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गुरुवार, 5 अगस्त 2021

अनामी शरण बबल / विजय गोयल

 विजय गोयल के पाले में गेंद


अनामी शरण बबल


उम्र के 62 बसंत में भी दिल्ली के सबसे तेजतर्रार और आप के लिए खिलाफ सबसे बड़े योद्धा साबित हुए भाजपा नेता विजय गोयल को अंतत:मोदी सरकार में शामिल कर ही लिया गया। दिल्ली में खुश होने वाले से कहीं ज्यादा बड़े जन समुदाय को यह रास नहीं आया होगा। हालांकि आप के खिलाफ भाजपा के विद्रोही तेवर के चलते का ही इनको यह पुरस्कार मिला है। वाजपेयी आडवाणी कैंप के हनुमान होने के कारण ही गोयल को मोदी कैंप में अपनी जगह बनाने में काफी समय लगा। मगर गोयल की निष्ठा पर किसी को संदेह नहीं। मोदी के बारे में श्री गोयल का यह बयान काफी लोकप्रिय रहा जब मोदी को भी महात्मा गांधी की तरह ही सावरमती का संत घोषित कर डाला। इसकी बड़ी चर्चा हुई। मगर मोदी जी को यह टिप्पणी जरूर रास आयी होगी। इसी तरह दिल्ली से पार्टी का एक आक्रामक चेहरे को प्रमोट करके श्री गोयल के काम को मोदी ने नवाजा है।
दिल्ली विधानसभा के अध्यक्ष रहे चरती लाल गोयल के पुत्र विजय गोयल को भले ही राजनीति विरासत में मिली हो मगर उन्होने अपने संघर्ष और योद्धापन के चलते ही लंबे सफर के राही बने। 1995-96 दिल्ली की राजनीति में एक साथ तीन नेताओं का उदय हुआ। कांग्रेस खेमे से महाबल मिस्र ( पार्षद और सांसद) और रमाकांत गोस्वमी (हिन्दुस्तान अखबार के चीफ रिपोर्टर से कांग्रेस विधायक और मंत्री) तथा भाजपा खेमे से विजय गोयल ।
लॉटरी (बाजी) टिकट की बिक्री के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले युवा नेता ( 40-42की उम्र होगी) विजय गोयल की सफलता की कहानी को सामने रखना तो और भी जरूरी है । और देश में लॉटरी का धंधा चौपट हो गया तो इसके पीछे भी गोयल की ही भूमिका रही है। महज 10 साल के भीतर लॉटरी नेता से सांसद और कैबिनेट मंत्री तक बनने वाले विजय गोयल की परियों जैसी सफलता की कहानी के पीछे दिवंगत नेता प्रमोद महाजन की हर प्रकार की भूमिका रही है। दिवंगत प्रमोद महाजन की वजह से भी आसमानी सफलता हासिल करने वाले गोयल कभी दिल्ली विवि डीयू के तेजतर्रार नेता भी रहे हैं।
अखबार के दफ्तरों में अपने प्रेस नोट्स लेकर ठीक से छापने के लिए अक्सर अनुनय विनय और प्रार्थना करने वाले गोयल का रिश्ता हम पत्रकारों से सांसद बनने तक तो ठीक रहा । वे हम पत्रकारों के संपर्क में भी लगातार रहे, मगर पीएम अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट में मंत्री बनते ही गोयल भाजपा के वरिष्ठ मंत्री बनकर हम पत्रकारों से ही परहेज करने लगे। शायद वे यह भूल गए कि हम पत्रकार तो चींटी की तरह होते है काम भला हो या बुरा हर जगह बेरोकटोक चींटी आ ही जाता है। चींटी किसी का सगा नहीं होता।
मंत्री पद से उतर जाने के करीब 12 साल तक श्री गोयल ने दिल्ली में की सड़कों पर धमाल चौकड़ी की, तब कहीं जाकर वे प्रधानमंत्री के गुडबुक में दाखिल हुए। दो एक बार श्री गोयल को इस बात को लेकर मुझसे बड़ी आपति हुई कि क्यों मैं उनके बारे मे बार बार कहीं कभी कुछ लिखा तो लॉटरीनेता जरूर जोड़ा। जब मेरी उनसे तकरर सी होते होते बची यह कहने पर कि सहारा आज भी 2000 से 20 हजर करोड़ की संपति का उल्लेख क्यों करती है ताकि इससे लोगों के दिमाग में मैप उभरे कि किस छोटे से आरंभ सफऱ किस तरह बड़ी मंजिल तक गयी है। यदि मैं चरती लल गोयल के बेटे को फोकस करूंगा तो लोग बाग यही समझेंगे कि यह बाप बेटे का पुश्तैनी खेल है। मग मैं लॉटती नेता लिखकर तो तुम्हारी ही छवि में चांद लगा देता हूं । अब चांद को चार चांद बनाना लगाना साबित करना विजय गोयल का काम है। और रही बात चीखने चिल्लाने की तो एक पत्रकार ही तो आईना दिखाता है। हमलोग तो एक रेलवे प्लेटफॉर्म की तरह होते है । जो भी जितन भी बड़ा हुआ है और बड़ी दूर तक गया तो भी वो सब पत्रकारों के घुटने के नीचे होकर ही। मेरी बात सुनकर गोयल शांत हुए और बात खत्म हो गयी। एक लंबे अंतराल के बाद केंद्रीय मंत्री बने गोयल के सामने यह एक नायाब मौका है कि वो दूसरों से बेहतर साहित करे, क्योंकि जिन उम्मीदों के साथ मोदी ने दिल्ली के सांसदों को मंत्री बनाया था उसमें कोई भी दो साल में जनता के साथ साथ मोदी की कसौटी पर भी खऱे नहीं उतरे है। चतुर प्रधानमंत्री ने श्री गोयल के पाले में गेंद डाल दी है। अब देखना यह है कि वे किस तरह खुद को औरों से बेहतर साबित करते हैं या....

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