गुरुवार, 26 अक्टूबर 2017
मंगलवार, 24 अक्टूबर 2017
अनामी शरण बबल / विख्यात गीतकार संतोषानंद से बातचीत
विख्यात गीतकार संतोषानंद ने अनामी शरण बबल से कहा------
आखिरी वक्त है,
इम्तहान देने आया हूं-- संतोषानंद
दिल्ली जिनकी ताकत
है और दिल्ली ही जिनकी सबसे बड़ी कमजोरी रही हो. दिल्ली से ऐसा लगाव कि मुबंई
मायानगरी की चकाचौंध भी जिसकों बांध नहीं सकी। अपने आप में मस्त और फिर बैतलवा डाल
पर की तरह बार बार और हर बार मुबंई जाकर फिर दिल्ली भाग जाने वाले विख्यात गीतकार
और करीब एक सौ से अधिक फिल्मों में गीत लिखने वाले संतोषानंद यादगाक गानों की वजह
से ही धूम मचा दी थी। दिल्ली के कारण मायानगरी में दूर के ढोल से हो गए मायानगरी
में न जम सके और न अपना सिक्का ही जमा सके। मंचीय कवि और शिक्षक रहे संतोषानंद से
यह साक्षात्कार 2008 में फोन पर ली गयी थी। खबरिया चैनल इंडिया न्यूज में काम के
दौरान इनसे एक अटूट सा नाता बना कि रोजाना दो चार बार फोन पर गप्प होने लगी। और यह
सिलसिला करीब आठ माह तक बदस्तूर जारी रहा। फिर हमदोनों ऐसे बिछड़ें की फिर ना मिल
सके और ना ही फिर बातों का सिलसिला ही बन पाया। इस बार दीपावली पर पुरानी फाईलों
को खोजते टटोलते हुए ही एक रजिस्टर में उनका लिखा हुआ इंटरव्यू मिला। अबतक
अप्रकाशित इस साक्षात्कार को मैं पहली बार कहीं मुद्रित कर रहा हूं। इस दौरान दस
साल पहले की तमाम यादें मेरे मन में नाच रही है।
1.सबसे पहले आप अपने
बारे में बताइए कि आपका जन्म कब कहां हुआ था और पारिवारिक हालात समेत आसपास का
माहौल कैसा था ?
--उत्तरप्रदेश के
बुलंदशहर जिले के गांव सिकंदराबाद में मेरा जन्म 1939 में हुआ था। मेरे पिताजी
स्वर्गीय पंडित अमर सिंह अमर एक बैद्याचार्य थे। खांटी ईमानदार होने के चलते
पटवारी की परीक्षा पास हो जाने के बाद भी उन्होनें नौकरी नहीं की। पिताजी का तर्क
था यह पोस्ट बेईमानी का है और ईमान धरम से यहां पर टिका नहीं जा सकता। जीवन भर
टीचरी की और बच्चों को शिक्षादान के साथ पंजाब में घूमते रहे। मेरे दादा पंडित
बलवंत सिंह दौराला के जमींदार थे। मेरे नाना पंडित राम सिंह मुजफ्फरनगर में एक
स्कूल में हेडमास्टर थे। मेरे उपर पिता का गहरा प्रभाव पड़ा, मगर मैं ज्यादातर
अपने नाना के संग ही रहा। जीवन के सबसे अमूल्य निधि संतोष और आनंद को एक में
जोड़कर संतोषानंद का नाम मेरे नाना ने दिया था। जिसमें कोई उपनाम या जातिसूचक शब्द
नहीं है। मेरे नाना का कहना था कि
संतोषानंद किसी एक का नहीं सबका इस पर अधिकार है. यह भी केवल मेरे परिवार का नहीं
बल्कि सबका है। ( बाद में जब इस नाम की गूढ़ता को समझा तो मैं अपने नाना के प्रति
कृतज्ञ हो उठा कि नामकरण के बहाने उन्होने कितना बड़ा आशीष प्रदान किया था। ) आज
वाकऊ संतोषानंद सबका ही है।
2 -आपकी शिक्षा
दीक्षा कैसे और कहां तक हुई ?
-मेरी पढाई आरंभ से
ही थोड़ी बाधित रही। यूपी में सीलिंग प्रणाली लागू होने की वजह से पूरा परिवार
परेशान था। तमाम घरेलू दिक्कतों के बावजूद इंटरमीडियट के बाद अलीगढ़ मुस्लिंम
विवि अलीगढ़ से मैने लाईब्रेरी सांइस में
स्नात्तक की पढ़ाई पूरी की और 1959 से मैने नौकरी करनी शुरू कर की।
3- पढाई के सिलसिले
को और लंबा ना कर जल्दी जल्दी ही पढाई छोड़कर नौकरी करने की बेताबी या आकुलता के
पीछे की कोई खास वजह ?
-इसके पीछे एक दुख भरी कहानी है। मेरी उम्र उस समय कोई 15
साल की थी और एक दिन हाकी खेलते हुए मेरे पांव में चोट लग गयी। और चोट भी ऐसा कि
दर्द एक अबूझ पहेली बन गयी। मेरे पूरे बदन में पानी भर गया। महीनों तक मेरा हर
प्रकार का इलाज हुआ मगर मैं ठीक नहीं हो सका।
डाक्टरों ने पांव काटने का फैसला किया। इसी दौरान एक दिन मेरी हालत इतनी
खराब हो गयी कि दिल्ली के इर्विन अस्पताल
के चिकित्सकों ने मुझे मृत घोषित कर दिया। मेरी मौत का सदमा मेरे पिताजी बर्दाश्त नहीं
कर पाए और अस्पताल के समीप ही किसी मंदिर
में जाकर विलाप करने लगे। जैसा कि लोगों ने मुझे बताया कि तभी कोई एक साधू पिताजी
के पास आकर रोने का कारण पूछा और मुझे देखने की इच्छा प्रकट की। साधू को लेकर
पिताजी अस्पताल में कहीं रखे गए मेरे मृत शरीर के पास लाए। मृत शरीर को देखते ही
साधू ने कहा कि बालक अभी कहां मरा है, यह तो जिंदा है। इसके शरीर के उपर से कपड़े
को हटाओ। यह कहकर साधू बाबा एकाएक अंर्तध्यान से हो गए। और लोग बाग मेरे मृत शरीर
को देखा तो उसमें सांस चलने लगी थी और शरीर की हरकत से लगा कि मैं अभी जिंदा हूं।
अस्पताल के सारे कर्मचारी और ड़ॉक्टर इस चमत्कार से हैरान परेशान होकर दंग रह गए।
कुछ ही घंटों में मेरी चेतना लौट गयी मेरी सेहत सुधरने लगी और मैं स्वस्थ्य होकर
घर लौटा। मगर पांव में लगी चोट की परेशानी सदा सदा के लिए बन गयी। इस घटना ने मेरे
मनोबल को तोड दिया। मुझे अपनी जिंदगी उधार की लगने लगी। पांव की स्थायी समस्या से
मेरी सक्रियता और गति पर असर पड़ा।
4- इस हालत से आप
कैसे बाहर आए ?
--एक लंबे अंतराल के
बाद मैने अपनी निराशा हताशा को काबू में लाया। और पूरे जोश के साथ उत्साह के संग
अपने आपको साबित करने की ठान ली। सबसे पहले मैं आत्मनिर्भर होना चाहा। घर वाले
बताते हैं कि इस हाल में भी मैं अस्पताल में रोने की बजाय गीत गाता था। क्या गाता
था यह तो मुझे अहसास भी नहीं है मगर मेरी बीमारी की जटिलता के बीच सदा गाने वाले
बालक की छवि से तमाम डाक्टर और कर्मचारी दंग रहते थे। मेरा खास ख्याल करते थे। और
मेरे गीत सुनने की ललक के कारण मैं उनका चहेता सा था तो उनलोगों ने भी निस्वार्थ
भाव से बढचढ कर मेरी सेवा की, जिससे मैं इस हाल से उबर सका।
5- आपने किस उम्र
में तुकबंदियां करनी शुरू कर दी थी, और लोगों ने कब इस तरफ ध्यान देना चालू कर
दिया। कैसा था उस समय का माहौल और उनकी प्रतिक्रियाएं ?
