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शनिवार, 12 नवंबर 2022

दलित पार्टी की पहचान के लिए लोजपा की नई रणनीति

: लोजपा ( SC/ ST ) सेल ई राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञान चंद गौतम से बातचीत 


 दलित मतदाताओं को लुभाने की नई  कोशिश


 भाजपा के ग्रीन सिग्नल से  लोजपा में एकता की नई उम्मी


 गृह मंत्री अमित शाह कर रहे हैं सारे मामले की देखरेख



रामफल सिंघ /  राजीव साहनी 


नयी दिल्ली.   आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा की नजर में लोकसभा की कीमत बढ़ गई है.   भाजपा लोजपा को  दलितो की इकलौती पार्टी और चिराग पासवान को एक उभरते हुए एक दलित नेता की तरह प्रस्तुत करने की मंशा बना रही है.   भाजपा से बढ़ती नजदीकियों को देखते हुए दोफाड़ लोजपा के एक बार फिर से एक होने की उम्म्मीद बढ़ गयी हैं.   मंत्रिमंडल के अगले विस्तार में चिराग पासवान को मंत्री पद मिलना लगभग तय हैं  भाजपा की नई रणनीति के तहत लोजपा देश की दलित बहुल एक सौ संसदीय क्षेत्रों पर काम कर रही है,   जिससे भाजपा और लोजपा की ताकत में इजाफा होने की उम्मीद है.   लोजपा के दलित प्रकोष्ठ (sc/sT सेल ) के राष्ट्रीय अध्यक्ष ज्ञान चंद गौतम ने राष्ट्रीय शान से बातचीत करते हुए  बीजेपी के संग पार्टी की बढ़ती नजदीकियों पर चर्चा करते हुए उपरोक्त बातें कही.


उल्लेखनीय है कि   दलित नेता रामविलास पासवान की मौत के बाद लोजपा  का भविष्य अधर में आ गया था.   पारिवारिक असंतोष के कारण  पासवान बंधुओं ने दूसरा पर आधिपत्य जमाने की कोशिश की भाजपा दूर खड़ी तमाशा देखती रही,  लोजपा  पर आधिपत्य जमाने के लिए पासवान बंधुओं ने पासवान पुत्र चिराग पासवान के खिलाफ मुहिम छेड़ दी.  एक समय बीजेपी शह पर चिराग भी काफी सक्रिय रहें मगर अंतत:  बीजेपी ने चिराग पासवान को दूर कर दिवंगत पासवान के बंधुओं को अपना लिया भाजपा के इस रवैया से चिराग पासवान स्तब्ध रह गये.   प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का हनुमान कहते हुए चिराग ने अपनी निष्ठा  सामने रखी, मगर अंततः चिराग को इसका नुकसान उठाना पड़ा.  पार्टी और पासवान परिवार में कलह छिड़ गयी. मगर पुरे मामले में शांत रहकर चिराग ने समय का इंतज़ार किया.  और इसी बीच बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने धमाके के साथ NDA  से अलग हो गये और पिछले 20 साल से सत्ता की पिछलग्गू  बनी बीजेपी  अब विपक्षी पार्टी बन गयी मुख्यमंत्री कुमार के इस धोखे ने चिराग की किस्मत को लौ बना दिया नए साथियो की तलाश में लोजपा और चिराग सबसे बड़े मित्र की तरह लगे तो बीजेपी चिराग की किस्मत की पटकथा लिखने की रणनीति में जुड़ गयी लम्बे खिलाडी की तरह बीजेपी चिराग को इस्तेमाल करने की.योजना में हैं


 गौरतलब हैं की देश की सभी 543 संसदीय क्षेत्रो में दलित मतदाताओं की संख्या 20-25% की हैं  जबकि 278 संसदीय क्षेत्रो में दलित मतदाताओं की संख्या 25-30% की हैं.   लोजपा नेता ज्ञान चंद गौतम ने बताया की लोजपा देश की सभी संसदीय क्षेत्रो के मतदाताओं की ताजा आंकड़ों का विश्लेषण कर रही हैं  जिसके तहद हिंदी बेल्ट के 150 संसदीय क्षेत्रो में से, पहले चरण में वोट प्रतिशत के जोड़ घटाव को चेक कर रही हैं जिसके आधार पर दलितों की हालत और उनकी समस्याओं  का भी विश्लेषण हो रहा हैं.  श्री गौतम ने बताया की रामविलास पासवान की मौत के बाद चिराग लोजपा को अधिक जनाधार वाली बिहार से बाहर भी फैलाव का सपना देख रहें हैं उन्होंने कहा की ले दें कर दलित नेता की तरह बसपा और मायावती ही रह गयी हैं जबकि दलित सांसदों की तादाद 30 की हैं गौतम ने कहा की दलित सेना को फिर से पुनजीवित किया जायगा और यूपी हरयाणा राजस्थान झारखंड मध्यप्रदेशबंगाल पंजाब  छतीसगढ और महाराष्ट्र में लोजपा और दलित सेना का गांव स्तर  पर गठित की जा रही हैं दर्जन भर राज्यों में सैकड़ो पूर्व मंत्रियों विधायकों पार्षदों और मुखिया सरपंचो को पार्टी से जोड़ने का अभियान जारी हैं  ताक़ि पार्टी सबल हो.  उन्होंने कहा की लोजपा का टारगेट 2024 चुनाव नहीं हैं संगठन को फौलाद बनाना हैं  जहाँ पर उम्मीद हैं तो निसंदेह चुनावी मैदान भी योजना का हिस्सा रहेगा मगर जनांदोलन की तरह दलित मतदाताओं को जागरूक करना उद्देश्य हैं.  सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं की पहुँच को सुनिश्चित कराने के लिए लोजपा गंभीर हैं गौतम ने कहा की शिक्षा स्वास्थ्य पर भी पार्टी गंभीर हैं की सबको राहत  उपलब्ध हो. इससे पार्टी की समाजसेवक छवि बनेगी और सबको अपनी पार्टी का अहसास भी होगा.  2029 चुनाव से पहले पार्टी मध्यार पूर्वी भारत सहित लगभग 15 राज्यों मे पंचायती चुनाव और स्थानीय नगर निगम नगर पालिका चुनाव में हिस्सा लेकर संगठन और जनाधार को बढ़ाएगी तब कही जाकर विधान सभा और संसद  के लिए चुनावी रणनीति बनेगी अभी पार्टी को मजबूत करना ही पहला लक्ष्य हैं 


लोजपा  SC/ST  सेल के  राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दर्शनलाल ने बताया की 100 संसदीय  सीटों के नाम तय होने के बाद लोगों को जोड़ने अभियान और मुहिम  के लिए पूरी टीम काम kregi,  जिसका आंकलन करते हुए आलाकमान तक प्रगति रिपोर्ट दी जायगी उन्होंने बताया की बड़े स्तर पर लोग जो रहें हैं और नयी योजनाओ पर सलाह मांगी भी जा रही हैं 

अब देखना हैं की दलितों के नाम पर दलितों को ही ठगते आ रहें नेताओ से अलग चिराग पासवान कितने बड़े दलित हमदर्द बनकर उभरते हैं.  इस  समय दलितों में कोई नया युवा चेहरा का न होना भी काफी फायदेमंद रहेगा देखना रोचक होगा कीवपने ही हाथो चिराग अपनी किस्मत को मशाल बनाते हैं अथवा दिया बाती चिराग की तरह बस लोकल टिमटिमाते ही रह  जायेंगे .

बुधवार, 9 नवंबर 2022

आप को रोकने के लिए केंद्र सरकार की दिल्ली में MCD चुनावी पैंतरा


आप को रोकने के लिए मोदी सरकार की  दिल्ली में  MCD चुनावी पैंतरा  


अनामी शरण बबल 


नयी दिल्ली.   अब यह साबित हो गया है कि केंद्र की बीजेपी सरकार आप के बढ़ते प्रभाव से आतंकित हैं.  जिस तरह पंजाब में चुनाव जीतकर आपने अपनी ताकत का इजहार किया है वह बीजेपी के लिए खतरे की घंटी है.   हिमाचल प्रदेश और गुजरात में आप के बढ़ते जनाधार को रोकने के लिए अब बीजेपी बेचैन हैं.  बिना किसी तैयारी और पूर्व असीम संभावनाओं के मद्देनजर  चुनाव आयोग ने जिस तेजी के साथ दिल्ली नगर निगम के चुनाव की घोषणा की है, उससे सभी  हैरान रह गये  है.   हिमाचल प्रदेश और गुजरात में आप का भविष्य क्या होगा यह फैसला तो समय के हाथ में है, मगर अभी से यह तय हो गया हैं की तीनो नगर निगम में सत्तारूढ़  बीजेपी  को MCD  में सत्ता का सपना बिखरने वाला हैं


