..........हाजिर हो / अनामी शरण बबल -2
13 दिसंबर-2014
लालूजी का मजाक
अपन बिहार के भूत मुख्यमंत्री और भूत रेलमंत्री लालू
प्रसाद यादव उर्फ लालू भईया भी बड़े मजाकिया है। इनकी वाणी से हास्य रस का प्रवाह
हर समय होते रहता है। भले ही चारा से बेचारा होकर पोलिटिकल लीला मैदान के लिए
आवारा हो गए हो, मगर हास्यरस प्रवाहित करने से बाज नहीं आते। अंधेर राज के बादशाह
रहने और चारा गेम के कोर्ट में जाने के बावबाद पूरे राज्य को बपौती मानकर अंगूठाटेक
पत्नी को सत्ता की राबड़ी चाटने का मौका दे ही दिया। और लोकसभा चुनाव में तो पत्नी
और बेटी तक के मात खाने के बाद भी लालू
भईया का हास्यरस उफान पर ही है। खासकर अब तो नेताजी को समधि बना लेने के बाद तो इनको
तिनके का सहारा भी मिल गया है। मोदी सरकार के गिरने की भविष्यवाणी करने वाले ज्योतिषी
लालू भईया जब कभी मौका लगे तो अपन अतीत पर भी नजर डाल ही लिया करें ताकि अपनी
राजनीतिक ईमानदारी और कर्मठता का बोध होता रहे। जिससे बिहार आज तक त्रस्त है।
ममता
दीदी के साथी
पश्चिम बंगाल से वामपंथ को बेआबरू करके सत्ता पर
काबिज हुई तुनक मिजाजी के साथ साथ अपनी
सादगी के लिए मशहूर मुख्यमंत्री को आमतौर पर सौ खून माफ की तरह सबलोग बर्दाश्त कर लेते है।। सभी दलों में सबों के
साथ रही हैं पर अपनी तुनकमिजाजी और जब तब हमलावर हो जाने की हल्ला बोल शैली से वे
लगभग अछूत सी मानी जाती रही है। इनसे बात करना भी आत्महत्या करने के समान होता है
कि अगर बात नहीं बनी तो कमरे की गोपनी वार्ता
को तड़का लगाकर फौरन सार्वजनिक करने में भी दीदी को देर नहीं लगती है।
विपक्ष के कैरेक्टर को ही सत्ता में आकर
सिंहनाद कर रही है। मगर इनके संगी साथी हर तरह के है। और तो और इनके साथी कभी रेप करने और कराने तो
कभी हत्या कराने तक की धमकी देने में लिहाज नहीं बरतते। और दीदी तो पीएम पर
बौखलाकर देख लेने तक की धमकी उछालती है। लगता कवि बाबा नागार्जुन की इंदिरा पर
लिखी एक कविका दीदी को सुनाना होगा। ममता
जी ममता जी क्या हुआ आपको सत्ता की मस्ती में भूल गयी (बाप को ) सबको। सादगी की
मूरत के पीछे स्वार्थ हिंसा और दादागिरी को उतार फेंकने में पब्लिकको देर नहीं
लगेगी ममता जी। यह जरूर याद रखेंगी। प्रजातंत्र में कोई कानून से उपर नहीं होता।
मांझी शैली जरूरी है
बिना किसी माई बाप के बिहार के सीएम बनते ही जीतन
मांझी पूरे देश में छा गए। रोजाना अलूल जलूल फिजूल भाषण और टिप्पणियों से बिहार का
जिक्र हो या न हो पर मांझी की चर्चा होने लगी। काम और पिछड़ेपन से ज्यादा रोचक
मांझी बन गए। विदेश में जाकर या योजना आयोग की बैठक हो या पूंजीपतियों को बिहार का
न्यौता पार्टी देकर मांझी साहब अपनी शैली से कभी हटे नहीं। प्रधानमंत्री तक बनने
का सपना देखने वाले मांझी आज नीतिश कुमार के लिए सिरदर्दबन गएहै। नीतिश कुमार ने
तो सोचा था कि खडाऊं साबित होने वाले मांझी हनुमान साबित होंगे। मगर हनुमान तो इस
बार राम को ही परास्त करने में जुट गए। मगर वाचालता के लिए मशहूर मांझी साहब ने
इलस खबरची से ठठाकर बताया कि मेरे आगे पीछे तो कोई माई बाप है नहीं न अपनी कोई पहचान थी, इसीलिए मैने गंवई शैली को
औजार बनाया। ताकि सत्ता रहे ना रहे पर जब कभी चर्चा हो तो लोग मांझी शैली को न भूला
सके। और अंत में ताल ठोक कर दावा किया कि मेरा
छह माह दूसरों को सालों पर भारी पड रहा है।
कितने मुलायम दांत ?
