार अपर्णा मिश्रा, खेमराज कोठारी, आदि प्रमुख है।
जिन्हें नहीं दिख रहा धरना
वरिष्ठ पत्रकार अनामी शरण बबल ने इस बात पर दुख जताया कि अधिकांश समाचार चैनलों व समाचार पत्रों को देश के स्वाभिमान, लोकशाही व आजादी का असली आंदोलन दिख ही नहीं रहा है। ये लोकशाही के चोथे स्तम्भ के नाम पर नंगई, गुडई, आशाराम, केजरीवाल का हर पल बेशर्मी से अंधा जाप करके देश की संस्कृति व लोकशाही की जड्डों में मठ्ठा डाल रहे है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय भाषा आंदोलन 1988 से भाषा आंदोलन के पुरोधा पुष्पेन्द्र चोहान व स्व. राजकरण सिंह सहित सैकडों साथियों के साथ संघ लोकसेवा आयोग से देश के पूरे तंत्र में अंग्रेजी थोपने के विरोध में अलख जगाने का ऐतिहासिक आंदोलन किया।
जैल सिंह से वाजपेयी तक
भारतीय भाषा के इस ऐतिहासिक आंदोलन में जहां देश के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी व विश्वनाथ प्रताप सिंह,उप प्रधानमंत्री देवीलाल, रामविलास पासवान व चतुरानन्द मिश्र सहित 4 दर्जन से अधिक देश के अग्रणी राजनेताओं ने भाग लेते हुए संसद से धरने तक इस मांग का पूरा समर्थन किया।
भाषा आंदोलन के महासचिव देवसिंह रावत द्वारा 1989 व पुरोधा पुष्पेन्द्र चैहान द्वारा 1991 में संसद दीर्घा से भारतीय भाषा आंदोलन की आवाज को गूंजायमान करने का कार्य किया। छटे दशक में लोहिया के नेतृत्व में चले भारतीय भाषा आंदोलन के दवाब की तरह ही इसके बाद 1991 में संसद ने सर्वसम्मति से भाषायी संकल्प पारित किया गया।
English summary
Historic movement for the rights of Indian languages not getting due from media.
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