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गुरुवार, 8 सितंबर 2016

मेरे जीवन के कुछ और इडियट्स -8 / अनामी शरण बबल




अंत में मिलने की चाहत / मौसम निदेशक सतीश चंद्र गुप्ता
अनामी शरण बबल 


दिल्ली के मौसम विभाग के निदेशक का नाम सतीश चंद्र गुप्ता था। मेरे पास मौसम विभाग भी होत था। दिल्ली में कई मौसम विज्ञानी दोस्त उपनिदेशक बनकर देहरादून और मसूरी में मौसम विभाग के निदेशक बन गए तो मुझे फोन करके बतया कि बातें किया करो अनामी जी मैं 48 घंटा पहले ही दिली के मौसम का हाल बताया करूंगा। सबों ने यही कहा कि फोन आपको करना होगा ताकि याद आ जाए। खैर इनलोगों से बड़ी मदद ली और दिल्ली के मौसम को हमेशा दो एक दिन पहले रखा। पर मैं इस समय श्री सतीशचंद्र गुप्ता पर बात कर रहा हूं। लगभग तीन साल तक संवाद का सिलसिला जारी रहा। श्री गुप्ता से बिना मुलाकात के बिना ही रोजाना मौसम को लेकर बातें होती रहती थी, लिहाजा केवल चेहरा देखने के लिए अब कौन मौसम विभाग जाए। हमारी बातचीत का क्रम इस तरह परवान पकड़ा कि रात बेरात कभी सुबह या दोपहर में घर हो या दफ्तर एक एक दिन में कई कई बार बात होती थी। और कमाल कि फोन उठाकर हलो या कौन है पूछने की बजाय सबसे पहले कहते हां अनामी बोलो। और इसके बाद वे धाराप्रवाह बोलते बताते । मौसम के बारे में मैं भी काफी कुछ जान गय था लिहाजा गुप्ता जी के संकेत देने या कोई मौसम की शब्दावली के किसी शब्द के इस्तेमाल का अर्थ जानता था। बीच में नो रोक टोक। इस तरह 5-7 मिनट में वे एक ही साथ कई खबर बता जाते थे। जिसे मैं अलग अलग मूड य मौसम के अनुकूल प्रतिकूल करके कई खबर बना देता था। मेरी खबर वे रोजना अपने दफ्तर में पढते थे और उन्होने यह टिप्पणी दर्जनों बार की होगी कि मेरी बातों का जितना सटीक विश्लेषण करके खबर लिखते हो वो सबसे अलग होता है। उनकी सराहना पर मैं हमेशा यही कहता था कि खबर लिखते समय आपकी कही हुई बात याद आ जाती है इसलिए ही सावधन होकर लिखता हूं। बिना मिले हमारा प्रेम और लगाव बरकरार था। फोन उठाते ही नाम लेने पर मैं अक्सर पूछता था कि यह आप कैसे जान जाते हैं कि मेरा फोन है। इस पर वे हंस पड़ते फिर भी मेरी हैरानी बनी रहती। कभी कभी तो घर आकर केवल जांचने के लिए भी रात 11 के बाद फोन कर देता था। तब भी वही जवाब कैसे हो अनामी अभी मौसम शांत है या जैसा होता था बताकर हंसते हुए फोन रख देते।
एक दो बार मैने उनसे पूछा भी मेरे इतने फोन करने या समय असमय लगातार तंग करने पर गुस्सा नहीं आता या नहीं लगता कि परेशान कर रहा हूं। इस पर वे हंसते हुए कहते कि जब तुम्हारा फोन नहीं आता है तब गुस्सा भी आता है और चिंता भी होने लगती है। सही कहो तो तुमसे बात करने का चस्का सा लग गया है और बिन बात किए लगता है कि कहीं कुछ कमी सी है। उनकी बात सुनकर मैं भी हंसते हुए कहा कि सही मायने में मुझे भी बिन बात किए मन नहीं भरता है। और फिर हम दोनों फोन पर जोर से खिलखिला उठते। ।

