सोमवार, 22 दिसंबर 2014

.........हाजिर हो / अनामी शरण बबल--6




 

 

 

 

 

22 दिसम्बर--- 2014

 

नंबर गेम कहीं ले न डूबे मोदी जी

आजकल हमारे प्रधानमंत्री के उपर नंबर गेम का खतरा मंडरा रहा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर की कोई संस्था पत्रिता या संगठन आजकल नंबर गेम रेस में हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एकदम टॉप पर खते हुए भारत में अपनी जगह बना रही है। गुमनाम से सर्वे भी बडी खबर बन जा रही है। देश के लोग भी अंगूली दबाकर हैरान है कि केवल छह माह में मोदी सब पर भारी कैसे हो गए। ओबामा से लेकर और तमाम ग्लोबल नेता भी मोदी के आगे ढेर पड़े है। बीजेपी नेता फूले नहीं समा रहे है कि मोदी मैजिक से संसार चकित है। विपक्ष भी हैरान है किइस मोदी में क्या दम है। मगर मोदी जी इस नंबर गेम के पोलटिक्स और साजिश को बूझिए। खुद सोचिए कि सता संभालने के केवल सात माह में ग्लोबल लेबल पर आपने ऐसा क्या कमाल कर दिखाया कि आपको आसमान पर चढाया जा रहा है। पूरा देश अब मैजिक से बाहर आकर सवाल करने लगा है। बिखरे भले हो , मगर एक होकर आग बबूला हो रहे है. जनसभाओं में आपके ही वायदों की खिल्ली उडाये का दौर चालू हो गया है। लिहाजा ग्लोबल पावर बनने से पहले देश में पावरफूल  बनिए। अपने वायदों पर खुद को खरा साबित कीजिए तभी विदेशी वंबररेस से जनता खुश होगी। अन्यथा सितारा डूबने पर क्या होता है यह बताने दिखाने और जताने की कोई जरूरतनहीं है। आप तो खुद ही मंजे हुए प्लेयर  है।

 

अपने गिरहबान में भी झाकों प्रभु

केवल विरोध के लिए विरोध करना विरोधी दलों का कैरेक्टर है।, मगर सत्ता पर एकदम हमलावर हो जाने से लोगों में उल्टा ही असर भी पड़ता है। सभी थके मांदे हारे बुजुर्ग हो गए और एक होकर भी कई कई बार बिखर चुके महारथियों ने इस बार नेताजी को नेता मानकर एक होने का मंचन किया है।  इस महा गठबंधन का पहला शक्ति परीक्षण के तौर पर आज जंतर मंतर से आग बबूला होने का मौका था।  इस पावर शो में तमाम नेता पानी पी पीकर मोदी सरकार पर बरस रहे थे। जनता को धोखा देने झूठे वायदजे करने और ठगने का आरोप लगा लगाकर मोदी कंपनी को कोस रहे थे। मगर कभी अपने गिरहबान में भी तो झांको तमाम महाप्रभुओं,  कि जब राज्य की ही सत्ता मिली तो आपलोगौं ने क्या किया। अंधेरगर्दी मचा मचा कर जनता को क्या दिया। किन किन वायदों पर खरे ही नहीं साबित हुए। ई पब्लिक बडी शातिर हो गयी है नेताजी। डायलॉग पर तालियां भले ही बजा दे मगर मौका आने पर बीबी समेत बेटी तक के गले में हार की तख्ती टांगते देर नहीं लगाती। अपने दशकों के कर्मो कुकर्मो का हिसाब केवल सात माह में मांगते आपको शर्म आए या न आए पर हिसाब मांगते आपलोगों को देखकर  जनता जरूर शरमा रही है ।

 

हिन्दू नेता मुस्लमान हिंदू नेता

 

