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शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

बुंदेलखंड को राज्य बनाने के नाम पर सियासत




उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र सरकार के लिए नया सिरदर्द पैदा कर दिया है. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर उन्होंने बुंदेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने की मांग की. बसपा यह मांग कई सालों से कर रही है. मार्च 2008 में मायावती ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर सभी क्षेत्रों के समुचित विकास के लिए उत्तर प्रदेश को छोटे राज्यों में बांटने की बात कही थी. उन्होंने दोनों क्षेत्रों के लोगों से अपील की कि वे अलग राज्य बनाने की अपनी मांग केंद्र के समक्ष जोरदार तरीके से रखें. मायावती ने कहा कि यदि केंद्र बुंदेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश को अलग राज्य बनाने पर सहमत हो तो वह विधानसभा में इस आशय का प्रस्ताव लाने की कोशिश करें. उन्होंने तर्क दिया कि जनसंख्या और क्षेत्रफल के आधार पर उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य का प्रबंधन करने के लिए इसे बांटना ज़रूरी है.
खंड-खंड नहीं, अखंड बुंदेलखंड चाहिए. जब तक हमें पूरा बुंदेलखंड नहीं मिलता है, हमारा संघर्ष जारी रहेगा. यह बात बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजा बुंदेला ने चौथी दुनिया से कही. उन्होंने मायावती के बुंदेलखंड को लेने से इंकार करते हुए कहा कि हमें महाराजा छत्रसाल की सीमाओं वाला बुंदेलखंड चाहिए. 1948 में गृहमंत्री सरदार पटेल के साथ एक मसौदे पर बुंदेलखंड के 35 राजा-रजवाड़ों के साथ समझौता हुआ था. इस समझौते में बुंदेलखंड राज्य की सीमा तक तय हो गई थी, लेकिन संधिपत्र को लागू नहीं किया गया. बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा एक जनहित याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में दाख़िल की जाएगी.
बुंदेला ने कहा कि बुंदेलियों के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ. उन्हें उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के पिछवाड़े के रूप में बांटकर सारी गंदगी वहीं उड़ेल दी गई. इसी कारण आज बुंदेलखंड बीमार और बेबस है. खनिज और पुरातत्व संपदा से परिपूर्ण इस क्षेत्र में पर्यटन उद्योग के विकास की अपार संभावनाएं हैं. खनिज रॉयल्टी के रूप में सरकार को हज़ारों करोड़ रुपये देने वाला यह क्षेत्र ख़ुद अपने विकास के लिए कटोरा लेकर खड़ा है. इतनी नाइंसा़फी तो किसी के साथ नहीं होती. हमारा पानी, हमारी बिजली, हमारी मूर्तियां और हमारी श्रमशक्ति का दोहन तो हो रहा है, लेकिन इसका लाभ हमें नहीं मिल पा रहा है. बच्चे शिक्षा के अभाव में भटक रहे हैं. बेरोज़गारों के सामने अंधेरा ही अंधेरा है. बुंदेलखंड राज्य बन जाने से हमें प्राकृतिक और भौगोलिक स्थिति के अनुसार अपने विकास का मॉडल चुनने का मौक़ा मिलेगा. लखनऊ से निर्देश आते हैं कि बुंदेलखंड में केले की खेती की जाए, लेकिन यहां पानी नहीं है. अब किसान बेचारा क्या करे? लेकिन अनुदान के खेल में काग़ज़ों पर केले की खेती होती है और अंगूर उगाए जाते हैं. यही हाल लगभग सभी सरकारी योजनाओं का है.
बुंदेलखंड के बदहाल और बेहाल होने की असली वजह सही योजनाओं का न होना है. विकास के नाम पर विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा बुंदेलखंड का शोषण पिछले छह दशकों से होता रहा है. जो बुंदेलखंड आजादी की लड़ाई में सबसे आगे था, वही बुंदेलखंड अपनी बदहाली, भुखमरी, सूखे और बेरोज़गारी के लिए पूरी दुनिया में चर्चित है.
विकास योजनाएं तो 63 सालों से लगातार बुंदेलखंड के नाम पर आती रहीं, पर सरकारों में दूसरे क्षेत्रों का वर्चस्व होने की वजह से उनका लाभ कभी बुंदेलखंड को नहीं मिला. यदि आंकड़ों पर विश्वास करें तो 62 प्रतिशत लोग बुंदेलखंड से पलायन कर चुके हैं. बुंदेलखंड राज्य की मांग 1948 से चल रही है. टीकमगढ़ (मध्य प्रदेश) में मधुकर पत्र का बुंदेली राज्य अंक निकालकर पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी ने इस आंदोलन को एक नई दिशा दी थी, जिसका नेतृत्व 1960 में बाबू वृंदावन लाल वर्मा, पंडित ब्रजकिशोर पटेरिया, तत्कालीन विधायक डालचंद जैन एवं तत्कालीन मंत्री नरेंद्र सिंह जूदेव ने किया.
