रविवार, 25 सितंबर 2011

राजेन्द्र यादव/ तुस्सी ग्रेट हो गुनाहों के (देवता नहीं) पुतला उर्फ राजेन्द्र यादव..




हिन्दी के कथित विवाद पसंद और अंग्रेजी के अश्लील प्रधान लेखक खुशवंत सिंह से तुलना करने पर भीतर से खुश होने वाले परम आदरणीय प्रात: स्मरणीय हिन्दी के महामहिम संपादक राजेन्द्र यादव जी तुस्सी ग्रेट हो? आपसे इस 45 साला उम्र में 5-6 दफा मिलने और दो बार चाय पीने का संयोग मिला है। इस कारण यह मेरा दावा सरासर गलत होगा कि आप मुझे भी जानते होंगे, पर मैं आपको जानता हूं। आपकी साफगोई का तो मैं भी कायल (एक बार तो घायल भी) हूं। तमाम शिकायतों के बाद भी आपके प्रति मेरे मन में कोई खटास नहीं है। सबसे पहले तो आपने हंस को लगातार 25 साल चलाकर वह काम कर दिखाया है जिसकी तुलना केवल सचिन तेंदुलकर के 99 शतक (सौंवे शतक के लिए फिलहाल मास्टर ब्लास्टर तरस रहे हैं) से ही की जा सकती है। काश. अगर मेरा वश चलता तो यकीन मानिए यादव जी अब तक मैं आपको भारत रत्न की उपाधि से जरूर नवाज चुका होता( यह बात मैं अपने दिल की कह रहा हूं) । हिन्दुस्तान में हिन्दी और खासकर साहित्य के लिए किए गए इस अथक प्रयास को कभी नकारा नहीं जा सकता। सच तो यह भी है यादव जी कि हंस ने ही आपको नवजीवन भी दिया है वरन सोचों कि अपने मित्रों के साथ इस समय तक आप परलोक धाम ( नर्क सा स्वर्ग की कल्पना आप खुद करें) में यमराज से लेकर लक्ष्मी, सरस्वती समेत पार्वती के रंग रूप औप यौवन के खिलाफ साजिश कर रहे होते। मगर धन्य हो यादव जी कि प्रेमचंद के रिश्तेदारों से हंस को लेकर अपनी नाक रगड़ने की बजाय हंसराज कालेज की वार्षिक पत्रिका हंस को ही बड़ी चालाकी से हथियाकर उसे शातिराना तरीके से प्रेमचंद का हंस बना दिया। प्रेमचंद की विरासत थामने का गरूर और उसी परम्परा को आगे ले जाने का अभिमान तो आपके काले काले चश्मे वाले गोरे गोरे मुखड़े पर चमकता और दमकता भी है। हंस को 25 साला बनाकर आपने साबित कर दिया कि आप किस मिट्टी के बने हुए हो। फिर अब किसी खुशवंत से अपनी तुलना पर आपको गौरवान्वित होने की बजाय अब आपको शर्मसार होना चाहिए। सार्थकता के मामले में आप तो खुशवंत के भी बाप  (माफ करना यादव जी खुशवंत सिंह का बाप सर शोभा सिंह तो देशद्रोही और गद्दार था, लिहाजा मैं तो बतौर उदाहरण आपके लिए केवल इस मुहाबरे का प्रयोग कर रहा हूं) होकर कर कोसों आगे निकल गए है। देश में महंगाई चाहे जितनी हो जाए, मगर सलाह हमेशा फ्री में ही मिलता और बिकता है। एक सलाह मेरी तरफ से भी हज्म करे कि जब हंस को 25 साल का जवान बना ही दिया है तो उसको दीर्घायु बनाने यानी 50 साला जीवित रखने पर भी कुछ विचार करे। मुझे पता है कि यमराज भले ही आपके दोस्त (होंगे) हैं पर वे भी आपकी तरह कर्तव्यनिष्ठ हैं, लिहाजा थोड़ी बहुत बेईमानी के बाद भी शायद ही वे आपको शतायु होने का सौभाग्य प्रदान करे। भगवान आपको लंबी आयु और जवां मन दुरूस्त तन दे। लिहाजा यादव के बाद भी हंस दीवित रहे इस पर अब आपको ज्यादा ध्यान देना चाहिए। हालांकि अंत में बता दूं कि हंस में छपी एक कहानी कोरा कैनवस के उपर आपने संपादकीय में विदेशी पांच सात लेखकों का उदाहरण देते हुए बेमेल शादियों की निंदा की थी।, मगर ठीक अपनी नाक के नीचे रह रहे कुछ बुढ़े दोस्तों (अब दिवगंत भी हो गए) की बेमेल शादियों को आप बड़ी शातिराना अंदाज में भूल गए। अपनों को बचाकर दूसरों को गाली देने की शर्मनाक हरकतों को बंद करके सबको एक ही चश्मे से देखना बेहतर होगा। वैसे भी आपको गाली देने वालों की कोई कमी नहीं है, मगर लंबी पारी के लिेए ईमानदारी तो झलकनी चाहिए। अंत में इसी कामना के साथ कबाड़खाने में घुट रहे हंस और प्रेमचंद को गरिमामय बनाने में आपके योगदान को कभी भी नकारा नहीं जा सकता।
 
राजेन्द्र यादव पर पांखी का हाथी अंक
आमतौर साहित्यिक पत्रिकाओं के मालिक संपादक लोग जब कभी विशेषांक निकालते हैं तो उसका दाम इतना रख देते है कि बड़े मनोरथ से प्रस्तुत अंक की महत्ता ही चौपट दो जाती है। किसी पत्रिका को कितना मोटा माटा निकालना है, यह पूरी तरह प्रबंधकों पर निर्भर करता है। मगर पाठकों की जेब का ख्याल किए बगैर ज्यादा दाम रखना तो उन पाठकों के साथ बेईमानी है जो एक एक पैसा जोड़कर किसी पत्रिका को खरीदते हैं। पांखी का महाविशेषांक 350 पन्नों(इसे 250 पेजी बनाकर ज्यादा पठनीय बनाया जा सकता था) का है। जिसमें हंस के महामहिम संपादक राजेन्द्र यादव को महिमा मंड़ित किया गया है। संपादक प्रेम भारद्वाज ने यादव को मल्टीएंगल से देखने और पाठकों को दिखाने की कोशिश की है। मगर भारी भरकम अंक में यादव के लेखन को नजरअंदाज कर दिया गया। संपादक महोदय यादव पर लेखों और संस्मरणों की झड़ी लगाने की बजाय यादव के 10-12 विवादास्पद संपादकीय, कुछ विवादास्पद आलेख और कालजयी कहानियों को पाठकों के लिए प्रस्तुत करते तो इस हाथी अंक की गरिमा कुछ और बढ़ जाती, मगर यादव की आवारागर्दी, चूतियापा, लफंगई, हरामखोरी, नारीप्रेम बेवफाई, और हरामखोरी को ही हर तरह से ग्लैमराईज्ड करके यादव की यह कैसी इमेज (?) सामने परोस दी गई ?
यही वजह है कि 350 पन्नों के इस महा अंक में रचनाकार संपादक राजेन्द्र यादव की बजाय एक दूसरा लफंगा यादव (आ टपका) है।  जिसके बारे में करीब वाले लोग ही जानते थे। फिर आप किसी अंक को जब बाजार में देते हैं तो यह ख्याल रखना भी परम आवश्यक हो जाता है कि उसका कालजयी मूल्याकंन हो, ना कि 70 रूपए में खरीदकर इसे पढ़ने के बाद कूड़े में फेंकना ही उपयोगी लगे।
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गुरुवार, 8 सितंबर 2011

