बुधवार, 2 सितंबर 2015

परम्परा और मान्यता

 

 

10 अनोखी परम्परा और मान्यता ( India's 10 Amazing Tradition and Ritual)

भारत परम्पराओं का देश है।  यहां के हर हिस्से से कोई ना कोई अनोखी परम्परा जुडी हुई है।  हमने इस लेख में भारत की 10 ऐसी ही अनोखी, अचरज भरी परम्पराओं और रीती रिवाज़ों का संकलन किया है।

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1. बच्चों का लिंग पता करने की अनोखी परम्परा (Unique tradition to know the sex of the children) :

Unique tradition to know the sex of the children
पहाड़ी पर बनी चाँद की आकर्ति   Image Credit bhaskar.com


झारखंड के बेड़ो प्रखंड के खुखरा गाँव में माँ के गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग पता करने की एक अनोखी परम्परा पिछले 400 सालो से चली आ रही है। खुखरा गाँव में एक पहाड़ है जिस पर एक चाँद की आकर्ति खुदी हुई है इसलिए इसे चाँद पहाड़ कहते है।  पहाड़ पर खुदी यही चाँद की आकर्ति बता देती है की माँ के गर्भ में पल रहा बच्चा बेटा है या बेटी।  गर्भस्थ शिशु का लिंग पता करने के लिए गांव की गर्भवती महिलाओं को इस पहाड़ की ओर चांद की आकृति पर निश्चित दूरी से बस एक पत्थर फेंकना होता है। अगर गर्भवती स्त्री के हाथ से छूटा पत्थर चांद के भीतर लगे तो यह संकेत है कि बालक शिशु होगा, चांद आकृति से बाहर पत्थर लगने पर बालिका शिशु होगी। इस परम्परा पर यहाँ के ग्रामवासियों का अटूट विश्वास उनके अनुसार यह हमेशा सही होता है।

Shiv Ling at Chand Pahari - Ranchi - Jharkhand
चाँद पहाड़ी के ऊपर बना शिवलिंग     Image Credit bhaskar.com
चांद पहाड़ मूल रूप से नागवंशी राजाओं के मनोरंजन पार्क के रूप में विकसित किया गया था। पहाड़ के ऊपर शिवलिंग और कुंड जैसी आकृतियां गवाह हैं कि वहां नागवंशी राजा पूजा पाठ भी करते थे। इसके ठीक बगल में चांदनी पहाड़ है, जहां नागवंशी रानियां विहार करती थीं।
2. मनोकामना पूर्ति के लिये जमीन पर लेटे लोगों के ऊपर छोड़ दी जाती हैं गायें (Indian Men get trampled by cows in a ritual at Ujjain) :
Indian men trampled by cow at Ujjain
लेटे हुए लोगो को रौंदती हुई गाये  
भारत में मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के कुछ गावों में एक अजीब सी परम्परा का पालन सदियो से किया जा रहा है।  इसमें लोग जमीन पर लेट जाते हैं और उनके ऊपर से दौड़ती हुए गाये गुजारी जाती हैं। इस परंपरा का पालन दीवाली के अगले दिन किया जाता है जो कि एकादशी का पर्व कहलाता है। इस दिन उज्जैन जिले के Bhidawad और आस पास के गाँव के लोग पहले अपनी गायों को रंगों और मेहंदी से अलग-अलग पैटर्न से सजाते हैं। उसके
बाद लोग अपने गले में माला डालकर रास्ते में लेट जाते है और अंत में दौड़ती हुए गायें उन पर से गुजर जाती हैं।
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3. शाटन देवी मंदिर, छत्तीसगढ़ - यहाँ बच्चो के अच्छे स्वास्थ्य लिए देवी को चढ़ाते है लौकी :
Shatan Devi Temple - Chhatisgarh - Children Temple
शाटन देवी    Image Credit bhaskar.com
छत्तीसगढ़ के रतनपुर में स्थित शाटन देवी मंदिर(बच्चों का मंदिर) से एक अनोखी परंपरा जुड़ी है। मंदिरों में आमतौर पर फूल, प्रसाद, नारियल आदि भगवान को चढ़ाने का विधान है, लेकिन शाटन देवी मंदिर में देवी को लौकी और तेंदू की लकड़ियां चढ़ाई जाती हैं। इस मंदिर को बच्चों का मंदिर भी कहते हैं। श्रद्धालु यहां अपने बच्चों की तंदुरुस्ती के लिए प्रार्थना करते हैं और माता को लौकी और तेंदू की लकड़ी अर्पण करते हैं। इस मंदिर में यह परंपरा कैसे शुरू हुई यह कोई नहीं जानता, लेकिन ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां लौकी और तेंदू की लकड़ी चढ़ाता है, उनकी मनोकामना पूरी होती है।
4. जंगमवाड़ी मठ, वाराणसी - यहाँ परिजनों की मृत्यु पर दान करते है शिवलिंग (JAngamwadi Math, Varanasi - Here families member donate Shiv Lings on the occasion of dead) :
JangaWadi Math
जंगमवाड़ी मठ में रखे शिवलिंग   Image Credit bhaskar.com
जंगमवाड़ी मठ वाराणसी (Jangamwadi Math, Varanasi)  के सारे मठो में सबसे पुराना है। इस मठ में शिवलिंगों की स्थापना को लेकर एक विचित्र परंपरा चली आ रही है। यहां आत्मा की शांति के लिए पिंडदान नहीं बल्कि शिवलिंग दान होता है। इस मठ में एक दो नहीं बल्कि कई लाख शिवलिंग एक साथ विराजते हैं। यहां मृत लोगों की मुक्ति और अकाल मौत की आत्मा की शांति के लिए शिवलिंग स्थापित किए जाते हैं। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के चलते एक ही छत के नीचे दस लाख से भी ज्यादा शिवलिंग स्थापित हो चुके हैं। 
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5. अनोखी परम्परा - पति कि सलामती के लिए जीती है विधवा का जीवन (Unique Tradition - For husband safety, wives lives as a widow) :
Taad,s Tree
ताड़ का वृक्ष 
हमारे देश भारत में आज भी कुछ ऐसी परम्पराय जीवित है जो हमे अचरज में डालती है। ऐसी ही एक परम्परा है पति कि सलामती के लिए पत्नी का विधवा का जीवन जीना।  यह परम्परा गछवाह समुदाय से जुडी है।  यह समुदाय पूर्वी उत्तरप्रदेश के गोरखपुर, देवरिया और इससे सटे बिहार के कुछ इलाकों में रहता है।  ये समुदाय ताड़ी के पेशे से जुड़ा है। इस समुदाय के लोग ताड़ के पेड़ों से ताड़ी निकालने का काम करते है।  ताड़ के पेड़ 50 फीट से ज्यादा ऊंचे होते है तथा एकदम सपाट होते है।  इन पेड़ों पर चढ़ कर ताड़ी निकालना बहुत ही जोखिम का काम होता है। ताड़ी निकलने का काम चैत मास से सावन मास तक, चार महीने किया जाता है। गछवाह महिलाये (जिन्हे कि तरकुलारिष्ट भी कहा जाता है ) इन चार महीनो में ना तो मांग में सिन्दूर भरती है और ना ही कोई श्रृंगार करती है। वे अपने सुहाग कि सभी निशानिया तरकुलहा देवी के पास रेहन रख कर अपने पति कि सलामती कि दुआ मांगती है।
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6. भाई दूज मनाने की अनोखी परम्परा - बहने भाई को देती है मर जाने का श्राप (Unique Tradition to celebrate Bhai Duj - Sisters gives dying curse) :
Unique Tradition to celebrate Bhai Duj - Sisters gives dying curse
Image credit Vikrant Pathak via webduniya.com 
कुछ उत्तर भारतीय समुदायों में भाई दूज बनाने की अनोखी प्रथा है।  इसमें बहने भाई दूज के दिन याम देवता की पूजा करती है।  पूजा के दौरान वो अपने भाइयों को कोसती है तथा उन्हें मर जाने तक का श्राप देती है। हालांकि वो श्राप देने के बाद अपनी जीभ पर काँटा चुभा कर इसका प्रायश्चित भी करती है। इसके पीछे यह मान्यता है की यम द्वितीया (भाई दूज)  भाइयों को गालियां व श्राप देने से उन्हें मृत्यु का भय नहीं रहता है। 
7. अजीबोगरीब परम्परा - भूतों का साया और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हटाने के नाम पर करवाते हैं बच्चियों कि कुत्तों से शादी :
Baby girl marriage with Dog
इसे परम्परा ना कहकर कुरुति कहा जाए तो ज्यादा उपयुक्त होगा। इसमें भूतों का साया और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हटाने के नाम पर बच्चियों की शादी कुत्तों से करवाई जाती है।  हालाकि ये शादी सांकेतिक होती हैं, पर होती हैं असली हिन्दू तरीके और रीती रिवाज़ से। लोगों को शादी में आने का निमंत्रण दिया जाता है। पंडित, हलवाई सब बुक किये जाते है। बाकायदा मंडप तैयार होता है और पुरे मन्त्र विधान से शादी सम्पन कराई जाती है। इस शादी में एक असली शादी जितना ही खर्चा बैठता है और उससे भी बड़ी बात कि समाज एवं रिश्तेदार भी इसमें बढ़ चढ़ के  हिस्सा लेते है। शायद आपको एक बार तो यकीन ही नहीं होगा कि ऐसा भी हो सकता है। लेकिन यह बिलकुल सत्य है। हमारे देश में झारखण्ड राज्य के कई इलाकों में परंपरा के नाम पर ऐसी शादियां सदियों से कराई  जा रही है।  
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8. नागपंचमी पर गुड़िया पीटने की अनोखी परम्परा :
नागपंचमी का त्योहार यूँ तो हर वर्ष देश के विभिन्न भागों में मनाया जाता है लेकिन उत्तरप्रदेश में इसे मनाने का ढंग कुछ अनूठा है। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को इस त्योहार पर राज्य में गुडि़या को पीटने की अनोखी परम्परा है। 
नागपंचमी को महिलाएँ घर के पुराने कपडों से गुड़िया बनाकर चौराहे पर डालती हैं और बच्चे उन्हें कोड़ो और डंडों से पीटकर खुश होते हैं। इस परम्परा की शुरूआत के बारे में एक कथा प्रचलित है।
तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की मौत हो गई थी। समय बीतने पर तक्षक की चौथी पीढ़ी की कन्या राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी में ब्याही गई। उस कन्या ने ससुराल में एक महिला को यह रहस्य बताकर उससे इस बारे में किसी को भी नहीं बताने के लिए कहा लेकिन उस महिला ने दूसरी महिला को यह बात बता दी और उसने भी उससे यह राज किसी से नहीं बताने के लिए कहा। लेकिन धीरे-धीरे यह बात पूरे नगर में फैल गई।
तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर नगर की सभी लड़कियों को चौराहे पर इकट्ठा करके कोड़ों से पिटवा कर मरवा दिया। वह इस बात से क्रुद्ध हो गया था कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती है। तभी से नागपंचमी पर गुड़िया को पीटने की परम्परा है।
9. बारिश के लिए कराई जाती है मेंढकों की शादी :
Frogs Marriage for Rain
  Image Credit bhaskar.com
महाराष्ट्र में अच्छी बारिश के लिए मेंढकों की शादी कराई जाती है। शादी के लिए मेंढकों को फूल-माला पहनाकर सजाया जाता है। इसके बाद धूमधाम से इनकी शादी रचाई जाती है। लोगों का मानना है कि इससे बारिश के देवता खुश होते हैं और बारिश कर देते हैं। मेंढकों की शादी में इंसानों की तरह पूरे विधि-विधान का पालन किया जाता है। उन्हें वरमाला पहनाई जाती है और सामान्य शादी की सारी रस्में निभाई जाती हैं। शादी के बाद दोनों को एक साथ गांव के तालाब या कोई अन्य जलाशय में छोड़ दिया जाता है।

10 . बेंत मार गांगुर - एक अनोखी परम्परा - जिसमे कुंवारे लड़के शादी के लिए औरतों से खाते है मार 

Tradition for Marriage
Image Credit samachar24


यह परम्परा राजस्थान के जोधपुर में निभाई जाती है। जहां देश भर में महिलाओं की आजादी की मुहिम छेड़ी गई है। वहीं जोधपुर की इस परंपरा के अनुसार एक रात औरतों की होती है और उसकी बादशाहत घर के अंदर नहीं, बल्कि बाहर होती है। रात में औरतें सजधजकर बाहर निकलती है। अलग-अलग रंगों के कपड़े और गहने से लदी महिलाओं के हाथ में एक डंडा भी होता है। लेकिन इस डंडे को लेकर घूम रही लड़कियों के लिए ये डंडा शादी की इलेजिबिलिटी नापने का पैमाना है। दरअसल, रात में महिलाएं इस डंडे से कुंवारे लड़कों की पिटाई करती हैं और लड़के चुपचाप मार खाते हैं। मान्यता है कि जो लड़का मार खाता है, उसकी एक साल में शादी हो जाती है। मतलब मार खाओ ब्याह रचाओ और खास बातें ये कि इसमें विधवाएं भी हिस्सा लेती है। ये परम्परा सदियों से चली आ रही है, जिसमें अब विदेशी महिलाए भी भाग लेती है। वैसे तो ये सब कुछ 16 दिन पहले से ही शुरू हो जाता है, यहां परम्परा के अनुसार औरते सुहाग की लंबी उम्र के लिए 16 दिन का उपवास रखती है और आखिरी दिन ये उत्सव मनाया जाता है, जिसमें शादी-शुदा महिलाओं के साथ कुंवारी लड़किया भी भाग लेती हैं। वैसे तो कई परंपराएं महिलाओं को बेडियों में जकड़ती भी है, पर ये परंपरा खास इसलिए है कि ये महिलाओं की आजादी का जश्न मनाने की इजाजत देती है

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