बुधवार, 7 नवंबर 2012

अनामी से डरना क्या






अभी ब्लोगजगत में अनामी की धूम मची हुई है। अच्छे-अच्छे धुरंधर महारथी ब्लोगर अनामी का नाम सुनते ही थर-थर कांप उठते हैं और मोडरेशन के बिल में जा दुबकते हैं। पर इससे आखिर ब्लोगरी का ही नुकसान हो रहा है। जब पोस्ट पर माडरेशन लगा दिया जाता है, तो टिप्पणियां तुरंत नजर नहीं आतीं, जब ब्लोग स्वामी को फुरसत होती है, तब कहीं जाकर प्रकट होती हैं। अभी हिंदी में फुलटाइम ब्लोगिंग की विलासिता बहुत कम लोगों के बस की बात है। अधिकांश ब्लोगर सुबह पोस्ट करते हैं आफिस जाने से पहले, या आफिस पहुंचकर दफ्तरी कामकाज में उलझने से पहले। और दिन में एक दो बार अपना ब्लोग देख लेते हैं, या शाम को घर आकर। इस तरह टिप्पणियां पोस्ट होने और ब्लोग स्वामी द्वारा उनके अनुमोदित किए जाने में काफी समय बीत जाता है। इसका नुकसान यह हो रहा है कि टिप्पणियों की विविधता ही नष्ट हो रही है। टिप्पणीकर यह नहीं जान पाते कि पहले के टिप्पणीकारों ने क्या लिखा है, इसलिए कई बार एक ही बात बिना पूर्वापर संबंध स्थापित किए कई टिप्पणियों में दुहराई जा रही है। इससे विचार विमर्श में बाधा पड़ रही है।दूसरा नुकसान यह हो रहा है कि टिप्पणियों में दी गई नई जानकारी, नए दृष्टिकोण, आदि को ध्यान में रखते हुए टिप्पणियां लिखना संभव नहीं हो पा रहा है। इससे टिप्पणियों का गुणस्तर गिरने लगा है।ब्लोगरों को भूलना नहीं चाहिए कि प्रत्येक पोस्ट के दो अन्योन्याश्रित भाग होते हैं, एक, स्वयं पोस्ट, और दूसरा, उस पर आई टिप्पणियां। पाठक पर इन दोनों का समग्र प्रभाव पड़ता है। यदि टिप्पणियां बेदम हों, तो पोस्ट भी नीरस और फीका हो जाता है। कई बार टिप्पणियां मूल पोस्ट से ज्यादा रोचक और ज्ञानवर्धक होती हैं।वैसे बेनामी से डरना क्या। यदि वह कोई अटपटी टिप्पणी लगा भी दे, तो उस टिप्पणी को दो सेकंड में हटाया भी तो जा सकता है? माडरेशन लगाना मुझे अति-प्रतिक्रिया मालूम पड़ती है। जिन ब्लोगरों ने उसका सहारा लिया है, उनसे मेरा अनुरोध है कि वे पुनर्विचार करें।