प्रेस क्लब - अनामी शरण बबल-8


प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल-8

सावधान। सोनिया जी का भारत पधार चुकी है

जिस तरह दबे पांव कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी विदेश गई थी, उसी तरह दबे पांव (देर रात को ) सन्नाटे में वे अपना इलाज आपरेशन और कैंसर रोग से निजात पाकर भारत लौट आई है। जाने से पहले संसद और अन्ना हजारे का हंगामा होना था। और जब लौटकर आ गई है तो ठीक आने से पहले आतंकवादियों ने स्वागत में आतिशबाजी में बम फोड़कर स्वागत कर दिखाया है। मैडम के आने के साथ ही अब अस्पताल में मरीजों को देखने की बजाय दर्शनार्थ चंपूओं की दरबार में हाजिरी लगने लगेगी। मैडम द्वारा देश का हाल चाल लेने के बाद उठापटक का दौर शुरू होगा। अन्ना आपरेशन मे पार्टी की पिटी भद्द पर मनमोहन टीम की पेशी होगी और खासकर विकिलीप्स के फॅारकास्ट पर मंथन भी होगा। हालांकि यूपी चुनाव को देखते हुए बाबा जी फिर मना करेंगे, मगर लगातार बढ़ते प्रेशर को देखते हुए मैडम को ही यह फैसला करना है कि मन साहब के डूबते पतवार को बाबा को सहारा मिलेगा या बसपा के आगे पार्टी को बर्बाद ही रखा जाएगा। मैडम की सारथी के तौर पर भाई बहनों की जोड़ी को अब प्ले ग्राउंड में उतारने का प्रेशर सिर बोलने लगा है। हालांकि मन साहब के साथ मलाई चाट रहा एक गुट इसका खिलाफत करेगा, मगर खुलकर तो खिलाफत करने की हिम्मत आज तक किसी कांग्रेसी ने कभी ना की है ना करेगा।


कहीं यह प्रायोजित बिस्फोट तो नहीं

राजनीति में कुछ भी संभव है। हालांकि इसका मेरे पास कोई ना सबूत है और ना ही कोई प्रामाणिक तथ्य ही है। मगर आम लोगों की चर्चाओं में नागरिकों का यह संदेह भी लगातार गहराता जा रहा है कि यह विस्फोट हुआ है या कहीं कराया तो नहीं गया है? पिछले दिनों कई मुद्दों से परेशान यूपीए सरकार सब पर से अपनी सुप्रीमो और जनता का ध्यान हटाने के लिए कहीं यह प्रायोजित विस्फोट तो नहीं है। ज्यादातर लोग तो इसी आरोप से मन सरकार को लांछित कर रहे है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि सबूत नष्ट हो गए। पुलिस समेत तमाम खुफिया एजेंसियों के हाथ कुछ मिल नहीं रहा है। अन्ना प्रकरण से अपनी भद्द करवा चुकी मन सरकार के सामने नाना प्रकार की चुनौतियां है। जिसके सामने सरकार बौनी साबित होती दिख रही है। मुझे पूरा यकीन है कि शायद जनता में अविश्वसनीय बन गई मन सरकार के प्रति लोगों की यह धारणा गलत हो, मगर 48 घंटे गुजर जाने के बाद भी  हमारी तमाम कमांड़ो और सतर्क एंजेंसियों की नाकामी से यदि सरकार पर लोगों का संदेह पक्का ही होता जा रहा है तो उसके लिए कमसे कम मैं तो बिल्कुल जिम्मेदार नहीं हूं। क्यों मन साब है ना ?


मन साब की ईमानदार स्वीकृति

हमारे ईमानदार(?) प्रधानमंत्री मन साहब हमेशा सच और सही बोलते है। जैसा कि इस बार के बम फूटने पर भी कह ही दिया कि हम देख रहे है और आंतकवादियों से निपटने की कोशिश कर रह है। कायरों (?) के मंसूबों को कभी भी सफल नहीं होने दिया जाएगा। हम पूरी तरह इनसे निपटने में सक्षम है(?)। हमारी खुफिया एजेंसी और पुलिस कार्ऱवाई कर रही है और आतंकवादी ज्यादा देर तक सलाखों से दूर नहीं रह सकेगं। इसी तरह मानों बच्चों को स्कूल भेजने से पहले कोई मां द्वारा दी जाने वाली बच्चों को सीख का पाठ पढाते हुए मन साहब देश वासियों को जरा भी परेशान और चिंता नहीं करने की सलाह दे रहे थे। पीएम द्वारा देशवासियों को उल्लू बनाते देखकर मेरा मन बार बार यही सवाल कर रहा था कि यह बंदा किसको मूर्ख बना रहा है?  हर बार कांग्रेसियों द्वारा मन मोहन की ईमानदारी का प्रवचन सुनकर मेरे मन में यही सवाल उठ कि इसे और कितने दिनों तक झेलना पड़ेगा ? इससे ज्यादा अच्छा तो शायद बाबा ही रहता, जो कम से कम युवा और ताजा है। मगर मन साहब इस तरह कुर्सी से चिपके या चिपकाये गए है कि पता नहीं क्यों अब इनकी ईमानदारी भी खटकने लगी है।


बम ब्लास्ट के बाद

आतंकवादियों ने दिल्ली हाई कोर्ट के रिसेप्शन पर धमाका करके नेताओं की नींद हराम कर दी। एक बार फिर अपने गृहमंत्रीजी ने बंदूक तानकर खुद को बेगुनाह और पुलिस और तमाम सुरक्षा एजेंसियों के निकम्मेपन को कोसने लगे। सांप के जाने के बाद लकीर पीटने की कहावत को सही करते हुए पुलिस और तमाम खुफिया एजेंसियों ने सूत्र तलाशने की कार्रवाई चालू कर दी है। कोई कुतो की मदद ले रहा है तो कोई कूडेदान तलाश रहा है। कोई स्केच बना रहा है तो कोई आतंकवादियों की सूचना देने पर लाखों रूपये के ईनाम की घोषणा कर रहे है। यानी अंधे के हाथ लगा बटेर की तरह सारे लोग अपनी सक्रियता और चुस्ती का पुलिंदा बांटने में लगे है। कोई मुआवजे की घोषणा कर रहा है तो कोई फल सब्जी लेकर हमदर्दी जताने में लगा है। हमारे नेता इसे कायराना हरकत बता कर देख लेने की चुनौती उछाल रहे है। यानी मरने वाला तो मर गया घायलों की हालत कैसी है यह किसी से छिपा नहीं है। मगर कोई भी नेता या नौकरशाह जिम्मेवारी लेने की बजाय नौटंकी करने में व्यस्त है। और संसद के इसी सत्र में अपने मियां मिठ्टू बनने वाले गृहमंत्री को क्या इससे कोई शर्म आएगी कि इन तमाम घटनाओं की पहली नैतिक जिम्मेदारी(अगर नैतिकता कांग्रेसियों में हो) उनकी ही बनती है। चिंदबरम के कार्य़काल में छह हमले हो चुके है। क्या इस छक्के पर चिंदबरम साहब कोई एंजाय पार्टी करना पसंद करेंगे ?


