रविवार, 7 दिसंबर 2014

....... .हाजिर हो / अनामी शरण बबल -1







  07 दिसंबर-2014



कोई नया मानक तय कीजिए मोदी साहब

 

केवल ऐलाने जंग करने से मैदान फतह करना नामुमकिन है। हमारे पीएम साहब ने छह माह में घोषणाओं की झडी लगा दी। काम में मुस्तैदी की कवायद इतनी तेज और सोशल मीडिया के बूते इतनी भारी पब्लिसिटी करा दी कि अमरीरी राष्ट्रपति बराक ओबामा से लेकर टाईम्स मैग्जीन तक हमारे प्रधानमंत्री के मुरीद होकर हर जगह तारीफों के पुल बांध रहे है। काम को अंजाम देने से पहले केवल रूपरेखा से ही सारा इंडिया अभी तक अभिभूत है। अपनी दंबगई वाली कडक छवि को इस तरह ब्रांडेड कि हर कोई मोदी  से खौफजदा भी है । मगर पीएम साहब के काम पर इनके ही संगी साथी गोबर लगाने से बाज नहीं आ रहे। साध्वी निरंजना की करतूत ने तो तमाम रामललाओं की नीयत जुबान और आचरण पर ही सवाल खडा कर दिए है। पिछले एक सप्ताह से संसद में शोर बरपा है और औपचारिक तौर पर  पीएम भी बंदी का तमाशा देख रहे है। यही एक समय है जब तमाम बंधन, लाचारियों  और लाग लपेट को तिलांजलि देकर पीएम को एक नया मानक बनाना होगा। अन्यथा सामूहिक टीम के काम काज को एकाध की गलती से भी टीम लीडर की अगुवाई पर सवाल खडा होने लगता है। विपक्ष श्रेय ले या न ले पर पीएम को एक मानक दिखाना होगा कि वे औरो से कहीं ज्यादा साहसी और लीक से अलग चलने वाले है ।

 

साध्वी को जाने से कोई रोक नहीं सकता

 

यह लगभग तय है कि संसद में हंगामे की समाप्ति के बाद साध्वी निरंजना ज्योति को मंत्रीमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाएगा। संसद में भले ही पार्टी अभीतक बचाव में खड़ी है, मगर अंदरखाते साध्वी का हरस्तर पर इतना लानत मलानत हो रहा है कि वे शायद शुद से आहत होंगी। बस इंतजार किया जा रहा है कि किसी तरह संसद का हंगामा शांत हो और एक झटके से साध्वी को उनके आश्रम में वापस भेज दिया जाए। पीएम साहब तो ज्योति को कभी भी निकाल बाहर कर सकते है  मगर विपक्ष को इसका श्रेय न चला जाए बस इसी लाचारी से वे रुके हुए है । विपक्ष भी मोदी की खामोशी के अर्थ को जान रही है। अब देखना यही है कि मोदी अंतत कब तक अपनी लानत मलानत करवाते रह पाते है ।  एक ईमानदार मुख्य सर्तकता अधिकारी को एक ही झटके में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्द्धन द्वारा एम्स से हटाना काफी भारी पडा कि मंत्रीमंडल विस्तार में डा. हर्षवर्द्धन को मंत्रालय से ही झटक दिया गया, मगर रामजादों की दुहाई    देने वाली ज्योति को  मामला शांत होते ही या कभी भी बेआबरू करके भूतपूर्व मंत्री में ही संतोष करना पडेगा।

 

 

देशी छवि बेहतर करिए मोदी जी

 

प्रधानमंत्री जी आपने केवल छह माह में वो कर दिखाया जो दूसरे पीएम 10-10 साल में भी नहीं कर सके। एक मौन पीएम को बर्दाश्त करता यह देश सरकार के गूंगेपन से लाचार हो गया था, मगर सचतो यह है कि केवल स्वीट सिक्सर मंथ में ही अपनी या देश की जनता इन वादो घोषणाओं और बहुरंगी सपनों के मायाजाल से बाहर हकीकत में रहना चाहता है। केवल सीसीटीवी लगाकर सोते हुए मंत्रियों को पकड़ कर या मंत्री से ज्यादा नौकरशाहों को ताकत देकर  या 100 दिन के कामकाज के मूल्यांकन के आधार पर अपने मंत्रियों को हिदायत देने से पब्लिक फूलने वाली नहीं है। कोई मंत्री खेल यूनीवर्सिटी को ही सात बहनों वाले इलाके में ले जाना चाह रहा है तो कोई मंत्री दिल्ली के स्टेडियम को ही अपने मंत्रालय को लाने की कवायद आरंभ कर दी है। कोई नेता बदजुबान होकर भी मंत्री बन रहा है तो कोई बदजुबानी के चलते पद गंवाने वाला है । अपने सारथियों को ठीक किए बगैर देश को सुधारना नामुमकिन है । पहले अपनों को सुधार पाठ से लैस करे तभी देश भर में जादू चलेगा अन्यथा ये पब्लिक है सब जानती है। जय जयकार करने वाली यही पब्लिक पलक झपकते ही मुर्दाबाद भी करने लगती है।

