गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

कितने निर्मल, कितने बाबा











हमारे देश में यह पहली बार नहीं है कि किसी तथाकथित बाबा पर लोगों को गुमराह करके पैसे ऐंठनें का इल्जाम लगा है। मेरे ख्याल से जितने पुराने हमारे विभिन्न धर्म है लगभग उतना ही पुराना धर्म को धंधा बनाकर पैसे या अन्य कीमती वस्तुओं को हड़पने वाले असितत्व में रहे है। निर्मल बाबा बड़ी तेजी से उभरने वाले एक बाबा है जिन्होने कुछ ही समय में सभी नये-पुराने मोक्ष, मुक्ति, छुटकारा दिलाने वाले कृपामयी लोगों को पीछे छोड़ दिया था। यह इतनी जल्दी देश-विदेश में शायद न छा पाते यदि इन्होनें अपनी प्रसिद्धि के लिए मीडिया का सहारा नही लिया होता। सवेरे उठते ही किसी भी अधार्मिक चैनल को आन कीजिए, आप इनके दर्शन प्राप्त कर लेंगे। इनके कृपा देने का तरीका भी एकदम हट के फिल्मों की तरह होते है। किसी के लिए रूपयों का दान, किसी के लिए किसी खास पूजास्थल को जाने का आदेश, काम बन गया तो ठीक नही तो जो नही कर पाये उसी की कमी बता दी।
इसमें कोर्इ शक की गुंजाइश नही रह गर्इ है कि धर्म को एक धंधे के रूप में कर्इ लोगों ने विकसित कर लिया है। जिस प्रकार एक गंभीर बीमारी से पीडि़त व्यक्ति इलाज की हर पद्धति अपना लेता है, ठीक उसी तरह दु:खी और निराश व्यक्ति भी किसी भी तरह के सान्त्वना और रास्ते दिखाने वाले व्यक्ति की शरण में चला जाता है। कभी बच्चों की बलियों के नाम पर या कभी उनके दु:ख हरने के नाम पर, ये लोग जनता की अंध भकित या अति भकित का समुचित दोहन करना जानते है। इस प्रकार के लोगों की पैठ गाँव, कस्बो, मुहल्लों से लेकर चकाचौंध करने वाले शहरों और विदेशों तक में है। संगठित और असंगठित हर रूप में इस प्रकार के लोग आपको मिल जाऐंगे। सवाल यह उठता है कि कैसे और कब से लोगों ने ऊपरवाले का सहारा छोड़ इन नीचे वालों को अपनाना शुरू कर दिया? कब से वे लोग जो पहलें केवल अपने धर्मानुसार पूजास्थलों पर जाकर अपने आराध्य को प्रणाम किया करते थे, आजकल इन बाबाओं को प्रणाम करने लग गये?
यह एकता की अखंडता है, जी हाँ, एकता कुछ लोगों की, जो संगठनात्मक रूप ले लेती है और फिर खेल शुरू होता है चकाचौंध और ग्लैमर रूपी दीपक का जिसमें आम जनता, जिनके कदम-कदम पर दु:ख, तकलीफें बिछी हुर्इ है, पतंगे की तरह खीचती चली आती है। इस खेल में मीडिया, नेताओ, उधोगपतियों और कुबेरपतियों का भी समय-समय पर इस्तेमाल किया जाता है। जहाँ ये कुबेरपति अपने काले धन को धर्म के रास्तें सफेद बना लेते है, वही टीवी पर इन काले धन की महिमा की चकाचौंध से आम आदमी की आँखें भी चौंधिया जाती है।
दु:ख तो इस बात का है कि जहाँ हम 21वी सदी में रहते हुए भी इन चक्करों से निकल नही पाये है, वही कुछ मीडिया के समझदार और जिम्मेदार लोग भी जानबूझकर ऐसे लोगों का महिमामंडन कर न केवल उनके कारोबार को चार चाँद लगवा रहे है, बलिक अपनी उस सामाजिक जिम्मेदारी से भी मुँह मोड़ रहे है जो केवल इंसान के तौर पर ही नहीं बलिक उनके पेशे की भी अनिवार्यता है। केवल वे ही नही बलिक ऐसे समय में उन धर्म का झंडा बुलंद करने वाले लोगों की जबान भी शांत रहती है जो अपने आप को देश और धर्म का एकमात्र हितैषी समझते है। आशा है कि वे भी इन बाबाओ के खिलाफ भी अपना सफार्इ अभियान चलायेगें जो न केवल देश की जनता की आस्था के साथ खेल रहे है बलिक जिस धर्म का वे झंडा उठाये रहते है उस को भी कलंकित कर रहे है।
