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शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

रेल वाली एक छक्की बहिन जी









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अनामी शरण बबल


दोस्तों कल मुझे फिर आगरा जाना है। इस बार ट्रेन से जाना है तो यह वाक्या और प्रासंगिक हो जाता है। एक संस्मरण सुनाता हूं। कई साल हो गए एक बार मैं आगरा से आ रहा था या जा रहा था यह तो ठीक से याद नहीं , पर एक छक्का बहन जी कंपार्टमेंट में घूम घूम कर और ताली बजा कर पैसा मांगते 2  मेरे पास आई तो मैने हाथ जोडकर नमस्ते की अरे मैं तो तेरा भाई हूं। इस पर रूआंसी सी होकर बोली कि भईया सब मेरे भाई ही बन जाओगे तो तेरी बहिन को पईसा कौन देगा। उसकी करूणा और कातर निगाहों को देखकर मैं तुरंत खडा हुआ और जेब से 70-80 रूपए निकाल कर उसके सामने कर दिया कि नहीं जो रखना है वो तुम खुद ही रख लो । एक नोट 50 का होने के बाद भी वो केवल 20 रूपए ही ली। तब से वो रेल में मुझे दो बार और मिल चुकी है। दोनों बार मुझे देखते ही सबसे पहले भागी 2 मेरे पास आती है कैसे हो भईया। तो मैं बिना कहे कुछ नोट निकाल कर उसके आगे बढा देता हूं और वो कभी 10 तो कभी 20 रूपए लेकर मेरी मुठ्टी बंद कर देती है। भले ही उससे फिर मिले करीब डेढ़ साल हो गए हैं पर हमारा यह याराना अभी भी चल रहा है। मैं जेब में कुछ खुले नोट हमेशा लेकरचलता हूं ताकि उसको उठाने में कोई संकोच ना हो । हालांकि फिर उससे मुलाकात नहीं हुई पर जब भी मैं रेल से आगरा जाता हूं तो रास्ते भर उसको देखते हुए या तलाशते हुए ही जाता हूं। हालांकि ट्रेन में उसके जाने के बाद मेरे आस पास बैटे सहयात्रियों को बहुत अचरज भी होता है मगर क्या कहें या करे यह भी तो एक याराना या प्यार भरा ही स्नेहिल रिश्ता है कि जिसके पीछे न कोई तर्क है और ना ही कोई बहाना। फिर भी रेल यात्रा के दौरान हमेशा वह याद आती है।।



आगरा से मेरा एक अनकहा सा नाता है कि जब जहां और जिस तरह भी मौका मिला नहीं कि खुद को आगरा मे ही पाता हूं। एक साल में 20-25 दफा तो आगरा जाना सामान्य तौर पर हो ही जाता है। पहले तो मैं आगरा बस से जाता था पर पिछले पांच सात साल से रेल ही मेरे सफर का साधन है। यदि ताज से जाना संभव नहीं हो पाता है तो अमूमन मैं जेनरल टिकट पर ही सफर करता हूं और रेल में गुजारे गए तीन घंटे का सफर भारतीय जनता के मूड को परखने समझने का सबसे सरल और नायाब साधन होता है। तीन घंटे तक कहीं पर राजनीति तो कहीं खेल कहीं सिनेमा कहीं गंदगी कहीं मोदी की सफाई तो कही लालू मोदी मुलायम अखिलेश या आजम खान ही लोगों की जुबांन पर होते है। रेल यात्रा के दौरान ही मुझे एक छक्की से मुलाकात हुई थी, और संयोग इस तरह का रहा कि उसकी बात उसकी मासूमियत और उसकी निश्छलता का मुझ पर इस तरह का प्रभाव पडा कि अपनी जेब में हाथ डालकर सारे रूपए उसके आगे कर दिए। मगर कमाल कि वो केवल 10 या 20 रूपए से कभी ज्यादा हाथ नहीं लगाई। पहली मुलाकात के बाद वह दो बार और मिली। हर बार मुझे देखते ही वो तमाम सवारियों को छोड़कर मेरे पास दौडी आती है। रेल का यह स्नेहिल याराना मुझे हमेशा उसको तलाशने के लिए बाध्य करता था। पिछले काफी समय से मैं ट्रेन से आगरा नहीं जा सका था और इस बार 24 अप्रैल 2016 को आगरा ताज से गया। जाते समय मैं मथुरा स्टेशन पर उतर कर भी इधर उधर निगाह डाली और आगरा राजा की मंडी में भी देखा मगर वो अनाम छक्की नहीं दिखी। एक मई 2016 को आगरा से दिल्ली लौटते समय हम पांच सात लोग थे। किसी ने यमुना एक्सप्रेस वे वाली बस पकड़ने की सलाह दी तो किसी ने राजा मंडी रेलवे स्टेशन से ही ट्रेन पकड़ने पर जोर दिया, मगर मैं आगरा कैंट जाने के लिए अडा रहा। मेरे साथ दो लोग और थे। हमलोग पौने 11 बजे स्टेशन पर आकर टिकट ले लिए। मगर कांगो एक्सप्रेश हीराकुंड़ एक्सप्रेस  केरल एक्सप्रेस समता एक्सप्रेस आदि सारी ट्रेने दो से लेकर चार घंटे लेट चल रही थी। मेरे साथ यात्रा कर रहे दोनो लड़के मुझपर बिफर पड़े अंकल आपके कारण ही हमलोग फंस गए । इसी वाद विवाद के बीच मैं ज्योंहि स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक में घुसा ही था कि सामने ही तीन छक्की लड़कियों पर मेरी नजर पडी। दो तो बैठी थी, मगर एक लेटी हुई थी। इनको देखकर मेरा मन खिल गया। मैने अपने साथियों से कहा कि तुमलोग प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर चलकर बैठो मैं जरा इन से मिलकर आता हूं। ट्रेन के बारे में कोई सूचना हो तो फोन कर देना , नहीं तो मैं बस्स आ ही रहा हूं। मेरे साथियों को बड़ी हैरानी हुई। मैने अपने दोस्तों से कहा तू दूर जाकर देख ये लोग भी मेरे दोस्त ही हैं यार। टिकट और 20-25 रूपए हाथ में लेकर मैं उनकी तरफ बढा और उसी चौकोर सिमेंट के बैठने वाले चबूतरे पर जा बैठा। मुझे देखते ही एक ने टोका कहां जाना है राजा। मैने तुरंत पलटवार किया कौन राजा कौन रानी कौन राज है यार राजा खाजा के अलावा कुछ और नहीं बोल सकती क्या। खामोश बैठी दूसरी छक्की हाथ हिलाते हुए बोल पड़ी, कुछ खिलाएगा पिलाएगा भी कि बाते ही करेगा। मैने तुरंत 30 रूपए आगे कर दिए मैं जानता था कि तू खाने पीने की ही बात करेगी, इसी लिए पैसे निकाल कर ही इधर बैठने आया था। पैसे लेकर पहली खडी होती हुई बोली बस्स तीस रूपए। मैने कहा क्यों 15 में तीन चाय और बाकी के कुछ ले लेना। इस पर दूसरी ने टोका बडा महाजन है साला हिसाब लगाकर पईसा दे रहा है। उसकी बातें सुनकर मैं खिलखिला उठा, और खड़े होकर 20 रूपए और दिए साथ ही मैंने कहा कि मैं केवल चाय पीउंगा तेरे साथ तुमलोग खाना। तभी एक ने जोडा कि और जो सोई हुई है उसके लिए कुछ नहीं। इस पर मैने कहा कि यार सफर में हूं और कितना दूं तू ही बता न। दोनों आंखो में आंखे डालकर सांकेतिक बात की। मैने बात को आगे बढाते हुए कहा कि मैं भी तो तुम्हारी ही एक सहेली की तलाश में हूं अगर मिल गयी तो उसको एक सौ रूपए देना है, और नहीं मिली तो तुमलोग को वो सौ रूपईया दे  दूंगा। सहेली की बात सुनते ही दोनों चहक उठी। बता न तेरी रानी कैसी है। तू यार है क्या उसका?  मैने तुरंत विरोध जताया तुमलोग भी अजीब हो राजा रानी सैंय्या के अलावा कोई और नाता नहीं होता क्या ? इस पर दोनों ने कहा कि हम कौन सी घरेलू है कि नातेदारी जाने । रोजाना हरामखोर बहिन...मादर,,,, मर्दो से ही तो पाला पड़ता है जो खाने के लिए पईसा उछालते है। इस तेवर पर मैं खामोश रहा। मैने उन दोनों को इस अनाम छक्की लड़की से हुई तीन मुलाकात का हाल बयान किया।  तुमलोग ही बताओं न क्या यह कोई नाता नहीं है। मैं तो बहुत दिनों से इधर ट्रेन से नहीं आया था मगर इस बार आया हूं तो उसको ही देख रहा हूं कि शायद हमारी रेल वाली बहिनजी मिल ही जाए कहीं। दोनों के चेहरे पर गंभीरता आ गयी। कौन है रे अनारकली जिसको इतना सुंदर भाई मिला है रे बाबा। एक ने बेताबी से कहा कि चलो नहीं मिलेगी तो हमलोग ही तेरी बहिन सी है। इस पर मैं जोर से खिलखिला पडा। मेरी हंसी से दोनों अवाक हो गयी। एक ने पूछा कोई नाम पहिचान रंग रूप उम्र बताओं न ताकि तेरा संदेशा तेरी अनारकली तक तो पहुंचाया जा सके। मैने कहा यही कोई 24- 25 की होगी। इस पर अब तक सो रही तीसरी छक्की कराहते हुए उठी और बेताबी से बोली नहीं भैय्या 28 की हूं।  अरे सो रही तीसरी छक्की वही थी जिसको खोजने के लिए मैं कैंट स्टेशन तक आया था। वह एकदम काली और कमजोर सी दिख रही थी। उसको देखते ही मैं बेताब सा हो उठा और झट से उसके पास पहुंचा और हाथों को थामकर पूछा क्या हुआ? इस पर अपना दाहिना पांव दिखाते हुए बोली कि ट्रेन से गिर गयी थी भईया। पांवो में घुटने के नीचे सूखते जख्म को देखकर लग रहा था कि घाव 15 से 20 दिन पहले का है। अब तक दोनो इसके संगी साथी एकदम खामोश खड़े थे तो 50 का एक नोट देते हुए मैने कहा अरे यार कुछ तो लाओं ताकि यह भी हमारे संग चाय पी ले। ज्योंहि एक छक्की जाने के लिए मुडी कि आवाज देकर मैने रोका और जेब से फिर सौ रूपए का एक नोट देते हुए कहा कि इसके लिए कुछ बिस्कुट भी ले लेना।
मैने उसको घाव दिखाने को कहा तो वह धीरे धीरे अपने सलवार को उपर कर कराहते हुए सूखते घाव को दिखाई। मेरे पास दर्द हर मलहम था मैने अपने बैग से उसे निकाला और उसके पैरो में लगा दिया। पांच मिनट के अंदर वो राहत महसूस की होगी, बहुत अच्छा लग रहा है भईया। मैने इस उपदेश के साथ कि दिन में दो तीन बार लगाओगी तो  तुम्हें राहत मिलेगी के साथ ही मलहम की डिबिया उसे थमा दिया। उसके चेहरे को गौर से देखा तो वो बोली क्या देख रहे हो भैय्या ?  हंसकर मैने कहा कि तू अब काफी मोटी तगडी और सुदंर सी दिख रही है। इस पर तुनकते हुए बोली मेरा मजाक उडा रहे हो। इस पर मैं भी पीटने का नाटक करते हुए कहा कि अगली दफा भी तू इसी तरह दिखी न तो तेरी पिटाई करूंगा। इस पर वो खिलखिला पडी। 
जब मैं इस सेवा और मनुहार  और प्यार दुलार से बाहर निकला तो  देखा कि रेलवे स्टेशन पर तो हमलोगों के इर्दगिर्द मजमा सा लगा हुआ है। मुझे थोडी लज्जा भी आई। मैने पास में ही खडी छक्की को कहा कि यहां तो पूरा मेला लग गया है। लोग अजीब तरह से हमलोगों को देख रहे थे। उसके पांव में मलहम लगाने के लिए मैं प्लेटफॉर्म के फर्श पर ही घुटना टेक बैठा था। तब तक चाय नास्ता आदि लेकर दूसरी छक्की बिफरते हुए आ गयी। अरे तेरी अंम्मा की सगाई हो रही है जो यहां पर खडा है साले, चल भाग । चाय पानी नास्ता आ जाने के बाद वे लोग खाने में बिजी हो गए। मैने भी दो चार बिस्कुट निकालकर उसको दिए, तो चाय पीकर वो कुछ भली सी लगी। मैने उससे पूछा कि तेरा नाम क्या है? इस पर मुस्कान बिखेरती हुई बोली भईया हमलोग के कई नाम होते है। आगरा में कुछ झांसी में कुछ तो ग्वालियर में कोई और नाम। पर तू मेरे को होली कहना इस नाम को सब जानते है। मैने फोटो के लिए कहा तो चारा डालते हुए बोली कि तुमको मना करते ठीक नहीं लगता है भईया पर फोटू खींचने से तेरी गरीब बहिन को ही बडी जलालत झेलनी पड़ेगी, बाकी तुम जो ठीक समझो कर सकते हो। हां उसने मेरा नंबर जरूर ली और पूछी भी  जब कभी भी तेरी जरूरत पड़ेगी तो क्या तू आएगा ? इस सवाल पर मैं भी परास्त सा ही हो गया। फिर भी साफ कहा कि यदि बदमाशी से कभी मेरा टेस्ट ली तो फिर कभी नहीं आउंगा, मगर दिल से और सहीं में जरूरत पर बुलाओगी तो कोशिश जरूर करूंगा। पर यह बता कि मैं अकेला आकर तो तेरा क्या बचाव कर सकता हूं। इस पर वो मेरे गाल या चेहरे को छूते हुए  बोली नहीं भईया तुमसे शैतानी करूंगी तो सामने मगर इस तरह का मजाक कभी नहीं । फिर बोली कि तुंम आगरा तक ही आते हो? मेरे हां कहने पर मायूष होकर होली बोली अब मैं आगरा कम आती हूं भईया कई महीनो के बाद कल ही आगरा आई हूं। अब ज्यादातर झांसी में रहती हूं। इस पर मैंने उसके दोनों हाथ पकड लिए सच होली इस बार मैं भी तुमको बहुत याद कर रहा था, लगता है कि हमलोग इसी कारण इस बार मिल भी गए। मेरी बात सुनते ही होली समेत तीनों जोर से खिलखिला उठी। उनलोगों को हंसते देखकर मैं थोडा झेंप सा गया। तब एक ने कहा यार तू सिनेमा में चला जा एकदम राजकपूर की तरह अपनी होली से प्यार जता रहा था। मैं भी हंसता मुस्कुराता फर्श से खडा होकर अपने पैंट और टी शर्ट ठीक करने में लग गया। मोबाईल निकाल कर समय देखा तो एक बज रहे थे। कब और किस तरह दो घंटे निकल गए इसका अंदाजा ही नहीं लगा। मैने चौकीदार छक्कियों से नाम पूछा तो एक ने अपना नाम बुलबुल और दूसरे ने चंदा बताया। मैने दोनों से पूछा कि क्या फिर कुछ चाय पानी? मेरी बात सुनते ही चंदा ने 30-40 रूपए निकालकर मुझे पकडाने लगी। तुम तो अपने निकल गए तुमसे क्या पैसे लेना। मैने चंदा को प्यार से कहा कि अपने का मतलब क्या होता है जानी और चाय लाने को है का। खाना पीना तो चलेगा ही। मैने एक सौ रूपए का एक नोट पकडाते हुए चाय के लिए कहा। साथ ही अपना बैग खोलकर उसमें रखा पठे का एक डिब्बा निकालकर होली को थमाया।यह तुमलोग के लिए है। पेटा का डिब्बा देखकर होली बहुत खुश हुई मगर दूसरे ही पल वापस करती हुई बोली नहीं भैय्या घर के ले ले जा रहे हो इसे नहीं रखूंगी। इस पर पेठे का दूसरा डिब्बा दिकाते हे मैने कहा कि दोखो घर के ले यह है । दूसरा डिब्बा तेरे लिए ही खरीदा था कि अगर तू मिल गयी तो कुछ मीठा तो होना ही चाहिए न। पेठा निकालने पर बुलबुल बोली तुम तो काफी धनवान लग रहे हो भाई। इस पर मैने  कहा नहीं बुलबुल तेरा भाई दिल से तो बहुत अमीर है, पर धन से कोई खास नहीं। ये तो होली के नाम पर इतने रूपए जमा थे सो वहीं खर्च कर रहा हूं, नहीं तो फिर तेरे ही जेब पर डाका डाला जाता। बुलबुल फिर बोली तुम करते क्या हो भाई ? मैं उसकी उत्कंठा पर हंस पडा कुछ नहीं यार बस्स इधर उधर लिखना और भाषण देता हूं कॉलेज में । वो सहज होकर बोली तुम नेता हो ? मैंने पलटते ही कहा मैं तुम्हें नेता लग रहा हूं। मैं तो पैंट टीशर्ट पहनता हूं जबकि नेता तो खद्दर पहनता है। इस पर वो फिर वोली नहीं भाई जमाना बदल गया है कपड़ो से अब कोई नहीं पहचाना जाता। तब तक चंदा कुछ सामान के साथ आ चुकी थी। तीनों खाने पर टूट पडी थी  और मैं चाय ले रहा था। बुलबुल और चंदा ने कहा कि वैसे तो हमलोग का यहां स्टेशन पर उधार चलता है पर आज हमलोग के पास एकदम पैसे नहीं थे यह तो तुम टकरा गए कि तेरा भी काम हो गया और होली के चलते हमलोग भी पार्टी कर रहे है। दोनों ने कहा हमलोग भाई दिल की इतनी बुरी नहीं होती है पर रोजाना सैकड़ो मर्दो से टकराना होता है, लिहाजा जरा गरम वाचाल और उदंड स्वभाव रखना पड़ता है ताकि लोग हमलोगों से डरे.और दूर ही रहे।
खान पान के बाद मैने होली से चलने की इजाजत मांगी। अपने बैग से दो नया तौलिया और चार पांच सफेद रूमाल निकालकर होली के सामने रख दिया कि यह सब रखो और आपस में बांट लेना। मेरे पास नया केवल दो ही तौलिया था। साथ ही प्रसाद का एक पैकेट भी निकालकर होली को थमाया। इन सामान को देखकर वे लोग एकदम चकित थी। एक साथ बोली अरे भाई इसको तुम ही रखो घर ले जा रहे हो । तब मैने लाचारी जाहिर की। यार मेरे पास कोई यादगार चीज ही नहीं है कि तुमलोग को दे सकूं। इस तरह ढाई घंटे बीत गए यह पता ही नहीं लगा। सबो ने थोडी देर और रूकने का मनुहार किया। रूकने की बजाय मैने होली के सिर पर हाथ फेरा और कहा कि ढाई बजे तक दिल्ली के लिए तीन ट्रेन है अगर यह छूट गयी तो घर पहुंचने में काफी रात हो जाएगी। जेब से सौ रूपए का नोट निकाल कर होली के हाथों में रख दिया, तो वह रोने लगी। बैठी ही बैठी वो मुझसे लिपट गई।  भईया मैने जरूर अच्छे कोई कर्म किए होगें तभी मेरे को भगवान ने छक्की बनाकर भी तुम जैसा भाई सौंप दिया है। अमूमन मैं जरा कठोर सा हूं आंखों में आंसू नहीं आते पर मेरा गला भी भर्रा उठा। मैने भी उससे कहा कि होली तुमको पाकर मैं भी बडा सौभाग्यशाली ही मान रहा हूं। रेलवे स्टेशन पर बडा अजीब सा ड्रामा हो रहा ता। मेरे आस पास 100 से ज्यादा लोग खड़े थे। और नयी नयी बहिन बनी चंदा और बुलबुल भी रो रही थी। मैने चुटकी ली जानती है जब मैने होली को पहली बार भाई कहा था तो वो बोली थी कि भईया सारे मेरे भाई ही बन जाओगे तो पैसा कौन देगा। और अब मैं कह रहा हूं चंदा बुलबुल रानी कि तुम सब मेरी बहिन ही बन जाएगी तो तेरा भईया किस पर लाईन मारेगा जी। मेरी बात सुनकर तीनों ठहाका मारकर हंसने लगी। मैं भी जरा माहौल के  तनाव को खुशनुमा बनाते हुए फिऱ अपनी होली बहिन को दवा समय पर खाने और बाम लगाने और दो एक दिन में झांसी जाकर आराम करने की सलाह दी। तब तक मेरे दोनों  मित्र भी पास में आकर बताया कि दो बजकर 10 मिनट में मैसूर निजामुद्दीन सुपर फास्ट आ रही है सो बस चला जाए। मैं भी सामान उठाने लगा। तीनो से फिर मुलाकात होने की उम्मीद के साथ मैं अपने मित्रों के साथ चल पडा। तभी होली ने आवाज दी एक मिनट इधर आना। मैं उसके पास पहुंचा ही था कि वह बडे अदब से मेरा पैर छूकर प्रणाम की और बोली कि मैं चलने लायक नहीं हूं भैय्या, नहीं तो तेरे संग दिल्ली तक जाकर ही लौटती। तेरे को जाने देने का तो मन नहीं कर रहा है पर क्या करे। मैने भी होली के हाथ को पकड़कर कहा कि मेरा भी जाने का मन एकदम नहीं कर रहा है पर जाना भी जरूरी है होली। वो बस्स हां भईया बोली और मैं अपना सामान उठाकर तेजी से आगे बढ़ गया। मेरे साथ ही साथ वहां पर जमा भीड भी इधर उधर हो गयी। मगर पीछे मुड़कर उन तीनों को देखने की मेरी हिम्मत नहीं हुई और मैं तेजी से स्टेशन के फूटओवर ब्रिज पर चढने लगा।








 





















डेंगू के डंक के 20 साल बाद

अनामी शरण बबल


मौसम विभाग का बढ़ चढ़कर बारिश होने का यह दावा कमसे कम राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में बेमानी साबित हो रहा है। लगभग मानसून के एक माह आए हो गए हैं  मगर बारिश है कि कब होगी य नही सको लेकर तो अब फिक्सरो ने बाजी लगानी शुरू कर दिया है। बारिश भल ही आए या न आए मगर दिल्ली में डेंगू ने पांव पसारना चलू कर दिया है।












पूरे परिवार से दोस्ती


अनामी करण बबल


यह दिल्ली के एक ऐसे परिवार की कहानी है, जिसमें पति पत्नी और उनकी बड़ी लड़की (23) समेत दोनों बेटे (20 और 13) भी मेरे दोस्त है।  दिल्ली के एक गांव नरेला में मेरा एक दोस्त प्रताप (बदला हुआ नाम ) रहता है। हम सबकी उम्र भी एक समान ही थी। सिक्षण के अलावा  कई तरह की राजनितिक और साहित्यिक गतिविधिय़ों में सक्रिय होने के कारण  




























प्रस्तावित कहानियां

तीन दोस्तों की एक सहेली --- हम चार सदा बहार

और वह मेरी दीदी बन गयी
पत्नी के लिए किराये के पति की तलाश  / गर्भ के लिए किराये का साथी

फिर कभी नहीं मिले
ज्यादा तेज बनने की सजा देव
पूरे परिवार से दोस्ती
यह कौन सा नाता



हम चार सदा बहार



अनामी शरण बबल


प्यार लगन निष्ठा अपनेपन समर्पण और साथ साथ ही सदा साथ और हमेशा  हर हाल में एक ही बने रहने की अदम्य लालसा की यह एक ऐसी कहानी है जिस पर यकीन करना और निकट से देखना एक रोचक रोमांचक दास्तान से कम नहीं है।  नाम और पहचान को जाहिर ना करके हम चार सदाबहार के आग्रह पर मैं इनके नाम शहर और पद की वरिष्ठता में हेरफेर कर रहा हूं। इनको अपने संबंधों पर नाज है और इनके बच्चों को भी अपने माता पिता की इस साहस भरी प्रेम कथा पर गौरव है। इनका मानना है कि हमलोग को इनके संतान होने पर भी नाज हैं जो आज भी एक साथ रहने और हमेशा बने रहने के लिए तमाम मतभेदों को भूलकर किसी भी क्षणिक स्वार्त लालच के लिए संबंधों को खराब ना करने की ही सलाह देते रहते है। करीब 23 साल से साथ रहने वाले हम चार सदाबहार को समाज की चिंता नहीं है। पर लेखकीय गरिमा का पालन करना तो हमारा नैतिक बंधन है।
इस अनोखे प्रेम कहानी की शुरूआत करीब 1990 -91 की है। जब अलग अलग राज्य के ये चार युवा सिविल सर्विसेज परीक्षा की तैयारियों के दौरान ही दिल्ली के आईएएस मंडी की तरह विख्यात इलाके में ही कहीं मिले और इस कदर आपस में घुलते मिलते रहे और परीक्षा की तैयारियों में इस कदर साथ हो गए कि बस चारों में सफलता पाने की होड लगी कि एक साथ एक ही बैच से इनको परीक्षा में सफलता मिली। यूपी बिहार और मध्यप्रदेश और मध्य भारत की ही लड़की देवी भी प्रशासनिक सेवा में चुन ली गयी। मगर दिल्ली में परीक्षा की तैयारी के दौरान ये चारो इस कदर एक सूत्र में बंध गए कि इनको न समाज की न अपने परिवार की चिंता रही। कल से लेकर आज तक चारो की केवल एक ही चिंता है और उत्साह आज तक भी है कि वे किस तरह एक ही साथ एक जीवन भर बने रहे।     

विसंगतियों से भरे हमारे समाज में ऐसे मर्दो की कोई कमी नहीं है जिन्होने तमाम मान मर्यादा सामाजिक बंधनों को लांधकर दो या इससे भी अधिक शादियां की है और सबों का साथ निभा रहे है। यहां पर मुझे हजारीबाग के नवजीवन संस्था चलाने वाले सतीष गिरिजा का बारम्बार ध्यान आ रहा है जिनकी पूरे शहर में चर्चा है और पूरे झारखंड में लोग इनको जानते है। जानने की वजह भी यह है कि सतीश और गिरिजा संयुक्त नाम भले ही दिखता हो मगर इन दोनों ने एक ही महिला से शादी की है और दोनों से इनको तीन संतान भी है। उम्र में अब 55 से ज्यादा हो जाने और शादी के भी 25 साल से अधिक हो जाने के बाद भी सतीश गिरिजा की एक अलग पहचान है। समय के साथ सफल वैवाहिक जीवन  और आर्थिक तौर पर सबल होना भी जुबान को बंद रखने में मददगार साबित हुई।
इसके बावजूद इनकी जोड़ी को अजीब तरह से देखा जाता है।  जगत विख्यात महाभारत के पांडवों के संग रहने वाली दौपद्री को भला आज कौन नहीं जानता। समाज में कैकेयी के बाद दौपद्री का ही नाम इस तरह बना कि कोई भी मां बाप अपनी बेटी का नाम दौपद्री या कैकेयी रखना नहीं चाहती है।

मैं आप सबों को इस बार एक ऐसी दौपद्री की कहानी सुनाने जा रहा हूं जिसके तीन पति है । पांडव बंधुओं की तरह ही इन तीनों दोस्तों में इतनी गहरी मित्रता और विश्वास है कि समाज के विपरीत हवा के खिलाफ रहते हुए भी करीब 25 साल से न केवल एक है, बल्कि मौत के बाद भी एक ही बने रहने की चाहत है। परीक्षा की तैयारियों के बीच चारो इस कदर एक हो गए कि किसी एक के बगैर कोई भी अपने आप को पूरा नहीं मान रहा था। और तो और देवी भी किसी एक के बगैर अपने आपको एक नहीं मान रही थी। तब देवी ने ही सबसे पहले कहा था कि मुझे तो तुम तीनों ही चाहिए । शादी हो या लिव इन रिलेशन पर मैं अपने इन अनमोल दोस्तों को छोड़ नहीं सकती। देवी की बातों पर ही तीनों सहमत थे। ये दोस्त भी आपस में इतने जुड़े थे कि अलग अलग शादी करके घर बसाने की बजाय तीनो ने ही अपने अमर दोस्ती के प्रेम के कारण देवी के साथ रहना ज्यादा सहज माना। और तीनों के साथ रहने पर सबसे ज्यादा उल्लास और खुशी देवी को हुई।

एक पत्नी और तीन पति । शादी के इस अनोखे ढंग को ज्यादा सार्थक और विवाद रहित बनाने के लिए तीनों मित्रों के बैंक में ऩॉमनी तो देवी ही हैं पर देवी के खातों के नॉमनी के लिए तीनों दोस्तों ने अपने नाम से कुछ कुछ शब्द निकालकर एक संयुक्त नाम बनाया। जिसके बतौर पहचान के लिए अपने पहचानपत्र पत्ता के साथ अदालती स्पष्टीकरण भी संलग्न किया कराया है । इस तरह के अदालती कार्रवाई का एक ही मकसद था कि भविष्य में कभी संपति जायदाद को लेकर झगड़े ना हो।
 दिल्ली  सरकार में एक तेजतर्रार  और बेहद कोमव स्वभाव के साथ साथ साहित्य के प्रति लेखन से ज्यादा अध्ययन की रुचि रखने वाले एक अधिकारी से अपनी याराना हुई। हमउम्र होने के चलते हमलोगहर तरह की बाटें कर लिया करते थे। काफी समय तक पत्रकारीय संबंधों के इतर उसने एक दिन एक पता देकर घर जाकर मिलने को कहा। मैने साथ चलने की बात की तो उसने कहा कि मेरी बात हो गयी है तुम अकेले जाओगे तो ज्यादा सहज होकर बात होगी। जाने से पहले मेरे मित्र ने यह बता दिया था कि उनकी कहानी हम चार सदा बहार वाली है। मैने फिर तहा कि पहले फोन तो कर देना ताकि .......। इस पर हंसते हुए कहा कि तुम क्या समझ रहो हो कि जाते ही गपियाने लगेंगेलोग। मे इन सबको तुम्हारे बारे में बताया और कहा भी कि जब प्रेस से ही मिलना है तो पहले अनामी से मिलो । उसने कहा कि मैं इस भरोसे पर तुमको भेद रहा हूं कि मुझे पत है कि पूरी बातचीत बोने के बाद भी यदि वे चाहे तो तुम खबर रोक दोगे। याऱ इतना भरोसा मैं तमाम पत्रकारों में केवल तुमपर ही कर सकता था तो मैं इसी उम्मीद पर इन यारों को राजी भी किया है कि एकदम घर जैसी बात होगी। अपने बारे में  यह सुनना मुझे भी बहुत प्रेरक सा लगा कि मेरे बारे में अधिकारियों की यह राय है। पर मित्र होने के बाद भी मैने आपकी कमियों लेट लतीफी पर तो कई खबरे की है फिर भी यह विश्वास?













































































एक प्यार ऐसा भी  


अनामी शरण बबल

यह घटना या हादसा जो भी कहें या नाम दें  यह 21 साल पहले 1995 की है। एकदम सही सही माह और दिनांक तो याद नहीं हैं।  मैं उन दिनों राष्ट्रीय सहारा में था। किसी सामयिक मुद्दे पर एक  लघु साक्षात्कार या टिप्पणी के लिए मैं शाम के समय विख्यात साहित्यकार और कादम्बिनी पत्रिका के जगत विख्यात संपादक राजेन्द्र अवस्थी जी के दफ्तर में जा पहुंचा। उनके कमरे में एक 42-43 साल की  महिला पहले से ही बैठी हुई थी। मैं अवस्थी जी से कोई 20 मिनट में काम निपटा कर जाने के लिए खड़ा हो गया। तब उन्होने चाय का आदेश एक शर्त पर देते हुए मुझसे कहा कि आपको अभी मेरा एक काम करके ही दफ्तर जाना होगा। मैने बड़ी खुशी के साथ जब हां कह दी तो वे मेरे साथ में बैठी हुई महिला से मेरा परिचय कराया। ये बहुत अच्ची लेखिका के साथ साथ बहुत जिंदादिल भी है। ये अपने भाई के साथ दिल्ली आई हैं पर इनके भाई कहीं बाहर गए हैं तो आप इनके साथ मंदिर मार्ग के गेस्टहाउस में जाकर इनको छोड़ दीजिए। ये दिल्ली को ज्यादा नहीं जानती है। श्रीअवस्थी जी के आदेश को टालना अब मेरे लिए मुमकिन नहीं था। तब अवस्थी जी ने महिला से मेरे बारे मे कहा कि ये पत्रकार और साहित्य प्रेमी  लेखक हैं। अपनी किताबें इनको देंगी तो ये बेबाक समीक्ष भी अपने पेपर में छपवा देंगे। उन्होने मुस्कन फेंकते हुए किताबें फिर अगली बार देने का वादा की। अवस्थी जी की शर्तो वाली चाय आ गयी तो हमलोग चाय के बाद नमस्कार की और महिला लेखिका भी मेरे साथ ही कमरे से बाहर हो गयी।

याद तो मुझे लेखिका के नाम समेत शहर और राज्य का भी है मगर नाम में क्या रखा है । हिन्दी क्षेत्र की करीब 42-43 साल की लेखिका को लेकर मैं हिन्दुस्तान टाईम्स की बिल्डिंग से बाहर निकला तो उन्होने कस्तूरबा गांधी मार्ग और जनपथ को जोड़ने वाली लेन तक पैदल चलने के लिए कहा। उन्होने बताया कि यहां की कुल्फी बर्फी बहुत अच्छी होती है, क्या तुमने कभी खाई है ।  इस पर मैं हंस पड़ा दिल्ली में रहता तो मैं हूं और कहां का क्या मशहूर है यह सब जानती आप है। मैं तो कभी सुना भी नहीं थ। चलो यार आज मेरे साथ खाओ जब भी इस गली से गुजरोगे न तो तुमको मेरी याद जरूर आएगी। मैं भी इनके कुछ खुलेपन पर थोड़ा चकित था। फिर भी मैंने मजाक में कहा कि आप तो अवस्थी जी के दिल में रहती है उसके बाद भला हम छोटे मोटे लेखकों के लिए कोई जगह कहां है। इस पर वे मुस्कुराती रही और उनके सौजन्य से कुल्फी का मजा लिया गया। बेशक इस गली से हजार दफा गुजरने के बाद भी प्रेम मोटर्स की तरफ जाने वाली गली के मुहाने पर लगी मिठाई की छोटी सी दुकान की कुल्फी से अब तक मैं अनभिज्ञ ही था।

 कस्तूरबा गांधी मार्ग से ही हमलोग ऑटो से मंदिर मार्ग पहुंचे ऑटो का किराया उन्होने दिया और हमलोग मंदिर कैंपस में बने गेस्टहाउस में आ गए। एक कमरे का ताला खोलकर वे अंदर गयी। मैं बाहर से ही नमस्ते करके जब मैं जाने की अनुमति मांगी तो वे चौंक सी गयी। अरे अभी कहां अभी तो कुछ पीकर जाना होगा। अभी तो न नंबल ली न नाम जानती हूं । चाय लोगे या कुछ और...। मै उनको याद दिलाय कि चाय तो अभी अभी साथ ही पीकर आए हैं। कुल्फी का स्वाद मुहं में है । अभी कुछ नहीं बस जाने की इजाजत दे। लौटने के प्रति मेरे उतावलेपन से वे व्यग्र हो गयी। अरे अभी तो तुम पहले बैठो फिर जाना तो है ही। मेरे बारे में तो कुछ जाना ही नहीं। थोड़ी बात करते हैं तो फिर कभी दिल्ली आई तो तुमको बता कर बुला लूंगी। उन्होने अपने शहर में आने का भी न्यौता भी इस शर्त पर दी कि मेरे घर पर ही रूकना होगा। मैने उनसे कहा कि इतना दूर कौन जाएगा और ज्यादा घूमने में मेरा दिल नहीं लगता।

मैं कमरे में बैठा कुछ किताबें देख रह था। तभी वे न जाने कब बाथरूम में गयी और कपड़ा चेंज कर नाईटी में बाहर आयी। बाथरुम से बाहर आते ही बहुत गर्मी है दिल्ली की गरमी सही नहीं जाती कहती हुई दोनों हाथ उठाकर योग मुद्रा में खुद को रिलैक्स करने लगी। मैं पीछे मुड़कर देखा तो गजब एक तौलिय हाथ में लिए पूरे उतेजक हाव भाव के साथ मौसम को कोस रही थी। मैने जब उनकी तरफ देखने लगा तो वे पीछे मुड़कर पानी लगे बदन पर तौलिया फेरने लगी। अपनापन जताते हुए उन्होने बैक मुद्रा मे ही कहा यदि चाहो तो बबल तुम भी बाथरूम में जाकर हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो जाओ। मैं इस लेखिका के हाव भाव को देखते ही मंशा भले ना समझा हो पर इतनी घनिष्ठता पर एकदम हैरान सा महसूस करने लगा था। मैने फौरन कहा अरे नहीं नहीं हमलोग को तो दिल्ली के मौसम की आदत्त है । मैं एकदम ठीक हूं। यह कहकर मैं फिर से बेड पर अस्त व्यस्त रखी पत्र पत्रिकों को झुककर देखने लगा।
बिस्तर पर झुककर बैठा मैं किसी पत्रिकाओं को देख ही रहा था कि एकाएक वे एकाएक मुझ पर जानबूझ कर गिरने का ड्रामा किया या पैर फिसलने का बहाना गढ़ लिया पर एक बारगी पेट के बल बिस्तर पर पूरी तरह मैं क्या गिरा कि उनका पूरा बदन ही मेरे पीठ के उपर आ पड़ा। एकाएक इस हमले के लिए मैं कत्तई तैयार नहीं था। एक दो मिनट तो मेरे पूरे शरीर पर ही अपने पूरे बदन का भार डालकर संभलने का अभिनय करने लगी। उनकी बांहें पीछे से ही मेरे को पूरे बल के साथ दबोचे थी। दो चार पल में ही मैं संभल सा गया। नीचे गिरने और अपने उपर कम से कम 70-72 किलो के भारी वजन को पीछे धकेलते हुए जिससे वे पेट के बल बिस्तर पर उलट सी गयी। दो पल में ही मैं उनको अपने से दूर धकेलते हुए बिस्तर से उठ फर्श कहे या जमीन पर खड़ा हो गया। वे दो चार पल तो बिस्तर पर निढाल पड़ी रही। कुछ समय के बाद भी उठने की बजाय बिस्तर पर ही लेटी  मुद्रा में ही कहा मैं अभी देखती हूं किधर चोट लगी है तुम्हें। बारम्बार गिरने के बारे में असंतुलित होने का तर्क देती रही। उनको उसी हाल में छोड़कर मैं कुर्सी पर पैर फैलाकर बैठ उनके खड़े होने का इंतजार करता रहा।

