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शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

हरि कृपा से हरिवंश का बढ़ता रुतबा /अनामी शरण बबल

: हरि कृपा से हरिवंश जी को याद करते हुए / अनामी शरण बबल


 कोलकाता से प्रकाशित साप्ताहिक पत्रिका रविवार के पाठक होने के कारण हरिवंश नामक एक पत्रकार को जानता था जो संभवत मुख्य उपसंपादक थे शायद। ( पद गलत लिख दिया हो तो माफ करेंगे) । केवल नाम से तो मैं परिचित था पर कोई लेख रिपोर्ट पर नजर कभी नहीं गयी। इस मामले में उदयन शर्मा राजकिशोर राजीव शुक्ला का रविवार पर एकाधिकार सा होता था। रविवार के  ही एक गुमनाम पत्रकार एके ठाकुर का नाम तो दिमाग में अंकित था मगर ठाकुर को भी रविवार में शायद कभी देखा हो मगर यह याद नही।

हां तो रविवार के बंद होने पर तत्काल पता चला कि वे रांची से प्रकाशित हिंदी के सर्वोत्तम अखबारों में एक प्रभात खबर में अब हरिवंश बतौर संपादक आसीन हो गये हैं।

: यह बात कोई 1987 या 1988के आरंभिक महीनों की होगी। उस समय मैं नयी दिल्ली के भारतीय जनसंख्या संस्थान ( आईएमईआई) में हिंदी स्नातकोत्तर पत्रकारिता का छात्र था। हिंदी पत्रकारिता का यह पहला बैच था। 1983 में कपिलदेव की अगुवाई में विश्व विजेता बनने के बाद 1987 में क्रिकेट का विश्वकप का आयोजन भारत में हो रहा था। जेएनयू के बगल में या  एक ही कैम्प्स के लास्ट में निर्मित आईएमईआई के छात्रावास में रंगीन टेलीविजन होने के कारण जमकर टीवी देखने की चाहत से मन भर गया। अन्यथा अपने गाँव देव में तो आसमान की ऊंचाई तक एंटीना को हिलाने घुमाने में ही समय बीत जाता था। हां तो हरिवंश को लेकर मन में कोई प्यार लगाव कुछ नहीं था। बस एक उत्कृष्ट समाचार पत्रिका के संपादकीय टीम में शामिल होने के कारण उनको केवल जानता था और मन मे एक सम्मान भर था।

उधर एस एन विनोद के संपादन में आरंभ प्रभात खबर मेरे ख्याल से जनसता के बाद सबसे नियोजित तरीके से निकलने वाला एक बहुत सुंदर अखबार सा था दिल्ली और रांची में दूरी थी इस कारण यदा कदा ही यह अखबार कभी नजर में आता था। उधर एस एन विनोद प्रभात खबर के बाद नागपुर से लोकमत आरंभ करने गये। यह पेपर आज भी यदा-कदा ही दिखता है।

हा  तो क्रिकेट के विख्यात कमेंटेटर रवि चतुर्वेदी के साथ हम छात्रों को कमेंट्री बॉक्स मे जाने की सुविधा मिली हुई थी। मजे की बात तो यह हे कि रवि चतुर्वेदी की गाड़ी में सवार होकर ही स्टेडियम तक जाता था।

प्रैक्टिस के दौरान मदनलाल मनिंदर सिंह रमण लांबा  सुरेन्द्र खन्ना मोहिन्दर अमरनाथ सुरेंद्र अमरनाथ सरीखे दर्जनों खिलाडियों के आसपास रहने का सुख अकल्पनीय था।  आराम के क्षण या क्षणों में पत्रकार और आईएमसीसी स्टूडेंट्स कहने पर ज्यादातर खिलाड़ी सहजता के साथ बातचीत भी कर ले रहे थे।

यशपाल शर्मा सुनील वाल्सन आदि आठ दस खिलाड़ियों के इंटरव्यू लिख लेने के बाद सबसे बड़ी समस्या यह थी कि इसे कहां-कहां पर प्रिंट करवाया जाए। दिल्ली के लिए अनजान और पत्रकारिता में एकदम कोंपल होने के कारण ज्यादा ज्ञान भी नहीं था। तभी मेरे मन मे हरिवंश का नाम बिजली की तरह अनायास कौंधा। और मैंने सारे के सारे इंटरव्यू लिखकर हरिवंश के पास प्रभात खबर रांची बिहार के पते पर भेज डाला। ढेरों इंटरव्यू के साथ हरिवंश जी को एक पत्र भी भेजा। जिसका सही-सही मजमून तो अब याद नहीं पर उसका सार यही था कि इन खिलाड़ियों के इंटरव्यू भेज रहा हूं। मूलतः बिहारी होने के कारण प्रभात खबर को इसलिए भी चुना कि आपको रविवार काल से जानता हूँ। अंत में मैंने लिखा कि इन इंटरव्यू को आप छापें। यदि पारिश्रमिक की व्यवस्था ना भी  हो तब भी कोई बात नही। सारे इंटरव्यू भेज तो दिया था पर देखने की या सूचना तक मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी।