अन्त में उन बच्चों कों बधार्इयाँ जिन्होनें इस ओर लोगों का ध्यानाकर्षण कराया। हालांकि अब तक बाबाजी पर काफी कृपाऐं बरस चुकी है, लेकिन यही कहा जा सकता है कि -देर आयद दुरूस्त आयद

स्नेहन से स्वास्थ्य समस्याओं के समाधन










स्नेहन अर्थात तेल या घी के विभिन्न प्रयोगों की प्राचीन परम्परा के अनेकों प्रमाण मिलते हैं। आयुर्वेद में वर्णित शात्राोक्त विध्यिों के इलावा अनेकों अलिखित पर परम्परा से प्रचलित विध्यिँ भी हैं जो श्रुतिज्ञान के रूप में आज भी सुरक्षित हैं। सामान्य और अति विशिष्ट प्रयोग स्नेहन के अन्तर्गत प्रचलित है। पंच कर्म विध्यिों के अभ्यंग और तैल शिरोधरा एक महत्वपूर्ण अंग है। नस्य, तैल युक्त विरेचन तथा पिच्चू धरण भी आयुर्वेद के सुपरिचित विधन है। इस विद्या अर्थात स्नेहन पर जो अध्ययन, सूचनाएं और अनुभवों के निष्कर्ष हमें प्राप्त हुए, उनमें से कुछ ये हैं :
1.केवल मात्रा गौध्ृत से अंजन करने से आजीवन रतौंधी, कैट्रैक्ट, अंजनहारी, आईफ्रलू आदि रोग नहीं होते तथा ऐनक लगाने की आवश्यकता नहीं पड़ती । अर्थात गौध्ृत के कारण विजातीय पदार्थों का संग्रह नहीं होता और यह घृत संक्रमण रोध्क भी है। पर यहां यह जानना जरूरी है कि गौध्ृत कौनसा या किस गाय का हो और कैसे बना हो । इस पर हम आगे चर्चा करेंगे ।
2.नाक में गौध्ृत नसवार लेने से स्नायुकोष निरन्तर स्वस्थ और सशक्त बने रहते हैं। इतना ही नहीं, आयु के साथ स्नायुकोषों की मृत्यु होने का क्रम भी लगभग बन्द हो जाता है। यानी ब्रेनसैण्ड बनना बन्द होता है। सबसे मूल्यवान और महत्व की बात यह है कि जो अरबों स्नायुकोष आजीवन प्रसुप्त पड़े रहते हैं, वे भी क्रियाशील होने लगते हैं जिसके कारण व्यक्ति भी स्मरण शक्ति तथा प्रसुप्त अतिमानवीय शक्तियां भी क्रियाशील होने लगती हैं। इन प्रभावों का कारण शायद सैरिब्रोसाईट नामक वह पदार्थ है जो विशेष प्रकार की गऊओं के घीदूध में पया जाता है। कैरोटीन व विटामिन ॔ए’ के बारे में भी हम जानते ही हैं ।
3.एक अद्भुत जानकारी यह मिली है कि अध्रंग ;पैरेलेसिज़द्ध रोगियों को गौध्ृत की नसवार देने से कुछ देर में वे रोगी पूर्णतः ठीक हो गए । अध्रंग का आक्रमण होने पर उसी समय गौध्ृत की नसवार दी जानी चाहिए । एक वैद्य का दावा है कि पुराने अध्रंग रोगियों की मालिश विध्विधन से बने गौध्ृत से की गई तो सभी रोगी ठीक हो गए । एक भी रोगी ऐसा नहीं जो ठीक न हुआ हो । हम जानते हैं कि अध्रंग में स्नायुकोष नष्ट हो जाने के कारण अंग विशेष निष्क्रीय हो जाते हैं और आधु्निक विज्ञान के पास ऐसा कोई उपाय नहीं जिससे इन मृत कोषों को पुनः जीवित किया जा सके या नवीन कोष बनाए जा सकें । पर यह कमाल साधण से लगने वाले इस घृत प्रयोग से सम्भव है। योग्य वैद्यों और वैज्ञानिकों द्वारा इस पर विध्वित शोध किए जाने की आवश्यकता है।
विचारणीय और उत्साहजनक बात यह भी है कि अनेकों असाध्य समझे जाने वाले मानसिक रोगों का इलाज गौध्ृत प्रयोग से सम्भव हो सकता है।