एक दिन दोपहर में उनका फोन आया। अमूमन फोन मैं ही करता था। वे बोले अनामी तुम्हारी उम्र कितनी है। यह 2003 की बात है। उनके सवाल पर एक बार मैं हंसने लगा क्या सवाल है सर । तो वे बोले अनामी मैं 12 दिन के बाद रिटायर होने वाला हूं। कल रात को तेरे बारे मे सोच रहा था कि पूरी नौकरी में तुम इकलौते हो जिससे मिले बगैर ही तीन साल तक बात करता रहा था। तुमने तो बात करने का चस्का लगा दिया। मैंने अगले ही दिन आने का वादा किया तो उन्होने कहा तुम्हारा लंच कल मेरे साथ रहा। श्री गुप्ता ने कहा मैं भी बहुत उतावला हूं अनामी तुम्हें देखने को कि तुम कैसे हो जिसका मैं आदी हूं। उनकी बातें सुनकर मै हंस पड़ा सर तब तो आपको निराश होना पड़ेगा क्योंकि आपकी लैला या शीरी तो एकदम सामान्य साधारण सा चेहरा मोहरा वाला है। मेरी बातें सुनकर उन्होने कहा चाहें जितना भी साधारण हो मगर मेरी लैला निसंदेह सबसे अलग है कि रिटायर होने वाले को भी अपना मजनू बना दिया है । मैंने हंसते हुए कहा हाय मेरे मजनू । और खिलखिलाते हुए हम दोनों ने फोन रख दी।


अगले दिन मैं एकदम 12 बजे उनके कमरे के बाहर था। कार्ड भेजने पर वे खुद बाहर निकले और संबोधित किय अनामी। मैं सामने ही था और हंसते हुए कहा आप बाहर आए लैला खुश हुई। और हंसते हुए मैं साथ में अंदर चला गया। बीच में खाना भी खाए और चाय कॉफी के कई दौर के बीच लगभग चार घंटे तक हजार तरह की बातें हुई। उन्होने कई बार इसका अफसोस जताया कि तुमसे मुलकत ही तब हो रही है जब मैं जाने वाला हूं यार। तीन साल पहले मिले होते तो अब तक पचास बार मिल गए होते। मैने चुस्की ली यह तो आपकी नहीं भाभी की किस्मत थी नहीं तो लैला मजनू के चक्कर में वो परेशान रहती।.. और मुझे बार बार घर जाकर बताना पड़ता कि उनकी लैला कौन है ? फिर हमलोग खिलखिला पड़े। मैने कहा तो अब इजाजत है ? खड़े होते हुए पूछा कैसे आए हो ? मैने कहा कि आया तो बस से था मगर अभी ऑटो कर लूंगा। उन्होने तुरंत कहा नहीं मेरी लैला मेरी सरकारी गाडी से जाएगी। और अंत में मैने उनके पैर छूए । वे एकदम निहाल से हो गए। अंत में मैने भी उनकी मदद,प्रोत्साहनऔर प्यार के लिए आभार जताया। उन्होने मुझे गले से लगा लिय। ऐसे मौके पर भला मैं कहां चूकने वाला उनकी बांहों में ही पूछा कि बांहों में कौन हैं लैला या अनामी ? यह सुनते ही बांहों की जकड़ सख्त करते हुए कहा दोनों । और अनमने मन से हमलोग अलग हुए। कई माह तक तो बीच में बात होती रही, फिर एक अंतराल आ गया। सरकारी फ्लैट से अलग होने पर फोन नंबर भी बदल गए हमेशा की तरह ही पुराना से पुराना रिश्ता भी एक समय के बाद अर्थहीन हो जाता है। मैं यह तो नहीं जानता कि श्री गुप्ताजी अब कहां पर हैं मगर मेरी यह प्रार्थना है कि वे हमेशा खुश और अच्छी सेहत के साथ रहे।

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