भाजपा सरकार के केवल सात माह के शासन में ही देश का सौहार्द खतरे में है। सामाजिक सद्भाव का तापमान गिर रहा है, तो धार्मिक उन्माद का टेंपरेचर गरमा रहा है। तमाम हिन्दू नेता मुंह में मिर्ची लगा लगाकर माहौल को भडका रहे है। सब बेकाबू है, कमल छापी विधायक से लेकर संघ और न जान तमाम संगठन रोजाना अपनी बुद्दिमानी से देश को ललकारने में लगे है। तथाकथित हिन्दूनेताओं के प्यार भरे बोल से मुस्लमान नेता के तौर पर देश में चर्चित और मौलाना कहे जाने पर कलेजा और चौड़ा करने वाले यादव समधि मुस्लमान नेता भी अपने वोटरों को अपना बनाए रखने के लिए हिन्दू नेताओं को ललकारना चालू कर दिया है। दोनों तरफ के जुबानी जंग से माहौल पर खतरे की आशंका है। हिन्दू और मुस्लमान हिन्दू नेताओं के बीच ताल ठोक कर देख लेने की धमकी उछाली जा रही है। मगर मोदी जी आप इस समय अग्निपरीक्षा के सामने खडे है।  जहां पर देश की कानून व्यवस्था और शांति बनाये रखना आपका पहला धर्म है। माहौल को सुधारने और सामान्य करने की चेष्टा को दुरूस्त करे,  नहीं तो सबसे ज्यादा खतरा आपकी ही क्रेडीबिलिटी और इमेज पर पड़ेगी।

 

 

वाड्रा पर केस तो रहेगा ही

 

अपने ससुराली पावर प्रेशर, पोलिटिकल कांटैक्ट और किराये की पहचान पर उछल कूद रहे मुरादाबादी दामादजी पर तमाम कांग्रेसी सरकारे मेहरबान रही है। इसी के बूते कौडियों के भाव जमीन खरीदकर अरबों में बेचकर एक पल में ही मोटी कमाई करने वाले दामाद जी के मुकदमें की सरकारी फाईल से दो पन्ने लापता हो गए। यह मामला खुला भी तो सूचना अधिकार के तहत। कांग्रेसियों की निष्ठा भी वंदनीय है। सबको पत्ता है कि अगर दामादजी दागदार होंगे तो पार्टी और इसके ऑक्सीजन भाई बहन की साख पर भी आंच आएगी, लिहाजा दामाद को सेफ करने के लिए अलविदा कहने से पहले पंजा सरकार ने वह कर दिखाया जो नहीं करना चाहिए  था। पर मामला कोर्ट में है। लापता पन्ने कोर्ट समेत दामाद जी के फाईल में भी है । उधर दामादजी के लिए जमीन खोजने और डील कराने वाला डीलर नागर भी तो पुलिस और कानून की नजर में है। लिहाजा बात बनने की बजाय कोर्ट की नजर में तो दामादजी और चढ जाएंगे । अब देखना यह दिलचस्प होगा कि तेरा क्या होगा पीतल शहर के प्रोपटी डीलर दामाद जी ?

 

रामजादों की करतूत

 

रामजादों या हरामजादों की सरकार बनेगी का नारा बुलंद करके भले ही साध्वी ज्योति निरंजना संकट में फंस गयी थी,, मगर एक सप्ताह के अंदर भाजपा के कई विधायकों नें इस तरह की हरकते की है लोगों में रामजादों की व्याख्या ही बदलती दिख रही है। कोटा के एक विधायक तो अपने वोटरों को वोट नहीं डालने पर घर से निकाल बाहर करने की धमकी दी। और मजे कि बात है कि अपने कारनामों पर शर्मसार होने की बजाय पूरी ठिठाई से कहा कि वोटरों से शाम दाम दंड  सारे हथकंडे अपनाना ही पडता है। रामलला के दूत की तरह प्रचारित कमल छापी नेताओं की हरकत्तों से तो लगता है कि ज्योति निरंजना अपनी पार्टी के बारे में ही टिप्पणी क रही थी क्या ?

