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शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

बुंदेलखंड राज्य के लिए भड़कने लगी आग




आजादी के बाद से ही उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के बीच बांट कर बुंदेलखंड के साथ बड़ी नाइंसाफी हुई है. जिस तरह इतिहासकारों ने महान राजा छत्रसाल की उपेक्षा की है, उतनी ही उपेक्षा बुंदेलखंड की लोक संस्कृति, कला, पुरातत्व तथा बुंदेली भाषा की आज हो रही है. पिछले दिनों प्रदेश की राजधानी में बसपा सुप्रीमों मायावती ने उत्तर प्रदेश के तीन राज्यों में बंटवारा- बुंदेलखंड, पूर्वांचल और हरितप्रदेश- किए जाने की वकालत करके उत्तर प्रदेश के विभाजन का जिन्न बोतल से बाहर निकाल दिया है. बुंदेलखंड राज्य के लिए 1947 से ही लड़ रहे बुंदेलखंड वासियों को मानो मुंहमांगी मुराद सी मिल गई है. अब उन्हें लगने लगा है कि इंतजार की घड़ियां समाप्त हो गई है. 1947 में देश आजाद होने के बाद सुप्रसिद्ध साहित्यकार पं बनारसी दास चतुर्वेदी के संपादन में कुंडेश्वर (टीकमगढ़) से निकलने वाली पत्रिका मधुकर ने बुंदेलखंड राज्य की मांग को पहली बार उठाया था. 1968 में सागर (मध्यप्रदेश) में बुंदेलखंड राज्य के लिए सबसे बड़ा राजनीतिक सम्मेलन तत्कालीन मंत्री नरेन्द्र सिंह जूदेव, साहित्यकार डॉक्टर
बृंदावनलाल वर्मा, विधायक डाल चन्द जैन और मध्यप्रदेश के पूर्व गृहमंत्री बृजकिशोर पटैरिया के नेतृत्व में हुआ था. हालांकि भोपाल के राजधानी बनते ही बुंदेलखंड राज्य आन्दोलन को इतनी गति नही मिल पाई, जितनी की जरूरत थी लेकिन बुंदेलखंड राज्य के लिए झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, बांदा, चित्रकू ट, ग्वालियर, छतरपुर, पन्ना और सागर में कभी तेज़ तो कभी धीमी गति से आन्दोलन चलता रहा है. बुन्देलखंड राज्य अन्दोलन के लिए पूर्व सांसद लक्ष्मी नारायण नायक, तत्कालीन विधायक देव कुमार यादव, कामता प्रसाद विश्वकर्मा की बुंदेलखंड प्रान्तनिर्माण समिति, वर्तमान मंत्री बादशाह सिंह की इन्साफ सेना और बुंदेलखंड विकास सेना समय-समय पर राज्य अन्दोलन की मुहिम चलाती रही है. 1989 में शंकर लाल मल्होत्रा के नेतृत्व में नौगांव छावनी में बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के गठन के साथ ही पिछले 17 वर्षो से बुंदेलखंड राज्य के लिए मुहिम तेज हो गई है. फिल्म अभिनेता और कांग्र्रेस के नेता राजा बुंदेला के नेतृत्व में बुंदेलखंड राज्य के लिए बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा द्वारा चित्रकूट से खजुराहो तक जनजागरण यात्रा 15 अगस्त से शुरू की जा रही है.  तिंदवारी (बांदा) के विधायक विशम्भर प्रसाद निषाद जोश खरोश के साथ बुन्देलखण्ड राज्य का समर्थन विधानसभा के अन्दर और बाहर करते है. वहीं दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के बुन्देलखंड में सूपड़ा साफ करा चुकी भाजपा न हां कह पा रही है और न ही न कर पा रही है. खनिज सुंपदा के लिए मशहूर बुंदेलखंड के पन्ना जनपद से ही 700 करोड़ रुपए केंद्र सरकार को और मध्यप्रदेश सरकार को 1400 करोड़ रुपए राजस्व के रूप में प्राप्त होते है. राजा बुंदेला कहते हैं कि  बुंदेलखंड का आमजन बदहाली और बेबसी का शिकार है. संपन्न एवं मध्यम वर्ग का किसान कर्ज, ट्रैक्टर की किश्त, नमक-रोटी न जुटा पाने के कारण आत्महत्या कर रहा है. कांग्रेस के झांसी जिलाध्यक्ष सुधांषु त्रिपाठी कहते है बुंदेलखंड में सार्वजनिक वितरण प्रणाली पूरी तरह ध्वस्त है. 