 मैं सिगरेट पीता तो नहीं हूं पर टेबल पर रखे सिगरेट पैकेट को देखकर मैने एक सिगरेट सुलगा ली और बिना कोई कश लिए अपने हाथों में जलते सिगरेट को घूमाता रहा। जब आधी से ज्यादा सिगरेट जल गयी तो फिर मैं यह कहते हुए बाकी बचे सिगरेट को एस्ट्रे मे फेंक दिया माफ करना सिगरेट भाई कि मैं पीने के लिए नहीं बल्कि अपने हाथ में सुलगते सिगरेटों को केवल देखने के लिए ही तेरा हवन कर रहा था। वे खड़ी हो गयी और मेरे बदन पर हाथ फेरते हुए व्यग्रता से बोली जरा मैं देखूं कहीं चोट तो नहीं लगी है। मैने रूखे स्वर में कहा कि बस बच गया नहीं तो घाव हो ही जाता।  मेरी बात सुनकर वे हंसने लगी। चोट से तो घाव ठीक हो जाते है यह कहते हुए उन्होने फिर एक बार फिर मुझे आलिंगनबद्ध् करने की असफल कोशिश की। मैने जोर से कहा आपका दिमाग खराब है क्या?  क्या कर रही हैं आप। एकदम सीधे बैठे और कोई शरारत नहीं। आपको शर्म आनी चाहिए कि अभी मिले 10 मिनट हुए नहीं कि आप अपनी औकात पर आ गयी।

अरे कुछ नहीं तो अवस्थी जी का ही लिहाज रखती। यदि उन्होने कहा नहीं होता तो क्या मैं किसी भी कीमत पर आपके साथ आ सकता था।  मैं अपनी मर्यादा के चलते किसी का भी रेप नहीं कर सकता पर मैं किसी को अपना रेप भी तो नहीं करने दे  सकता । यह सुनकर वे खिलखिला पड़ी, यह रेप है। मैने सख्त लहजे में कहा कि क्या रेप केवल आप औरतों का ही हो सकता है कि सती सावित्री बनकर जमाने को सिर पर उठा ले । यह शारीरिक हिंसा क्या मेरे लिए उससे कम है। यह सब चाहत मन और लगाव के बाद ही संभव होता है। जहां पर प्यार नेह का संतोष और प्यार की गरिमा बढती है। आप तो इस उम्र में भी एकदम कुतिया की तरह मुंह मारती है। मेरे यह कहते ही वे बौखला सी गयी। तमीज से बात करो मैं कॉलेज में रीडर हूं और तुम बकवास किए जा रहे हो। मैं पुलिस भी बुला सकती हूं। मैने कहा तो रोका कौन है मैं तो खुद दिल्ली का क्राईम रिपोर्टर हूं। कहिए किसको बुलाकर आपको जगत न्यूज बनवा दूं। मैने उनसे कहा कि कल मैं अवस्थी जी को यह बात जरूर बताउंगा। बताइए क्या इरादा है पुलिस थाना मेरे साथ चलेंगी या फिर मैं अभी थोड़ी देर तक और बैटकर आपको नॉर्मल होने का इंतजार करूं। मेरे मन में भी भीतर से डर था कि कहीं यह लेखिका महारानी  सनक गयी और किसी पुलिस वाले को बुला ली या मेरे जाने के बाद भी बुला ली तो हंगामा ही खड़ा हो जाएगा,। मगर पत्रकार होने का एक अतिरिक्त आत्मविश्वास हमेशा और लगभग हर मुश्किल घड़ी में संबल बन जाता है। सिर आई बला को टाल तू की तर्ज पर मैने उनको सांत्वना दी। उन्होने अपना सूर बदलते हुए कहा कि तू मेरा दोस्त है न ?  जब कभी भी मैं दिल्ली आई और तुमसे मिलना चाही तो तुम आओगे न ? मैने भी हां हूं कहकर भरोसे में लिया। फिर मैने कहा कि खाली ही रखेंगी कि अब कुछ चाय आदि मंगवाएंगी। मैने चाय पी और चाय लाने वाले छोटू का नाम पूछा और 10 रूपए टीप दे दी ताकि वो गवाह की तरह कभी काम आ सके।  फिर मैने उनसे कहा बाहर तक चलिए ऑटो तो ले लूं। मैने ऑटो ले ली और मेरे बैठते ही उन्होने ऑटो वाले को 50 रूपये का नोट थमा दी। मेरे तमाम विरोध के बाद भी वे बोली कि आप मुझे छोडने आए थे तो यह मेरा दायित्व है।

बात सहज हो जाने के बाद अगले दिन मैं इस उहापोह में रहा कि कल की घटना की जानकारी श्री अवस्थी जी को दूं या नहीं। मगर दोपहर में हम रिपोर्टरों की डेली मीटिंग खतम् होते ही मैं पास वाले हिन्दुस्तान टाईम्स की ओर चल पड़ा। कादिम्बनी के संपादक राजेन्द्र अवस्थी के केबिन के बाहर था। बाहर से पता चला कि वे खाना खा रहे हैं तो मुझे बाहर रुककर इंतजार करना ज्यादा नेक लगा, नहीं तो इनके भोजन का स्वाद भी खराब हो जाता। खाने की थाली बाहर आते ही मैं उनके कमर में था। मेरे को देखते ही मोहक मुस्कान के साथ हाल चाल पूछा और एक कप चाय और ज्यादा लाने को कहा। चाय पीने तक तो इधर उधर की बातें की, मगर चाय खत्म होते ही कल एचटी से बाहर निकलने से लेकर मंदिर मार्ग गेस्टहाउस में शाम की घटना का आंखो देखा हाल सुना दिया। मेरी बात सुनकर वे शर्मसार से हो गए। उनकी गलती के लिए एकदम माफी मांगने लगे। तो यह मेरे लिए बड़ी उहापोह वाली हालत बन गयी। मैने हाथ जोड़कर कहा कि सर आप हमारे अभिभावक की तरह है। मैं आपके प्यार और स्नेह का पात्र रहा हूं लिहाजा यह बताना जरूरी लगा कि पता नहीं वे कल किस तरह कोई कहानी गढकर मेरे बारे में बात करे। मैने अवस्थी जी को यह भी बताया कि मैंने कल शाम को ही उनको कह दिया था कि इस घटना की सूचना अवस्थी जी को जरूर दूंगा। बैठे बैठे अवस्थी जी मेरे हाथओं को पकड़ लिए और पूछा कि आपने इस घटना को किसी और से भी शेयर किया है क्या ? मेरे ना कहे जाने पर अवस्थी जी ने लगभग निवेदन स्वर में कहा कि अनामी इसको तुम अपने तक ही रखना प्लीज।  मैं कुर्सी से खड़ा होकर पूरे आदर सम्मान दर्शाते हुए कहा कि आप इसके लिए बेफिक्र रहे सर। इस घटना के कोई दो साल के बाद अवस्थीजी का मेरे पास फोन आया कहां हो अनामी ? उनके फोन पर पहले तो मैं चौंका मगर संभलते हुए कहा दफ्तर में हूं सर कोई सेवा। ठठाकर हंसते हुए बोले बस फटाफट आप मेरे कमरे में आइए मैं चाय पर इंतजार कर रहा हूं। उनके इस प्यार दुलार भरे निमंत्रण को कैसे ठुकराया जा सकता था। मैं पांच मिनट के अंदर अंबादीप से निकल कर एचटी हाउस में जा घुसा। कमरे में घुसते ही देखा कि वही मंदिर मार्ग वाली महिला लेखिका पहले से बैठी थी। मुझे देखते ही वे अपनी कुर्सी से उठकर खड़ी होकर नमस्ते की, तो अवस्थी जी मुस्कुराते हुए मेरा स्वागत किया। उन्होने कहा कि माफ करना अनामी मैने तुम्हें नहीं बुलाया बल्कि ये बहुत शर्मिंदा थी और तुमको एक बार देखना चाहती थी। अवस्थी जी की इस सफाई पर भला मैं क्या कह सकता था। मैने हाथ जोड़कर नमस्ते की और हाल चाल पूछकर बैठ गया। वे बोली क्या तुम नाराज हो अनामी ? मैने कहा कि मैं किसी से भी नाराज नहीं होता। जिसकी गलती है वो खुद समझ ले बूझ ले यही काफी है । मैं तो एक सामान्य सा आदमी हूं नाराज होकर मैं अपना काम और समय क्यों खराब करूं।  करीब आधे घंटे तक मैं वहां बैठा रहा। बातचीत की और दोनों से अनुमति लेकर बाहर जाने लगा तो अवस्थी जी ने फिर मुझे रोका और महिला लेखिका को बताया कि अनामी को मैने ही कहा था कि इस घटना को तीन तक ही रहने दे। इस पर मैं हंसने लगा सर आप कह देते तो 10-20 लोग तक तो यह बात जरूर चली जाती पर सब मेरे को भी तो दोषी मान सकते थे। मैने किसी को यह बात ना कहकर अपनी भी तो इज्जत की रक्षा की । इस पर एक बार फिर खड़ी होकर वेखिका ने मेरे प्रति कृतज्ञता जाहिर की, तो मैं उनके सामने जा हाथ जोड़कर नमस्ते की और इसे भूल जाने का आग्रह किया। इस घटना के बाद अवस्थी जी करीब 13 साल तक हमसबों के बीच रहे। निधन हुए भी अब करीब आठ साल हो गए और लेखिका अब कहां पर हैं या नहीं या रिटायर कर गयी सब केवल भगवान जानते है। तब मुझे लगा लगा कि करीब 21 साल पहले की इस घटना को याद कर लेने में भी अब कोई हर्ज नहीं है। तो यह थी एक घटना जहां पर सावधान और बुद्धि कौशल साहस को सामने रखकर ही खुद को बचाया जा सकता था या बदनामी और खुद अपने को  रेप से बचाया ।      


































डीटीसी बस में एक प्रेमकथा

अनामी शरण बबल

आज मेरी उम्र 51 साल की चल रही है, मगर यह घटना चार साल पहले की है। अपने निवास कॉलोनी मयूर विहार फेज-3 के सीआरपीएफ डीटीसी बस स्टैण्ड़
 पर से मैने डीटीसी की एक 211 नंबर की एक बस ली। बस में चढते ही गाड़ी चल पड़ी और मैं जेब से 50 रूपये का एक नोट देकर 40 रूपये वाली एक पास देने को कहा। पास के लिए नाम और उम्र बतानी पड़ती है। बस पास को कंडक्टर लोग सबसे बाद में बनाते है। पास बनाने की जब मेरी बारी आई तो मैने देखा कि कंडक्टर एक महिला है। उम्र कोई 30-32 की होगी । सामान्य शकल सूरत जिसे बहुत सुदंर तो नहीं मगर ठीक ठीक आर्कषक की श्रेणी में रखा जा सकता है। मैने फौरन कहा अनामी शरण 47। मेरे नाम को पता नहीं वो ठीक से सुन या समझ नहीं सकी। अचकचाते हुए तुरंत बोली  क्या नाम बताया ?  मैने कहा अनामी 47।  वो फिर मुझसे पूछी क्या यह आपका नाम है ? मैंने शांतभाव से कहा जी आपको कोई दिक्कत ? मेरी बात सुनते ही हंस पड़ी। एकदम अनोखा नया और अलग तरह का नाम है आपका । यहं तो मैं दिन भर रमेश दिनेश सुरेश राजेश मोहन सोहन जितेन्द्र धर्मेन्द्र राजेन्द्र जैसे ही नाम सुनती और लिखती रहती हूं। मेरा नाम लिखने पर बोली एज क्या कहा था? इस पर मैं हंस पड़ा। काम की रफ्तार तो आपकी बहुत धीमी है। कैसे संभालती है दिन भर की भीड़ को आप ? मेरी आयु 47 है । 47 सुनते ही वो एकटक मुझे देखने लगी। लगते नहीं है आप। मैं कंडक्टर महिला के ऑपरेशन से उकत्ता सा गया था। अजी मेरी आयु साढ़े 47 की है, और कहीं से भी उम्र छिपाने या कम बताने  का रोग नहीं है। मैं तो हर साल अपनी बढती उम्र का स्वागत करता हूं और 12 नवम्बर को एज बढ़ाकर ही बोलने लगता हूं। कंडक्टर महिला एक बार फिर टपक पड़ी। आपका बर्थडे 12 नवम्बर है ? मुझे बोलना ही पड़ा जी आपको कोई आपति। वो एक खुलकर हंसने जी एकदम आपति ही आपति है। य़हां पर मैं चौंका कि क्यों आपति होगी इसे। बीच में दो छोटे -2 बस स्टॉप आए जहां से दो एक सवारी भी चढे जिनको टिकट देकर वो फ्री भी करती रही, मगर मेरा पास और रूपये दोनों अभी तक उसके ही पास थे। अब जरा मुझे भी फ्री करिए ना कि मैं भी कोई सीट देखू। मेरी बात सुनते ही वो अपना बैग बांए हाथ में टांग ली और आधी सीट को खाली करती हुई बोली आप मेरी सीट पर ही बैठ जाइए न। मैने उनको धन्यबाद दिया और सलाह भी कि अपनी सीट पर किसी को बैठने के लिए कभी ना कहा करें क्योंकि आपके पास पैसा टिकट और भी बहुच सारी चीजे होती हैं जिसका शाम को हिसाब देना पड़ता है। मेरी बात सुनकर फिर बोली मेरा जन्मदिन भी 12 नवम्बर को ही है। आप तो नवम्बर नहीं सेम डे फ्रेंड निकले और अपने हाथ को आगे कर दी । मैं बड़ा पशोपेश में था फिर भी अपना हाथ बढाकर उसके हाथ को मैने थाम ली। वो एक बार फिर खुश होकर बोल पड़ी, अरे वो आप तो एकाएक एकदम मेरे दोस्त बन गए । इस पर मैं भी हंसते हुए कह कि लगता है कि अपना बर्थडे इस बार आपके साथ ही मुझे मनानी पड़ेगी। मेरी बात सुनकर वो एकदम खिल पड़ी और बोली सच्ची। मैने फौरन कह मुच्ची। मेरे कहने पर वो फिर हंस पड़ी और मेरे  पास और 10 रूपये का नोट मुझे दे दी। पास लेकर जाने से पहले मैने भी एक स्माईल पास कर दी। वो भी मेरे स्माईल के जवाब में खिलखिला पडी। बस तो आगे निकलती रही और शाहदरा के बिहारी कॉलोनी स्टॉप पर मैं उतर गया। मैं बस के नीचे था और बस आगे बढ़ी तो कंडक्टर महिला बस के भीतर से ही हाथ हिलाकर स्माईल पास की।     दो चार घंटे तक तो वह महिला मेरे ध्यान में रही और फिर सामान्यत मैं लगभग भूल सा गया। करीब 15 दिन के बाद मुझे क्नॉट प्लेस जाना थआऔर मैं वही सीआरपीएफ डीटीसी बस स्टॉप पर से 378 नंबर की बस ली। बस में सवार होते ही जेब से फिर 50 का एक नोट निकाल कर मैने कंटक्टर की तरफ देखा तो इस बार इस बस में वही महिला कंडक्टर थी, जिससे करीब 15-17 दिन पहले मिला था। सवरियों की भीड़ छंटते ही जब मेरी बारी आई तो मैं नोट बढ़ाते हुए नमस्ते की और हंसकर बोला फिर टकरा गयी आप कैदी नंबर 12 नवम्बर। मेरी बात सुनते ही वो मुझे नमस्ते की और जोर से हंसने लगी। अरे आप कैसे है और कहां रहे? मैं तो रोजाना देखा करती थी कि शायद बस में सवार हो आप। मैने तुरंत कहा अच्छा जी नौकरी करती हैं डीटीसी की और चाकरी करती है मेरी। भरशक डीटीसी का बंटाधार हो रहा है। वो फिर हंसने लगी अरे नहीं आपसे हुई मुलाकात की बात जब मैने अपने बेटे को बताई तो वह आपसे मिलना चाहता है। और रोजाना पूछता है कि क्या अंकल से मुलाकात हुई ? मैने पास के लिए फिर अपने  नाम और उम्र की जानकारी दी अनामी  47। एक बार फिर वही उम्र का प्रलाप की देखने में 40 से ज्यादा नहीं लगते। मैने तुरंत कहा की पूरी दाढी सफेद है आप नहीं मानेंगी तो मैं कल से ही शेव करना बंद कर दूंगा तब एक माह में ही 55 का दिखने और लगने भी लगूंगा। मेरे बेटे से आप नहीं मिलेंगे ? उसकी बातें सुनकर मैं हंसने लगा। और आपके मिस्टर क्या करते हैं ? इस बार मुझे कंडक्टर सीट के ठीक पीछे वाली सीट मिल गयी थी तो बीच बीच में बातचीत करने का समय भी मिलता जा रहा था। मैं डाईवोर्सी हूं।  तो इसके लिए ज्यादा बदमाशी किसकी थी ? मैने तो माहौल को हल्का करने के लिए ही हवा हवा मे यह बात कह  दी मगरइस बातसे वो थोडी अपसेट सी हो गयी। इसमें हमदोनें की ही गलती मान सकते हैं,पर लोग हमेशा औरतों की तरफ ही देखते हैं। यह नौकरी कब से कर रही हैं ? इस पर वो तिलमिला सी गयी। मैं तो डबल एमए हूं। घर में पैसे की कोई दिक्कत भी नहीं हैं पर मैं जानबूझकर डीटीसी की नौकरी कर रही हूं क्योंकि  इसमें रोजाना हजारों तरह के लोगों से मिलती हूं। आंखे देखकर ही आदमी को पहचानने लगी हूं और इससे मेरा आत्मविश्वास बढा है। उसकी बाते सुनकर मैं फिर हंसने लगा आपका फेस रीडिंग बेकार है। मुझ जैसे नटवरलाल को तो आप बूझ ही नहीं सकी और दावा करती हो कि मैं लोगों को देखकर ही पहचान जाती हूं। अभी आपमें तो बहुत कमी है। मेरी बात सुनकर बोली अरे आपके जैसा नटवरलाल भी दोस्त रहेगा तो चलेगा। मैं तो आपका दोस्त हूं ही।  मेरी बात सुनते ही बोल पड़ी नहीं नहीं  यह तो जान पहचान है दोस्ती तो अलग होती है। मैं चौंकते हुए बोला और कौन सी दोस्ती होती है। मेरे तो सारे दोस्त इसी कैटेग्री के है। हां कोई बीमार है कोई कष्टमें हैं य किसी को मेरी जरूरत हो तो मैं हाजिर हो जाता हूं पर इसके अलवा तो मेरा कोई और दोस्त ही नहीं है। बहुत सारे तो ऐसे भी दोस्त हैं जिनसे सालो मिला नहीं बात भी नहीं की मगर प्यार अपनापन और विश्वास में कोई कमी नहीं। मित्रता तो एक भरोसे का नाम होता है । और प्यार किससे करते हैं ? उसके इस सवाल पर मैं हंसने लगा। खुद से प्यार करता हूं क्योंकि जो काम मैं खुद नहीं कर सकता वो दूसरों के लिए कहां और कैसे कर सकता हूं भला। मैं तो अपने दोस्तों में बसता हूं और मेरे तमाम दोस्त भी मेरे दिल में ही रहते हैं। तभी तो रोजाना उनको बिन देखे ही मैं देख भी लेता हूं और याद भी कर लेता हूं। एक सीमा से आगे बढ़ जाना प्यार या दोस्ती नहीं संबंधों पर अनाधिकार कब्जें का प्रयास होता है।

डीटीसी बस आईटीओ पर आ गयी थी। बस के खुलने के साथ ही वो एक बार फिर बोली क्या मैं आपका दोस्त हूं ? इस पर मै बोल पड़ा, पहली मुलाकात में तो एकदम नहीं पर अब आप मेरी दोस्त है। वो थोडी व्यग्रता से बोली तो हम मिल कैसे सकते है ? मैंने कहा यही सब तो दिक्कत है कि मेलजोल ज्यादा मुझे रास नहीं। जब जरूरत हो तो घंटो रह सकता हूं पर फालतू के लिए मिलना और समय गंवानाने  तो मूर्खता है। आप अपनी नौकरी करे चलते फिरते मेल मिलाप और बाते होती रहेंगी। कभी छुट्टी हो तो मेरे घर पर आइए बेटे को लेकर तो सबों से मेल जोल हो जाएगा। मेरी बीबी भी बहुत खुश होगी। सर्द आहें भरती हुई वो बोल पड़ी कि आप पहले आदमी हो यार जो मित्रता करने के लिए भी अपनी शर्ते पेल रहे हो, नहीं तो मर्द लोग तो दोस्ती करने के लिए बेहाल रहते है। उसकी बातें सुनकर मैंने कहा मित्रता एक भरोसे का नाम है कि कोई भी बात बेफ्रिक होकर कह दो क्योंकि मित्र दो नहीं एक होते हैं। मेरा यार कहना आपको बुरा लग ? नहीं यार मित्रता में कोई भी बात किसी को बुरी नहीं लगती, और जब बातें बुरी लगने लगे तो समझों कि कहीं पर मित्रता या भरोसे में कमी है।  बात करते करते मंडी हाउस स्टॉप पर बस आने वली थी, और मैं उतरने के लिए तैयार होने लगा ।             
वो व्यग्रता के साथ बोली मैं आजकल इसी रूट पर हूं। अपना हाथ आगे कर दी जिसे थामकर मैने आहिस्ता से छोड़ दिया। बस मंड़ीहाउस पर आ गयी थी और मैं मैं यहीं पर उतर गया।

करीब 10-12 दिन के बाद मुझे लक्ष्मीनगर जाना था और मैं स्टॉप पर खड़ा ही था कि दोपहर लंच के बाद चलने वाली बस में एक बार फिर अपनी कंडक्टर दोस्त के सामने टिकट के लिए खड़ा था। मेरे को देखते ही शिकायती लहजे में बोली अरे आप तो लापता ही हो गए। फोन तक नहीं किए। मेरे पास तो आपका नंबर ही नहीं है। तो मांग लेते। मैं किसी भी लड़की से पहले नंबर नहीं मांगता। मैं तो आपक नाम तक नहीं जानती? वो हैरान सी थी । सही कहा आपने मैं भी कहां जानती हूं  आपका नाम  क्या है  नाम भी इतना सरल कहां जो एकपल में याद हो जाए।?  बस में ज्यादा भीड़ नहीं और मैं एक बार फिर कंडक्टर सीट के पीछे वाली सीट पर आ बैठा। मैने पूछा और आपका बेटा ठीक है ? हां वो ठीक है मगर आपके बारे में पूछता रहता है। मैने अचरज जाहिर की बड़ा कुशग्र है लडका कि महीनो तक याद रखा है। इस पर वो बात को समझ नहीं सकी आप मेरे बेटे की तारीफ कर रहे हैं या हंसी उडा रहे है ? मैं फौरन बोल पडा अरे बच्चे का मैं क्यों उपहास करूंगा आपकी तो उपहास कर सकता हूं ? मेरे को अपना नंबर देती हुई और मेरे नंबर को अपने पास लेती हुई उसने बात करने की वादा की।

 करीब 15 दिनों के बाद शाहदरा जाने के लिए मैं ज्योंहि 211 नंबर पर सवार हुआ तो मेरे सामने मेरी डीटीसी दोस्त नजर आय़ी। इस बार की मुलाकात में वो थोडी परेशान थी। उसने मुझसे बीच में उतरने की बजाय अंतिम स्टॉप मोरी गेट तक ,साथ चलने का आग्रह की। उसने वापसी में अपने स्टॉप पर उतरने का निवेदन की। मेरे पास भी कोई अर्जेंट सा काम था नहीं सो मैं मोरी गेट तक साथ रहा। रास्ते में खास बातें नहीं हो सकी पर मोरी गेट पर बस के अंदर ही छोले भटूरे की एक एक प्लेट खाया। उसने बताया कि उसका पूर्व पति बस में या घर के बाहर आकर पोस्टर लगाकर तंग करना शुरू कर दिया है। मैने उसको पुलिस या महिला आयोग की मदद लेने की सलाह दी। उसने यह भी बताया कि उसके पति ने शादी भी कर ली है। मैने बेसाख्ता कहा कि आप भी देख भाल कर और अपने मां पापा से बात करे और फिर से शादी कर ले। फिर अभी तो आपकी कोई उम्र भी नहीं है। कौन करेगा मुझसे शादी बेटा है न ? आजकल जमाना बदल गया है और लोगोंके विचारों में उदारता आयी है। आप पेपर में एड देकर तो देखो.। पर ध्यान रखना बिन देखे पहली शादी की तरह ही इस बार धोख न खाना.।

हमलोग बस के भीतर भटूरे खा भी रहे थे और सवारी भी बस में सवार होने लगी थी। बस खुलने में कोई 10 मिनट अभी बाकी थी। तब तक चाय भी आ गयी। चाय पीते हुए मुझसे एकाएक बोल पड़ी क्या आप मुझसे शादी करेंगे ? मैं एक मिनट के लिए तो इस सवाल को ही समझ हीं नहीं पाया पर एकटक उसको देखता रहा। क्या बकवास कर रही हो। मेरी उम्र 47 है मेरी बेटी 17 साल की है। तुम एकदम उतावली ना हो मैं तो तो तेरा मित्र हूं अखबार में विज्ञापन देने और सही आवेदन को छांटने तथा सही लड़के की तलाश करने में भी मदद करूंगा। तुम घबराओं नहीं बल्कि हौसला रखो क्योंकि तेरा एक बेटा भी है। और सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि तुम्हारा कोई भाई नहीं केवल तुम दो बहने ही हो और बाप की अच्छी खासी प्रोपर्टी भी है तो बहुत सारे लालची भी टपक सकते है। तुमको तो बहुत सावधानी बरतनी होगी। अपने रिश्तेदारों में देखो क्या कोई है जो तुम्हारे लायक है। वो निराश होकर बोली एक तू ही मुझे दिख रहा था और मैं तीन माह से तुम्हें वाच भी कर रही थी पर तुमने तो ना कर दी। मैं तेरा दोस्त हूं और एक दोस्त मां बाप भाई कभी बेटा तो कभी किसी भी रिश्ते में दिख सकता है मगर एक दोस्त पति की जगह नहीं ले सकत।  

बस खुलने का समय हो गया था और मोरीगेट पर ही गड़ी खचाखच भर गयी। वैसे तो मैं कंडक्टर सीट के पीछे ही बैठा था पर यात्रियों की भरमार के चलते वह टिकटौर पास बनाने में ही व्यस्त रही। बीच में दो चार बातें हुई मगर यात्रियों की भीड़ ने बातों पर लगाम लगाए रखा। वापसी में मैं बिहारी कॉलोनी पर उतरने के लिए खड़ा हुआ तो उसमे अपना हाथ फिर बढा दी, जिसे मैने थामकर छोड़ दिया। फिर मिलने का वादा कर मैं शाहदरा में ही उतर गया।

इसके करीब चार माह तक फिर उससे किसी भी रूट की किसी बस में मुलाकात नहीं हुई। मगर एम्स जाने के लिए मैं किसी दिन रूट नंबर 611 की बस में सवार हुआ तो मेरी डीटीसी दोस्त सामने थी। मुझे देखते ही वह खिल पड़ी। उसने मुझे बताया कि अगले माह मैं डीटीसी की नौकरी छोड़ दूंगी, क्योंकि घर के पास में ही एक स्कूल में नौकरी मिल गयी है। चहकते हुए बोली मैं भी काफी दिनों से आपको तलाश रही थी यही खबर सुनाने के लिए ।  मैने भी खुशी प्रकट की और पार्टी देने के लिए कहा। इस पर वो एकदम राजी हो गयी। मेरा हाथ पकड़कर बोलने लगी यह नौकरी मेरे विश्वास को बढाया है पर तुमसे मेरा परिचय होना मेरा सौभाग्य रहा। मैने भी कह डाला कि जब दो लोगों के सौभाग्य बढिया होते है तभी दो अच्छे दोस्त मिलते है। पर तू जब भी इस मित्रता से बाहर होना चाहो तो यह तेरा अधिकार है। क्योंकि मित्रता कोई एग्रीमेंट नहीं होता है। मेरी बाते सुनकर वो भावुक सी हो गयी और थोड़ी देर में मैं अपने स्टॉप एम्स, पर उससे हाथ मिलाकर उतर गया। यह अलग बात है कि इस मुलाकात के चार साल हो जाने के बाद भी न उसका कोई फोन आया और न ही पार्टी के लिए बुलावा।  यह अलग बात है कि उस लड़की की मोहक बातें आज भी कभी कभी याद आने पर मोहक ही लगती है।    

  































जनता का रिपोर्टर

नगर सुदंरियों से अपनी प्रेम कहानी-7

ग्राहक बनकर कमरे में बैठा रहा

अनामी शरण बबल




यह अपने बिंदासपन और एक पत्रकार होने के कारण ही मैंने नगर सुदंरियों के हाव भाव और जीवन को जानने की ललक की आपबीती है । अभी तक छह किस्तों में अपने मेलजोल की लीला को मस्त तबीयत के साथ बखान भी किया । यदि मैं पत्रकार नहीं होता तो निसंदेह एक सामान्य नागरिक की तरह ही मैं भी अपनी इमेज और इज्जत (?) बचाने की जुगत में ही 24 घंटे लगा रहता। यदि मैं इन सुदंरियों और कोठे का दीवाना भी रहा होता तो भी अपनी इस बहादुरी पर पूरी बेशर्मी से ही पर्दा ही डालकर शराफत का नकाब पहने रहता। मगर किसी भी अपने सच को लंबे समय तक छिपाना मेरे लिए असंभव है। यह अलग बात हैं कि मेरे भीतर मेरे बहुत सारे दोस्तों के जीवन का काला सच छिपा है। मेरे उपर भरोसा करने वाले इन तमाम लोगों या परिचितों का मैं शुक्रगुजार हूं कि बातूनी स्वभाव के बाद भी मेरे उपर यकीन किय। और मैं भी जानता हूं कि इनका सच भी मेरे शव के साथ ही लोप हो जाएगा। अपने इन मित्रों ( जिनमें कई अब कहां हैं यह भी नहीं जानता) मेरे दो टूक बोल देने या साफगोई के कारण ही कोई महिला मित्र मेरे को नसीब नहीं हुई। और जो मेरी जीवनसाथी है वो भी अक्सर मेरी इसी साफगोई से ही तंग परेशान रहती है।
यहां पर मैं चाहता तो एक सुदंरियों की एक और किस्त बढा सकता था जिसमें दिल्ली के उन इलाकों की खबर ली जाती, जिसमें लड़किया औरतें ही खुलेआम सड़कों पर यारों की तलाश करती है। मगर इन इलाकों में मैं पिछले काफी समय से गुजरा नहीं हूं लिहाजा जमाना बदलने के साथ साथ और क्या क्या नफासत और ट्रेंड बदला या जुड़ा है इसकी अप टू ड़ेट रपट नहीं दी जा सकती थी। लिहाजा इसे कभी श्रृंखला 8 के लिए रख छोड़ते है। आज श्रृंखला सात में मैं खुद को ही नंगा कर रहा हूं। दूसरों को तो नंगा या बेनकाब करना तो सरल होता हैं मगर खुद को बेनकाब करना आसान नहीं होता। वेश्याओं के बारे में जब मैने जमकर रसीली बातें की हैं तो जरा अपना भी तो रस निकले। इस खबर कहें या रपट कहें या जो नाम दें जिसको मैं आज लिख रह हूं तो इसी के साथ मेरे मां पापा मेरी पत्नी बेटी सहित मेरे सभी छोटे भाईयों और इनकी पत्नी सहित बच्चों को भी पता चलेगा कि बड़े पापा क्या वाकई आदर इज्जत और सम्मान के लायक है ?  मेरे परिवार के सभी मेरे बड़े पापा चाचा मामा मामी  मेरे बड़े भैय्या भाभी और बच्चों समेत मेरी सास मां सहित मेरे भरे पूरे परिवार में भी मेरे  इस नंगई  का पर्दाफाश होगा कि पत्रकारिता का यह कौन सा चेहरा है ? अपने पाठकों सहित सभी चाहने वालों से यह उम्मीद करता हूं कि वे अपनी नाराजगी ही सही मगर अपने आक्रोश को जरूर जाहिर करे ताकि अगली बार इसी तरह की कोई रिपोर्ट करने के खतरे को भांपकर मैं ठहर जाउं। खुद को रोक लूं या अपने उपर काबू कर सकू कि हर हिम्मत सामाजिक तौर पर सही नही  होता। मैं अपने समस्त परिचितों से क्षमा मांगते हुए श्रृंखला सात को प्रस्तुत कर रहा हूं। आप चाहें तो कोई टिप्पणी नहीं भी कर सकते हैं क्योंकि कोई भी बहादुरी या सूरमा बनने के लिए जब किसी की सहमति अनुमति नहीं ली हैं तो फिर कमेंट्स के लिए प्रार्थना क्यों  ? 

यह घटना 2003 की है। वेश्याओं पर इतनी और बहुत सारे कोण से खबर करने और उनके दुख सुख नियति पीड़ा और दुर्भाग्य को जानने के बाद भी मुझे लगा कि अभी भी इन पर एक कोण से रपट नहीं किया जा सका है, और इसके बगैर इन लिखी गयी किसी भी बात का शब्दार्थ नहीं है। तभी मुझे लगा कि एक ग्राहक बनकर अकेले में उसके हाव भाव लीला को जाने बिना तमाम किस्तें बेमनी और केवल शब्दों की रासलीला में अपनी चमक दमक दिखाने से ज्यादा कुछ नहीं है। सूरमा बनकर तो बहुतों से बात की और रसीली नशीली बातें करके तो मैं इन कोठेवालियों को भी मुग्ध कर डाला, मगर अपनी असली परीक्षा अब होने वाली थी। बहुत सारे कोठे और वेश्याओं और उनके घर को जानने के बाद भी ग्राहक बन कर कहां चला जाए ? इस समस्या के समाधान के लिए मैंने शाहदरा के एक पोलिटिकल मित्र को साथ चलने के लिए राजी किया। इस किस्त को लिखने को लिखने से पहले मैं खास तौर पर शाहदरा में जाकर उससे मिला और नाम लिखने को बाबत पूछा। एक पल में ही सहर्ष राजी होते हुए उसने कहा अरे अनामी भाई जब तुम अपना नाम दे रहे हो तो कहीं पर भी मेरा नाम डाल सकते हो। उसके इस प्रोत्साहन पर मैं एकदम नत मस्तक हो गया तो हंसते हुए मेरा मित्र दर्शनलाल ने कहा कि मेरी पत्नी को मुझसे ज्यादा तुम पर भरोसा है कि जब अनामी भैय्या होंगे तो मैं चाहकर भी बहक नहीं सकता। 


अब समस्या थी कि जाए तो कहां जाए ? मेरे मित्र अपने कुछ रंगीन दोस्तों से सलाह मशविरा करने लगा। कईयों ने हम दोनों की खिल्ली भी उड़ाई कि अब कोठा पर जाने का जमाना कहां रह गय है। जब चाहो और  जहां चाहों किसी भी जगह कॉलगर्ल आ जाएगी। मैने कहा कि कॉलगर्ल कहां मिलेगी क्या इसकी जानकारी केवल उसी को हैं मगर हमें कोठे पर ही जाना है वेश्याओं कहो या रंड़ियों के पास। हाई फाई मौजी लड़कियों पर कभी काम किया तो बाद में मगर अभी केवल कोठा पर जाना है। मेरे मित्र दर्शनलाल ने कई दिनों के होमवर्क के बाद जीबीरोड के कुछ कोठे का हाल चाल पता लगा लिया। इस पर मैंने उन दो चार कोठे पर नहीं जाने के लिए कहा जहां पर कुछ  वेश्याओं नें मुझे गर्भवती बताकर ले गयी थी। दर्शनलाल ने यह कह रखा था कि कमरे में केवल तुम्हें जाना हैं, मैं बाहर बैठकर तब तक आंटियों और खाली लड़कियों को कुछ खिलाउंगा ।  छत पर जाने के साथ ही एक आंटी सामने थी।  मेरे मित्र ने कह कि यह मेरा दोस्त हैं और पहली बार यहां आया हैं सो इसकी हिम्मत नहीं हो रही थी तो मैं केवल साथ भर हूं। आंटी निराश सी हो गयी तो मेरे मित्र ने कहा तू उदास क्यों हो रही हैं कीमत से ज्यादा खर्च मैं तुमलोग के साथ चाय पानी पर करूंगा।  मेरे समने हर तरह की करीब 10 वेश्याएं आकर खड़ी हो गयी। कुछ तो वाकई बहुत सुदंर चपल चंचल तेज और मर्दमार सी ही दिख रही थी। मगर इन्ही भीड़ में ही एक सबसे सामान्य सांवली नाटी और किसी भी मामले में अपनी साथिनों के बीच नहीं ठहरने वाली मायूस और मासूम सी उदास लड़की दिखी । मैने उसकी तरफ अंगूली कर दी, तो सारी लड़कियं एक साथ ठठाकर हंस पड़ी।  दो एक उस लड़की पर कटाक्ष किया अरे वंदना तू भी किसी की पसंद बन सकती है। आंटी मेरी तरफ देखने लगी और बोली हो जाता है हो जाता है तू चाहे तो फिर किसी को पसंद कर ले। मैने फौरन कहा क्यों ?  क्या कमी है इसमें । इसमें जितना सौंदर्य और आकर्षण हैं यहां पर खड़ी और किसी में कहॉ ?  सब आंख नाक मुंह और छाती उठाकर अपने को बिकाउ होने का बाजा बजा रही थी। मगर यहां पर यही तो केवल एक इस तरह की मिली जो एकदम शांत और अपने शारीरिक मानसिक सुदंरता का बाजार नहीं लगा रही थी।  आंटी ने 30 मिनट का समय और ढाई सौ रूपये कीमत का ऐलान किया। मेरे दोस्त नें पांच सौ रुपये का एक नोट निकाला और आंटी की गोद में यह कहते हुए डाल दिया कि बाकी रूपये का तुमलोग चाय पानी पी सकती हो। इस पर आंटी तुरंत मुझसे बोल पड़ी कि तू चाहे तो और ज्यादा समय तक भी अंदर रह सकता है। मैं और दर्शनलाल ने एक दूसरे को देखा और मैं अंदर जाने के लिए तैयार हो गया। मेरी पसंद वाली लड़की का उदास चेहरा एकदम खिल सा गया था, और एकदम चहकती हुई मेरा हाथ पकड़कर मेरे साथ एक कमरे में घुस गयी। कमरे में एक सिंगल बेड लगा था,और दीवारों पर कई उतेजक कैलेण्डरों के बीच भगवान शंकर और हनुमान जी के कैलेण्डर टंगे हुए थे। कमरे के बाहर ही मैं अपने जूते उतार दिए थे। कमरे का मुआयना करते हुए मैने कहा कि यहां पर इन भगवानों के कैलेण्डर क्यों टांग रखी हो ? इस पर वो खिलखिला पड़ी और चहकते हुए बोली कि यहां के हर कमरे में किसी न किसी भगवान का कैलेण्डर जरूर मिलेगा। मैं भी इस भक्ति पर हंस पडा कमाल है तुमलोग ने तो भगवान को भी अपने गुट के साथ शामिल कर ऱखी हो। छोटे से कमरे मे घुसते ही मैं चौकी पर जा बैठा। कमरे में हल्की खुश्बू और रौशनी थी, मगर मेरे बैठने पर वो चौंक सी गयी। अपने हाथ उठाकर कपड़े उतरने के लिए तैयार सी थी। मैने फट से कहा अरे अरे अभी रुको जरा।  मुझे कोई जल्दी नहीं है। अभी बैठो तो सही मैंने तो अभी तुमको ठीक से देखा तक नहीं है कि तुम उतावली सी होने लगी। मेरी बात सुनते ही वो हंस पड़ी। अऱे कमरे के भीतर बात नहीं मुलाकात की जाती है। लोग तो साले कमरे के बाहर ही हाथ डाल देते हैं और तुम यहां पर आकर भी सिद्धांत मार रहा है। अरे यार और लोग कैसे होते हैं यह तो मैं नहीं जानता मगर मैं वैसा ही पागल रहूं यह कोई जरूरी है क्या ? वो हंसने लगी तू क्या सोचता हैं कि यहां पर कोई आदमी आता है सारे सिरफिरे बेईमन और पागल ही हम रंडियों को गले लगाने आते है। फौरन मैं बोल पडा जैसा कि मैं भी तो एक पागल बेईमान, मूर्ख सिरफिरा और चरित्रहीन एय्याश यहं पर आया हूं। मेरी बातों को काटते हे वह बोल पड़ी नहीं रे तू ऐसा नहीं लगता हैं नहीं तो मुझे कभी पंसद नहीं करता। मेरे को माह दो माह में ही कोई तुम्हरी तरह का पागल ही पसंद करता है या जिसकी जेब में रूपए कम होते है। मगर तेरे साथ तो ऐसा कुछ नहीं है फिर भी मुझे क्यों चुना ? मैं उन नौटंकीबाज नखरेवालियों को जानता हूं मगर तू एकदम शांत बेभाव खड़ी थी तो लगा कि तुम अलग हो। बात करते करते करीब 15 मिनट गुजर गए थे। वो एकाएक व्यग्र सी हो उठी। अब उठो तो बतियाते बतियाते ही समय खत्म हो जाएगी। तो हो जाने दो न फिर कभी आ जाउंगा। मेरी बात सुनकर वो भड़क उठी। साले मैं सुदंर नहीं हूं इस कारण तेरा मन नहीं कर रहा हैं तो तू हमें उल्लू बना रहा है । इस पर मैं हंसते हुए बोला तू पागल है । अब वो पहले से ज्यादा उग्र होकर बोली तो तू कौन सा सही है। तू भी तो पागल ही है कि पैसा खर्च करके रंडी की पूजा करने आया है। मैने कहा कि तू चाहे जितना बक बक कर ले मै 30 मिनट के बाद ही यहां से निकलूंगा। तो 30 मिनट क्यों अभी निकल और दो चार गंदी गंदी गालियों के साथ नपुंसक हिजडा छक्का आदि आदि मुझे तगमा देने लगी। दो चार मिनट तक शांत भाव से गालियां खाने के बाद मैं फिर बोल पड़ा कहां गयी तेरी गालियां। बस खत्म हो गया स्टॉक। मैने कहा चल मेरे साथ गाली बकने की बाजी लगा एक सांस में एक सौ गाली देकर ही ठहरूंगा। मेरी बाते सुनकर वो हंसने ली। मेरे मूड को देखकर वो अपने कपड़े ठीक कर ली। मैने अपने बैग से नमकीन और बिस्कुट  के पैकेट निकालकर दिए कि चल खा मेरे साथ। इन सामानो को देखकर वो फिर बमक गयी।  साला बच्चा समझता है कि पटाने के लिए ई सब थैला में रखकर घूमता है। ये छैला टाईप के लौंडिया बाज लोग ही करते हैं कि जहां देखे वहीं पटाने या मेल जोल बढने में लग गए। उसकी बाते सुनकर मैं खिलखिला पड़ा अरे यार तूने तो मेरी आंखे ही खोल दी मैं तो अपने बैग में जरूर कुछ न कुछ सामान अमूमन रखता हूं। इस पर वो हंसते हुए बोली तो तू कौन सा बड़ा ईमानदर है। मैने कहा कि ये लो जी आरोप लगाने लगी। फिर बौखलाते हुए बोली कि साला यहां पर आकर अपने आप को पाक दिखाने की कोशिश करना सबसे बड़ी कुत्तागिरी होती है। मैं बाहर जा रही हूं तेरे वश में कुछ नहीं है हरामखोर और रोते हुए कमरे से बाहर निकल गयी। उसके जाने बाद मैं भी बिस्तर पर पालथी मारकर बैठे आसन से उठा और दोनों हाथ उपर करके अपने बदन को सीधा किया। दरवाजे पर ही खडा होकर जूता पहनकर हॉल की तपऱ बढ गया। मेरे को देखते ही आंटी बोली भाग गयी क्या फिर बुलाउं ?  मैने तुरंत कहा नहीं नहीं नहीं नहीं । आंटी भौंचक सी होकर मेरी तरफ देखने लगी। मेरा मित्र भी थोडा अचकचासा रहा था। मैने कहा कि तुमलोग चाय पी लिए क्या ? आंटी ने कहा हां जी बेटा इधर आते रहना। मैने भी आंटी को हाथ जोड़कर नमस्ते की औरअपने दोस्त दर्शनलाल के साथ कोठे से बाहर जाने लगा।                 




