-
काव्य
का प्रस्फूटन तो 12-13 साल की उम्र में ही हो गयी थी। तुकबंदिया भी करने लगा था।
किसी भी माहौल हालात पर फट से झटपट कविताएं बनाकर गुनगुनाने लगता। लिखने और गाने
का यह सिलसिला परवान पर था तो लोगों को लगने लगा कि संतोषानंद में कुछ खास है।
अपनी पीड़ा को शब्द देता मगर तमाम लोगों को मेरी गीतों में अपना दर्द दिखने लगा।
आसपास के लोग मुग्ध होकर न केवल सुनते बल्कि फरमाईश करते। राह चलते रोक रोक कर
कविताएं गाने सुनाने की जिद करने लगते। मेरे गीत सुनकर दूसरे लोग भी रोने लगते। दर्द
की मोहक अभिव्यक्ति लोगों को रास आने लगी और शहर में मेरा नाम फैलने लगा।
-
दर्द
को मैं इस तरह बयान करता कि-- आएगा आने
वाला , मेरा साथी दर्द आएगा। आएगा आएगा आने वाला ......।
6-- लंबी बीमारी से उठने
के साथ ही एक कवि संतोषानंद का जन्म होता है। इस संतोषानंद के जन्म के
प्रेरणास्त्रोत किसे मानते है। तत्कालीन परिस्थतियां कैसी थी ?
--लगभग 15-16 साल की
उम्र तक बुलंदशहर में मैं एक कवि के रूप में जाना जाने लगा था। लोकल होने के कारण
ज्यादातर लोग मुझे कहीं भी रोककर या इकठ्ठा होकर मुझसे कविताएं सुनने और मुग्ध
होकर तालियां बजाते। अपनों की सराहना
लोकप्रियता और दीवानगी से मुझे आत्मबल मिला और मुझे लगने लगा कि मेरी रचनाएं लोगों के दिल को छूती है. पसंद आती है। इससे
मेरा हौसला बढा, आत्मबल और विश्वास पैदा हुआ। छोटा होने के बावजूद कवि सम्मेलनों
में मुझे बुलाया जाने लगा और जाकर मेरी धाक जमने लगी। पब्लिक की फरमाईश के कारण
मेरा डिमांड होने लगा । जिससे मेरी मांग काफी बढ गयी।
7- जिले के कवि
सम्मेलनों से बाहर निकल कर दूसरे शहरों में जाने का मौका कब और कैसे आया ?
--जिले के एक बड़े
अधिकारी का तबादला मसूरी में हुआ था। तभी मसूरी महोत्सव मनाने का समय आया। जिसमें
एक कवि सम्मेलन का आयोजन होना था। मसूरी गए अधिकारी ने इसके लिए मुझे भी आमंक्षित
किया। यह मेरे जीवन का सबसे बडा कवि और जिले से बाहर निकलने का मौका था। इसमें
गोपाल प्रसाद व्यास गोपाल दास नीरज जैसे दिग्गद दर्जनों कवियों के सामने काव्यपाठ
करने का मौका मिला । मेरी धूमं रही. कम उम्र के चलते लोगों ने बार बार मेरी मांग
की और इस तरह मैं मंच के कवियों और श्रोताओं का चहेता बन गय़ा। कवि सम्मेलन में आए व्यास जी
के प्यार और आशीष के कारण मुझे देशभर के कवि सम्मेलनों में जाने का सौभाग्य मिला
और यही मेरी जिंदगी बन गयी।
8-- लालकिला कवि
सम्मेलन की धूम आज भी है, मगर आपको जब पहली बार लाल किला कवि सम्मेलन में जाने का
मौका मिला उस समय उसकी क्या महिमा थी ?
--लालकिला कवि सम्मेलन की रौनक तो अब रही नहीं।
1962 में मुझे पहली बार लालकिला कवि
सम्मेलन में जाने का मौका मिला।और लगभग एक लाख लोग रातभर तन्मय होकर कविताएं सुनते
रहे। वाह क्या गजब का नजारा था। आज भी जब कभी उस माहौल को याद करता हूं तो पहले
जैसे रसिक और कविताओं की समझ रखने वाले अब श्रोताओं की भीड खत्म हो गयी।
9--आपका
पहला अनुभव कैसा रहा। आपको लोगों ने सुना या आप सुनाने के लिए तरस गए ?
--यह मेरे जीवन का
पहला सबसे बड़ा कवि सम्मेलन था, जहां पर मैं आमंत्रित था। दर्जनों बड़े कवियों के
साथ काव्यपाठ का अनुभव प्रेरक रहा। व्यास जी का मुझपर आशीष बना रहा। इस कवि
सम्मेलन में इतनी भीड़ देखकर तो मैं घबरा सा गया। आंखे बंद करके मैं काव्य पाठ
करने लगा। काव्यपाठ के बाद जब मैने अपनी आंखें खोली तो चारो तरफ तालियों की
गड़गड़ाहट थी। मंच पर बैठे सारे कवि भी मेरी सराहना और दाद देने में लगे थे। बार
बार मेरी डिमांड होने लगी तो रातभर में कई बार काव्यपाठ करना पड़ा। लाल किला कवि
सम्मेलन से मेरा उदय एक ऐसे कवि के रूप में हुआ जिसकी गूंज लंबे समय तक बनी रही।
मैं 1997 तक लाल किला लगातारक जाता रहा। एक बात और खास है कि आज के लोग पास लेकर कवि
सम्मेलन में जाते हैं मगर पहले लोग टिकट खरीदकर रातभर कविताएं सुनने में तल्लिन
रहते थे। धीरे धीरे इस कवि सम्मेलन से टिकट प्रथा खत्म हो गयी और सबों के लिए यह
निशुल्क हो गया मगर अब 30-35 हजार से भी कम ही श्रोताओं का जमावड़ा लगता है।
10-
एक कवि के रूप में स्थापित होने के बाद फिल्मों में आपको गीत लिखने का मौका कब
कैसे और किस तरह मिला ?
--फिल्म अभिनेता
मनोज कुमार दिल्ली के नजफगढ़ में उपकार की शुटिंग कर रहे थे। मेरे सहकर्मी और
दोस्त हरि भारद्वाज ने मेरे बारे में मनोज कुमार को बताया और कुछ कविताएं सुनाई तो
वे मुझसे मिलने के लिए उतावले हो गए। अगले ही दिन मनोज कुमार से मेरी पहली मुलाकात
हुई। काव्यपाठ और गीतों का ऐसा रंग जमा कि वे घंटो तक मंत्रमुग्ध होकर कविताएं
सुनते रहे। तभी उन्होने अपनी अगली फिल्म पूरब और पश्चिम में गीत लिखने का अनुबंध
कर लिया। फिल्मी सफर का मेरा पहला गाना था पूरवा सुहानी आई रे ............ जिसे
स्वर कोकिला लता मंगेशकर ने गाया और इस गीत की चारो तरफ धूम मच गयी। मनोज कुमार ने
मुझे एक नये गीतकार के रूप में पोस्टर में जगह दी। और सही मायने में मनोज कुमार के
कारण ही मेरा फिल्मी सफर चालू हुआ और अलग छवि बनी। -11-- इस गाने की जोरदार सफलता और गूंज से आपकी
कैसी छवि बनी और इसके बाद इसका क्या क्या लाभ मिला ?
---इस गाने की
जोरदार सफलता से मेरा सिक्का चल निकला। मनोज कुमार जी तो मेरे दीवाने हो गए मगर वे
नहीं चाहते थे कि मैं धड्ल्ले से दूसरों के लिए गीत लिखता रहूं। मनोज कुमार ने इसके
बाद अपनी सभी आने वाली फिल्मों में गीत लिखने का मौका दिया । उनके लिए शोर में
गाना लिखा और इसका एक गाना-- इक प्यार का नगमा है .......। काफी हिट रही और इसकी
गूंज महीनों तक बनी रही। इसके बाद तो रोटी कपड़ा और मकान क्रांति प्रेमरोग प्यासा
सावन आदि करीब दर्जन भर फिल्मों का तांता लग गया जिसके गीतों औरने रेडियों के
मार्फत करोड़ों श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। सारी दुनियां दीवानी हो गयी।
12--लगातार सुपरहिट
गानों और फिल्मों के आने के बाद भी न आप मुंबह में जम सके ना ही रह पाए। इसकी क्या
वजह है और इसका क्या खामियाजा आपको भुगतना पड़ा ?
--- पहले पहल तो मनोज कुमार की अनिच्छा रही कि
मुबंई में आकर सबों के लिए लिखना शुरू करूं। बाद में जब मैने दूसरों के लिए कुछ
गीत लिखना शुरू किया तो इसमें सबसे बड़ी दिक्कत मेरा मुंबई में उपलब्ध नहीं रहना
सामने आया। जो निर्माता मुझे लेना भी चाहा तो मैं समय पर मुंबई में नहीं होता। इस
कारण दर्जनों निर्माताओं ने मुझे लेना चाहा मगर बाद में उन लोगों ने दूसरे
गीतकारों से अपना काम चलाया।
13- तो आपकी दिल्ली से क्या ऐसा मोह लगाव या मजबूरी
थी कि सफलता के उस दौर में भी दिल्ली से अपने आपको मुक्त नहीं कर सके ?