 पंजाब विधानसभा में बीजेपी की शर्मनाक  पराजय तो पहले से ही तय था मगर नयी नवेली आप  यानी आम आदमी पार्टी की शानदार विजय को आज तक लोग पचा नहीं पा रहें हैं.  अकाली दल के घोड़े पर सवार  बीजेपी अकेले अपने बूते कभी चुनाव में नहीं उत्तरी.  NDA  में शामिल अकाली दल बादल  की पालकी धोने में ही बीजेपी संतुष्ट रही.  मगर केवल एक दशक पुरानी  आप ने 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाब में 67/70 सीटे  जीत कर पूरी दुनियाँ को चकित कर दिया. 2020 विधानसभा चुनावे आप की सफलतः बरकरार रही और 63/70 सीटे लाकर  दोबारा सबको अचंभित कर दी.  प्रधानमंत्री का सारा जादुई  गेम दिल्ली में आप और अरविन्द केजरीवाल के सामने परास्त हो गया पंजाब फतह के बाद आप बीजेपी के रास्ते का सबसे बड़ा पत्थर साबित हो रहा हैं खासकर गुजरात में 27 साल से सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए आप सबसे बड़ी चुनौती की तरह उभरी हैं बीजेपी की नाकामियों को सामने रखते हुए अरविन्द केजरीवाल न्र पानी बजली मुफ्त बस यात्रा बेरोजगारी भत्ता और महिलाओ को पेंशन रोजगार का वादा दोहरा रहें हैं  गुजरात के अलग इलाको की समस्याओ को भी 100 दिन में सुलह करने का भरोसा  दिया हैं  आप की घोषणाओं का जनमानस पर गहरा असर पड़ा हैं और ज्यादातर लोग बदलाव की मानसिकता के लिए तैयार हो रहें हैं  आप  की तैयारियों और लोगों के बीच उसके प्रति आकर्षण से बीजेपी खतरा महसूस रही हैं


 खासकर मोरबी के मच्छू  नदी के ऊपर बने हैंगिंग पुल  के मात्र 100 घंटे के भीतर गिरने से बीजेपी स्तबध हैं एक झटके में 150 लोगों की मौत के बाद भी सरकार ने घड़ी मालिकों और जिम्मेदार दोषियों के प्रति दिखाई गयी नरमी से गुजरात हाई कोर्ट ने खुद संज्ञान लेते हुए सरकार को कटघरे और दोषियों को व्यग्र कर दिया हैं अभी बिलकिश  रेप  हत्या मामले में उम्रकैद की सजा काट रहें 11 खद्दर हॉफपैंटी बलात्कारियो को सरकार ने जिस उदारता  से सजा मैग कर छोड़ दी उससे पुरे गुजरात में ज्यादातर लोग सदमे में हैं इससे बीजेपी की नारी विरोधी छवि बनी हैं सरकसरी फैसले के खिलाफ मामला सुप्रीम कोर्ट में हैं और संभव हैं की कोर्ट का फैसला गुजरस्ट बीजेपी सरकार कको शर्मसार कर दें और सारे बलात्कारी फिर से जेल के पीछे नजर आए  बिलकिश और मोरबी पुल कांड से एक बड़ा वर्ग विमुख हुआ हैं  उन सबके के लिए आप एक उम्मीद बनी हैं हालांकि  मैदान में कांग्रेस भी हैं मगर अधूरे मन से प्रचार अभियान को देखते हुए फ़िलहाल मुख्य मुक़ाबला बीजेपी और आप में हैं  हिमाचल प्रदेश में भी आप को लेकर लीग उत्साहित हैं उधर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और केंद्रीय सत्ता में ताक़तवर बने अनुराग ठाकुर की मौजूदगी के बाद भी हिमाचल की जनता बेहाल हैं सेब उत्पादन मे गिरावट  हैं टैक्स की मार  से पहाड़ी इलाके में असंतोष हैं उसपर आप के रियायतों के पिटारे से लोगो की उम्मीदें  जगी हैं खासकर पंजाब में आप की जीत से पहाड़ी मतदाताओं में उत्साह हैं  इस उत्साह पर पानी डालते हुए बीजेपी आप को चोर झूठी पार्टी का तोहमत लगा रही हैं मगर उनकी बातों पर जनता को यकीन नहीं हो रहा हैं

[11/9, 20:18] Anami Sharan Babal: दोनों राज्यों में आप की ताक़त को रोकने के लिए केंद्र ने इस बार चुनावी पैंतरा चला हैं गृह मंत्रालय के अधीन चुनाव आयोग ने एकाएक दिल्ली नगर निगम चुनाव की घोषणा कर दी. चुनाव


 हिमाचल प्रदेश का चुनाव 12  नवंबर को समाप्त हो रहा है जबकि गुजरात में  दिसंबर के पहले सप्ताह में दो और पांच को  चुनाव है.  दोनों राज्यों में चुनाव परिणाम 8 दिसंबर को आएगा. इन तारीखों के बीच में दिल्ली नगर निगम के 250 वार्डो में मतदान चार  दिसंबर को होगा और चुनाव परिणाम 7 दिसंबर को आएगा. दिल्ली नगर निगम के विभाजन से पहले इसके 134 वार्ड होते थे तीन नगर निगम करने के बाद इसके 272, वार्ड हो गये थे जिसे फिर से एक निगम होने के बाद अब निगम को 250 वार्डो वाली दिल्ली का नया चेहरा हो गया हैं .  बीजेपी शासित नगर निगम में इस बार फिर सत्तारूढ़ होना जटिल सा हैं जबकि आप के लिए निगम में सत्तारूढ़ होने की उम्मीद और लहर दोनों हैं.  देखना हैं की चुनावी चाल से चुनावी गणित को तहस नहस करने की उम्मीद के बीच आप बंद मुठी लाख की तरह हैं देखना हैं की दो दो राज्यों में सरकार बना चुकी  आप कोई कमाल भी करती हैं या केवल शोर मचा कर सभी दलों  और नेताओ के रक्तचाप को बढ़ाने वाली साबित होगी ?

शनिवार, 5 नवंबर 2022

अनुक्रम / कोई अपना होता / अनामी शरण बबल

 अनुक्रम / कोई अपना होता 


अपनी बात /  जनता का रिपोर्टर 


अध्याय ( खंड ) -1 /  कोई अपना होता 


1. डीटीसी बस में एक प्रेमकथा 

2. घर पर लड़की बुलाने का ऑफर 

3. बुलंद हौसले वाली दोनों लड़कियों को सलाम 


1.कॉल गर्ल बनाने के लिए उतावला पति  से संघर्ष 

2. जिस्म दलाल ब्यूटी पार्लर आंटी के खिलाफ ऐलान- ए -जंग 


4. प्रेमनगर में सब कुछ हैं प्रेम के सिवा 

5. बसई  ( आगरा ) चादर और साथी का टूटता तिलिस्म 

6. जब वेश्या ने मुझे गर्भवती बता दी 

7. एक कॉल गर्ल के साथ रात में रिक्शे पर सफर 

8. सिनेमा हॉल  में पैसे वाला प्यार 

9.कोठेवाली मौसियों  के बीच मैं उनका बेटा 

10.जब ग्राहक बनकर कमरे में बैठा रहा 

11. रेल वाली छकी बहिन होली से ठिठोली 

12. सेक्स टॉनिक होता हैं ; अंजना संधीर 


अध्याय (खंड )- 2 /  जिनसे पड़ा अपना पाला 


1.   नटवर सिंह से एक अचानक मुलाक़ात 

2. आलोक तोमर की बनी रहेगी हमेशा जरुरत 

3. अटल बिहारी वाजपेयी ने मेरा हिसाब बराबर नहीं किया 

4. चंद्रास्वामी : सत्ता संपत्ति और सौदों का स्वामी 

5. गुलज़ारी लाल नंदा के साथ  पल दो पल 

6. मुलायम सिंह यादव: व्यावहारिकता में भी मुलायम थे नेताजी 

7. रघुवीर सहाय : इस तरह मैं उनके  करीब आया 

8. राजेंद्र अवस्थी : सहज सरल सदा सर्व सुलभ 

9.साहिब सिंह वर्मा : शहरी पार्टी का देहाती चेहरा 

10. मदनलाल खुराना : इस तरह मैं बना उनका चहेता 

11. लाल बिहारी तिवारी : हमेशा रही उनको मुझसे शिकायत 

12. मार्क टली  : मैं अपने दोस्तों का रसिया 

13. विजय गोयल : सफलता की लॉटरी 

14. महेंद्र सिंह धोनी के शहर रांची  से 

15. महेंद्र सिंह टिकैत : उनके साथ ही शांत हो गयी किसानो की आवाज़ 

16. प्रो : प्रताप नारायण के गांधीमय परिवार से मन और नयन का नाता 

17. मोतीराम गोठवाल ; एक पुलिसिया दोस्त ऐसा भी 

18. बलवीर दत्त : -(रांची एक्सप्रेस से देशप्राण तक ) जनता  का एक संपादक 

19. नामवर सिंह : नाम की महिमा  के सिंह 

20. अखौरी प्रमोद : कैमरे से पत्रकारों के पत्रकार 

21.  MLG : यानी रावण के (रांची वाले ) सेनापति अकंपन 



अध्याय ( खंड)-3  / जैसा मैंने देखा 


1.  जब मज़दूर बनकर भारत पाक बॉर्डर पर गया 

2. आतंकवाद के साये से बाहर निकलता पंजाब 

3. दो दो पूजा की एक साथ पूजा -पाठ 

4. कॉलेज के वे मोहक दिन 


और अंत में  / मोबाइल पुराण 








शुक्रवार, 4 नवंबर 2022

जनता का रिपोर्टर. / कोई अपना होता /


: अपनी बात / कोई अपना होता 

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 जनता का रिपोर्टर / अनामी शरण बबल 

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अपने बारे में कुछ भी  कहना सोचना या लिखना सबसे कठिन होता हैं. ख़ासकर एक पत्रकार के लिए तो औऱ भी कठिन होता हैं. पत्रकारिता में भी ख़ासकर रिपोर्टर के लिए जो दूसरों क़ो बेनकाब कर देना ना खाल उतार देना या शब्दों से किसी क़ो बेलिबाद करने में मीडियाकर्मियों क़ो मजा आता हैं. खिचाई करने में उस्ताद पत्रकारों क़ो ही आज सबसे ऊर्जावान तेज तरार औऱ बढ़िया पत्रकार  की तरह देखा और माना भी जाता हैं, मगर जब अपने आप क़ो देखने अपने ऊपर ही कुछ लिखने की बारी आती हैं तो बड़े बड़े पत्रकारों की भी हालत पतली हो जाती हैं. औऱ सच भी तो यही हैं कि अपने मियां मिट्ठू बनना किसी भी रिपोर्टर / पत्रकार क़ो कभी रास भी नहीं आता. 