कोई 15-17 दिन के बाद आईएमसीसी कै पते पर संपादक हरिवंश जी का एक पत्र मिला। जिसमें इंटरव्यू मिलने पर आभार जताया और सभी इंटरव्यू को छापने के साथ साथ पारिश्रमिक देने का भी भरोसा दिया।

संपादक हरिवंश का पत्र मेरे लिए अनमोल था। सबों से छिप छिपाकर इसे मैंने कितनी बार दोहराया यह बता नहीं सकता। हालांकि प्रभात खबर में प्रकाशित अपने इंटरव्यू को तो मैं आज तक नहीं देख पाया, पर पहले पत्र मिलने कोई 15-20 दिन के बाद चार सौ रुपये का एक मनीआर्डर जरुर मिला। जिससे मन में यह विश्वास पक्का हो गया कि प्रभात खबर में मेरे इंटरव्यू जरूर प्रकाशित हुए होंगे।

उस समय 400की बडी़ वैल्यू थी भाई। अपन दिल्ली मे रहना छात्रावास भोजन आदि और जेबखर्च पर हर माह 600 का खर्च होता था इस हाल में 400रूपये पर जेएनयू के पूर्वांचल कैंपस के कैंटीन में हम कुछ मित्रों की पार्टी होती रही।

मार्च 88 में सहारनपुर के एक अखबार में पहली नौकरी लगी। तो व्यस्तताओं के साथ संपादक हरिवंश की याद भले ही कम हो गयी हो पर मन मे एक सम्मान का भाव था। बाद में 1993 में ज़ब मेरी शादी हजारीबाग में हुई। तब जब कभी भी हजारीबाग जाता तो ससुराल में बेकार पडे पुराने अखबारों को टटोलता खासकर प्रभात खबर साज सज्जा में पहले अखबार भले ही सुंदर हो पर खबरों के चयन प्रस्तुतिकरण में यह एक थका हुआ उबाऊं औऱ बोरियत भरा पेपर जान पडा। खासकर किस्तवार खबरों में बोरियत और जानबूझकर न्यूज को रबर की तरह लम्बा करने वाला फालतू सा भी महसूस हुआ। खबरों को रबर की तरह खिंचने की कला आजकल इस पेपर के हेडिंग में आ गया है। 2016 मे करीब तीन माह तक रांची में रहने का संयोग मिला। और प्रभात खबर के प्रति मेरे मन का सारा लगाव जाता रहा। रबर की तरह न्यूज इंट्रो की प्रस्तुतिकरण के बाद भी यह पेपर रांची में सबसे अधिक बिकाऊ है। मेरे जाने से काफी पहले हरिवंश इसे छोड़कर नीतिश कुमार दरबार में पधार चुके थे।  दिल्ली और पटना में रहते हुए भी रही और पत्रकारों के साथ नीरसता के नीतिश कुमार पत्रकारों के न चहेते रहे और न पहल की। मगर इस रसहीन कथित सुशाशन कुमार के साथ हरिवंश जी की नजदीकियां विस्मयकारी है। पहले सूचना निदेशक और बाद में राज्यसभा सांसद बनवाने के पीछे आगे केवल जेडीयू सुप्रीमो  नीतिश कुमार का ही बल और  संबल रहा।

 मगर राज्यसभा के उपसभापति के लिए नीतिश कुमार द्वारा हरिवंश के नाम को प्रस्तावित करना और उपसभापति बनवाने की भूमिका में कुमार ही अंपायर रहे। निसंदेह हरिवंश एक सुंदर कुशल और सुयोग्य पात्र हैं। मगर इस पद का लालीपॉप लेकर भाजपा मुखिया अमित शाह शिवसेना के कुंवर उद्धव ठाकरे के दरबार मातृ श्री के चक्कर काटते रह गये।

उपसभापति का आफर भी उछाला गया, मगर शाह की एक न चली। लोकसभा टिकट वितरण और तालमेल के लिए उपप्रधानमंत्री और चार प्रमुख मंत्रालयों की शर्त पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी सहमत नही हुए । और गस तरह ठाकरे की ओर फेंके इये इस आफर को ठुकराने के बाद ही प्रधानमंत्री ने किसी के झोली में डालने से इंकार नहीं किया, और इस तरह हरि कृपा से हरिवंश हरि का नाम जाप करते हुए देश ऊ नामी पत्रकार सुयोग्य संपादक और सहज मिलनसार सुकोमल ह्रदय के हरिवंश की यह पदोन्नति मान्य है।

एक कलमघसीट का यह सफर हैरतनाक और विस्मित करती है। आज तक पत्रकारिता से दर्जनों लोग राजनीति में आए मगर नीतिश कुमार सरीखे सहयोगी बिरले को मिलते हैं और इस मामलें में हरिवंश बिरले है कि वे इस पद पर विभूषित होकर अपने चाहनेवालो को भाव विभोर कर दिया। बहुत-बहुत नमस्कारके साथ मुबारकबाद बधाई और शुभकामनाएं. 

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