 

राहुल बाबा जिंदाबाद

 

साध्वी निरंजना ज्योति के नाम पर भले ही भाजपा अभी शर्मसार हो रही हो , मगर कांग्रेस में उत्सव का माहौल है। इसी बहाने लंबे समय से गुमनाम से रह रहे अपन राहुल बाबा को सक्रिय होने का सुनहरा मौका जो मिल गया। एकदम इस मुद्दे को पूरी तरह .भुनाने के में तत्पर बाबा भी कभी काली पट्टी बांधकर तो कभी महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने धरना देकर मीडिया की खूब सुर्खियां बटोरी। संसद में भी वे इतने एक्टिव रहे और दिखे कि कांग्रेस के ज्यादातर कांग्रेसी सांसद भी भौचक्क होकर खासे उत्साहित हो गए। यानी कांग्रेसी भले ही हंगामा कर रहे हो ,मगर मन ही मन में साध्वी के प्रति आभारी से है कि चलो अपनी बुद्धि विवेक से ज्योति साध्वी ने बैठे ठाले एक मौका देकर कांग्रेस को रिचार्ज कर दी ।

 

पहले क्या देवालय  या शौचालय  ?  

 

प्रधानमंत्री चाहे जितने भी सख्त और समयानुसार काम करने वाले रहे हो, मगर इनको भी एक नहीं एक हजार समस्याओं से रोजाना साबका पड रहा है। मजे की बात है कि ज्यादातर समस्याएं अपने ही लोग खडे कर रहे है या यूं कहे कि उठा रहे है। अभी घरेलू समस्याओं को पीएम साहब पूरी तरह बूझ भी नहीं पाए है कि राम भक्तों नें मंदिर निर्माण का फिर से बिगूल फूंकना चालू कर दिया है।. शौचालय अभियान अभी परवान भी नहीं चढा है कि राम भक्तों ने मोदी के सारे काम काज पर गोबर डाल रहे है। मगर देखना यही होगा कि सफाई क्रांति और  शौचालय क्रांति जैसे पीएम क्या अपने सार्थक काम को व्यर्थ होते देखकर भी मौन रहेंगे या राम ललाओं से निपटने का कोई रामनुमा प्रयास करेंग। बहरहाल यह मोदी के लिए एक अल्टीमेटम तो है ही  

 

लालू मुलायम परिणय बंधन

 

लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव भारतीय राजनीति में केवल दो यादव नेता भर नहीं बल्कि दो पावर स्टेशन की तरह रहे है। दोनों में ज्यादा पावरफूल कौन या किसकी कमीज ज्यादा सफेद की लडाई सदैव होती रही। यही कारण था कि दोनों में एक दूसरे को नीचा दिखाने के किसी भी मौके को कोई नहीं चूका।. लालू के स्पोर्ट से हो सकता था कि मुलायम देश के भूतपूर्व पीएम की तरह भी आज होते। मगर भला हो कि तमाम कड़वाहटों और खट्टी मीठी यादों को भूलाकर दोनों यादव पावर स्टेशन अब हमेशा हमेशा के लिए एक होने जा रहे है। जितनी उदारता के साथ लालू ने अपनी बेटी के रिश्ते की बात नेताजी से की होगी, तो दो कदम और आगे बढ़कर नेताजी ने भी इसे स्वीकारते हुए लालू के प्रति अपने प्रेम और सौहार्द  का एक आदर्श पेश किया।. हालांकि कहने को तो लालू राबडी की सातवी या यों कहें कि आखिरी बेटी राजलक्ष्मी की शादी तेजप्रकाश से हो रही है मगर सही मायने में यह लालू मुलायम परिणय बंधन है। चारा कांड के चलते लालू के तमाम सपनों पर ग्रहण लग गया है, लिहाजा लालू अब नेताजी के लिए बेहतर कम्यूनिकेटर हो सकते है, और ऊंट भले ही पहाड़ के नीचे आ गया हो मगर नेताजी के लिए जान देने में लालू किसी से कम कभी साबित नहीं होगे। लालू का दंभ भले ही देर से टूटा नहीं तो नेताजी का मुख्यमंत्री बेटा ही कभी इनका अपना दामाद हो सकता था। बीत गयी सो बात गयी की कहावत को चरितार्थ करते हुए लालू मुलायम का यह मंगल मिलन को ही प्रेम की एक मिठास भरी पारी की तरह देखा जाना चाहिए। .