ऐसा तो बाबा ने सोचा ही नही

दिल्ली में बम ब्लास्ट क्या हो गया कि अपने एयरकंडीशन में बैठकर देश की चिंता करने वाले नेताओं को घर से बाहर निकलना पड़ा। आमतौर पर दिल्ली से परहेज करने वाले राहुल बाबा भी इस बार राम मनोहर अस्पताल में जाकर मरीजों को देखने का लोभ नहीं छोड़ सके। अपने लाव लश्कर के साथ बाबा की सवारी टेसूएं बहाने बस पहुंचने ही वाली थी कि अस्पताल के बाहर खड़े गुस्साए लोगों ने राहुल को देखते ही जमकर नारेबाजी करने लगे। अपने खिलाफ माहौल को देखकर भौंचक्क रह गए बाबा ने तो सोचा ही नही था कि लोग उनका इस तरह स्वागत करेंगे। चेहरे की सारी लाली उड़ गई। टीम बाबा के लोगो के चेहरे पर हवाईयां उडने लगी और सच तो ये है कि मरीजों को देखना बस एक नाटक था मगर राहुल के रक्षकों को अब बाबा की सुरक्षा की चिंता सताने लगी कि बाबा के खिलाफ चारो तरफ लोग यदि इसी तरह हाय-हाय करने लगे तो बाबा की राजनीति का क्या होगा भगवान ?


सावधान, फिर करेंगे आडवाणी रथयात्रा

अगर आप लोगों की याद्दाश्त ज्यादा बुरी नहीं होगी तो श्रीमान लाल कृष्ण आडवाणी की 1992 में की गई राम जन्म मंदिर रथयात्रा की याद जरूर होगी।  जी हां वही यात्रा जिसमें लरजते गरजते और बरसते हुए लालजी ने राम मंदिरके ना पर बाबरी मस्जिद को नेस्तनाबूद करवा के ढाह दिया। लालजी ने लोगों को इतना लाल करके लाल पीला यानी भड़काया कि बस पूरा देश पूर्वप्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की नपुंसकता (आज के मनमोहन भी उसी तरह शँट हो रहे है) बनी रही और बाबरी मस्जिद पर हमला करके गिरा दिया गया। करप्शन पर पहले रामदेव और बाद में अन्ना हजारे ने हंगामा करके यह जता दिया कि इस मुद्दे में अभी काफी जान बाकी है दोस्तो।  अगले साल यूपी में चुनाव है। माया के सामने कमल का खिलना मुश्किल है। नोट4वोट में बीजेपी के कई सासंद सरकारी ससुराल (तिहाड) में आराम फरमा रहे है। इस बार यूपी में सत्ता दिलाने और बीजेपी में अभी भी खुद को सुपर पावर बताने दिखाने और साबित करने के लिए ही लालजी रथ यात्रा की घोषणा करके लोगों को दहशत में डाल दिया है। मगर जमाना बदल गया है लालजी। पार्टी में ही कोई नहीं देना चाहेगा सुप्रीम बनने का मौका। फिर लालू तो थोडा शरीफ थे कि बस पकड़ कर ही वाहवाही लूट लिया, मगर माया इतनी शरीफ नहीं है। फिर आपकी उम्र में भी 20 साल का इजाफा हो गया है। रथयात्राओं के लिए खासे इतिहास के काले पन्नों में  दर्ज होने की बजाय लाल पीला ही होकर सबर कर ले। फिर कभी आपके मुखिया रहे बंगारू जी तो नोटों के साथ रंगोली खेलते हुए इस तरह दिखे कि आप इस मुद्दे को बस मुद्दा ही रहने दे। अन्ना या रामदेव ना ही बने तो बेहतर है और इसी में आप सबकी भलाई भी है।


कैग की आंच में पटेल
अटल बिहारी के राज में नागर विमानन मंत्री रहे कमल स्वरूप कमल छाप के हीरो लूक वाले यंग नेता और मंत्री रहे प्रफुल्ल पटेल ने भी अपने मंत्रालय में कम घपले नहीं किए। हवाई जहाज खरीदने के नाम पर सैकड़ों करोड़ रूपये कर्ज लेकर एयर इंडिया को इतना बोझिल बना दिया कि उसका आज तक दम उखड़ रहा है। कैग की आडिट रिपोर्ट मे पटेल साहब की हवाई जहाज खरीदने की हडबड़ी और जल्दबाजी से मंत्रालय और सरकार को चूना लगा। हमेशा पोलिटिकल लाईफ में दूसरों को चूना लगाने के लिए बदनाम नेता  अक्सर सरकारी खरीद में अपनी सरकार और देश को चूना लगा ही देते है। पर क्या करेंगे पटेल साहब, मामला पुराना है और इस डील को लेकर बहुत सारी बाते आप भूल गए होगें, इत्यादि करप्शन को भी चूना लगाने वाले चूना तर्को के सहारे साफ निकल जाइए ना बाहर। जहां पर आपके लालजी करप्शन के खिलाफ देश व्यापी रथ यात्रा में आपको अपने साथ ले जाने के लिए इंतजार कर रहे है। और पटेल साब आप भी बस अपने करप्शन को भूल कर दूसरों के यानी कांग्रेसी करप्सन पर भाषण देने के लिए तैयार हो जाइए।