1968 में सागर (मध्य प्रदेश) में बुंदेलखंड राज्य के लिए सबसे बड़ा राजनीतिक सम्मेलन तत्कालीन मंत्री नरेंद्र सिंह जूदेव, साहित्यकार डॉ. बशंदावनलाल वर्मा, तत्कालीन विधायक डालचंद जैन एवं पूर्व गृहमंत्री बृजकिशोर पटैरिया के नेतृत्व में हुआ था. इस सम्मेलन में प्रस्ताव पारित करके कहा गया था कि उदल गरजे दसपुरवा में, दिल्ली में कांपे चौहान को फलित करने के लिए सभी को एक झंडे के नीचे आना होगा, लेकिन भोपाल के राजधानी बनते ही बुंदेलखंड राज्य आंदोलन को उतनी गति नहीं मिल पाई, जितनी ज़रूरत थी, बुंदेलखंड राज्य के लिए झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, बांदा, चित्रकूट, ग्वालियर, छतरपुर, पन्ना और सागर में कभी तेज तो कभी धीमी गति से आंदोलन चलता रहा.
पृथक बुंदेलखंड राज्य के लिए पूर्व सांसद लक्ष्मी नारायण. नायक, तत्कालीन विधायक देव कुमार यादव एवं कामता प्रसाद विश्वकर्मा की बुंदेलखंड प्रांत निर्माण समिति, विधायक एवं अब मंत्री बादशाह सिंह की इंसा़फ सेना और बुंदेलखंड विकास सेना समय-समय पर आंदोलन करती रही हैं. 1989 में शंकर लाल मल्होत्रा के नेतृत्व में नौगांव छावनी में बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के गठन के साथ ही आंदोलन ने और गति पकड़ी. फिल्म अभिनेता एवं कांग्र्रेस नेता राजा बुंदेला के नेतृत्व में चित्रकूट से खजुराहो तक जनजागरण यात्रा की जा रही है. तिंदवारी (बांदा) के विधायक विशंभर प्रसाद निषाद बुंदेलखंड राज्य का समर्थन विधानसभा के अंदर और बाहर पूरे जोशोखरोश से करते हैं. वहीं भाजपा न तो हामी भर पा रही है और न ही वह इन्कार कर पाने की स्थिति में है.
खनिज संपदा के लिए मशहूर बुंदेलखंड के अकेले पन्ना जनपद से ही केंद्र सरकार को 700 करोड़ और मध्य प्रदेश सरकार को 1400 करोड़ रुपये बतौर राजस्व प्राप्त होते हैं. राजा बुंदेला कहते हैं कि बुंदेलखंड का आमजन बदहाली और बेबसी का शिकार है. संपन्न एवं मध्यम वर्ग का किसान क़र्ज़, ट्रैक्टर की किस्त और नमक-रोटी न जुटा पाने के कारण आत्महत्या कर रहा है. संपन्न एवं मध्यम वर्ग के किसानों की अगर यह हालत है तो ग़रीब एवं भूमिहीन परिवारों की हालत क्या होगी, इसकी सिर्फ कल्पना की जा सकती है. कांग्रेस के झांसी ज़िलाध्यक्ष सुधांशु त्रिपाठी कहते हैं कि बुंदेलखंड में सार्वजनिक वितरण प्रणाली पूरी तरह ध्वस्त है. दस साल से अंत्योदय और बीपीएल कार्डधारकों को राशन नहीं मिल रहा है. बुंदेलखंड में भुखमरी की घटनाएं अब आम हो चुकी हैं. ग़रीब एवं वंचित वर्ग के लगभग 40 प्रतिशत लोगों का काम की तलाश में पलायन इसका प्रमाण है.
दो दशक से बुंदेलखंड राज्य मुक्ति मोर्चा मुहिम चला रहा है. इसी के तहत चित्रकूट से पैदल यात्रा शुरू हुई. यूं तो बुंदेलखंड क्षेत्र दो राज्यों में विभाजित है-उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश, लेकिन भू-सांस्कृतिक दृष्टि से यह क्षेत्र एक-दूसरे से विभिन्न रूपों में जुड़ा हुआ है. रीति-रिवाजों, भाषा और विवाह संबंधों ने इस एकता को मजबूत कर दिया है.
उत्तर प्रदेश के झांसी, बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट, महोबा, ललितपुर और जालौन के अलावा इस क्षेत्र में ग्वालियर, दतिया, भिंड, मुरैना, शिवपुरी, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, अशोकनगर, पन्ना, दमोह, सतना और गुना जैसे ज़िले भी शामिल हैं. बुंदेलखंड के बुद्धिजीवियों का मानना है कि इस क्षेत्र के अंतर्गत उत्तर प्रदेश के सात और मध्य प्रदेश के 21 ज़िले आते हैं. उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के योजना आयोग द्वारा घोषित बुंदेली पिछड़े क्षेत्र को मिलाकर बुंदेलखंड राज्य गठित किया जा सकता है.
कभी अंग्रेजों की कूटनीति का शिकार बना बुंदेलखंड खंड-खंड होकर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के रहनुमाओं के आगे कटोरा लेकर खड़ा है. यहां के लोगों को यह समझ में नहीं आ रहा है कि वह क्या करें? सत्ता पाते ही बुंदेलखंड के तथाकथित नेता मंत्री पद के मोहपाश में ऐसे जकड़ जाते हैं कि उन्हें अपनी मिट्टी का क़र्ज़ याद नहीं रहता. लालू यादव और नीतीश कुमार को अपनी मातृभाषा बोलने में तनिक भी शर्म नहीं आती, लेकिन बुंदेली राजनेता दिल्ली जाते ही अंग्रेजी जुबान बोलने लगते हैं और यहां के बेबस भूखे लोगों से किनारा कर लेते हैं.

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