10-10 वर्षो से अंत्योदय, बीपीएल कार्ड धारकों को राशन नहीं मिल रहा है. बुंदेलखंड में भुखमरी की घटनाएं अब आम हो चली हैं. गरीब एवं वंचित वर्ग के लगभग 40 प्रतिशत लोगों का काम की तलाश में पलायन इसका प्रमाण है. बुंदेलखंड साहित्य एवं संस्कृति परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैलाश मड़वैया कहते हैं कि अफसोस है कि आजादी के बाद हमारे अपने ही हमें एक नही होने दे रहे है.
बुंदेलखंड मुक्ति मोर्चा के भानु सहाय कहते है बुंदेलखंड में प्रति व्यक्ति आमदनी राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है. बुन्देलखंड के जिले देश के चुनिंदा गरीब और संकटग्रस्त जिलों में शुमार हैं. यहां के हालत पर गौर किये बिना तमाम योजनाएं लागू कर दी जाती हैं. परिणाम भी घातक होता है, लेकिन न तो केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकार ज़मीनी हकीकत पर ग़ौर करने को तैयार हैं. न सरकारी मदद, न रोज़गार और अन्नदाता (किसान) लाचार की यह कहानी पिछले छ: वर्षो से लगातार सूखे से सूखते बुंदेलखण्ड के लोगों की है. इन हालातों से तंग आकर 12 सौ से भी अधिक किसानों ने ख़ुदकुशी कर ली. बुंदेलखंड की हर गांव की एक ही कहानी है. हर महीने कोई न कोई विपदा आती है.
यूं तो बुंदेलखंड क्षेत्र दो राज्यों में विभाजित है-उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश. हालांकि भू-सांस्कृतिक दृष्टि से यह क्षेत्र एक दूसरे से भिन्न रूप से जुड़ा हुआ है. रीति रिवाजों, भाषा और विवाह संबंधों ने इस एकता को और भी पक्की नींव पर खड़ा कर दिया है. उत्तर प्रदेश के झांसी, बांदा, हमीरपुर, चित्रकू ट, महोबा, ललितपुर और जालौन के अलावा इस क्षेत्र में ग्वालियर, दतिया, भिंड, मुरैना, शिवपुरी, सागर, छतरपुर, टीकमगढ़, अशोकनगर, पन्ना, दमोह, सतना और गुना जैसे जिले भी शामिल हैं. वैसे बुंदेलखंड के अनेक बुद्धिजीवियों का तो मानना है कि इस क्षेत्र के अंतर्गत उत्तर प्रदेश के सात जिले और मध्य प्रदेश के 21 जिले आते हैं.
इसी आधार पर कुछ लोगों ने बुंदेलखंड राज्य की स्थापना का आंदोलन भी प्रारंभ किया है. बुंदेलखंड में नरेगा के नाम पर हुई लूट से ग्रामीणों में व्याप्त आक्रोश लालगढ़ की तरह न फूट पड़े, यह ध्यान रखना होगा. राहुल गांधी ने बुंदेलखंड के लोगों को आश्वासनों की चूसनी से जो सपना दिखाया है वह खंड-खंड बुंदेलखंड के रहते पूरा नहीं हो सकता है. इसी बात को लेकर संघर्ष की राहो पर उतरी बुंदेलखंड विकास सेना यहां के ग्रामीण अंचलों में जितनी तेज़ी के साथ अपना सदस्यता अभियान चला रही है, उससे तो यही लगता है कि बुंदेलखंड में राज्य का आंदोलन एक नए रंग के साथ शुरू होने वाला है.

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