तिहाड दर्शन
जय हो जय हो करप्शन देवता की जय हो। तेरी लीला अपरम्पार। आज से 10 साल पहले तिहाड जेल की नौकरी या यहां ट्रांसफर होने को एक सजा की तरह देखा जाता था, मगर जब से तिहाड पोलिटिशियन लोगों के लिए मक्का मदीना या चारो धाम जैसा तीर्थस्थल बना है, तभी से तिहाड का डिमांड काफी बढ़ गया है। यहां पर तो अब रिश्वत देकर लोग अपना ट्रांसफर करवाने लगे है। ताजा मामला हमेशा बेगाने की शादी में अब्दुल्ला दीवाना बन जाने वाले श्रीमान अमर सिंह की जेल यात्रा का है। हमेशा दूसरों के लिए उपलब्ध दूसरों के काम आने वाले और दूसरों के मामले में टांग डाल देने के लिए (कु)विख्यात अमर सिंह भैय्या वाकई कांग्रेसी साजिश के शिकार हो गए। हालांकि अमर सिंह कोई बच्चा नहीं बल्कि कई बच्चों के बाप होने के बाद भी श्रीमान के मनमोहक चाल के शिकार हो गए। मन साहब को बचाने के लिए मनमोहक अदा के साथ कई कमली छाप सांसदों को नोट फॅार वोट देकर मन साहब की सरकार को पाताल में जाने से तो बचा लिया मगर इसबार अमर बाबू तिहाड जाने से खुद को नहीं बचा सके। तिहाड में एक और अति विशिष्ट मेहमान के तौर पर अमर भैय्या पधार चुके है। इसी बहाने गुमनामी में नौकरी करने वाले पुलिसिया अधिकारियों को फिर से खबरिया चैनलों के माईक के सामने बयान देने का सुअवसर मिला है। अन्ना मामले में तो यहां के अधिकारियों की कई दिनों तक हाई डिमांड बनी रही थी। कल तक घास नहीं डालने वाले ज्यादातर पत्रकार भी अब इनसे दोस्ती गांठने लगे है ताकि मौके पर( जो अक्सर आ रहे है) तिहाड दर्शन करने और कराने में आसानी हो सके।


माया महिमा

विकीलिप्स पर गुस्सा करने की और कोर्ट में घसीटने की धमकी देकर यूपी की सीएम और प्रधानमंत्री(बनने का सपना देखने वाली) की भावी दावेदारों में एक मायावती जी काफी गरम है। वे मीडिया को कोसती हुई विपक्षी दलों के साथ मिलकर साजिश करने का आरोप लगा रही है। इन आरोपों की सच्चाई क्या है यह तो एक शोध अनुसंधान का विषय है। मगर सुश्री मायावती जी ने यह नही साफ या सफाई (दे पा रही है) दी कि अपनी जूती मंगवाने के लिए क्या लखनऊ से वे कोई खाली जहाज को मुबंई भेजा था ?  इसमें शरम की क्या बात है माया जी। लोगों का काम है कहना मगर सफल लोगों का काम है आगे बढना। अपनी तमिलनाडू वाली जयललिता को ही देखिए अपने वार्डरॅाब में अनगिनत कपड़ों के अलावा जूतियों की 1800 जोडी भी साथ रखती हैं तो किसी नाशपीटे की नजर वहां पर तो नहीं जाती। मगर केवल एक जोडी जूती लाने हवाई जहाज मुबंई क्या गई कि इसे चारो तऱफ हंगामा मच गया। आप बिलकुल ना घबराना मायाजी सत्ता बार बार ना साथ रहती है और ना ही इस तरह के सरकारी खर्चे पर एय्याशी का मौका मिलता है। जानने वाले तो आपको उस समय से जानते है जब आप फटीचर चप्पल पहनकर त्रिलोकपुरी के एमसीजी स्कूल में टीचरी की नौकरी करती थी।




कितना बढेगा किराया ?

कांग्रेस आई है और महंगाई लाई है जैसे विपक्षी दलों के जुमले लगातार सही साबित होते रहे है। इस बार सात साल के बाद रेल का भाड़ा बढ़ना लगभग तय हो चुका है। जय हो जय हो श्रीमान बिहार को सदियों पीछे धकेलने के लिए बदनाम लालू जी कि आपने रेल में ऐसा जंतर फूंका कि रेल किराया महंगा किए बगैर ही रेल की सेहत को मोटा ताजा बनाए रखा। तुनक मिजाजी के लिए जानी जाने वाली ममता दीदी ने भी बगैर कोई उपाय किए लालू के कदमों का पालन तो किया मगर हमेशा लाभ में चलने वाली रेल को पाताल में धकेल दिया। अब सीएम बनकर कोलकाता में तो अपना सपना पूरा कर रही है, मगर इस सपने का खलनायक बनने जा रहे दिनेश त्रिवेदी पर किराया 10-से लेकर 15 प्रतिशत बढाने का प्रेशर है। पीएम मन साहब भी मैडम की गैरहाजिरी में हरी झंड़ी नहीं दिखा रहे थे, मगर देखना है कि बीमारी के बाद आतंकवादी घटना से दहले भारत पर मैडम किराया ज्यादा करने की मंजूरी कब तक देती है। उनकी नजर यूपी समेत कई स्टेट में हो रहे इलेक्शन पर भी है कि किराया ज्यादा होने का असर भी तब तक मिट जाए। यानी इस साल के अंत तक भैय्या किराया बढना जरूरी है, क्योंकि प्रणव दादा भी मैडम पर प्रेशर बनाने में कभी चूकने वाल नहीं है। दादा और दीदी के चक्कर में सोनिया जी असमंजस में हो सकती है क्योंकि रेलवे अधिकारी तो 25 फीसदी बढ़ोतरी का दवाब बना रहे है। यानी खलनायकों की लिस्ट में त्रिवेदी जी आपका स्वागत है। विपक्ष और जनता से जूते खाने के लिेए बस तैयार रहे।से  


हवा में उडान भरते है रेल मंत्री

श्रीमान दिनेश त्रिवेदी जी है तो रेल मंत्री मगर रेल से सफर करने की बजाय उन्हे हवा में उड़ना ज्यादा रास आता है। बेचारे क्या करे उनकी ममता दीदी फोनवा पर तुगलकी फरमान जारी करती है कि जल्दी कोलकाता पहुंचो। तो जाहिर है कि सबसे तेज रेल से भी जाने में एक दिन लग ही जाएगा। जबकि दीदी के साथ मीटिंग करके तो श्रीमान को अगले पांच घंटे के बाद वापस (बे) दिल्ली में भी आना है। लिहाजा हवाई में जाने और आने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचता। सही फरमाया दिनेश जी रेल को और ज्यादा बेहतर और आधुनिक बनाने के लिए आसमानी रास्ते से भी रेल के लिए कोई व्यवस्था करनी होगी, नहीं तो हवाई जहाज रेल के यात्रियों पर डाका डालता रहेगा और आप दीदी के फरमान को मानते ही रह जाएंगे।

महिला विशेषांक और मेरी चूक

राष्ट्रीय सहारा और सहारा टेलीविजन को छोड़कर जबसे ओंकारेश्वर पांडेय श्रीमान अरिदंम चौधरी की कई भाषाओं की श्रृंखला द संडे इंडियन (पहले साप्ताहिक और अब पाक्षिक) के संपादक का कार्यभार संभाला है, तभी से लगातार यादगार अंकों को लाने की योजना को साकार कर रहे है। नया अंक सदी की 111 लेखिकाओं पर केंन्द्रित था। इस अंक को लेकर कई बार बाते भी हुई। मगर 8-9 दिन के लिए मैं आगरा क्या गया कि इस बार यह अंक मुझे मिल ही नहीं पाया। जबतक मैं स्टॅाल पर पहुंचता उससे पहले अंक बिक चुके थे। अंक कैसा बन पड़ा होगा मैं केवल इसकी कल्पना कर सकता हूं। इससे पहले मीडिया पर जनवाणी कार्यक्रम के बंद होने के 25 साल पर केंन्द्रित अंक की भी खासी चर्चा हुई थी। और सबसे मजेदार पहलू तो यह है कि द संडे इंडियन का जल्द ही एक अंक भोजपूरी फिल्मों पर आने वाला है। यानी जो पाठक अब तक इसकी उपेक्षा करते रहे हो वे अब इससे बच नहीं सकते। श्रीमान ओंकारेश्वर पांडेय जी को कोटिश: साधुवाद कि एक व्यावसायिक पत्रिका को भी इन मुद्दों पर अंक निकालने के लिए वे राजी कर ही ले रहे हैं।