जो भी लड़का या लड़की जब पत्रकार बनता हैं उसके मन में आम जनता के प्रति एक खास तरह का लगाव सहानुभूति औऱ उसक़ो अन्याय से बचाने  की ललक मन में काम करती हैं.  पत्रकार समाज का एक अघोषित वकील या दबंग समाजसेवी की तरह होता है  जो किसी अन्याय के सामने कभी खामोश नहीं रह पाता. समाज की पहरेदारी  का ऐसा जुनून ही पत्रकार की सबसे बड़ी और पहली खासियत होती है.औऱ इसी जुनून में एक पत्रकार अपनी एक खास छवि औऱ पहचान के लिए लीक से हटकर खतरों या चुनौतियो की परवाह किये बिना भी ( ही ) कुछ अलग विशेष कामकर बैठता है.


 बिहार के औरंगाबाद जिला के देव कस्बे की हालत किसी से छिपी नहीं है. 1984-87 तक दैनिक अख़बार दोपहर बारह बजे के बाद गया से आने वाली बिहार राज्य की सरकारी बस जिसे लोग डाक गाड़ी भी कहते थे , उससे आती थी.100 से भी कम. अखबारों की प्रतियों  की  खपत वाले देव में रोजाना अख़बार दोपहर दो बजे के बाद ही मिलती थी. जब शहरों में अख़बार कूड़े की तरह कोने में डाल दिया जाता है. ऐसे माहौल में पत्रकार बनने के लिए सोचना भी आत्महत्या करने के बराबर ही था मगर कोई  पत्रकार बनता नहीं बल्कि उसके भीतर नाम का केमिकल ही सबसे अलग होता है यह लोचा किसी युवक क़ो आत्मदाह करने के रास्ते की तरफ घसीट लेता है. कुछ नाम का नशा  तो कुछ ओरो से अलग खास दिखने का नशा या ललक के वशीभुत होकर ही पत्रकार बनने का नशा ही जीवन भर भ्रमित रखता है. औऱ  आज साढ़े तीन दशक के बाद यह स्वीकरने के सिवा और कोई चारा भी नहीं है की आज तक पत्रकार बनने के अलावा ना कभी सोचा. सच तो यह हैँ कि आज के मॉडर्न इंडिया  में कोई औऱ काम के लायक भी मैं खुद क़ो अब नहीं पाता या आज़माया ही.  जीना इसी में और खटना खपना भी इसी में, के अलावा मन में कोई और स्वप्न भी नहीं आता. पत्रकार बनना मेरी नियति है या उपलब्धि इस पर कुछ कहना भी मेरे लिए सरल नहीं.  


हालांकि अपनी जन्मभूमि प्रदेश बिहार क़ो ही मैंने सबसे कम देखा और जाना. आज भी मन से मैं बिहारी हूँ. लोग अपनी पहचान छिपाते है मगर मुझे आज भी गर्व है की मैं बिहार का हूँ. मेरा बिहार सोने का बिहार है.  छोटे से कस्बे जिसे देहात भी कहाँ जाय, में रहते हुए ना मैं दबंग था  औऱ ना ही दिलेर.. किसी से बेवजह उलझना मेरी आदत नहीं थी तो सब कुछ खामोश रह के सह जाना भी मंजूर नहीं. कुल मिलाकर डरपोक नहीं था स्पष्ट बोलना  मेरा स्वभाव है. खतरों से खेलना कभी अपन स्वभाव नहीं था मगर सच के लिर किसी को साफ साफ कह देना ही अपना स्वभाव हैं.  


पिछले 35 सालों में नाना प्रकार के अनगिनत लोगों से मिला, सैकड़ों यात्राए की औऱ  सैकड़ों बार प्रत्याशित अप्रत्याशित माहौल परिस्थितियों से दो चार भी हुआ . जिन पर फिर विस्तार से बातें होंगी, मगर मेरी तरह ही लगभग सभी पत्रकारों क़ो कभी पुलिस कभी दबंगो गुंडों से धमकी औऱ मार पीट का सामना करना पड़ा होगा. मगर कलम क़ो दबाने की हर कोशिश बेकार जाती है क्योंकि इन हादसों से कलम औऱ मजबूत निडर      बन जाती है.




 जिनसे पड़ा अपना पाला इस पर कभी कैसे कैसे जाने अनजाने मनमाने लोगो से मुलाक़ात क़ो लिखना भी बड़ी रोचक दस्तावेज बनेगा. मगर मूलतः पत्रकारिता संबंधों का खेल होता है. जिसके संबंध जितना मजबूत होता है वही सफल औऱ बेहतरीन पत्रकार बनता है. मेरे संबंधों की सूची में यदि धुरंधरों की भरमार है तो उससे भी ज्यादा क्लास तीन औऱ चार के ऐसे ऐसे लोग मेरे सूत्र बने और सालोसाल मित्र बने रहें तो उसमें आपसी विश्वास का संबल ही मुख्य रहा. गांव देहात के हर तबके के लोगों की मदद ने मुझे हमेशा आगे रखा. गांव देहात के दर्जनों लोगो ने मेरे लिए किसी रिपोर्टर की तरह मेरे कहने पर इधर उधर जाकर काम किया और मेरे अंध विश्वास क़ो अपने निश्छल योगदान से मेरे विश्वास क़ो हमेशा पुख्ता किया. कुछ पार्षद विधायक तो कुछ सरकारी कर्मचारियों ने ढेरों फ़ाइल मेरे टेबल तक उपलब्ध कराया जिसकी खबर छपने के बाद अनेको घपले घोटाले सामने आ गये.l 


पत्रकारिता के अपने सफर पर कहने के लिए मन में बहुत सारी बातें है, मगर इस किताब के लिए समय इतना कम मिला हाथ में था की दर्जन भर संस्मरण तो मैं लिखें ही नहीं  सका  ख़ासकर बच्चे  के लिए बच्चों की हत्या या  करने वाले पंडितो ओघड़ो पर की गयी खोजपरक  रिपोर्ट.  पश्चिमी  यूपी में माफियाओ पर की गयी खोजबीन पर फिर से काम की जरुरत है क्योंकि लगभग दो दशक के बाद माफियाओ का आतंक पूरे उतर भारत में चल रहा है. ख़ासकर मोबाइल ने अपराध क़ो भी मोबाइल बना  दिया. संचार क्रांति युग में मोबाइल और सीसी टीवी  कैमरा ने अपराध और अपराधियों क़ो भी डिजिटल बना दिया हैँ

कुछ बातें अब किताब पर भी कर लें  इस किताब में मेरी पत्रकारिता की आंशिक झलक हैँ मैंने बड़े यानी नेताओं नौकशाहो की खबर देने की बजाय सामान्य जन क़ो हमेशा प्रमुखता दी  मैंने खुद क़ो हीआज तक  जनता का रिपोर्टर माना हैँ  जिसकी कोई खबर नहीं लेता वही मेरा नायक होता हैँ  बहरहाल पहला खंड कोई अपना होता हैँ. जिसमें देश की वेश्याओं कॉल गर्ल ज़बरन धंधे की शिकार बनी मासूम लड़कियो की कहानी हैँ जिनसे जानें अनजाने मनमाने  तरीको से टकरा गया इन लड़कियो से हुई बातचीत क़ो ही शब्दश : रखने की कोशिश की हैँ. पहली मुलाक़ात अपने गृह जिला  औरंगाबाद की हैँ जहाँ पर मैं देखते ही देखते कोठेवाली मौसियों का बेटा बन गया. आगरा के बसई गांव के कोठे पर जाना मेरे लिए लगभग असंभव था. दो बार पुलिस चौकी से ही कैमरा टूटवा कर बैरंग वापस आना पड़ा. आगरा के दर्जनों युवा  नेताओं क़ो मित्र बनाकर भी मुगलकालीन ऐतिहासिक वेश्यालय बसई क़ो देखना मुमकिन नहीं हो रहा था. मगर भला हो की सहारनपुर के एसएसपी  BL यादव  की जिनसे अपनी  दोस्ती का बेहतरीन रिश्ता था और वे DIG बन कर आगरा आ गये तब कहीं जाकर बसई जानें का सपना साकार हुआ. दिल्ली में वेश्याओं के गांव प्रेमनगर में दर्जनों बार जाना हुआ या एक कॉल गर्ल के साथ रात में रिक्शे पर सफऱ से लेकर रीगल सिनेमा के बाहर  एक पेशेवर धंधे वाली से टकरा गया तब जाकर सिनेमाहाल में चंद रूपये में साथ साथ सिनेमा देखने के नाम पर बाह्य सुख  या पैसे वाला प्यार क़ो जाना. दिल्ली के विख्यात GB रोड  के कोठे पर जानें की मेरे मन में बड़ी लालसा थी  उनके जीवन क़ो जानने की लालसा यकायक पूरी हुई इसकी कहानी भी दिलचस्प है.  देह धंधा के माफियाओ से  Takkar लेती दो लड़कियो की कहानी भी इस भरोसे क़ो संबल देती हैँ की पैसे की चमक दमक से सब लोग मोहित नहीं होते एक पत्रकार के रुप में तो इनसे मिला मगर एक ग्राहक की तरह इनके हाव भाव देखने की ललक के अभिभूत होकर एक मित्र के साथ  जीबी रोड गया तो  मेरे द्वारा चयनित लड़की मेरी उदासीनता और बातचीत के लिए इच्छुक होने पर बीच में ही मुझे छोड़ उलाहने के साथ रोती हुई कमरे से 

बाहर चली गयी.  