एक
तो मेरा पूरा परिवार मुंबई में बसने के खिलाफ था। सफलता के उस दौर में भी मेरे
परिवार पर मायानगरी या मुंबई का खुमार नहीं था। परिजनों के विरोध को देखते हुए
अकेले मेरे लिए मुंबई जाकर रहना नामुमकिन था। वहीं मैं अपनी सरकारी नौकरी भी
छोड़ना नहीं चाहता था। इन तमाम विवशताओं के कारण ही मैं जिंदगी भर दिल्ली -मुंबई
आता जाता और भागता रह गया।
-
14--- क्या फिल्मी दुनियां के लोगों ने आपको मुंबई
में रहने या बसने के लिए दवाब नहीं डाला ?
-
मेरे
उपर दवाब तो काफी था । लक्ष्मीकांत प्यारेलाल तो 15 दिन दिल्ली और 15 दिन मुंबई
में रहने के लिए कहा और इसके लिए सारी व्यवस्था करने पर भी जोर दिया। पर मेरे उपर
भी कुछ ऐसा पागलपन था कि काम खत्म होते ही मैं दिल्ली भागने के लिए आतुर हो जाता।
काम की परवाह नहीं तो दिल्ली मुंबई के बीच भागमभाग से काम और सफलता ने भी मेरी
परवाह नहीं की।
15- दिल्ली
मुंबई की भागमभाग के बीच आप काम के साथ
संतुलन किस तरह स्थापित करते थे। इसके लिए किस तरह का तनाव और मेहनत करनी पड़ती थी?
-
-
--
काम पर तो असर पड़ता ही है, पर खासकर मनोज कुमार और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल के साथ
मेरा इस कदर तालमेल था कि ज्यादातर गाना और संगीत की रचना अमूमन फोन पर ही हो जाया
करती थी। मनोज कुमार कोई माहौल बताते या किसी गाने का डिमांड करते तो ज्यादातर गीत
मैं फोन पर ही रच कर सुना देता। और वे मेरी तुरंत गीत रचना से मोहित हो जाते। इस
तरह मैं मुंबई आने जाने से बच जाता और इनका काम पलक झपकते ही हो जाया करता। इसी
तरह लक्ष्मीकांत जी में भी संगीत का अदभुत सेंस था। उनकी मांग पर जब मैं किसी गाने का मुखड़ा
सुनाता तो गाने की पंक्तियों को दोहराते ही वे मुखड़े को सूरों में बांधकर फोन पर ही
लय के साथ सुना डालते। और इस तरह 10-12
मिनट में ही हम दोनों फोन पर ही गीत को गाते
गुनगुनाकते हुए ही गीत और संगीत की रचना कर डालते थे। गीत संगीत की पलक झपकते
तैयार हो जाने की इस प्रतिभा से जहां मैं लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल की विलक्ष्णता
पर दंग रहता तो वे लोग भी फोन पर ही ज्यादातर गीतों के लिखवा डालने की कला पर वे
लोग भी दंग रह जाते। खासकर लक्ष्मी -प्यारे में सूरों के ज्ञान और मनोभावों को
समझने की क्षमता से आज भी अचंभित रह जाता हूं।
16- लक्ष्मी-प्यारे
के अलावा और किन किन संगीतकारों के साथ आपने काम किया और उनकी खासियत पर प्रकाश
डालते हुए अपने अनुभव को हमारे साथ साझा करे ?
n इस मामले में मनोज कुमार और सदाबहार राजकपूर को
मैं बेस्ट फिल्म मेकर मानता हूं। इनकी समझ और हर चीज पर गहरी पकड़ हमेशा दंग करती
है। ये लोग जीनियस की श्रेणी में आते हैं। संगीतकारों में भी शंकर जयकिशन को द
ग्रेट म्यूजीशियन कहना चाहूंगा। हांलाकि उषा खन्ना, आर.डी बर्मन, एस.डी वर्मन ,
नदीम श्रवण, ओ.पी नैय्यर, कल्याणजी आनंदजी, अन्नू मल्लिक, मदन मोहन, नौशाद, सलिल
चौधरी और श्रीराम चंद्र जैसे अनोखे संगीतकारों के साथ काम करने का मौका मिला। सभी
संगीतकारों में अलग अलग गुण और हुनर था। सबों की खासियत पर तो एक महाग्रंथ लिखा जा
सकता है। तमाम संगीतकारों में सूरों की वैराईटी और माधुर्य्यता का खजाना भरा था। मगर
नये संगीतकार भी काफी स्मार्ट और पाश्चात्य संगीत की तकनीक और नयी सूचनाओं से लैस
हैं। ये संगीतकार इतने स्मार्ट हैं कि संगीत की रचना पहले ही कर देते है। बस
गीतकारों को तो धुन और मात्रा के आधार पर
शब्दों का टोन देना पड़ता है। पहले के संगीतकार की तरह आज के नए संगीतकार अब
गीतकारों को अपने मन से गीत लिखने की छूट देनी बंद कर दी है। पहले के संगीतकारों की
विविधताओं और मधुरता पर रौशनी डालना मेरे लिए सरल नहीं है। पहले के गीत संगीत
कालजयी होते थे , कई दशक के बाद भी लोग उन्हें भूल नहीं पाते थे। मगर आज का गीत
संगीत धूम धडाका के साथ कब आकर कब खो जाता है यह पता ही नहीं चलता।
17-- फिल्मी
गीतकारों के बारे में आपकी क्या धारणा है ?
-फिल्मी दुनियां में
एक से बढकर एक नामी गीतकारों की परम्परा रही है। मशहूर शायरों ने फिल्मी गानों को
एक स्तर दिया और गानों के मार्फत गीत संगीत साहित्य और शायरी को जन जन तक लोकप्रिय
बनाया। गीतों की गुणवत्ता 1980-85 तक कायम रही । मेरे को गीतलेखन के लिए दो दो बार
फिल्मफेयर अवार्ड दिया गया। मगर अब संगीत के बदलने से बेहतर गीतों की रचना कम होने
लगी है।
18-- आपके बारे में
फिल्मी गीतकारों की क्या राय थी ?
ज्यादातर गीतकार तो
मेरे दोस्त ही थे। सबों की शिकायत थी कि मुंबई में आकर रहो बसो ताकि कुछ बेहतर गीत
सिनेमा जगत की शान बने।
19--कड़ी टक्कर के
बाद भी क्या इतना प्यार दुलार लगाव गीतकारों में है ?
जहां पर सबसे अधिक कड़ी
प्रतियोगिता होती है, वहीं पर आपस में सबसे ज्यादा मेलजोल होता है। कोई एक गाना
हिट रहा तो दूसरों में उससे भी बढ़कर कुछ करने की लगन जागती है। और आपको यह जानकर
हैरानी होगी कि एक सुंदर गाना लिखने के बाद लगभग ज्यादातर गीतकार अपने प्रिय
गीतकार मित्रों को वह गाना जरूर सुनाता है ताकि कुछ संशोधन हो सके। और बहुधा गीतों
में इस तरह के बीच के दो चार शब्दों के हेरफेर करने की सलाह भी दी जाती है. जिसके
फलस्वरूप गाना पहले से ज्यादा मोहक और असरदार हो जाता है।
20-- सुनने में तो आता हैं कि यहां पर तो लोग भावों
धुनों गीतों पटकथा डायलाग आदि की चोरी करते हैं, नकल करते है ?
हम लेखक गीतकार क्या
इतने दरिद्र हैं कि अपने सृजन की बजाय चोरी और नकल पर ध्यान दें। सब बकवास है। एक
गीत की सफलता पूरे गीतकार समुदाय की सफलता होती है और मिलजुत कर इस पर जलसा किया
जाता है।
21--- गीतकारों और
संगीतकारों से आपका दिल्ली में रहते हुए भी तालमेल कैसे जीवंत रहता था?