पत्रिकाओं की कीमत और ये पाठक

और राज्यों के बारे में तो मैं नहीं कह सकता, पर बिहार के दर्जनों पुस्तक प्रेमियों को मैं जरूर जानता हूं जो आपस में सहकारी आधर पर किताबें और पत्रिकाएं खरीद कर पढते है। कुछ कमीशन छोड़ देने वाले बुक स्टॅाल के ये लोग पक्के ग्राहक होते है। मसलन हंस (तब मूल्य 20 रूपए था) इन सबों को 17 रूपए में ही मिलती है। पांच सात दोस्त तीन या चार रुपए मिलाकर पत्रिका खरीद कर आपस में ना केवल अध्ययन करते है बल्कि खास मुद्दो पर चर्चा भी करते है। गया औरंगाबाद आरा हजारीबाग डालटेनगंज आजि कई शहरों मे कई दोस्त मिलकर हर माह दर्जनों पत्रिकाएं और किताबें खरीद कर साहित्य प्रेम की जिजीविषा को जिंदा रखते है। मगर शहरी आबोहवा में रहकर ज्यादातर साहित्यिक संपादक मनमाने ढंग से कीमत रख देते है। अभी पाखी का भारी भरकम महा विशेषांक श्रीमान राजेन्द्र यादव पर आया है। 350 पृष्ठों के इस अंक की कीमत 70 रूपए है। दाम देखकर तो पहले मैं भी चौंक पड़ा। हालांकि अंक तो पहली नजर में मैं भी नहीं खरीदा। मगर अंक तो खरीदना ही पड़ेगा। मगर मेरे जेहन में बार बार यही सवाल कौंध रहा है कि बिहार के हमारे पुस्तक प्रेमी मित्र मंडली इस अंक को कैसे खरीदेंगे?  हालांकि मेरे भीतर भी पहले जैसा साहित्य प्रेम अब कुलांचे नहीं भरता। यही वजह है कि हर माह एक हजार रूपए का मेरा बजट कई बार शेष रह जाता है। खासकर मंडी हाऊस से वाणी प्रकाशन के बुक स्टॅाल के हटने के बाद तो किताबों और पुस्तकों को एक साथ देखने की हसरत बनी हुई है।


तुस्सी ग्रेट हो संत हापुडिया जी महाराज

संत शिरोमणि कृपालुजी महाराज रहते भले ही यूपी में हों, मगर इनकी ख्याति और नाम दुनियां भर में है। करीब 22-23 साल पुराने मेरे एक मित्र का नाम सुनील हापुडिया है। चीनी रस के खांड का कारोबार करने वाले इस मित्र की कमाई ठीक ठाक हो जाती थी, मगर बचपन में ही मां और पिताजी के निधन के बाद अपना रखवाला खुद था। हास्य कवि भोंपूजी के दूर के रिश्तेदार होने के चलते इसमें भी हास्य कविता लिखने और गाने का शौक चर्राया। एक कवि के रूप में थोड़ी बहुत धाक भी थी। इसके जीवन में कई कन्याओं की इंट्री भी हुई मगर एक ओडिया कन्या ने तो अपनी बड़ी बहन से शादी करने का प्रस्ताव तक रख डाला। एक निराश प्रेमी की तरह हमेशा तलाश में रहा, और शादी भी की तो ऐसा परिवार और मानसिक बीमार कन्या मिली कि तलाक के बगैर ही शादी का बंधन खत्म हो गया। चीनी का बिजनेस त्याग कर सुनील ने .योग गुरू का धंधा शुरू किया, और जापान तक हो आया। अब योगगुरू का धंधा भी छोड़कर संतई और गुरू का धंधा में लग गया है।.बाल बढ़ा लेने से इसका चेहरा मोहरा काफी हद तक कृपालुजी महाराज से मिलता है. पिछले कई माह से रहकर अमरीका में ज्ञान बांट रहा मेरा दोस्त सुनील हापुडिया की इमेज संत आशाराम या जैसी हो गई है। पिछले कई दिनों से अमरीका के महाराज सुनील जी रोजाना मुझे फोन या फेसबुक पर अपना अनुभव के साथ साथ कविताएं भी सुना रहे है। मेरे घर पर दर्जनों बार पधार चुके इस विदेशी संतावतार पर हैरानी हो रही है तो यह जानकर दंग भी रह गया कि कानपुर की एक महिला इससे पांच घंटे तक फेसबुक पर चैट करके गीता महाभारत रामायण और भारतीय संस्कृति, सभ्यता और नाना प्रकार के आध्यात्मिक बातों से ज्ञानरस की गंगा में डूबकी लगाती रही. तुस्सी ग्रेट हो संत हापुडिया जी महाराज ।


सोमवार, 5 सितंबर 2011



सोमवार, ५ सितम्बर २०११


प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल-7




 साल के अंत तक पीएम बन सकते है राहुल ?

यह कहना और सुनना इस समय बड़ा अजीब सा लग सकता है कि इस साल के अंत तक राहुल बाबा और प्रियंका गांधी की पोलिटिकल पारी शुरू हो जाएगी। पोलिटिक्स की घुट्टी तो इन्हें बचपन (1985 से) से दी जा रही है, मगर सोनिया की बीमारी के बाद सारा परिदृश्य बदल चुका है। खासकर विकीलिप्स द्वारा राहुल गांधी के पीएम नहीं बनने की घोषणा के बाद गांधी परिवार इस मामले में करारा जवाब देने को बावला सा है। देश की हालात और मनमोहन सरकार की लगातार गिरती रेटिंग के बाद गांधी परिवार भी इसके लिए राजी हो गया है कि राहुल प्रियंका को प्रधान और उप प्रधान मंत्री बनाकर देश की जिम्मेदारी दे दी जाए। बस इंतजार कीजिए यदि देश में सबकुछ सामान्य रहा तो सोनिया गांधी के भारत आते ही बहुत कुछ बदल और बदला बदला सा माहौल बन और बनाया जा सकता है। अपनी सेहत को देखते हुए मैडम पार्टी नेतृत्व की बागडोर भी प्रियंका गांधी को किसी मौके पर सौंप सकती है। यानी नए साल 2012 में चौथी पीढी के आने पर बहुत कुछ ऐसा होगा जिसके बाबत ज्यादातर कांग्रेसियों ने सोचा भी नहीं था। यानी यूपी में बीएसपी की छोटी बहन बनकर सत्ता में रहने पर भी कांग्रेस गंभीर है।