जिनसे पड़ा अपना पाला में ढेरों लोगों से मिलने का मौका मिला उन खट्टी मीठी मुलाकातों तकरारो झड़पो और कभी नखरे नजाकतो के बीच दर्जन भर लोगों की कहानी हैँ तो जैसा मैंने देखा में दो रिपोर्टिंग का उल्लेख करूंगा जब बीकानेर में मजदूर बनकर पाक भारत बोर्डर पर गया  यह तो मेरा सौभाग्य था कि बोर्डर पर मैनेजर बिहार का था और झूठ बोल कर किसी तरह वापस लौटा. तो आतंकवाद से लगभग 12 साल तक लहूलुहान पंजाब में,1992 में लोकतंत्र की नींव पड़ी और विधानसभा चुनाव के बाद  बेअंत सिंह की सरकार बनी  सरकार के एक साल पूरा होने पर कितना बदला पंजाब का जायजा लेने चंडीगढ़ गया तो वह दौरा भी  30 साल के बाद भी आतंकवाद से बाहर निकलते पंजाब की एक रोचक दास्तान की तरह हैँ. हालांकि समय इतना कम था की मेनका गाँधी  समेत कई घटनाओं क़ो लिख ही नहीं पाया. अलबत्ता अपने कॉलेज लाइफ की एकसाल की मोहकता क़ो जरूर दे रहा हूँ  वही  पूजा बेदी और पूजा भट्ट के साथ 1992 में एक साथ एक ही कमरे में हुई  बातचीत का मजा तो पढ़कर ही लिया जा सकता हैँ   वही मोबाइल से मोहित दीवानी दुनियां की दीवानगी पर छोटी छोटी कोई 20-22 कविताओं का मोबाइल पुराण देने का लोभ छोड़ नहीं पाया. शायद मोबाइल के अनेको फेस क़ो चरितार्थ करती ये कविताएं आज भी मोबाइल पर लिखी गयी शुरूआती कविताओj में एक हैँ   कुल मिलाकर मेरे लंबे काम धाम की यह महज़ झांकी हैँ . दो तीन किताब तो और बन ही सकती हैँ




[


और अंत  में इस किताब के लिए किसी के प्रति भी आभार जताना शायद सबसे  खतरनाक होगा, क्योंकि मेरे सर पर इतने लोगो का हाथ है की किसी एक क़ो भी भूल जाना उनके प्रति अन्याय होगा. तो सबसे बचने के लिए यही सरल रास्ता होगा कि मेरे सभी अपनों या चाहने वालों  क़ो यह किताब समर्पित है. इस पर सबका हक़ है. इसके बावजूद अपने भाई की तरह प्रिय शंकर के प्रति आभार जताना जरूरी है. उसने जबरन मुझसे एक सप्ताह में इस किताब क़ो तैयार करवा क़र ही दम  लिया. उसके बगैर शायद इस किताब का आना मुमकिन ही नहीं था.या होता. विषधर शंकर के प्रति आभार जताना  महज़ केवल औपचारिकता भर हैँ जबकि उसका काम श्रम लगन और ललक इससे कहीं ज्यादा मूल्यवान हैँ  


अनामी शरण बबल 

2A  / पॉकेट -1 आस्था अपार्टमेंट 

न्यू कोंडली DDA MIG   फ्लैट 

मयूर विहार फेज -3 दिल्ली- 110096

08076124377




बुधवार, 2 नवंबर 2022

अच्छा इंसान

 एक 6 वर्ष का लडका अपनी 4 वर्ष की छोटी बहन के साथ बाजार से जा रहा था।

अचानक से उसे लगा की,उसकी बहन पीछे रह गयी है।

वह रुका, पीछे मुडकर देखा तो जाना कि, उसकी बहन एक खिलौने के दुकान के सामने खडी कोई चीज निहार रही है।

लडका पीछे आता है और बहन से पुछता है, "कुछ चाहिये तुम्हे ?" लडकी एक गुड़िया की तरफ उंगली उठाकर दिखाती है।

बच्चा उसका हाथ पकडता है, एक जिम्मेदार बडे भाई की तरह अपनी बहन को वह गुड़िया देता है। बहन बहुत खुश हो गयी है।

दुकानदार यह सब देख रहा था, बच्चे का व्यवहार देखकर आश्चर्यचकित भी हुआ ....

अब वह बच्चा बहन के साथ काउंटर पर आया और दुकानदार से पुछा, "सर, कितनी कीमत है इस गुड़िया की ?"

दुकानदार एक शांत व्यक्ती है, उसने जीवन के कई उतार चढाव देखे होते है। उन्होने बडे प्यार और अपनत्व से बच्चे से पुछा, "बताओ बेटे, आप क्या दे सकते हो?"

बच्चा अपनी जेब से वो सारी सीपें बाहर निकालकर दुकानदार को देता है जो उसने थोडी देर पहले बहन के साथ समुंदर किनारे से चुन चुन कर लायी थी।

दुकानदार वो सब लेकर युं गिनता है जैसे पैसे गिन रहा हो।

सीपें गिनकर वो बच्चे की तरफ देखने लगा तो बच्चा बोला,"सर कुछ कम है क्या?"

दुकानदार :-" नही नही, ये तो इस गुड़िया की कीमत से ज्यादा है, ज्यादा मै वापिस देता हूं" यह कहकर उसने 4 सीपें रख ली और बाकी की बच्चे को वापिस दे दी।

बच्चा बडी खुशी से वो सीपें जेब मे रखकर बहन को साथ लेकर चला गया।

यह सब उस दुकान का नौकर देख रहा था, उसने आश्चर्य से मालिक से पुछा, " मालिक ! इतनी महंगी गुड़िया आपने केवल 4 सिपों के बदले मे दे दी ?"

दुकानदार हंसते हुये बोला,

"हमारे लिये ये केवल सीप है पर उस 6साल के बच्चे के लिये अतिशय मूल्यवान है। और अब इस उम्र मे वो नही जानता की पैसे क्या होते है ?

पर जब वह बडा होगा ना...

और जब उसे याद आयेगा कि उसने सिपों के बदले बहन को गुड़िया खरीदकर दी थी, तब ऊसे मेरी याद जरुर आयेगी, वह सोचेगा कि,,,,,,

"यह विश्व कुछ अच्छे मनुष्यों की वजह से बचा हुआ है।"

यही बात उसके अंदर सकारात्मक दृष्टीकोण बढाने मे मदद करेगी और वो भी अच्छा इंन्सान बनने के लिये प्रेरित होगा।।

मंगलवार, 1 नवंबर 2022

क्रिकेटर से ड्रेस डिज़ाइन तक का सफर अंकित हो / अनामी शरण बबल

 

क्रिकेटर से ड्रेस डिज़ाइन तक का सफर अंकित हो 


आप हैं अंकित गुप्ता.  लाजपतनगर मार्किट के रूप मंदिर शो रूम को यदि क्रिकेट मंदिर भी कहा जाय तो कोई अंतर नहीं पड़ता अंकित गुप्ता 2000-2009 तक अंडर 15  और अंडर - 17 सहित ढेरों लीग मैच क्लब मैच और अंतरराजकीय क्रिकेट खेला बतौर विकेटकीपर अंकित अपनी पहचान का सिक्का चला और जमा रहें थे.

 पिछले तीन माह के दौरान अपनी बेटी की शादी की खरीददारी के मामले में 5-6 दफा  मार्किट जाना पड़ा.  उसी सिलसिले में रूप मंदिर  में भी गया. सीढ़ियों पर चढ़ते हुए  फोटो पर नज़र पड़ी तो  चौंक  सा गया ऋषभ पंत कुलदीप यादव पृथ्वी शा अमित मिश्रा हार्दिक पंड्या रविंद्र अश्विन मुनाफ.पटेल सहित वेस्ट इंडीज और श्री लंका से  भी चंद खिलाड़ियोंके संग अंकित की तस्वीर देख मैं विस्मित हुआ  आशीष नेहरा सहित श्रीलंका और अन्य खिलाड़ियों के बारे में अंकितने बताया की 2009 में  गिर जाने से पाँव में दिक़्क़त आ गयी और क्रिकेट से अपना नाता टूट गया 

ठहाका लगते हुए अंकित ने बताया की उस समय सभी नए थे मगर इलाज के लिए दर्जनों दोस्त खड़े थे और सारा खर्च भी उठाने को तैयार थे मगर चोट से उबरने के बाद भी मैदान मेरे लिए संभव नहीं था. 