 

अरूण जेटली कर रहे है मनाने की मुहिम  

 

क्रिकेट नेता के रूप में भी मशहूर देश के वित मंत्री देश की अर्थव्यवस्था के साथ साथ बीसीसीआई की सेहत पर भी खासे चिंचित है। बीसीसीआई के अध्यक्ष पद से अदालती आदेश पर हटाए गए श्रीनिवासन की किस्मत का फैसला कोर्ट चाहे जो करे मगर उनको मनाने और पर्दे के पीछे से उनकी हैसियत को बरकरार ऱखने की अघोषित शर्ते पर राजीखुशी से मान मनौव्वल का खेल चालू है.। मैदानी क्रिकेट से बाहर टेबुल क्रिकेट के इस पावर गेम में निवर्तमान श्रीनि को राजी खुशी ससम्मान बीसीसीआई से अलग होने या कराने की स्क्रिप्ट को फाइनल किया जा रहा है। इस पटकथा के लेखक वित मंत्री साहब क्रिकेट की सेहत को बचाने के लिए आतुर है। अगर वे वित मंत्री नहीं होते तो उनके लिए इससे सुनहरा मौका नहीं होता,मगर एनसीपी सुप्रीमो  के बीमार होने से एक और उम्मीदवारी कम हो गया है। बीजेपी सुप्रीमो अमित शाह के पाल भी क्रिकेट कमान थामने का मौका था मगप पार्टी के सामने यह पद बौना है। कांग्रेसी होने के बाद भी सबों के आंखों के राज दुलारे भूतपूर्व पत्रकार राजीव शुक्ला भी अलग पार्टी के हो मगर वित्त मंत्री के निर्देशों पर वे खासे एक्टिव भी है । देखना यही है कि बीसीसीआई के राजनीतिकरण  का अगला हीरो कौन बनता है।  

 

.........और अंत में मुंगेरीलाल बनाम अरविंद केजरीवाल के हसीन सपने

 

बिल्ली के भाग्य से झीका टूटा की तर्ज पर दिल्ली की सत्ता पर 49 दिनों के लिए काबिज होने  वाले श्रीमान अरविंद केजरीवाल एक अजीब नेता है। इवकी कथनी और करनी में अंतर ही अंतर है। दिल्ली के लिए कुछ किया हो न किया हो मगर ड्रामा इतना कर दिया और कर रहे है कि एक झूठ को सौ बार कहकर सच का शक्ल करके  ही मानेंगे। दिल्ली चुनाव में इस बार चुनावी फसल अपने बयानों को ही प्रचारित कर रहे है।  जो कहा सो किया के नारे को बुलंद करते हुए आम पार्टी को खास ए आम बना दिया। लोकसभा चुनाव में आम को दरकिनार करके खासोआम को हवाईजहाज से बुला बुलाकर टिकट दिया.। मगर अब  लंच के नाम पर पैसा बटोरते हुए केजरीवाल तमाम नेतों को मानो मुंह चिढा रहे हो कि मेरे साथ तो लंच करने के लिए लाखों खर्चने वाले भी है। कांग्रेस सुप्रीमों सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा के हवाई टिकट के अपग्रेडेशन पर चीखने वाले केजरीवाल जब बिजनेस क्लास में यात्रा करते हुए पाए गए तो बेचारे एके की सफाई पर मन अभिभूत सा हो गया।  उनके मन में एक -एक भारतीयों को इसी क्लास में हवाई सफर कराने का सपना है। वाह एके भईया अपन देश धन्य है कि इसके नेता लोग दाल रोटी नहीं अब हवाई यात्रा कराने के हवाई सपने देख और बेचने लगे है जी यह है मुंगेरीलाल केजरावाल का यह सपना कि जब होगा मेरे बाप के पास हवाई

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