मनमोहक बदला

हमारे प्रधानमंत्री जी यदि खामोश रहते है तो इससे उनको कमजोर और दब्बू समझने की भूल करने वाले तमाम लोग सावधान। हमारे मन साहब इतनी सफाई से वार करते है कि सांप भी मर जाता है और लाठी भी नहीं टूटती। पहले रामदेव और अब टीम अन्ना के लोग सरकार पर चिल्लाने के बहाने मन सरकार पर उत्पीड़न और तबाह करने का आरोप लगाना चालू कर दिया है। अरविंद केजरीवील किरण बेदी से लेकर प्रशांत भूषण तक सरकार पर जानबूझ कर लपेटने चपेटने और तंग करने का राग अलाप रहे है।  लड़की वेश में जान बचाकर रामलीला मैदान से भागे रामदेव भी अब मनमोहन सरकार पर देख लेने और तंग करने या दुश्मनी निकालने जैसे अलंकार लगा रहे है। रामदेव तो सरकार को सीधे धमका रहे है कि अगली बार आंदोलन को कुचलना महंगा पड़ेगा। बाबा रामदेव जी क्या आप दिल्ली में अगली दफा भी कोई धरना आंदोलन प्रदर्शन कर लेने का सपना ( मुंगेरी लाल के हसीन सपने) देख रहे है ? अन्ना साहब भी अपने प्यारे पंचों की हालात देखकर सरकार की नीयत पर आग बबूला हो रहे है।  मगर कमाल है कि मन साहब खामोशी के साथ अपना काम लगातार कर और करा रहे है। यानी शांत रहकर दूसरों को अशांत (तबाह) करने की मनमोहक कला{अदा) में माहिर होना है तो सरदार जी की निंदा करने की बजाय उनको अपना गुरू बनाना ही ज्यादा सार्थक होगा।



ईमानदारी का दिखावा

हमारे सबसे ईमानदार पीएम मनमोहनजी ने अपनी और अपने सहयोगी मंत्रियों की संपति की घोषणा कराके वाकई ईमानदारी का नेक प्रदर्शन किया है। सबसे अमीर मंत्रियों में कमलनाथ अव्वल रहे, पीएम होकर भी मनमोहनजी उनके सामने पानी भरते दिखे।भारत जैसे गरीब देश जहां पर 86 करोड़ मोबाईल और 10 करोड़ लैप्टॅाप और नेट यूजर के बाद भी 52 फीसदी लोगों को दो वक्त खाना नसीब नहीं होता। एक तरफ ऐसे लोगों की तादाद भी काफी हो गई है जिनका सालाना वेतन करोड़ों में है तो दूसरी तरफ भारत की 80 फीसदी आबादी आज भी 10 हजार से कम पगार पाता है। भारत जैसे गरीब देश के अमीर(बेईमान) सांसदों की सूची मन को उत्साहित करने की बजाय टीस देती है कि तमाम संसाधनों पर यह कैसी कुंडली पड़ गयी है कि नेता नौकरशाह दलाल और बेईमानों के अलावा सामान्य लोगों को गरीबी के जाल से बाहर निकलना दूभर हो गया है। मंत्रियों की सूची से वाहवाही लूट रहे मनमोहन जी विकीलिप्स के खुलासे और सूची पर गौर फरमाएंगे जिसमें आपके आदर्श गांधी परिवार के खरबों रूपये बैंकों में पड़े है। वहीं इस सूची में सबसे बड़ी दलाल (कालगर्ल) नीरा राड़िया के नाम करीब 300 लाख करोड़ रूपए जमा है। आपकी ईमानदारी कहां तेल लेने गई थी मनमोहन साहब ?

तुस्सी ग्रेट हो गोदरेज
सरकारी धन और नाना प्रकार के हथकंड़ों से मालदार होने वाले (बेशर्म) नेताओ नौकरशाहों कुछ तो सबक लो। मुबंई शहर को बचाने और आम जनता के साथ शहर की आबोहवा को बेहतर रखने के लिए गोदरेज की मालकिन उधोगपति  आदि गोदरेज ने सरकार को 1750 एकड़ भूमि देने की पेशकश की है। गोदरेज समूह के पास मुबंई में 3500 एकड़ जमीन है। इस जमीन की कीमत लगाना किसी भी चार्टर अकांऊटेंट के लिेए  भी आज काफी कठिन है। जनता और शहर की फ्रिक् रखने वाली गोदरेज समूह की मालकिन वाकई श्रद्धा और आदर की पात्र बन जाती है। यकीन करना मुश्किल सा लगता है कि जिस देश में एक एक इंच जमीन के लिेए दूसरों की जान लेने वाले इसी देश में गोदरेज जैसा भी एक आदर्श समूह है जो अरबों खरबों की जमीन को केवल जनता और शहर की सेहत के लिए देने पर गंभीर है। तुस्सी ग्रेट हो आदि गोदरेज जी। आपकी जितनी भी तारीफ की जाए वो सब कम है।


जेड सिक्योरिटी में अन्ना

जन लोकपाल बिल के बूते देश भर में अपनी धाक जमाने वाले अन्ना हजारे को सरकार ने जेड ग्रेड की सुरक्षा प्रदान की है और श्रीमान अन्ना ने इसे स्वीकार भी लिया। यह बात कुछ हजम नहीं हो रही है कि जनता के बूते जनता द्वारा जनता के लिए जनसंघर्ष करने वाले अन्ना को अब इसी जनता से क्या खौफ होने लगा कि एकाएक मंदिर में खुले  आम रहने वाले अन्ना को सरकारी सुरक्षा की जरूरत आ पड़ी। अन्ना को सरकार के इस कवच को उतार फेंकना चाहिए। उन्हें बूझना होगा कि यह सुरक्षा नहीं फंदा है जिसमें उलझ कर रह गए तो जनता पीछे छूट जाएगी और अन्ना आगे निकल जाएंगे, जहां पर वे खुद को सरकारी साजिश के शिकार माने जाएगे। यानी अन्ना को अब आगे का रास्ता तय करना होगा कि बगैर खतरे के कौन सा रास्ता सबसे सेफ रहेगा।


