पेज

पेज

शनिवार, 20 मार्च 2021

शक्ति सामंत की कहानी

 शक्ति सामंत का जन्म बंगाल के बर्धमान जिले में १३ जनवरी १९२६ को हुआ था। जब शक्ति दो साल के थे, उनके पिता एक दुर्घटना में नहीं रहे जिस कारण उन्हें अपने चाचा के पास यूपी के बदायूं आना पड़ा। अपने चाचा के कहने पर वो उनके काम में हाथ बंटाने लगे थे। इस बीच शक्ति को ऐक्टिंग का चस्का लग चुका था, जिसके चलते वो काम के साथ साथ थिएटर और ड्रामा भी करने लगे।


ये उनके चाचा को पसंद नहीं था। इसलिए चाचा का घर छोड़कर अपना शौक पूरा करने मुंबई आ गए। मुंबई में बिना किसी सहारे के जगह न मिल पाने की वजह से मुंबई से २०० किलोमीटर पहले दापोली में एक अंग्रेजी हाई स्कूल में नौकरी ली। यहां से मुंबई स्टीमर से बस दो-तीन घंटे की दूरी पर थी। तो वो आसानी से मुंबई आ-जा सकते थे।


फिल्मों में काम करने की चाह में शक्ति हर शुक्रवार को मुंबई चले जाते थे और अगले दो दिन वहीं काम की तलाश करते थे। पर मुंबई में काम मिलना इतना आसान नहीं था। उस टाइम बॉम्बे टॉकीज एक बड़ा स्टूडियो था, शक्ति भी वहीं जाकर अपनी उम्मीद तलाशते थे।


उस समय के जाने-माने एक्टर अशोक कुमार उर्फ दादामुनि बॉम्बे टॉकीज के साथ जुड़े हुए थे। शक्ति ने दादामुनि के पास जाकर काम मांगा, दादामुनि ने एक असिस्टेंट डायरेक्टर बनाकर शक्ति को काम पर तो रख लिया लेकिन बिना पैसे के, उन्हें सिर्फ खाना-पीना मिलता था, पैसे नहीं मिलते थे। एक ब्रेक पाने की कोशिश में लगे शक्ति के लिए यह बड़ा मौका था, वो बिना पैसे के भी काम करने लगे। बंगाली और हिंदी दोनों भाषा जानने के कारण वो डायरेक्टर फणी मजूमदार के लिए बांग्ला से हिंदी में ट्रांसलेशन का काम भी करते थे, इस काम के उन्हें पैसे भी मिलने लगे।


एक दिन शक्ति ने दादामुनि को अपने ऐक्टर बनने के सपने के बारे में बताया लेकिन दादामुनि ने उनके टैलेंट को देखते हुए डायरेक्शन की फील्ड में ही काम करते रहने की सलाह दी। अपनी ऐक्टिंग की हसरत को पूरी करने के लिए वो मूवीज में छोटे-मोटे रोल कर लेते थे. अमूमन सारी पिक्चरों में उन्हें एक पुलिसवाले का किरदार मिलता था जिसका काम बस ‘फॉलो हिम’ बोलना होता था। लेकिन इस बीच काम करते-करते उनकी बहुत-सी बड़ी हस्तियों से जान-पहचान हो गई थी। इनमें गुरुदत्त और ब्रजेन्द्र गौड़ भी थे, गौड़ को उन दिनों एक फिल्म डायरेक्ट करने का ऑफर हुआ जिसका नाम था ‘कस्तूरी’. पर गौड़ साहब उस टाइम एक दूसरी पिक्चर पर काम कर रहे थे. जिसके चलते उन्हें काम करने में दिक्कत महसूस हुई. उन्होंने इस काम में शक्ति की मदद मांगी, शक्ति तो इस मौके के लिए तैयार थे। उन्होंने २५० रुपये की तनख्वाह में काम करना तय किया। ये शक्ति की फिल्मों से पहली बड़ी कमाई थी।