अरे भाई मैं इन
निर्माताओं और गीतकार संगीतकार दोस्तों के कारण ही तो लगभग एक सौ फिल्मो के लिए गीत
लिख पाया। ज्यादातर गीतकार और संगीतकार ही मेरे लिए मेरी मार्केटिंग और जनसंपंर्क
का काम कर देते थे। यही लोग मेरे लिए निर्माताओं से मेरे नाम की सिफारिश भी करते
थे। सिनेमा के सरताज गीतकार आनंद बख्शी ने मेरे बारे में एक बार सार्वजनिक तौर पर
कहा था असली गीतकार तो दिल्ली के संतोषानंद जी हैं जो मायानगरी की माया से दूर
रहकर दिल्ली से गीत लिखते हैं और हम सबका मान बढ़ाते हैं। आनंद बख्शी जी का मेरे
बारे में यह कहना मेरे लिए किसी फिल्मफेयर अवार्ड से बड़ा सम्मान है। मैं इस जन्म में तो अपने गीतकार - संगीतकार
मित्रों के अहसान और कर्ज से मुक्त हो ही नहीं सकता। जिन्होनें दूर बैठे दिल्ली के
एक गीतकार को फिल्मी दुनियां के गीत संगीत की दुनियां का सरताज बनाया।
22-- इतना कुछ पाने
के बाद इस मायावी संसार पर आपकी क्या टिप्पणी है ? क्या अनुभव रहा और
क्या कमाया ?
--- केवल नाम शोहरत
और लोगों के प्यार की कमाई की। यह संसार बड़े और प्रभावशाली लोगों का है। मेरे लिए
ज्यादातर निर्माता आने जाने ठहरने के अलावा जो दे दिया वहीं रख लिया। उस समय हजार
दस हजार की बड़ी कीमत थी। पैसे आते जाते रहते थे। मगर मुंबई में नहीं रहने के कारण
लगातार आय का स्थायी जरिया यह संसार मेरे लिए नहीं बन पाया। यही कारण है कि मैं
कमाई का कोई हिसाब नहीं दे सकता और ना ही पार्ट टाईमर होने के कारण आय का अनुमान
ही लगा पाता था।
23--- फिल्मी संसार
तकनीकी दुनियां हो गयी है। हर चीज का फॉर्मेट चेंज कर गया है. इस बदलाव को आप किस
तरह देखते है ?
जमाना बदल रहा है
लोगों की सोच और रहन सहन बदल गयी है। लिहाजा सिनेमा तो बदलते समाज का आईना होता
है। इसको तो समाज से पहले बदलना होता है ताकि लोग इसका अनुसरण करे। मैने भी शोर
पूरब पश्चिम क्रांति प्रेमरोग प्यासा सावन से लेकर तिरंगा सूर्या गोपीचंद जासूस
बड़े घर की बेटी तहलका, मेरा जवाब नागमणि आदि जैसी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे जो
बदलते समय मिजाज और चरित्र को दर्शाता था।
24--फिल्मी दुनियां में आज भी कोई हैं जो आपको
याद करता है ?
बहुत कम लोग रह गए
हैं । मनोज कुमार तो आज भी हमेशा हाल चाल लेते रहते हैं। प्यारेलाल भाई का भी फोन
आता रहता है। कभी कभी यह सुनकर दर्द होता है कि एक समय के सबसे लोकप्रिय और व्यस्त
लक्ष्मी-प्यारे भाई की जोडी खताम होने पर प्यारे जी अकेले हो गए । काम ही नहीं है।
लक्ष्मी जी की मौत के बाद इनका युग खत्म हो गया। और भी पुराने लोग हैं जो कभी कभार
बातें कर लेते हैं।
25--- आजकल आप क्या
कर रहे हैं ?
--- मैं आज भी गीतों
के शब्द और संगीत के धुनों के लय ताल पर धड़कता रहता हूं। पारिवारिक दायित्व के
कारण जो अधूरा रह गया जो छूट गया उसका क्या गम। जो पाया और हासिल है वहीं कम नही
काफी है। मैं तो संतोष में आनंद मनाता हूं। संतोषानंद को हर गम एक समय के बाद
उर्जावान कर जाता है। हर दौर का हीरो कोई नया चेहरा होता है। एक ही आदमी हर दौर
में फिट कभी नहीं बैठता। मगर लेखन मेरा
जीवन है। सामाजिक सक्रियता अब कम हो गयी है।
अब तो यही गाता -गुनगुनाता हूं। --तुम्हीं से प्यार करता हूं /
तुम पर हीं जान देने आया हूं / आखिरी वक्त हैं मेरा /
इम्तहान देने आया हूं।
अनामी शरण बबल
Asb.deo@gmail.comअनामी शरण बबल / कुछ अधूरी प्रेम कविताएं
मैं तेरा झूठा / अनामी शरण बबल
मैं
तेरा झूठा
अनामी शरण बबल
1
मान
लेना भी अक्सर
हैरान
कर देता है मुझे बारबार
लगता
मानो बादलों में
परियों
के संग खेल रहा
बादलों
से घिरा मैं अचंभित बार बार
रेत
में फूल खिला हो, मानो परियों.से दिल मिला हो
ऐसा
भी होता है यह नहीं सोचा था
पाने
का स्वप्न पराया लगता है
मैं
तेरा साया सा हूं
यह
ख्वाब भी पराया लगता है।
2
करके
आंखे बंद
जब
भी बैठता हूं तेरे ख्याल में
लोग
बाग इसे ध्यान उपासना मान लेते है।
मैं
तो कहीं और खोया रहता हूं ख्यातों में
केवल
होती है संग मेरे
उसका
अहसास उसकी रौशनी उसका संगीत
पौ
फटने सी है उसकी पावस प्रकाश
दिखता
है उसमें तेरा नूरानी चेहरा
तेरी माया तेरी काया
3
रह
रहकर मैं खुद से ही खुद में
खुद
पर / हो अचंभित
हंसने
लगता हूं अक्सर ।
अपनी
ही नजर में फंसने लगता हूं।
रह
रह कर बार बार
कोई
खुश्बू फैल जाती है
आस
पास / पास पास / बार बार हर बार मानो
किसी
की याद में खोया
कोई
मीठी याद सी धूप
सहलाकर मुझे
चली
गयी हो
बारबार..
अक्सर
देखते ही लोग मुझे
खिल
जाते हैं,
किसी
मोहक संगीत में झूम से जाते हैं।
तुम्हारी
याद में अक्सर
बावला
सा मैं / मचल उठता हूं खुद में ही
अपनी
भी अब
परवाह
नहीं रहती मुझे
कोई
चाह नहीं रहती।।
4
मैं
मैं
तावे सा गोर
और
तू चांद सितारों सी
मैं
कोयले सा बेनूर
तू
फूल गुलाब हजारों सी
घनघोर
करिया अंधकार की लंबी गुफा मै
तू
सूरज सा प्रकाशमान / प्रकाशवान
मैं
मलीन शाम सा
तेरा
चेहरा ऊज्जवला दिनमान
पाकर खुश्बू
उल्लासित उत्कंठित मन की मोहक रेखा
यह
मेरा सौभाग्य
कुदरत
की नजर से
मैने
बार बार हर बार तुम्हें देखा / जब चाहा तब देखा ।।
5
धूप
हवा जल मिट्टी आग में
पहचान
के हर पल उल्लास में
बस
केवल तू ही तू है
मिट्टी
जिसमें
रचा बसा लेटा खेला और पवन में उड़ता।
मैं खोया सा खोया खोया
बेसुध मदमस्त मादक मतवाला।
मैं खोया सा खोया खोया
बेसुध मदमस्त मादक मतवाला।
6
मैं
तेरा झूठा
बोल
रहा हूं एक झूठ
और
कहीं से
अपने
ही भाव की करके चोरी
टू
लाख कहे या चाहे मगर
नहीं
उतरेगा यह खुमार
दिन
रात
धरती
आकाश पहाड़ सागर की तरह
चमकता
रहेगा यादों का अमरप्रेम /
अमरबेल
सूरज
चांद की तरह
कोई
रहे ना रहे
क्या
फर्क पड़ता है ।
हवाओं
में गूंजती रहेगी प्रेम की खुश्बू
खंडहरों
घाटियों में महकेगी
तृप्त
प्यार की मोहक गंध
तेरी
सौगंध
नहीं
उतरेगा
कभी
नहीं उतरेगा प्यार का रंग
मैने
तो रंगों में ही डाल दी है
अपना
प्यार अपना खुमार
अपनी
खुशी अपना बहार अपना नाम। ।.।
7
सच
में नहीं उतरेगा
कभी
नहीं और कभी नहीं
तू
लाख कर ले जतन
हमारे
बाद भी रहेगा प्यार मन से जतन से
हर
किसी की मुस्कान में होगी
तेरी
ही खिल खिलाहट
खिला
खिला सा होगा
हर
चेहरे पर तेरी मुस्कान
हर
सिंदूरमें होगा
तेरा
संतोष तेरा सौभाग्य तेरा आशीष
मैं
तो दूर का वासी
नयन
से देख न सकूं कभी
फिर
भी रोजाना ही देखता हूं तुझे
मन
से दिल के नयन से
जी
भर होकर तृप्त संतुष्ट
फिर
भी
नयनों
में आस बनी रहती है
चाहत
की प्यास/ नयन तृप्ति की आस जगी रहती है /बनी रहती है ।।.
8
किसी
की याद में जीना / किसी की याद से जीना
किसी
की याद में मरना
किसी
की याद में रहना।
किसी
की याद को सहना / किसी की याद से दहना
किसी
की याद को कहना,/ याद में बहना
अब
तो अपनी आदत है।
मैं
पागल ना आशिक दीवाना
केवल
मस्ताना /यादों में यादों से। हो बावला।
9
मन
में
फिर
भी मन में नाचें एक दो नहीं हजारों छवि
रंग
बिरंगी
मोहक
एक ही सूरत मूरत
दिल
में बस गयौ
जिसे
निकाल नहीं पाता
ना
ही नयन फेरत बने
हरदम
मन में बसी रहे
तू
चाहे तो मना करै या जा सकौ।
मैं
न रोक्यौ तूझे कभी
दिल
पे हाथ धर के कहता हूं तुमसे
तू
चाहो तो जा सकत है
मगर
मैं कहूं तुझसे
मैं
कहां जाऊं भला तेरी यादों से होकर दूर।
ई ना
हो सकत मुझसे /चाहे जान चली जाए भली
हो ना सक्यौ मुझसे ई कभी।
ना
रोकू मैं तुझको
गर
तू चाहत है जान भली
सच
कहत हूं गोई
तू
मान ले इसको झूठ।
मैं
झूठा तेरा
मुझमौं
कहां प्रीत की ऐसी आंच भला
खुद
की अगन में हो निहाल रहूं मगन मैं .
मेरी
अगन तो मुझे निखारे
तपन
तपाकर कंचन कर दे बदन
तेरी
याद की नरम शीतल छांह
कर
दे सब कुशल मंगल ।
मुझमें
ना इता जतन
मैं
तेरी छाया
तुझमें
है इतनी मेरी तडप / तू
मेरी छाया
याद
तेरी कवच
कुछ
ना होय मुझे / मैं हरदम हर गम से चंगा
मैं
झूठा तेरा
और
तू सबसे बड़ी सच मेरी
सबसे
बड़ी सबसे बड़ी सबसे बड़ी।।
10
पागल
नहीं ना दीवाना
फिर
भी रहता है बहुत बेताब ए दिल
मन
के भीतर ज्वार उठे आंखों में खुमार दिखे
दिल
सागर सा धीर मगर उसमें सैलाब ए दिल
फूल
खुश्बू पर चंचल भ्रमर बेहाल
मन
को रोकना मुश्किल लगे / दिल भी
कातिल सा बेदिल लगे
कोई
चांद झिलमिलाए ऐसा ही है ख्वाब ए दिल
पहली
पहली बार मन में उठे तूफान
चारो
तरफ मानो खुशियों का उफान
नूर
की कोहिनूर सी चमक सोने नहीं दे
मन
उपवन की तडप रोने नहीं दे
झलक
पाने की ललक / दिल को खोने नहीं दे
जानत
हूं हाल मगर मैखाने का हलाहल शराब ए दिल
अधीर
होकर भी काबू में रहना है सब मन में सहना है
उसकी
मोहकता का यही माहताब ए दिल
मैं
तेरा झूठा दिल में है कोई पुरानी शराब ए दिल
11
कभी
नहीं सोचा था
कभी
नहीं और कभी नहीं
रेगिस्तान
में भी फूल खिलेंगे
कभी
धरती आसमान मिलेंगे ?
सच
ऐसा
ही लगता है मानो
मैं
खुद से मिल रहा हूं
मेरा
ही काया हैं मानो तेरी काया में ?
कभी
नहीं और कभी नहीं थी
बात बेबात मुलाकात
नहीं
कभी हुए
आमने
सामने
नेह
स्नेह अपनापन प्रेम चाहत की भी
नहीं
कहीं गुंजाईश
कभी
नहीं देखा था ख्वाब
मेरे मन उपवन में कोई होगा गुलाब
बात
व्यावहार मान मनुहार ।
मैं
भीड़ से घिरा तन्हा
कोई
नहीं जिसे अपना मानू
भले
ही सपना सा जानू
किसी
पर कोई अधिकार सा देखू।.।
मैं
झूठा तेरा
जानता
हूं धरती आकाश सा हूं
अलग अलग
फिर
भी नहीं लगता है
यह
अहसास ही दिल के पास लगता है
मैं झूठा तेरा
मन
में एक विश्वास सा लगता है।
कोई न कोई नाता रहा हैं
कभी न कभी
जन्म जन्मांतर में
12
वो
चेहरा कोहिनूर है
जिसकी
याद में खो
मेरी
आंखों में हरदम उसकी छवि
आंखों
के झील में खोया डूबा हूं।
चाहत
का ऐसा नूर
जिससे
मैं बहुत दूर
जिसके
खोने से लगे बेनूर अपनी दुनियां
लहरों
सी चपल मस्त / फूलों की महक सी
नूर
को देख ही लेता हूं
रोजाना
होकर
खुद को खोकर मुग्ध विभोर
नहीं
मलाल दूरी की / मजबूरी की
किसी
बेताब हूर सी परी सी
कोहिनूर
की चमक दमक और भरपूर लिए ललक
मेरे
सामने आकर खड़ी हो जाती है
अक्सर
उसकी
चमक से ही
रौशन
है मेरा घर
कभी
नहीं चमक धूमिल
तेरे
नूर से / हरदम खिला खिला मेरा जहां ।
ना
रिश्ता ना बंधन फिर भी चाहत भरा आकर्षण
यही
एक बंधन है कोहिनूर से
कुछ
ना होकर भी / सबकुछ लगे दूर से।
मन
से मन की यह मानो मुलाकात
तुमं
मेरे लिए ईश्वर प्रदत सौगात हो
कोहिनूर
से भी हो तुम / ज्यादा निश्छल उज्जवल
पाक
बेदाग सुदंर
यही
मन की ललक है चाहत है वचन है ।।
14
क्या
तेरे संग भी होता है / कुछ
ऐसा ही
या
केवल मेरा
भरम
है करम है
या
पागलपन ।
मन
बेकाबू तेज धार सी
मन
का बंधन तेज कटार सी
तेरा
रंग रूप चमक सौंदर्य तलवार सी
तुम
पर मन समर्पित पावन वंदनहार सी
हरदम
हर पल
पलपल
दमके नयनों मे तेरा श्रृंगार /
मंत्र मुग्ध सा मन करे केवल तेरा निहार
सागर
सा शांत रहूं मैं बैठा
मन
के भीतर तेज तूफान उफान
फिर
भी केवल तेरी याद / तेरा
चेहरा ही खेवनहार
मन
मे रहे केवल विश्वास
फिर
सब कुछ शांत परास्त सा सामान्य लगे
दिल
के तूफान का
ना
होय किसी को भान
मैं
तेरा झूठा
कहयो
केवल एक बान
यही
तोर मान
और
ऊ
तोर
सम्मान।
उर्फ
(यही
तेरा मान
तू
मेरा स्वाभिमान ।)
15
दिन
भर हरदम कहीं कभी ऐसा भी होता है
जिधर
देखू तो केवल
तू ही
तू
केवल तू नजर आए।
हर
तरफ मिले खिली खिली फूल सी खिली
फू लों
में बाग में फलो में गुलाब में
मंदिर
मे जल प्रसाद में
शराव में
तू ही
तू
केवल तू नजर आए।।
बाजार
में दुकान में / हर गली घर और मकान में
कभी
आगे तो कभी साथ साथ
जिधर
देखू
तूही
तू केवल तू नजर आए ।।।
सुबह
की धूप मे किसी के संग किसी रंग रूप में
शाम बेशाम कभी दोपहरी कभी कहीं किसी मंदिर स्तूप में
को
रोजाना
/ कई कई बार
आकर
सांकल घनघना देती हो
मन. की.
खिड़की
पर कोई गीत गुनगुना देती हो
एक दो नहीं
कई कई बार हर बार
हर तरफ
तूही
तू केवल तू नजर आए।। ।।
मन
खिल खिल जाय
रह रह क़र
तङप जाय /
केवल तू सिर्फ तू -तू नजर आए.