 

 

 

शनिवार, 20 दिसंबर 2014

..........हाजिर हो / अनामी शरण बबल -5





 

 20 दिसम्बर 2014



सपनों के सौदागर के सपने



भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर मोदी एक कवि है। हाल ही में इनका एक काव्य संग्रह आंख ये धन्य है का हिन्दी में प्रकाशन हुआ है। हालांकि गुजराती में आंख आ धन्य छे  का प्रकाशन करीब सात साल पहले 2007 में हो चुका था। काव्य संग्रह के साथ ही इनका एक कथा संग्रह प्रेमतीर्थ  का भी प्रकाशन 2007 मे हुआ था। मोदी को जानने वाले बहुत ही कम लोग शायद यह जानते होंगे कि कि वे एक कवि और कथाकार यानी एक साहित्यकार भी है। हालांकि एक कथाकार और कवि के रुप में यह उनकी पहचान कोई आज की नयी नहीं है।  मगर राजनीतिक गहमागहमी और नरम गरम सामाजिक तापमान के चलते मोदी की एक साहित्यकार की पहचान उभर कर सामने नहीं आ सकी। हालांकि इस दौरान वे राजनीति में शिखर पर चढ़ जरूर गए। तमाम व्यस्तताओं के बावजूद हमेशा कुछ न कुछ लिखना इनकी आदत ही है कि प्रधानमंत्री के रचनात्मक खजाने में कहानी और कविताओं की दो दो पांडुलिपियां अभी तक और अप्रकाशित पडी है।  रोजाना की भीड और मीडिया की भीड के बीच अपने भाषणकला केआश्चर्य कोइस तरह व्यक्त किया है
रोज रोज ये सभा, लोगों की भीड़,
 घेरता तस्वीरकारों का समूह, 
 आंखों को चौंधियाता तेज प्रकाश, आवाज को एन्लार्ज करता ये माइक,
इन सबकी आदत नहीं पड़ी है, ये प्रभू की माया है। 
अभी तो मुझे आश्चर्य होता है
 कि कहां से फूटते है ये शब्दों का झरना
 कभी अन्याय के सामने मेरी आवाज उंची हो जाती है 
तो कभी शब्दों की शांत नदी शांति से बहती है।
 कभी बहता है शब्दों का बसंती वैभव.शब्द
अपने आप अर्थो के चोले पहन लेते है,
 शब्दों का काफिला चलता रहता है और मैं देखता रहता हूं केवल उसकी गति।
इतने सारे शब्दों के बीच
, मैं बचाता हूं अपना एकांत,
तथा मौन के गर्भ में प्रवेश कर लेता हूं
 आनंद किसी सनातन मौसम का। 



मौन मोहना से भय

 

देश के सबसे ईमानदार के रूप में विख्यात अर्थशास्त्री और भूतपूर्व प्रधानमंत्री से अब सीबीआई पूछताछ करेगी। कोर्ट के आदेश पर यह सब हो रहा है। जब खुद कोयला मंत्रालय का एक्स्ट्रा भार संभाला तो अपनी सारी स्वच्छ छवि को कोयले में काला कर लिया। खरबों के वारे न्यारे किए या न किए यह तो खुला तोता खोज लेगा, पर कोयले को अपने बाप की जागीर मानकर जिसको चाहा औने पौने भाव में बॉट दिया। मामला खुला तो इनके सिपहसालारों ने तो बचाया मगर अब सरकार क्या बदली कि कोर्टके सामने तो मौन तोडना ही पड़ेगा। चाहे कांग्रेसी लाख शोर मचाए।  कांग्रेसी शोर इसलिए नहीं मचा रहे कि भूत से कोई लगाव है। अब तो यह डर सता रहा है कि बेचाका सीधा साधा अगर मौंन तोडा तो पता नहीं क्या होगा। फिर दांव पेंच में कमजोर दोस्त के बारे में कहा भी जाता है कि वो दुश्मन से ज्यादा डेंजर होता है।

   