इस शुरुआत के बाद म्यूजीशियन और प्रॉड्यूसर एस एच बिहारी और लेखक दरोगाजी एक फिल्म बनाने जा रहे थे जिसका नाम था ‘इंस्पेक्टर’ (१९५६)। वो इस कहानी पर नाडियाड़वाला के साथ मिलकर काम कर रहे थे, उन्हें लगा कि इस स्टोरी को हिट बनाने के लिए किसी बड़े डायरेक्टर को लेना पड़ेगा पर इससे बजट बिगड़ जाएगा, ऐसे में उन्होंने पैसे बचाने के लिए किसी बड़े डायरेक्टर की जगह एक नये डायरेक्टर को काम दिया जिसका नाम था शक्ति सामंत मूवी में दादामुनि और गीता बाली ने काम किया और ‘इंस्पेक्टर’ सुपरहिट हुई , लेकिन मजे की बात तो यह थी कि ‘इंस्पेक्टर’ का काम पहले शुरू करने के बावजूद उनकी एक दूसरी मूवी ‘बहू’ (१९५४) पहले रिलीज हो गई थी।


इसके बाद उन्होंने एक फ़िल्म बनाने की सोची नाम रखा "हावड़ा ब्रिज" (१९५७) तय किया कि इस पिक्टर में अशोक कुमार और मधुबाला को लेंगे। पर उस वक्त इतने पैसे नहीं थे कि दोनों सुपरस्टार्स को ले सकें। उन्होंने अशोक कुमार से इस बारे में बात की। स्टोरी को देखकर अशोक कुमार खुद तो तैयार हो ही गये साथ ही मधुबाला से बात करने के लिये राजी हो गए और उन्हें सिर्फ एक रुपये टोकन मनी पर काम करने के लिए राजी कर लिया। साथ ही संगीतकार ओपी नैयर को १००० रुपये देकर साइन किया। ये फिल्म पर्दे पर सुपरहिट साबित हुई। और शक्ति सामंत की पहचान एक प्रॉड्यूसर के रूप में भी बन गई।


शक्ति दा की प्रमुख फ़िल्में रहीं हिल स्टेशन , डिटेक्टिव , जाली नोट , सिंगापुर , नॉटी बॉय, चाइना टाउन, कश्मीर की काली, सावन की घटा, ऐन इवनिंग इन पेरिस, आराधना, कटी पतंग, पागल कहीं का, जाने-अनजाने,अमर प्रेम, अनुराग, चरित्रहीन, अजनबी, अमानुष, महबूबा, अनुरोध, आनंद आश्रम, इत्यादि


शक्ति दा ने कुछ फिल्में प्रॉड्यूस भी की, और अपना शक्ति प्रॉडक्शन बनाया। शक्ति दा की एक बड़ी बात हिट फिल्मों के साथ हिट गानों की भी थी। उनकी फिल्मों के कई गाने एवरग्रीन गाने बन गए. इन गानों की लिस्ट बहुत लंबी है पर इनमें से कुछ खास नगमे ‘रूप तेरा मस्ताना’, ‘तारीफ करूं क्या उसकी’, ‘मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू’, ‘कोरा कागज था ये मन मेरा’, ‘बार-बार देखो’, ‘चंदा है तू’, ‘एक अजनबी हसीना से’ और ‘ये शाम मस्तानी’ और ' कश्मीर की काली के गाने प्रमुख हैं।


आराधना के अलावा उन्हें अनुराग और अमानुष फिल्मों के लिए बेस्ट डायरेक्टर का फिल्मफेयर मिला। डायरेक्टर के रूप में उनकी आखिरी फिल्म गीतांजलि १९९३ में आई थी और प्रॉड्यूसर के रूप में डॉन मुथुस्वामी २००८ में आई थी।


शक्ति दा लाइमलाइट से दूर रहने वाले लोगों में से थे। उनकी पत्नी और दो बेटे हमेशा चकाचौंध से दूर रहे। उनके एक पोते आदित्य सामंत ने ‘ये जो मोहब्बत है’ नाम की पिक्चर में काम किया। मजे की बात ये है कि इस पिक्चर का टाइटल भी शक्ति दा की फिल्म ‘कटी पतंग’ के एक गाने से लिया था।


फिल्मफेयर उन्हें लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड देने वाला था लेकिन उससे कुछ दिन पहले उन्हें लकवा पड़ गया। इसके बाद वो ठीक नहीं हो पाए. और दिल की धड़कन रुकने से ८३ साल की उम्र में २००९ को शक्ति दा का निधन हो गया। अपने आखिरी समय में शक्ति दा गुमनामी में जिए। कोई भी बड़ी हस्ती उनके अंतिम संस्कार में नहीं आई और शक्ति दा बड़ी बेरुखी से हमसे रुखसत हो गए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें