सोमवार, 30 जुलाई 2012

वीर शहीद श्रीदेव सुमन (शहादत दिवस—25 जुलाई, 1944)

  1. Photo: काश मेरे पास आज टाइम मशीन होती तो अभी पंख लगा कर उड्ड जाती ..... अब त्यौहार  भी आने वाले है .........क्या मौसम होगा क्या नज़ारे होंगे ...........कही ढोल कही दमाऊ होंगे सारी प्रक्रति सुंदर सुंदर फूलो से खिली खिली होगी .....वाह पहाड़ की वादियों को मिस कर रही हूँ.....

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  2. Photo: वीर शहीद श्रीदेव सुमन
(शहादत दिवस—25 जुलाई, 1944)

क्रांतिकारी श्रीदेव सुमन का जन्म टिहरी रियासत के बमुण्ड पट्टी के जौल ग्राम में हुआ था। उनके पिता पं. हरिराम बडोनी वैद्य थे। श्रीदेव सुमन जी ने टिहरी स्कूल से मिडिल परीक्षा 1929 में उत्तीर्ण करने के बाद देहरादून के सनातन धर्म स्कूल में अध्यापन कार्य कीया। इस बीच उन्होंने ‘हिन्दी पत्र बोध’ नामक एक पुस्तक प्रकाशित की और कई समाचार पत्रों का संपादन कीया। सुमन जी के विचार बचपन से ही क्रांतिकारी थे। उन्होंने टिहरी रियासत की दमनकारी नीतियों का विरोध शुरू कर दिया। सन् 1930 में उन्होंने देहरादून में टिहरी राज्य प्रजा मंडल की स्थापना की और टिहरी के सामंतवाद के विरुद्ध लड़ाई छेड़ दी।

सन् 1930 में श्रीदेव सुमन नम सत्याग्रह आंदोलनकारियों के साथ सम्मिलित हो गए और पड़े जाने पर 14 दिन जेल में रखे गये बाद में वे मनुदेव शास्त्री के संपर् में आए और उनके सहयोग से दिल्ली में देवनागरी महाविद्यालय की नींव डाली गई। दिल्ली में अध्ययन व अध्यापन के साथ-साथ श्रीदेव सुमन साहित्यि सेवा में भी लगे रहते थे।

उन्होंने ‘सुमन सौरव’ नाम से अपनी विताओं का संग्रह प्रकाशित की या जो देशभक्ति पूर्ण और समाज सुधार से संबंधित है। प्रसिद्ध साहित्यकार कालेलर जी ने उन्हें राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के कार्यालय में नियुक्त की या जहां श्रीदेव सुमन ने राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में अपना बहुमूल्य योगदान दिया। श्रीदेव सुमन ने टिहरी राज्य प्रजामंडल के प्रतिनिधि के रूप में इसमें बढ़-चढ़ कर भाग लिया। 1940 में उन्होंने टिहरी रियासत की दमनकारी नीतियों के विरोध में जनता को जागृत करने का प्रयत्न की या, परन्तु टिहरी में आम सभाओं के आयोजन पर लगे प्रतिबंध के कारण वह वापस देहरादून लौट आए। अगस्त 1942 में राष्ट्रव्यापी ‘भारत छोड़ों आन्दोलन’ के कारण टिहरी रियासत से बाहर प्रजामंडल के सभी कर्यकर्ता गिरफ्तार हो गए और सुमन जी को आगरा सेंट्रल जेल में भेज दिया गया। 19 नवम्बर, 1943 को आगरा सेंट्रल जेल से रिहा कर दिये गये। उन्होंने टिहरी रियासत की जन विरोधी राज-सत्ता को उखाडऩे के लिए अपना आंदोलन तेज की या श्रीदेव सुमन को 30 सितम्बर, 1943 को चम्बा में गिरफ्तार कर लिया गया और वे टिहरी जेल भेज दिए गए। रियासत की जेल में उन्हें ठोर यातनाएं दी गई और उन पर राजद्रोह का झूठा मुकदमा चलाया गा। श्रीदेव सुमन ने कहा की मेरे विरुद्ध जो गवाह पेश कीए गए, वे बनावटी व झूठे हैं। मैं जहां अपने भारत देश लिए पूर्ण स्वाधीनता में विश्वास करता हूं। उन पर दो वर्ष की कठोर कारावास व 200 रु. जुर्माना की या गया। जेल में श्रीदेव सुमन को कठोर यातनाएं दी गई। उन की न्यायोचित मांगे न माने जाने के विरोध में उन्होंने 3 मई, 1944, को अपना ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू कर दिया। इसके बाद टिहरी रियासत के विरुद्ध लड़ा गया उनका शांतिपूर्ण आन्दोलन सुमन जी के व्यक्तित्व का पूरा इतिहास है, गांधी जी सत्याग्रह का सुमन जी एक अति सुन्दर उदाहरण बने। 209 दिनों की जेल की एकान्त यातना और 84 दिन की इस ऐतिहासिक अनशन के बाद मात्र 29 वर्ष की अल्पआयु में 25 जुलाई, 1944, को यह क्रांतिकारी अपने देश, आदर्श और आन के लिए इस संसार से विदा हो गए। टिहरी रियासत के कर्मचारियों ने जनाक्ररोश के भय से 25 जुलाई, 1944 की रात्रि को अमर शहीद श्रीदेव सुमन के शव को बिना उनके परिवार को सूचित कीए टिहरी की भिलंगना नदी में बलपूर्वक जलमग्न कर दिया। यह एक पवित्र आत्मा की हत्या थी। परन्तु जो सम्मान और स्थान ऐसे शहीद को मिलना चाहिए था, वह उन्हें नहीं मिला। श्रीदेव सुमन निर्विवाद रूप से एक महान नेता थे जिन्होंने सरल सुखद जीवन मार्ग त्यागकर सेवा व बलिदान का कठोर रास्ता चुना और अंतिम सांस तक उससे डिगे नहीं। उत्तराखण्ड राज्य को टिहरी झील का नाम ‘सुमन सागर’ प्रस्तावित करना चाहिए, यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजली होगी।
आभार - सुरेंदर रावत !


"लोकरंग फाउंडेशन"  की तरफ से "अमर शहीद श्री देव सुमन जी" क पुण्यतिथि पर श्रधा सुमन !

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