नगर सुदंरियों से अपनी प्रेम कहानी-6

चादर और रखैल (साथी) प्रथा क टूटता तिलिस्म

अनामी शरण बबल

उत्तर प्रदेश में आगरा शहर का खास महत्व है। दुनियां में इसकी पहचान एक प्रेमनगरी की है। भले ही एक सामान्य आम आदमी का प्यार ना होकर यह एक बादशाह के प्यार की दीवानगी की कथा है। जिसमें प्यार के उत्कर्ष को अपने स्तर पर बादशाह ने एक ऐसी इमारत बनवा कर दी जिसे लोग ताजमहल के रूप में जानते है। और लगभग 360 साल से भी अधिक समय हो जाने के बाद भी इसके प्रति लोगों का लगाव कम नहीं हुआ है। मगर ज्यादातर लोग ताजमहल के साथ साथ आगरा को बसई गांव के लिए भी जानते है। जहां पर प्यार के सबसे बेशर्म बाजारू चेहरा देहव्यापार को माना जाता है। वेश्याओं के इस गांव में भले ही आजकल धंधा नरम सा है। इसके बावजूद इस गांव को लेकर लोगों में सैकड़ों तरह की कहानियां है।  पुलिस की तथाकथित सख्ती को लेकर रोष भी है तो शाम ढलते ही पुलिसिया संरक्षण में कारोबार की चांदी की बाते भी हवा में है। मगर सूरज की रौशनी में तो कथित तौर पर वेश्याओं के चादर और रखैल प्रथा के जादूई दिन लद से गए हैं।

वैसे तो मैं देव औरंगाबाद बिहार का मुलत रहने वाला हूं फिर भी आगरा से भी मेरा जन्म जन्म का नाता है। अब तक इस प्रेमनगरी में पांच सौ बार से ज्यादा दफा ही आ चुका हूं 1 मगर धन्य हो भाजपा के शीर्षस्थ पुरूष लाल कृष्ण आडवाणी जी का जिन्होने 1989 से 1992 तक बाबरी मस्जिद हटाओं और राम मंदिर बनाओं का नारा बुलंद करके पूरे देश में हिन्दू और मुस्लमानों की एकता में आग लगा दी थी।  पूरे देश के माहौल में जहर बोया गया सो अलग। इन तीन सालों के अंदर मेरठ मथुरा सहारनपुर मुजफ्फरनगर हरिद्वार आगरा में भी माहौल को बिषैली बनाने मे कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी गयी थी। इस कारण चाहे मैं जिस अखबार में भी रहा उनके लिए पश्चिमी उतर प्रदेश के राजनीतिक सामाजिक और धार्मिक तापमान को जानने के लिए लगभग एक दर्जन दफा पूरे पश्चिमी उतर प्रदेश का दौरा करके लंबी लंबी रिपोर्ट करने का सुअवसर मिला। इसी का नतीज रहा कि आगरा के भगवान सिनेमा से दो किलोमीटर दूर दयालबाग तक सालों साल तक सीमित रहने वाले इस पत्रकार को आगरा के भी हर लेबल के दर्जनों नेता दलाल और पत्रकारों से घुलने मिलने और दोस्ती करने का नायाब मौका मिला। जिसमें कई तो आज भी दोस्त की ही तरह है, तो कई सड़क छाप नेता राज्य मंत्री भी बने तो कई सांसद बनकर दिल्ली तक अपनी धमक पैदा की। तो कुछ नेता मंत्री बनकर रखैलों के चक्कर में फंसकर नाम धाम के साथ साथ परिवार से भी अलग होना गए।  यहां पर इनका उल्लेख करना बहुत जरूरी नहीं था पर जब गांव बसई पर काम करने की बारी आई तो मैने अपने इन तमाम दोस्तों से किस तरह काम की जाए इसके बारे में सलाह ली। लगभग सभी लोकल नेताओं ने पुलिस की गुंडागर्दी की बढ़ चढ़ कर बखान किया। मगर तमाम नेताओं ने मुझे भरोसा दिया कि चिंता ना करे हमलोग बसई में साथ साथ रहेंगे। इन नेताओं को अपने साथ टांग कर वेश्याओं के गांव पर काम करने के लिए सोचना भी बड़ा अटपटा सा लगा, मगर मेरे लिए सैकड़ों रूपये की तेल फूंकने और घंटो साथ साथ रहने के लिए प्रतिबद्ध इन मित्रों को यूं भी टरकाना ठीक नहीं लग रहा था। सहारनपुर में 1988 के दौरान एसएसपी रहे बी.एल. यादव से हमलोग का बड़ा याराना सा था। मीडिया से प्यार करने वाले श्री यादव ही उन दिनों आगरा मंडल के डीआईजी थे।  मैने दिल्ली से ही फोन लगाकर बसई जाने के लिए पूछा, तो हंसने लगे और पूछा कि वेश्याओं से मिलने के बाद या पहले मुझसे मिलोगे मगर अजीब संयोग रहा कि सुबह सुबह जब मैं आगरा पहुंचा तो श्री यादव उसी दिन लखनऊ के लिए निकल चुके थे। मगर बसई चौकी और अपने स्टाफ को हर संभव सहायता करने का निर्देश दे कर ही गए थे। मोबाइल का जमाना था नहीं लिहाजा जब आदमी घर या दफ्तर से बाहर हो तो फिर उसको पकड़ पाना लगभग असंभव सा था।
उल्लेखनीय है कि मुगलकाल में ही वेश्याओं के गांव बसई को बसया गया था। सैनिकों के जमावड़े मुगल राज्य के अधीन प्रशासको और व्यापारियों और सत्ता के दलालों के मनोरंजन तफरीह के लिए बसई की रंगीन हसीन नमकीन तितलियों के उपयोग का चलन था। निसंदेह मुगलों की राजधानी दिल्ली ले जाने के बाद भी बसई गांव की रौनक बरकरार रही। मुगलों के सैनिकों का बड़ा जमावड़ा आगरा में ही था मुगलों साम्राज्य के पत्तन के बाद भी अंग्रेजों ने अपने सैनिकों और नौकरशाहों की बड़ी मंडली को आगरा में ही बनाए रखा, लिहाजा समय सत्ता और शासन में पूरी तरह बदलाव आने के बाद भी बसई की रौनक पर कोई असर नहीं पड़ा। आगरा के अपने लोकल नेताओं की फौज के साथ उनकी ही गाड़ी में सवार होकर ताजमहल से चार किलोमीटर पीछे बसई गांव के लिए निकल पड़े। साथ में दो दो फोटोग्राफरों का भी दल बल हमारे था। इन छायाकारों ने बसई के लिए खासकर चलने की इच्छा जाहिर की थी।

बसई गांव में घुसते ही मार्च माह के आखिरी सप्ताह में ही गलियं विरान नजर ई। मगर ज्यादातर घर पक्के और अच्छी हालत में ही दिखे। हमलोगों ने फैसला किया कि गांव की चौकी पर ही सबसे पहले धमका जाए। आगरा के छह नेताओं और साथ के दो छायाकारों समेत मेरे साथ आठ लोगों की फौज थी। गाड़ी से उतरते ही सभी चौकी इंचार्ज के सामने लगी कुर्सियों पर बैठ गए.। मैने चौकी इंचार्ज से  डीआईजी बी.एल.यादव के फोन के बारे में बताया, तो वह एकदम खड़ा होकर सेवा करने की अनुमति मांगी। मैने उन्हें बैठने को कहा और किसी भी सेवा के लिए कोई कष्ट ना करने का ही आग्रह किया। इस पर वह एक मेजबान की तरह स्वागत करने के लिए अड़ा रहा। तब मैने कहा कि ये सब हमारे आगरा को दोस्त हैं आप इनकी जो मन चाहे सेवा करें पर हम तीनों बसई गांव घूमन चाहते हैं। कुछ वेश्याओं के घर के भीतर भी जाने की तमन्ना है। इस पर वह तुरंत दो एक सिपही को साथ लगाने की हांक मारी। इस पर हंसते हुए मुझे किसी के साथ नहीं चलने के लिए मनाना पड़ा। कब इंचार्ज नें तुरंत दो तीन दलालों को चौकी में बुलाकर गांव में ले जाने का आदेश दिय। आगरा के दोस्तों से मैने आग्रह किया कि आप दो तीन घंटे तक यही पुलिसिया मेहमानबाजी का मजा ले। एक आंख दबाकर एक नेता को कहा कि यदि यादव जी का फोन आए या डीआईजी कोठी से फोन आए तो आप कह देना कि मैं अपने काम में लगा हूं और काम निपटाते ही  बात करूंगा। आगरा के मेरे तमाम दोस्तों ने भी मेरी बातचीत करने के मतलब को समझकर हां जी हां जी की झड़ी लगा दी। और मैं अपने छायाकार मित्रों के साथ बसई की गलियों में दो चार दलालों के संग निकल पड़ा। पुलिस द्वारा गरम गरम गरमागरम आतिथ्य पर ये दलाल भी कुछ राज नहीं समझ पा रहे थै। एक ने पूछा आपलोग कहां से हैं बाबू। मैं भी जरा भाव मारते हुए कहा कि ये जो डीआईजी यादव है न वे हमारे सहारनपुर से मित्र है। अरे वो तो आज लखनऊ निकल गए नहीं तो मैं उनको ही लेकर यहां आता। मेरी बातों पर सहमति जताते हुए कहा वो तो लग रहा है साहब नहीं तो यहां की पुलिस एकदम दम निकाल कर धंधे को बेदम कर चुकी है।  मैने तुरंत काटा साला मुझसे ही झूठ मार रहा है। यहां रात को तो धंधा हो ही रहा है।. यहं की औरतें और लड़कियां कॉलगर्ल बनकर इधर उधरा तो जा ही रही है. और तमाम होटल वाले तुमलोग से ही बढिया बढिया लड़कियों को फोन कर मंगवती है. यह सब क्या मुझसे छिपा है ? जहं पत्रकारो को देखा नहीं कि धंदा खत्म हो रहा है और भूखे मरने की कहानी करने लगते हो। ये पुलिस वाले क्या तुम लोग की तरह ही ग्राहकों को खोजकर लाए। एक दलाल ने कहा कि माफ करना बाबू ई सब थानेदार बाबू को मत कहना । इस पर मैने धौंस मारी यदि शराफत से घुमाना है तो साथ रहो और अपनी वकालत बंद कर।  एक ने टोका कि आप पहले भी यह आ चुके है का ? दिल्ली में रहता हूं इसका मतलब थोड़े कि शहर से अनजान नहीं हूं। आगरा के दयालबाग नगलाहवेली में ही 20 साल से रहता हूं, और तू हमें ही चूतिया बना रहा है। चौकी पर बैठे सारे आगरा के नेता है। इसपर हमलोगों के साथ साथ घूम रहे तीनो दलाल खामोश हो गए। मैने उनलोगों को अपने साथ नहीं चलने की बजाय चौकी पर ही रहने को कहा कि हमलोग अभी घूमकर आते है। इस पर दलालों ने कहा कि इंचार्ज बाबू हमलोग को मारेंगे साहब। मैने कहा नहीं साथ रहोगे तब भी मैं तुम्हरी शिकायत करूंगा। मुझे जासूस लेकर गांव में नहीं घूमना है। और किसी तरह उनलोगों को अपवे से दूर किया। मेरे साथ चल रहे दोनों फोटोग्राफरों ने दे दनादन इन दलालों की कई फोटो भी ले ली, तो वे न चाहते हुए भी हमलोग से दूर हो गए। मेरे फोटोग्राफर दोस्तों ने भी इनके हट जाने पर खुशी जाहिर की। तुमवे इनको हटाकर एकदम सही किया ये साले पुलिस के इनफॉर्मर सारी बातें चौकी में जाकर उगलता।

बिना किसी दलाल के हमलोग सामने वाली गली के ही एक पक्के दो मंजिली मकान में जा घुसे। अंदर जाते ही सामान्य साज सज्जा के एक बड़े हॉल में बैठी दो उम्रदराज महिलाओं ने स्वागत किया। मेरे साथ वाले छायाकारों ने दनादन इनकी तस्वीर समेत हॉल के रंग रूप को कैमरे में बंद कर ली। इस पर ये महिलाएं एकदम घबरा सी गयी। ये क्य कर रहे हो बाबू ? मैने इन्हें भरोसा दिलाया कि आप एकदम चिंता ना करो कुछ नहीं होगा। फिर भी ये अंदर से डर जाहिर करने लगी। जब हमलोगों ने अपना परिचय और कार्ड धराया तो उनके मन का डर दूर हुआ। मैने कहा कि कोई तुम्हे तंग करे तो मेरे को फोन पर बताना मैं दिल्ली से ही तेरा काम करवा दूंग। फिर जोडा कोई बहुत जरूरी काम हो तो मेरा कार्ड लेकर तुम डीआईजी यादव के पास भी चली जाओगी तो वे तेरी सुनवाई करेंगे,मगर बहुत टेढा हैं गलत शिकयत करोगी तो हमें भी तेरे थ साथ गालियां देगा। । वे मेरे सहारनपुर से दोस्त हैं।

मेरी बातों से उसको भरोसा होने लगा था। उसने फौरन किसी को आवाज लगाकर चाय के लिए बोली। इस पर हमलोगों ने हाथ जोड़कर चाय से मना किया, तो वह बोली आपलोग मेरे मेहमान हो बाबू बिना जल दाना ग्रहण किए तो जा ही नहीं सकते। अजीब सा धर्मसंकट खड़ा हो गया था। उसने कहा कि हम ग्राहकों के साथ चादर का रिश्ता बनाते हैं। जब तक वह साथ में रहता है तो वह एक दामाद की तरह हमारा अतिथि होता है। उसके जाने के साथ ही चादर और संबंधों का खात्मा होता है। महिला ने कहा कि मेरे यहां तो दर्जनों नियमित ग्राहक हैं जो माह में दो तीन बार दो चार दिन रहकत जाते हैं।  इनके लिए लड़कियं भी रखैल की तरह एक ही होती है। वे लोग अपनी लाडली की देखरेख और खान पान के लिए हर माह दो चार पांच हजार दे भी जाते है। वो लोग एक तरह से हमारे घर के सदस्य की तरह है। किसी कोठे पर रखैल और किसी ग्राहक के यहां दो चार दिन रूकने की बात एकदम अटपटी सी लगी। मैने इस पर हैरानी प्रकट की। तो दोनों महिलएं हंसने लगी। इसमें हैरान होने की क्या बात है बाबू  अब तो कहो कि यह प्रथा खत्म होने के कगार पर है, नहीं तो पहले हमलोग केवल माहवारी सदस्यों के लिए ही होती थी। और राजस्थान पंजाब हरियाणा यूपी से आने वाले लोग यहां न केवल ठहरते थे बल्कि हमारे घर की देखभाल भी करते थे। हम सब एक तरह से उनकी बांदिया थी। मैं इस रहस्योद्घाटन पर चौंक पड़ा। तो यह बताओं कि कोई ग्राहक बनकर तुम्हारे यहां आता है वो किस तरह घर का सदस्य या दामाद सा बन जाता है। इस पर वे खिलखिला पड़ी। अरे बाबू इसमें क्या हैं हमारी लड़कियां पूरी ईमनदारी से सेवा करती हैं तो मुग्ध होकर वे हमारे यहां ही नियमित आने लगते है और कईयों के साथ रहने के बाद दो एक से अपना लगातार वाला रिश्ता बना लेते है। एक ने कहा कि हमलोग के समय के भी कुछ मर्द कभी कभार अभी भी आकर कुछ रुपए और घंटो बैठकर हाल चाल पूछ कर चले जाते हैं। इस पर मैं हंस पड़ा अरे तब तो तुमलोग की तो चांदी ही चांदी है कि जो यहां आया वो बस तुमलोग का ही होकर रह जाता है। मेरी बात पर वे दोनों हंसने की बजाय बोली कि यह तो बाबू हमलोग की सेवा और ईमानदारी का फल है कि लोग भूल नहीं पाते। मैने फिर पूछा कि अभी तुम बोल रही थी कि माहवारी सदस्यों की संख्या  लगातार कम होती जा रही है। इस पर रूआंसी सी होकर वे बोल पड़ी कि अब जमाना बदल रह है बाबू नए लोगों में रिश्तों को लेकर ईमानदारी कहां रह गयी है। अब के लोग तो केवल दो चार घंटे की ही मौज चाहते है । अब तो जो बहुत पहले से यहां आते रहने वाले लोग ही रह गए है, जो आज भी हमारे सदस्य हैं । नया तो कोई अब कहां ग्राहक बन पाता है। मैं तुरंत बोल पड़ा इसका कारण तुमलोग क्या मानती हो? अरे बाबू शहर ज्यादा आधुनिक और बड़ा हो गया है। रात में रूकने के लिए होटल धर्मशाला भी काफी हो गए है जिससे लोगों को यहां आकर रूकने की अब जरूरत नहीं पड़ती। पहले तो वे यहां आकर खुद सुरक्षित हो जाते थे।
चादर और रखैल प्रथा के बारे में पूछा कि जो तुम्हारे यहां की कईयों के दिल की रानी कहो या रखैल सी है।य़ पर यहतो बताओं कि क्या वे लोग जो दो चार घंटे के लिए आने वाले ग्राहक के लिए भी राजी होती है? इस पर दोनों एक साथ बोल पड़ी क्यों नहीं हमलोग किसी की अमानत नहीं हैं। हमारा रिश्ता तो केवल चादर वाला है जब तक वे लोग हैं तो हर तरह से हमारी लडकियां उनकी है। मैने जिज्ञासा प्रकट की एक महिला के करीब कितने यार होते हैं जो माहवरी देते है। इस सवाल पर वह हंसने लगी ,यह कोई तय नहीं होता, मगर दो तीन यार तो होते ही है। इस रखैल प्रथा पर मेरी उत्सुकत बढ गयी थी मैने फिर पूछा क्या कभी इस तरह का भी धर्मसंकट आ खडा होता है क्या कि एक साथ ही किसी के दो दो आशिक आ जाते हो तब जबकि वह किसी और की रखैल बन अपने माहवारी आशिक के साथ हो? इस पर दोनों औरतें फिर हंस पड़ी।  क्या करे बाबू इस तरह की दिक्कत तो हमेशा आ खड़ी होती है। इसीलिए तो हमलोग किसी एक को दो दो के साथ चादर वाला रिश्ता बनाने को कहते हैं ताकि कोई दिक्कत ना हो। रखैल प्रथा के इस अजीब त्रिकोण में मैं भी उलझता जा रहा था। मैने फिर पूछ डाला कि अच्छा यह बताओं कि किसी के साथ दो दो का रिश्ता हो और एक समय में दोनों खाली हो तब उनके एक आशिक के आने के बाद रखैलों का चुनाव किस तरह होता है? इस पर महिलाओं ने कहा कि यह तो बाबू पर है कि वो किसके साथ रहना चाहे, मगर एक साथ वह किसी एक के ही चादर में रह सकता है। यदि वह दो या किसी और से भी चादर बदलना चाहे तो? इस पर महिलाएं खीज सी गयी तू यहां के कानून को नहीं जानते हो बाबू। ये मर्द एय्याश तो होते हैं मगर यहां पर वे दिल हार कर ही सालों साल तक आते जाते हैं, क्योंकि बहुत सारे मामले में वो काफी ईमानदर भी होतो है। क्या तुमलोग से रिश्ता रखने मे उन्हें कोई खतरा नहीं होता? हमलोग से तो कोई खतरा नहीं होता है कि हमलोग उनके घर में जाकर हंगामा करेंगे या पेट रह गया है का नाटक करेंगे। अरे बाबू यह तो एक दुकान है जब तक चाहो आ सकते हो, ना चाहो ना आओ, मगर हमारे आतिथ्य और प्यार को वे हमें नहीं भूल पाते।

जिस तरह की बातें तुमने मेरे साथ कर रही है तो क्या यही कानून और रस्मोरिवाज सबों के यहां भी है या इसमें कुछ अंतर भी आ रहा है ? इस पर विलाप करती हुई महिलाओं ने कहा कि मैं पहले ही बोल रही थी न बाबू कि जमाना बदल रहा है। कुछ तो कॉलगर्ल बन होटलों में जाती है। आगरा में इतने लोग बाहर से आते हैं कि चारो तरफ से इनकी मांग है। मैने उनसे पूछा कि क्या तुम अपनी सुदंरियों को हमलोगों को नहीं दिखाओगी ? इस पर चहकती हुई बोल पड़ी अरे तुमलोग से ही तो उनकी रौनक हैं बेट मैं तुमलोग से बात कर रही हूं और वे सारी अंदर अंदर हमें गरिया रही होंगी कि लगता है कि ये बुढिया ही इन सबको खा जाएगी। अभी बुलाती हूं पर क्या कुछ .......। इसका तात्पर्य मैं समझ गया। मैने अपने फोटोग्राफरों की तरफ देखा फिर इनसे कहा कि एक शर्ते है कि इनकी फोटो उतारने दो? वे हंस पड़ी और बोली जो चाहो करो। मेने तुरंत प्रतिवाद किया लगता है कि तुम गलत ट्रेन पकड़ रही है। हमलोग केवल बात करेंगे । फिर तुरंत बोल पड़ा अरे बात भी क्या करेंगे तुमलोग ने तो इनका पूरा इतिहास भूगोल तो बता दी हो। इस पर उनलोग ने कहा कोई बात नहीं बाबू जो चाहों बात कर लो। पर अब तो चाय पी सकते हो न? यहां आए करीब एक घंट हो चुका था। दिन के 11 बज गए थे, लिहाजा आंख मारकर मैने फोटोग्राफरों से यहां से अब रूखसत होने का संकेत दिया। इन महिलाओं ने कहा कि मैं यहां पर ही बुला दूं कि तुमलोग उनके पास जाओगे ? मैने फौरन कहा नहीं नहीं हमलोग ही वहां जाएंगे, तो दोनों हाथ फैलाकर हंसने लगी। मैने पूछा क्य दूं तू ही बोल न। हम तो तेरे ग्राहक है नहीं तेरी बात सुनने वाले है, जो तेरी मर्जी पर यह तो एक दुकान हैं न बोहनी तो होनी ही चाहिए। हम तीनो दोस्त उसकी बात सुनकर हंस पड़े, और जेब से मैने अपनी जेब से दो सौ रूपया निकलकर उनके हाथों में रख दिए। वे लोग मायूष होने की बजाय खुश हो गयी, और हमलोग उनके पीछे पीछे एक दूसरे कमरे में चले गए। कमाल है देखते ही आंखे चौंधिया गयी। एकदम सामान्य साज सज्जा और पहनावा में वे लोग कहीं से भी वेश्या या रंडी नहीं लग रही थी। सात आठ वेश्याओं में ज्यादातर 30 पार चुकी थी, मगर कम उम्र वाली भी 20 से 25 के बीच होगी। मैं इनको देखकर यही तय नहीं कर पा रहा था कि सामने बैठी कन्याएं क्य सचमुच मे रंडियां है या आंखो को धोखा देने के लिए ही हमे रंडी बताया गया है। इन्हें गांव से बाहर कहीं भी आगरा में इन्हें कोई न रंडी कह सकता है और न ही मान सकता है। मैने तुरंत टिप्पणी की कमाल है यार तुमलोग तो एकदम मेनका रंभा जैसी बेजोड अप्सराएं सी हो। मैने तो कहीं और कभी सोचा तक नहीं था कि बसई की वेश्याएं दिल फाड़कर घुस जाने वाली होती है। मेरी बातों को सुनकर सब हंसने लगी । इससे क्या होता है बाबू हैं तो हमलोग नाली के ही कीड़े। मैने फिर पूछा क्या केवल तुमलोग ही इतनी हसीन रंगीन हो कि यहां कि और भी तुम जैसी ही इतनी ही मस्त है? मेरी बात सुनते ही सब खिलखिलवा पड़ी। एक ने कहा एक औरत कभी दूसरी औरत की तारीफ नहीं करती बाबू तुम तो एकदम बमभोलो हो, फिर हम तो  वेश्याए है कैसे कह दें कि हमसे भी कोई सुदंर हैं यहां। यह कहकर सभी फिर जोर से हंसने लगी। और मैं इनकी बातें सुनकर झेंप सा गया। फिर एक बार पूछा कि धंधा कैसा चल रहा है यहां के लोग तो कह रहे हैं कि बड़ी मंदी का दौर है। मेरी बात सुनकर ये लोग फिर जोर से हंस पड़ी। अरे बाबू लोग खाना के बगैर रह सकते हैं मगर ....। हमारा धंधा ना कल कम था न आज कम है और मान लो कि हम बुढिया भी जाएंगी न तो भी यह कम नहीं होगा। हां  रंग रूप  अंदाज जरूर बदल जाएगा। इससे पहले कि मैं कुछ और पूछने के लिए मुंह खोलता उस,पहले ही दो तीन वेश्याओं ने बड़ी अदा से गुनगुना चालू कर दिया कि या तो साथ चलो उपर नहीं तो चले चलो चले चलो चले चलो चले चलो..... गाते हुए सब कमरे से बाहर निकल गयी। हमलोग भी कमरे से बाहर होकर फिर आंटियों की शरण में थे।  मैने फिर आंटी से कहा आह कहे या वाह कहे आंटी तुमने तो पूरे चांद को ही अपने कोठे पर बैठा लिया है। इस पर वो भी हंसने लगी। बेटा इनको देखकर तो लोग अपने घर का रास्ता ही भूल जाते हैं। मैने  फौरन पूछा इनको  लाई कहां से ? यह सुनते ही दोंनों उकता सी गयी। चल बाबू चल तू भी चल इनको देखते ही ये तेरे दिमाग में नाचने लगी है और अब तू केवल अंड शंड बकेगा। वेश्याओं की मालकिन की गुर्राहट पर हम तीनों जोर से हंसे और घर से बाहर निकल पडे।। तभी मुझे कुछ याद आया तो हम तीनों फिर अंदर आ गए। । हमलोगों को देखकर वो सवालिया नजर से देखने लगी। मैं आराम से जाकर बैठ गय। अपने स्वर को नरम करती हुई पूछी कुछ सामानव छूट गया क्या बाबू ? मैने कहा आंटी तुम घर में घुसते ही बोली थी कि हम मेहमनों से दाना पानी का रिश्ता बनाते है। तो हमारे लिए बन रही चाय किधर गयी ? बस यही चाय पीने  आ गया नहीं तो तुम बाद में चाय फेंकने पर हमलोग को ही गरियाओगी। मेरी बाते सुनकर वो एकदम मस्त हो गयी। और हंसते हुए बोली हाय री मर ही जावा क्या मस्त है तू भी इन हसीनाओं से कम नहीं है रे बात करने और झेड़ने में। इस पर मैं झेंपते हुए बोला अरी आंटी मेरे से तुलना करके तू उन रूपसियों की बेइज्जती कर रही है कहां वे और कहां मैं मुंहफट वाचाल बक बक करने वाला। कहकर हंस पडा। मेरे उपर निहाल होती हुई बोली सब कहां बोल पाते हैं बेटा तेरे दिल में किसी तरह का लोभ नहीं है न तभी इतना साफ और सीधे कह डालता है। मैं भी माहौल को जरा मस्तानी बनाने के लिए कहा अरे तेरे चरण किधर हैं आंटी मेरी इस तरह तारीफ करने वाली तू दुनियं की पहली औरत है लाओ तेरे पैर छू ही लूं।  मेरी बातों को सुनकर वो बाहर भाग गयी और कमरे के बाहर ठहके लगाने लगी। मैं प्रसंग को मोड़ने के लिए जरा हड़बड़ाते हुपे कहां आंटी चाय पिलनी है तो जरा जल्दी कर नहीं तो हम लोग निकल रहे है।  एकदम एक मिनट के अंदर चाय आ गयी। बेटा मैं सैकड़ो लोगों को चाय पीला चुकी हो मगर जिस प्यार लगाव और स्नेह से तुम्हें पीला रही हूं वह आज से पहले कभी नहीं । मैं भी गद गद होते हुए उन पर मोहित सा था और बिन चाय को पीए ही बोल पड़ा आहा क्या स्वाद है चाय का। तभी दूर खड़ी एक जवान वेश्या ने फौरन आंटी को बताया कि बिना चाय पीए ही तारीफ करने लगे है। मै उसकी तरफ देखकर बोला चाय को पीने की क्या जरूरत हैं आंटी के प्यर से चाय तो बेमिशाल हो गयी है। तू चाय पी रही है और मैं तो आंटी के प्यर को पी रहा हूं। इस पर वे उठकर मुझे गले लगा ली। जीते रहो बेटा जीवन भर फलो फूलो। उनके इस आशीष पर मैं भी झुककर उनके पैर छू ही लिए तो वो मुझसे लिपटकर रोने लगी।  मैने उनको चुप्प कराय और बोल पड़ा पता नहीं आंटी मुझसे लिपटकर ज्यादातर लोग रो ही जाते है। इस पर वो मेरे को साफ दिल का नेक इंसान बोली। तब मैं भी ठठाकर बोला कि तेरे यहां तो लोग लड़कियों से चादर वाला रिश्ता बनाते हैं और मैं तेरे संग ही रिश्ता बना गया। इस पर वो बैठे बैठे सुबक पड़ी। और मेरे लिए न जाने कौन कौन सी दुआएं देने लगी। बेटा लोग यहं पर तो दिल हार कर जाते हैं पर तू तो सबके दिल को लेकर जा रहे हो। इस पर मैने अपना थैला तुरंत खोलकर फर्श पर रख दिया कि भाई जिसका जिसका भी दिल मेरे साथ जा रहा है वे निकाल ले। इस पर हॉल में ठहाकों की गूंज फैल गयी और दोनो उम्रदराज आंटियों ने अपने हाथ से मेरे चेहरे को लेकर जितना हो सकता था लाड प्यार जताया।
प्यार नाटक खत्म होते ही मैने उनसे पूछा कि किस किस घर मे चलूं आप कुछ बताएंगी। इस पर वे दोनों अपनी एक खास सहेली के यहां अपने साथ लेकर चलने को राजी हो गयी।

 इस बार हम तीनों आंटियों के संग इस घर के पीछे वले एक मकान मे घुपस गए। वहां की भी दो तीन उम्र दराज महिलओं ने इनका भरपूर स्वागत किय। एक आंटी ने मेरा नाम पूछ तो मैने कहा बबल। इस पर वह अपनी सहेली को बताने लगी है तो ये सब पत्रकार मगर (मेरी तरफ संकेत करती हुई) यह बबली बहुत मस्त है। हमरे यहां तो लोग दिल हार कर जाते हैं मगर इस बबली ने सबक दिल ही जीत लिय। मैं भी जरा ज्यादा शिष्ट सभ्य और सुकुमार दिखाने के लिए इस ने कोठे की तीनों उम्र दराज आंटियों के पैर छू लिए और हाथ जोड़कर कहा कि एकदम खरा और तीखा पत्रकार हूं आंटी पर यह तो इनका प्यार दुलार है कि ये हमें इननामन दे रही है। नए कोठेवाली टियों ने कहा कि बेटा हम तो मर्दो की चल से पूरा हाल जान लेती हैं पर जब ये तुम्हें इतना दुलार दे रही हैं तो जरूर तू खास है। मैं लगभग पूरी तरह उनके सामने झुकते हुए हाथ जोड दी। इस पर मोहित होती हुई नयी आंटी ने कहा वाह बेटा क्य सलीक और शिष्टाचार है तुममें। मैं तुरंत एकदम टाईट होकर खड़ा होकर बोला कि आंटी यह सब दिखावा है। न आज इसका कोई मोल है न कोई पूछ रहा है। मगर आंटी का प्रलाप जारी रहा। तब मैने उनसे पूछा कि आपके यहां कोई बड़ा थैला होगा। तो एक साथ कईयों ने पूछ किस लिए। इस पर मैं बोल पड़ा कि आंटी के घर के सारे लोगों का दिल तो इस थैले में बंद हैं और अभी जो आपलोग के दिल को ले जाने के लिएभी तो की थैला चहिए न।इस पर पूरे घर में हंसी फैल गयी। सब पेट पकड़ पक़ड़ कर हंसने मे लगी रही। थोडी देर में चाय आ गयी। फिप चियों ने बताया कि हमलोग यहं करीब 200 सल से रह रहे है। धंध कैसा है तुम जानते ही हो, मगर अब इससे बाहर निकलना भी चहें तो यह सरल नहीं हैं। अपने घर की बेटियों को दिखाया और बताया  किस तरह पुलिस की सख्ती के कारण कफी मंद सा हो गया है। इस घर की आंटियों नवे भी बताया कि केवल चादर और रखैल कहो या साथी क रिश्ता मान लो कि हर घर में रौनक और हंसी मजाक है।

बसई गांव के ज्यादातर घरों में आज भी चादर और साथी कहे य रखैल वाला रिश्ता ही मुख्य है। मगर लड़कियों की लगातार बढती मांग के चलते आगरा शहर में देह का कारोबर भी खूब चमक रहा है। बसई की लड़कियों समेत शौकिया तौर पर भी इस धंधे मे उतर रही युवतियों के कारण भी रंग रूप पहिचान छिपाने से  इस धंधे का पूरा नक्शा ही बदल गया है। और इनकी चमक के पीछे बसई जैसे परम्परागत गांवों की चमक धुंधली होती पड़ रही  है।  
बसई की देवियों के दर्शन करके जब हमलोग बाहर निकले को शामके साढ़े चार बज चुके थे। खुद पर लज्जित होते हे जब मैं पुलिसचौकी पर पहुंचा तो आगरा के मेरे लोकल नेताओं की फौज पूरे आराम से मेरा इंतजर कर रही थी। मैने व्यग्रता से कहा चलो यार कुछ खाते पीते हैं। आपलोग को बड़ा कष्ट उठाना पड़ा होगा। मेरी बात सुनकर चौकी इंचार्ज चंद्रशेकर सिंह समेत मेरे दोस्त हंस पड़े। मैं भौचक्का सा देखता रहा कि क्या माजरा है। यादव जी की कोठी से बार बार खाने के लिए फोन आने पर सबों को इंचार्ज ने खाना खिलाया और पिछले छह घंटे से चाय औ सिगरेट के बेरोकटोक दौर को झेलता रहा। इतने लंबे उबाऊ इंतजार के बाद भी मेरे तमाम मित्रों के चेहरे पर कोई शिकायत नहीं थी। और जब हमलोग बसई से बाहर निकले तो आगरा के मेरे सारे मित्र बहुत सारे पुलिस वालों के पक्के यार बन चुके थे। अलबत्ता लखनऊ से ही यादव साहब ने मेरे लिए मिलकर ही जाने का ही फरमान जारी किया था, लिहाजा पांच साल के बाद मिले बगैर दिल्ली लौटना मुझे भी ठीक नहीं लगा और सहारनपुर की बहुत सारी बातों को आगरा में याद करके हमलोग कई घंटे तक बहुत मस्त रहे।