4.गौ सम्पदा नामक पत्रिका में ही एक सूचना के अनुसार मैंने असाध्य अम्लपित व पेट दर्द के लिए गौघृत और गाय के दूध का प्रयोग किया । एक ही दिन में लाभ नजर आने लगा । केवल एक मास के प्रयोग से अम्लपित के पुराने रोगी ठीक होते हैं। आधु्निक युग के अनेक रोगों का मूल कारण यह अम्लपित रोग है। आयुर्वेद के विद्वान जानते हैं कि अम्लपित का निवारक घृत है और गौघृत विष निवारक भी है। हम आहार में अनेक प्रकार के विशाक्त रसायन खाने के लिए मजबूर हैं। अतः गौघृत का विध्वित प्रयोग इन विषों से हमारी पर्याप्त रक्षा कर सकता है।
5.अनेकों प्रयोगों से साबित हो चुका है कि घातक और असाध्य रेडियेशन से रक्षा और उसके दुष्प्रभावों को घटाने में गौघृत अत्यन्त प्रभावी है। एक्सरे, अल्ट्रासांऊड, सीटिस्कैन, सोनोग्राफी, कीमोथिरैपी के घातक दुष्प्रभावों के इलावा हम हीटर, गीजर, फ्रिज, हैलोजिन, टयूबों, ट्रान्सफार्मरों, विद्युत मोबाईल टावरों की घातक रेडिएशन प्रभावों के शिकार हर रोज बन रहे हैं। इन अपरिहार्य आपदाओं के विरु( गौघृत का प्रयोग सुरक्षा कवच साबित हो सकता है। विकीर्ण तक के प्रभावों को नष्ट करने में गौघृत सक्ष्म हैं, यह संसार के अनेक वैज्ञानिक सि( कर चुके हैं।
6.सरदर्द के अनेकों रोगियों की चिकित्सा हमनें गौघृत की मालिश पावं के तलवों में करके सफलता प्राप्त की है। पांव के तले में मालिश का प्रभाव सीध मस्तिष्क और शरीर के अन्य अंगों तक पहुंच जाता है। एक्यूप्रैशर के विद्वान जानते हैं कि पांव के तले में हमारे पूरे शरीर के प्रतिबिम्ब केन्द्र हैं जो अत्यन्त संवेदनशाील और शक्तिशाली हैं। प्रत्येक चिकित्सक को यह सरल पर अद्भुत प्रभाव वाला उपाय आजमानापरखना चाहिए। कमाल की बात यह है कि पावं के तले में की मालिश से केवल सरदर्द ही ठीक नहीं हुआ पेट की गैस, जलन, बेचैनी, अपच और हृदय पर पड़ने वाला दबाव व एंजाईना की दर्द भी उल्लेखनीय रूप से कम होती गई । ऐसा एक नहीं अनेकों रोगियों को साथ हुआ। आवश्यकता है कि पांव के तलों के शरीर के विभिन्न अंगों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विध्वित शोध व अध्ययन हो । यह जानना भी जरूरी है कि गर्मियों में बूटजुराब पहनने का शरीर पर क्या और कितना दुष्प्रभाव होता है।
7.पकाकर ठण्डा किया तेल कानों में डालने का विधन आयुर्वेद में है और भारत में यह एक प्राचीन परम्परा भी है। आधु्निक चिकित्सक इसका निषेध करते हैं पर हमनें पाया है कि कानों में तेल डालने से सरदर्द, बाल झड़ना, आंखों की रोशनी, स्मरण शक्ति पर बहुत अच्छा और स्पष्ट प्रभाव कुछ दिनों के प्रयोग में ही नजर आ जाता है। कंठ शोथ्।, टांसिल के कुछ रोगी तो बिना दवा के केवल कान में तेल डालने से ठीक हो गए । तेल डालने से मैल सरलता से बाहर आ जाती है। एक रोगिणी की 1012 साल पुरानी कान दर्द मूलिन आयल डालने से 1516 दिन में ठीक हो गई और उसके कान से चने जितना बड़ा कठोर मैल का टुकड़ा स्वयं बाहर आ गया । कान का पर्दा फटा हुआ हो तो तेल डालना उचित नहीं, केवल पिच्चू धरण करना चाहिए। अर्थात पूरे स्नायुतंत्रा को स्वस्थ रखने के लिए कान में तेल और नाक में भी तेल या गौघृत धरण करना अत्यन्त लाभदायक है।
नाक कान के स्नेहन व सर की मालिश से पिच्यूटरी और पीनियल ग्लैंड भी स्वस्थ रहते हैं। हम जानते हैं कि पूरे शरीर और हमारे सभी ग्लैण्डस का नियंत्राण पिच्यूटरी ग्लैंड द्वारा होता है। उसके स्वस्थ होने का अर्थ है कि शरीर की सभी क्रियाएं सुचारू होंगी और शरीर स्वस्थ रहने में सहायता मिलेगी ।
विशेष निष्कर्ष :
श्वास, आहर और एलोपैथिक दवाओं के माध्यम से जो न्यूरोटॉक्सीन हमारे स्नायुतंत्रा में संग्रहित होते हैं और स्नायुकोषों को नष्ट करते हैं उनके उपचार व बचाव की दिशा में कुछ खास काम नहीं हो सकता है। तभी अवसाद, पागलपन, एल्जाईमर, ऑटिज़्म तथा अन्य मानसिक रोग महामारी की तरह ब़ रहे हैं। अमेरिका जैसा शक्तिशाली और विकसित देश ऑटिज़्म तथा अन्य अनेकों मानसिक रोगों का शिकार बनता जा रहा है। इन सब न्यूरोटॉक्सीन व असाध्य मानसिक रोगों से सुरक्षा का सुनिश्चित और शक्तिशाली उपाय व समाधन है स्नेहन । पर इसके लिए जरूरी है कि हमें शु( गौघृत, शु( सरसों का तेल, शु( नारियल, सूरजमुखी, बिनौले, तिल आदि के तेल मिल सकें । इस पर भी अन्त में चर्चा करेंगे ।
8.सूखी खांसी पर भी हमनें सैंकड़ों बार स्नेहन प्रयोग किए । रोचक प्रयोग यह है कि सूखी खांसी वाले को गुदा में शु( सरसों के तेल का पिच्चू धरण करवाया जाता है। हफ्रतों, महीनों पुरानी सूखी खांसी कुछ मिनट या अध्कि से अध्कि एक रात में ठीक हो जाती है। आई फ्रलू में भी यह प्रयोग सफल है। विचारणीय और शोध की बात है कि गुदाचक्र और हमारे कण्ठ व उत्तमांगों का सम्बन्ध किस प्रकार गुदा से है और गुदा का प्रभाव शरीर के अन्य अंगों पर कितना, क्यों और कैसे होता है? योगाचार्यों द्वारा गणेश क्रिया करनेकरवाने का क्या यह अर्थ नहीं कि वे गुदा चक्र के शोध्न का महत्व और शरीर पर इसके प्रभावों के रहस्यों को अच्छी तरह जानते थे। पर आधु्निक चिकित्सा शास्त्रा अनेक अन्य शरीर विज्ञान के रहस्यों की तरह इस बारे में भी अनजान है जबकि भारतीय मनीषी इसके गहन ज्ञाता थे।
विचारणीय यह भी है कि फोम के गद्दों पर बैठने, शौच के बाद पानी के स्थान पर टॉयलेट पेपर के प्रयोग का प्रभाव गुद रोगों, रक्त चाप, स्नायुमानसिक रोगों पर क्या होता होगा? शीतल जल से गुदा को अच्छी तरह धेने के क्याक्या उत्तम प्रभाव होते होंगे? भारतीय परम्परायें अत्यन्त वैज्ञानिक है। अतः शौच के बाद शीतल जल प्रयोग गुदा रोगों व स्नायु रोगों में सम्बन्धें पर गहन शोध की जरूरत है।
विशेष :
निर्गुण्डी तेल और विल्ब तेल की नियमित नसवार से पलित रोग पर वियज पाने का प्रयोग 2 बार हम सफलतापूर्वक कर चूके हैं।
क्या इसका अर्थ यह नहीं है कि स्नेहन विध्ि के सही प्रयोग से ॔जरा’ पर एक सीमा तक नियन्त्राण सम्भव है। आखिर सारी अति मानवीय शक्तियों का केन्द्र हमारा स्नायुतंत्रा ही तो है। अतः ऊर्जा संचय यानी ब्रह्मचर्य के पालन करने, ऊध्र्वरेतस बनने और स्नेहन जैसे प्रयोगों से एक सीमा तक जरा को जीतने व अनेकों असाध्य रोगों पर विजय पाने का कार्य किया जा सकता है। इस पर भी विध्वित शोध कार्य की जरूरत है।
प्रत्येक विषय की सीमाएं असीमित होती हैं पर हमारी क्षमता और समय की सीमा बंधी हुई है। अतः विषय को विराम देता हुआ कुछ सूचनाएं देना चाहूँगा।
ए1 तथा ए2 गौवंश :
1987 से आजतक हुए शोध बतलाते हैं कि अमेरीकी गऊओं जर्सी, हालिस्टीन, फ्रीजियन, रैड डैनिश आदि की अध्किंश नस्लों में बीटा क्रैसीन ए1 नामक प्रोटीन पाया जाता है जो कैंसर, मधु्मेह, हृदय रोगों तथा अनेक असाध्य मानसिक रोगों का कारण है। इनके दूध में अत्यध्कि मात्रा में मवाद ;पस सैलद्ध पास गए हैं जो कई रोग पैदा करते हैं। इसके विपरित भारतीय गौवंश के दूध में बीटा कैसीन ए2 नामक प्रोटीन पाया गया है जो कैंसर कोषों ;कार्सीनोमा सैलद्ध को नष्ट करता है। सैरिब्रोसाईट, कैरेटीन आदि अन्य अनेक तत्व भी हैं जो शुक्राणुओं को सबल बनाते हैं, पौरूष व प्रजनन शक्तिवध्र्क हैं, बु(िवध्र्क है। अतः स्नेहन में प्रयोग भारतीय गौवंश के घी का होना उचित है। क्रीम से नहीं, मिट्टी के पात्रा में दही जमाकर बनाए मक्खन से बने घी का प्रयोग होना चाहिए।
ब्राजील ने अकारण ही तो 40 लाख से अध्कि भारतीय वंश की गीर, साहिबाल और रैंडसिंधी गऊँए तैयार वहीं कर ली। अमेरिका तेजी से अपने गौवंश को ए1 से ए2 बना रहा है और हम उनके बहकावे में आकर हॉलिस्टिन, जर्सी आदि विशाक्त गौवंश की वृि( कर रहे हैं। हमें अपने हितों की रक्षा अपने विवेक से करनासीखना होगा । विदेशीयों पर आंखें बन्द करके विश्वास करते हमें 200 साल हो गए जिससे हम निरन्तर हानि ही हानि उठा रहे हैं। हमें सम्भलना चाहिए।
विषाक्त तिलहन :
जहां तक तेल की बात है तो चिन्ता की बात यह है कि विदेशी कम्पनियों ने दर्जनों जी एम बीज बाजार में प्रचलित कर दिए हैं, ऐसा अनेक विशेषज्ञों का मानना है। केन्द्र सरकार के एक अध्किरी ने भी इस बात को माना है। सरसों, बाथू, ध्निया, पौदिना, बैंगन, घीया, भिण्डी, मूली, पपीता आदि अनेकों फलसब्जियों के जी एम उत्पाद कम्पनियों द्वारा बाजार में उतार दिये गये हैं इसकी प्रबल आंशका है।
हम 1516 साल से देसी घी और सरसों के तेल कर प्रयोग कर रहे हैं। रिफाईन्ड आयल का प्रयोग लगभग 15 साल से बन्द है। 1011 दिसम्बर को हमनें ड़े लीटर तेल जलाया तो पत्नी का रक्तचाप ब़ गय, मुझे तना व असाद होने लगा। पता नहीं कितना विषैला तेल होगा ।
अतः सही बीजों से खेती के लिए भी सम्भव प्रयास करने होंगे । कैसे होगा? यह हम सबको सोचना होगा । पर होगा जरूर, इस संकल्प पर विश्वास से समाधन होगा ।

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

याद नहीं




आज से 22 साल पहले आज ही के दिन शहर को छोड़ना पड़ा था। केवल एक माह के बाद। (21) या 22 साल (आने वाले दिनों में समय और साल गुजरते ही चले जाएगें (गए।)। इन सालो में जमाना बदल गया, जवानी की चढ़ती उम्र भी अधेड़ हो रही है, मगर नहीं बदला तो यादों का वह अंतहीन सिलसिला। क्या रिश्ता था कि फिर कभी अलग नहीं हो पाए। यादें भी मानों कल सी लगती है। कल यानी कभी ना आने वाला कल । एक तरफ तकरार इंतजार तो एक तरफ इंकार। आज भी लगता है मानों कुछ होकर भी नहीं है या कुछ नहीं होकर भी सब कुछ है। बस साथ नहीं है, मगर यादों से कब अलग हुए ? याद नहीं। यङ शाप है या ....?  कह नहीं सकता।
शुक्र है कि देख लिया चेहरा
शायद वो पूरी तरह याद नहीं था।
महज एक इतफाक नहीं था यार मिलना।
सैकड़ों से मिलकर नाम तक भूल गए मगर,
भूलना चाहकर भी नहीं भूल पाना (पाए) किसी को
क्या है पता नहीं ? शूल बनकर भूल भी साथ साथ है
क्या है ये , पता है किसी को ?
फिर भी 21 (अब 22 साल ) साल हो गए (यानी यादें भी अब बालिग हो गई)
मगर
अगले 21 साल में क्या होगा ?
हमें पता है।
य़ादें तो रहेंगी, हमेशा, हर पल हरदम  ......
मगर हम नहीं होगें..... हम नहीं होगें
मगर हम साथ नहीं होगें
 पक्का
हम नहीं होगें।

 Do not miss


Today, 21 years ago on this day had to leave town. Only a month later. 21 years have passed. Times have changed but not changed, then a series of memories. What was the relationship that can never be separated again. Values ​​tends to be last memories. Tomorrow tomorrow or never. If the argument to wait a turn to one side. The values ​​and there is still little or nothing and still have everything. It has to do with, but when separated from the memories remember.
Thank sees the face
Maybe he did not fully remember.
Itfak was not merely a man meet.
Consisting of hundreds of forgotten names, but,
Do not forget to anyone wishing to
Do not know ?
What is this, anyone know ?
Yet 21 years (the memories are now adults)
But
What will happen in the next 21 years ?
We know.
Yhaden always there, always ......
But we will not ..... We will not.
 Certain
We will not.

Posted 6th April 2011 by Anami Sharan Babal

क्या एसटीटी को हटाने की मुहिम सही है ? / एस.एस.खान



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Thursday, December 1st, 2011


एक बार फिर से इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि वित्त मंत्रालय सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स की दरों में बदलाव करने पर विचार कर रहा है। यह दलील दी जा रही है कि इससे भारतीय स्टॉक एक्सचेंजों के सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन की लागतों में कमी आएगी एवं इससे बाजार भागीदारी को और विस्तृत रूप दिया जा सकेगा। चालू वर्ष के दौरान बाजार की कमजोर स्थिति, वैश्विक अर्थव्यवस्था की चिंताएं एवं भारतीय बाजार से पूंजी की लगातार निकासी के आलोक में यह प्रयास और ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। विश्वसनीय स्रोतों की अगर मानें तो पिछले तीन सालों के दौरान कमोडिटी की ट्रेडिंग वॉल्यूम करीब 300 फीसदी बढ़ गयी है जबकि अभी कमोडिटी ट्रांजैक्शन टैक्स लागू नहीं किया गया है। इक्विटी मार्केट का ट्रेडिंग वॉल्यूम अभी भी स्थिर बना हुआ है।
बदलाव
वर्ष 2004 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम द्वारा सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स लागू किया गया। उस समय श्री चिंदबरम ने इस फैसले के समर्थन में कुछ महत्वूर्ण बातें कही थी-
कैपिटल गेन्स टैक्स एक विवादित मुद्दा है। जब इसे कैपिटल मार्केट ट्रांजैक्शन पर लागू किया जाएगा तो यह और जटिल हो जाएगा। लंबी और लघु अवधि के कैपिटल गेन्स की अवधारणा एवं इस पर टैक्स की देयता में अंतर से संबंधित कई प्रश्न खड़े किए जा रहे हैं। इसका कोई आसान उत्तर नहीं है पर मैने सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन पर नये कर निर्धारण के जरिए एक पहल करने का फैसला किया है। हमारे नेताओं ने भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची में काफी ही बुद्धिमत्ता पूर्ण तरीके से एंट्री 90 को शामिल किया था। इसी एंट्री को आधार बनाकर मैने सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन में लांग टर्म गेन्स पर से टैक्स हटाने का प्रस्ताव दिया है। इसके बदले मैंने यह प्रस्ताव दिया है कि स्टॉक एक्सचेंजों में सिक्युरिटीज के ट्रांजैक्शन पर कम टैक्स लिए जाएं। इसकी दर सिक्युरिटी के वैल्यू का 0.15 फीसदी होगा। मतलब ये कि सिक्युरिटीज में यदि 100,000 रुपये का ट्रांजैक्शन होता है तो 150 रुपये का टैक्स लगाया जाएगा। यह टैक्स खरीददार से लिया जाएगा। जहां तक सिक्युरिटीज में शार्ट टर्म गेन्स की बात है तो मैंने यह प्रस्ताव दिया है कि इसकी टैक्स दरों में 10 फीसदी की कमी कर दी जाए। मेरा मानना है कि इस नए टैक्स पॉलिसी से सबको फायदा होगा।