माकन खेल (फेल) और राजीव पास

जनाधार विहीन होने के बाद भी समय और सामने वाले की औकात को भांपने में हमेशा फिस्सडी रह गए अजय माकन हर बार चौबे बनने की फिराक में मात खा जाते है। हर विवाद के मौके पर अपनी टांग अड़ाने वाले माकन खेल नीति बनाने के नाम पर पत्रकारों के पत्रकार और नेताओं के नेता के रूप में (कु) विख्यात राजीव शुक्ला से जा उलझे। देश की सबसे अमीर खेल बोर्ड बीसीसीआई को सरकारी फंदे में लाने का प्लान बनाया था। मगर बीसीसीआई के उपाध्यक्ष राजीव शुक्ल के पावर को जानकर भी अनदेखा कर गए माकन इस बार भी चारो तरफ बुरी तरह चित हो गए। अपने दिवंगत चाचू ललित माकन के नाम और काम का फसल काट रहे अजय माकन अपनी कुटिलता से तो अपने चाचा की बेटी के अधिकारों को तो दबा देते है, मगर बुलडोजर राजीव के सामने माकन साहब आपकी दाल नहीं गल सकती। मौका पड़ने पर तो अपने राजीव साहब मनमोहन जी से भी जबरन कोई काम करवा सकते है। माकन भाई ज्यादा उलझने की बजाय अपनी नौकरी की सलामती मनाते रहने में ही बुद्धिमानी है।





इरादा तो नेक है

दो विचारवान लोग जब एक साथ बैठते हैं तो कुछ ना कुछ भला ही होता है। खासकर बिहार के सीएम नीतीश कुमार और ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश एक साथ मंत्रणा करना तो और खास हो जाता है। गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों के लिए बीपीएल आयोग बनाने के सुझाव को जयराम ने औपचारिक तौर पर मान लिया। अब देखना है कि जयराम इसे किस शक्ल में प्रस्तुत करके बीपीएल के नीते रहने वाले करोड़ों लोगों के कल्याण का श्री गणेश  कब कहां और किस तरह करते है।


संकट में बीएसएनएल

देश की सबसे बड़ी सरकारी दूरसंचार कंपनी संकट में है। घाटे से वह इस कदर परेशान हो गई है कि देश भर के 25 हजार कर्मचारियों की छंटनी पर गंभीर है। हालांकि उसके पास करीब 75 हजार कर्मचारी अभी भी फालतू है। डॅाट ने इस पर रोक लगाते हुए वीआरएस स्कीम लाने का सुझाव दिया है। सरकारी लापरवाही और घोर गलाकाट कंपीटिशन में भी बीएसएनएल के करोड़ो लाईने बेकार पड़ी है। लोग सरकारी सेवा से उबकर निजी शरणों में जा रहे है। और अपने संचार मंत्री कपिल सिब्बल साहब को सरकारी उपक्रमों की बदहाली तबाह नहीं करती है. सिब्बल साहब कुछ तो शर्म करो वकील साहब कि दम तोडने जा रही बीएसएनएल को फिर से खड़ा किया जा सके। डॅाट के अलावा कैग से भी लताड़ खाने के बाद भी वकील साहब के साथ साथ बीएसएनएल
के नौकरशाहों को इसकी बदहाल होती हालत पर ध्यान नहीं जा रहा।

योगानंद का कांग्रेसी खेल

दिल्ली के सभी विधायकों में सबसे ज्यादा विद्वान लेखक के रूप में विख्यात और दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष डा.योगानंदशास्त्री से तो किसी को ऐसी उम्मीद ही नहीं थी। लोकसभा और राज्यसभा के सांसद सदन को नहीं चलने दे रहे है। दोनें सदनों के अध्यक्ष परेशान हो रहे है, मगर दिल्ली विधानसभा को इसके अध्यक्ष डा.योगानंद शास्त्री ही चलने नहीं दे रहे है। एक तो सत्र इतना छोटा रखा जाता है कि जब तक हवा माहौल गरमाता है, तभी सत्र खत्म हो जाता है। इस बार तो बीजेपी सीएम के इस्तीफे को लेकर ज्यादा हल्ला बोलने के लिए तैयार थी, तभी शास्त्री ने मार्शलों की मदद से 23 विधायको को पूरे सत्र के लिए सदन से निकाल बाहर करके सीएम को साफ सुरक्षित बचा लिया। सदन में वैसे भी विधायकों से ज्यादा दंगल मार्शल करते है, क्योंकि कहीं कुछ हंगामा हुआ नहीं कि विधानसभा अध्यक्षों द्वारा मार्शलों को सदन में दौड़ा दिया जाता है। शास्त्री जी पढ़े लिखों पर एक कहावत है कि पढ़ा लिखा मूरख। क्या देहाती मुहाबरा आपके ऊपर सटीक नहीं जम रहा है?


छुट्टी लेने के सौ बहाने

मेहनती जापानियों के बारे में एक किस्सा मशहूर कि एक जापानी को हर शुक्रवार के दिन बदन दर्द करने लगता था और रविवार को यही दर्द खुद ब खुद खत्म हो जाता। वह एक मनोचिकित्सक के पास गया तो उसने बताया कि अगले दो दिनों की छुट्टी के अहसास से ही बदन में दर्द जाग जाता था और अगले दिन फिर काम करने की लगन से रविवार को बदन तरोताजा हो जाता था। इसके विपरीत ज्यादातर भारतीयों को सोमवार को काम के नाम से ही बुखार चढ़ जाता है और शुक्रवार से ही मौज मस्ती मनाने के नाम पर वे मगन हो जाते है। भले ही यह भारतीयों के निकम्मेपन और आलस स्वभाव पर एक मजाक हो मगर एक सर्वेक्षण में इस बहाने पर मुहर लग चुकी है कि बहाने बाजी से छुट्टियां लेनें में सबसे अव्वल होते है भारतीय। क्या इस पर कोई शर्मिदा होने के लिए राजी है?

रेप का कोई शेप नहीं

सचमुच आदमी से ज्यादा नंगा और दरिंदा (जानवर भी कह ले) कोई और नहीं होता। कोई अपनी मासूम बेटी के साथ बाप तो कोई चाचा कोई फूफा कोई भाई, मौसा तो कोई पड़ोसी नाबालिग रिश्तेदारों और लड़कियों की इज्जत अस्मत के डकैत बन बैठे है। उम्र 55 की और नजर बचपन पर। हम किस युग में जी रहे है, यह पता नहीं। इस गंगा यमुना और सरस्वती जैसी नदियों और संबंधों की गरिमा के लिए जान तक कुर्बान कर देने वाले इस देश में काम का खुमार कुछ इस कदर हावी हो गया है कि लोग अब तमाम रिश्ते नातों और उम्र का लिहाज तक भूल गए है। 91 फीसदी कम उम्र की लड़कियां अपने घर में ही सुरक्षित नहीं है।

कुमाता का एक शर्मनाक चेहरा

कहा जाता है कि पूत कपूत हो सकता है। बाप सांप हो सकता है पर माता कुमाता नहीं हो सकती। शायद इसी वजह से माता का स्थान सबसे उपर है। मगर आज के युग में कुमाताओं की भी कोई कमी नहीं रह गई। दिल्ली की ही एक नीरा नामक माता ने अपने प्यार में अड़चन बन रहे 19 साल के बेटे को दो लाख की सुपारी देकर हत्या करवा दी। सात माह तक यह मामला छिपा भी रहा, क्योंकि दोस्त हत्यारों ने चेहरा इतना कुचलकर हरिद्वार की तरफ फेंक आए थे कि पुलिस को लाश तो मिली, मगर पहचान जाहिर नहीं हो सकी। अपने पति को जूती समझने वाली नीरा का इश्क चल भी रहा था कि एकाएक दो लड़के पुलिस के हत्थे चढे और पुलिसिया मारपीट में  कुमाता का चाल चरित्र चेहरा चालाकी पर से पर्दा उठ गया। अपने आशिक के साथ हवालात की रोटियां खा रही कुमाता पर क्या किसी को कोई सहानुभूति है ?