देहव्यापार  का एक रूप यह भी

जब मेरे घर पर ही लड़की बुलाने का ऑफर दिया

अनामी शरण बबल

कभी कभी जिन लोगों को हम बहुत आदर और सम्मान से देखते है तो हमेशा पाते हैं कि वहीं आदमी कभी कभी अपनी नीचता के कारण एकदम बौना सा लगने लगता है। इसी तरह की एक घटना मेरे साथ भी हुई कि सैकड़ो कैसेट का एक गायक और जानदार नामदार आदमी को अपने घर से दुत्कार कर निकालना पड़ा। जिस आदमी के करीब होने से जहां मैं खुद को भी गौरव सा महसूस कर रहा था कि अचानक सबकुछ खत्म हो गय। यह घटना 1994 की है। जब एकाएक मेरे एक मित्र ने मेरे घर में आकर इस तरह का ऑफर रख दिया कि मन में आग लग गयी, और ...। घर में मेरे अलावा उन दिनों कोई और यानी पत्नी नहीं थी। मेरी पत्नी का प्रसव होना था। प्रसूति तो दिसम्बर मे होना था मगर वे कई माह पहले ही चली गयी थी। खानपान का पूरा मामला बस्स नाम का ही चल रहा था। होटल ही बडा सहारा था। खैर मेरे फ्लैट के आस पास में ही एक भोजपुरी गायक रहते थे और भोजपुरी संसार में बड़ा नाम था। उस समय तक उनके करीब 250 कैसेट निकल चुके थे। वे लगातार गायन स्टेज शो और रिकॉर्डिग में ही लगे रहते थे। समय मिलने पर मैं माह में एकाध बार उनके घर जरूर चला जाता था। मेरी इनसे दोस्ती या परिचय कैसे हुआ यह संयोग याद नहीं आ रहा है। मगर हमलोग ठीक
ठीक से मित्र थे। संभव है कि उस समय मयूर विहार फेज-3 बहुत आबाद नहीं था तो ज्यादातर लोग एक दूसरे से जान पहचान बढाने के लिए भी दोस्त बन रहे थे। अपनी सुविधा के लिए हम इस गायक का नाम मोहन रख लेते हैं ताकि लिखने और समझने में आसानी हो सके। हालांकि मैं यहां पर उनका नाम भी लिख दूं तो वे मेरा क्या बिगाड़ लेंगे, मगर हर चीज की एक मर्यादा और सीमा होती है, और इसी लक्ष्मण रेखा का पालन करना ही सबों को रास भी आता है। राष्ट्रीय सहारा अखबर में मेरा उस दिन ऑफ था या मैं छुट्टी लेकर घर पर ही था यह भी याद नहीं हैं । मैं इन दिनों अपने घर पर अकेला ही हूं, यह मोहन को पता था। मैं घर पर बैठा कुछ कर ही रहा हो सकता था कि दरवाजे पर घंटी बजी और बाहर जाकर देखा तो अपने गायक मोहन थे। उस समय शाम के करीब पांच बज रहे होंगे। मैं उनको बैठाकर जल्दी से चाय बनाने लगा। चाय बनाने में मैं उस्ताद हूं, और पाककला में केवल यही एक रेसिपी माने या जो कहे उसमें मेरा कोई मुकाबला नही। हां तो चाय  के साथ जो भी रेडीमेड  नमकीन  के साथ हमलोग गप्पियाते हुए खा और पी भी रहे थे । जब यह दौर खत्म हो गया तो मोहन जी मेरे अकेलेपन और पत्नी से दूर रहने के विछोह पर बड़ी तरस खाने लगे। बार बार वे इस अलगाव को कष्टदायक बनाने में लगे रहे। मैं हंसते हुए बोला कि आपकी शादी के तो 20 साल होने जा रहे हैं फिर भी बडी प्यार है भाई। अपन गयी हैं तो कोई बात नहीं। मामले को रहस्यम रोमांच से लेकर यौन बिछोह को बड़ी सहानुभूति के साथ मेरे संदर्भ से जोडने में लगे रहे। थोडी देर के बाद उनकी बाते मुझे खटकने लगी। मैने कहा कि यार मोहन जी मैं आपकी तरह अपनी बीबी को इतना प्यर नहीं करता कि एक पल भी ना रह सकूं । मेरे लिए दो चार माह अलग रहना कोई संकट नहीं है बंधु। इसके बावजूद वे मेरे पत्नी विछोह पर अपना दर्द  किसी न किसी रूप में जारी ही रखा। मोहन जी के विलाप से उकता कर मैने कहा अब बस्स भी करो यार मैं तो इतना सोचता भी नहीं जितना आप आधे घंटे में बखान कर गए। इस चैप्टर को बंद करे । तभी मेरे पास आकर  मोहन जी ने कहा क्या मैं आपके लिए कोई व्यवस्था करूं। यह सुनते ही मेरा तन मन सुलग उठा पर मैं उनकी तरफ देखता रहा कि यह कहां तक जा सकते है। मेरी खामोशी को सहमति मानकर खुल गए और बताया कि इनका जीजा नोएडा में किसी बिल्डर के यहां का लेबर मैनेजर है। उसने कहा कि आप कहे तो शाम को ही एक औरत को लेकर जीजा यहां आ जाएगा और दो चार घंटे के बाद सब निकल जाएंगे। मेरी तरफ देखे बगैर ही हांक मारी कि जब तक आपकी फेमिली नहीं आती हैं तब तक चाहे तो सप्ताह में दो तीन दिन मौज मस्ती की जा सकती है। मोहन की बाते सुनकर मैने भी हां और ना वाला भाव चेहरे पर लाया। तो वे एकदम खुव से गए अरे बबल जी चिंता ना करो जीजा रोजाना नए नए को ही लाएगा। मुझे क्या करना है मैं सोच चुका था पर इन हरामखोरो के सामने भी कुछ इसी तरह का प्रस्ताव रखने की ठान ली। मैंने कह मोहन आईडिया तो कोई खास बुरा नहीं है पर मैं उसके साथ आ ही नहीं सकता जो 44 के नीचे आई हो। मेरे लिए तो कोई एकदम फ्रेश माल लाना होगा। मेरी बात सुनकर वे चौंके क्या मतलब ? एकदम फ्रेश । मोहन जी एक ही शर्त पर मैं अपने घर को रंगमहल बना सकता हूं कि मेरे लिए आपको अपनी बेटी लाना होगा। मेरी बात सुनते ही वे चौंक उठे, कमाल है अनामी जी आप क्या बोल रहे हो। मैने तुरंत कहा इससे कम पर कुछ नहीं।  इसमें दिक्कत क्या है आपका जीजा आपके साथ मिलकर आपकी बहन और अपनी बीबी के साथ दगाबजी कर रहे हो तो एक तरफ बहिन तो दूसरी तरफ बेटी होगी और क्या। मेरे अंदाज से मोहन भांप गया कि बात नहीं बनेगी तो थोडा गरम होने की चेष्टा करने लगा। तब मैं एकदम बौखला उठा और सीधे सीधे घर से निकल जाने को कहा। सारी शराफत बस दिखावे के लिए है। मेरे से यह बात आपने कैसे कर दी यही सोच कर मुझे अपने उपर घिन आ रही है कि तू मेरे बारे में कितनी नीची ख्यालात रखता है।  कंधे पर हाथ लगाया और सीढियों  पर साथ साथ चलते हुए मैने जीवन मे फिर कभी घर पर नहीं आने की चेतावनी दी। इस तरह की एय्याशियों या साझा सेक्स की तो मैं दर्जनों घटनाओं को जानता हूं, पर कभी मैं इस तरह के साझ समूह सेक्स के लिए कोई मुझे कहे या मेरे घर को ही रंगमहल सा बनाने को कहे यह मेरे लिए एकदम अनोखा और नया अनुभव सा था। मैं घर में लौटकर काफी देर तक अपसेट रहा । इस घटना के बारे मैं अपनी पत्नी समेत कईयों को बताया। और इसी बीच मेरे और मोहन के बीच संवाद का रिश्ता खत्म हो गया।

तभी 1996 में होली के दिन मोहन मेरे घर पर एकाएक आ गए। उसको देखते ही मेरा मूड उखड सा गय पह माफी मांगी मगर होली में यह सामान्य होने के बाद भी मैं यह नहीं देख सका जब मोहन मेरी पत्नी के गालों पर गुलाल और रंग लगाने लगा। यह देखते ही मैं उबल पड़ा और फौरन मोहन को घर से जानवे की चेतावनी दी। तू मित्र लायक नहीं है यार अभी कटुता को भूले एक क्षण भी नहीं हुआ कि तू रंग बदलने लगा। तू बड़ा गायक होगा तो अपने घर का यहां से चल भाग। पर्व त्यौहार में अमूमन घर आए किसी मेहमान के साथ इस तरह की अभद्रता करना कहीं से भी शोभनीय नहीं होता, मगर कुछ संबंधों में सब कुछ जायज होता है।          

करीब दो साल के बाद मैं अपनी पत्नी को लेकर गांव चिल्ला सरौदा  के पास स्कूल में गया। जहां पर उनको अपने स्कूल की बोर्ड परीक्षा दे रही तमाम लडकियों  से मिलकर हौसला अफजाई के साथ साथ विश करना था। तभी एकाएक एक बार फिर मोहन टकरा गए। उनकी दूसरी बेटी भी बोर्ड की परीक्षा देने वाली थी। मोहन से टीक ठाक मिला तो उन्होने अपनी बड़ी बेटी से मेरी पत्नी का परिचय कराया जिसकी पिछले साल ही शादी हुई थी। वो हमदोनों के पैर छूकर प्रणाम की तो मैं उसको गले लगा लिया । माफ करना बेटा एक बार किसी कारण से तेरे को मैं गाली दे बैठ था पर तू तो परी की तरह राजकुमरी हो । माफ करन बेटा. मेरे इस रूप और एकाएक माफी मांगने से वह लड़की अचकचा गयी। पर मेरे मन में कई सालों का बोझ उतर गया। जिसको बेटी की तरह देखो और उसको ही किसी कारण से कामुक की तरह संबोधित करना वाकई बुरा लगता है। इस घटना के बाद करीब 18 साल का समय गुजर गया, मगर गायक मोहन या इसके परिवार के किसी भी सदस्यों से फिर कभी मुलाकात नहीं हुई।  










नगर सुदंरियों से अपनी प्रेम कहानी -5

रात में एक कॉलगर्ल के साथ  रिक्शे सफर

अनामी शरण बबल

यह बात 1995 की है। तब मयूर विहार फेज-तीन आबाद नहीं हुआ था। इसके आबाद नहीं होने के कारण गाजीपुक डेयरी कोणडली दल्लूपुरा में भी दुकानों की चहल पहल नहीं थी। कहा जा सकता है कि आवगमन की सुविधा भी आज की तरह नहीं थी। शाम ढलते ही पूरा इलाका विरान सूनसन सा हो जाता थ। इसके बावजूद अपराध की घटनाएं ना के बराबर होती थी। कहा जा सकता है कि जब इलाका ही विरान हो जाए तो बेचारे चोर, बदमाश लुटेरे किस पर आजमाईश करते। राष्ट्रीय सहरा मे तमाम रिपोर्टरों को एक दिन नाईट यानी रात 12 बजे तक दफ्तर में रहकर क्राईम की खबरों को देखना होता था। उस समय मेरा नाईट किस दिन था यह तो मुझे अब याद नहीं पर रात में घर तक छोड़ने की व्यवस्ता होने के कारण खास चिंता नही होती थी। देर रात तक दफ्तर में रहकर सभी अखबारों में नाईट कर रहे रिपोर्टर दोस्तों से बात करने तथा पुलिस हेडक्र्वाटर में लगातार फोन घंटियाने का अलग मजा होता था। रात में केवल पत्रकारों को सूचना देने वाले तमाम इंस्पेक्टरों से भी मिले बिना ही हम पत्रकारों की गहरी याराना हो गयी थी। घटना वाले दिन गाड़ी चालक के घर पर कोई बहुत बड़ी आपात स्थिति थी। वो दफ्तर में ही बैठकर मयूर विहार फेज 3 तक मुझे ना छोड़कर गाजीपुर डेयरी वाले पुल एन एच-24 पर ही छोड़ देने का मनुहार कर रहा था। गरमी के दिन थे और इलाके से परिचित होने के नाते मैने भी हरी झंडी दे दी, और मैं पुल के पास साढे बारह बजे उतर गया। पुल से नीचे उतरते समय मैं मान कर चल रहा था कि करीब एक किलोमीटर मुझे गाजीपुर कल्याणपुरी मोड़ तक पैदल जाना है। उसके बाद की सवारी मिली तो ठीक नहीं तो बाबू चरण सिंह की कार तो है ही।  मानसिक तौर पर इसके लिए मैं तैयार भी था कि नीचे उतरते ही देखा कि एक पेड़ के नीचे थोड़ा अंधेरे में एक रिक्शा चालक रिक्शा के साथ बैठा है। रिक्शा देखते ही मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। मैं बस फटाफट पलक झपकते ही रिक्शे पर जा बैठा और फेज-3 चलने को कहा। मेरी बातों को नजर अंदाज करते हुए उसने कहा रिक्शा खाली नहीं है अभी सवारी आने वाली है। सवारी आने वाली है, सुनते ही मेरा माथा ठनका।  क्यों वो तेरी रोजाना की सवारी है।  इसका जवब देते उसका हलक सूख गया और हां और ना करने लगा। कितने दिनों से तेरी सवारी है यह तो बताना ? अब तक वो संभल चुका था और तन कर बोला मैं क्यों बताउं। इस पर मैं गुर्राया साले चल पुलिस से तेरी शिकायत करता हूं कि रात में यह रंड़ियों का दलाल है और उनकी सवारी करता है। मेरी गुर्राहट पर भी वो हल्के स्वर में भुनभुनाता रहा। चल आज देखता हूं तेरी अनारकली को भी साली रात में धंधा से निपटकर रिक्शा से घर जाती है। और तू तो दलाली के चक्कर मे जाएगा जेल। साले पुलिस वालों की कहीं एक बार हाथ लग गयी न तो महीने मे 15 दिन तक यह सिपाहियों को ही ठंडा करती घूमेगी। मेरी बातों से रिक्शा वाला शांत हो गया था। थोड़ी देर बाद फिर मैने फिर पूछा अभी और कितनी देर है उसके आने में। करीब एक बजने वाले थे।  रिकशा वाले ने कहा कि वो कभी भी आ सकती हैं रोजाना वो साढे बारह बजे तक तो आ जाती थी। तो यहां पर वो आती कैसे थी। इस पर रिख्शा वाले ने कहा पुल के उपर कोई कार उनको रोजाना छोडता है। यह सुनते ही मैं हंस पडा साले वो तेरे को उल्लू बनाती है। तू हरामखोर मूर्ख 50 रूपए मे ही खुश है कि इससे  तेरी कमाई हो जाती है, मगर तू भी उसके अपराध में शामिल है। साला जाएगा तू जेल । कितने दिनों से तेरे को उल्लू बना रही है। मेरी बातों का उस पर असर होने लग था। वो भीतर से घबराने लगा था। करीब दो साल से। मैने फिर डॉटा तूने कभी सोचा नहीं कि रात एक बजे आने वाली लौंड़िया कोई शरीफ तो हो नहीं सकती गदहा। देख लेना पुलिस वाले तो साले उसको अपनी रखैल बना लेंगे मगर जाएगा तू भीतर। हम दोनों अभी बातचीत मे लगे ही हुए थे कि रात की अनारकली सामने प्रकट हो गयी। मेरे उपर ध्यान न देते हुए वो रिक्शावले से पूछी क्या माजरा है । उसके आने पर वो थोडा सबल सा महसूसने लगा था । दो मिनट में मेरे एकाएक आगमन और हड़काने की जानकारी दी। मेरे उपर बेरूखी से बोली क्या हंगामा कर रहे हो। इस पर मैं हंस पड़ा हंगामा तू रोजाना करती है और मुझसे पूछती है कि मैं हंगामा कर रहा हूं। उसने कहा क्या मतलब। अभी चल पुलिस थाना सब पता चल जाएगा धंधा रंडी वाला और ताव पुलिस वाला मारती है।. जोर से चीखने लगी क्या बकवास करता है। वहीं तो मैं कह रहा हूं साले को दो साल से पटा रखी हो कि रात में तेरे को ले जाया करे और तेरा काम नाम किसी को भी पता नहीं लगा। वह मेरे से पूठी  तुम कौन हो। मैं कोई रंडा या दलाला नहीं हूं। पुलिस का मुखबिर हूं तेरी कारस्तानी का थाने में पोल खोली जाएगी। फौरन अपना तेवर ठंडा करते हुए बोली क्या मांगता है। मैं तुरंत बोला धंधा करने वाली मुझे क्या देगी, जो चंद रूपयौं को लिए हर जगह बीछ जाए। रिक्शा वाले की तरप ईशारा करते हुए मैने कहा अरे इस  मूरख को तो समझा देती कि यदि कोई सवारी बीच में आ जाए तो उसको ठीक से पटा ले ना कि तोते की तरह तेरे धंधे की कहानी बताने लगे। थोडा नरम पड़ती हुई बोली आपको क्या शिकायत है इससे या मुझसे। मेरी कोई शिकायत नहीं हो सकती, मैं तो मयूर विहारफेज 3 जाने के लिए पूछा तो बकने लग मेरी सवारी है मैं नहीं जा सकता। तो मैं बस तुम्हारा इंतजर कर रहा था कि एक ही साथ फेज-3 चलेंगे। वह तुरंत बोली यह कैसे हो सकता है। मैने कहा कि एक रिक्शे मे दो सवारी बैठ सकते है या तो एक साथ चलो या फिर मैं पहले जाता हूं फिर तेरा तोता  तो तेरे लिए आ ही जाएगा। पर अब इसको मूर्ख बनाना बंद करो रात को एक बजे 50 रूपे देती हो, और यह साला इसी में खुश कि रात में लौंडिया को लेकर जा रहा है। लौंडिया सुनते ही वह चीखी क्या बकते हो । मैंने तुरंत सॉरी कहा तुम ठीक कह रही हो ये लौंडिया नहीं रंडी को लेकर रात में घूमता है मूरख। साले को पकड़े जाने दो जीवन भर रहेगा भीतर। इस बार वो मेरे उपर चीखी क्या रंडा रंडी बक रहा है मैं अभी मजा चखाती हूं। मेरी शराफत का नाजायज फायदा उठा रहे हो। मैं हंसने लगा तू अभी इस लायक ही कहां है कि तेरा फायदा उठा सकू। अगर बात को तूल देनी है तो जहां तेरी मर्जी हो वहां चल और शराफत के साथ अपने धंधे पर पर्दा डाले रखना चाहती है तो मयूर विहर फेज 3 तक साथ साथ मुंह बंद करके चल। रिक्शा वाले को जो तुम दोगी उसमें 25 रूपए मैं भी शेयर कर दूंगा। मेरी बाते सुनकर वो रिक्शे पर बैठ गयी। जब मैं बैठने लगा तो सती सावित्री कुलवंती देवी की तरह मेरे को छिटकाते हुए बोली ठीक से बैठो ठीक से। इस पर मैं भी जोर से बोल पड़ा कि तेरे से चिपकने या चिपक कर बैठने का कोई इरादा या मूड नहीं है। बीच में मैं अपने बैग को रख डाला तो उसको बैठने मैं दिक्कत होने लगी होगी, तो बोली इसको हटाओ मैं नहीं बैठ पा रही हूं। तो मैं क्या करूं, ऐसा करो तुम नीचे बैठ जाओ केवल 15 मिनट की ही तो बात है। मेरी बाते सुनकर फिर वो चीखी बकवास बंद करेगा।  मैने तुरंत जोड़ा मैने तो सारी बकवास बंद कर रखी है, मगर इस बेचारे को छोड दे नहीं तो पुलिस तो तेरी आगे पीछे घूमने लगेगी, मगर इसका तो कोई नहीं है।  मैने फिर रिक्शे वाले को आगाह किया कि यही तेर को अब एक सौ रूपया भी रोजाना दे न तो भी इसका साथ छोड़ दे ,नहीं तो तेरे को भीतर मैं करवा दूंगा मूऱख। मैने उसे पूछा कहां का है रे। मेरी बात पर दबे स्वर में बोला दरभंगा का। यह सुनते ही मैने पांव से एक ठोकर उसको दे मारी । साला गदहा अपने साथ साथ बिहार का भी नाक कटाता है। ठोकर लगते ही उसने रिक्श रोकते हुए रोने लगा। तेरे को भी मजा देती है क्या जो इसके पीछे पागल बना है। इस पर रिक्शा वाला तो खामोश रहा पर मेरे बगल में बैठी देवी फिर चिल्लाने लगी अजीब बदतमीज हो हर बात पर मुझे रंडा रंडी कॉलगर्ल बताए जा रहे हो। मैं नहीं बोल रही हूं इसका मतलब यह नहीं कि तू जो चाहेगा बोल सकता है।

इस पर मैंने कहा मैं तो शुरू से ही कह रहा हूं कि तू बोल बोल न रोक कौन रहा है। यह तो मेरी शराफत है कि मामले को तूल नहीं दे रहा हूं वर्ना तू भी जानती है कि इन पुलिस वालों के चक्कर में आते ही तेरा धंधा तो हो जाएगा चौपट, मगर रोजाना  इनसे ही निपटने में और कोख गिरने में ही तेरी सारी जवानी खत्म हो जाएगी। मेरी बात सुनते ही रिक्शा पर बैठी बैठी वह रोने लगी। मैने तुरंत नाटक बंद करने को कहा। रिक्शा कोणडली गांव होते हुए  घडौली डेयरी के रास्ते में आ गया । तभी सामने से एक गाडी की लाईट्स पडी। मैं इसको थोडा संभल कर बैठने को कहा । ठीक मेरे सामने पुलिस की जिप्सी रूक गयी। मैं फौरन रिक्शे से उतरा और अपना कार्ड देते हुए कहा कि आज नाईट थी और दफ्तर की गाडी आज ठीक नहीं थी मगर गाजीपुर पुल के नीचे एक रिक्शे पर ये मोहतरमा मिल गयी तो लिफ्ट ले लिया 25 रूपये शेयर करने की शर्त पर। इस पर पुलिस वाला मुस्कुरा पड़ा। ये मोहतरमा कौन है। कोई बीमार है और ई रिक्शा वाला दरभंगा का है। पुलिस वाला हंसते हुए बोला तो पत्रकार जी आपने तो पूरी रिर्पोर्टिंग कर ली है। मैने भी कहा क्या करे रात का मामला है और कोई लड़की हो तो तहकीकात तो करनी ही पड़ती है। मेरी बात सुनकर पुलिस वाला ठहाका लगाया और आगे गाड़ी आगे बढ़ गयी।  वापस रिक्शा पर बैठते ही मोहतरमा बोली कि तू पत्रकर है। मैने फौरन कहा बस इसीलिए आज तू बच गयी। बातचीत करते करते मैं मयूर विहार फेज 3 के बस अड्डे पर आ गया। यहां पर मुटे उतरना था।  मगर महिला ने बताया कि मैं आगे जाउंगी। रिक्शा वाले को नीचे उतरकर मैने एक हाथ जमाते हुए मैने फिर आगाह किया कि साला कमाई कर दलाली ना कर वर्ना जीवन भर के लिए भीतर हो जाएगा। घर गांव में बदनामी होगी सो अलग। और अंत में मैने इस कॉलगर्ल कहे या संभ्रात रंडी को भी सलाह दी कि रिक्शे की सवारी तेरे लिए एकदम सेफ नहीं है। ये तो कहो कि गाजीपुर डेयरी  के हरामजादों को पता ही नहीं है रि तू रोजाना रात में आती है। ये साले तुम्हें इस लायक भी नहीं छोड़ेगें कि खुद को संभाल सको। और जब रात में पुल तक गाडी से आती है तो अपने इश्कखोरों से कहो कि फेज-3 तक छोड़ा करे नहीं तो किसी भी दिन तेरा राम नाम सत्य हो जाएगा।  जब मैं मुड़ने लगा तो वह हाथ जोड़कर रोने लगी। रोते देखकर मैने कहा खुद को संभाल ई रोने धोने का चूतियापा बंदकर। यह कहते हुए मैं अपने घर की तरफ जाने लगा। इस घटना के बाद फेज-3 में ही उससे एक बार बाजार में और दूसरी दफा डीटीसी बस में टक्कर हो गयी। मुझे देखते ही वह शरमाते हुए हाथ जोड दी। बस में तो वह बैठी थी, मगर मेरे को देखते ही अपनी सीट खाली कर दी। मैने उसे सीट पर बैठने को कहा और हाल चाल पूछते के बाद  बस से उतर कर मैं दूसरे बस की राह देखने लगा।    
        
               























      













नगर सुदंरियों से अपनी प्रेम कहानी -4


जब जीबीरोड की वेश्याओं ने मुझे गर्भवती बना दिया


अनामी शरण बबल


यह एक इस तरह की कहानी है जिसको याद करके भी काफी समय तक शर्मसार सा हो जाता था। मगर काफी दिनों के बाद अपने शर्म और संकोच पर काबू पाया। मगर इसको कभी लिखने के लिए नहीं सोचा था। मगर अब जबकि इस घटना के हुए करीब 16 साल हो गए हैं तो मुझे लगने लगा कि इसे भी एक कहानी या संस्मरण की तरह तो लिखना ही चाहिए। अगर कहीं मैं रंगरूप बदलकर या अपनी पहचान छिपाकर कोई बड़ी खबर करना हूं जिसे मीडिया जगत में सराहनीय भी माना जाता है तो फिर कोठे पर जाकर कोई खबर करने में शर्म कैसी। यह एकाएक अजीब हालात वाली कहानी है जिसके लिए ना मैं तैयार था और ना ही जीबीरोड के कोठेवालियां ही। पर संयोग इस तरह का बना कि करीब दो घंटे तक  मैं उनकी लाडली बन गयी। हंसी मजाक और गालियों के इस सिलसिले में एक साथ दर्जनों वेश्याएं मुझ पर निहाल सी हो गयी। और इसे प्यार कहे या दुलार गाल पर दर्जनों हाथ भी पड़े । जिसे यदि थप्पड ना भी कहे तो चोट में बस प्यर से मारा गया थप्पड ही था।  

नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन की तरफ से जब कभी भी मैं जीबीरोड होते हुए चवडीबजार या चंदनी बजार की तरफ गया तो उस रात मेरी उचट जाती थी। हर छत की खिड़कियों पर खड़ी  बेशुमार रंग बिरंगी हर उम्र की वेश्याओं द्वारा संकेत करके ग्राहको को बुलाना या सीटी मारकर अपनी तरफ मोहित करने का यह दिलफेंक सिलसिला सुबह से लेकर रात तक चलता ही रहता है। इस तरफ शाम ढले या रात को कभी गुजरा नहीं लिहाजा उस समय के हालात पर ज्यादा कह नहीं सकता मगर दिन के 11 बजे से लेकर शाम चार पांच बजे तक कई बार गुजरा तो हमेशा खिड़की गुलजार रही और खिड़कियों पर हर उम्र की वेश्याएं हमेशा ग्राहको को लुभाती या अश्लील संकेतों से उपर बुलाती ही मिली। जीबी रोड की इन सुदंरियों पर काम करने या इनके जीवन की कथा -व्यथा को जानने  की उत्कंठा मेरे मन में हमेशा जगी रहती थी, मगर मन में इतना साहस ही नहीं था कि कभी कोठे पर जाकर इनसे बात करू। और बात भी करता तो क्या करता । बेवजह समय बर्वाद करने के नाम पर तो वे लोग मुझे इतनी गालियं देती,  जिसे मैं शायद इस जन्म में भूल नही सकता या इतने जूते खाने पड़ते कि चेहरे को ठीक होने में भी समय लगता। अपने संपादक को बताए बिना बहादुरी करने या करते हुए पकड़े जाने पर तो रंडीबाज पत्रकार की तोहमत को इस जन्म में मैं धो ही नहीं सकता। कोठे पर रपट के बहाने कई थे तो साथ ही जीवनभर के लिए बदनामी या कलंक के तमाम खतरे भी जुड़े थे। इन तमाम खतरों के बाद भी मेरे मन की उत्कंठा शांत नहीं हुई थी। मगर मेरे भीतर इतना साहस कहां कि वेश्याओं से अकेले जूझ सकूं। जीबीरोड की वेश्याओं के कई नेता भी हैं जिनसे, संपंर्क करके कभी भी बेखौफ बातचीत की जा सकती है, मगर यह संयोग इस तरह का ही होता मानो उन पर नकेल डालकर बहादुर  बना जाए।

किसी काम से मैं एक बार फिर जीबी रोड की तरफ से ही गुजर रहा था। मैं किसी कोठे की छत पर जाने वाली सीढी के नीचे माहौल से अनजान खड़ा था। आज की अपेक्षा उस समय मैं थोड़ा ज्यादा मोटा सा था।  मेरा एक हाथ पेट पर था और मैं कहीं दूसरी तरफ देख रहा था। मेरे ध्यन में यह था ही नहीं कि मैं किसी कोठे पर जाने वाली सीढी के एकदम करीब या किसी कोठे के एकदम पास में ही खड़ हूं। तभी पीछे से आवाज आई कितने माह का जानू ? पहले तो मैं कुछ समझा नहीं । तभी पीछे से फिर आवाज आई कितने माह का है रे । मैं मुड़कर देखा कि सीढी पर एक महिला (वेश्या) खड़ी होकर मेरा उपहास करते हुए मजाक उड़ा रही है। एक पल को तो मैं यह नहीं समझ पाया कि इस हाल से कैसे निपटा जाए। तभी वो एकबार फिर मेरे सामने आकर बोली किससे है और कितने माह का है रे।  अचानक मैने ठान लिय कि बस्स इसी औरत का नकाब ओढ़कर ही इन वेश्याओं से निपटना है। मैं तुरंत बोल पडा किधर भाग गया था रे हरजाई  अकेली छोड़कर। मैं कहां कहां न तुमको खोजती घूम रही हूं बेवपा। आज मिला है। चल मेरे साथ कोख में आग लगाके किधर भागा था रे। मैने बोलचाल में स्त्री का रूप धारण करके उसको मर्द की तरह संबोधित कर उलाहना देने लगा। मेरी बातों को सुनकर वो हंसने लगी। मेरी बातों से पेट के बल होकर हंसती रही। उसने मुझे कहा चल साली चल यारों से मिलाता हूं। मेरे सामने वो भी मर्द की तरह ही बोलने लगी। एकाएक मेरा हाथ पकड़ कर छत पर ले जाने लगी चल इतने यारों से मिलाउंगा न कि तू यहीं मर मरा जाएगी। अब तक तो मैं भी काफी संभल गया था और ठान लिया कि एकदम स्त्रीलिंग की तरह ही हाव भाव न सही मगर बोलचाल रख कर ही इससे जूझना है। मेरा हाथ पकड़कर वो सीढी पर से ही अपनी सखियों सहेलियों को पुकारने लगी अरे आओ रे एक लौंडिया आई है जो मुझसे पेट से है रे आओ न देख मेरी दुलारी को। छत के उपर वह एक बड़े से कमरे में ले गयी। और मुझसे बोली पानी पीएगी रानी ? मैं हंस पडा और मस्ती के साथ बोल पडा राजा के हाथ से तो जहर पी जाएगी तेरी रानी।  तू पीलाकर तो देख। मेरी बातें सुनकर वो फिर निहाल सी हो गयी। हंसते हुए बोली साली लौंडिया होने का ड्रामा अब बंद भी कर. मैं एकदम निराश होकर बोल पडा और मेरे पेट का क्या  होगा रे हरजाई बेवफा ? मेरी बाते सुनकर वो फिर हंसने लगी। साली ज्यादा याराना दिखाएगी न  तो यहीं पर रख ली जाएगी। तो यहां से भाग कौन रहा है,, तेरे साथ तो जहन्नुम में भी रह लूंगी या रह जाउंगी। मेरी बातों को सुनकर वो फिर हंसते हुए बोली साला लौंडा बन जा बहुत हो गया तेरा नाटक। मैंने भी तीर मारा कि तुम भी गजब मर्द है साला जब तक नौ माह पूरे नहीं होंगे तब तक तो लौंडा कैसे बन सकती हूं। साला इतना भी नहीं जानता है। मेरे द्वारा हर बात पर दोटूक हास्यस्पद  जवाब देने से मुझे उपर तक लाने वाली मगर मेरे साथ मर्द की तरह बात करने वाली वेश्या हर बार उछल पड़ती। मेरी बातों से उसकी हंसी रूक नहीं रही थी, और मैं भी हर जवाब को इतना रसीला बनाने में लगा था कि यह मेरे सामने मेरी दीवानी सी नजर आए। हमलोग अभी आपस में उलझे ही थे कि हर उम्र की एक साथ 10-15 रंगीन हसीन वेश्याएं कमरे में आ धमकी। किसी ने कहा क्या हुआ सलमा किसे इश्क फरमा रही है। मेरी तरफ कईयों की नजर गयी तो सबों ने कहा कि साली एक जब तेरे पास पहले से आया हुआ है तो कहीं और जा।  यहां नुमाईश क्यों लगा रखी है अपने यार का। नहीं संभल रहा है तो बोल साले में आग लगाती हूं फिर बकरी बनाकर कमरे में ले जाना। एकाएक धमकने वाली तमाम वेश्याओं का मन उखड़ चुका था और लगता था कि वे बस अब बाहर भागने ही वाली है। तभी मेरे साथ मर्द का रोल कर रही वेश्या ने अपने साथिनों को लताड़ा। नहीं रे यह बात नहीं है यह तो मेरी रानी है और इसके पेट में मेरा पांच माह का बच्चा है। साली खोजते खोजते नीचे मुझे मिल गयी तो अपनी रानी से तुमलोग को मिलाने के लिए उपर लेकर आई हूं। अपनी सहेली की बात सुनते ही कमरे में मौजूद तमाम वेश्याओं का रंग रूप मिजाज और बातचीत का अंदाज ही बदल गया। भीतर भीतर मैं भी थोड़ा नर्वस सा होने लगा कि एक साथ इतनी सुदंरियों को संभला कैसे जाएगा। मगर मैने सोच लिया था कि एकदम रसमलाई से भी रसीली और मीठी बाते उलहना या नकल करूंगा कि ये सब मेरे साथ ही मशगूल रहे।  कईयों ने अपनी सहेली वेश्या पर ही इल्जाम  लगाए बड़ी घाघ है री माशूका भी पालती है और हमलोग से छिपाकर भी रखती है। कईयों ने अपनी साथिन के ही गाल छूते हुए हुए बोली कितने दिन का ये तेरा यार है । कभी बोली बताई तक नहीं। अपनी सहेलियों द्वारा उसी पर संदेह अविश्वास किए जाने पर वो बौखला सी गयी। अरे मेरा यार नहीं है रे ये साला नीचे खडा था और हम दोनों के बीच पेट को लेकर जो भी रसीली और मीठी मीठी बाते हुई वह सबको बताने लगी। पूरी कहानी सुनने के बाद शामत मेरी और मेरे मर्द वेश्या को भी झेलनी पडी। कईयों ने उसकी बातों पर यकीन ही नहीं हो रहा था। सबको लग रहा था मानो मैं इसका वास्तव में यार हूं और आज सबों से मिलाने के लिए ही यह नाटक किया जा रहा है।  कईयों ने उलाहना दी साली हम कौन से तेरे यार को खा जाती, मगर कभी दिखाती तो सही। अकेले अकेले रसगुल्ला खाती रही। मेरे को निहारते हुए कईयों ने कहा इसके तोंद को कम करा नहीं तो नीचे घुटकर मर जाएगी। लौंडा तो ठीक है, कहां से पकड़ी यार यह तो बता । अपने साथिनों की उलाहना और अविश्वास के बीच  मेरा मर्द वेश्या उबल पड़ी अरी चुप भी रहो तुमलोग। मेरी बात तो मान सीढी के नीचे यही साला पेट पर हाथ रखकर दूसरी तरप देख रहा त। मैं तो बस हंसी टिठोली में मजाक की मगर साले ने इतना सटीक और मीठा जवाब दिया कि बस हाथ पकड़कर तुमलोग से मिलवाने उपर तक खींच ले आई। कईयो ने फिर भी उस पर झूठ बोलने का ही इल्जम मढती रही। तू अब तो झूट ना बोल कौन सा मैं तेरे सनम को खाने जा रही हूं, पर साले को जीजा तो कह सकती हूं। इसके समर्थन में एक बार फिर कई वेश्याओं ने अपनी ही साथिन पर फिर संदेह की। अपनी साथिनों के इस अविश्वास को दूर करने के लिए वो मेरे उपर झपट पड़ी। चल भाग यहां से तू साला पांच मिनट के लिए यहां आया और मेरी सभी सहेलियों के मन में संदेह जगा रहा है चल भाग। मैं भी कौन से आफत को अपने पल्ले बांधकर ले आई उपर। यह कहते हुए वो रोने लगी। मैं कोठे से जाने की बजाय  पास में पड़े एक रूमाल से उसके आंसू पोंछते हुए कहा रो मत यार मैं तो जाने ही वाला हूं पर तू क्यों रो रही है। रूमाल से आंसू पोंछने पर उसकी कई सहेली वेश्याएं मुझपर कटाक्ष की, अरे हाथ से भी आंसू पोंछ देता न तो कोई शामत नहीं आ जाती। मैं इस पर बोल पड़ा बिना आंसू पोछे और हाथ पकड़े तो भूचाल आ गया और तुमलोग मुझे पिटवाने के ही फिराक में ही हो क्या ? एक वेश्य मेरे पास आकर बोली इसका क्या नाम है रे तू जानता है ? मेरे द्वारा इंकार किए जाने पर सबो ने फिर से मुझसे पूरी कहानी सुनी और मैं किस तरह उपर ले आया गया की एकरूपता पर विश्वास करने लगी। तो अब मेरे इंटरव्यू का समय था तू क्या करता है इधर क्यों आय़ा था। सवालों की बौछार से निपटने से पहले मैने कहा क्या तुमलोग पानी पिला सकती हो। ज्यादातरों ने गलती का अहसास किया और तुरंत पनी के लिए दो दौड़ पड़ी। दो गिलास पूरा पी लेने के बाद दो चार ने मुझसे पूछा चाय भी पीएगा क्या ? इस पर मैने कहा तू चाय ना बना बाहर से रस और चाय मंगा ले मगर इसका पैसा मैं दूंगा। अपने बैग में रखे एक और बैग को निकाला और तीन सौ रुपए आगे कर दिए। कईयों ने कहा अरे चाय के लिए तो यह बहुत है। मैने फिर कहा तो कुछ नमकीन भी मंगा ले तो तेरे साथ साथ मैं  भी खा लूंगा। फिर मैने पूछा तुमलोग मेरे साथ तो खा ही सकती हो न ? इस, सवाल पर सारी खिलखिला पड़ी। तेरे साथ तो मर बी सकती हूं तू तो केवल खाने के लिए ही पूछ रहा है। बाजी को बिन कहे अपने हाथ में आते देख मैं उठा और सुबकते हुए जमीन पर ही सो गयी अपनी मर्द नेश्या के पास जाकर उठाया और साथ में बैठने को कहा।मेरे देखा देखी कई उसकी सहेलियं भी पस में आ गयी और सबों ने झिझोंड़कर उठाया चल चल मान गए कि वो तेरा नहीं हम सबका यार है यार । उसको मनाने उठाने में कुछ समय लगा तब तक चाय समोसे और रस को लेकर चाय वाला हाजिर हो गया। दो सौ कुछ रूपए का बिल बना । बाकी रुपए मुझे लौटाने लगी तो मैने कहा अगली बार कभी आया तो उसमें जोड लेना। इस पर एक साथ सरी वेश्याएं खिलखिला पड़ी साला बहुत तेज है अगली बार का भी अभी से टिकट कन्फर्म कराके जा रहा है। एक साथ ठहाका लगा और मैं सबको हंसते हुए देखत रहा।                       
    चाय पान के बीच में ही दो एक ने अपने बक्से से नमकीन के पैकेट ले आए औरमस्ती और पूरे आत्मीय माहौल में करीब 15 मिनट तक यह ब्रेक चलता रहा। खानपान खत्म होत ही एक ने पूछा तू बता करता क्या है ? मैं इस पर हंस पड़ा। करूंगा क्या स्टोरी राईटर हूं। इधऱ उधऱ घूमना और कहानी लिखना ही काम है। मैने चारा डालते हुए पूछा कहो तो तुमलोग की भी स्टोरी लिख दूं?  मेरे इस सवाल पर कईयो ने कहा हाय हाय मेरी भी कोई स्टोरी है जो लिखेगा?  इस पर मैने तीर मारा अरे क्यों नहीं  तुमलोग को तो मैं दुनिया की सबसे शरीफ ईमानदार और पवित्र महिला मानता हूं। मेरी बातों पर यकीन न करते हुए सभी चकित रह गयी कैसे कैसे कैसे कैसे बता? हमलोग तो दुनिया की सबसे गंदी मानी जाती है। यही तो बात है कि जिसे लोग दुनिया की सबसे गंदी मानती है वो उसी माहौल मे रहकर संतुष्ट है। क्या तुमलोगों ने कभी जंतर मंतर पर धरना दी है। तुम्हारा काम क्या है सब जानते है मगर हम लोगों के काम में कितना दोगलापन है दोगला चरित्र और दो तीन चेहरे वाले हमलोग में तो कदम कदम पर बेईमानी भरा है। जितने तेरे पास आते हैं वे साले हरामखोर अपनी  बीबीओं से दगाबाजी करके आते हैं। मगर तुमलोग तो उपर से लेकर नीचे तक ईमानदार हो क्या कभी किसी से चाहे कोई हो बिस्तर पर साथ देने में भेदबाव करती हो?  तुम्हारी सादगी समर्पण और अपने धंधे के प्रति ईमनदरी देखकर तो लोगों को सबक लेनी चाहिए। मेरे इस प्रवचन क बहुत ही सार्थक असर पड़ा। मेने कह मैं तो तुमलोगो को बहुत पवित्र और ईमानदार मानता था और मानता रहा हूं। मेरी बातो का मानों उनपर जादू सा असर हुआ। वे सब मुझपर मानो न्यौछवर सी हो गयी। अरे तेरे जैसी तो बातें करने वाला कभी यहां पर आया ही नहीं । मैने तुरंत जोड़ा भला आएगा कैसे? मेरे जैसों को कभी ग्राहक माने बिना बुलाएगी न तो ,,,,। इस पर कई चीख पड़ी साले पैसा निकालने में तो मर्दो की जान निकल जती है अगर तेरी बात मानकर कोठे को फ्री कर दी न तो पूरा चांदनी चौक ही कोछे के बाहर लाईन लगाकर खड़ी हो जाएगी।   

