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शनिवार, 15 अप्रैल 2017

हरदिल अजीज शायर प्रदीप कुमार रौशन की याद में








यानी हरेक हाल में रौशन है आपका.

अनामी शरण बबल

पुण्य तिथि पर विशेष नहीं बस्स अपनी श्रद्धाजंलि

प्रदीप कुमार रौशन की रौशनाई शायरी को सलाम ----

(03 अक्टूबर 1957----14 अप्रैल 2012)

हमारे शेरो को पढ़के सुनके खुद अपना किस्सा लगा किसी को ।
किसी को शायर और इस सदी का लगा हूं मैं आईना किसी को .।

लम्हों को कैद करने की कोशिश ना कीजिए ।
अपने खिलाफ आप ये साजिश ना कीजिए।।

मगर जीवन भर अपने खिलाफ साजिश करने वाले औरंगाबाद बिहार के मशहूर शायर रौशन को अपने खिलाफ ही जंग करने में मजा आता था। खुद को सलीब पे रखकर ही दूसरों को देखते थे।

पी गया सागर को सूरज बूंद -बूंद।
रेत पर दम तोड़ती है मछलियां।।

रिश्तों के बिखरने और घर परिवार के टूटन की पीड़ा को महसूस कीजिए

पहले सारा दिन रहता था सूरज घर के आंगन में ।
अब हर आंगन के हिस्से में आई चुटकी चुटकी धूप।।

अपनी ही तलाश में जीवन भर भटक रहे रौशन ने अपनी खोज को कुछ इस तरह बयां किया है।

रौशन उसी की मुझे रही उम्र भर तलाश .
पूरी तरह जो जानता हो मेरे सिवा मुझे.।.

हालांकि अपनी तलाश में उनके समक्ष रिश्तों का विलाप कई मर्तबा आया। यही वजह हो कि रिश्तों पर वे खुलकर बोले।

उस पे खुल जाने दे, रिश्तों की हकीकत रौशन।
देखना तेरी तरह वो भी अकेला होगा ।।

मेरा और आपका रिश्ता भी बड़ा अजीब रहा रौशन साहब।. रिश्ते में तो आप मेरे मामा लगते थे, मगर हमारा रिश्ता सही मायने में एक सासबहू जैसा रहा। जब भी हम मिले तो एक तरफ मैं अंगारे बिखेरता रहाऔर आप एक खामोश सास की तरह हंसते हुए मेरी बेचैनी पर केवल हंसते रहे। आपका नश्वर शरीर तो चला गया रौशन जी पर आपकी आवाज शब्द शायरी कलाम कलिताएं मेरे पास खआमोश नहीं बल्कि अब पहले से ज्यादा गूंजने लगी है. आपके नाटक एकांकी कहीं नहीं मिसे. मैं कईयों से पूछा और खोजबीन कराया मगर पांडुलिपि भी आपकी तरह ही लापता और अंधेरे में ही है. अब मुझे आपसे शिकायत नहीं बल्कि आपको लेकर खुद से शिकायत है कि मैं जिस तरह सिर पर सवार होकर पत्रिका के लिए जब रचनाएं लिखवा ली तो वही जोश फिर क्यों नहीं लगाया ? आपकी प्रेरणा से थोडा बहुत मैं भी लिखने लगा हूं रौशन जी तो आपके बाद सबसे अधिक तन्हा मैं खुद को ही पाता हूं। सही मायने में रौशन जी मैं तो आपका सबसे बेईमान हमदम निकला। पिचले पांच साल में न जाने कितना लिखआ मगर आप पर कुछ नहीं. पिछले कीन माह से इस बार लिखने का पूरा प्लान था और पूरी शायरी देखी, मगर आजकल कलम अब मेरा दोस्त नहीं रह गया है मामा। कुछ भी लिखने के लिए अब मुझे भी खुद से जंग करना होता है. पहले मेरे मन में शब्दों की गंगा बहती थी और अब शब्दों भावों कल्पनाओं की नदी अंतसलिला सी अंर्तप्रवाहित तो रहती है मगर शब्दों में फूट कर बाहर नहीं आते या आते हैं तो विरल धार से.. मेरी लेखनी भी किसी बांढिन होती दिख रही है कि लेखन और लेखनी का पूरा उबाल ज्वार बहाव सुनामी सब उतार सा लगता है। मगर यह कोई बहाना नहीं है मुझे इस बार जरूर लिखना है जरूर लिखूंगा रौशन जी क्योंकि आप ही तो मेरे भीतर भी धड़कते हो । आप ही तो हो जो कभी जब प्यार की बात इस तरह करते हैं -

इश्क को नजराने में दिए हैं, सपने खुशियां, महफिल भोर।
इश्क ने नजराने में दिए हैं यादें गम तन्हाई, सांझ।.

तो

खुद अपनी खामोशी ( जिसके लिए मैं हमेशा उनसे झगड़ता भी रहा।) .

बेहतर है कि खामोश ही रहने दे तू वरना ।
गर खुल गयी जुबांनतो फिर चिंगारियां निकलेगी।।

अपने आप से जीवन भर जंग करने वाले रौशन में ही यह दम था कि अपनी हालात में बी वे कभी झुके नहीं. मौके कई मिले कई आए, मगर इंसानियत को सामने जीवित रखा और लालच को ठुकरा दिया।

मैं हूं गर्दिशों में घिरा तो क्या, मेरे वास्ते ना दुआ करो ।
ये अलम खुदा की ही देन हैं , मेरे हाल पे ना हंसा करो.।

कभी कभी तो लगता है मानों वे हर उस आदमी से, जो मेल मिलाप पर सामान्य तौर पर हाल चाल पूछने की रस्मअदायगी करता है उस पर ही एक सवाल खड़ा कर रहे हो मानों

यार हमारा हाल ना पूछो हाल हमारा कैसा है.
वरन हंसकर कहना होगा हाल हमारा अच्छा है।।

एक विराट प्रतिभा के धनी रौशन साहब की गुमनामी हमें सालती थी। मैं उनके लिए बेचैन रहता था, मगर मानो वे ये कहकर मुझे सांत्वना दे रहे हो

ना भूख शोहरत की है उसे, और ना ख्वाहिशे एहतराम की ।
के मकसद शायरी है रौशन, हरेक को बेनकाब करना

यह दो चार लाईने मेरा आपके उपर लिखना आपकी शान के खिलाफ है। मैं जानता हूं कि आप पर तो मैं काफी कुछ लिख सकता हूं. पर यह तो महज एक घंटे की कसरत है। आप पर जरूर औरजल्दू ही कुछ लिखेंगेरौशन साहब। यह मेरा वादा है क्योंकि मैं आपसे वादाखिलाफी नहीं कर सकता.।

जो बन सका न चांद तो जुगनू ही फिर सही।
यानी हरेक हाल में रौशन है आपका. ।।


सलाम रौशन जी . शब्दों के अनमोल सौदागर को सलाम नमन और दिल से याद।





Anil Kumar Chanchal भावनात्मक दिली लगाव की स्पष्ट युक्ति आपके इस पोस्ट सॆ जाहिर होता हैं .वाकयी रौशन की ज़िंदगी का मक़सद क्या था किसी को पता नही चल पाया.वो रहस्यमय या खुली किताब ?

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