16
मैं
तेरा झूठा
ना
बोल्या सच कभी
पर
कभी कभी लागे मुझे झूठ ही बन जाए मानौं सच
दिल
की जुबान / दिल की बात / मन की मुलाकात
तेरी
सौगंध खाकर तो कभी ना बोलूं झूठ
ई
तू भी जानैं
पर
क्या करे तेरी सौगंध
हर
समय तेरी मोहक गंध मुझे सतावे
चारो
तरफ से आवैं
मुझै
हाल बता जाए
बेहाल
नहीं /सुजान बना जावै।
दूर
दूर तक कोई नहीं /
कोई नहीं
केवल
तन मन की खुश्बू
दिल
की आरजू
मोहे
सुनाय
कहीं
भी रहो
पायल
हर बार तेरी आहट दे जाए
कोई
गीत गुनगुना जाए
मंदिर
की घंटियों की झनक
तोर
हाल बता जाए।
तेरी
आहट से पहले / तेरी गंध करीब आ जाए रोज रोज
रोजाना
/ हर पल हर क्षण ।
98
ईत्ती
उमर गुजर गयौ
तबे
जाकर हुआ अहसास
भूल
गया था मानो अपने ही जीवन में कुछ खास
अब
लागौ मुझे
हर
सांस में है एक बंधन
हवा
मानौ फूल से कहे
पती
पती धूप सहे
बर्फ
पीकर भी चांदनी
जाड़े
में मस्त रहे
फूल
कब करे कोई उलाहना धूप से
निगाह
कब फेरौगे मेरे रूप से
का
करे कुछ अईसन ही लागे
ईते
उमर के बाद
मन
में फूटल है अंगार
पता
नहीं लोगन कि का कहे का जाने
मन
में है मधुमास हरसिंगार
मन
में है एक फांस
हर
सांस के साथ। हर सांस साथ।।
99
तू
ना बोले झूठ कभी
और
मैं ना बोलू सच
आज
तू
ही बन जा मेरी जज
बिन
तेरे निक न लागे कछू
सबै
लगे उदास
मैं
पागल खोजत रहयौ
हर
नूर में केवल तेरा अहसास
कोई
कहे मोहे पागल पर जानत हूं मैं
तू
भी है भीतर से घायल
मैं
कहूं तो से
ई
है नेह का बंधन अपनापन
अब
तू ही बोल
का
है ई
जो
कहौ सब सिर माथे.।।
100
एक
बात की सौ बात
और
सौ बात की एक सुनो
एक
ही ठीक लागे,
तू
मुझे हरदम हरपल
सबसे
नीक लागे
तेरी
मौन सुहावन छवि भी
कभी
कभी तो अभी अभी भी एक सीख लागे
मनभावन
सब बात कहूं मैं तुमसौ
फिर
भी दाव यही भारी लागे
तू
आज और कल भी
चितचोर
चितवन
नयनों
को सबसे न्यारी प्यारी लागे ।।
अनामी
शरण बबल
2
12
करते ही आंखे बंद
13
यह कैसी नटलीला है प्रभू
15
यह नहीं है
तेरे ही रंग में
16
1
बार बार बार बार बार
हंसकर दिल ने
विश्वास
अर्थहीन सा लगे जग सारा
जब कोई मुझसे रूठ जाए।
बेकार से लगे जग सारा
जब कोई मुझसे ही नजरें चुराए।
बेदम सा मन हो जाए
जब अविश्वास से मन भर जाए किसी का ।
तमाम रिश्तों को
केवल विश्वास ही देता है श्वांस ((ऑक्सीजन)
सफाई जिरह तर्क कुतर्क सवाल जवाब से
होता है विश्वास शर्मसार
जिसको बचाना है
बहुत जरूरी है बचााना
कल के लिए
प्रेम के लिए
सबके लिए।।
केवल सात
मेरी यादों के रंग हजार
और इंद्रधनुष में केवल सात ?
नयनों के भीतर अश्क की असीम दरिया
और दुनियां में महा सागर केवल सात ?
कंगन चूड़ी बिछुआ पायल बाली बदल के धुन बेशुमार
और संगीत साधना के सूर केवल सात
उसके घरौंदे में अनगिन कक्ष (कमरे)
और रहने को दुनियां में महादेश केवल सात ।।
अब शिकायत भी करे
तो क्या
किससे किसके लिए।।।।
इंतजार
रंगीन यादों की मोहक तस्वीरें
देख गगन पर इंद्रधनुष भी शरमाए
तेरे स्वागत में
रोज खड़े होते हैं मेरे संग संग
कोयल मैना गौरेया तोता टिटिहरी की तान तुम्हें पुकारे ।
किधर खामोश हो छिपकर
इनको सताने के लिए ।।
अपना
प्यार भी गंगाजल है
केंचुल में यादें / अनामी
शरण बबल
1
a
मैं
किसी की याद के केंचुल
में हूं
अस्स
बस्स ,
लस्त पस्त
चूर
किसी मोहक सुगंध से
नशा
सा है इस केंचुल का
निकल
नहीं पा रहा
यादों
के रौशन सुरंग से
जाग
जाती है यादे मेरे जागने से पहले
और
सो नहीं पाती है तमाम यादें
मेरे
सोने के बाद भी
मोहक
अहसास के केंचुल से
नहीं
चाहता बाहर आना
इन
यादों को खोना
जो
वरदान सा मिला है
मुझे
अपलक
महसूसने को ।
2
केंचुल
में यादें
नहीं
नहीं सब कुछ
उतर
जाता है एक समय के बाद
पानी
का वेग हो या आंधी तूफान
चाहे
सागर का सुनामी
लगातार
उपर भागता तेज बुखार
आग
बरसाता सूरज हो
या
चांदनी
रात की शीतलता
कुछ
भी तो नहीं ठहरता
सदा
-सदा-सदा के लिए ।।
केंचुल
से भी तो एक दिन
हो
जाएगी बाहर सर्पीली यादें
हवा
में बेजान खाली केंचुल भी
यादों
पर बेमानी है।।
नहीं
उतरेगा मेरा खुमार
दिन
रात धरती पहाड़ की तरह
चमकता
रहेगा यादों का अमरप्रेम
सूरज
चांद की तरह
कोई
रहे ना रहे
क्या
फर्क पड़ता है
हवाओं
में गूंजती रहेगी प्रेम की खुश्बू
खंडहर
घाटियों में महकेगी
प्यार
की मोहक गंध
प्यार
की अपनी यादों पर
केंचुल
नहीं
केंचुल
में डाल दी है अपनी तमाम यादें
फूलो
की तरह पेड़ों की तरह
जबतक
रहेगी हवा मे खुश्बू
अपना
प्यार भी धूप की तरह
दमकता
चमकता महकता रहेगा
तेरी
तरह
मेरे
लिए तेरे लिए
हमारे
लिए
सदा
सदा सदा सदा सदा
सदा
के लिए हरदम हरपल।
2
मेरी
यादों में तैरती है हरदम
एक
मासूम सी शांत
लड़की
चंचल
कभी नहीं देखा
हमेशा
अपलक गुम सी निहारते
उदास
भी नहीं
पर
मुस्कान बिखेरते भी नहीं पाय
हरदम
हर समय खुद में ही खोई
एक
शांत सी लड़की
मेरी
आंखों मे तैरती है
किसी
की तलाश में
या
अपनी ही तलाश में
फिर
भी यादों में बेचैन रहती है
एक
लड़की खुद अपनी तलाश में
3
एक
चेहरे की मोहक याद
जिसको
महसूसते ही मन गुलाब सा खिल जाता है
खिल
जाता है मन
अनारकली
की तरह सलीम को देखकर
मुझे
तो उसके चेहरे का भूगोल भी ठीक ठीक याद नहीं
याद
है केवल एक सुदंर फूल की खुश्बू
जिससे
मन हर भरा सा लगता था
चाहत
से ही तन मन भर उठता था मुस्कन से
चिडियों
की तान सी जब भी देखा दूर से
नहीं
देखा तो कभी
आमने
सामने - आस पास -करीब
फिर
भी मोहक गंध सी लगी
किसी
ऐसी सौगंध सी लगी
जिसे
पार पाना
नहीं
था मेरा कोई अधिकार
4
किसी
कसक की तरह हमेशा
वो
मन में टिकी रही
ना
होकर भी उम्मीद सी मन में जगी रही
रंग
धूमिल होकर भी यादें मन में चहकती रही
कैसा
होगी और कहां ?