 बकौल  अंकित क्रिकेट से नाता टुटा मगर सारे खिलाड़ियों का आज भी मैं दोस्त हूँ मास्क पहन कर तो आज भी बिना बताये  क्रिकेटर रूप मंदिर में आते रहते हैं एक वाक्य अंकित ने बताया की हरभजन सिंह की शादी की पार्टी दिल्ली में थी और मुनाफ पटेल अपना कोर नहीं लाये तब नेहराका फोन आया की भाई ये दिक़्क़त हैं   ज़हीर  खान सहित पटेल सुबह सुबह रूप मंदिर आ धमके तो देखते देखते सभी खिलाड़ियों को कोट सिलने का मन कर गया  और चंद घंटो में अंकित को सूट तैयार करना  पड़ा और शाम को सारे खिलाड़ियों को ट्रायल के लिए रूप मंदिर में फिर आना पड़ा.  

कई दौर की बातचीत के बाद मैं कल रविवार को फिर क्रिकेटर से ड्रेस डिज़ाइनर बने अंकित के सामने था. अभी बातचीत हो ही रही थी की एकाएक  शोरूम में  आने वाली एक महिला को देखते ही अंकित पांच चाय कहते कहते ऊपर जा पहुंचे.  अंकित की हड़बड़ी से मैं भी  उतावला हो गया ऊपर जाकर पता चला की आने वाली महिला आशीष नेहरा की छोटी बहन थी.   अंकित ने बताया की दोस्तों का ऐसा प्यार हैं की मेरे पास आए बिना उनलोग का भी मन नहीं भरता   जितनी फोटो  दीवारों पर टंगी  हैं उससे ज्यादा फोटो अल्बम में हैं मगर व्यस्त अंकित को पांच मिनट के लिए भी बैठाकर  बात करना संभव नहीं.  यदा कदा  और यकायक कब कौन क्रिकेटर रूप मंदिर में आ धमके यह केवल अंकित को ही पता रहता हैं.

 1979 से स्थापित रूप मंदिर  को पिछले 10 साल से क्रिकेटर मंदिर की तरह भी जानते हैं वही सुई धागे के बीच व्यस्त अंकित के मन में मैदान से बाहर होने और क्रिकेटर बनने का सपना भले ही अधूरा रह गया हो मगर आज और कल के सैकड़ो युवा और उभरते क्रिकेटरों ने जो मान सम्मान अपनापन प्यार सत्कार और आदर आज तक  दर दें रहें हैं कि अब अंकित को  मैदान से बाहर होने का सारा मलाल मिट गया.  अंकित का कहना हैं  रूप मंदिर का मैं स्वामी होकर भी बतौर क्रिकेटर अब अपने क्रिकेटर दोस्तों के बीच आज भी क्रिकेटर ही हूँ. 


बुधवार, 15 जून 2022

संयुक्त राष्ट्र महासभा और हिंदी

 संयुक्त राष्ट्र महासभा की ओर से बहुभाषावाद पर भारत के प्रस्ताव को पारित किया गया है। संयुक्त राष्ट्र ने अपनी भाषाओं में हिन्दी को शामिल कर लिया है। प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के कामकाज में हिन्दी व अन्य भाषाओं को भी बढ़ावा देने का पहली बार जिक्र किया गया है। आइए जानते हैं इसके क्या मायने हैं और भारत के लिए यह कितनी बड़ी सफलता है?



पहले जान लें UNGA आधिकारिक भाषाएं :


संयुक्त राष्ट्र महासभा की छह आधिकारिक भाषाएं हैं। इनमें अरबी, चीनी (मैंडरिन), अंग्रेजी, फ्रेंच, रूसी और स्पेनिश शामिल हैं। इसके अलावा अंग्रेजी और फ्रेंच संयुक्त राष्ट्र सचिवालय की कामकामी भाषाएं हैं। लेकिन अब इनमें हिन्दी को भी शामिल किया गया है। इसका साफ मतलब यह है कि संयुक्त राष्ट्र के कामकाज, उसके उद्दश्यों की जानकारी यूएन की वेबसाइट पर अब हिन्दी में भी उपलब्ध होगी।


हिन्दी के लिए भारत ने दिए थे आठ लाख अमेरिकी डॉलर :

हिन्दी को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार लंबे समय से प्रयास कर रही है। कई हिन्दी सम्मेलनों में संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी को आधिकारिक मान्यता दिलाने की मांग उठ चुकी है। इन सबके बीच पिछले महीने ही भारत सरकार की ओर से संयुक्त राष्ट्र में हिन्दी भाषा के उपयोग को बढ़ावा देन के लिए आठ लाख अमेरिकी डॉलर का सहयोग दिया गया था। भारत के स्थायीय मिशन की ओर से ट्वीट कर इसकी जानकारी दी गई थी।


क्या है ‘हिन्दी @ यूएन’ ? :

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने बताया कि यूएन में हिन्दी को बढ़ावा के लिए 2018 में ‘हिन्दी @ यूएन’ परियोजना आरंभ की गई थी। इसका उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र की सार्वजनिक सूचनाएं हिन्दी में देने को बढ़ावा देना और दुनियाभर के करोड़ों हिन्दी भाषी लोगों के बीच वैश्विक मुद्दों के बारे में अधिक जागरूकता लाना है। मिशन के तहत भारत 2018 से यूएन के वैश्विक संचार विभाग (डीजीसी) के साथ साझेदारी कर रहा है। यूएन के समाचार और मल्टीमीडिया सामग्री को हिन्दी में प्रसारित करने व मुख्यधारा में लाने के लिए अतिरिक्त राशि दे रहा है।

गुरुवार, 12 मई 2022

सतगुरु प्यारे ने गिराया, काल कराला हो

 **राधास्वामी!! -                        

   04-08-2021-आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                      

     सतगुरु प्यारे ने गिराया, काल कराला हो।।टेक।।                                                         सुन सुन महिमा सतसँग केरी। दरशन कर हुई चरनन चेरी। गुरु लीन सम्हाला हो।१।                                                                    नाद की महिमा गुरु मोहि सुनाई। जस उतपति हुई सब गाई। लखा गुरु देश निराला हो।२।                                                         ता के नीचे काल पसारा। माया ब्रह्म और तिरगुन धारा। सब रचना दुख साला हो।३।                                                            गुरु ने निकसन जुगत बताई। शब्द भेद दे सुरत लगाई। लखा जोत जमाला हो।४।                                             त्रिकुटी होय गई दस द्वारे। भँवरगुफा सतलोक निहारे। मिले पुरुष दयाला हो।५।                                                      काल बिघन गुरु दूर कराये। मन माया भी रहे मुरझाये। गुरु कीन निहाला हो।६।                                                                      पुरुष दया कर अंग लगाई। बल अपना दे अधर चढाई। जहाँ राधास्वामी तेज जलाला हो।७।।                   (प्रेमबानी-3-शब्द-22-पृ.सं.119,120)                                                                                                                                                                                                                                                🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

[8/4, 06:06] +91 94500 70604: 🌻🍁🙏🏻 *राधास्वामी* 🙏🏻🍁🌻      सतसंग परिवार के सभी प्रिय सदस्यों को        *" _हार्दिक राधास्वामी_ "*  *कुल मालिक हुज़ूर राधास्वामी दयाल की दया व मेहर का हाथ सदैव हमारे परिवार पर बना रहे।  🙏राधास्वामी* 🙏                                   💐🌻🍃🌻🍃🌻🌻🍃💐

[8/4, 12:55] +91 97176 60451: राधास्वामी!! -                            04-08-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                                       राधास्वामी मेरी सुनो पुकारा। घट प्रीति बढ़ाओ सारा।१।••••••                                                                              नित नित भरमन में भरमाई। सत्संग बचन न चित्त समाई।९।                                       कुमति अधीन हुआ अब यह मन। कौन सुधारे इसको गुरु बिन।१०।                                याते करूँ प्रकार पुकारी। हे राधास्वामी मोहि लेव सम्हारी।११।                                       दीन अधीन पड़ी तुम द्वारे। तुम बिन अब मोहि कौन सुधारे।१२।                             चरन बिना नहिं ठौर ठिकाना। जैसे काग जहाज़ निमाना।१३।                                     तुम बिन और न कोई आसर। राधास्वामी २ गाँऊ निस बासर।१४।                                                                                               अब तो लाज तुम्हे है मेरी। सरन पड़ी होय चरनन चेरी।१५।                               राधास्वामी पति और पिता दयाला। अपनी मेहर से करो निहाला।१६।                                                                      (प्रेमबानी-1- शब्द- 9 -पृ.सं.,118, 119 )                                                                                                                                                                              🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

रिश्ते ही रिश्ते वाले प्रो.. अरोड़ा / अनामी शरण बबल

 वाह प्रो. अरोड़ा 🙏🏿. 1984 में जब पहली बार मैं दिल्ली के  लिए चला तो कालका मेल के साथ सफर  आरंभ किया औऱ मुग़ल सराय में सुबह हो गयी. इसके बाद शाम होते होटे टूंडला स्टेशन  पार किया. यूपी के न जाने कितने स्टेशन गांव देहात शहर से रेल गुजरती रही मग़र रेल पटरियों के करीब के दीवारों पर केवल एक ही  विज्ञापन लिखा देखा. रिश्ते  ही रिश्ते  प्रो. अरोड़ा 28 रैगर पूरा delhi 110055 रेल में बैठा मैं बिस्मित प्रो अरोड़ा की प्रचार शैली पर मुग्ध था.


