19 दिसम्बर 2014
गुजरात
में कब आएंगे अच्छे दिन मोदी जी ?
बनारस
के लिए प्रधानमंत्री की दरियादिली को देखकर सुनकर गुजरात और खासकर बडौदा के लोग
अपने आपको खासे ठगे हुए से महसूस रहे है।
ज्यादातर लोगों का मानना है कि एक भावी पीएम के रुप में लोगों रिकॉर्डतोड मतों से नवाजा था,
मगर भावनाओं से ज्यादा राजनीति को तरजीह देकर वे बनारस के हो गए। बनारस के लिए
हजारो करोड की दर्जनों परियोजनाओं को चालू कराने और पूरे शहर को आधुनिक बनाने की
कवायद पर भी बडौदा वासियों का दिल कसक रहा है। यहां के लोगों को लग रहा है कि कि
यह सब उनके लिए भी हो सकता था। उधर शेष गुजरातियों ने पीएम को मतलबी करार दिया।
ज्यादातर गुजरातियों का दर्द है कि पहली बार गुजरात पीएम देने वाला स्टेट बनता,
मगर जीवन भर यहां रहने वाले ने इस राज्य को उस गरिमा और गौरव से वंचित करदिया।
कपास के मजदूर बेमौत मर रहे है। पानी संकट बना हुआ है। लोगों को अपने राज्य में
अच्छे दिन की आस लगी गै।
कितने
(कितनी) और कब तक साध्वी निरंजनाएं ?
रामजादो
और (ह) रामजादों में अंतर बयान करके साध्वी ज्योति निरंजना भले ही फिलहाल बच गयी
हों, मगर लगता है कि वे अब अल्प संख्यक से बहुसंख्यक होती जा रही है। भले ही मोदी
कड़क दंबग और सख्त हों, मगर अपनों के सामने ही उनकी एक नहीं चल रही है। कोई धर्म
की दुकान खोलकर 2021 तक हिन्दुस्तान को केवल हिन्दू वाला देश बनाने का दावा कर रहा
है, तो कोई धर्म की दुकान में घऱ वापसी कोचलता रहेगा को रोक नहीं रहे है। कोई
ईसाईयों को फिर हिन्दू बनाने पर उतावला है। तो कोई अयोध्या मामले को हवा दे रे है।
यानी विदेश में चीन जापान और अमरीका में जाकर सबको मुग्ध भलेही कर लिए हो, मगर
अपनो के सामने लाचार से दिख रहे है। मोदी जी आपसे पहले वाले पीएमसाहब को मौनमोहन
ही कहा जाता था। आप तो वाचाल रहे है, मगर अब बारी आपकी है इन सगे संबंधियों के
सौतेलापन पर लगाम लगाने की, अन्यथा आपते 14 घंटे के कामकाज पर पानी फिरते देर नहीं
लगेगी। क्या ख्याल है ?
योग
दिवस के पीछे रामदेव ?
नरेन्द्र
मोदी को मुख्यमंत्रीसेप्रधानमंत्री बनाने में हरिद्वारवाले योग गुरू की भी बड़ी
भऊमिकारही है। पर्दे के पीछेरहते हे पेम के ले इन्होने बहुत कुछकिया। दोनों अपस
में कितने करीबी हैं कि चुनाव के दौरान अपनी पत्नी ( काश) को भीडमीडिया और
दुश्मनों से बचाने के लिए अंत में उनको पंतजलि में ही गुप्त तौर पर रखना पड़ा।
अपने मिशन सत्ता सिंहासन पाने के बाद एक
ही झतके मैं सारा कर्ज वसूल कर पीएम ने वो कारनामा कर दिया कि योग को ग्लोबल
ख्याति दिलाने के नाम पर 21 जून को योग अंतरराष्ट्रीय दिवस घोषित करवा ही दिया। सचमुच अहलान उतारने
वाला बंदा मोदी जैसा हो तो सामने वाला भी जान न्यौछावर करके ही दम लेगा। .यही तो
गुजरात के इस 56 इंचीछाती की खासियत है।
बिजली
कंपनी का चयन सुख
केंद्रीय
उर्जा मंत्री भी मजाक करते है। देश