हाथी के दांत को तो लोग अभी तक तक तो प्रतीक बिम्ब
मुहावरे और व्यंग्य में प्रयोग करते थे, मगर तमाम उदाहरणों पर मुलायम नेताजी के
दांत भारी पड़ रहे है। मामला चाहे सैफई में हीरो हिरोईनों के डांस कराने का हो या
मुजफ्फरनगर दंगा पीड़ितों की मौत और बलात्कार का हो या अखिलेश सरकार की निंदा
आलोचना का, मामला हो हालात के बेकाबू होने
से पहले ही मुलायम अपने बेटे की सरकार पर बरस पड़ते। जमकर निंदा प्रहार करते और एक
टाईम लाईन देकर संभल जाने की धमकी भी उछाल देते। बाप की बौखलाहट के सामने दूसरी पार्टी
के नेता भी शरमा जाते कि जब बाप ही बरस रहा है तो हम क्या करे। मगर मुलायम जी भी
महान है। जब मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने करोड़ा रुपए फूंक कर अपना बर्थ डे
मनाया तो नेताजी आग पानी लेकर सरकारी पैसे के दुरूपयोग का नारा बुलंद किया था । और
जब बेटे के रूप में सता घर की है तो अपने 75 वें जन्मदिन पर रामपुर में आजम की
मेजबानी में जमकर सरकारी रुपयों का होलिका दहन को नेताजी खामोशी से देखते रहे। और
जब इसकी चारो तरफ निंदा होने लगी तो नेताजी एक बार फिर बेटे की सरकार पर आग बबूला
हो गए। हाथी के तो केवल दो ही दांत दिखाने के होते है, पर पूरा देश अभी तक यह तय
नहीं कर पा रहा है कि नेताजी के मुंह
कितने मुलायम दांत है ?
..
जय हो राहुल बाबा के नाम पर
देश के भावी प्रधानमंत्री के रुप में हमेशा से
देखे जाने वाले कांग्रेसी युवराज भी बड़े अजीब है। कहने को तो अपनों के साथ रहते
है, मगर सांसद निधि में घपला राहुल बाबा के साथ हो यह सुनना बडा अजीब लगता है, मगर
एक बनी हुई सड़क का ही दोबारा टेंडर होना और काम चालू होने पर बाबा की खामोशी पर संदेह उठता है। क्या हमारे
बाबा इतने बाबा है कि अपने आस पास के लोगों को भी नहीं पहचान पा रहे है । तब
युवराज को तो प्यार की बजाय पब्लिक भी कहीं बाबा न कहने लग जाए ।
राज्यपाल
होकर भी नहीं बदलें
रंगा सियार की कहानी सब जानते हैं कि शेर का लिबास पहनकर शेर होने का
भ्रम तो पैदा कर दिया, मगर शाम होते ही अपने स्वजनों के विलाप को सुनकर शेर बना
सियार भी पलक झपकते ही सियार की तरह हूंआ हूंआ करने लगा और शेर का सारा नाटक
समाप्त होते ही रंगा सियार मार डाला गया। यूपी के राजभवन में बैठकर भी सबके लिए एक
समान होने की बजाय राजपा?ल महोदय अंदर से हाफ
पैंट ही निकले। एक जनसभा में मंदिर की वकालत करते हुए महोदय भूल गए कि वे कहां पर आसीन
है ? यूपी के राजपाल महोदय ने सादगी से अपने मन की
बात तो कह दी मगर पूरे सूबे का तापमान गरमा दिया। लगता है कि बड़े पदों पर लोगों को बैठाने से पहले यह बताने की जरूरत है
कि वे किन मुद्दो पर अपने मुखार को बंद रखे।
अवैध संतान सुख का विलाप
कमाउं पूत सबको प्यारा लगता है। हर तरह का संरक्षण देकर अपनी तिजोरी
भरने वाले राजनैतिक मां बार अपने अवैध पूत यादव सिंह से भीतर ही भीतर सहमे हुए है।
तमाम नियम कानून तोड़कर एक डिप्लोमाधारी को
नोएडा के सभी ऑथिरिटी का चीफ इंजीनियर तक बनवा देने वाले इस पूत के बूते जमकर मलाई
काटी, खाई और अपनी अवैध संपति में जमकर इजाफा किया। अपने अवैध मां बाप के आशीष से
करप्शन के इस इंजीनियर ने नोएडा की जमीन को अपनी बपौती मानकर जिसको चाहा जब चाहा
कौडियों के दाम सरकारी पन्नों पर दिया ,और अपने तमाम अवैध रिश्तेदारों की खातिरदारी
की। खरबों की कमाई करने वाला यह पूत फिलहाल इंकम टैक्स के छापो से अपनी काली कमाई से
बेपर्दा हो रहा है। हालांकि चालाक इंजीनियर तो फिलहाल पकड से बाहर है। मगर इसकी