 पहली बार दिल्ली आ रहा था मगर दिल्ली आने से पहले ही मेरे लिए एक हीरो की तरह प्रो. अरोड़ा का उदय हो चुका था. दिल्ली में बैठे एक आदमी की ताक़त औऱ काम के फैलाव क़ो लेकर मैं अचंभित सा था. उस समय मेरी उम्र 19 साल की थी लिहाज़ा समझ से अधिक उमंग  उत्साह भरा था. प्रो अरोड़ा औऱ विवाह का यह स्टाइल दोनों मेरे लिए नये थे. प्रो. अरोड़ा से मिलने  इंटरव्यू करने की चाहत मन में जगी थी मगर पहली बार दिल्ली जाने औऱ उसके भूगोल से अनजान  मैं इस चाहत क़ो मन में ही दबा सा दिया,


अलबत्ता मेरे दिमाग़ पर प्रो. अरोड़ा छा  गये थे. राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग़ के करोलबाग़ ब्रांच का सतसंग हॉल के ऊपर वाले गेस्ट रूम मेरा पहला पड़ाव बना था. अगले दिन सुबह सुबह दिल्ली का मेरा दोस्त अखिल अनूप / अब ( अनूप शुक्ला ) भगवान दास मोरवाल के साथ मिलने आ गया.


 उल्लेखनीय है कि करीब 30-32'साल के बाद पालम गांव के अपने घर पर मोरवाल जी ने बताया कि अखिल के साथ मैं ही मिलने करोलबाग़ आया था.  यह सुनकर मैं खुश भी हुआ औऱ अफ़सोस  भी यह हुआ कि उस समय मैं मोरवाल जी क़ो जानता भी नहीं था.


 हा तो मैं करोलबाग़ के 28  के एकदम पास मे ही टिका था तो यह जानते ही दोपहर के बाद अपने पड़ोसी प्रो.  अरोड़ा के घर के बाहर  काल बेल बजा कर खड़ा था. घर सामान्य सा ही था तभी दरवाजा खुला औऱ एक अधेड़ सा आदमी ने दरवाजा खोला. नमस्कार उपरांत मैंने कहा  मैं अनामी शरण  बबल  पत्रकार, देव औरंगाबाद बिहार से आया हूँ.. दो दिन पहले ही पहली बार दिल्ली आया औऱ मुगलसराय के बाद से लेकर दिल्ली तक दीवारों पर लिखें आपके विज्ञापनो क़ो देखते देखते आपसे मिलने कि चाहत हुई.


मेरी बातों क़ो सुनकर वे  खिलखिला कर हंस पड़े औऱ तुरंत मुझे अंदर आने के लिए कहते हुए रास्ता छोड़ दी. विदेशो में भी शादी कराने का दावा करने वाले प्रो. अरोड़ा  ने बताया कि इनके माध्यम से विवाहित  कुछ जोड़े विदेशो में भी है औऱ उनकी मदद से ही कुछ विदेशी जोड़ो कि भी शादियां हुई है लिहाज़ा विज्ञापन कि शब्दावली में विदेश भी जुड़ गया.


सहज सरल मीठे स्वभाव के प्रो. अरोड़ा से कोई एक घंटे तक बात की इस दौरान उन्होंने चाय औऱ नाश्ता भी कराया.  मैंने उनसे कहा भी की ट्रेन यात्रा के  दौरान आप मेरे दिमाग़ पर हीरो की तरह छा गये थे मगर आपसे मेरी मुलाक़ात होगी यह सोचा नहीं था. मेरी बातें सुनकर वे खुश होते मुस्कुराते सहज भाव से अपने बारे में बताते.  मैं विज्ञापनो के इस राजकुमार प्रो अरोड़ा की सरलता पर चकित था दिल्ली से बिहार लौटने के बाद प्रो. अरोड़ा  के इंटरव्यू क़ो कई अखबारों में छपवाया. ढेरों लोगों क़ो प्रो. अरोड़ा के बारे में बताया. प्रो. अरोड़ा  के पास सारे कतरन भेजा. कई पत्रचार भी हुए औऱ अक्सर धन्यवाद ज्ञापन के पत्र मेरे पास आए, जिसमें दिल्ली आने पर मिलने के लिए वे जरूर लिखते थे.

  जुलाई 1987  से तो मैं दिल्ली में ही आ गया औऱ 1990  से दिल्ली का ही होकर दिल्लीवासी या डेल हाईट हो गया.  मगर प्रो. अरोड़ा से फिर कभी मिल नहीं सका.  विवेक जी आपने प्रो. अरोड़ा पर लिख कर दिल्ली की पहली यात्रा के साथ साथ उनसे हुई 37 साल पहले की मोहक यादों क़ो जिंदा कर दिया  बहुत सुंदर लिखा है आपने औऱ कमैंट्स लिखने के बहाने मैंने भी प्रो. अरोड़ा पर  पूरा रामायण अंकित कर दी.  वाह शुक्ला जी गज़ब ✌🏼👌👍🏼

शनिवार, 26 मार्च 2022

Ap सा कोई नहीं / अनामी शरण बबल

 औरंगाबाद वाले अखौरी प्रमोद का रांची ( JK) संस्करण  / अनामी शरण बबल


साथ साथ लेखमाला लिखने की इस कोशिश में इसबार मैं एक ऐसे व्यक्ति पर कुछ लिखने का प्रयास कर रहा हूँ जिसके सामने मैं आज भी एक स्टूडेंट की तरह ही हूँ. जब भी और जहाँ कहीं भी इनकी चर्चा होती हैं तो इनका चेहरा मेरी आँखों के सामने घूमने लगता हैं. बिहार के देव जिला औरंगाबाद  से आकर दिल्ली में सक्रिय होकर आबाद हुए 35  साल (1987-2022) हो गये हैं, और इस दौरान  अनगिनत लोगों से मिला उन्ही लोगों में कुछ पर लिखने की यह पहल हो रही 


: ख़ासकर अपनों या लंबे समय से परिचित करीबियों के प्रति कुछ भी लिखना सबसे कठिन होता हैं. बातों और यादों का सिलसिला भी इतना बड़ा होता हैं की  क्या लिखें क्या छोड़ दे या लिखने के क्रम में क्या छूट गया या (जाय )  इसका खतरा हमेशा बना रहता हैं. मैं इस बार अपने युवकाल  कहे  या अपनी पहचान के लिए जूझ रहा था उस समय के एक व्यक्ति पर शब्दों का घरौंदा बना रहा हूँ जहाँ पर मैं कुछ नहीं था. मैं मूलतः औरंगाबाद जिले के  धार्मिक कस्बे के रुप में बिख्यात देव का रहने वाला था. मगर कथाक्षेत्र जिला मुख्यालय औरंगाबाद हैं. बात मैं जिला के विख्यात फोटोग्राफर अखौरी प्रमोद की कर रहा हूँ जो मूलतः एक सरकारी नौकरी में रहते हुए भी सबके लिए सर्वविदित सर्व विख्यात सर्व सुलभ और सर्वत्र मुस्कान के संग उपलब्ध पाए जाते थे. समय के पक्के उस्ताद अखौरी प्रमोद क़ो ज्यादातर लोग जानते थे, मगर वे एक सरकारी नौकरी भी करते हैं इसकी जानकारी सबो क़ो शायद नहीं थी. मोबाइल का जमाना नहीं होने के बावजूद छायालोक स्टूडियो तक कोई खबर पंहुचा देने के बाद शायद ही कभी ऐसा होता होगा की समय पर AP ना पहुंचें हो कभी. साफ कर दू की उस समय अखौरी प्रमोद जी क़ो लोग AP का सम्बोधन देने की हिममत नहीं करते थे. AP तो दूर की बात जी लगाए बगैर शायद ही कोई होता हो जो केवल  अखौरी प्रमोद कहता हो. दूसरों क़ो Ap ने  शायद ही कभी तू तडाक या गरम लहज़े में बात की होगी . शायद इसी का प्रतिफल था कि ज़िलें में शासन प्रशासन नेता नौकरशाह से लेकर ढेरों लड़कियां सहित हर तरह के लोगों के बीच AP खासे सर्वप्रिय थे.आदर के पात्र भी. 


 औरंगाबाद से मेरा नाता भी अजीब हैं. मेरे पापा सहित दो दो चाचा का ससुराल भी धरनी धर  रोड  औरंगाबाद में हैं यानी यह शहर ही मेरे लिए मेरा ननिहाल (था ) हैं

 मैं अपनी मौसियों से कहता भी था की औरंगाबाद का हर लड़का मेरा मामा और लड़की मेरी मौसी हैं.