दिल्ली हरियाणा सबै बिहार



देश में लोग बिहार को नाहक बदनाम करते है। समाज के सबसे शरीफ समाज को लोग असामाजिक लोग कहते है। मगर इन लोगों के चलते ही देश भर में धंधा और पुलिस कीकमाई हो रही है। बिहार के शरीफों ने कानून और पुलिस के ठेंगा दिखाकर शहर के एक एटीएम को ही उठाले भागे, तो इसकी बड़ी निंदा हिई। लोगोंने जंगल राजसेतुलनाकर लालू नीतिश सबको एकही छैली के चट्टे बट्टे मान लिया। मगर एक माह के भीतर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दो और हरियाणा के शरीफजादों नें भी एटीएम मशीन को ही उठा ले भागे। दिल्ली नरेला के एटीएम में तो डेढ़ करोड रुपये थे। हमेशा सदैव रहने वाली पुलिस इन हरामजादों को नहीं खोज पा रही है, मगर क्या मजाल कि लोग और पतरकार लोग भी इसको तूल नहीं दिए। मीडिया का यहपक्षपात्ततो बिहार के साथ न्याय नहीं लगता।



क्या आप ललित नारायण मिश्र को जानते है ?



सत्यमेव जयते। जी हा जयते। देश के ज्यादातर लोग ललित नारायण मिश्र को नहीं जानते। फिर क्यों जाने । आज से 39 साल पहले ये रेलमंत्री थे। जिनको बिहार समस्तीपुर के रेलवे स्टेशन पर इनकी हत्या कर दी गयी थी। दिवगंत मिश्र के छोटे भाई जगन्नाथ मिश्र बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री भी रह चुके है, और  बहुत लोग  जगन्नाथजी के चलते ही ललित नारायण को याद करते थे। मामला यह है कि  39साल के बाद इनके चार हत्यारों को उम्रकैद दे दी गयी। भला हो कि इसी बहाने पाताल लोक तक भुला दिए गए ललितजी एकाएक याद आए।
अपन इंडिया भी ग्रेट है कि इतने वीआईपी को न्याय पाने में जब चार दशक लग जाता है।   बेचारी जनता के लिए तो कोई टाईम ही नहीं है कि कब मिलेगा सत्यमेव जयते ।   



मुखी को ले डूबे केजरीवाल 




आप पार्टी के मुखिया रोजाना कोई न कोई मुद्दा या आरोप उछालते ही रहते है।  भले ही लोग उसको हल्के में लें, मगर धाव गहरा भी कर जाता है।  दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 के लिए बतौर मुख्यमंत्री के रुप में केजरीवाल ने सवाल उछाला कौन होगा दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री मुखी या  केजरीवाल  ? लाखो पोस्टर दिल्ली में चंस्पा है। अब आप के इस एड से मुखी परेशान है। जोड तोड से अगर कमल की सरकार बनती तो मुखी का नाम लगभग तय था, मगर अब चुनाव होना है। जिसमें मुखी की संभावना लगभग ना के समान ही है। भावी सीएम रेसमें मान रहे कई नेता मोदी और शाह की चाकरी में लगे है। कुछ नेता तो सीधे सीएम का सपना देख रहे है। देखना यह काफी मजेदार होने वाला है कि सीएम के नाम से पहले आप के झाडू से फिर हैंग ओवर गेम ना हो जाए।