जानने की आस रही
भूल
गए हो शायद (दोनों)
इसकी
भी टीस हरी रही
मन
के दरवाजें पर एक आस अड़ी रही
पास
पास ना होकर भी
मन
में साथ की याद रही।
रहो
हमेशा हर दम हर पल
खुशी
में महकती खिलखिलाती रहो
ऐसी
ही मन में कुछ फरियाद रही।
5
कोई
कैसे अपना सा लगने लगता है
इसकी
चाहत भी तब जागी
जब
दूर हो गए
मजबूर से हो गए
देखने
की तमन्ना भी तब उठी सीने मे
जब
देखना भी ना रहा आसान
पाने
की ललक भी मुर्छा गयी देखकर दूरी
तन
मन रहन सहन की
फिर
भी कोई कैसे मांग ले फूल को अपने लिए
जाने
बिना
धड़कन
की रफ्तार
महक
की धार ?
6
यह
कौन सा नाता है
न
मन का न नयन का
केवल
चाहत है धड़कन का
बिन
देखे बिन बोले बिन कहे सुने
कौन
गिने सुने इस दुख की पीर
जिसमें
कुछ
नहीं है न टीस न यादों की पीड़ा न विरह का संताप
है
केवल मन का मोह मन की ललक
यादों
को सहेजने का जतन
यादों
में बने रहने का लगन
खुद
को खुद से खुद में
खुश
रखने का अहसास
7
किन
यादों को याद करे मन
नहीं
है कहीं स्पंदन
चाहत
का है केवल एक बंधन
यादों
के लिए भी तो कुछ चाहिए मीछे पल
केवल
चेहरे को याद करके निहाल हो जाना
फिर
बेहाल रहना
जाने
बगैर कि आंधी किधर है
मन
में या धड़कन में
8
तुम्हारे
होने भर के ख्याल से ही
मन
भर जाता है
खिल
जाता है
लगता
है मानों
मंदिर
की घंटियां बजनेलगी हो
या
कोई
नवजात
अपनी
मां से लिपट
पाने
लगा
सबसे
सुरक्षित होने का अहसास
तुम्हारे
ख्याल से ही
लगता
है अक्सर
उसको
कैसा लगता होगा
क्या
मैं भी कहीं हूं
किसी
की याद में ?
9
किसी
की याद में रहना
या
याद
बनकर ही रह जाना
बड़ी
बात है।
यादों
के भूत बनने से बेहतर है
यादों
की ही मोहक स्पंदन से
ताकत
देना उर्जा लेना ।
याद
में रहकर भी सपना नहीं
अपना
होकर भी अपना नहीं
मन
से हरदम पास होकर
साथ
का शिकवा नहीं
बड़ी
बात है।
10
कुछ
ना होकर भी
हम
सबकी चाहत एक हैं
एक
ही साया है दोनों के संग
हर
समय
मन
में तन मे
एक
ही तरंग उमंग
फासला
भी अब हार नहीं
जीत
सा लगता है
दिल
के धड़कन का संगीत सा लगता है
पास
ना होकर भी
पास
का हर पल
प्यारा
दीवना सा लगता है
जेठ
का मौसम भी सुहाना लगता है।
11
यह
अंधेरे का कोई
गुमनाम
बदनाम सा नाता नहीं
यह
तो दिल और मन का बंधन है
मेरी
यादें बेरहम कातिल नहीं
नफरतों
सा बेदिल नहीं
हमारी
यादों में फूलों की महक है,
चिडियों
की चहक है
अबोध
बच्चे का मां से आलिंगन है
हमारी
यादें तो मां के चुबंन सी निर्मल है
प्यार
अपना भी गंगाजल है
तेरे
चेहरे पर हरदम
मुस्कान
की शर्त है
तभी
तुम्हारे होने का अर्थ है
तेरी
हर खुशी से भी प्यार है
वही
तेरे जीवन का श्रृंगार है
यादों
में बनी रहो,
हरदम हरपल
शायद
यह
मेरा अधिकार है।
12
करते ही आंखे बंद
जाग
जाते हैं मन के सारे प्रेत
आंखों
के सामने सबकुछ घूम रहा होता हैं
सिवाय
तुम्हारी सूरत
जिसकी
याद में
लीन
होने के लिए
मैं
करता हूं
अपनी
आंखे बंद
13
यह कैसी नटलीला है प्रभू
खुली
आंख में सूरत नहीं दिखती
बंद
आंख मे भी
सूरत
की याद नहीं आती
याद
करके भी
याद
नहीं कर पाता
मोहक
चेहरा
कि
मन को
शांति
मिले
या
शांत मन में कोई उपवन खिले
इतना
जटिल क्यों है
याद
को याद करना
जिसके
लिए मन हरदम हरपल
विचलित
सा
रहता है
बार
बार
फिर
भी याद
है कि आती नहीं
और
मोहक
सूरत दिखती नहीं ।
14
तुम्हारे
होने भर के
अहसास
से
भर
जाता है
मेरे
मन में
धूप
चंदन की महक
खिल
जाते हैं मन आंगन उपवन में फूल
जाड़े
की धूप से नहा जाता है पूरा तन मन
नयनों
में भर जाती है
तृप्ति
का सुख
चेहरे
पर बिखर जाती है मुस्कान
रोम
रोम होकर तरंगित
मन
तन बदन को करता पुलकित
होकर
सांसे तेज
देखता
आगमन की राह
बिह्वल
हो
मैं
भी मोहक अहसास
बनकर
देखने लगता हूं
अक्सर
उस
अहसास की उर्जा
गंध
तरंग को
जिससे
मेरा तन मन पूरा बदन
रोमांचित
होकर
खो
जाता है मोहक मीठे खवाब में
15
यह नहीं है
दीवनापन
या पागलपन
फिर
भी
हर
तरफ केवल
तू
ही तू और तेरा ही चेहरा
क्यों
नजरा आए
स्कूल
जाती बच्चियां हो
या
गांव के पनघट पर शोर मचाती
हंस
हंस कर देती उलाहनों की
मुस्कान
में भी तेरा ही चेहरा
हर
चेहरे पर मुस्कान और संतोष है
मिठास
के साथ
तेरे ही रंग में
हर
चीज मीठी मादक दिखती है
तेरे
ही संग खिलता है सूरज
और
पलकों पर उतरने को बेकरार रहता है चांद
निर्मल
पावन मंदिर की घंटियों सी तुम
मन
में गूंजती हो
यादें
मोहक सुहावन रहे मन की लालसा है
तुम्हारा
सुख निर्मल शांति ही मेरी अभिलाषा है
मैं
तो हवा की तरह हर पल हूं
यही
सुख है
यादों
के बचपन में
यादें
भी रहे बचपन सी
कोमल
पावन
किसी
अबोध बच्चे कीतरह
16
1
अनजाना
अनदेखा
चेहरा
ही दिखाता है
बार बार बार बार बार
कभी
मन से नयन से
औरों
की भी नजर से
देख
ही लिया जाता है
अनदेखी
छवि सी
कली को
ललक
भरी रुमानी रेखा।
यही
तो चाहत है
उस
मोहक याद की
जिसको
हर
बार नए नए नए नए
नए
तरह से देखता है मन
कल्पना
की गंध में
हर
बार
अनूठापन
नयापन
मोहक
ख्याल से ही
कोमलता
खिल जाती है चेहरे की
चांद
भी शरमाता है
शांत
चेहरे की नूर से
दूर
होकर भी सिंदूरी चेहरा
हर
पल खिला खिला
रहता
है
हर
क्षण दिल से कुछ तो मिला होता है
चेहरे
की चमक से
चांदनी
रात भी
शरमाती
है
बिन
देखे ही चेहरे की
मिसरी
सी मोहक याद सताती है।
2
और
बढ
जाता है मोहक खुमार
देखने
के बाद
ख्यालों
में खोए खुमार
में
ही
मिट
जाता है अंतर
देखे
और बिन देखे का
जिंदा
होता है
केवल
ललक
उमंग उत्साह की उन्मादी खुशी ।।
3
मेरी
बात
मेरे
सपने
अपाहिज
नहीं यह जाना
सालो-सालों
साल दर साल के बाद।
मेरा
सपना अधूरा भले ही रहा हो
मगर
दिल का धड़कना
सांसो
का महकना या फूल संग देखा अनदेखा सपना
अधूरा
नहीं था।
तोते
की तरह
दिल
रटता ही रहा
दिल
की बात
कोयल
भी चहकी और फूलों की महके
हवाओं
ने दिए संकेत रह रहके
मगर
अपना दिल
दिल
की बात
दिल
तक दिल को देखनहीं पाया ।
प्रेम
-1
न
जाने
अब
तक
कितने/
दिलवर मजनू फरहाद
मर
खप गए
(लाखों
करोडों)
बिन
बताएं ही फूलों को उसकी गंध
चाहत
की सौगंध / नहीं कह सके
उनका
दिल भी धड़कता था
किसी
के लिए ।
एक
टीस मन ही मन में दफन हो गयी
फिर
भी / करता रहा आहत
तमाम
उम्र ।
बिन
बोले ही
एक
लावा भूचाल सी
मन
में ही फूटती रही
टीसती
रही
अपाहिज
सपनों की पीड़ा
कब
कहां कैसे किस तरह
मलाल
के साथ
मन
में ही टिकी रही बनी रही
काश
कह पाते / कह पाते कि
दिल
में तुम ही तो धड़कती थी
हमारे
लिए
दिल
दिल
से दिल में
दिल
के लिए
दिल
की कसम खाकर
दिल
ने
दिल
की बात कह ही दी
तू
बड़ा
बेदिल
है।।
b
हंसकर दिल ने
दिल
में ही
दिल
की कर शिकायत
दिल
के लिए
कसम
खाकर
दिल
में कहा
और
तू बडी कातिल है।
c
फिर
हंसकर
दिल
ने दिल से कह डाला
दिल
में मत रख बात
तू
कह दे तू कह ही दे
दिल
से ही दिल मिलते हैं
सपनों
के फूल खिलते हैं
दिल
में ही तड़प होती है
पर
एकटक मौन शांत रहा दिल
तब
खिलखिला कर बोली दिल
तू
बड़ा बुजदिल है।।
विश्वास
अर्थहीन सा लगे जग सारा
जब कोई मुझसे रूठ जाए।
बेकार से लगे जग सारा
जब कोई मुझसे ही नजरें चुराए।
बेदम सा मन हो जाए
जब अविश्वास से मन भर जाए किसी का ।
तमाम रिश्तों को
केवल विश्वास ही देता है श्वांस ((ऑक्सीजन)
सफाई जिरह तर्क कुतर्क सवाल जवाब से
होता है विश्वास शर्मसार
जिसको बचाना है
बहुत जरूरी है बचााना
कल के लिए
प्रेम के लिए
सबके लिए।।
केवल सात
मेरी यादों के रंग हजार
और इंद्रधनुष में केवल सात ?