खैर छायालोक वाले मोहन मामा क़ो जानता था और ढेरों से अपने परिचय के सूत्रधार दिवंगत प्रदीप कुमार रोशन भी रहें हैं जो खुद बहुत बडे शायर थे


बात कोई 1983- 84 की रही होगी जब मैं  लेखक या पत्रकार नहीं था. कुछ लिखने का ककहरा  सीख रहा था और मन में अपार ऊर्जा  उमंग हिलोरे मार रहा था.  पढ़ाई में भी इतना बुरा नहीं था  अगर  सरकारी नौकरी की ललक होती तो  कहीं न कहीं सेट कर ही लेता या हो जाता, मगर अखबार में नाम का ऐसा खुमार था कि मैं इसी में पगलाया हुआ था. खैर पागलपन से ही कुछ पाया भी जा सकता हैं  मैं AP से कैसे कब किस और किसके संग परिचित हुआ यह तो याद नहीं हैं मगर जब एक दूसरे क़ो जानने लगा तो कब किस तरह और कितना घुल मिल गया इसकी याद भी गज़ब की हैं. उभरता हुआ पत्रकार कहे या नवसिखुआ इस अंतर पर खुद कहना  अजीब लगता हैं  कोई खास पहचान साहस पहचान परिचय और सलीका नहीं होने के बाद भी AP हर कदम पर मेरे साथ नजर आते ( रहते ) थे.


i: बात उन दिनों की हैं जब देव की क्या बिसात पूरे औरंगाबाद  जिले में ही पत्रकारों का घोर अकाल था. कहने क़ो तो कुछ वकील पत्रकार थे, मगर काले लिबास वाले झूठ के कारोबारी वकील नुमा पत्रकारों से मिलने की मन में कभी इच्छा नहीं हु, और मैं स्वनाम धन्य  पत्रकात वकीलों से कभी नहीं मिला. जब कभी भी काले कपडे वाले वकील से अधिक पत्रकारों की चर्चा होती तो  लोग इतनी शालीनता विनम्रता और आदर से नाम लेते मानो ऐसा नहीं करना भी कोई अपराध हो. हालांकि मैं भी नौ सिखुआ ही था मगर दूसरों की शर्तो अपनी  लक्ष्मण रेखा क़ो बदलना कभी गवारा नहीं होता.  हाँ तो 1983-86 तक कहने दिखने दिखाने के लिए केवल एक ही पत्रकार थे. औरंगाबाद बाजार में पोस्ट ऑफिस के निकट विमला मेडिकल स्टोर के मालिक कहे या दवाई विक्रेता विमल कुमार..


जी हाँ दिन भर दवाई बेचते बेचते  कभी कभार कोई रिपोर्ट भी लिख कर गाड़ी से पटना भेज देते थे. खबरों के लिए भटकने की बजाय विमल जी केवल उन्ही खबरों क़ो न्यूज़ की तरह भेजते थे जो उनकी दुकान तक आ जाय. यानी स्वार्थ रहित पत्रकार  विमल में सरकारी लाभ और रुतबे का गुमान नहीं था इस कारण सरकारी PRO क़ो भी प्रेस रिलीज़ विमल जी के दुकान तक पहुंचानी पड़ती  थी. यही रुतबा और मान विमल जी क़ो पत्रकारिता से जोड़े हुए था. और NBT जैसे अख़बार क़ो भी पत्रकारों से अकालग्रस्त जिला औरंगाबाद में विमल जैसे दुर्लभ पत्रकार ही मिल पाया. बिना किसी लाग लपेट के विमल जी से सीधे मिलकर अपना परिचय दिया तो वे काफ़ी खुश हुए कुछ खबर लाकर ( लिखकर ) देने का उन्होंने सुझाव दिया. तो दर्जनों खबर लिखकर विमल जी क़ो देने लगा या उनके पास उपलब्ध न्यूज़ क़ो ही दुकान में बैठे बैठे ही लिखने की चेष्टा करता  जिसके लिए विमल जी मेरे प्रति हमेशा स्नेह रखते थे. उधर मैं अपनी लिखी खबरों क़ो प्रिंट देख कर खुश होता की मुफ्त में न्यूज़ लिखने की आदत से तो हाथ मंज रहा था.


 ये तो विमल विनोद कथा के बहाने मीडिया के प्रति अपने मस्का चस्का क़ो माप रहा था, मगर अघोषित तौर पर जिले में एक और पत्रकार छायाकार थे जो स्कूटी पर होकर सवार होकर ज्यादातर या यों कहे कि सभी आयोजनों में फोटो खींचते अधिकारियो से मिलते जुलते रहते थे.  वे सक्रिय पत्रकार छायाकार हैं भी या नहीं यह तो बाद की बात हैं मगर औरंगाबाद में कोई भी राजनैतिक सामाजिक  प्रशास.निक  धार्मिक कार्यक्रम हो या कोई आंदोलन जलसा जुलुस  दंगा या बंदी हो तो जनाब छायाकार पत्रकार के रुप में हरदम हमेशा या सर्वत्र सुलभ उपलब्ध होंगे ही होंगे. बात अखौरी प्रमोद की हो रही हैं जो ( यह बाद में ज्ञात हुआ ) एक सरकारी विभाग में कार्यरत होने के बावजूद घर दफ्तर बाजार और घटनास्थलो पर वे कैसे और किस तरह मौजूद रहते या हो जाते थे 


पत्रकारिता के जोश जुनून और ताप के (चलते) साथ साथमैं भी हवा कि तरह हर जगह पहुंचने की कोशिश करता. 1987 में जिला औरंगाबाद के दरमियाँ और दलेलचक बघौरा नरसंहार की सुबह सुबह पता चलते ही मैं  कोई 10-11 बजे तक घटनास्थल पर जा पहुंचा जहाँ पर मुझसे भी पहले श्रीमान छायाकार अखौरी प्रमोद दे दनादन फोटो खींचने में मुस्तैद थे . AP जी क़ो देखते ही मेरा हौसला परवान  पर होता और मैं उनके पास क्या पहुंचा की सारा प्रशासन पुलिस का दल बल के बीच  मनमाने ढंग से काम करने की आज़ादी मिल जाती थी  सबसे पहले पहल एक छायाकार की तरह अखौरी प्रमोद होते तो पत्रकार के रुप में मेरी उपस्थिति होती थी. अमूमन होता यह था की दोपहर के बाद जब मैं उनके साथ औरंगाबाद लौटने  की तैयारी करता तब तक पटना या गया के दर्जनों पत्रकार और छायाकार मौके पर आ धमकते  तब live फोटो के लिए राजधानी के धुरंधर छायाकार भी इनके पीछे लग जाते थे.  कभी कभार तो वे लोग के आने से पहले यदि AP औरंगाबाद निकल गये तो ढेरों पत्रकार छायाकार इनसे फोटो के लिए इनके घर या छायालोक स्टूडियो में करबद्ध  हो जाते.


सबसे कमाल तो यह होता की अपने छायाकार सहोदरो  क़ो  देख कर अखौरी प्रमोद बिना बाइलाइन के प्रेशर के दुर्लभ फोटो सहज़ में दे देते.  हालांकि उनकी यह उदारता मुझे खलती थी मगर वे मुस्कुरा कर हमेशा यही संतोष कर लेते की कोई बात नहीं  फोटो मेरे पास यूहीं रहने से बेहतर हैं की वो छपे. यह बड़प्पन या उदारता मुझे अचम्भित करती थी .


 Ap के मन में संतोष और जोश भरा होता था सबो के लिए काफ़ी उत्साह के साथ संपर्क में रहना उनकी खासियत थी  Ap मेरे लिए एक थर्वामीटर  की तरह थे जिनको देखकर मैं अपनी काबलियत नकारापन और क्षमताओं के उतार चढ़ाव के ग्राफ का आंकलन करता या अपने बढ़ते चढ़ते सिकुड़ते मुड़ते टूटते कद क़ो देखता था  यह उनका बड़प्पन था कि  मेरा साधिकार किसी भी फोटो  के लिए निःसंकोच कह देना ही काफ़ी होता. पटना में मेरे कुछ ऐसे भी गुरु नुमा दोस्त बन गये थे जिनको कोई खबर की रुप रेखा बताने पर फोटो के साथ रिपोर्ट भेज देता था तो वही रिपोर्ट कभी आज पाटलिपुत्र प्रदीप ( बाद में यही प्रदीप हिंदुस्तान बन गया ) आदि कई अखबारों में छप जाती थी.