कच्चे आम में अनुभव और ओज की रसभरी कविताएं









अनामी शरण बबल 

प्रस्तुति- रिधि सिन्हा नुपूर 

प्रधानमंत्री बनने से पहले एक मुख्यमंत्री के रूप मे नरेन्द्र दामोदर मोदी औरों से अलग साबित होते और दिखते रहे थे। अपनी बात को एक प्रभावशाली और लयात्मक ढंग से रखने में वे सिद्धहस्त है। एक सख्त प्रशासक की छवि के बाद भी जनता के बीच खासे लोकप्रिय और जनता से लगातार संवाद करने और रखने वाले मुख्यमंत्री थे।  अकेले अपने बूते लोकसभा चुनाव के दौरान प्रचार की धूम मचाकर जादूई अंदाज में आज वे देश के प्रधानमंत्री है।
प्रधानमंत्री मोदी के बारे में बहुत ही कम लोग शायद यह जानते होंगे कि कि वे एक कवि भी है। केवल कवि ही नहीं बल्कि नरेन्र मोदी एक कथाकार भी है।. एक कथाकार और कवि के रुप में यह पहचान कोई आज नया भी नहीं है। कथाकार के रुप में एक कथासंग्रह प्रेमतीर्थ का गुजराती भाषा में करीब सात साल पहले प्रकाशित भी है। कथासंग्रह प्रेमतीर्थ  के साथ ही साथ गुजराती में एक काव्य संग्रह भी आंख आ धन्य छे  (आंख ये धन्य है) का प्रकाशन भी उसी दौरान करीब सात साल पहले 2007 में हो चुका है। मगर राजनीतिक गहमागहमी और नरम गरम सामाजिक तापमान के चलते मोदी की एक साहित्यकार की पहचान उभर कर सामने नहीं आ सकी। हालांकि इस दौरान वे राजनीति में शिखर पर चढ़ जरूर गए। तमाम व्यस्तताओं के बावजूद हमेशा कुछ न कुछ लिखना इनकी आदत है और यही वजह है कि प्रधानमंत्री के रचनात्मक खजाने में कहानी और कविताओं की दो दो पांडुलिपियां अप्रकाशित पडी है।
हिन्दी में प्रकाशित काव्य संग्रह आंख ये धन्य है में अपनी कविताओं के बारे में कवि नरेन्द्र मोदी ने काव्यात्मक शैली में अपनी बात कही है।   
मैं साहित्यकार अथवा कवि नहीं
 अधिक से अधिक मेरी पहचान
 सरस्वती के उपासक की हो सकती है।
प्रधानमंत्री के इस काव्य संग्रह को हिन्दी के एक लगभग गुमनाम से विकल्प प्रकाशन ने छापा है। खास बात तो यह है कि कि इसका प्रकाशन भी तब हुआ है जब वे प्रधानमंत्री  बन चुके थे, इसके बावजूद यह संग्रह अभी तक लोकार्पण की बाट जोह रहा है। यही वजह है कि हिन्दी में किताब के प्रकाशन के बाद कई माह होने के बाद भी यह संग्रह और प्रधानमंत्री की कविताएं हिन्दी साहित्य और पाठकों के लिए अभी तक गुमनाम ही है। इस संग्रह में प्रकाशित 67  कविताओं के बारे में बात शुरू करने से पहले मैं कवि मोदी द्वारा अपनी कविता के बारे में की अभिव्यक्ति को ही फोकस कर रहा हूं, जो यहां पर खासा उल्लेखनीय भी हो जाता है।  अपने पाठकों से निवेदन करते हुए कवि मोदी कहते है-
मेरी प्रार्थना है, पुस्तक में मेरी पद प्रतिष्ठा को न देखे, कविता के पद का आनंद लीजिए, मेरी कल्पनाओं की खुली खिड़की, छोटी सी खिड़की में से दुनिया को, जैसा देखा, अनुभव किया
जैसा जाना आनंद लिया, उसी पर अक्षरों से अभिषेक किया
अपनी काव्य संस्कृति संस्कार और काव्य अनुशासन के बारे में भी कवि मोदी कहते है-
मेरा चिंतन मनन ,अथवा अभिव्यक्ति, मौलिक है, ऐसा मेरा कोई दावा नहीं, पढ़े सुने की छाया से भी वह मुक्त नहीं हो सकती है।
 अपनी कविताओं में संभावित त्रुटि या भाषाई गठन की कमी के बारे मे भी कवि नरेन्द्र मोदी का यह स्पष्टीकरण विशेष उल्लेखनीय सा प्रतीत होता है।  