के ग्रामीण इलाकों में तो आज भी बिजली का आना एक खबर से कम नहीं है। और दिल्ली से
बाहर निकलते ही एनसीआर इलाके में ही दो घंटे से लेकर आठ घंटे तक तो सामान्य तौर पर
बिजली गुल रहती है। बिदली के नदारद रहने का यह सिलसिला आज से नहीं बल्कि दशकों
जारी है, और लोग इस कदर इसके अभ्यस्त हैं
कि इस पावर कट को नियति या अपने जीवन का हिस्सा मान चुके हैं। दिल्ली के ही गरीब
और पुर्नवास कॉलोनियों ,ग्रामीण इलाकों में आज भी रोजाना अमूमन दो चार घंटे तो
बिजली गुल का गुलगुला गेम चलता ही रहता है। दिल्ली में तीन पावक कंपनियों के अलग लग
क्षेत्र है।, मगर इस हकीकत को दरकिनार कर पावर मंत्री लोगों को अपनी पसंद का पावर
कंपनी चुनने का सपना दिखा रहेहै। पावर मंत्रीजी अगर आप परिवहन मंत्री के रूप
यात्रा के साधन चुनने को कहते तो बात कुछ हज्म हो जाती , मगर इस तरह के बयान देकर
खुद को पप्पू साबित करने की बेताबी न दिखाएं , अन्यथा मोदी मंत्रीमंडल में रहना
आसान नहीं होगा।
फडनवीस
के निर्देश का चरितार्थ
मुख्यमंत्री
भले ही देवेन्द्र फडनवीस महाराष्ट्र के हों,मगर अलग विदर्भ राज्य की चिंता अभी से सताने लगी है। महाराष्ट्र विभाजन के बाद विदर्भ राज्य का
स्वायत आकार लेना संभावित है। हो सकता है कि 2019 विधानसभा चुनाव से पहले कुछ ऐसा
हो भी जाए। नागपुर के प्रभावशाली दबंग और जनता के बीच खासे लोकप्रिय फडनवीस ने
किसानों के आत्महत्या के लिए कुख्यात विदर्भ के किसानों के जख्म पर मरहम लगाना
शुरू कर दिया है। बैंक के तमाम बडे अधिकारियों को किसानों से फिलहाल वसूली पर जाने
से रोक लगा दी है। निसंदेह इससे एक बेहतर संदेश तो जाएगा, मगर महाजनी चंगूल में
फंसे किसानों के दर्द और मौत को रोकना सरल नहीं है। हालात बदले या न बदले मगर,
विदर्ब पर कब्जाकरने की कवायद की फडनवीस प्लान के मोहरे सक्रिय हो गए है।
कैलाश
सत्यार्थी के नाम पर कैलाश विजयवर्गीय को शुभकामनाएं
यह
एक अजीब संयोग है कि जीवन भर एक दूसरे के खिलाफ लडने वाले पाकिस्तान और भारत के ही
दो लोग इस बार शांति नोबल पुरस्कार के लिए नवाज दिए गए। सबसे कम उम्र की मलाला युसूफजई
और दशकों से बचपन बचाओं आंदोलन चला रहे कैलाश सत्यार्थी इस बार शांति के प्रतीक
बने। दोनों को यह सम्मान संयुक्त तौर पर मिला। राजनीति की सारी कडवाहटों से अलग
दोनों ने एक बाप बेटी की तरह इस सम्मान को स्वीकारा और मिलजुल कर काम करने की
इच्छा जाहिर की। हालांकि आंतकवादियों के निशाने पर हमेशा रही मलाला के चयन पर किसी
को हैरानी नहीं हुई। मगर ज्यादातर भारतीयों को कैलाश सत्यार्थी के चयन के बाद ही
पता चला कि ये कौन है। मध्यप्रदेश के भाजपाईयों ने तो हद कर दी कि कैलाश सत्यार्थी
को ही कैलाश विजयवर्गीय समझकर विधायक और राज्यमंत्री के घर बधाईयों का तांता लग
गया। तब कहीं जाकर कैलाश विजयवर्गीय को यह सफाई देनी पडी कि मैं नहीं यह सम्मान
सत्यार्थी को दिया गया है।
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