 ख़ासकर स्पलिंटर और ढेरों नये पुराने अखबारों में खबर छपवाने के लिए पटना के शर्मांजु किशोर मेरे सारथी बनकर मदद करते थे.  हालांकि शर्मान्नजू  किशोर से पहली और  आखिरी बार मैं 1996 में अहमदाबाद में मिला. इनपर तो काफ़ी कुछ कभी लिखा जायगा. मगर देव औरंगाबाद में रहते हुए हज़ारो रूपये के फोटो अखौरी जी  ने खींची थी. अमुमन पूरी खबर जिसे डिटेल भी कह सकते हैं के साथ फोटो मुझे लाकर देते. जिसे पटना के किसी मित्र के पास डाक से भेजकर किसी पेपर में छपने का इंतजार करता और छपी हुई रिपोर्ट क़ो देख कर ऐसा लगता मानो जन्नत  हाथ में हो


पटना के किसी अख़बार में अंशकालिक  या छपी हुई खबर के अनुसार मानदेय पाने वाला रिपोर्टर बनने का तो मौका नहीं मिला मगर 1987 में भारतीय जनसंचार संस्थान  (IIMC ) में स्नात्तकोत्तर पत्रकारिता डिप्लोमा करने का सुअवसर जरूर मिला. दिल्ली में नामांकन के साथ ही देव औरंगाबाद छूट गया. अपने ही गांव घर जिला में किसी मेहमान की तरह आता. कुछ लोग मिलते तो कुछ लोग से बिना मिले ही रिटर्न हो जाता. नौकरी बेकारी का सिलसिला जारी रहा. दर्जन भर नौकरी करने बदलने छोड़ने  छूटने के बावजूद 35 साल में 15 साल बेकारी के ही रहें.  हालांकि नाम शोहरत धन दौलत दर्जन भर किताबों सहित न्यूज़ एजेंसियो के लिए जमकर और खूब लिखा और पाया.दो तीन सज्जनों के लिए तो सैकड़ों रिपोर्ट लिखने के बावजूद धन नहीं मिला ख़ासकर किसी महिला से भी सुंदर संपादक रहें पत्रकार और साधु महंत बने माल मैथुन के रंगीले पत्रकार के संग छपने की भूख तो मिट गयी मगर धन पाना संभव नहीं हो पाया  इन दिवंगत पत्रकारों पर सच लिखना अब शोभा नहीं देता. मगर निठल्लापन में FANA न्यूज़ एजेंसी के सहयोग और अपनापन क़ो कभी भी भुला नहीं जा सकता. कोई 1990-91 के दौरान इसके संपादक  हर माह मुझसे पांच रिपोर्ट लेकर एक साथ 2000/- दे दिया करते थे. अक्सर मेरे बारे में पूछते रहते और मेरी निष्ठा क़ो देखते हुए हर माह छह रिपोर्ट लेकर एक साथ 3000/- देने लगे. FANA से जारी मेरी दर्जनों रिपोर्ट गल्फ टाइम्स सहित कई देशो के अखबारों में भी छपे. 1993 में फाना के बंद हो जानें के बाद मेरे आय का यह स्रोत भी बंद हो गया. 


नाना प्रकार के खट्टे मीठे अनुभवो के बीच मेरे मन में अखौरी प्रमोद सदैव जीवित रहे. जब कभी भी मन हताश होता या ठगा छला जाता तो मुझे अखौरी प्रमोद जी की याद आती  औरंगाबाद से रिटायर होने के बाद कोई 20 साल से भी ज्यादा समय  शहर छोड़े हो गये हैं इसके बावजूद जिले में उनकी पहचान और प्रियजनों की आज भी कोई कमी नहीं हैं मैं भी कोई 23-24 साल पहले उनसे मिला था. रिटायरमेन्ट के बाद वे फिर कभी औरंगाबाद आए या नहीं यह भी मैं नहीं जानता मगर औरंगाबाद बिहार वाले APसे ज भी के रांची झारखण्ड के हो जानें के बाद  सैकड़ों लोग आज भी AP क़ो पसंद करने वालों की कमी नहीं हैं 


2016 में कोई तीन माह तक रांची में रहा. रांची जानें की सूचना मैंने केवल अखौरी प्रमोद जी क़ो ही दी थी इसके बावजूद मुलाक़ात नहीं हो सकी दिल्ली के गंगाराम हॉस्पिटल में ईलाज के लिए भाभी क़ो लेकर भी आए मगर व्यस्तता लापरवाही और उदासीनता के चलते मैं हॉस्पिटल नहीं जा सका.  भाभी के दिवंगत होने की खबर भी तब मिली जब पंचतत्त्व में लीन होकर भाभी  अंतर्ध्यान हो गयी और सपरिवार वे लोग बिंन भाभी केवल उनकी यादों के संग खाली हाथ रांची लौट गये. 


 अखौरी जी का बेटा रुप बॉलीवुड में actor डायरेक्टर राइटर  सिनेमाटोग्राफर  हैं. अपनी अलग पहचान के लिए  जमकर काम क़ो नये ढंग से परिभाषित करने में लगा हैं इनकी छोटी बेटी मृणाल संगीत गायन अध्यापन और कार्यक्रम प्रस्तुति में लगी हैं  कार्यक्रमों की भीड़ में  उनकी अलग शानदार पहचान हैं तो बड़ी बेटी शालिनी केक गर्ल की तरह विख्यात हैं सैकड़ों स्वाद फ्लेवर और डिज़ाइन में केक से (के ) सृजन और स्वाद क़ो नया आयाम देने में शालिनी मशगूल  रहती हैं. केक का ऐसा चस्का की वो अपने फन या हुनर क़ो बड़ा आकाश देने की कोशिश से ज्यादा इर्द गिर्द के लोगों की वाह वाही से ही अपने धुन  में लगी हैं . 


वही अपने बाल बच्चों के खुशहाल जीवन से संतुष्ट कोई 80 साल के अखौरी प्रमोद में आज भी वही जोश जुनून ऊर्जा और काम के प्रति उत्साहजनक समर्पण हैं. उनसे मिलना कब मुमकिन होंगा यह तो मैं नहीं जानता मगर मोबाइल युग में अक्सर बातें हो जाती हैं. जिस समय मैं आज अखौरी प्रमोद जी क़ो याद कर रहा हूँ तो पत्रकारों से अकालग्रस्त रहें औरंगाबाद में आज दो एक नहीं सैकड़ों पत्रकार सक्रिय हैं प्रिंट से ज्यादा टीवी युग में खबरिया न्यूज़ चैनलों में ज्यादा oभीड़ हैं. जिले से एक नहीं बल्कि दो दो अख़बार छप रहें हैं. इतने पत्रकारों क़ो देख कर मेरा मन भी मुदित हो जाता हैं. हालांकि ज्यादातर पत्रकारों से मिला नहीं हूँ मगर अपने जिले के इन कलम बहादुरो क़ो देखने की तमन्ना जरूर हैं. ताकि मध्य बिहार के औरंगाबाद की धरती पर सक्रिय पत्रकारों से रूबरू होकर सबके बीच मैं खुद क़ो तलाश कर सकू.  फिलहाल अखौरी जी के सक्रिय जीवन और बेहतर सेहत की कामना हैं कि उनके बहाने ही मैं अपने उन दिनों की उन यादों की गलियों में चक़्कर काट रहा हूँ जहाँ के ज्यादातर पत्रकार अनजान होकर भी मेरे अपने सहोदर से प्रिय और अपने घर आँगन के ( से ) अपने हैं.


अनामी शरण बबल


8076124377 / 9312223412

शनिवार, 5 मार्च 2022

कर्क रेखा

 प्रस्तुति - कुमार सूरज 

कर्क रेखा उत्तरी गोलार्ध में भूमध्य रेखा‎ के समानान्तर 23°26′22″N 0°0′0″W / 23.43944°N -0.00000°E पर, ग्लोब पर पश्चिम से पूर्व की ओर खींची गई कल्पनिक रेखा हैं। यह रेखा पृथ्वी पर उन पांच प्रमुख अक्षांश रेखाओं में से एक हैं जो पृथ्वी के मानचित्र पर परिलक्षित होती हैं। कर्क रेखा पृथ्वी की उत्तरतम अक्षांश रेखा हैं, जिसपर सूर्य दोपहर के समय लम्बवत चमकता हैं। यह घटना जून क्रांति के समय होती है, जब उत्तरी गोलार्ध सूर्य के समकक्ष अत्यधिक झुक जाता है। इस रेखा की स्थिति स्थायी नहीं हैं वरन इसमें समय के अनुसार हेर-फेर होता रहता है। २१ जून को जब सूर्य इस रेखा के एकदम ऊपर होता है, उत्तरी गोलार्ध में वह दिन सबसे लंबा व रात सबसे छोटी होती है। यहां इस दिन सबसे अधिक गर्मी होती है (स्थानीय मौसम को छोड़कर), क्योंकि सूर्य की किरणें यहां एकदम लंबवत पड़ती हैं। कर्क रेखा के सिवाय उत्तरी गोलार्ध के अन्य उत्तरतर क्षेत्रों में भी किरणें अधिकतम लंबवत होती हैं।[1] इस समय कर्क रेखा पर स्थित क्षेत्रों में परछाईं एकदम नीचे छिप जाती है या कहें कि नहीं बनती है। इस कारण इन क्षेत्रों को अंग्रेज़ी में नो शैडो ज़ोन कहा गया है।[2]

विश्व के मानचित्र पर कर्क रेखा


इसी के समानान्तर दक्षिणी गोलार्ध में भी एक रेखा होती है जो मकर रेखा कहलाती हैं। भूमध्य रेखा इन दोनो के बीचो-बीच स्थित होती हैं। कर्क रेखा से मकर रेखा के बीच के स्थान को उष्णकटिबन्ध कहा जाता हैं। इस रेखा को कर्क रेखा इसलिए कहते हैं क्योंकि जून क्रांति के समय सूर्य की स्थिति कर्क राशि में होती हैं। सूर्य की स्थिति मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर बढ़ने को उत्तरायण एवं कर्क रेखा से मकर रेखा को वापसी को दक्षिणायन कहते हैं। इस प्रकार वर्ष ६-६ माह के में दो अयन होते हैं।[3][4]