डायरियों से बड़े राज खुलने की आस है। मगर सवाल यहां पर सबसे गरम है कि सरकारी पकड
में आने से पहले ही यह अवैध पूत कहीं अपने अवैध सगे संबंधियों के हाथों परलोक न
सिधार जाए। इसकी संभावना ही ज्यादा है, क्योंकि पकड मे आने पर सफेदपोश कई मां बाप
जो कहीं दागदार न हो जाए। बेचारा यादव सिंह तेरा क्या होगा जब एक साथ इतने लोग
तेरे जान के प्यासे हो जाए ? मैं तो केवल तेरे जान
की फ्रिक और उपर वाले से दुआ कर सकता हूं कि सरकारी हत्थे में आ जा ताकि तेरी जिंदगी सेफ रह सके।
और जब केजरीवाल को रण छोडना पडा
चुनाव से पहले देश विदेश घूमकर चुनावी खजाना भरने वाले आप ( सबके बाप
) ने एक बार फिर अपने सपनों की दुकान जनता के लिए खोल दी है। रणछोड़ की इमेज को
बदलने के लिए सबसे पहले वे क्षमा मांगते हुए लोगों को भरोसा दे रहे है कि अब दोबारा इस तरह
की गलती नहीं करूंगा। वे लोगों को यह सपना दिखा रहे है कि इस बार सत्ता में आया तो
उम्मीद से ज्यादा दूंगा। जनसभा में एक
दर्शक श्रोता ने जब यह जानना चाहा कि उम्मीद से कम ही सहीं पर क्या देंगे तो
केजरीवाल की बोलती ही बंद हो गयी और लोग ठठाकर हंस पडे।तब अपनी खिल्ली से बचने के
लिए और रण ना छोडने की वकालत करने वाले एके को फिरहाल खिसकना ही ज्यादा बेहतर लगा।
ये कहां आ गए हम ...
सपा मुखिया नेताजी के कंधे पर बंदूक चलाने वाले पूर्व सपा नेता अमर सिंह
की अमरगाथा फिलहाल गर्दिश में है। सपा छोड़ते समय तो सोचा था कि चमक दमक और
गौरवगाथा के सामने दर्जनों दल अपने दलदल में समाहित करने की होड़ लगा देंगे। मगर
कुछ नहीं हुआ । अमर उम्मीदों के साथ राह तकते रह गए मगर कोई नहीं आया। पंजा में
जाने की कसरत की तो वहां से भी निराशा मिली। फिर से सपाई होने की जुगत लगाई तो इस
बार बेटा राज के आगे बाप बेबस निकले। और भी कई पाले में जाने की पहल की तो कोई
मुंह तक नहीं लगाया। और अंत में जब प्रधानमंत्री मोदी के लिए शहनाई वादन करके अपनी उम्मीद को कमल पंख देना
चाहा तो पहले से मौजूद सबसे बडे घर को नचा रहे सिंह ने आंखे दिखा दी। अपने लिए
अपनी पार्टी बनाकर अपनी औकात नापने की पहल की तो परिणाम इतना बुरा निकला कि खुद वे
शर्मा गए। आज भौसागर में कोई खेवनहार नहीं है। जिधर देखते है उधर ही निराशा।
शायराना शैला में बात करने वाले अमरप्रेम के नायक शायद यही गुनगुना रहे होंगे कि
ये कहां आ गए हम तेरे साथ.......
कवि मोदी की कविताएं
और अंत में आपके सामने प्रस्तुत है अपने कर्मठ और सख्त माने जाने वाले
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की एक कविता। आप तमाम लोगों को यह जानकर अच्छा लगेगा कि मोदी
जी एक कवि भी है और 2008 में इनकी कविताओं को गुजराती में आंख आ धन्य छे ( आंखे ये
धन्य है) का प्रकाशन भी हो चुका है। सिर्फ कविता ही नहीं बल्कि कहानियों का भी एक संग्रह
गुजराती में प्रेमतीर्थ छपा है । कविताओं का अनुवाद किया है हिन्दी गुजराती की
चर्चित कवयित्री श्रीमती अंजना संधीर ने। मोदी के चरित्र को विश्लेषित करती कविता का
आनंद ले।
जाना नही,
यह सूर्य मुझे पसंद है
अपने सातो घोड़ों की लगाम
हाथ में रखता है
लेकिन, उसने कभी भी घोड़े को
चाबुक मारा हो
ऐसा जानने में आया नहीं।
इसके बावजूद
सूर्य की गति
सूर्य की मति,
सूर्य की दिशा
सब एकदम बरकरार
केवल प्रेम।
कवि मोदी जी की कविताओं की किताबमेरे पास आ गयी है लिहाजा मोदी की
कविताओं का रस हर बार चखाया जरूर चखाया जाएगा। एकदम पक्का।
और अंत में
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