नयनों के भीतर अश्क की असीम दरिया
और दुनियां में महा सागर केवल सात ?
कंगन चूड़ी बिछुआ पायल बाली बदल के धुन बेशुमार
और संगीत साधना के सूर केवल सात
उसके घरौंदे में अनगिन कक्ष (कमरे)
और रहने को दुनियां में महादेश केवल सात ।।
अब शिकायत भी करे
तो क्या
किससे किसके लिए।।।।
इंतजार
रंगीन यादों की मोहक तस्वीरें
देख गगन पर इंद्रधनुष भी शरमाए
तेरे स्वागत में
रोज खड़े होते हैं मेरे संग संग
कोयल मैना गौरेया तोता टिटिहरी की तान तुम्हें पुकारे ।
किधर खामोश हो छिपकर
इनको सताने के लिए ।।
.मैं
मदमाता समय बावरा
कोई
रहे ना रहे
ना भी रहे तो क्या होगा
यादें
इस कदर बसी है
अपने
मन तन बदन और अपनी हर धड़कन में
कि अब किसी के होने ना होने पर भी
कि अब किसी के होने ना होने पर भी
कोई
अंतर नहीं पड़ता
फसलों
की कटाई से दिखती है
मगर
होती नहीं जमीन बंजर
पतझड़
में ही बसंत खिलता है
जेठ
की जितनी हो तपिश
उतनी
ही बारिश से मन हरा भरा होता है
ठंड
कितनी भी कटीली हो
हाथों
की रगड से गरमी आ ही जाती है।
मैं
मदमाता समय बावरा
अपने
सीने की धड़कन में देखता हूं नब्ज तेरा
हर
समय हर दम
समय
की बागडोर लेकर
घूमता
हूं देखने
तेरी
सूरत तेरी हाल तेरी आस प्यास
तेरी
खुश्बू चंदन पानी में ही
शुभ
छिपा है
मुस्कान
की आस छिपी है
मैं
मदमाता समय बावरा
छोड़
नहीं सकता अकेले
तुमको
तो हंसना ही होगा खिलखिलाना ही पड़ेगा
इसी
से
धरती
की रास बनेगी आस बनेगी
लोगों
में प्यार की प्यास जगेगी।
मैं
मदमाता समय बावरा
कल
के लिए बचाना है समय
कल
के लिए,
कलवालों के लिए
हरी
भरी धरती में
हरियाली
को बचाना है तुम्हारी तरह
तुम
ही तो हो जीवन
सबकी
मैं
मदमाता समय का मस्त बावला।।
2
मैं
मदमाता समय बावला
मेरी
कदर न जाने कोय
मैं
ही हूं जो रहूंगा
हरदम
हरपल हरसमय चारो तरफ
मेरी
केवल एक चाल
फिर
भी सब बेहाल , सब निहाल ।
तुमसे
पहले मैं था
तुम्हारे
बाद भी केवल मैं ही रहूंगा।
मुझसे
होड़ करो,
मेरे
संग चलो , मेरे अंग चलो
फिर
भी जीतना मेरा ही तय है ।
मेरे
हमदम मेरे हमसफर
जितना
हो सके साथ चलो, साथ रहो।
छूटना
ही है, एक दिन साथ का बंधन
कभी
सोचा है मेरा दुख
समय
सुख नहीं केवल दुख है
न
जाने कितनों की किलकारियों पर मैं हंसा
तो
अपने
ही बच्चों के महाप्रयाण पर
गहरे
दुख में मैं धंसा।
मैं
मदमाता समय बावरा मेरी कदर न जाने कोय।।
सब
मेरे हैं और मेरे संग ही तो रहे सदा
मैं
निष्ठुर एक चाल का
हो
न सका अपनों से कभी जुदां .
मेरे
से पहले कोई नहीं
केवल
मैं ही हूं एकला
सब
मेरे सामने ही आकर , चले जाए।
मुझसे
ही होड़ करे
और
मुझको ही भूलकर चैन करे
मैं
मदमाता समय बावला , मेरी कदर ना जाने कोय।
मैं
बावरा होकर बावला
भूल
नहीं पाता हूं अपने घाव
खूनी
रक्तपात नरसंहार बम बिस्पोट
सबके
साथ मैं भी तो मरता हूं
सबके
साथ साथ समय पर ही तो कालिख पुतती है
समय
बड़ा बलवान
मगर
समय
ही तो मारा जाता है बार बार बार बार
अपनो
से अपनो के बीच अपनो के लिए
मैं
मदमाता समय बावरा
मेरी
कदर न जाने कोय।।
निहारना
निहारना
खुद को खुद में
इतना
आसान कहां है
आईना
/ कातिल सा बेरहम
केवल
सच बोलता है
सौंदर्य
की भाषा में खुद को निहारना
अपने
तन की त्रुटियों की तलाश है
आज
तो
लोग
खुद से भागते हैं खुद को ठगते हैं
खुद
को अंधेरे में ऱखकर
खुद
से ही झूठ बोलते हैं।
मगर
आईने में खुद को तलाशना
अपनी
ही एक नयी खोज होती है
और
सुदंर
पहले
से सुदंर
......या
अब तक की सबसे सुदंर ।
औरों
से अलग या बेहतर
होना
दिखना भी
कोई
बच्चों का खेल नहीं
निहारना
सौंदर्य
का दिखावा नहीं
केवल
सुदंर तन की तलाश नहीं
निहारना
तो
मन
को भी सुदंर कर देती है
निहारना
तो अपनी तलाश का आरंभ है।
और
भला
कितने
हैं लोग
जो
निहारते हुए
खुद
को भी खुद में ही
तलाशते
हैं। निहारते हैं।।
पत्ता
नहीं क्यों
नहीं
चढ़ पाया /
रंग
किसी का, किसी पर
न
तेरे ही रंग से खिल पाया मैं
ना
अपना ही रंग दिखता है तुम सा
बेरंग
होकर भी /
यह कौन सा रंग है नशा है , साया है, खुमार है
जिसमें
सबकुछ दिखता है एक समान ही एक सा
एक
ही तरह की सूरत मूरत
एक
ही ध्यान
एक
ही रंग रूप में
तेरी
साया तेरी काया तेरी माया।।
फिर
भी
निहारना
खुद को खुद में तलाशतीहूं
अपनी
मौलिक साया निर्दोष काया
केवल
अपनी भाषा अपनी परिभाषा
निहारना
एक
जुनून नहीं
अपनी
तलाश है, अपनी खोज है
जो
मिल नहीं रहीं
बार
बार बार हर बार निहारते हुए खुद को
फिर
भी ।
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