मेरे बैग की तलाशी लेती हुई सुदंरियों ने राष्ट्रीय सहारा के आई कार्ड और विजिटिंग कार्ड निकाल ली। एक ने कह अच्चा तो तू पत्रकार है ? मैने फौरन कहा कि एकदम सही पहचानी मैं इसके लिए ही स्टोरी लिखता हूं। अपनी जिज्ञासा प्रकट करते हुए एक ने पूछा कि तुम इसके लिए काम करते हो या नौकरी महीना वेतन वाला करते हो ? अरे तू मेरे साथ मेरे दफ्तर चल ना मैं लेकर चलता हूं वहां तुम्हें जानता कौन है। चाय भी पिलाउंगा और सबों से अपने दोस्त की तरह परिचय भी कराउंगा। तेरा मन करे तो तू जब चाहे मेरे दफ्तर में आ सकती है। अगर कभी मैं ना भी रहूं तो भी तू मेरे केबिन में बैठकर और चाय पीकर भी जा सकती है। मेरी बातों से चकित होती हुई कईयो नें कहा तुमको हमलोग पर इतना विश्वास है? मैने तीर मारा उससे भी ज्यादा जानेमन। मेरे द्वारा जानेमन क्या कहना मानो सबकी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा और बारी बारी से मेरे गालों का ऑपरेशन ही कर डाला। अपना हाथ लगाकर मुझे अपना चेहरा बचाना पड़। सबों ने मेरे कार्ड को अपने पास रखती हुई दफ्तर में फोन करके चाय पीने के लिए आने का वादा किया।  जब मैं जाने लगा तो एक ने मुझसे कहा क्या तुम हमलोग का नंबर नहीं लोगे ? मैं बात को मोड़ते हुए कहा कि जब तुमलोग फोन करोगी या मेरे दफ्तर में आओगी तो संवाद तो बना ही रहेगा। जाने से पहले मैं अपने मर्द बनी साथी से गले लगा और माफी मांगने के अलावा धन्यबाद भी दिया कि यार मैं तेरे प्रति आभार नहीं जता सकता कि तेरे कारण मैं तुम्हारी और तुमसे इतना घुलमिल सका। इस पर वो एकबार फिर मुझ पर मर जाने का डायलॉग दी।. मैने हाथ पकड़कर कहा दोस्ती मरने के लिए नहीं होती बल्कि जिंदा रहकर दोस्ती की मान रखा जाता है। सबों से हाथ मिलाते और हाथ लहराते हुए मैं कोठे की सीढियों से नीचे उतर गया। इस घटना के कोई पांच साल तक मैं सहारा मे ही काम करता रहा, मगर कोठेवाली सुदंरियो ने ना तो कभी मुझे फोन किया और ना ही मेरे दफ्तर में आकर चाय पीने का वादा ही निभाय। अलबत्ता तब कभी कभी मुझे इनसे फोन नंबर नहीं लेने का मलाल जरूर लगा।



 बुलंद हौसले वाली दोनों लड़कियों को आज भी सलाम

अनामी शरण बबल


                                               
इधर जब से मैने अपनी सबसे अच्ची रिपोर्ट को फिर से लिखने की ठानी है तो
बहुत सारी कथाओं के नायक नायिकाओं में से ही दो गुमनाम सी लड़कियों (अब औरतें बनकर करीब 50 साल की होंगी) को आज भी मैं भूल नहीं पाया हूं । जिन्होने अपनी हिम्मत और हौसले के बूते वैवाहिक जीवन तक को दांव पर लगा दी। तो दूसरी लड़की ने तो सार्वजनिक तौर पर अपनी साहस से उन तमाम लड़कियों को भी बल दिया होगा जो किसी न किसी आंटियों यानी जिस्म की दलाली करने वाली धोखेबाजों के फेर में पड़ कर कहीं सिसक रही होंगी। हालांकि अब तो मुझे इनका सही सही चेहरा भी याद नहीं है मगर इनकी हिम्मत और हौसले की कहानी को यहां पर लिखने से पहले ही सैकड़ों उन लड़कियों को इनकी कहानी सुना चुका हूं जो अपना घर छोड़कर नगर या महानगर जाने वाली होती थी।
यह मुलाकात 1990 की है, जब मैं चौथी दुनिया साप्ताहिक अखबार में बतौर  रिपोर्टर काम करता था। आगरा के भगवान सिनेमा पर से दिल्ली के लिए बस पकड़ा ही था। गेट पर ही खड़ा होकर बस के अंदर अपने लिए सीट देख रहा था। पूरे बस में केवल एक ही सीट खाली थी जिसमें एक औरत अपने एक बच्चे के साथ बैठी थी और दूसरा सीट मेरा इंतजार कर रहा था। मैं वहां पर जाकर ज्योंहि बैठने लगा तो चार पांच साल के अबोध बच्चे  ने मासूमियत के साथ बोला अंकल यहां पर आप बैठ जाओगे तो मैं कहां बैठूंगा ? बच्चे की इस मासूमियत पर भला मैं कहां बैठने वाला। गाड़ी खुल चुकी थी और मैं बच्चे के लिए बस में खडा ही था। यह बात उसकी मां को असहज सी लग रही होगी। उन्होने गोद में बच्चे को लेते हुए मुझे बैठने के लिए कहा, मगर मैं खड़ा ही रहा और कोई दिक्कत ना महसूसने को कहा। इस पर प्यारा सा बच्चा मुझसे कुछ कहने के लिए नीचे झुकने का संकेत किया। चलती बस में मैं नीचे झुककर बच्चे के बराबर हो गया तो उसने कहा एक शर्त पर आप यहां बैठ सकते हो? मैं बिना कुछ कहे उसकी तरफ देखने लग तो बालक ने कह कि मम्मी की तबियत ठीक नहीं है, यदि आप मुझे अपनी गोद में बैठा कर ले चल सकते हो तो मैं आपके लिए सीट छोड़ सकत हूं। मैं उसके इस ऑफर पर खुश होते हुए प्यार से उसके गाल मसल डाले। इस पर नाराज होते हुए बालक ने अपनी मम्मी से यह शिकायत कर बैठा कि ये अंकल भी गाल खिंचते है। मेरे और बच्चे के बीच हो रहे संवाद पर आस पास के कई यात्री ठटाकर हंस पड़े, तो वह शरमाते हुए मेरे सहारे ही सीट पर खड़ा हो गया और बैठने से पहले चेतावनी भी दे डाली कि बस में दोबारा यदि गाल खिचोगे तो वहीं पर सीट से उठा दूंगा। मैं भी हंसते हुए कान पकड़कर ऐसा नहीं करने  का भरोसा दिय। सीट पर बैठते ही मैं अपने बैग से कुछ नमकीन टॉफी और बिस्कुट निकाल कर बच्चे को थमाया। जिसे उसकी मम्मी को बुरा भी लग रहा था, मगर इन चीजों को पाकर बच्चा निहाल सा हो गया।
बच्चा मेरी गोद में सो गया था और मैं भी नींद की झपकियां ले रहा था, तभी बस कहीं पर चाय नाश्ता के लिए रूक गयी। मैने बालक की मां से पूछा कि आप कुछ लेंगी ? इससे पहले की उसकी मम्मी कुछ बोलती उससे पहले ही बालक बोल पड़ा  हां अंकल क्रीम वाली बिस्कुट। बच्चे को गोद में लेकर मैं बस से उतर गया। चाय तो मैं नीचे ही पी लिया और खिड़की से ना नुकूर के बाद भी बालक की मम्मी को एक समोसा और चाय पकडाया। बालक के पसंद वाले बिस्कुट के दो पैकेट लेकर हम दोनें बस में सवार हो गए। बस में सीट पर बैठते ही सामान के बदले कुछ रूपए जबरन पकड़ाने लगी। किसी तरह पैसे नहीं लेने पर मैं उनको राजी किया तो पता चला कि वे आगरा दयालबाग के निकट अदनबाग में रहती है। मैने भी जब दयालबाग से अपने जुड़ाव को बताया तो बच्चे की मां सरला ने भी कहा कि उसके मम्मी पापा भी दयालबाग से ही जुड़े है। बस के चालू होते ही इस बार हमदोनों के बीच बातचीत का सिलसिला भी चालू हो गया। सरला ( जहां तक मुझे याद है कि महिला का नाम सरला ही था) ने बताया कि वह दिल्ली नगर निगम के किसी  प्राईमरी स्कूल में टीचर है। ससुराल के बारे में पूछे जाने पर उसने बताया कि हमलोग में तलाक हो गया है और मैं यमुनापार के गीता कॉलोनी  में रहती हूं, क्योंकि यहां से स्कूल करीब है। पति के बारे में पूछे जाने पर वह रूआंसी हो गयी। सरला ने कहा कि उसका पति कमल रेस्तरां और बार में काम करता था और नौकरी छोड़कर कॉलगर्ल बनने की जिद करता था। वो बार बार कहता था कि तू जितना एक माह में तू कमाती है, उतनी कमाई एक रात में हो सकती है। तीन साल तक मैं किसी तरह उसके साथ रही मगर जब उसने अपनी जिद्द पूरी करने और परेशान करने या फोन पर रूपयों का ऑफर देने का कॉल करने या कराने लगा तो मैं उसके अलग रहने लगी। मेरे तलाक का फैसला 1989 नवम्बर में तय हो गया। सरला ने बताया कि अब वो खुद को बेरोजगार दिखाकर मेरे वेतन से ही पैसे की मांग करने लगा है। कहा जाता है कि लड़कियों के लिए शादी एक कवच होता है, मगर इस तरह के दलाल पति के साथ रहने से तो अच्छा होता है बिन शादी का रहना या अपने नामर्द पति के चेहरे पर जूते मारकर सबको बताना कि इस तरह के पति से बढिया होता है किसी विधवा का जीवन। मैं सफर भर उसकी बाते सुनता रहा और साहस तथा हिम्मत दाद भी दिया। उसने यह भी कहा कि मेरे मकान का मालिक भी इतने सरल और ध्यान रखने वाले हैं कि दिल्ली में भी अपना घर सा ही लगता है।

मैने सरला से पूछा कि क्या तुम्हारी रिपोर्ट छाप सकता हूं ? तो वह चहक सी गयी। बस्स अपना फोटो या बच्चे की फोटो नहीं छापने का आग्रह की। उसने कहा कि मेरी जो कहानी है, ऐसी सैकड़ों लड़कियों की भी हो सकती है। मैं जरूर चाहूंगी कि यह खबर छपे ताकि पति के वेश में दलाल और पत्नी को ही रंडी बनाने वाले पति और ससुराल का पर्दाफश हो। सरला की यह कहनी चौथी दुनिया में छपी भी और इसकी बड़ी प्रतिक्रिया भी हुई। । चौथी दुनियां की 25 प्रति मैने सरला तक पहुचाने की व्यवस्था करा दिए, मगर आज 26 साल के बाद जब सरला की उम्र भी आज 54-55 से कम नहीं होगी मेरी गोद में बैठा बालक भी आज करीब 30 साल का होगा। तो बेशक इनके संघर्ष की कहानी का दूसरा पहलू आरंभ हो गया होगा । आज जब मैं 26 साल के बाद यह कहानी फिर लिख रहा हूं तो मुझे यह भरोसा है कि वे आज कहीं भी हो मगर अपनी पुरानी पीड़ाओं से उबर कर एक खुशहाल जीवन जरूर जी रही होंगी।


जिस्म के दलालों से टक्कर

यह कहानी भी यमुनापार की है। लक्ष्मीनगर के ही किसी एक मोहल्ले में तीन अविवाहित लड़कियं रहती थी और घर में केवल एक बुढा लाचार सा बाप था। इनकी मां की मौत हो चुकी थी और घर में आय के नाम पर केवल चार पांच कमरों के किराये से मिलने वाली राशि थी। मैं सभी लड़कियों को जानता था सभी मुझे अच्छी भली तथा साहसी भी लगती थी। यह कहानी सुमन (बदला हुआ नाम है)  की है। घर में मां के नहीं होने के कारण यह कहा जा सकता है कि इन पर लगाम की कमी थी। मैं इसी घर के आसपास में ही किरायें पर रहता था । सारी बहनें मुझे जानती थी और यदा कदा जब कभी कहीं पर भी मिलती तो नमस्ते जरूर करती। सारी बहने हिन्दी टाईप जानती थी और मुझे किसी न्यूज पेपर में काम दिलाने के लिए कहती भी रहती थी। घर के आस पास में कई ब्यूटी पार्लर खुले थे और इनका धंधा भी धीरे धीरे पांव पसारने लगा था। एक दिन मैं घर पर दोपहर तक था और कुछ लिखने में तल्लीन था कि गली में कोहराम सा मच गया। एकाएक शोर हंगामा और मारपीट तोड फोड़ की तेज आवाजों के बीच मैं बाहर निकलने के लिए कपड़े बदलने लग। तभी जोर जोर से सुमन की आवाज आने लगी। मैं थोड़ा व्यग्र सा होकर जल्दी से बाहर भागा। एक ब्यूटीपार्लर के बाहर हंगामा बरपाया हुआ था। सुमन के हाथ में झाडू था और वह किसी रणचंडी की तरह ब्यूटीपार्लर की मालकिन के सामने खड़ी होकर उसकी बोलती बंद कर रखी थी। गली के ज्यातर लोग भी सुमन के साथ ही थे मगर एकाएक ब्यूटीपार्लर को कबाड़ बना देने का माजरा किसी को समझ नहीं आ रहा था। ब्यूटीपार्लर की मालकिन सुमन के साथ अब भिड़ने लगी थी और बार बार पुलिस को बुलाने का धौंस मार रही थी। इस पर मैं आगे बढा और पूरी बात जाने बगैर ही बीच में टपक सा पड़ा। सुमन को पीछे करके मैने भी धौंस दी कि कि मामला क्या है यह तो अभी पता चल जाएगा मगर तू बार बार पुलिस का क्या धौंस मार रही है। तू पुलिस बुलाती है या मैं फोन करके पुलिस को यहां पर बुलाउं। मेरे साथ कई और लड़के तथा बुजुर्गो के हो जाने के बाद ब्यूटीपार्लर वाली आंटी अपने कबाड़ में तब्दील पार्लर को यूं ही छोड़कर कहीं खिसक गयी। तीनों बहन गली मे ही थी। मैने तीनो को घर में जाने को कहा, मगर वे लोग गली मे लगे मजमे के बीच ही खड़ी रही। थोडी देर के बाद जब मेरी नजर इन तीनों पर पड़ी तो सबसे बड़ी बहन को डॉटते हुए कहा कि इस तमाशे तो खत्म कराना है न तो जाओं सब अंदर और हाथ पकड़कर तीनो बहनों को घर के भीतर धकेल कर बाहर से दरवाजा लगा दिया। थोड़ी देर तक बाजार गरम रहा। सबों को इतनी सीधी लड़की के एकाएक झांसी की रानी बन जाने पर आश्चर्य हो रहा था। मैने भी कहा कि कोई न कोई बात गहरी है तभी यह लड़की फूटी है, मगर हम सबलोगों को सुमन का साथ देना है, क्योंकि हमारे गली मोहल्ले और घर की बात है । इस पर हां हां की जोरदार सहमति बनी और यह तमाशा खत्म हुआ। गली की ज्यादातर महिलाओं ने सुमन के हौसले की सराहना कीऔर यह जानने की पहल की आखिरकार माजरा क्या था अपने घर में ही सुमन ने सभी महिलाओं को बताया कि यह आंटी जबरन रंडी कॉलगर्ल बनाना चाहती थी। नौकरी के नाम पर कभी कभार पैसे देने लगी थी तो जबरन ब्यूटीपार्लर में चेहरे को भी ठीक कर देती थी, यह कहते हुए कि तेरा उधार हिसाब लिख रहीं हूं और नौकरी मिलते ही सब वसूल लूंगी।
काफी देर तक उसके घर पर गली मोहल्ले की औरतों का मजमा लगा रहा। मैने भी तमाम महिलाओं से यह निवेदन करके ही बाहर निकला कि आप सबको इसका साथ देना हैं, क्योंकि यह आंटी तो हमलोगों के घर की ही किसी लड़की पर घात लगाएगी। मेरी बात पर सबों ने जोरदार समर्थन किया। मैने तीनों को आज घर से बाहर किसी भी सूरत में नहीं निकलने की चेतावनी दी। पता नहीं गली के बाहर या कहीं उसके लोग हो। मेरी बात पर सहमति प्रकट की तो मैं घर से बाहर निकल गया। खराब मूड को ठीक करने के लिए दोपहर के बाद मैं अपने एक पत्रकार मित्र राकेश थपलियाल के घर चल गया और दो एक घंटे तक बैठकर फिर वापस आकर सो गया। राकेश को सारी बातें बताकर मैने कल सुबह कमरे पर आने को कहा.  
बाहर से खाना खाकर जब मैं रात करीब 10 बजे अपने कमरे पर लौटा। कुछ पढ़ने के लिए किताब या किसी रिपोर्ट को खोज ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवज खोलते ही देखा कि तीनों बहनें खड़ी है। मैं कुछ बोलता उससे पहले ही सुमन ही बोल पड़ी आप मेरे घर पर आओ भैय्या आपको कुछ बतान है। मैं चकित नहीं हुआ। मुझे पता था कि वह अपना राज खोलेगी, मगर मेरे से यह बोलेगी इसका तो मुझे भान तक नहीं था। मैने उनलोगों को घर पर जाने को कहा कि मैं अभी आया।  उसके घर में जाते ही मैने कहा कि खाना खा चुका हूं लिहाजा चाय नहीं बनाना प्लीज।  घर में उसके पापा समेत तीनों बहनें खुलकर समर्थन करने के लिए हाथ जोड दी।  यह देखकर मैं बड़ी शर्मिंदगी सा महसूसने लगा और कहा कि यह हाथ जोडने वाली बात ही नहीं है। तुमलोग सामान्य रहो, मगर अभी थोडा संभलकर सावधान रहो क्योंकि आंटी अपने साथ कुछ आदमी को लेकर कल आ सकती है। उसके पाप मेरे पास आकर विनय स्वर में बोले कि कल आप घर पर ही रहें ताकि हमलोग का मनोबल बना रहे। मैने उनके हाथ को पकड़ लिया और कल घर पर ही रहने का भरोसा दिया। इस पर सुमन बोल पड़ी भैय्या तुम तो खुद एक किरायेदार हो और पता नहीं आगे कहां चले जाओगे, मगर जिस हक के साथ आज तुम मेरे साथ खड़े हो गए उसको मैं सलाम करती हूं। कोई अपना भी इस तरह बिना जाने सामने खड़ा नहीं होता। मैं इस परिवार की कृतज्ञता व्यक्त करने पर ही बडा असहज सा महसूसने लगा। इसके बाद सुमन बोल पड़ी आप पर मुझे भरोसा है भैय्या इस कारण आज की घटना क्यों हुई है यह आपको बतान चाहती हूं। मैं बड़ा हैरान परेशान कि क्या बोलूं। मैने कहा कि कहानी बताने की कोई जरूरत नहीं है सुमन मैं तो तुमको जानता हूं और मुझे पूरा भरोसा है कि इसमें तेरी गलती हो ही नहीं सकती। इसके बावजूद वो अपनी कहानी बताने के लिए अडी रही।
मैं उसके साथ कमरे में था। उसने बताया कि यह आंटी किस तरह इस पर डोरे डाल रही थी। नौकरी दिलाने का भरोसा दे रही थी और करीब एक माह पहले उसने 1500 रूपये भी दी थी। अचानक एक दिन वो बोली तेरी नौकरी वेलकम करने की रहेगी, जो लोग बाहर से गेस्ट आएंगे, तो उनके साथ रहने की नौकरी। माह में ज्यादा से ज्यादा चार पांच बार गेस्ट का वेलकम करने की नौकरी। उसने बताया कि करीब 20 दिन पहले यह आंटी मुझे लेकर एक कोठी में गयी और वो दूसरे  कमरे में बैठी रही। मुझे कमरे के अंदर भेजा। जहां पर थोडी देर तक तो सारे शरीफ बने रहे मगर ड्रीक में कुछ मिलाकर मेरे साथ खेलने लगे और इसे आप मेरा रेप कहो या......जो भी नाम दो मेरे साथ हुआ। यह कहते हुए वह अपना चेहरा छिपाकर रोने लगी। फिर शांत होते हुए बोली कि जब मैं कमरे से बाहर निकली तो यही आंटी बाहर थी और मैं इनसे लिपट कर रोने लगी। तब मेरे पर्स में एक हजार रूपये डालती हुई बोलने लगी होता है होता है दो एक बार में झिझक खत्म हो जाएगी। और मेरे को एक ऑटो में लेकर मुझे घर तक छोड़ दी। मैं कई दिनों तक इसी उहापोह में फंसी रही कि आगे क्या करना है। मैं बाद में इसी निष्कर्ष पर आकर टिक गयी कि इस दलाल आंटी को बेनकाब करना है। इसके बाद वह तुरंत बोली कि रेप की घटना को छिपाकर मैने केवल आंटी पर रंडी बनाने के लिए फंसाने का आरोप लगाया है। और जब आप मेरे साथ खड़े हो तो आपको यह बताना जरूरी था। मैं कमरे में खड़ा होते हुए उसके हाथों को पकड़ लिया। मेरे मन में तेरे लिए इज्जत और बढ़ गयी है सुमन । आगे हमलोग इस घटना को छिपाकर केवल उसकी चालबाजियों को ही खोलना है। वह भैय्या कहती हुई मुझसे लिपट गयी। आप मेरे साथ खड़े हैं तो कोई मेरा बिगाड़ नहीं सकता भैय्या। मैने उसके कहा आंसू पोछ दे और हमलोग कमरे से बाहर निकल गए। तो उसकी दो बहने तथा पापाजी चाय के साथ मेरा इंतजर कर रहे थे। 

इस घटना के अगले दिन बड़ा धमाल हुआ। अपने कई गुर्गो के साथ आंटी एक बार फिर गली में अवतरित हुई। और गली से ही नाम लेते हुए उनके गुर्गो चुनौती देने लगा। एक रणनीति के साथ हमलोग बाहर निकले तो मुझे देखते ही आंची ने अपने गुर्गो को आगाह किया। अपने साथ एक दर्जन लड़को और दर्जनों महिलाओं की ताकत थी। इस भीड़ को देखकर उसकी टोली सहम सी गयी मगर जुबानी बहादुरी बघारने लगी। चल बाहर निकल कर दिखा तो मैं यह कर दूंगा वह कर दूंगा। इस पर मैं आगे बढा और आंटी को बोला कि इन कुतो को लेकर चली जाओ। तू पुलिस बुलाएगी हमलोग ने तो तेरे खिलफ कल ही एफआईआर भी करा दिया है । और यह भी अगर कोई हमला या मारपीट होती है तो यह तुम्हारे कुत्तो काम होगा। तू कहां भागेगी उन हरामजादों का स्केच भी बनवा लिया है और जिस कोठी में गयी थी न उसका पता भी मिल गया है। साली तेरे साथ साथ तेरे तमाम ग्राहको को भी भीतर ना कराया तो देख लेना। अखबार में खबर छपेगी सो अलग। लड़कियों को रंडी बनाने का धंधा चलाती है। मैने जोर से आवाज दी सुमन जरा एफआईआर की कॉपी तो लाना इन लोगों को पहले भीतर ही करवाते है। लाना जरा जल्दी से लाना तो । मेरे साथ दर्जनों युवकों की एक स्वर में मारने पीटने के बेताब होने का अंदाज ने उनके हौसले को ही तोड़ दिया। गली के युवको ने सारे लफंगों को काफी दूर तक खदेड़ दिया। इसके बाद गली के कई बुजुर्गो ने इनके खिलाफ पुलिस में रपट दर्ज कराने पर सराहना करने लगे और इस तरह ब्यूटी पार्लर की आड़ में जिस्म की धंधा करने वाली एक दलाल को सब लोग ने मिलजुल कर भगा दिया। और मेरे झूठ पर तीनों बहने पेट पकड़ पकड़ कर हंसने लगी कि वाह भैय्या कुछ किए बिना ही रौब मर दिए। ये तीनो बहने अब कहां कैसी और किस तरह रह रही है। यह मैं नहीं जानता, मगर उसकी बहादुरी आज भी मन में जीवित है । कभी कभी तो खुद पर भी बेसाख्ता हंसने लगता हूं कि इतना हिम्मती और रौबदाब गांठने वाला नहीं होने के बाद भी यह कैसे कर गया।         




                 


नगदर सुदंरियों से अपनी प्रेम कहानी -3



सिनेमा हॉल में पैसे का प्यार


अनामी शरण बबल


यह घटना भी कोई सात आठ साल पहले की है। गरमी के दिन थे और मैं क्नॉट प्लेस के रीगल सिनेमा के सामने बने मेहराब की दीवार के सहारे खडा था। मैं किसी काम से किसी के इंतजार में था मगर अब यह सही सही याद नहीं है। तभी एकाएक मुझे लगा मानो एक महिला अपने हाथों से मुझे धक्का मारते हुए आगे निकल कर खडी हो गयी। टक्कर लगने के बाद जब मेरी तंद्रा टूटी और मैने घूर कर उस महिला को देखा तो सामने खडी महिला ने मुस्कुराते हुए अपनी एक आंख दबा ली। उसकी इस अदा पर मेरे अंदर जगा विरोध एकएक नरम सा हो उठा। मैने उसको घूरना क्या छोडा कि अगले ही पल वो मेरे सामने खड़ी थी। रीगल में सिनेमा देखना है क्या ? मैंने रूखे स्वर मे जवाब दिया नहीं। काहे भाई जिसके संग चाहो देख सकते हो। 16 से लेकर 36 तक की मिल जाएगी तेरे को। इस पर मैने तीर छोडा सिनेमा देखने का पैसा लेती हो या देती हो ? पईसा क्यों देंगे टिकट के अलावा 200 रूपए और इंटरवल में कुछ खान पान बस्स। तीन घंटे तक एक हीरोईन तेरे बगल में क्या महंगा सौदा है। मैं थोड़ा और खुलते हुए पूछा कि साथ में बैठकर जो सिनेमा देखेगी, उसका  क्या करेंगे हॉल में ? फौरन मेरे हाथों को पकड़ते हुए बोली पर उपर से ढाई घंटे का मजा तो देगी। अधीर होती हुई वह फिर मुझसे पूछी क्या देखना है तो बता तो मैं सबकुछ मैनेज कर दूं । मैने चारा डालते हुए फिर पूछा तू क्या मैनेजर है या गैंग लीडर पहले यह तो बता। इस पर वह बड़े गर्व भाव के साथ अपने बदन को टाईट कर हंसने लगी। इस पर मैं मुस्कुरा उठा. यानी तू मैनेजर है। मेरे यह कहने पर वह शांत भाव से खडी खडी मुस्कुराती रही। एकाएक फिर अधीर होती हुई पूछी कि क्या सिनेमा देखना है ? इस बार मैं उसके हाथों को पकड़कर कहा यार आज तो बहुत जरूरी काम है लिहाजा आज तो संभव ही नहीं है, पर एक बिजनेस डील कर तू मेरे साथ। जिस तरह लड़कियों की तलाश में लोग रहते होंगे तो जाहिर है कि बहुत सारी एय्याश औरतें भी तो गिगेलो मर्दो की तलाश में रहती होंगी। सिनेमा देखने के लिए मैं उनके साथ जा सकता हूं। जो राशि मिलेगी उसमें हम दोनों आधा आधा। मेरी बात सुनकर वो खिलखिला पडी। साले गैर लौंडिया को अपने बगल में बैठाकर सिनेमा देखने में तो तेरी सिनेमाहॉल के बाहर ही फटी जा रही और तू साला उन चूसनियों के साथ सिनेमा देखेगा। मैं भी इसके साथ मुहफट होते हुए बोल पडा तो इसमें क्या हर्ज है। एक बार तू मेरे साथ सिनेमाहॉल मे बैठकर ट्रेनिंग दे देना और क्या। धंधा के लिए तो कुछ करना ही पड़ेगा न। मेरे साथ वो बात भी कर रही थी और कभी कभी एकाएक अधीर सी भी हो जाती थी। वह आगे बताती जा रही थी कि यदि सिनेमा हॉल में साथ नहीं रहना है तो बता सारी व्यवस्थ है 500 से लेकर 2000 तक रूपया निकाल तो यहीं पर एक दर्जन लड़कियों की परेड़ करवा दूंगी। जिसे पसंद करेगा वो अपने साथ लेकर कमरे में चली जाएगी। मैने फिर पूछा और पुलिस का डर। इस पर वो हंसने लगी। सबका हिस्सा होता है। तू इसकी फ्रिक न कर । एकाएक फिर वो उतवली होते हुए मुझसे पूछी तू तो अपनी पसंद बता। इस पर मैने कहा कि अभी से नहीं पहले ही मिनट से बता रहा हूं न कि आज कोई जरूरी काम है। आज तो हो ही नहीं सकता। मेरी बातों को सुनकर वह थोडी मायूष सी होने लगी। इस  पर मैने उससे कहा कि मायूष होने वाले लोग बड़े बिजनेस नहीं करते। तेरे बहाने ही तो मैं भी इस धंधे में उतरने के लिए तुमसे सलाह मशविरा ले रहा हूं। मेरी बातों को सुनकर उसके चेहरे पर फिर मुस्कान लौट आयी। मैने फिर उससे पूछा कि तू केवल मैनेजर ही है य किसी के साथ भी आती जाती हो। करीब 34-35 साल की इस महिला मायूषी से बोल पड़ी कि अरे अब तो हमारे ढलान के दिन आ गए है। हमलोग पर किसी का ध्यान ही नहीं जाता। इस पर मैने उससे कहा कि तू पागल है। अपने उपर तुम खुद ध्यान दोगी नहीं और दूसरों पर इल्जाम लगाओगी । मैने कहा ठीक से आईना देखे तुम्हें कितने दिन हो गए है। अपने रंग रूप को जरा मजे से संवारो तो सही, तू तो आज भी एकदम करीना कपूर से कम नहीं है।  मेरी बातों को सुनकर वो एकदम शरमा गयी। आंखें नीचे करके मुझसे बोल पडी तू मुझे उल्लू बना रहे हो। तिस पर मैने फिर जोर देकर कहा कि हाथ कंगन को आंरसी क्या और पढ़े लिखों को फारसी क्या। तू आज ही घर जाकर केवल अपने आपको आइने में निहारना और अगली मुलाकात में बताना। मेरी बातों को सुनकर वो एकदम निहाल सी हो गयी। मेरे हाथ को पकड़ती हुई बोली तू सही कह रहा है न।.इस पर मैंने उसको एकदम खल्लास कहा तो वह भाव विभोर सी हो गयी। मेरे हाथ को पकड़ कर बोल पडी कि तू मेरे साथ बिना पैसे के भी चल सकता है यार। इतनी मीठी मीठी बात और तारीफ करने वाला तो अब तक कोई दूसरा लौंडा मिला ही नहीं था रे। मैने उसको सावधन करते हे कहा तू कैसी मैनेजर है कि खुद भावुक हुए जा रही है। एक उपदेश हमेशा अपने साथ गिरह बांधकर रखना कि घोडा घास से यारी नहीं करता। मीठी मीठी बाते करने वाले मेरे जैसे चार यार तेरे हो गए न तो तेरी कंगाली के दिन आ जाएंगे। कोई भी हो साला बिन पईसा कैसी दोस्ती । मेरी बात सुनकर वह फिर भाव विभोर सी होती हुई बोली कि साला बातें तो तू अईसी करता है न कि सीधे छाती में समा जाए। उसकी भावुकता को कम करने के लिए मैने पूछा कुल्फी खाएगी ? (रीगल के बाहर उस समय कुल्फी की कीमत दस रूपये थी) जेब से 50 रूपये का एक नोट अभी निकाला भी नहीं था कि वह बोल पड़ी खाउंगीं पर मैं अकेली नहीं हूं। यह सुनते ही मैं चौंक पडा। अकेली जान और मान कर ही मैं मस्ती से जानकारियां ले रहा था, मगर वो अकेली नहीं है यह सुनते ही मैं कांप सा गया। खुद को सामान्य और बेपरवाह दिखाते हुए मैने पूछा किधर है तेरी मंडली? एकाएक उसने अपने दोनों हाथ खड़े किए नहीं कि अगल बहल आंए दांए बांए सामने पीछे से एक साथ रंग बिरंगी सात देवियां मेरे इर्द-गिर्द आकर खडी हो गयी। अलबत्ता सबों ने मुस्कान के साथ मुझे सलाम भी किया। 50 का एक नोट तो मेरे हाथ में ही था कि फिर मैने एक सौ रूपये का एक नोट और निकाला। मैनेजर महिला को धराते हुए कहा कि लो तुमलोग कुल्फी खाओ। मेरे हाथ से नोट लेकर सब मिल जुलकर कुल्फी खाकर हंसती हुई फिर 10 मिनट के अंदर  इधर उधर लापता हो गयी और दो कुल्फी लेकर वो मेरे करीब आ गयी। हम दोनों एक साथ कुल्फी खाने लगे। मैने अचरज के साथ कहा अरे यार तेरा तो बड़ा तगड़ा नेटवर्क है। मैं तो तुम्हें अकेली मान रहा था पर तुम तो पूरी फौज के साथ मुझपर नजर ऱखी थी। वो भी इतना तेज कि नंगा करके भी साले को न छोड़ो।   इस पर वो हंसते हुए बोली कि नजर रखना पड़ता है कि इन लड़कियों के साथ कौन किस तरह पेश आ रहा है। गालियां देती हुई बोली इतने हरामखोर लोग होते है कि कमरे में या हॉल में ही लड़कियों पर बाज की तरह झपट जाते हैं और तीन घंटे में ही जन्म जन्म का हिसाब वसूलने लगते है।  मैने डरने का अभिनय करते हुए कहा तब तो अपनी लड़कियों के साथ धूप अगरबती भी दे दिया करो यार ताकि अंदर जाकर सिनेमा और पूजा दोने साथ साथ करके ही कोई बाहर निकले। मेरी बात सुनकर वो खिलखिला पड़ी। अरे अईसा कुछ नहीं होता मगर इंटरवल में अपनी लड़कियों से सांकेतिक तौर पर हाल चाल ले ली जाती है।                        

अब इतनी सूचना और इसके हर रूप की अनायास जानकरी मिल जाने के बाद मेर मन भी खिसकने का करने लग। अपने पत्रकार वाले दिमाग को अपने बैग में रखते हुए अब हंसी ठिटोली से ही बाहर निकलने का फैसला किया। कुल्फी खाने के बाद मैने पूछा यार अभी तक तुमने अपना नाम नहीं बतायी। तपाक से वो बोली तुमने पूछा ही नहीं। मैंने कहा चल अब तो बता मगर सही वाला नाम बताना नहीं तो सलमा सुल्ताना रेहाना शबना धन्नो जैसा चलताउं झूठा नाम नाही बोलना।  इस पर वो हंसने लगी साला आरी से काटता है और यह भी पूछता है कि दर्द हो रहा है या नहीं। मैंने भी हंसते हुए ही कहा कि साला आऱी से काटना ही हो न तो तेरे आलसपन को काट दूं जवानी में बुढिया मानने वाली तेरी ग्रंथी को काट दूं। अपने उपर ध्यन देगी न तो भरी जवानी में अरूणा इरानी बनने की नौबत नहीं आएगी। अभी तो तू वाकई करीना कपूर से कम नहीं है। मेरी बातों से मानो वह निहाल सी हो गयी। खुद को संभाल नहीं पा रही थी। हंसते हंसते वो दीवर का सहारा ले ली। एकाएक फिर वो मेरे पास आकर आंखों में आंखे डालकर पूछी क्या तू सही कह रहा है ?  मैने उसको संजीदगी से कहा भला झूठ बोलकर मेरा क्या जाएगा, पर तेरा तो बहुत कुछ संवर जाएगा। रीगल सिनेमा के दीवार के सहारे वो खड़ी रही और मैं उससे बाते कर रहा था। भावुक होकर वह बोल पडी तू मेरा दोस्त बनेगा ?

अरे मैं पिछले एक घंटे से तुमको दोस्त मानकर ही तो बात कर रहा हूं अगर तू यह मान रही होगी कि मैं किसी रंडी के दलाल से प्यार फरमा रहा हूं तो तू मूर्ख है। मेरी बत सुनते ही वह चहक उछी। नहीं रे तू अनमोल है तू केवल मेरा दोस्त बन। तेरी दोस्ती पाकर ही मैं निहाल हो जाउंगी, और तू जो कहेगा वही करूंगी पर तू केवल मेरा दोस्त होगा। मैने फिर उसके हाथ को पकड़कर बोला कि तू गलत गलत ट्रैक पर फिर जा रही है। मैं यह कैसे कह दूं कि केवल तेरा हूं मेरे सैकड़ो मित्र हैं और मैं भी तो सैकड़ो के दुख सुख क साझेदर हूं यार। हर दोस्ती की परिभाषा अलग होती है, और अभी तो तू भावना में बही जा रही है खुद को संभालो पागल। एकदम उतावली सी होकर बोली कि फिर तेरे से कब मुलाकात होगी ?  इस पर जोर देते हुए मैने कहा शायद कभी नहीं। तो मैं करीना कपूर लग रही हूं या बंदरिया यह कौन बताएगा रे। . वो एकदम बालसुलभ चिंता के साथ बोल पड़ी।  उसके इस रूप को देखकर मैं भी हंस पड़ा। अरे चिंता ना कर जब करीना लगने लगेगी न तो तेरे आस पास भौंरे मंडराने लगेंगे तो तू खुद समझ जाएगी कि क्या लग रही हो। इस पर वह फिर खिलखिला पड़ी और बोली कि इस करीना का हीरो तो तुमको ही बनना पड़ेगा। मैने उसको सख्त होकर कहा कि हीरो मैं नहीं तेरा कोई यार होगा।

 चल यार मैं भी तुमको याद रखूंगी और जब भी मुझसे मिलने का मन करे तो जहां पर आज खड़ा था न वहीं पर आकर खड़ा रहना तेरी रानी प्रकट हो जाएगी।  मैं इस पर हंस पड़ा और साफ कहा कि तू मेरी रानी नहीं है। हां रे बाबा बातें तो उपदेश की करता है पर इतनी अच्छी बातें करता है कि तेरे को मारने का नहीं तेरे उपर मर जाने का मन करता है।  मैं इस पर यह कहते हुए खादी ग्रामोधोग की तरफ बढ गया कि जब मरने का मन करे तो जरूर बता देना। और दूर से खडी होकर वो मेरे को अपनी आंखो से दूर होते देखती रही।  



नगर सुदंरियों से अपनी प्रेम कहानी -2

प्रेमनगर में प्रेम की तलाश (संशोधित)

अनामी शरण बबल


दिल्ली में गिर्यसन बॉब रोड कहां पर है? इसका जवाब शायद ही कोई दिल्लीवासी दे पाए, मगर जीबीरोड कहां पर है? इसका जबाव एक बच्चे से लेकर लगभग हर दिल्लीवासी के पास है। नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पास में ही है जीबीरोड। यह एक जिस्म की मंडी है। जहां पर सरकार और पुलिस के तमाम दावों के बावजूद पिछले कई सदियों से जिस्म का बाजार गरम होकर मजे से फल फूल रहा है। मगर क्या आपको पता है कि दिल्ली के एक गांव में भी जिस्म का धंधा होता है। वेश्याओं के इस गांव या बस्ती के बारे में क्या आपको कोई जानकरी है? बाहरी दिल्ली के गांव रेवला खानपुर के पास प्रेमनगर एक ऐसा ही गांव या कस्बा है, जहां पर रोजाना शाम( वैसे यह मेला हर समय गुलजार रहता है) ढलते ही यह बस्ती रंगीन हो जाती है। हालांकि पुलिस प्रशासन और कथित नेताओं द्वारा इसे उजाड़ने की यदा-कदा कोशिश भी होती रहती है,  इसके बावजूद बदनाम प्रेमनगर की रंगीनी में कोई फर्क नहीं पड़ा है। अलबत्ता, महंगाई और आधुनिकता की मार से प्रेमनगर में क्षणिक प्यार का धंधा उदास जरूर होता जा रहा है।
आज से करीब 20 साल पहले 1996 में अपने दोस्त और बाहरी दिल्ली के सबसे मजबूत संपर्क सूत्रों में एक थान सिंह यादव के साथ इस प्रेमगनर बस्ती के भीतर जाने का मौका मिला। ढांसा रोड की तरफ से एक चाय की दुकान के बगल से होकर हमलोग बस्ती के भीतर दाखिल हुए। चाय की दुकान से ही एक बंदा हमारे साथ हो लिया। कुछ ही देर में हम उसके घर पर थे। उसने स्वीकार किया कि धंधा के नाम पर बस्ती में दो फाड़ हो चुका है। एक वर्ग इस पुश्तैनी धंधे को बरकरार रखना चाहता है, तो दूसरा वर्ग अब इस धंधे से बाहर निकलना चाहता है। हमलोग किसके घर में बैठे थे, इसका नाम तो अब मुझे याद नहीं है, मगर (कहने और समझने के लिए उसका नाम राजू रख लेते हैं) राजू ने  बताया प्रेमनगर में पिछले 300 साल से भी ज्यादा समय से हमारे पूर्वज रह रहे है। अपनी बहूओं से धंधा कराने के साथ ही कुंवारी बेटियों से भी धंधा कराने में इन्हें कोई संकोच नहीं होता। आमतौर पर दिन में ज्यादातर मर्द खेती, मजदूरी या कोई भी काम से घर से बाहर निकल जाते है।, तब यहां की औरते( लड़कियां भी) ग्राहक के आने पर निपट लेती है। इस मामले में पूरा लोकतंत्र है, कि एक मर्द(ग्राहक) द्वारा पसंद की गई वेश्या के अलावा और सारी धंधेवाली वहां से बिना कोई चूं-चपड़ किए फौरन चली जाती है। ग्राहक को लेकर घर में घुसते ही घर के और लोग दूसरे कमरे में या बाहर निकल जाते है। यानी घर में उसके परिजनों की मौजूदगी में ही धंधा होने के बावजूद ग्राहक को किसी प्रकार का कोई भय नहीं रहता है।
देखने में बेहद खूबसूरत करीब 30 साल की ( तीन बच्चों की मां) पानी लेकर आती है। एकदम सामान्य शिष्टाचार और एक अतिथि की तरह सत्कार कर रही धन्नो( नाम तो याद नहीं,मगर अपनी आसानी के लिए उसे धन्नो नाम मान लेते है) और उसके पति के अनुरोध पर हमलोग करीब एक घंटे तक वहां रहकर जानकारी लेते रहे। इस दौरान हमें विवश होकर राजू और धन्नों के यहां चाय भी पीनी पड़ी। राजू ने बताया कि रेवला खानपुर में कभी प्रेमबाबू नामक कोई ग्राम प्रधान हुआ करते थे, जिन्होंने इन कंजरों पर दया करके रेवला खानपुर ग्रामसभा की जमीन पर इन्हें आबाद करा दिया। ग्रामसभा की तरफ से पट्टा दिए जाने की वजह से यह बस्ती पुरी तरह वैधानिक और मान्य है। अपना पक्का मकान बना लेने वाले राजू से इस धंधे के विरोध के बाबत पूछे जाने पर वह कोई जवाब नहीं दे पाया। हालांकि उसने माना कि घर का खर्च चलाने में धन्नों की आय का भी एक बड़ा हिस्सा होता है। घर से बाहर निकलते समय थान सिंह ने धन्नों के छोटे बच्चे को एक सौ रूपए थमाया। रूपए को वापस करने के लिए धन्नो और राजू अड़ गए। खासकर धन्नो बोली, नहीं साब मुफ्त में तो हम एक पैसै नहीं लेते। काफी देर तक ना नुकूर करने के बाद अंततः वे लोग किसी तरह नोट रखने को राजी हुए।यह थी मेरी प्रेमनगर की पहली यात्रा, जहां पर जिस्म के धंधे में शामिल होने के बाद भी कोई खुलकर कहने या विरोध जताने का साहस नहीं करता है।

खासकर प्रेमनगर शाम को पूरी तरह रंगीन होकर आबाद हो जाता है। जब ढांसा रोड पर इस बस्ती के आस पास दर्जनों ट्रकों का रेला लग जाता है। देर रात तक बस्ती में देह का व्यापार चलता रहता है। करीब दो साल के बाद प्रेमनगर में फिर दोबारा आने का मौका मिला। 1998 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में  मतदान के दिन बाहरी दिल्ली का चक्कर काटते हुए हमारी गाड़ी रेवला खानपुर गांव के आसपास थी। हमारे साथ राष्ट्रीय सहारा के दो और रिपोर्टर हरीश लखेड़ा (अभी अमर उजाला में) और कांचन आजाद ( अब दिल्ली सरकार मे पीआरओ ) साथ में थे। एकाएक चुनाव के प्रति वेश्याओं की रूचि को जानने के लिए मैने गाड़ी को प्रेमनगर की तरफ मुड़ने को कह। हमारे साथ आए दोनों पत्रकार मित्रों के संकोच के बावजूद धड़धड़ाते हुए मै वहां पर जा पहुंचा, जहां पर सात आठ वेश्याएं (महिलाएं) बैठी थी। मुझे देखते ही एक उम्रदराज महिला का चेहरा खिल उठा। मुझे संबोदित करती हुई एक ने कहा बहुत दिनों के बाद इधर कैसे आना हुआ? मैं भी वहां पर बैठकर सहज होने की कोशिश की। तभी महिला ने टोका ये सब बाबू (दूर कार से उतरकर हरीश और कांचन मेरा इंतजार कर रहे थे) भी क्या तुम्हारे साथ ही है ?  एक दूसरी महिला ने चुटकी ली। आज तो तुम बाबू फौज के साथ आए हो। बात बदलते हुए मैंने कहा आज चुनाव है ना, इन बाबूओं को मतदान कहां कहां पर कैसे होता है, यहीं दिखाने निकला था। अपनी बात को जारी रखते हुए मैने सवाल किया क्या तुमलोग वोट डालकर आ गई ? मैने पास में बैठी महिला को टोका जो बड़ी मस्ती में बैठी थी।, किसे वोट दी। मेरी बात सुनकर सारी महिलाएं (और लड़कियां भी) खिलखिला पड़ी। खिलखिलाते हुए किसी और ने टोका बड़ा चालू हो बाबू एक ही बार में सब जान लोगे या कुछ खर्चा-पानी भी करोगे। गलती का का नाटक करते हुए फटाक से अपनी जेब से एक सौ रूपए का एक नोट निकालकर मैनें आगे कर दिया। नोट थामने से पहले उसने कहा बस्सस। मैने फौरन कहा, ये तो तुमलोग के चाय के लिए है, बाकी बाद में। मैंने उठने की चेष्टा की भी नहीं कि देखा कि पास में ही बैठी एक बहुत सुंदर सी महिला ने अपने शिशु को किसी और को थमाकर सामने के कमरे के दरवाजे पर जाकर खड़ी हो गयी। उधर जाने की बजाय मैं वहीं पर खड़ा हो दोनों हाथ ऊपर करके अपने पूरे बदन को खोलने की कोशिश की। इस पर कई महिलाएं एक साथ सित्कार सी उठी, हाय यहां पर जान क्यों मार रहे हो बाबू,  बदन और खाट अंदर जाकर तोड़ो ना। फिर भी मैं वहीं पर खड़ा रहा और चुनाव की चर्चा करते हुए यह पूछा कि किसे वोट दी ? मेरे सवाल और मेरी मौजूदगी को बड़े अनमने तरीके से लेती हुई सबों ने जवाब देने की बजाय अपना मुंह बिदकाने लगी।  तभी मैने देखा कि 18-20 साल के दो लडके न जाने किधर से आए और इतनी सारी झुंड़ में बैठी महिलाओं की परवाह किए बगैर ही दनदनाते हुए कमरे में घुस गए। दरवाजे पर मेरे  इंतजार में खड़ी वेश्या भी कमरे के अंदर चली गई। दरवाजा अभी बंद नहीं हुआ था, लिहाजा मैं फौरन कमरे की तरफ भागा तो एक साथ कई महिलाओं ने आपति की और जरा सख्त लहजे में अंदर जाने से रोका। सबों की अनसुनी करते हुए दूसरे ही पल मैं कमरे में था। जहां पर लड़कों से लेनदेन को लेकर मोलतोल हो रहा था। एकाएक कमरे में मुझे देखकर उसका लहजा बदल गया। उसने बाहर जाकर किसी और के लिए बात करने पर जोर देने लगी। फौरन 100 रूपए का एक नोट दिखाते हुए मैनें जिद की, जब मेरी बात हो गई है, तब दूसरे से मैं क्यों बात करूं ? इस पर सख्त लहजे में उसने कहा मैं किसी की रखैल नहीं हूं जो तुम भाव और अधिकार दिखा रहे हो। फिलहाल तेरी बारी खत्म हो गयी है अब कमरे से बाहर जाओ। कमरे से बाहर निकलते ही देखा कि पास में ही बैठी तमाम वेश्याओं का चेहरा लाल था। बाबू धंधे का भी कोई लिहाज होता है। किसी एक ने मेरे उपर कटाक्ष किया क्या तुम्हें वोट डालना है? या किसे वोट डाली हो यह पूछते ही रहोगे ? इस पर सारी खिलखिला पड़ी। मैं भी ठिठाई से कहा यहां पर नहीं किसी को तीन चार घंटे के लिए भेजो गाड़ी में और पैसा बताओ ? इस पर सबों ने अपनी अंगूली को दांतों से दबाते हुए बोल पड़ी। हाय रे दईया पैसे वाला है। किसी ने पूरी सख्ती से कहा कोई और मेम को ले जाना। किसी के साथ गाड़ी में, प्रेमनगर की हम औरतें बाहर नहीं जाती। इस बीच कहीं से चाय बनकर आ गई। गरम सी हो रही ये वेश्यएं फौरन नरम सी हो गयी और चाय पीने का अनुरोध करने लगी।  मैनें नाराजगी दिखाते हुए फिर कभी आने का घिस्सा पीटा जवाब दोहरा दिया। इस बीच अब तक कमरा का खुला दरवाजा भीतर से बंद हो चुका था। लौटने के लिए मैं मुड़ा तो दो एक ने चीखकर कटाक्ष की। वर्मा(तत्कलीन मुख्यमंत्री साहब सिंह वर्मा) हो या सोलंकी( स्थानीय विधायक धर्मदेव सोलंकी) सब भीतर से खल्लास हैं ,बाबू सब खल्लास।
प्रेमनगर के बारे में मेरी दो तीन खबरों के छपने के बाद तब पॉयनीयर में (बाद में इंडियन एक्सप्रेस) में काम करने वाली ऐश्वर्या (अभी कहां पर है, इसका पता नही) ने मुझसे प्रेमनगर पर एक रिपोर्ट कराने का आग्रह किया।   यह बात लगभग 2000 की थी। हमलोग एक बार फिर प्रेमनगर की उन्ही गलियों की ओर निकल पड़े। साथ में एक लड़की को लेकर इन गलियों में घूमते देख कर ज्यादातर वेश्याओं को बड़ी हैरानी हो रही थी। कई तरह की भद्दी और अश्लील टिप्पणियों से वे लोग हमें नवाज भी रही थी। मैने कुछ उम्रदराज वेश्याओं को बताया कि ये एक एनजीओ से जुड़ी हैं और यहां पर वे आपलोग की सेहत और रहन सहन पर काम करने आई हैं। ये एक बड़ी अधिकारी है, और ये कई तरह से आपलोग को फायदा पहुंचाना चाहती है। मेरी बातों का इन पर कोई असर नहीं पड़ा। उल्टे टिप्पणी की कि ऐसी ऐसी बहुत सारी थूथनियों को मैं देख चूकी हूं। कईयों ने उपहास किया अपनी हेमामालिनी को लेकर जल्दी यहां से फूटो अपना और मेरा समय बर्बाद ना करो। मैने बल देकर कहा कि चिंता ना करो हमलोग पूरा पैसा देकर जाएंगे। इतना सुनते ही कई वेश्याएं आग बबूला सी हो गई। एक ने कहा बाबू यहां पर रोजाना मेला लगता है,  जहां पर तुम जैसे डेढ़ हजार बाबू आकर अपनी थैली दे जाते है। पैसे का रौब ना गांठों। यहां तो  हमारे मूतने से भी पैसे की बारिश होती है, अभी तुम बच्चे हो बच्चे। हमलोगों की आंखें नागीन सी होती है, एक बार देखने पर चेहरा कभी नहीं भूलती। तुम तो कई बार यहां के शो रूम देखने यहां आ चुके हो। दम है तो कमरे में चलकर बाते कर। मैनें फौरन क्षमा मांगते हुए किसी तरह इन वेश्याओं को शांत करने की गुजारिश में लग गया। एक ने कहा कि हमलोगों को तुम जितना उल्लू समझते हो, उतना हम होती नहीं है। बड़े बड़े फन्ने तीसमार खांन यहां मेमना बनकर जाते है। हम ईमानदारी से केवल अपना पैसा लेती है। एक वेश्या ने जोड़ा, हम रंड़ियों का अपना कानून होता है, मगर तुम एय्याश मर्दो का तो कोई ईमान ही नहीं होता। एकाएक वेश्याओं के इस बौछार से मैं लगभग निरूतर सा हो गया। महिला पत्रकार को लेकर फौरन खिसकना ही उचित लगा। एक उम्रदराज वेश्या से बिनती करते हुए पूछा कि क्या इसे पूरे गांव में घूमा दूं? उसके द्वारा सहमति मिलने पर हमलोग प्रेमनगर की गलियों को देखना शुरू किया। अब हमलोगों ने फैसला किया कि किसी से उलझने या सवाल जवाब करने की बजाय केवल माहौल को देखकर ही हालात का जायजा लेना ज्यादा ठीक रहेगा। हमलोग अभी एक गली में प्रवेश ही किए थे कि गली के अंतिम छोर पर दो लड़कियां और दो लड़कों के बीच पैसे को लेकर मोलतोल हो रही थी। 18-19 साल के लड़के 17-18 साल की ही मासूम सी लड़कियों को 20 रूपए देना चाह रहा था, जबकि लड़कियां 30 रूपए की मांग पर अड़ी थी। लगता है जब बात नहीं बनी होगी तो एक लड़की बौखला सी गई और बोलती है. साले जेब में पैसे रखोगे नहीं और अपना मुंह लेकर सीधे चले आओगे अपनी अम्मां के पास आम चूसने। चल भाग वरना एक झापड़ दूंगी तो साले तेरा केला कटकर यहीं पर रह जाएगा। शर्म से पानी पाना से हो गए दोनों लड़के हमलोगों के मौके पर आने से पहले ही फूट गए। मैं बीच में ही बोल पड़ा, क्या हुआ इतना गरम क्यों हो। इस पर लगभग पूरी बदतमीजी से एक बोली मंगलाचरण की बेला है, तेरा हंटर गरम है तो चल वरना तू भी फूट। मैने बड़े प्यार से कहा कि चिंता ना कर तू हमलोग से बात तो कर तेरे को पैसे मिल जाएंगे। मैनें अपनी जेब से 50 रूपए का एक नोट निकाल कर आगे कर दिया। नोट  को देखकर हुड़की देती हुई एक ने कहा सिर पर पटाखा बांधकर क्या हमें दिखाने आया है, जा मरा ना उसी से। मैने झिड़की देते हुए टोका इतनी गरम क्यों हो रही है, हम बात ही तो कर रहे है। इस पर गंदी सी गाली देती हुई एक ने कहा हम बात करने की नहीं नहाने की चीज है। कुंए में तैरने की हिम्मत है तो चल बात भी करेंगे और बर्दाश्त भी करेंगे। दूसरी ने अपने साथी को उलाहना दी, तू भी कहां फंस रही है साले के पास डंड़ा रहेगा तभी तो गिल्ली से खेलेगा। दोनों जोरदार ठहाका लगाती हुई जाने लगी। मैं भी बुरा सा मुंह बनाते हुए तल्ख टिप्पणी की, तुमलोग भी कम बदतमीज नहीं हो। यह सुनते ही वे दोनों फिर हमलोगों के पास लौट आई। वेश्या के घर में इज्जत की बात करने वाला तू पहला मर्द निकला रे। यहां पर आने वाला मर्द हमारी नहीं हमलोगों के हाथों अपनी इज्जत उतरवा कर जाता है। मैने बात को मोड़ते हुए कहा कि ये बहुत बड़ी अधिकारी है और तुमलोग की सेहत और हालात पर बातचीत करके सरकार से मदद दिलाना चाहती है। इस पर वे लोग एकाएक नाराज हो गई। बिफरते हुए एक ने कहा हमारी सेहत को क्या हुआ है। तू समझ रहा है कि हमें एड(एड़स) हो गया है। तुम्हें पता ही नहीं है बाबू हमें कोई क्या चूसेगा , चूस तो हमलोग लेती है मर्दो को। तपाक से मैनें जोड़ा अभी लगती तो एकदम बच्ची सी हो, मगर बड़ी खेली खाई सी बाते कर रही है। इस पर रूखे लहजे में एक ने कहा जाओ बाबू जाओ तेरे  बस की ये सब नहीं है तू केवल झुनझुना है। उनलोगों की बाते सुनकर जब मैं खिलखिला पड़ा, तो एक ने एक्शन के साथ कहा कि मैं चौड़ा कर दूंगी न तो तू पूरा की पूरा भीतर समा जाएगा। गंदी गंदी गालियों के साथ वे दोनों पलक झपकते गली पार करके हमलोगों की नजरों से ओझल हो गई। पूरा मूड उखड़ने के बाद भी भरी दोपहरी में हमलोग दो चार गलियों में और चक्कर काटते हुए प्रेमनगर से बाहर निकल गए।
प्रेमनगर पर मेरी कई रिपोर्ट की बड़ी चर्चा हुई। बाहरी दिल्ली के उस इलाके में जाने का तो संयोग लगता रहा, मगर प्रेमनगर को लेकर अब मेरी उत्कंठा नहीं थी। मगर काफी समय के बाद मेरे सबसे बड़े न्यूज सूत्रधार के कहने पर मैं एक बार फिर  थान सिंह यादव के साथ मैं प्रेमनगर में था। इस बर की पूरी प्लनिंग थान सिंह ने की थी। करीब नौ साल के बाद 2009 में यहां आने पर बहुत कुछ बदला बदला सा दिखा। ज्यादातर कच्चे मकान पक्के हो चुके थे। गलियों की रंगत भी बदल सी गयी थी। कई बार यहा आने के बाद भी यहां की जलेबी सी घुमावदार गलियां मेरे लिए पहेली सी ही थी। गांव के मुहाने पर ही एक अधेड़ आदमी से मुलाकात हो गई। हमलोंगों ने यहां आने का मकसद बताते हुए किसी ऐसी महिला या लोगों से बात कराने का आग्रह किया, जिससे प्रेमनगर की पीड़ा को ठीक से सामने रखा जा सके। पत्रकार का परिचय देते हुए उसे भरोसे में लिया। हमने यह भी बता दिया कि इससे पहले भी कई बार यहां आया हूं, मगर अपने परिचय को जाहिर नहीं किया था। अलबता पहले भी कई बार खबर छापने के बावजूद मैंने हमेशा प्रेमनगर की पीड़ा को सनसनीखेज बनाने की बजाय इस अभिशाप की नियति को एक कलंक की तरह ही प्रस्तुत किया था। 
यह हमारा संयोग ही था कि बुजुर्ग को मेरी बातों पर यकीन आ गया, और वह हमें अपने साथ लेकर घर आ गया। घर में दो अधेड़ औरतों के सिवा दो जवान विवाहिता थी। कई छोटे बच्चों वाले इस घर में उस समय कोई मर्द नहीं था। घर में सामान्य तौर तरीके से पानी के साथ हमारी अगवानी की गई। दूसरे कमरे में जाकर मर्द ने पता नहीं क्या कहा होगा। थोड़ी देर में चेहरे पर मुस्कान लपेटे चारों महिलाएं हमारे सामने आकर बैठ गई। इस बीच थान सिंह ने अपना कमाल दिखाना शुरू कर दिया था। अपने साथ लाए बिस्कुट, च़ाकलेट और टाफी को आस पास में  खड़ें बच्चों के बीच बॉट दिया। बच्चों के हाथों में ढेरो चीज देखकर एक ने जाकर गैस खोलते हुए चाय बनाने की घोषणा की। इस पर थान सिंह ने अपनी थैली से दो लिटर दूध की थैली निकालते हुए इसे ले जाने क आग्रह किया। इस पर शरमाती हुई चारों औरतों ने एक साथ कहा कि घर में तो दूध है। बाजी को अपने हाथ में आते देखकर फिर थान सिंह ने एक महिला को अपने पास बुलाया और थैली से दो किलो चीनी के साथ चाय की 250 ग्राम का एक पैकेट और क्रीम बिस्कुट के कुछ पैकेट निकाल कर उसे थमाय। पास में खड़ी महिला इन सामानों को लेने से परहेज करती हुई शरमाती रही। सारी महिलाओं को यह सब एक अचंभा सा लग रहा था। एक ने शिकायती लहजे में कहा अजी सबकुछ तो आपलोगों ने लाया है तो फिर हमारी चाय क्या हुई। मैने कहा अरे घर तुम्हारा, किचेन से लेकर पानी, बर्तन, कप प्लेट से लेकर चाय बनाने और देने वाली तक तुम लोग हो तो चाय तो तुमलोग की ही हुई। अधेड़ महिला ने कहा बाबू तुमने तो हमलोगों को घर सा मान देकर तो एक तरीके से खरीद ही लिया। दूसरी अधेड़ महिला ने कहा बाबू उम्र पक गई. हमने सैकड़ों लोगों को देखा, मगर तुमलोग जैसा मान देने वाला कोई दूसरा नहीं देखा। यहां तो जल्दी से आकर फौरन भागने वाले मर्दो को ही देखते आ रहे है।
इस बीच हमने गौर किया कि बातचीत के दौरान ही घर में लाने वाले बुजुर्ग पता नहीं कब बगैर बताए ही घर से बाहर निकल गए। वजह पूछने पर एक अधेड़ ने बताया कि बातचीत में हमलोग को कोई दिक्कत ना हो इसी वजह से वे बाहर चले गए। हमने बुरा मानने का अभिनय करते हुए कहा कि यह तो गलत है मैंने तो उन्हें सबकुछ पहले ही बता दिया था। खैर इस बीच चाय भी आ गई।
चारों ने लगभग अपने हथियार डालते हुए कहा अब जो पूछना है बाबू बात कर सकते हो। बातचीत का रूख बताते ही एक ने कहा बाबू तुम तो चले जाओगे, मगर हमें परिणाम भुगतना पड़ेगा। एक बार फिर इमोशनल ब्लैकमेलिंग करते हुए मैने साफ कहा कि यदि तुम्हें हमलोगों पर विश्वास नहीं है तो मैं भी बात करना नहीं चाहूंगा।  यह कहकर मैंने अपना बोरिया बिस्तर समेटना चालू कर दिया। जवान सी वेश्या तपाक से मेरे बगल में आकर बैठती हुई बोली अरे तुम तो नाराज ही हो गए। हमने तो केवल अपने मन का डर जाहिर की थी।  शिकायती लहजे में मैंने भी तीर मारा कि जब मन में डर ही रह जाए तो फिर बात करने का क्या मतलब? इस पर दूसरी ने कहा बाबू हमलोगों को कोई खरीद नहीं सकता, मगर तुमने तो अपनी मीठी मीठी बातों से हमलोगों को खरीद ही लिया है। अब मन की सारी बाते बताऊंगी। फिर करीब एक घंटे तक अपने मन और अपनी जाति की नियति और सामाजिक पीड़ा को जाहिर करती रही।
बुजुर्ग सी महिला ने बताया कि हमारी जाति के मर्दो की कोई अहमियत नहीं होती। पहले तो केवल बेटियों से ही शादी से पहले तक धंधा कराने की परम्परा थी, मगर पिछले 50-60 साल से अब बहूओं से भी धंधा कराया जाने लगा। हमारे यहां औरतों के जीवन में माहवारी के साथ ही वेश्यावृति का धंधा चालू होता है, जो करीब 45 साल की उम्र तक यानी माहवारी खत्म(रजोनिवृति) तक चलता रहता है। इनका कहना है कि माहवारी चालू होते ही कन्या का धूमधाम से नथ उतारी जाती है। गुस्सा जाहिर करती हुई एक ने कहा कि नथ तो एक रस्म होता है, मगर अब तो पुलिस वाले ही हमारे यहां की कौमा्र्य्य को भंग करना अपनी शान मानते है। नाना प्रकार की दिक्कतों को रखते हुए सबों ने कहा कि शाम ढलते ही जो लोग यहां आने के लिए बेताब रहते हैं, वही लोग दिन में हमें उजाड़ने या घर से बाहर निकालने के लिए लोगों कों आंदोलित करते है। एक ने कहा कि सब कुछ गंवाकर भी इस लायक हमलोग नहीं होती कि बुढ़ापा चैन से कट सके। हमारे यहां के मर्द समाज में जलील होते रहते हैं। बच्चों को इस कदर अपमानित होना पड़ता है कि वे दूसरे बच्चों के कटाक्ष से बचने के लिए स्कूल तक नहीं जाते।  और इ तरह पढ़ाई में भी पीछे ही रह जाते है। नौकरी के नाम पर निठ्ठला घूमते रहना ही हमारे यहां के मर्दो की दिनचर्या और शान है। अपनी घरवाली की कमाई पर ही ये आश्रित होते है।
 एक ने कहा कि जमाना बदल गया है। इस धंधे ने रंगरूप बदल लिया है,मगर हमलोग अभी पुराने ढर्रे पर ही चल रहे है। बस्ती में रहकर ही धंधा होने के चलते बहुत तरह की रूकावटों के साथ साथ समाज की भी परवाह करनी पड़ती है। एक ने बताया कि हम वेश्या होकर भी घर में रहकर अपने घर में रहते है। हम कोठा पर बैठने वाली से अलग है। बगैर बैलून (कंडोम) के हम किसी मर्द को पास तक नहीं फटकने देती। यही कारण है कि बस्ती की तमाम वेश्याएं सभी तरह से साफ और भली है।
यानी डेढ सौ से अधिक जवान वेश्याओ के अलावा, करीब एक सौ वेश्याओं की उम्र 40 पार कर गई है। एक अधेड़ वेश्या ने कहा कि लोगों की पसंद 16 से 25 के बीच वाली वेश्याओं की होती है। यह देखना हमारे लिए सबसे शर्मनाक लगता है कि एक 50 साल का मर्द जो 10-15 साल पहले कभी हमारे साथ आता था , वही मर्द उम्रदराज होने के बाद भी आंखों के सामने बेटी या बहू के साथ हमबिस्तर होता है और हमलोग उसे बेबसी के साथ देखती है। एक ने कहा कि उम्र बढ़ने के साथ ही वेश्या अपने ही घर में धोबी के घर की कुतिया सी हो जाती है। इस पर जवान वेश्याओं ने ठहाका लगाया, तो मंद मंद मुस्कुराती हुई अधेड़ वेश्याओं ने कहा कि हंमलोग भी कभी रानी थी, जैसे की तुमलोग अभी है। इस पर सबों ने फिर ठहाका लगाया। हमलोग भी ठहाका लगाकर उनका साथ दिया। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद फिर मैनें कहा कुछ और बोलो? किसी ने बेबसी झलकाती हुई बोली और क्या बोलू साहब ? बोलने का इतना कभी मौका कोई कहां देता है ? यहां तो खोलने का दौर चलता है। दूसरी जवान वेश्या ने कहा खोलने यानी बंद कमरे में कपड़ा खोलने का ? एक ने चुटकी लेते हुए कहा कि चलना है तो बोलो बाबू। इस पर एक अधेड़ ने समर्थन करती हुई बोली कोई बात नहीं साब मेहमान बनकर आए थे चाहों तो माल टेस्ट कर सकते हो। एक जवान ने तुरंत जोड़ा साब इसके लिए कोई पैसा भी नहीं लूंगी? हम दोनों एकाएक खड़े हो गए। थान सिंह ने जेब से दो सौ रूपए निकाल कर बच्चों को देते हुए कहा कि अब तुमलोग ही नही चाहती हो कि हमलोग बात करें। इस पर शर्मिंदा होती हुई अधेड़ों ने कहा कि माफ करना बाबू हमारी मंशा तुमलोगों को आहत करने की नहीं थी। हमलोग प्रेमनगर से बाहर हो गए, मगर इस बार इन वेश्याओं की पीड़ा काफी समय तक मन को विह्वल करता रहा। इस बस्ती की खबरें यदा-कदा पास तक आती रहती है। ग्लोवल मंदी मंदी से भले ही भारत समेत पूरा संसार उबर गया हो, मगर अपना सबकुछ गंवाकर भी प्रेमनगर की वेश्याए अपने देह की मंदी से कभी ना उबर पाई है और लगता है कि शायद ही कभी अर्थिक तंगी से उबर  पाएगी ?