फायनेंस एक्ट 2004 में पेश किया गया सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स एक तरह से अपने आप में एक छोटा टैक्स है और इसे निम्न प्रकार के ट्रांजैक्शन पर लगाया जाता है-
* किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर किसी कंपनी में डिलिवरी आधारित इक्विटी शेयर या इक्विटी ओरिएंटेड फंड के यूनिट की खरीद पर खरीददार को ट्रांजैक्शन वैल्यू का 0.075 फीसदी देना पड़ता है।
* किसी कंपनी में डिलिवरी आधारित इक्विटी शेयर या इक्विटी ओरिएंटेड फंड के यूनिट की बिक्री पर विक्रेता को ट्रांजैक्शन वैल्यू का 0.075 फीसदी देना पड़ता है।
* किसी कंपनी में नॉन-डिलिवरी आधारित इक्विटी शेयर या इक्विटी ओरिएंटेड फंड के यूनिट विक्रेता को ट्रांजैक्शन वैल्यू का 0.015 फीसदी देना पड़ता है।
* किसी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज पर डेरिवेटिव के ट्रांजैक्शन की कीमत का 0.01 फीसदी विक्रेता को चुकाना पड़ता है।
* म्यूचुअल फंड में इक्विटी ओरिएंटेड फंड के यूनिट की बिक्री पर विक्रेता को 0.15 फीसदी चुकाना पड़ता है।
समीक्षा
वर्ष 2007 में टैक्स दरों का संशोधन किया गया पर यह अभी भी व्यापक रूप से उसी रेंज में बना हुआ है। सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स (एसटीटी) के कलेक्शन के लिए अपनाई गई प्रक्रिया बेहद ही आसान है। सभी मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों और म्यूचुअल फंडों के लिए यह आवश्यक है कि वे ट्रांजैक्शन के वक्त ही सिक्युरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स की वसूली कर लें। इन्हें इस टैक्स राशि को अगले महीने की सात तारीख तक भारत सरकार के खाते में जमा कराना होता है। इसके अलावा स्टॉक एक्सचेंज एवं म्यूचुअल फंड के लिए यह भी जरूरी है कि वे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स को अगले साल के 30 जून तक संबंधित अधिकारी को जमा करा दें। चूंकि भारत में कैपिटल मार्केट पहले ही डिमैटेरियलाइज्ड हो चुका है इसलिए उन्हें प्रत्येक ट्रांजैक्शन के लिए इलेक्ट्रॉनिक डाटा मेंटेंन करना पड़ता था। आपको बताते चलें कि इसके अंतर्गत पार्टी की पूरी जानकारी रखना आवश्यक होता है जैसे उनका स्थाई खाता संख्या, ट्रांजैक्शन का समय एवं तारीख, ट्रांजैक्शन का वैल्यू एवं उसकी प्रकृति आदि। इसके अलावा संबंधित स्टॉक ब्रोकर के भी पूर्ण ब्यौरे रखे जाते हैं। इन व्यक्तियों द्वारा एसटीटी का वार्षिक रिटर्न इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेंट में फाइल किया जाता है। जिसमें उनके द्वारा किए गए सारे ट्रांजैक्शन से जुड़ी जानकारियां रखी जाती हैं।
जहां तक एसटीटी की वसूली की बात है तो इनकम टैक्स एक्ट की धारा 10 (38) के तहत कंपनियों के इक्विटी शेयर के ट्रांसफर से प्राप्त होने वाले कैपिटल गेन्स या इक्विटी ओरिएंटेड फंड की यूनिट, जिस पर की एसटीटी की देयता बनती है, इसे हटा लिया गया है। किसी कंपनी में इक्विटी शेयर के ट्रांसफर से लघु अवधि में प्राप्त होने वाले उस कैपिटल गेन्स, या इक्विटी ओरिएंटेड फंड की यूनिट जिस पर की एसटीटी की देयता बनती है, उसके लिए इनकम टैक्स एक्ट में एक नई धारा 111 ए को शामिल किया गया जिसके तहत 10 फीसदी की दर से टैक्स देने की व्यवस्था की गई। सिक्युरिटी या कैपिटल गेन्स से विदेशी संस्थागत निवेशकों को प्राप्त होने वाले इनकम पर इनकम टैक्स की धारा 115 एडी के तहत किए गए प्रावधान में संशोधन किया गया ताकि शार्ट टर्म गेन्स पर 10 फीसदी की एसटीटी वसूल किया जा सके।
