20 दिसम्बर 2014
सपनों
के सौदागर के सपने
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर
मोदी एक कवि है। हाल ही में इनका एक काव्य संग्रह आंख ये धन्य है का हिन्दी
में प्रकाशन हुआ है। हालांकि गुजराती में आंख आ धन्य छे का
प्रकाशन करीब सात साल पहले 2007 में हो चुका था। काव्य संग्रह के साथ ही इनका एक
कथा संग्रह प्रेमतीर्थ का भी प्रकाशन 2007
मे हुआ था। मोदी को जानने वाले बहुत ही कम लोग शायद यह जानते होंगे कि कि वे एक
कवि और कथाकार यानी एक साहित्यकार भी है। हालांकि एक कथाकार और कवि के रुप में यह
उनकी पहचान कोई आज की नयी नहीं है। मगर राजनीतिक
गहमागहमी और नरम गरम सामाजिक तापमान के चलते मोदी की एक साहित्यकार की पहचान उभर
कर सामने नहीं आ सकी। हालांकि इस दौरान वे राजनीति में शिखर पर चढ़ जरूर गए। तमाम
व्यस्तताओं के बावजूद हमेशा कुछ न कुछ लिखना इनकी आदत ही है कि प्रधानमंत्री के
रचनात्मक खजाने में कहानी और कविताओं की दो दो पांडुलिपियां अभी तक और अप्रकाशित
पडी है। रोजाना
की भीड और मीडिया की भीड के बीच अपने भाषणकला केआश्चर्य कोइस तरह व्यक्त किया है
रोज
रोज ये सभा, लोगों की भीड़,
घेरता तस्वीरकारों का समूह,
आंखों को चौंधियाता तेज प्रकाश, आवाज को
एन्लार्ज करता ये माइक,
इन
सबकी आदत नहीं पड़ी है, ये प्रभू की माया है।
अभी
तो मुझे आश्चर्य होता है
कि कहां से फूटते है ये शब्दों का झरना
कभी अन्याय के सामने मेरी आवाज उंची हो जाती
है
तो
कभी शब्दों की शांत नदी शांति से बहती है।
कभी बहता है शब्दों का बसंती वैभव.शब्द
अपने
आप अर्थो के चोले पहन लेते है,
शब्दों का काफिला चलता रहता है और मैं देखता
रहता हूं केवल उसकी गति।
इतने
सारे शब्दों के बीच
,
मैं बचाता हूं अपना एकांत,
तथा
मौन के गर्भ में प्रवेश कर लेता हूं
आनंद किसी सनातन मौसम का।
मौन मोहना से भय
देश के सबसे ईमानदार के रूप में विख्यात अर्थशास्त्री और भूतपूर्व प्रधानमंत्री से अब सीबीआई पूछताछ करेगी। कोर्ट के आदेश पर यह सब हो रहा है। जब खुद कोयला मंत्रालय का एक्स्ट्रा भार संभाला तो अपनी सारी स्वच्छ छवि को कोयले में काला कर लिया। खरबों के वारे न्यारे किए या न किए यह तो खुला तोता खोज लेगा, पर कोयले को अपने बाप की जागीर मानकर जिसको चाहा औने पौने भाव में बॉट दिया। मामला खुला तो इनके सिपहसालारों ने तो बचाया मगर अब सरकार क्या बदली कि कोर्टके सामने तो मौन तोडना ही पड़ेगा। चाहे कांग्रेसी लाख शोर मचाए। कांग्रेसी शोर इसलिए नहीं मचा रहे कि भूत से कोई लगाव है। अब तो यह डर सता रहा है कि बेचाका सीधा साधा अगर मौंन तोडा तो पता नहीं क्या होगा। फिर दांव पेंच में कमजोर दोस्त के बारे में कहा भी जाता है कि वो दुश्मन से ज्यादा डेंजर होता है।
दिल्ली
हरियाणा सबै बिहार
देश
में लोग बिहार को नाहक बदनाम करते है। समाज के सबसे शरीफ समाज को लोग असामाजिक लोग
कहते है। मगर इन लोगों के चलते ही देश भर में धंधा और पुलिस कीकमाई हो रही है।
बिहार के शरीफों ने कानून और पुलिस के ठेंगा दिखाकर शहर के एक एटीएम को ही उठाले
भागे, तो इसकी बड़ी निंदा हिई। लोगोंने जंगल राजसेतुलनाकर लालू नीतिश सबको एकही
छैली के चट्टे बट्टे मान लिया। मगर एक माह के भीतर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में
दो और हरियाणा के शरीफजादों नें भी एटीएम मशीन को ही उठा ले भागे। दिल्ली नरेला के
एटीएम में तो डेढ़ करोड रुपये थे। हमेशा सदैव रहने वाली पुलिस इन हरामजादों को
नहीं खोज पा रही है, मगर क्या मजाल कि लोग और पतरकार लोग भी इसको तूल नहीं दिए। मीडिया
का यहपक्षपात्ततो बिहार के साथ न्याय नहीं लगता।
क्या
आप ललित नारायण मिश्र को जानते है ?
सत्यमेव
जयते। जी हा जयते। देश के ज्यादातर लोग ललित नारायण मिश्र को नहीं जानते। फिर
क्यों जाने । आज से 39 साल पहले ये रेलमंत्री थे। जिनको बिहार समस्तीपुर के रेलवे
स्टेशन पर इनकी हत्या कर दी गयी थी। दिवगंत मिश्र के छोटे भाई जगन्नाथ मिश्र बिहार
के भूतपूर्व मुख्यमंत्री भी रह चुके है, और बहुत लोग जगन्नाथजी के चलते ही ललित नारायण को याद करते थे।
मामला यह है कि 39साल के बाद इनके चार हत्यारों
को उम्रकैद दे दी गयी। भला हो कि इसी बहाने पाताल लोक तक भुला दिए गए ललितजी एकाएक
याद आए।
अपन
इंडिया भी ग्रेट है कि इतने वीआईपी को न्याय पाने में जब चार दशक लग जाता है। बेचारी
जनता के लिए तो कोई टाईम ही नहीं है कि कब मिलेगा सत्यमेव जयते ।
मुखी
को ले डूबे केजरीवाल
आप
पार्टी के मुखिया रोजाना कोई न कोई मुद्दा या आरोप उछालते ही रहते है। भले ही लोग उसको हल्के में लें, मगर धाव गहरा भी
कर जाता है। दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 के
लिए बतौर मुख्यमंत्री के रुप में केजरीवाल ने सवाल उछाला कौन होगा दिल्ली का अगला
मुख्यमंत्री मुखी या केजरीवाल ? लाखो पोस्टर दिल्ली में चंस्पा है। अब आप
के इस एड से मुखी परेशान है। जोड तोड से अगर कमल की सरकार बनती तो मुखी का नाम
लगभग तय था, मगर अब चुनाव होना है। जिसमें मुखी की संभावना लगभग ना के समान ही है।
भावी सीएम रेसमें मान रहे कई नेता मोदी और शाह की चाकरी में लगे है। कुछ नेता तो सीधे
सीएम का सपना देख रहे है। देखना यह काफी मजेदार होने वाला है कि सीएम के नाम से
पहले आप के झाडू से फिर हैंग ओवर गेम ना हो जाए।
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