फिर से

यह बात कोई चार साल पहले 2013 की है।. भरी दोपहरी में मैं जंतर मंतर के टिकट घर के पास ही किसी का इंतजार कर रह था। पास में ही मदर डेयरी आईसक्रीम पार्लर का ठेला भी खडा था। मैं समय काटने के लिए दो आईसक्रीम का स्वाद ले चुका था , मगर इंतजार खत्म नहीं हो रही थी। पास में ही एक मारूति के आस पास खडी कई महिलाएं और बच्चे मुझे निहार रहे थे। उनकी उत्कंठा को मैं पिछले आधे घंटे से देख रहा था, पर उनकी लालसा पर मैं कोई जवाब दूं यह मुझे न सूझ रहा था और न ही अच्छा ही लगता। पर जंतर मंतर के पास ही बैठा मैं भी इन लोगों पर नजर टिकए हुआ था। तभी देखा कि गाडी से उतरकर सभी सात आठ महिलाएं बच्चे मेरी तरफ आने लगे। मेरी काटो तो खून नही। कौन सी आफत या शामत है इसकी आशंका से निपटने के लिए मैं भी मन ही मन तैयार हो रहा था। मेरे चारो तरफ खडे इस जमावड़े मे से ही किसी ने मुझसे पूछा आप पतरकर बाबू हो न ? यह सुनकर मेरी जान में जान आई। अपना सिर उपर किया. मगर मैं किसी को पहचान नहीं सका। अलबता चेहरा कुछ जाना जान सा तो लग रहा था। इन लोगों के खड़े देखकर मैं भी खड़ा हो गया। तबतक दो जवान सी औरते एक साथ बोली आपने हमलोगों को नहीं पहचाना न मगर देखिए हम सारे लोग तो आपको दूर से ही देखकर पहचान गए थे कि आप पतरकर बाबू हो। प्रेमनगर की इन वेश्याओं को तो मैं भी पहचान गया मगर क्नॉटप्लेस में एकदम सहज सामान्य रंग रूप में देखकर तो इन्हें कोई भी नहीं कह सकता कि ये प्रेमनगर की खानदानी वेश्याएं है। मैंने पहचानने की खुशी प्रकट की और प्रेमनगर से बाहर देखकर ही इनकी सही परिचय बताने में झिझका। आईस पार्लर वाले को मैने सात आईसक्रीम देने को कहा। इस पर वे लोग जिद करने लगी कि नहीं आज आप हमलोग की तरफ से खाइए। मैने उनलोगों को मनाया कि तुमलोग का भी खाएंगे मगर गर्मी बहुत ज्यादा है न तो दो भी चल जाएगा। एक जवान सी ने कहा कि हमलोग ने कार खरीदी है। पूरे उत्सह से बोली आकर आप देखिए न। मैं उसके आग्रह को टाल नहीं सका और कार में बैठकर खूब तारीफ भी की। इनलोगों के साथ कोई मर्द दिख नहीं रहा था, मैने पूछा और गाडी कौन चलाकर लाया है ? इस पर सबसे कम उम्र वाली एक लड़की मेरे पास आकर बोली अंकल मैं चलाती हूं। एकदम 17-18 साल की इस लड़की के उत्साह और आत्मविश्वास की मैने सराहना की। साथ ही यह भी पूछा किस क्लास में पढ़ती है ? तो वह चहक कर बोली मैं 12 वी कर रही हूं ओपेन स्कूल से। गाड़ी में साथ चलने के लिए सबों ने पूरा जोर लगाया इस भरोसे पर कि आपको यहीं पर लाकर छोड़ेंगे भी। मैंने फिर कभी आने का वादा करके अपनी जान बचाई। फिर करीब आधे घंटे तक  साथ साथ खड़े होकर आईसक्रीम का स्वाद लिया गया। सभी ने मुझसे मेरे घर का पता पूछ और  कभी घर पर आने की इच्छा प्रकट की। इस पर मैं हंसते हुए कहा कि तुमलोग के आत्मविश्वास को देखकर बहुत अच्छा लगा। कभी घर पर तुमलोग को जरूर बुलाउंगा। इसके बाद कर में सवार होकर प्रेमनगर की ये सुदंरियां फर्राटे के साथ मेरी नजरों से ओझल हो गयी।      




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रेल वाली छक्की बहिन होली से ठिठोली

अनामी शरण बबल


आगरा से मेरा एक अनकहा सा नाता है कि जब जहां और जिस तरह भी मौका मिला नहीं कि खुद को आगरा मे ही पाता हूं। एक साल में 20-25 दफा तो आगरा जाना सामान्य तौर पर हो ही जाता है। पहले तो मैं आगरा बस से जाता था पर पिछले पांच सात साल से रेल ही मेरे सफर का साधन है। यदि ताज एक्सप्रेस से कभी जाना संभव नहीं हो पाता है तो अमूमन मैं जेनरल टिकट पर ही सफर करता हूं और रेल में गुजारे गए तीन घंटे का सफर मेरे लिए भारतीय जनता के मूड को परखने समझने का सबसे सरल और नायाब साधन होता है। तीन घंटे तक कहीं पर राजनीति तो कहीं खेल कहीं सिनेमा कहीं गंदगी कहीं मोदी की सफाई तो कही लालू मोदी मुलायम अखिलेश या आजम खान ही लोगों की जुबांन पर होते है। रेल यात्रा के दौरान ही मुझे एक छक्की से मुलाकात हुई थी, और संयोग इस तरह का रहा कि उसकी बातों, उसकी मासूमियत और उसकी निश्छलता का मुझ पर इस तरह का गहरा प्रभाव पडा कि अपनी जेब में हाथ डालकर सारे रूपए उसके आगे कर दिए। मगर कमाल कि वो केवल 10 या 20 रूपए से कभी ज्यादा हाथ नहीं लगाई। पहली मुलाकात के बाद वह दो बार और मिली। हर बार मुझे देखते ही वो तमाम सवारियों को छोड़कर मेरे पास दौडी आती है। रेल का यह स्नेहिल याराना मुझे हमेशा उसको तलाशने के लिए भी बाध्य करता था। पिछले काफी समय से मैं ट्रेन से आगरा नहीं जा सका था और इस बार 24 अप्रैल 2016 को आगरा ताज से गया। जाते समय मैं मथुरा स्टेशन पर उतर कर भी इधर उधर निगाह डाली और आगरा राजा की मंडी में भी देखा मगर वो अनाम छक्की नहीं दिखी। एक मई 2016 को आगरा से दिल्ली लौटते समय हम पांच सात लोग थे। किसी ने यमुना एक्सप्रेस वे वाली बस पकड़ने की सलाह दी तो किसी ने राजा मंडी रेलवे स्टेशन से ही ट्रेन पकड़ने पर जोर दिया, मगर मैं आगरा कैंट जाने के लिए अडा रहा। मेरे साथ दो लोग और थे। हमलोग पौने 11 बजे स्टेशन पर आकर टिकट ले लिए। मगर कांगो एक्सप्रेश हीराकुंड़ एक्सप्रेस  केरल एक्सप्रेस समता एक्सप्रेस आदि सारी ट्रेने दो से लेकर चार घंटे लेट चल रही थी। मेरे साथ यात्रा कर रहे दोनो लड़के मुझपर बिफर पड़े अंकल आपके कारण ही हमलोग फंस गए। इसी वाद विवाद के बीच मैं ज्योंहि स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक में घुसा ही था कि सामने ही तीन छक्की लड़कियों पर मेरी नजर पडी। दो तो बैठी थी, मगर एक लेटी हुई थी। इनको देखकर मेरा मन खिल गया। मैने अपने साथियों से कहा कि तुमलोग प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर चलकर बैठो मैं जरा इन से मिलकर आता हूं। ट्रेन के बारे में कोई सूचना हो तो फोन कर देना, नहीं तो मैं बस्स आ ही रहा हूं। मेरे साथियों को बड़ी हैरानी हुई। मैने अपने दोस्तों से कहा तू दूर जाकर देख तो सही ये लोग भी मेरे दोस्त ही हैं यार। टिकट और 20-25 रूपए हाथ में लेकर मैं उनकी तरफ बढा और उसी चौकोर सिमेंट के बैठने वाले चबूतरे पर जा बैठा। मुझे देखते ही एक ने टोका कहां जाना है राजा। मैने तुरंत पलटवार किया कौन राजा कौन रानी कौन राज है यार राजा खाजा के अलावा कुछ और नहीं बोल सकती क्या। खामोश बैठी दूसरी छक्की हाथ हिलाते हुए बोल पड़ी, कुछ खिलाएगा पिलाएगा भी कि बाते ही करेगा। मैने तुरंत 30 रूपए आगे कर दिए मैं जानता था कि तू खाने पीने की ही बात करेगी, इसी लिए पैसे निकाल कर ही इधर बैठने आया था। पैसे लेकर पहली खडी होती हुई बोली बस्स तीस रूपए। मैने कहा क्यों 15 में तीन चाय और बाकी के कुछ अपने लिए ले लेना। इस पर दूसरी ने टोका बडा महाजन है साला हिसाब लगाकर पईसा दे रहा है। उसकी बातें सुनकर मैं खिलखिला उठा, और खड़े होकर 20 रूपए और दिए साथ ही मैंने कहा कि मैं केवल चाय पीउंगा बाकी तुमलोग खाना। तभी एक ने जोडा कि और जो सोई हुई है उसके लिए कुछ नहीं। इस पर मैने कहा कि यार सफर में हूं और कितना दूं तू ही बता न। दोनों ने आंखो में आंखे डालकर सांकेतिक बात की। मैने बात को आगे बढाते हुए कहा कि मैं भी तो यार तुम्हारी ही एक सहेली की तलाश में हूं अगर मिल गयी तो उसको एक सौ रूपए देना है, और नहीं मिली तो तुमलोग को वो सौ रूपईया दे  दूंगा। सहेली की बात सुनते ही दोनों चहक उठी। बता न तेरी रानी कैसी है। तू यार है क्या उसका?  मैने तुरंत विरोध जताया तुमलोग भी अजीब हो राजा रानी सैंय्या के अलावा कोई और नाता नहीं होता क्या ? इस पर दोनों ने कहा कि हम कौन सी घरेलू है कि नातेदारी जाने । रोजाना हरामखोर बहिन...मादर,,,, मर्दो से ही तो पाला पड़ता है जो खाने के लिए पईसा उछालते है। इस तेवर पर मैं खामोश रहा। मैने उन दोनों को इस अनाम छक्की लड़की से हुई तीन मुलाकात का हाल बयान किया।  तुमलोग ही बताओं न क्या यह कोई नाता नहीं है। मैं तो बहुत दिनों से इधर ट्रेन से नहीं आया था मगर इस बार जब आया हूं तो उसको ही देख रहा हूं कि शायद हमारी रेल वाली बहिनजी मिल ही जाए कहीं। दोनों के चेहरे पर गंभीरता आ गयी। कौन है रे अनारकली जिसको इतना सुंदर भाई मिला है रे बाबा। एक ने बेताबी से कहा कि चलो नहीं मिलेगी तो हमलोग ही तेरी बहिन सी है। इस पर मैं जोर से खिलखिला पडा। मेरी हंसी से दोनों अवाक हो गयी। एक ने पूछा कोई नाम पहिचान रंग रूप उम्र बताओं न ताकि तेरा संदेशा तेरी अनारकली तक तो पहुंचाया जा सके। मैने कहा यही कोई 24- 25 की होगी। इस पर अब तक सो रही तीसरी छक्की कराहते हुए उठी और बेताबी से बोली नहीं भैय्या 28 की हूं।  अरे सो रही तीसरी छक्की तो वही थी जिसको खोजने के लिए मैं कैंट स्टेशन तक आया था। वह एकदम काली और कमजोर सी दिख रही थी। उसको देखते ही मैं बेताब सा हो उठा और झट से उसके पास पहुंचा और हाथों को थामकर पूछा क्या हुआ? इस पर अपना दाहिना पांव दिखाते हुए बोली कि ट्रेन से गिर गयी थी भईया। पांवो में घुटने के नीचे सूखते जख्म को देखकर लग रहा था कि घाव 15 से 20 दिन पहले का है। अब तक दोनो इसके संगी साथी एकदम खामोश खड़े थे तो 50 का एक नोट देते हुए मैने कहा अरे यार कुछ तो लाओं ताकि यह भी हमारे संग चाय पी ले। ज्योंहि एक छक्की जाने के लिए मुडी कि आवाज देकर मैने रोका और जेब से फिर सौ रूपए का एक नोट देते हुए कहा कि इसके लिए कुछ बिस्कुट भी ले लेना।
मैने उसको घाव दिखाने को कहा तो वह धीरे धीरे अपने सलवार को उपर कर कराहते हुए सूखते घाव को दिखाई। मेरे पास दर्द हर मलहम था मैने अपने बैग से उसे निकाला और उसके पैरो में लगा दिया। पांच मिनट के अंदर वो राहत महसूस की होगी, बहुत अच्छा लग रहा है भईया। मैने इस उपदेश के साथ कि दिन में दो तीन बार लगाओगी तो  तुम्हें राहत मिलेगी मलहम की डिबिया उसे थमा दिया। उसके चेहरे को गौर से देखा तो वो बोली क्या देख रहे हो भैय्या ?  हंसकर मैने कहा कि तू अब काफी मोटी तगडी और सुदंर सी दिख रही है। इस पर तुनकते हुए बोली मेरा मजाक उडा रहे हो। इस पर मैं भी पीटने का नाटक करते हुए कहा कि अगली दफा भी तू इसी तरह दिखी न तो तेरी पिटाई करूंगा। इस पर वो खिलखिला पडी। 
जब मैं इस सेवा और मनुहार  और प्यार दुलार से बाहर निकला तो  देखा कि रेलवे स्टेशन पर तो हमलोगों के इर्दगिर्द मजमा सा लगा हुआ है। मुझे थोडी लज्जा भी आई। मैने पास में ही खडी छक्की को कहा कि यहां तो पूरा मेला लग गया है। लोग अजीब तरह से हमलोगों को देख रहे थे। उसके पांव में मलहम लगाने के लिए मैं प्लेटफॉर्म के फर्श पर ही घुटना टेक बैठा था। तब तक चाय नास्ता आदि लेकर दूसरी छक्की बिफरते हुए आ गयी। अरे तेरी अंम्मा की सगाई हो रही है क्या जो यहां पर खडा है साले, चल भाग । चाय पानी नास्ता आ जाने के बाद वे लोग खाने में लग गए। मैने भी दो चार बिस्कुट निकालकर उसको दिए, तो चाय पीकर वो कुछ भली सी लगी। मैने उससे पूछा कि तेरा नाम क्या है? इस पर मुस्कान बिखेरती हुई बोली भईया हमलोग के कई नाम होते है। आगरा में कुछ झांसी में कुछ तो ग्वालियर में कोई और नाम। पर तू मेरे को होली कहना इस नाम को सब जानते है। मैने फोटो के लिए कहा तो चारा डालते हुए बोली कि तुमको मना करते ठीक नहीं लगता है भईया पर फोटू खींचने से तेरी गरीब बहिन को ही बडी जलालत झेलनी पड़ेगी, बाकी तुम जो ठीक समझो कर सकते हो। हां उसने मेरा मोबाइल  नंबर जरूर ली और पूछी भी  जब कभी भी तेरी जरूरत पड़ेगी तो क्या तू आएगा ? इस सवाल पर मैं भी परास्त सा ही हो गया। फिर भी साफ कहा कि यदि बदमाशी से कभी मेरा टेस्ट ली तो फिर कभी नहीं आउंगा, मगर दिल से और सहीं में जरूरत पर बुलाओगी तो कोशिश जरूर करूंगा। पर यह तो बता कि मैं अकेला आकर भला  तेरा क्या बचाव कर सकता हूं ? इस पर वो मेरे गाल या चेहरे को छूते हुए बोली नहीं भईया तुमसे शैतानी करूंगी तो तेरे ही सामने मगर इस तरह का मजाक कभी नहीं । फिर बोली कि तुंम आगरा तक ही आते हो? मेरे हां कहने पर मायूष होकर होली बोली अब मैं आगरा कम ही आती हूं भईया कई महीनो के बाद कल ही आगरा आई हूं। अब ज्यादातर मैं झांसी में रहती हूं। इस पर मैंने उसके दोनों हाथ पकड लिए सच होली इस बार मैं भी तुमको बहुत याद कर रहा था, लगता है कि हमलोग इसी कारण इस बार मिल भी गए। मेरी बात सुनते ही होली समेत तीनों जोर से खिलखिला पड़ी। उनलोगों को हंसते देखकर मैं थोडा झेंप सा गया। तब एक ने कहा यार तू सिनेमा में चला जा एकदम राजकपूर की तरह अपनी होली से प्यार जता रहा था। मैं भी हंसता मुस्कुराता फर्श से खडा होकर अपने पैंट और टी शर्ट ठीक करने में लग गया। मोबाईल निकाल कर समय देखा तो एक बज रहे थे। कब और किस तरह दो घंटे निकल गए इसका अंदाजा ही नहीं लगा। मैने चौकीदार छक्कियों से नाम पूछा तो एक ने अपना नाम बुलबुल और दूसरे ने चंदा बताया। मैने दोनों से पूछा कि क्या फिर कुछ चाय पानी? मेरी बात सुनते ही चंदा ने 30-40 रूपए निकालकर मुझे पकडाने लगी। तुम तो अपने निकल गए तुमसे क्या पैसे लेना। मैने चंदा को प्यार से कहा कि अपने का मतलब क्या होता है जानी और चाय लाने को है का। खाना पीना तो चलेगा ही। मैने एक सौ रूपए का एक नोट पकडाते हुए चाय के लिए कहा। साथ ही अपना बैग खोलकर उसमें रखे पेठे का एक डिब्बा निकालकर होली को थमाया। यह तुमलोग के लिए है। पेठा का डिब्बा देखकर होली बहुत खुश हुई मगर दूसरे ही पल वापस करती हुई बोली नहीं भैय्या घर के लिए ले जा रहे हो इसे नहीं रखूंगी। इस पर मैने पेठे का दूसरा डिब्बा दिखाते हुए मैने कहा कि यह देखो घर के लिए यह है । दूसरा डिब्बा तेरे लिए ही खरीदा था कि अगर तू मिल गयी तो कुछ मीठा तो होना ही चाहिए न। पेठा निकालने पर बुलबुल बोली तुम तो काफी धनवान लग रहे हो भाई। इस पर मैने  कहा नहीं बुलबुल तेरा भाई दिल से तो बहुत अमीर है, पर धन से कोई खास नहीं। ये तो होली के नाम पर इतने रूपए जमा थे सो वहीं खर्च कर रहा हूं, नहीं तो फिर तेरे ही जेब पर डाका डाला जाता। बुलबुल फिर बोली तुम करते क्या हो भाई ? मैं उसकी उत्कंठा पर हंस पडा कुछ नहीं यार बस्स इधर उधर लिखना और भाषण देता हूं कॉलेज में । वो सहज होकर बोली तुम नेता हो ?  मैंने पलटते ही कहा मैं तुम्हें नेता लग रहा हूं। मैं तो पैंट टीशर्ट पहनता हूं जबकि नेता तो खद्दर पहनते है। इस पर वो फिर वोली नहीं भाई जमाना बदल गया है कपड़ो से अब कोई नहीं पहचाना जाता। तब तक चंदा कुछ सामान के साथ आ चुकी थी। तीनों खाने पर टूट पडी थी  और मैं चाय ले रहा था। बुलबुल और चंदा ने कहा कि वैसे तो हमलोग का यहां स्टेशन पर उधारी भी चलता है पर आज हमलोग के पास एकदम पैसे नहीं थे यह तो तुम टकरा गए कि तेरा भी काम हो गया और होली के चलते हमलोग भी पार्टी कर रहे है। दोनों ने कहा हमलोग भाई दिल की इतनी बुरी नहीं होती है पर रोजाना सैकड़ो मर्दो से टकराना होता है, लिहाजा जरा गरम वाचाल और उदंड स्वभाव रखना पड़ता है ताकि लोग हमलोगों से डरे.और दूर ही रहे।
खान पान के बाद मैने होली से चलने की इजाजत मांगी। अपने बैग से दो नया तौलिया और चार पांच सफेद रूमाल निकालकर होली के सामने रख दिया कि यह सब रखो और आपस में बांट लेना। मेरे पास नया केवल दो ही तौलिया था। साथ ही प्रसाद का एक पैकेट भी निकालकर होली को थमाया। इन सामान को देखकर वे लोग एकदम चकित थी। एक साथ बोली अरे भाई इसको तुम ही रखो घर ले जा रहे हो । तब मैने लाचारी जाहिर की। यार मेरे पास कोई यादगार चीज ही नहीं है कि तुमलोग को दे सकूं। इस तरह ढाई घंटे बीत गए यह पता ही नहीं लगा। सबो ने थोडी देर और रूकने का मनुहार किया। रूकने की बजाय मैने होली के सिर पर हाथ फेरा और कहा कि ढाई बजे तक दिल्ली के लिए तीन ट्रेन है अगर यह छूट गयी तो घर पहुंचने में काफी रात हो जाएगी। जेब से सौ रूपए का नोट निकाल कर होली के हाथों में रख दिया, तो वह रोने लगी। बैठी ही बैठी वो मुझसे लिपट गई।  भईया मैने जरूर अच्छे कोई कर्म किए होगें तभी तो मेरे को भगवान ने छक्की बनाकर भी तुम जैसा भाई सौंप दिया है। अमूमन मैं जरा कठोर सा हूं आंखों में आंसू नहीं आते पर मेरा गला भी भर्रा उठा। मैने भी उससे कहा कि होली तुमको पाकर मैं भी बडा सौभाग्यशाली ही मान रहा हूं। रेलवे स्टेशन पर बडा अजीब सा ड्रामा हो रहा ता। मेरे आस पास 100 से ज्यादा लोग खड़े थे। और नयी नयी बहिन बनी चंदा और बुलबुल भी रो रही थी। मैने चुटकी ली जानती है जब मैने होली को पहली बार भाई कहा था तो वो बोली थी कि भईया सारे मेरे भाई ही बन जाओगे तो पैसा कौन देगा। और अब मैं तुमलोग से कह रहा हूं चंदा बुलबुल रानी कि तुम सब मेरी बहिन ही बन जाएगी तो तेरा भईया किस पर लाईन मारेगा जी। मेरी बात सुनकर तीनों ठहाका मारकर हंसने लगी। मैं भी जरा माहौल के  तनाव को खुशनुमा बनाते हुए फिऱ अपनी होली बहिन को दवा समय पर खाने और बाम लगाने और दो एक दिन में झांसी जाकर आराम करने की सलाह दी। तब तक मेरे दोनों  मित्र भी पास में आकर बताया कि दो बजकर 10 मिनट में मैसूर निजामुद्दीन सुपर फास्ट आ रही है सो बस चला जाए। मैं भी सामान उठाने लगा। तीनो से फिर मुलाकात होने की उम्मीद के साथ मैं अपने मित्रों के साथ चल पडा। तभी होली ने आवाज दी एक मिनट इधर आना। मैं उसके पास पहुंचा ही था कि वह बडे अदब से मेरा पैर छूकर प्रणाम की और बोली कि मैं चलने लायक नहीं हूं भैय्या, नहीं तो तेरे संग दिल्ली तक जाकर ही लौटती। तेरे को जाने देने का तो मन नहीं कर रहा है पर क्या करे। मैने भी होली के हाथ को पकड़कर कहा कि मेरा भी जाने का मन एकदम नहीं कर रहा है पर जाना भी जरूरी है होली। वो बस्स हां भईया बोली और मैं अपना सामान उठाकर तेजी से आगे बढ़ गया। मेरे साथ ही साथ वहां पर जमा भीड भी इधर उधर हो गयी। मगर पीछे मुड़कर उन तीनों को देखने की मेरी हिम्मत नहीं हुई और मैं भी स्टेशन के फूटओवर ब्रिज पर चढने लगा।       











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जब मजदूर बनकर भारत पाकिस्तान ,सीमा पर गया


अनामी शरण बबल




गरमी का मौसम मुझे सामान्य तौर पर सबसे प्यारा लगता है। अप्रैल माह के आखिरी सप्ताह में मैं आगरा में था। यमुना तट से महज 150 मीटर दूर टीन से बने एक झोपडी में ही हम कई लोग ठहरे थे। चारो तरफ रेत ही रेत थे। दिन में आस पास का पारा 47-48 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता तो रात में कंबल ओढ़कर भी बिस्तर में ठंड लगती थी। सुबह 11 बजे के बाद ही लगता मानो चारो तरफ आग लगी हो। हमलोग के खाना और नाश्ता पहुंचाने वाली गाडी तो रोजाना समय पर आती थी मगर चाय की व्यवस्था हमलोगो ने ही कर ली थी, और देर रात तक चाय कॉफी का मजा लिया जाता था। पीने वाला पानी भी इतना खौलता सा रहता था कि दिल्ली में आकर दर्जनों गिलास पानी पीकर भी प्यास बनी हुई सी ही लग रही थी। इस भीषण गरमी में मुझे हमेशा बीकानेर और भारत पाकिस्तान सीमा पर रेत में झुलसने की याद बार बार और बराबर आती रही।  
बात आज से 22 साल पहले 1994 की है। मुझे राष्ट्रीय सहारा अखबार से जुड़े चौथा ही महीना हुआ था कि मार्च माह के आखिरी सप्ताह  में एक दिन दोपहर में किसी काम से अपने संपादक श्री राजीव सक्सेना के कमरे में जा घुसा। मुझे देखते ही उन्होने तुरंत मुझे लपक लिया। अरे बबल मैं बस अभी तुमको बुलाने ही वाला था। कुर्सी से खड़े होकर कहा कि ये मेरे राजस्थान के दोस्त है हरिभाई । इनसे बात करो और मुझे बताओं कि क्या बीकानेर जाओगे। अपने आप को ज्यादा संजीदा और स्मार्ट दिखाने के लिए मैने तुरंत ही कहा कि हां मैं बीकानेर चला जाउंगा। स्टोरी के बाबत मैं इनसे बात कर एक रूपरेखा बनाकर दिखाता हूं। उन्होने कहा कि ये लोग भी केवल तुम्हारे साथ जाएंगे मैं अकाउंट को बोलकर तुम्हारे नाम दस हजार मंगवा लेता हूं। फिर संपादक जी ने हरे भाई से पूछा कि दस हजार में काम हो जाएगा न ?  इतनी रकम पर उन दोनो ने सहमति जता दी, तो शाम तक मेरे पास रूपए भी आ गए और किसी को फोन करके उन्होने अगले दिन रात में बीकानेर के लिए खुलने वाली ट्रेन में तीन सीट आरक्षित भी करवा दिया।
 मैं संपादक के कमरे में ही बैठकर उन दोनें से स्टोरी पर बात करने लगा। मामला भारत पाक सीमा पर तारबंदी से जुडा था कि शाम को फ्लड लाईट जलाने के लिए जीरो एरिया में भारतीय सैनिक जाकर बल्ब जलाता है और उसी दौरान पाक सीमा की तरफ से सामान की हेराफेरी अदला बदली और तस्करी के सामानों की सीमाएं बदल दी जाती है। उन्होने पास में ही एक साधू की समाधि का भी जिक्र किया जिसके भीतर से सुरंग के जरिए भारत और पाकिस्तान आने जाने का रास्ता है। हरे भाई ने बताया कि इस रास्ते रात में जमकर तस्करी होती है। मैंने सभी स्टोरी मे तो खूब दिलचस्पी ली, मगर इसको किया कैसे जाएगा इस पर वे कोई खास रास्ता नहीं सूझा पा रहे थे। तो खबर कैसे की जाए इसको लेकर दिक्कत बनी हुई थी कि बिना सबूत इतने संगीन इलाके की खबर दी किस तरह जाएगी। मगर तमाम समस्याओं को दूर करते हुए संपादक जी ने कहा कि तुम एकबार इनके साथ जहां जहां ले जाते हैं वहां का माहौल देखकर तो आओ बिना बहादुरी किए लौटना है भले ही कोई न्यूज खबर बने या न बने। अपने संपादक के इस प्रोत्साहन और भरोसे के बाद तो मेरा सीना और चौड़ा हो गया।  

उस समय,सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ ) के प्रमुख थे हमारे औरंगाबाद जिले के पूर्व सांसद सतेन्द्र बाबू उर्फ छोटे साहब के बेटे निखिल कुमार। अगले दिन दोपहर में मैं उनके दफ्त में जा पहुंचा। मैं ज्योंहि लिफ्ट से बाहर निकला तो देखा कि निखिल जी लिफ्ट में जाने के लिए दल बल के साथ खड़े थे। मैं तुरंत चिल्लाया निखिल भैय्या मैं अनामी औरंगाबाद बिहार से। औरंगाबाद सुनते ही लिफ्ट में घुसने जा रहे निखिल कुमार एकाएक रूक गए और हाथों से संकेत करके मुझे भी अपने साथ लिफ्ट में बुला लिया। मैं फौरन उनके साथ लिफ्ट में था।. कहो औरंगाबाद में कहां के हो और यहां किसलिए ? मैं हकलाते हुए अपना नाम और पेपर के नाम के साथ ही बताया कि सत्संगी लेन देव का रहने वाला हूं। मैने कहा कि हमे बीकानेर जाकर भारत पाक सीमा को देखना था क्यों? उनकी गुर्राहट पर ध्यान दिए बगैर कहा कि बस्स भैय्या यूं ही। मेरी बात सुनते ही वे हंसने लगे अरे भाई घूमने जाना है तो पार्क में जाओं सिनेमा देखो सीमा को देखकर क्या करोगे। चारो तरफ केवल रेत ही रेत तो है वहां और कुछ नहीं। तब तक मैं अपने अखबार का पत्र भी निकाल कर उनको थमा दिया जिसे देखे बगैर ही वापस करते हुए कहा कि अब तो मैं बाहर निकल गया हूं तुम सोमवार को आओ तो कुछ सोचता हूं। मैं आतुरता के साथ कहा कि सोमवार तक तो लौटना है। इस पर वे बौखला उठे कि बोर्डर देखना क्या मजाक है जो तुम अपनी मर्जी से चाह रहे हो। तबतक लिफ्ट नीचले तल पर आ गयी थी और वे सोमवार को फिर आने को कहकर लिफ्ट से बाहर हो गए। सबसे अंत में मैं भी लिफ्ट से बाहर निकल गया शाम को हमसब लोग अपने दफ्तर में ही रहे और फिर रात में  नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन से गाडी पकड़कर सुबह सुबह बीकानेर में थे।    
किस मोहल्ले में उनके रिश्तेदार रहते थे यह तो अब याद नहीं मगर वे एक साप्ताहिक अखबार निकालने के अलावा प्रेस से प्रिंटिंग का भी भी काम करते थे। चाय के साथ कमसे कम 10-12 पापड़ साथ में आया। मैं इतने पापड़ देखकर चौंक उठा। मेरे असमंजस को भांपकर हरे भाई ने कहा कि अनामी भाई पापड़ यहां का जीवन है जितना मिले खूब खाओ क्योंकि यहां के पापड़ का स्वाद फिर दोबारा आने पर ही मिलेगा। वाकई इतने लजीज पापड़ फिर दोबारा खाना नसीब नहीं हुआ। हमलोग जल्दी जल्दी तैयार होकर जिलाधिकारी (डीएम) के दफ्तर के लिए रवाना हुए। इस बार मेरे संग स्थानीय पेपर के मालिक संपादक भी साथ थे। कार्ड भेजने के बाद बुलावा आते ही हमलोग बीकानेर के डीएम दिलबागसिंह के कमरे के भीतर थे। ठीक उसी समय रेडियो या वायरलेस मैसेज वे रिसीव कर रहे थे मगर हमलोग के अंदर आकर बैठते ही इस असमंजस में थे कि मैसेज ले या न ले। 30-40 सेकेण्ड की दुविधा को देखते हुए मैं खडा होकर बोला कि सर आप मैसेज तो लीजिए या तो कोई घुसपैठिया मारा गया होगा या कोई पकड़ा गया होगा। इससे बड़ी तो और कोई खबर हो ही नहीं सकती है। मेरी बात सुनकर दिलबाग सिंह ने फिर आराम से मैसेज को रिसीव करके बताया कि एक पकडा और दो मारा गया है। तब हम सबलोग मिलकर जोरदार ठहाका लगाए। संयोग था कि डीएम भी हमलोगो से खुल गए और फौरन सत्कार के लिए कई चीजे मंगवाकर अगवानी की। मगर वे हर बार एक ही सवाल पर अटक जाते थे कि अनामी आपको यह कैसे पता लगा कि यही खबर हो सकती है। मैने सफाई मे कहा कि पिछले 15 दिन से बीकानेर और सीमा से जुड़ी खबरों को ही पढ़ पढ़ कर यह ज्ञानार्जन किया है कि यहां का पूरा चित्र क्या और कैसा है। बहुत देर तक बात होने के बाद भी वे सरकारी गाडी से सीमा दर्शन कराने पर सहमत नहीं हो सके। मेरे तमाम निवेदन के बाद या साथ में अधिकारियों को भी भेजने या गाडी के तेल का पूरा खर्चा उठाने के लिए भी कहने के बाद भी वे राजी नही हो सके। अंतत: मैने कहा कि आप जब नहीं भेजेंगे तो ठीक है मैं बीकानेर शहर तो घूम लूं। कई दिग्गज लेखक हैं उनसे तो मिल लूं। मगर मेरे लौटने का टिकट आपको कन्फर्म करवाना होगा। इसके लिए वे राजी हो गए। तो मैने भी कहा कि एकदम वादा रहा कि बीकानेर शहर छोडने से पहले आपकी चाय पीकर ही जाउंगा। मैं जब टिकट के लिए रूपये निकालने लगा तो उन्होने रोक दिया कि अभी नहीं पर आपका टिकट आपको देखकर कन्फर्म हो जाएगा तो रकम भी ले ली जाएगी। मैने कहा कि होलिका दहन ( जो अगले तीन दिन बाद था) की रात वाली ट्रेन का टिकट चाहिए। मैने कहा कि शादी के एक साल के बाद तो बीबी पहली बार दिल्ली आई है लिहाजा होली के दिन तो साथ ही रहना है। इस पर मुस्कुराते हुए डीएम ने कहा कि टिकट कन्फर्म हो जाएगा आप अपना काम निपटाओ।
मार्च माह के अंतिम सप्ताह में मुझे बीकानेर की गरमी असहनीय लग रही थी । मुझे लग रहा था मानो मैं गरम तवा पर चल रहा हूं। मैं गरमी से परेशान बेहाल था जबकि स्थानीय लोगों को गरमी का खास अहसास भी नहीं हो रहा था। डीएम के दफ्तर से बाहर निकले अभी तीन चार घंटे भी नहीं हुए थे कि लगने लगा कि हमलोगों की निगरानी की जा रही है। शाम होते होते साप्ताहिक पेपरके संपादक ने साफ कहा कि आपके बहाने मेरे घर और परिवार पर नजर रखी जा रही है। डीएम की इस वादा खिलाफी पर मैं चकित था। रात में उनके घर पर फोन करके खूब उलाहना दी। कमाल है यार अपनी पूरी जन्मकुण्डली देकर बताकर आया हूं तो मेरे पीछे इंटेलीजेंस लगा दी है और बिना बताए कहीं से भी घूम आता तो किसी को पता भी नहीं चलता। मैने कहा कि आपसे वादा किया है न कि आपके घर पर से होकर ही शहर छोडूंगा तो ई एलयूआई वालों को तो हटवाइए। बेचारा जिसके यहां रूका हूं उस पर तो रहम करे। बेशक मेरे को जेल में ठूंस दो पर प्लीज । मेरी शिकायत पर वे लगभग झेंप से गए और एक घंटे में निगरानी हटाने का वादा किया। साथ ही एकदम बेफ्रिक होकर शहर में रहने और घूमने को कहा।
बीकानेर के सबसे मशहूर लेखक यादवेन्द्र शर्मा चंद्र का नंबर मेरे पास था। मैने उनको फोन किया तो जिस प्यार आत्मीयता और स्नेह के साथ रात में किसी भी समय घर आने को कहा। उनका यह प्यार कि यदि बबल सेठ यहां से मिले बगैर लौट गया तो फिर अगली दफा मेरे घर पर ही ठहरना होगा। इतने बड़े लेखक की ऐसी विनम्रता देखकर मेरा मन रात में मिलने को आतुर हो गया। हमलोग बिना फोन किए पास में ही रहने वाले यादवेन्द्र जी के यहां पैदल ही निकल पड़े। अपने घर के बाहर ही वे टहल रहे थे। देखते ही बोले बबल सेठ आ गया और हंसने लगे। जान न पहिचान और बिना मुलाकात के राह चलते नाम लेकर पुकार लेने से मैं अचरज में था। रात में करीब दो घंटे तक हजारों बातें हुई और अंत में उन्होने कहा कि तुम एकदम मस्त हो बेटा। तब मैने अपनी समस्या बताई कि भारत पाक बोर्डर देखना है पर कोई जुगाड नहीं बैठ रहा है। मेरी बात सुन करवे वे हंस पड़े और हरेभाई को एक जगह पर जाकर कल सुबह बात करने की सलाह दी। साथ ही उन्होने मुझे दो तीन दिन तक दाढ़ी नहीं बनाने को कहा। उनसे बिदा लेते समय मैने पूछा कि आप सोते कब हो? तो वे मुस्कुराते हुए बोले कि कभी भी जब जरूरत महसूस हो । नींद को लेकर इनकी विचित्रता पर मैं अवाक सा था। 
अगले दिन सुबह सुबह हरेभाई कहीं गए और दोपहर तक लौटे। आते ही बोले कि बोर्डर पर रोजाना मजदूरो को लेकर एक गाडी जाती है। जिन्हें वहां पर साफ सफाई के साथ साथ सैनिकों के बने टेंटो का भी रख रखाव करनी पड़ती है। सुबह जाने वाले सभी मजदूरों को बीकानेर शहर लौटते लौटते रात हो जाती है। दो दिन तक तो बोर्डर पर जाने का जुगाड नहीं लग सका, मगर इस बीच बाल दाढी बढाकर और बालों को  कई जगह से कटवाकर बेढंगा बना डाला।  मैले कुचैले फटे कपडे को ही अपना मुख्य ड्रेश बनाकर इधर उधर घूमता रहा।  और अंत में दो सौ रूपईया की दिहाडी पर मैं मजदूर कमल बनकर भारत पाक सीमा के दर्शन के लिए निकल पडा। शहर के किन रास्तों से होकर हमारी गाडी रेत के सागर में घुस गयी यह तो पता ही नहीं चला मगर  रेतो के बीच भी गाडी 20 किलोमीटर चली होगी। शहर  सीमा क्षेत्र की दूरी लगभग 70 किलोमीटर की है जो दांए से बांए पूरे राजस्थान की सीमा खत्म होते ही पाक सीमा शुरू हो जाती है।
जिस दिन मैं भारत पाक सीमा पर था तो उस दिन मौज मस्ता वाला दिन था। होलिका दहन के काऱण सेना की तैनाती से लेकर इनकी सजगता तथा सावधानी पर भी पर्व का साया दिखता था। रेत के उपर ही होलिका दहन के लिए लकड़ी से लेकर टूटी हुई कुर्सी मेज और पुराने सामानों का जमावड़ा लगा था। मैं गंदे कपड़ों, बेतरतीब बालों और गरमी बेहाल सूखे हुए चेहरे को बारबार पोछता दूसरे मजदूरों के पीछे पीछे घूम रहा था। सीमा पर ही रहने वाले लेबर मैनेजर ने मुझे बुलाया। मैं उसके सामने जाकर खड़ा हो गया। अपना नाम कमल बिहारी बताया तो वह खुश हो गया। बिहार में कहां के रहने वाले हो तो मैने झूठ बोलने की बजाय सच और सही पता बताया सीतालाल गली देव औरंगाबाद बिहार 824202।  धाराप्रवाह पता बताने पर उसने कहा कि तुम लेबर तो लग नहीं रहे हो। मैं थोडा नाटक करते हुए कहा कि आपने सही पहचाना मैं तो लेबर हूं ही नही। एक आदमी के नाम लेकर पांच छह गंदी -गंदी गालियां निकाली और विलाप किया कि साला नौकरी दिलाने के लिए बुलाया था और खुदे लापता हो गया। अपने दुख को जरा और दयनीय बनाया कि कल बस स्टैणड पर रात में मेरा सामान ही किसी ने चुरा लिया। मेरे पास तो एक पईसा भी नहीं था। वहीं पर किसी ने एक दिन की दिहाडी करने की सलाह दी थी। उसने कहा था कि यहा पर रोजे 200 रूपैया मिलता है। दिल्ली तक रेल भाडा तो जेनरल क्लास में इससे कमे है। मैने फिर उससे पूछा कि क्या आप भी बिहारी है ? उसने पूरी सहानुभूति दिखाते हुए पानी पीने को कहा और बताया कि नालंदा का हूं। इस पर मैंने  और खुशी जाहिर की और कुर्सी पर बैठे भोला भाई के लटके पांव पर हाथ लगाते हुए धीरे धीरे दबाना चालू कर दिया। अपनापन दर्शाते हुए कहा कि अरे आप तो एकदमे घर के ही निकले भाई। और खुशामदी स्वर में कहा कि आप चौकी पर तो लेटो भाई मैं मसाज बहुत बढिया करता हूं । पूरे बदन का दर्द देखिएगा पल भर में निकाल देता हूं। चारा डालते हुए  मैने कहा कि घर में कोई कभी छठ देव मे करे ना तो केवल हमको बता दीजिएगा। देव में  मेरा बहुत बडा मकान है सारी व्यवस्था हो जाएगी। मैने पूछा कि भईया आपका नाम का हैकरीब 40 साल के इस लेबर मैनेजर ने अपना नाम भोला ( उनकी रक्षा सुरक्षा के लिए यह बदला हुआ नाम है) बताया। मेरे मे रुचि लेते हुए भोला भाई ने कहा कि तुम यहां नौकरी करोगे? रहने खाने पीने के अलावा छह हजार महीना दिलवा देंगे। तुम तो घरे के हो तुम रहोगे तो मैं भी  बेफ्रिक होकर घर जा सकता हूं। मैने और भी रूचि लेते हुए पूछा और बीबी को कहां रखूंगा। इस पर वह हंसने लगा। बीबी के बारे में तो सोचो भी नहीं।, नहीं तो बीबी तेरी होगी और ये साले सारे हरामखोर सैनिक मौज करेंगे। मैं कुछ ना समझने वाला भाव जताया तो वह खुल गया। साल में तीन बार 15-15 दिन के लिए घर जाने की छुट्टी मिलेगी। मैं मायूषी वाला भाव दिखाते हुए अपना चेहरा लटका लिया। तो भोला भाई मेरे पास आकर पूछा कब हुई है तेरी शादी। मैं थोडा शरमाने हुए कहा कि पिछले साल ही भईया पर अभी तक हमदूनो साथे कहां रहे है। ई होली में तो ऊ पहली बार आई है तो मैं साला यहां पर आकर फंसा हूं। भोला भाई ने दो टूक कहा कि बेटा बीबी का मोह तो छोडना होगा उसके लिए तो छुट्टी का ही इंतजार करना पड़ेगा। फिर वो मेरे करीब आकर बोले कि तू चिंता ना कर उसकी भी व्यवस्था करा देंगे। मेरे द्वारा एक टक देखने पर भाई मुझसे और प्यार जताने लगा कि यहां पर सिपाहियों के लिए महीने में लौंडिया लाई जाती है उससे तेरा भी काम चलेगा। बाकी तो जितनी नौकरानियां यहां पर जो काम करती है न किसी को सौ पचास ज्यादा दे देना या भाव मारने वाली के 100 -50 रूपे काट लेना तो सब तेरे को खुश रखेगी। डरते हुए मैने कहा कि कहीं सब मुझको ही न बदनाम कर दे। वे हंसने लगे अरे तेरे को निकाल देगा तो अपन की भी तो बदनामी होगी, कोई डरने की बात ही नहीं है। तब मैं भोला भाई के पैर दबाते हुए हंस पडा और कहा ओह भईया अब मैं सब समझ गया इसीलिए आपको भौजाई की याद नहीं आती है। मेरे यह कहने पर वो खुलकर हंसने लगा। मैं उसके पैरो को एकदम तरीके से मालिश करने और दबाने में लगा रहा। अरे तू यहीं आ जाओ तेरी नौकरी पक्की करा दूंगा। फिर दारू और घर के बहुत सारे सामान की कोई कमी नहीं रहेगी। उसकी बातें सुनकर मैं बहुत खुश होने का अभिनय किया और जल्द ही घर में बीबी को पहुंचाकर आने का पक्का वादा किया। मगर यह चिंता भी जताया कि वो तो भईया अभी अभी आई ही है घर ले जाएंगे तो वहीं ना नुकूर करेगी। भाई ने ज्ञानदान देते हुए कहा कि कह देना कि इसमें पैसा ज्यादा है। पहले जाकर देख तो लूं।  भाई ने कहा कि तेरे को रखने में एक ही फायदा है कि जब तू घर जाएगा तो मैं भी कुछ सामान भेज सकता हूं। इस तरह मेरी मदद ही करोगे और घर से संबंध भी बना रहेगा। भोला भाई मेरी सेवा और भोलेपन से एकदम खुश हो रहा था। भोला भईया ने मुझे खाना खिलाया और 300 रूपए भी दिए कि इसको रख लो बीकानेर में पैसा देने में ज्यादा देर लगेगी तो तुम फूट लेना ताकि ज्यादा लोगों को तेरा चेहरा याद न रहे। इस पर मैने खुशामद की कि भईया एकाद सौ रूपईया और दे दो न कुछ बीबी के लिए भी सामान खरीद लेंगे। इस पर वो एक बैग दिया। जिसमें कुछ मिठाई एक टॉर्च समेत सैनिको के प्रयोग में आने वाला साबुन तौलिया गंजी अंडरवीयर समेत दाढी बनाने का किट आदि सामान था। जब तू आएगा तो दोनों भाई मिलकर रहेंगे और तुमको पक्का उस्ताद बना देंगे। मैने जोश में आकर कहा कि हां भईया जब हम यहां पर सब संभाल ही लेंगे तो तुम तो भाभी को लाकर बीकानेर में भी तो रख सकते हो। मेरी बात सुनते ही भोला भाई एकदम उछल पड़ा। अपनी बांहों में भरकर मुझे ही चूमने लगा। अरे वाह आज ही तेरी भौजाई को यह बताता हूं तो वह तो एकदमे पगला जाएगी। मैं भी जरा जोश और नादानी दिखाते हुए कहा कि तब तो भईया जब कभी भौजाई नालंदा जाएंगी तो मैं भी तो अपनी बीबी को लाकर यहां रख ही सकता हूं ना ?  इस पर वह खुश होकर बोला कि हां रख तो सकते हो पर बीबियों को शहर में लाकर रखने की खबर को छिपाकर ऱखना होगा। मैं फटाक से भोला भाई के पैर छूते हुए कहा कि आप जो कहोगे वहीं होगा भाई फिर मैं कौन सा बीबी को हमेशा रखूंगा ज्यादा तो आप ही रखेंगे न। मेरी बातो पर एकदम भरोसा करते हुए मुझे एक नंबर देते हुए भोला भाई ने कहा कि जब तू आने लगेगा न तो हमको पहले बताना हम यहां पर सब ठीक करके रखेंगे। और तुम एकाध माह में आ ही जाओ। मैने आशंका जाहिर की कि भईया कोई डर तो नहीं है न यहां पर सैनिकों के साथ रहन होगा। सुने कि ये ससूर साले बडी निर्दयी होते हैं। इस पर हंसते हुए भोला ने कहा कि नहीं रे उनको दारू और मांस समय पर चाहिए । उनसे लगातार मिलते रहो तो ये होते भी दयालू है। इनकी किसी बात को कभी काटना मत। बस यह ध्यान रखना। मैने डरने का अभिनय किया तो भोला भाई हंस पडा।
भोला भाई के साथ गरम रेत में लू के थपेडे खाते हुए मैं बाहर निकला तो बताया कि ई जबसे फेंसिंग (तारबंदी) हुआ है न तब से लाईट जलाने के नाम पर दोनो तरफ के सैनिक साले दारू बदलने और सामान की हेराफेरी भी करते है। बात को न समझते हुए मैंने मूर्खो की तरह बात पर गौर ही नहीं किया। आप यहां कईसे पहुंचे भोला भाई? इस पर भाई ने कहा कि बनारस के एगो बाबू साहब के पास ठेका है मैं तो काम देखने आया था और पांच साल से यहीं पर हूं। मैने मजाकिया लहजे में कहा कि तब तो भईया घर जने पर दो चार दिन तो भौजाई बहुत लड़ती होंगी। इस पर हंसते हुए उन्होने कहा कि पहले नहीं रे जाने के दिन नजदीक आने पर रोज लडाई होती है। यही तो दिक्कत है रे कि नौकरी छोडने से ज्यादा सही बीबी को ही अलग रखना ठीक लगता है। यहां पर कमाई भी ठीक हो जाती है। तू पहले आ तो सही मैं तुमको अपने छोटा भाई की तरह ही रखूंगा। मैने फिर आशंका प्रकट कि भईया सुने हैं कि ये साले होमोसेक्सुअल (समलैंगी) भी होते है। तो इनसे तो बचकर भी रहना होगा। इस पर भोला भाई खिलखिला उठा। अरे ज्यादातरों का हिसाब फिट रहता है ईलाज के बहाने शहर में ये साले लौंडियाबाजी भी कर आते हैं। ये आपस में ही रगडने वाले एकदम बर्फीले इलाके में होते हैं। मैने कहा कि भईया मैं तो मांस मछली भी न खाता। यह सुनते ही भोला ने कहा कि खाने लगना और जाडा में तो बेटा दारू ही गरम रखेगा। ठहाका मारते हुए भोला भाई  ने कहा कि साला ई सब नहीं खाएगा और पीएगा तो हंटर गरम नहीं होगा, तब साली ये नौकरानियां भी तुम्हें जूते मारेंगी।
 पाक सैनिको को लालची कहते हुए भोला ने कहा कि उनको भारतीय सैनिकों इतना दारू मिलती नहीं है तो रोजामा भारत से ही दारू की भीख मांगते है। मैं चौंकने का नाटक करते हुए कहा कि साले दारू भी पीते है और हमला भी करते है। इस पर भोला फिर हंसने लगा। सामान्य मौसम और माहौल में तो दोनों तरफ पहले से पता होता है कि आज कुछ करना है। साले पहले से ही मार कर या पकड कर लाते हैं और सीमा के अंदर डालकर मार देते या पकडे हुए को  मीडिया पर दिखा देते है। मैने कहा कि भाई है वैसे बडी खतरनाक जगह जहां पर जान की कोई कीमत नहीं है। इस पर खुशामदी लहजे में भोला ने कहा कि यहां आकर सेट कर जाओ तो सब ठीक लगेगा। हम कौन से सिपाही है। हम तो इनके लिए सामान मुहैय्या कराने वाले है। वे घिग्घिया कर अपनी पसंद वाली चीज लाने के लिए खुशामद करते है। अंत में मैं राजी होने का एलान करते हुए कहा कि मेरे रहते तुम भईया एक माह रहोगे तभी काम करूंगा, और सब समझ भी लूंगा। इस पर भोला भाई खुश हो गया और दूसरे कमरे में जाकर फ्रीज से दो तीन मिठाई लाकर दिया। मैंने खाते हुए कहा कि भईया तुम नहीं मिलते और कोई दूसरा मुझे पकड़ लेता तो क्या करता?  इस पर जोर से हंसते हुए भाई ने कहा कि अगले 15 दिन से पहले जाने ही नहीं देता, और काम करवाने के बाद भी पईसा देता या न यह उसकी मर्जी पर होता। डरने वाली कोई बात नहीं है। सीमा के नाम पर मजदूर नहीं मिलते हैं। भोला भाई  एकदम  हमेशा मेरे ही साथ रहा और मैं भगवान को बारम्बार धन्यबाद और शुक्रिया दे रहा था कि हे मालिक यदि भोला भाई की जगह कोई और होता तो मेरा तो आज बैंड ही बज गया होता। लौटते समय बस में मेरे सहित 26 मजदूर थे। बस खुलने से पहले भोला भाई मेरे पास आया और खाने के लिए कुछ नमकीन देकर सौ रूपए का एक नोट भी मेरे पाकेट मे डाल दिया। इस पर मैं गदगद होते हुए उसके पैर छू लिए और वह भी भावुक होकर होली की शुभकमनाएं दी रास्ते भर मैं भोला भाई की मासूमियत और आत्मीय स्वभाव को याद करता रहा। और अपनी इस दु: साहस पर बच निकलने के लिए मन ही मन रास्ते भर भगवान के प्रति मत्था टेकता रहा। बीकानेर बस अड्डे के पास  मेरे पहुंचने से पहले ही हरे भाई खडे दिख गए. बेताबी के साथ मुझसे मेरा हाल चाल पूछा।  मैने भोला भाई नालंदा वाले की पूरी खबर के साथ ही खाने पीने और 400 रुपए देने की बात कही, तो हरे भाई मुझे बस अड्डे के एक शौचालय में ले जाकर कपड़े बदलवाए। बाहर आकर हम दोने ने चाय पी और वे दिल्ली पहुंचने पर फोन करने को कहा। मैं भी एक ऑटो करके फौरन डीएम कोठी पहुंचने के लिए आतुर हो उठा। करीब 15 मिनट के बाद ऑटो डीएम दिलबाग सिंह की कोठी के बाहर खडी थी। होलिका दहन भले नहीं हुए थे मगर शहर के चारो तरफ बम धमाको का शोर था।  गेट पर दरबान को राष्ट्रीय सहारा अखबार का अपना कार्ड दे दिया। कार्ड लेकर भी वो ना नुकूर करने लगा। तब मैने जोर देकर कहा कि तुम जाकर तो दो मेरा टिकट भी यहीं पर हैं और दिलबाग सिंह को यह पता है।  डीएम के नाम को मैं जरा रूखे सूखे अंदाज मे कहा तो इसका गेटकीपर पर अच्छा असर पडा और बिना कुछ कहे वह अंदर चला गया। मै अपना सामान नीचे रखकर उसके आने का इंतजार करने लगा। वह एक मिनट के अंदर आया और मेरे सामान को उठाकर साथ आने को कहा। उधर डीएम भी कमरे से बाहर निकल कर बाहर ही मेरा इंतजार कर रहे थे। खुशी का इजहार करते हुए मैने कहा कि आपको मैने कहा था न कि शहर छोडन से पहले आपसे  मिलकर और आपकी कोठी से ही दिल्ली जाउंगा। मेरी बात सुनकर वे भावुक हो उठे और कहा कि आप यहां से होकर जाओगे इसका मुझे यकीन नहीं था। यह सुनते ही मैं घबराते हुए कहा कि यह क्या कर दिया महाराज । मेरे टिकट को रिजर्व कराने का भरोसा आपने दिया था। इस पर वे खिलखिला पडे अरे अनामी जी आपको भेजने की जिम्मेदारी मेरी रही। वे तीन चार जगह फोन करने लगे और अपने सहायक को चाय पानी लाने का आदेश देते हुए बताया कि आपका टिकट आ रहा है। हंसते हुए बताया कि नाम तो पहले ही भेजा हुआ था पर मैने ही कह रखा था कि जब तक मेरा फोन न आए टिकट बुक नहीं करना है। और इस पर हम दोनों ही एकसाथ मुस्कुरा पडे।  
रात के खाने पर डीएम ने पूछा कि क्या कोई बात बनी। मैं इस पर हंस पडा। वे चौंके कि क्या हुआ। खाना रोककर मैने कहा कि मैं भारत पाक बोर्डर पर हो आया। वे एकदम असहज हो उठे। मैने कहा कि आपको मैने पहले ही दिन कहा था न कि शहर छोडूंगा तो आपके सामने ताकि आपको लगे कि मैं सही हूं। नहीं तो पता नहीं आप या आपकी पुलिस मेरे उपर क्या केस डाल दे। उन्होने उत्कंठा प्रकट की तो मैने हाथ जोड दी कि सर यह सब मेरा काम नहीं पर सीमा और वहां पर माहौल ठीक है। खाने के बाद मैं एक हजार रूपया निकाल कर ऱखने लगा तो उन्होने मना कर दिया। डीएम दिलबाग सिंह ने कहा कि मिठाई और टिकट मेरी तरफ से है। उन्होने भी मुझे गले लगाकर कहा कि मैं अनामी आपको कभी भूल नहीं पाउंगा। मेरे निवेदन पर वे मुझे बीकानेर रेलवे स्टेशन के बाहर तक आए और अपने सहायको से कहकर मुझे एसी थ्री में जाकर बैठा दिया। और रास्ते भर डीएम मेरे दिमाग मे छाए रहे। और ठीक होली के दिन मैं अपनी शादी की पहली होली पर अपने घऱ पर अपनी पत्नी के साथ रहा। बाद में संपादर श्री राजीव सक्सेना जी को मैने  वहां की पूरी जानकारी दी तो एक दो लाईट न्यूज बनाने के लिए कहकर उन्होने भी मेरी हिम्मत और साहस की दाद दी। उधर मैंने भोला भाई को दो बार फोन करके थोडी देर में आने की जानकारी दी तो वह बहुत निराश हुआ। उसने मुझे बार बार अपनी पत्नी की दुहाई दी कि तुम बस  जल्दी से आ जाओ यार मैं तेरे लिए कुछ और उपाय करता हूं। मगर बीबी को छोड़ने या नौकरी को छोडने के सवाल पर मैने अपने संपादक श्री सक्सेना जी को बताया कि बोर्डर पर भी मैं एक नौकरी हाथ में लेकर आया हूं। बीबी के नाम पर बीबी को रखते हुए मैने सीमा की नौकरी दारू मांस और छोकरी के मनभावन भोलाभाई वाले ऑफर को ही छोड़ना ही ठीक समझा। जिसस् भोला भाई अपनी बीबी सहित बहुत निराश हुआ होगा।  
 अलबत्ता करीब 10 साल के बाद तब सहारा में ही और अभी दिल्ली आजतक में काम कर रहे इंद्रजीत तंवर राजस्थानव में एकाएक दिलबाग सिंह से कहीं किसी खास मौके पर टकरा गए। सहारा सुनते ही उन्होने मेरा हाल कुशल पूछा और बहुत सारी बाते की। जब तंवर दिल्ली लौटे तो सबके सामने कहा कि बबल भाई  दिलबाग सिंह तो आपका एकदम मुरीद हैं यार । इस पर मेरे मन में दिलबाग सिंह के प्रति सम्मान बढ गया कि सचमुच वे अभी तक मुझे भूल नहीं पाए है । हालांकि इस घटना के हुए 22 साल हो गए फिर भी मेरा मन कभी कभी करता है कि मैं राजस्थान सरकार के सीनियर पीआरओ और अपना लंगोटी यार सीताराम मीणा या भरत लाल मीणा को फोन करके दिलबाग सिंह का नंबर लेकर कभी बात करूं या एक चक्कर लगाकर उनसे मिल ही आउं। पर यह अभी तक नहीं हो सका है।








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नगर सुदंरियों से अपनी प्रेमकहानी- 1

कोठेवाली मौसियों के बीच मैं बेटा

अनामी शरण बबल

एक पत्रकर के जीवन की भी अजीब नियति होती है। जिससे मिलने के लिए लोग आतुर होते हैं तो वह पत्रकारों से मिलने को बेताब होता है। और जिससे मिलने के लिए लोग दिन में भागते है तो उससे मिलने मिलकर हाल व्यथा जानने के लिए एक पत्रकार बेताब सा होता है। अपन भी इतने लंबे पत्रकारीय जीवन में मुझे भी चोर लुटेरो माफिय़ाओं इलाके के गुंड़ो पॉकेटमारो, दलालों रंडियों  कॉलगर्लों तक से टकराने का मौका मिल। इनसे हुए साबका के कुछ संयोग रहे कि वेश्याओं या कॉलगर्लों को छोड़ भी दे तो बाकी धंधे के दलालों समेत कई चोर पॉकेटमार आज भी मेरे मूक मित्र समान ही है। बेशक मैं खुद नहीं चाहता कि इनसे मुलाकात हो मगर यदा कदा जब कभी भी राह में ये लोग टकराए तो कईयों की हालत में चमत्कारी परिवर्तन हुआ और जो कभी सैकड़ों के लिए उठा पटक करते थे वही लोग आज लाखों करोड़ों के वारे न्यारे कर रहे हैं। कई बार तो इन दोस्तों ने मदद करने या कोई धंधा चालू करने के लिए ब्याज रहित पैसा भी देने का भरोसा दिय। मगर मैं अपने इन मित्रों के इसी स्नेह पर वारे न्यारे सा हो जाता हूं।   
मगर यह संस्मरण देहव्यापार में लगी या जुड़ी सुंदरियों पर केंद्रित हैं, जिनसे  मैं टकराया और वो आज भी मेरी यादों में है। कहनियं कई हैं लिहजा मैं इसकी एक सीरिज ही लिखने वाला हूं। मगर मैं यह संस्मरण 1989 सितम्बर की सुना रहा हूं । मेरी कोठेवाली मौसियां अब कैसी और कहां है यह भी नहीं जानता और इनके सूत्रधार मामाश्री प्रदीप कुमार रौशन के देहांत के भी चार साल हो गए है। तभी एकाएक मेरे मन में यह सवाल जागा कि इस संस्मरण को क्यों न लिखू ?  मैं औरंगाबाद बिहार के क्लब रोड से कथा आरंभ कर रहा हूं ,जहां पर इनके कोठे पर या घर पर जाने का एक मौका मुझे अपने शायर मामा प्रदीप कुमार रौशन के साथ मिला था। मुझे एक छोटा सा ऑपरेशन कराना था और एकाएक डॉक्टर सुबह की शिफ्ट में नहीं आए तो उनके सहायक ने कहा कि शाम को आइए न तब ऑपरेशन भी हो जाएगा। मैं अपने बराटपुर वाले ननिहाल लौटना चाह रहा था कि एकएक मेरे मामा ने कहा कि यदि तुम वास्तव में पत्रकार हो और किसी से नहीं कहोगे तो चल आज मैं कुछ उन लोगों से मुलकात कराता हूं जिनसे लोग भागते है। मैं कुछ समझा नहीं पर मैने वादा किया चलो मामा जब आप मेरे साथ हो तो फिर डरना क्या। पतली दुबली गलियों से निकालते हुए मेरे मामा जी एक दो मंजिल मकान के सामने खड़े थे। दरवाजा खटखटाने से पहले ही दो तीन महिलाएं बाहर निकल आयी और कैसे हो रौशन भईया बड़े दिनों के बाद चांद इधर निकला है। क्या बात है सब खैरियत तो है न ? मेरे उपर सरसरी नजर डालते हुए दो एक ने कह किस मेमने को साथ लेकर घूम रहे हो रौशन भाई। अपने आप को मेमना कहे जाने पर मेरे दिल को बड़ा ठेस सा लगा और मैने रौशन जी को कहा चलो मामा कहां आ गए चिडियाघर में।  जहां पर इनकी बोलचाल में केवल पशु पक्षियों के ही नाम है। यह सुनते ही सबसे उम्रदराज महिला ने मेरा हाथ को पकड़ ली हाय रे मेरे शेर नाराज हो रहे हो क्या। अरे रौशन भाई किस पिंजड़े से बाहर निकाल कर ला रहे हो बेचारे को। मान मनुहार और तुनक मिजाजी के बीच मैं अंदर एक हॉल में आ गया। जहां पर सोफा और बैठने के लिए बहुत सारे मसनद रखे हुए थे। मैं यहां पर आ तो गया था पर मन में यह भान भी नहीं था कि इन गाने बजाने वालियों के घर का मैं अतिथि बना हुआ हूं। जहां पर हमारे मामा जी के पास आकर करीब एक दर्जन लड़कियों ने बहुत दिनों के बाद आने का उलाहना भी दे रही थी। इससे लग तो यही रहा था कि यहां के लिए वे घरेलू सदस्य से थे।  सब आकर इनसे घुल मिल भी रही थी और सलाम भी कह रही थी। । और मैं अवाक सा इन नगर सुदंरियों के पास में ही खड़ा इनकी मीठी मीठी बाते सुन रहा था। दस पांच मिनट में रौशन जी को लेकर उनकी उत्कंठा और मेल जोल का याराना कम हुआ तो निशाने पर मैं था। लगभग सबो का यही कहना था कि रौशन भाई किस बच्चे को लेकर घूम रहे हो। यह संबोधन मेरे लिए बेमौत सा था। पूरे 24 साल का नौजवान होने के बाद भी अपने लिए बच्चा सुनना लज्जाजनक लग रहा था। मैने तुरंत प्रतिवाद किया कि मैं बच्चा या मेमना नहीं पूरे 24 साल का हूं जी। मेरी बात सुनते ही पूरे घर में ठहाकों की गूंज फैल गयी। मैने फिर कहा कि अभी मैं जरा अपने मामा के साथ हूं इसलिए जरा हिचक रहा हूं .....। जब तक मैं आगे कुछ बोलता इससे पहले ही एक 25-26 साल की सुदंर सी लडकी मेर नकल करने लगी नहीं तो मैं सबको बताता कि जवानी दीवानी क्या चीज होती है। लड़की के नकल पर मैं भी जरा शरमा सा गया और घर में एकबार फिर हंसी के ठहाके गूंजने लगी। हंसी ठहाको से भरे इस मीठे माहौल में मामा ने सबको बताया कि यह मेरा भांजा है। इसके बाद तो मानो मेरी शामत ही आ गयी या उनकी खुशियों का कोई ठिकाना नहीं रहा। अब तक मेरे से हंसी मजाक चुहल सी कर रही तमाम देवियां मेरे उपर प्यार जताने दिखाने लगी। कोई अपनी ओढनी से तो कोई अपने पल्लू से मेरे को पोछनें में लग गयी । भांजा सुनते ही मानो वे अपने आपको मेरी मौसी सी समझने लगी। अरे बेटा आया है रे बेटा। मैं पूरे माहौल से अचंभित उनकी खुशियों को देखकर भी अपन दुर्गति पर अधिक उबल नहीं पा रहा था। सयानी से लेकर कम उम्र वाली लड़कियां भी एकएक मेरी मौसी बनकर मेरे को बालक समान समझने लगी, और करीब एक दर्जन इन मौसियों के बीच में लाचार सा घिरा रहा। इस कोठे पर बेटा आया है यह खबर शायद आस पास के कोठे में भी फैला दी गयी हो । फिर क्या था मै मानो चिडियाघर का एक दर्शनीय पशु समान सा हो गया था और हर उम्र की करीब 30-32 महिलाएं मेरा दर्शन करके निहाल सी हो रही थी। सबों का एक ही कहना था रौशन भाई हम कोठेवालियं बड़भागन मानी जाती है यदि कभी कोठे पर रिश्ते में कोई बेटा आ जाए। आपने तो हमलोगों के जन्म जन्म के पाप काट दिए। अपनी आंखों से  आरती उतार उतार कर मेरे पर न्यौछावर करती तमाम औरतों के बीच मैं मानो एक खिलौना सा बन गया था। कहीं से लड्डु की एक थाली आ गयी और तब तो मेरा तमाशा ही बन गया। सबों ने मुझे एक एक लड्डु चखने को कहा और मेरे चखे लड्डु को वे लोग पूरे मनोयोग से प्रसाद की तरह खाने लगी। लड्डु खाकर निहाल सी हो रही ये कोठेवालियों ने फिर मुझे नजराना देना भी शुरू कर दिया। मैं एकदम अवाक सा क्या करूं कुछ समझ और कर भी नहीं पा रहा था। और देखते देखते मेरे हाथ में कई सौ रूपये आ गए। मेरी दुविधा को देखते हुए एक उम्रदराज महिला ने कहा कि बेटा सब रख लो,यह नेग है और कोई एक पैसा भी वापस नहीं लेगी। उसी महिला ने फिर कहा कि बताया जाता हैं कि किसी कोठेवाली के कोठे पर यदि रिश्ते में कोई बेटा बिना ग्राहक बने आता है तो वेश्याओं को इस योनि से मुक्ति मिल जाती है। रौशन भाई हमलोगों के भाई हैं और तुम इनके भांजा हो इस तरह तो हम सब के भी तुम बहिन बेटा हुए। तो हम मौसियों के उद्धार के लिए ही मानो तुम आए हो। हम इससे कैसे चूक सकते हैं भला। एकाएक मौसी बन गयी इन कोठेवालियों के स्नेह और दंतकथाओं को सुनकर मैं क्या करू यह तय नही कर पा रहा था। करीब दो घंटे तक चले इस नाटक का मैं हीरो बना अपनी दुर्गति पर शर्मसार सा था। मैने महसूस किया कि न केवल मेरे गालों पर बल्कि हाथ पांव छाती से लेकर बांहों पर भी सैकड़ों पप्पियों के निशान मुझे लज्जित के साथ साथ रोमंचित भी कर रहे थे। बालकांड खत्म होने के बाद पिर पाककला की बेला आ गयी। मेरे पसंद पर बार बार जोर दिया जाने लगा। मैने हथियार डालते हुए कहा कि क्या खाओगे ? यह दुनिया का सबसे कठिन सवाल होता है आप जो बना दोगी सारा और सब खा जाउंगा मेरी मौसियों। पूरे उत्साह और उमंग के साथ इतराती इठलाती कुछ गाती चेहरे पर मुस्कान बिखेरे ये एकाध दर्जन बालाओं को लग रहा था कि मैं कोई देवदूत सा हूं। चहकती महकती इन्हें देखकर मैंने कहा कि अब बस भी करो मेरी मौसियों इतनी तैयारी क्यों भाई । एक जगह तुमलोग बैठो तो सही ताकि सबकी सूरत मैं अपनी आंखों में उतार सकूं ताकि कहीं कभी धोखा न हो जाए। मेरी बात पर सब हंसने लगी और मेरी नकल उतारने वाली मौसी पूरे अदांज में बोली हाय रे हाय। बच्चा मेमना नहीं है बेटा पूरा जवान लौंडा है। देख रही हो न हम मौसियों पर ही लाईन देने लगा। मैने तुरंत जोडा ये लाईन देना क्या होता है मौसी। इस पर एक साथ हंसती हुई मेरी कई कोठेवाली मौसियां मुझ पर ही झपटी साले यह भी हमें ही बताना होगा क्या। फिर मेरे मामा की तरफ मुड़ते हुए कई मौसियों ने कहा कि रौशन भाई इसकी शादी करा दो। नहीं तो यह लाईन देता ही फिरेगा। हंसी मजाक प्यार स्नेह और ठिटोली के बीच मैने कोठेवाली मौसियों से कहा कि आपलोग का सारा प्यार और सामान तो ले ही रहा हूं पर यह पैसे रख लीजिए। इस पर बमकती हुई कईयों ने कहा कि बेटा फिर न कहना। जीवन भर के पुण्य का प्रताप है कि आज यहां पर तुम हो। हम सब धन्य हो गए तुम्हें देखकर अपने बीच बैठाकर पाकर बेटा। इनके वात्सल्य को देखकर मेरा मन भी पुलकित सा हो उठा। 24 साल के होने के बाद भी इन लोगों के बीच मैं एकदम बालक सा ही हो गया था, तभी तो मेरी कोठेवाली मौसियों ने मुझसे जिस तरह चाहा प्रेम किया। और स्नेह की बारिश की।   
खाने पीने की बेला एक बार फिर मेरे लिए जी का जंजाल सा हो गया।  मेरी तमाम मौसियों की इच्छा थी कि आधी कचौड़ी खाकर मैं लौटा दूं। आधी कचौड़ी को वे इस तरह ले रही थी मानो कहीं का प्रसाद हो। आधी कचौड़ी खाते खाते मैं पूरी तरह बेहाल हो उठा।  मुझसे खाया न जाए फिर भी जबरन मेरे मुंह में कचौड़ी ठूंसने और आधा कौर वापस लेने का यह सिलसिला भी काफी लंबे समय तक चला। तब कहीं जाकर खाने से मुक्ति मिली।
 इसके बाद आरंभ हुआ मेरे जाने का विदाई का समय । तमाम मेरी कोठेवाली मौसियों के रोने का रुदन राग शुरू हो गया।  चारो तरफ लग रहा था मानो कोई मातम सा हो। कोई मुझे पकड़े हैं तो कोई अपने से लिपटाएं रो रही है। एक साथ कई कई मौसियां मेरे को पकड़े रो रही है नहीं जाओ बेटा अभी और रूक कर जाना। लग रहा था मानो शादी के बाद लड़की ससुराल जाने से पहले अपने घर वालों के साथ विलाप कर रही हो । बस अंतर इतना था कि मैं रो नहीं रहा था। तभी मेरी नजर नकल करने वाली मौसी पर पड़ी। मैं उसकी तरफ ही गया और हाथ पकड़कर बोला तुम तो न मेरे से लिपट रही हो न रो ही रही हो. क्या बात है मौसी।. इस पर वह एकाएक फूट सी पडी और मेरा हाथ पकड़कर वह जोर जोर से रोने लगी। इतना प्यार और इतना स्नेह को देखकर मैं भी रूआंसा सा हो गया और इनको प्रणाम करने से खुद को रोक नहीं सका। सभी मौसियों के पांव छूने लगा। मेरे द्वारा पैर छूने पर वे सब निहाल सी हो गयी। कुछ उम्र दराज मौसियों ने कहा बेटा फिर कभी आना। एक बार ही तुम आए मगर हम सबों का दिल चुराकर ले जा रहे हो। इस पर मैं भी चुहल करने से बाज नहीं आया। नहीं मौसी दिल को तो अपने ही पास ही रखो चुराना ही पड़ेगा तो एक साथ तुम सबों को चुरा कर अपने पास रख लूंगा। मैंने तो यह मजाक में यह कहा था मगर मेरी बात सुनकर मेरी सारी कोठेवाली मौसियां फफक पड़ी। और मैं एक बार फिर नजराने और प्यार के पप्पियों के चक्रव्यूह में घिर गया। मेरे द्वारा उन तमम मौसियों के पैर छूना इतना रास आया कि मैं उनका हुआ या नहीं यह मैं नहीं कह सकता, पर वे तमाम कोठेवाली मौसियां मेरी होकर मेरे दिल में ही बस गयी।        .       


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दशरथ मांझी के साथ एक मुलाकात
अनामी शरण बबल
दशरत मांझी के बारे में बहुत कुछ सुना था, मगर कभी भी इस माउन्टेन मैन को देखने या मिलने का मौका नहीं मिला था। बिहार के गया से मात्र 60 किलोमीटर दूर देव औरंगाबाद में रहने के बाद भी बोधगया राजगीर नालंदा या दशरथ मांझी के बेमिशाल कारनामे को नहीं देखा था। करीब 10-11 साल हो गए होंगे (एकदम ठीक ठीक साल और घटना भी याद नहीं ) एक दिन मैं जनपथ के धरना स्थल की तऱफ से गुजर रहा था ( यों भी धरनास्थल के आस पास से गुजरते हुए मैं एक एक बोर्ड और पोस्टर पर नजर डालकर ही बढ़ता था) कि किसी ने बताया कि दशरथ मांझी भी बैठे है। मांझी का नाम सुनते ही एकाएक मेरा मन चहक उठा और पूरे उत्साह के साथ मैं बेताब सा उनको खोजने लगा। पास में जाकर देखा तो नाटा कद और झुर्रियों से भरे चेहरे पर एक गजब तेज सा अनुभव हुआ। वे किसी धरने के समर्थन मे आए थे। मै उनके निकट पहुंचते ही पांव पर मत्था टेका और दोनों हाथों को अपनी हथेलियों में लेकर सबसे पहले चूमा। बहुत देर तक उनकी हथेलियों को अपने हाथों में लेकर थामे रखा। उम्र के साथ कमजोर और झुर्रीदार हो गए थे हाथ। मेरे उतावलेपन को कुछ मिनटों तक तो वे सहते या झेलते रहे, फिर ठठाकर हंस पड़े। हंसते हुए ही पूछा क्या देख रहे हो बाबू ? मैं भी संयमित होकर तब तक सहज हो गया था, मैंने कहा कि पहाड़ को भी दो फाड़ कर देने वाले इन हथेलियों की ताकत और गरमी को महसूसना चाहता हूं। बडे ही निर्मल भाव से वे फिर हंस पड़े, और मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए अपना वात्सल्य जाहिर किया। कुछ पल के लिए मैं भी भूल सा बैठा कि एक पत्रकार हूं और उस समय मेरी उम्र भी कोई 36- 37 की रही होगी। मैं आधुनिक जमाने में मजनू फरहाद को जीवित अपने सामने बैठा देख रहा था यों कहे कि महसूस कर रहा था। थोड़ी देर के बाद मैंने बताया कि मैं भी औरगाबाद जिले में देव नामक जगह का रहने वाली हूं ,तो वे एकदम घरेलू से हो गए। घर परिवार का हाल चाल पूछा। धरने पर बैठे समस्त लोगों से क्षमा मांगते हुए उनको लेकर मैं जंतर मंतर धरना स्थल के साउथ इंडियन डोसा दुकान की तरफ चला। करीब एक घंटे तक मैं उनके साथ रहा और साथ में ही हम दोंनों ने ड़ोसा खाया और चाय पी। मैंने उनको एक दिन के लिए अपने घर चलने का आग्रह किया, जिसे वे फिर कभी आने का वादा कर मेरा फोन नंबर और घर का पता लिया। हालांकि वे तो नहीं मेरे घर कभी नहीं आ सके, मगर दशरथ मांझी के रिश्ते में कोई प्रमोटी आइएएस भाई के बेटे से फोन पर बात हुई और जंतर मंतर पर हमलोग की मुलाकात भी हुई। लड़के का या इनके प्रमोटी आइएएस भाई के बारे में भी कोई याद नहीं. है, मगर हां इतना याद हैं कि वे कभी हजारीबाग में आयकर आयुक्त रहे थे। लड़का दिल्ली में परीक्षा की तैयारी कर रहा था, मगर उसके मन में अपने ताउ दशरथ मांझी को लेकर एक सम्मान और गौरव का अहसास सा था। मैं भी दशरथ मांझी को लगभग भूल सा गया था, कि एक दिन किसी दिन इनके देहांत की खबर किसी टीवी चैनल के टीकर में चलते हुए देखा। खबर देखते ही मैं गया के बेहतरीन छायाकार और पत्रकार प्यासा रूपक को फोन लगाकर पूछा तो रुपक खुद दशरथ मांझी की मौत को लेकर अनजान निकला। लगातार 22 साल तक पहाड़ को तोड़ते हुए पहाड़ की छाती को चीर देने वाले इस अदम्य साहसी और प्यार की उर्जा से भरपूर मेहनती दशरथ मांझी की गुमनाम मौत पर मन आहत सा हुआ।
अपनी मौत के कई सालों के बाद स्वर्गीय दशरथ मांझी एक बार फिर सुर्खियों में है, क्योंकि इस बार सत्यमेव जयते धारावाहिक के लिए अभिनेता आमिर खान ने इस बार दशरथ मांझी को अपना हीरो माना और चुना है। अमिर के बहाने लोग एक बार फिर माउंटन मैन को याद कर रहे है । लोग यह जानकर दांतो तले अपनी अंगूली दबा रहे है कि 22 साल तक लगातार मेहनत करके क्या एक आदमी ने एक पहाड़ को काट डाला था। जिससे मेन सड़क तक जाने वाली 45 किलोमीटर की दूरी को केवल सात किलोमीटर का कर दिखाया । सरकार इस काम को असंभव मान कर हार गयी थी। और अगर कभी सड़क बनती भी तो कई सौ करोड़ की लागत के बाद भी क्या सड़क बन जाती., जिसे एक 24 साल के मजदूर ने पूरी जवानी झोंककर पहाड़ को परास्त कर दिया। प्यार के इस नायाब हीरो को मेरा सलाम । आज दशरथ मांझी भले ही ना हो मगर मेरे जीवन का वह पल अनमोल पल है और आज भी मैं खुद को गौरव सा महसूस रहा हूं कि मैं कभी ना टायर्ड होने वाले इस माउण्टन मैन से मिला था। अपनी पत्नी से बेपनाह मुहब्बत करने वाले दशरथ मांझी अपनी पत्नी से भी ज्यादा प्यार अपने गांव समाज और अपने लोगों से करते थे. मेरे मन में अब दशरथ मांझी से परास्त हो जाने वाले पराजित पहाड़ को देखने की ललक जाग गयी है। शायद उनके गाव में कभी जाकर पराजित पहाड़ियों को ठेंगा दिखाकर ही उनकी समाधि पर माथा टेकना ही उचित होगा। देखता हूं कि कब समाधि स्थल पर मेरा मत्था टेकना संभव होता है ?
anami sharan babal / asb.deo@gmail.com
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Dadhibal Yadav भाई अनामी शरण बबल जी आपने उतनी ही खूबसूरती से यह वृत्तान्त बयां किया है जितने अदम्य साहस से दशरथ मांझी जी ने पहाड़ का सीना चीर कर राह सुगम की थी। दशरथ मांझी को श्रद्धा नमन और आपको भी इस संस्मरण को यहाँ लिखने के लिए बहुत बहुत बधाई।
Nalin Chauhan नमन...........
देवसिंह रावत अनामी भाई, आपका धन्यवाद जो आज आपने ऐसे महापुरूष की स्मृतियों को हमारे मानस पटल पर भी फिर से जीवंत बना दिया। इस दुनिया में विकास की तमाम राहें ऐसे ही महान दृढ़ इच्छा शक्ति वाले दषरथ मांझी जैसे मनीषियों ने बनायी है।
जिन्होंने अपना सर्वस्व जनहित के लिए अप...See more
Neeraj Choudhary ऐसे अदम्य, अद्भुत साहस के लिए महान आत्मा दशरथ मांझी जी को नमन ।और लोगों तक उनकी गाथा को पहुँचाने हेतु आपका साधुबाद...
Rupak Sinha Bhai Babal Dashrath manjhi ji ko bhulaye nahi bhool sakata.Unse milana hamesha hota tha.shyad pahli bar unhe tab jana jab Patna ke mere sammanit mitra swatantra press photographer Arun singh ki ek vistrit reportaj "Dharmyug"me prakashit hui thi.bahoot ...See more
Vivek Bajpai अद्भुत सर....
Anant Sharma Babal, दशरथ माँझी के सारे बेटे अपने अपने पर्वतों को चीर कर रास्ता बना लें तो दुनिया कितनी सुंदर हो जाये । समुद्र मंथन से पर्वत ने दुर्लभ पदार्थ दिये । गिरि धारण कर गिरिराज बने हनुमान ने भी पर्वत उड़ाया दशरथ सुतों के लिये । पर इस दशरथ माँझी को मेरा प्रणाम ।।
सचिन वाला भारतरत्न इन्हें मिलना चाहिये ।।
Ami Saran Great
Bade pa.what a personality. Of great man
आलोक कुमार बबल भाई यादें ताजा करने के लिए शुक्रिया
Gaurav Raj mind boggling sir..
Manoj Kumar Bhai Bahut Bahut Dhaneybad.
Rajnish Jain ...anami ji ...janpath k dharna sthal par dashrath ji knyo aaye es par bhi prakash dalen to behtar hoga..!See translation
Pradeep Pallove लगातार 22 साल तक पहाड़ को तोड़ते हुए पहाड़ की छाती को चीर देने वाले इस अदम्य साहसी और प्यार की उर्जा से भरपूर मेहनती दशरथ मांझी की गुमनाम मौत पर मन आहत सा हुआ। जिसे एक 24 साल के मजदूर ने पूरी जवानी झोंककर पहाड़ को परास्त कर दिया। प्यार के इस नायाब हीरो को मेरा सलाम । Bahut sunder Article hai sir
Prakash Kumar babal aajkal kahan ho?ek bar phone no manga tha .still waiting.
Anami Sharan Babal 09212558501 / 09868568501 भैय्या नमस्कार प्रणाम , अपना नंबर भी देंगे 01122615150 09312223412

Shishir Shukla बहुत खूब ...
















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