इन बदलावों के पक्ष में कई तर्क दिए गए। यह कहा गया कि सिक्युरिटी ट्रांसफर पर कैपिटल गेन्स की तुलना में सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स को लागू करना ज्यादा आसान है क्योंकि इसका क्लेक्शन स्टॉक ब्रोकर के जरिए ट्रांजैक्शन की प्रक्रिया अंजाम देने के वक्त ही कर लिया जाएगा एवं स्टॉक एक्सचेंज द्वारा इसे ट्रांसमिट कर दिया जाएगा। यह बात तो सर्वविदित है कि कंपनियां कैपिटल गेन्स टैक्स को बचाने के लिए ट्रांजैक्शन से संबंधित धोखाधड़ी करती रही हैं लेकिन जहां तक एसटीटी की बात है तो कंपनियां इसकी चोरी करने में इसलिए सफल नहीं हो पाएंगी क्योंकि शेयर मार्केट और स्टॉक एक्सचेंज के मध्य एंड टू एंड कम्यूटरीकरण हो जाने से इस तरह की धांधली करना संभव नहीं हो पाएगा। यहां तक की फर्जी पैन के इस्तेमाल का भी कोई फायदा नहीं होगा क्योंकि टैक्स, स्टॉक एक्सचेंज के जरिए संचालित ट्रांजैक्शन वैल्यू के फ्लैट रेट पर ही लगेगा।
पहले इस बात में संदेह था कि क्या सिक्युरिटीज से प्राप्त सभी कैपिटल गेन्स की सही रिपोर्टिंग हो रही है? पर यह माना जा रहा था कि एसटीटी इस तरह के सभी ट्रांजैक्शन की गणना को सुनिश्चित करेगा। बड़े पैमाने पर इससे यह भी उम्मीद की गई कि यह कैपिटल मार्केट में काले धन के प्रवाह पर रोक लगाएगा। इसलिए यह माना गया कि एसटीटी कैपिटल मार्केट से टैक्स वसूलने के लिए सबसे साफ सुथरा एवं कारगर हथियार साबित होगा जो कि भविष्य में भारतीय बाजार में काले धन के इस्तेमाल पर अंकुश लगाएगा।
अप्रत्याशित गतिविधियों पर रोक
इसके अलावा यह उम्मीद की गई थी एसटीटी की बदौलत स्टॉक एक्सचेंज में डे ट्रेडर्स एवं आर्बिट्राज करने वालों के द्वारा उग्र एवं ज्यादा फायदे की कल्पना के साथ खरीदारी करने की गतिविधियों पर रोक लगेगा। ऐसा माना जाता है भारतीय बाजार दुनिया के ऐसे प्रमुख बाजारों में शामिल है जो कल्पना, आशंका से प्रभावित होता है। भारतीय फायनेंसियल बाजार में शीर्ष की दस कंपनियों का टर्नओवर कुल टर्नओवर का 80 फीसदी है। एसटीटी से यह उम्मीद की गई है कि यह लघु अवधि के कारोबार को स्थिर करेगा इससे भारतीय फायनेंसियल मार्केट में थोड़ी कम उथल पुथल होगी।
एसटीटी की क्षमता
एसटीटी की राजस्व क्षमता भी कम महत्वपूर्ण पहलू नहीं है। भारतीय स्टॉक एक्सचेंज में जहां तक ट्रांजैक्शन की बात है तो यह उम्मीद की गई थी कि एसटीटी प्रति दिन के हिसाब से 10,000 करोड़ रुपये की सीमा को पार कर जाएगा। पिछले तीन सालों के दौरान एसटीटी में काफी वृद्धि हुई एवं यह 7000 करोड़ रुपये के रेंज में अभी भी बना हुआ है।
एसटीटी के फायदे
दरअसल एसटीटी के जरिए अप्रत्यक्ष रूप से कर संबंधी फायदा उठाने की मंशा के तहत इसकी परिकल्पना की गई थी। सरकार यह चाहती थी कि मॉरीशस के रास्ते आने वाले विदेशी संस्थागत निवेशकों पर भारतीय पूंजी बाजार में ट्रांजैक्शन करने के एवज में कुछ टैक्स चुकाने का दबाव डाला जाए। हालांकि मॉरीशस के कर नियमों एवं भारत सरकार द्वारा कर संधि में शामिल प्रावधानों के अनुसार कैपिटल गेन्स या डिविडेंड की राशि कर योग्य नहीं है।
अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि हाल में उठाये जा रहे कदम एसटीटी को हटाने की तैयारी है या सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन में लांग टर्म कैपिटल गेन्स पर कर देयता की पूर्व स्थिति को बनाए रखने की। यह भी स्पष्ट नहीं हो पाया है कि शेयर बाजार की वर्तमान दयनीय स्थिति पर एसटीटी के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए किसी ठोस प्रयास की शुरूआत की गई है या नहीं। यदि ट्रांजैक्शन लागत को कम करना ही सबसे प्रमुख मसला है तो इसके लिए सबसे उपयुक्त होगा कि सिक्युरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स की दरों में कमी कर दी जाए। यदि एसटीटी को हटा लिया गया तो यह अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने वाली बात होगी क्योंकि इससे बाजार में काला धन प्रयोग करने वालों के हौसले और बुलंद हों जाएंगे।


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(The writer has served as Member, Central Board of Direct Taxes, Government of India. He is winner of PM’s Award for Excellence in Public administration.)
Cortesy: Money Mantra
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