मेरी कविताएं कभी भी सार्वजनिक कसौटी पर उतरी नहीं है, इसलिए उनकी खामियों की तरफ भी मेरा भी ध्यान गया नहीं है, मगर सब रचनाएं श्रेष्ठ हो, ऐसा भी नहीं  परंतु कभी कभी
कच्चे आम का स्वाद भी, अलग तरह का स्वाद दे जाता है। 
अपनी कविताओं को कच्चे आम से तुलना करके का वे पाठकों को अलग तरह के स्वाद देने की लालसा जरूर करते और रखते है। तभी तो पाठकों से कवि मोदी यह कहना भी नहीं भूले कि
मेरी रचनाओं का ये नीड़ आपको निमंत्रण देता है, पल दो पल आराम लेने पधारो, मेरे इस नीड़ में आपको भावजगत मिलेगा और भावनाएं लहराएंगी कविता के साथ साथ। प्रकृति यात्रा की कल्पना मुझे अच्छी लगी और आपको भी पसंद आएगी।   
अपनी बात में ही वे अपनी काव्य यात्रा या यत्र तत्र बिखरी तमाम कविताओं को एकत्रित करके उसको संग्रहित रखने में सुरेश भाई के योगदान पर आभार भई जताते है। सुरेश भाई से वे इस कदर अभिभूत रहे कि उनकी शिल्पकार की भूमिका के प्रति वे सदैव भावुक दिखे।
मैं कवि मोदी की कविताओं पर बात करने से पहले इनके प्रकाशन और अनुवाद को लेकर सक्रिय एक पूरी टीम की ललक योगदान और उत्साह पर रौशनी डाल रहा हूं कि किन किन हालातों से गुजरने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ये रचनाएं हमारे बीच आयी है। हिन्दी की मशहूर शायरा और कवि डा. अंजना संधीर ने इन कविताओं का अनुवाद किया है । एक साहित्यकार के  रूप में विख्यात डा. अंजना पिछले दो दशक से अमरीका में रह रही थी। डा. अंजना  संधीर के अनुसार गांधीनगर के एक हायर सेकेणडरी स्कूल प्रिंसीपल डा. ललित अग्रवाल ने इन कविताओं के अनुवाद करने का आग्रह किया, और 2008 में मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदीसे मुलाकात के बाद इस किताब की हिन्दी में प्रकाशन की संपूर्ण रूपरेखा के साथ साथ यह भी तय हो गया कि डा. संधीर ही इसे  हिन्दी में अनुदित करेंगी।
इतने लोगों की मेहनत और सामूहिक प्रयास के बावजूद हिन्दी में इस किताब को आने में छह साल लग गए। मगर बात यहीं पर खत्म नहीं होती है, अब सवाल उठा कि इस किताब का लोकार्पण कौन करेगा ? क्या खुद मोदी जी करेंगे या उनकी माताजी के हाथों इसका लोकार्पण कराया जाए या कोई और तीसरा ?  इसी उहापोह में प्रकाशन के चार माह बीत जाने के बाद भी किताब की केवल कुछ प्रतियां ही कुछ खास लोगों तक ही पहुंच सकी है। डा. संधीर मेरी बहुत पुरानी परिचित है,लिहाजा  सितम्बर माह में ही यह किताब मुझे खास तौर पर भेजी, मगर हमारे कुछ मित्रों ने आंख ये धन्य है की इकलौती प्रति पत्ता नहीं कब मेरे घर से पार कर दी। किताब नहीं मिलने से मैं बड़ा परेशान था और उधर डा. संधीर लगातार कुछ लिखने के लिए कहती रही। तब कहीं जाकर मुझे बताना पडा कि मोदीजी कि यह किताब मेरे घर से लापता हो हो गयी है।  तब वे और नाराज हुई कि तो क्या हुआ मैं दूसरी कॉपी भिजवा देती। इस उलाहने के साथ चौथे ही दिन  आंख ये धन्य है कि दूसरी प्रति कूरियर से मेरे पास इस उलाहने के साथ आई कि इस किताब की दो प्रति तो फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी जी के पास भी नहीं है। कवि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भले ही खुद को एक कवि मानने में थोडा संकोच करें, मगर सच तो यह है कि वे अपनी काव्यात्मक सौंदर्य और लालित्यपूर्ण शाब्दिक अनुशासन की वजह से ही सबसे अच्छे कम्यूनिकेटर है ।
यह एक अजीब संयोग है कि आज से ठीक 30 साल पहले  1984 में प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने 21 सदी का सपना दिखाया था। उत्साह उमंग सपनों और कल को बदलने की ललक को दिवंगत गांधी मुहाबरेदार  शैली में जनता के समक्ष सामने रखते थे। हम देख रहे है, हम देखते है और हम देखेंगे की मीठी मीठी बातों ने देश को सपना देखने का मौका दिया। करीब 30 साल के बाद  दिवंगत प्रधानमंत्री के सपनों को और सुनहरे पंख लगाते हुए धारदार अंदाज में प्रधानमंत्री मोदी ने अच्छे दिन आएंगे के सपने को साकार करने की मुहिम में लगे है। प्रधानमंत्री बने अभी केवल सात माह  ही हुए है मग अपनी नियोजित प्रचार अभियान से पूरे विश्व में मोदी की धाक दिखने लगी है।
एक कवि से ज्यादा सफल राजनीतिज्ञ नरेन्द्र मोदी की कविताओं का एक खास अर्थ यहां पर यह है कि इन कविताओं और मंचीय भाषणों में खास अंतर नहीं है । जैसे मोदी को मंच पर से सुनना अच्छा लगता है, ठीक उसी प्रकार इनकी कविताएं भी पढने से ज्यादा सुनने में ज्यादा कर्णप्रिय लगती है। अपनी वाक पटुता और भाषण कला को सनातन मौसम कविता में व्यक्त करते है। -
रोज रोज ये सभा, लोगों की भीड़,
 घेरता तस्वीरकारों का समूह, 
 आंखों को चौंधियाता तेज प्रकाश, आवाज को एन्लार्ज करता ये माइक,
इन सबकी आदत नहीं पड़ी है, ये प्रभू की माया है। 
अभी तो मुझे आश्चर्य होता है
 कि कहां से फूटते है ये शब्दों का झरना
 कभी अन्याय के सामने मेरी आवाज उंची हो जाती है  
तो कभी शब्दों की शांत नदी शांति से बहती है।
 कभी बहता है शब्दों का बसंती वैभव.शब्द
अपने आप अर्थो के चोले पहन लेते है,
 शब्दों का काफिला चलता रहता है और मैं देखता रहता हूं केवल उसकी गति।
इतने सारे शब्दों के बीच
, मैं बचाता हूं अपना एकांत,
तथा मौन के गर्भ में प्रवेश कर लेता हूं
 आनंद किसी सनातन मौसम का। 
यह एक कविता भी है और प्रधानमंत्री मोदी का आत्मकथ्य भी।  एक राजनीतिज्ञ के तौर पर नरेन्द्र मोदी उमंग उत्साह हौसला और आज एक सपने का नाम है। देश की जड़ता को तोडने के लिए वे कहीं सफाई सुशासन रोजगार कम्प्यूटर मोबाइल के सपने को उछालते है तो कहीं युवाओं को हर स्तर पर आगे आने की ललक जगाते है। वे एक बहुत बड़े सकारात्मक प्रेरक की तरह जनता से संवाद करते है। सपनों के बीज कविता में कवि मोदी ने कहा है ..
और इन्द्रधनुष पर मर मिटता हूं
 परंतु अपना घर इन्द्रधनुष पर बनाता नहीं हूं मैं
, इन्द्रधनुषी रंग के सपने हैं मेरे पास
ये सपने रोमांटिक नहीं अपितु
जीवन भर की तपस्या के है।
तुम्हारे पास सपने हों या न हो
 पर सपनों के बीज मैं, अपनी धरती पर बीजता हूं  
और प्रतीक्षा करता हूं, पसीना बहाकर कि वे अंकुरित हों और उनका वह वृक्ष बने
सपनों के सौदागर के सपनो भरी कविताओं में केवल सपने नहीं है उसमें समानता लडने संघर्ष करने का जूझारुपन भी साफ साफ दिखता है. । मोदी की कविताओं से रूबरू होते हुए पंजाबी कवि अवतार सिंह पाश की कविता सबसे खतरनाक की बार बार याद आने लगती है , जिसमें पाश ने कहा था-
सबसे खतरनाक होता है, मुर्दा शांति से भर जाना,  न होना तडप का, सबकुछ सहन कर जाना  घर से निकल कर काम पर, और काम से लौटकर घर आना, सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना। 
 सपनों को बारे में कवि पाश ने लिखा भी है
-सपने हर किसी को नहीं आते सपनों के लिए लाजमी है सहनशील दिलों का होना, सपनों के लिए नींद की नजर होनी लाजिमी है, सपने इसीलिए सभी को नहीं आते है
लगता है कि कवि मोदी को सपनों की हकीकत और जटिलता पता है, इसीलिए देशवासियों को सबसे खतरनाक सच्चाई से बचाने के लिए सपनों के सौदागर की तरह हर उम्र हर नौजवान के लिए सपनों का कुतुबमीनार खड़ा करने की कोशिश में जुटे है ताकि सपनों की अहमियत को लोग जान समझे,। तभी तो  पूरे देश को हमारा कल इस तरह का हो सकता है का  सपने के अपने इस अभियान में सबों को जोडने की मुहिम के साथ  कवि और प्रधानमंत्री निकल पड़े है।
इन कविताओं का यहां पर  खास महत्व है, क्योंकि कविताओं में एक कवि के नाते केवल अपने मन और भावी काम काज की एक रूपरेखा खींची है। कवि मोदी की इन कविताओं को पढे और समझे बगैर प्रधानमंत्री मोदी को समझना और उनकी पूरी कार्यप्रणाली को रेखांकित नहीं किया जा सकता है।
मुझे पनिहारिन के मटके पर से
गुजरती किरण के गीत गाने है
भरी दुपहरी में पसीना बहाते श्रमिक
के पसीने से चमकती  किरणों के गीत गाने है।
मुझे छुट्टी रखनी है
बच्चों के मक्खन जैसे नरम पैरों से
उड़ते रजकणों व गोधूलि की धूल से
एक एलबम बनाना है । 
वाह यहां पर कवि की भाव संवेदना और सपनो की उड़ान का अद्रभुत चित्रण सामने आता है। एक तरफ तो हमारे प्रधानमंत्री मंगलयान बुलेट ट्रेन समेत मोबाइल मेट्रो की बात करते हैं, मगर वहीं अपनी नजरों से एक किसान पनिहारिनों की पीडा और बाल मानस की अठखेलियों से भी दूर रहना नहीं चाहते हैं। कवि मोदी एक तरफ सपनों के सच्चे संसार और आधुनिक विकास के सपने को साकार करने की ललक जगाते हैं तो दूसरी तरफ समाज के सबसे आखिरी लाईन में खड़े लोगों की मनोभाव को भी समझते है। एक कवि की संवेदना और कल्पना से वे लोगों को इस तरह जोडते है – स्वाभिमान कविता में कहा है –
 सत्य से सत्याग्रह तक
अपनी यात्रा में
हमें मिलते हैं
बिन पैर चलते प्रवासियों के पदचिन्ह्र।
अपने काम को लेकर बिना किसी संशय के कवि मोदीकहते है—
प्रार्थना बस इतनी युद्धभूमि में कांपे नहीं ये शरीर
सफल हुआको ईष्र्याका पात्र
असफल हुआ को दया का पात्र।।।
इस संग्रह में गुजराती से 67 कविताओं का हिन्दी में अनुवाद किया गया है। एक कवि होन के नाते ज्यादातर कविताओं की मौलिकता के साथ साथ उसमें गति और लय में भी एक सौंदर्य है।, मगर कुछ कविताओं में कुछ शब्दों का अनायास ज्यादा दिखना खलता है। इन तमाम खासियत और कमी के बावजूद किताब पठनीय है. खासकर जब मोदी इस समय हमारे बीच प्रधानमंत्री के रूप में सामने हैं और रोजाना देश के साथ संवाद कर रहे हैं तो इन कविताओं की प्रांसगिकता और भी ज्यादा बढ जाती है। अपने मन की बेबाक अभिव्यक्ति ही इन कविताओं की जान है।। जिसको समझे बगैर मोदी के काम काज और कार्यप्रणाली को नहीं समझा जा सकता है।      


पुस्तक आंख ये धन्य है  (काव्य संग्रह)
कवि नरेन्द्र मोदी
अनुवाद डा. अंजना संधीर
पृष्ठ 104मूल्य- 250 रुपये
प्रकाशक- विकल्प प्रकाशक
2226/ बी, प्रथम तल ,गली नंबर 33
पहला पुश्ता, सोनिया बिहार
दिल्ली-110094