आशिक बनने से पहले सावधान

अगर आप किसी से प्यार करने जा रहे हो तो सावधान। अब जमाना बदल गया है। आपकी प्रेमिका भी वैसी नहीं रही कि जबतक इश्क किया, किया। और मौज मस्ती के बाद जब चाहा तो फिर छोड़ दिया। और लड़कियां भी मन दबाकर बेवफाई की पीड़ा को पी जाए। जी नहीं, अब तो लड़कियां भी सबक सीखाना जान गई है। नोएडा की एक लड़की तो आशिक के दफ्तर के बाहर धरने पर बैठ गई,तो दूसरी  लड़की ने अपने प्रेमी के चेहरे पर तेजाब फेंक कर चेहरा ही बदरंग कर दिया। और अपने प्रेमी की बेवफाई से परेशान होकर एक कन्या तो बाकायदा बारात लेकर लड़के के घर पर जा धमकी। परिवार वालों ने अपनी इज्जत(?)  को बचाने के लिए दुल्हा के रूप में आई दुल्हन को घर में लाकर बहू बनाया। अपनी प्रेमिका को गर्भवती बनाने के बाद रफूचक्कर हो गए आशिक को तो और बुरा अंजाम भुगतना पड़ा। अदालत में गुहार लगाकर बाकायदा पुलिस सुरक्षा के साथ अपने ससुराल में जाकर बैठ गई । ससुराल में ही चांद सा बेटे को दादा दादी के बीच जन्म देकर आज घर में राज कर रही है और आशिक महाराज अपनी जान बचाने के लिए मामले को रफा दफा करके सबके सामने सिर नवाकर बैठ गए। यानी प्यार करने से पहले आशिकों को सोच लेना होगा कि धोखा देना अब इतना आसान नहीं है।

यह कैसी साफगोई?

शाहरूख खान भी प्रचार प्रसार के लिए वो तमाम हथकंड़ों का सहारा लेना चालू कर दिया है। अपनी एरोगैंसी के लिेए बदनाम और इसी के चलते कई घरेलू संबंधों को खो चुके खान इस समय दबंग और थ्रीइडियट से पीछे चल रहे है। तो नाम और गप्प शप्प में बने रहने के लिे किंग खान ने अपने सेक्स लाईफ के अनुभवों को सार्वजनिक करने लगे है। अपनी इमेज को लेकर सावधान खान को सबों के सामने बिपाशा और डिनो मारिया के ( रंगरलियों) ब्लू फिल्म का तो खुलासा करके बिपाशा को शर्मसार (मौज मजा बन जाता है सार्वजनिक होने पर सजा) कर दिया, मगर अपने उन तमाम संगीनियों को छिपा गए। अलबता यह कहना नहीं भूले कि मजा तो केवल मनपंसदीदा पार्टनर के साथ ही आता है। गौरी सावधान । खान में अब रावण जैसे किंग के गुण दिखने लगे है। क्या होगा जब रावण सबके सामने होगा।


शंकर दयाल सिंह : क्या सच क्या झूठ

आपातकाल के दौरान इमरजेसी: क्या सच और क्या झूठ किताब लिखकर इमरजेसी और संजय गांधी का कच्चा चिठ्ठा खोलने वाले बिहार के हरदिल अजीज लोकप्रिय सांसद और लेखक दिवंगत शंकर दयाल सिंह की बेहद लोकप्रिय किताब है। त्तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नाक के बाल रहे शंकर दयाल जी इस किताब के चलते ही कांग्रेस पार्टी और श्रीमती गांधी की गुड बुक से बाहर हो गए। हर आदमी को अपना बनाकर उसके हो जाने वाले शंकर दयाल जी का मुस्कुराता चेहरा और जोरदार ठहाके आज भी लोगों को बरबस चौंका देती है। किसी मिठाई से भी ज्यादा मिठास भरे शंकर दयाल जी के इस साल 75 वां जन्मदिन (27 दिसंबर) है। जिसे अम़ृत महोत्सव की तरह एक महाउत्सव के रूप में पूरे वर्ष मनाया जाएगा। इसे एक अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक राजनीतिक और पत्रकारिय जलसे के रूप में मनाने की योजना पर काम चल रहा है। कई किस्तों में सांसद और मंत्री रह चुके और कश्मीर नरेश के अलावा भारतीय साहित्यिक संबंध परिषद के अध्यक्ष डा. कर्ण सिंह इस आयोजन समिति के मुखिया है। देश के कई राज्यों के साथ ही विदेशों में भी कुछ कार्यक्रम कराने की योजनाओं को अंतिम रूप दिया जा रहा है। इसमें खासतौर पर शंकर दयाल जी के पुत्र रंजन और राजेश के अलावा बेटी रश्मि सिंह की त्तत्परता लगन मेहनत और काम करने के अनथक प्रयासों का ही नतीजा है कि राष्ट्रपति भवन में महामहिम राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा देवी सिंह पाटिल इस अम़ृत महोत्सव का शुभारंभ करेंगी। सूर्य मंदिर के लिए जग विख्यात गांव कस्बा (जो नाम दे दे) देव में सूर्य मंदिर के बाद देव, भवानीपुर गांव के शंकर दयाल सिंह और इनके पिता कामता प्रसाद सिंह काम को ही लोग राष्ट्रीय स्तर पर जानते और मानते है। एक छोटे से गांव से बाहर निकल कर दुनियां भर में विख्यात होने वाले इस ग्रामीण धरती के सपूत जिसने अपनी कलम से पूरी दुनियां को रौंद डाला और अपनी मुस्कान से सबों को अपना बना लिया। सबों को अपना बनाकर उसका बन जाने वालो में एक इस जादूगर को अपने गांव देहात की जनता की तरफ से नमन। गांव के हर उस आदमी की तरफ से सलाम जिसके पास इस पिता पुत्र को लेकर दर्जनों कथा कहानी और संस्मरण आज भी मन में जिंदा है। देव के हर आदमी की तरफ से मैं इस महा उत्सव की सफलता की कामना करता हूं। शंकर दयाल सिंह के गांव शहर कस्बा देव का ही वाशिंदा होने के नाते यह हमलोग की जिम्मेदारी भी बन जाती है कि इस परिवार के साथ जुड़कर रहे ताकि इसी बहाने देव का भी कुछ कल्याण हो सके।


(दो सप्ताह से इस साप्ताहिक कॅालम को नियमित नहीं रख पा रहा हूं , इसके लिए क्षमा करे। मेरी कोशिश रहेगी कि यह कॅालम आप सब तक शनिवार को हर हाल में उपलब्ध हो सके।