मंगलवार, 3 मई 2016

आगरा में रेल वाली होली बहिन से मुलाकात-2








अनामी शरण बबल


आगरा से मेरा एक अनकहा सा नाता है कि जब जहां जैसे और जिस तरह भी मौका मिला नहीं कि खुद को आगरा मे ही पाता हूं। एक साल में 20-25 दफा तो आगरा जाना सामान्य तौर पर हो ही जाता है। पहले तो मैं आगरा बस से जाता था पर पिछले पांच सात साल से रेल ही मेरे सफर का साधन है। यदि ताज से जाना संभव नहीं हो पाता है तो अमूमन मैं जेनरल टिकट पर ही सफर करता हूं और रेल में गुजारे गए तीन घंटे का सफर भारतीय जनता के मूड को परखने समझने का सबसे सरल और नायाब साधन होता है। तीन घंटे तक कहीं पर राजनीति तो कहीं खेल कहीं सिनेमा कहीं गंदगी कहीं मोदी की सफाई तो कही लालू मोदी मुलायम अखिलेश या आजम खान ही लोगों की जुबांन पर होते है। रेल यात्रा के दौरान ही मुझे एक छक्की से मुलाकात हुई थी, और संयोग इस तरह का रहा कि उसकी बात उसकी मासूमियत और उसकी निश्छलता का मुझ पर इस तरह का प्रभाव पडा कि अपनी जेब में हाथ डालकर सारे रूपए उसके आगे कर दिए। मगर कमाल कि वो केवल 10 या 20 रूपए से कभी ज्यादा हाथ नहीं लगाई। पहली मुलाकात के बाद वह दो बार और मिली। हर बार मुझे देखते ही वो तमाम सवारियों को छोड़कर मेरे पास दौडी आती है। रेल का यह स्नेहिल याराना मुझे हमेशा उसको तलाशने के लिए बाध्य करता था। पिछले काफी समय से मैं ट्रेन से आगरा नहीं जा सका था और इस बार 24 अप्रैल 2016 को आगरा ताज से गया। जाते समय मैं मथुरा स्टेशन पर उतर कर भी इधर उधर निगाह डाली और आगरा राजा की मंडी में भी देखा मगर वो अनाम छक्की नहीं दिखी। एक मई 2016 को आगरा से दिल्ली लौटते समय हम पांच सात लोग थे। किसी ने यमुना एक्सप्रेस वे वाली बस पकड़ने की सलाह दी तो किसी ने राजा मंडी रेलवे स्टेशन से ही ट्रेन पकड़ने पर जोर दिया, मगर मैं आगरा कैंट जाने के लिए अडा रहा। मेरे साथ दो लोग और थे। हमलोग पौने 11 बजे स्टेशन पर आकर टिकट ले लिए। मगर कांगो एक्सप्रेश हीराकुंड़ एक्सप्रेस  केरल एक्सप्रेस समता एक्सप्रेस आदि सारी ट्रेने दो से लेकर चार घंटे लेट चल रही थी। मेरे साथ यात्रा कर रहे दोनो लड़के मुझपर बिफर पड़े अंकल आपके कारण ही हमलोग फंस गए । इसी वाद विवाद के बीच मैं ज्योंहि स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक में घुसा ही था कि सामने ही तीन छक्की लड़कियों पर मेरी नजर पडी। दो तो बैठी थी, मगर एक लेटी हुई थी। इनको देखकर मेरा मन खिल गया। मैने अपने साथियों से कहा कि तुमलोग प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर चलकर बैठो मैं जरा इन से मिलकर आता हूं। ट्रेन के बारे में कोई सूचना हो तो फोन कर देना , नहीं तो मैं बस्स आ ही रहा हूं। मेरे साथियों को बड़ी हैरानी हुई। मैने अपने दोस्तों से कहा तू दूर जाकर देख ये लोग भी मेरे दोस्त ही हैं यार। टिकट और 20-25 रूपए हाथ में लेकर मैं उनकी तरफ बढा और उसी चौकोर सिमेंट के बैठने वाले चबूतरे पर जा बैठा। मुझे देखते ही एक ने टोका कहां जाना है राजा। मैने तुरंत पलटवार किया कौन राजा कौन रानी कौन राज है यार राजा खाजा के अलावा कुछ और नहीं बोल सकती क्या। खामोश बैठी दूसरी छक्की हाथ हिलाते हुए बोल पड़ी, कुछ खिलाएगा पिलाएगा भी कि बाते ही करेगा। मैने तुरंत 30 रूपए आगे कर दिए मैं जानता था कि तू खाने पीने की ही बात करेगी, इसी लिए पैसे निकाल कर ही इधर बैठने आया था। पैसे लेकर पहली खडी होती हुई बोली बस्स तीस रूपए। मैने कहा क्यों 15 में तीन चाय और बाकी के कुछ ले लेना। इस पर दूसरी ने टोका बडा महाजन है साला हिसाब लगाकर पईसा दे रहा है। उसकी बातें सुनकर मैं खिलखिला उठा, और खड़े होकर 20 रूपए और दिए साथ ही मैंने कहा कि मैं केवल चाय पीउंगा तेरे साथ तुमलोग खाना। तभी एक ने जोडा कि और जो सोई हुई है उसके लिए कुछ नहीं। इस पर मैने कहा कि यार सफर में हूं और कितना दूं तू ही बता न। दोनों आंखो में आंखे डालकर सांकेतिक बात की। मैने बात को आगे बढाते हुए कहा कि मैं भी तो तुम्हारी ही एक सहेली की तलाश में हूं अगर मिल गयी तो उसको एक सौ रूपए देना है, और नहीं मिली तो तुमलोग को वो सौ रूपईया दे  दूंगा। सहेली की बात सुनते ही दोनों चहक उठी। बता न तेरी रानी कैसी है। तू यार है क्या उसका?  मैने तुरंत विरोध जताया तुमलोग भी अजीब हो राजा रानी सैंय्या के अलावा कोई और नाता नहीं होता क्या ? इस पर दोनों ने कहा कि हम कौन सी घरेलू है कि नातेदारी जाने । रोजाना हरामखोर बहिन...मादर,,,, मर्दो से ही तो पाला पड़ता है जो खाने के लिए पईसा उछालते है। इस तेवर पर मैं खामोश रहा। मैने उन दोनों को इस अनाम छक्की लड़की से हुई तीन मुलाकात का हाल बयान किया।  तुमलोग ही बताओं न क्या यह कोई नाता नहीं है। मैं तो बहुत दिनों से इधर ट्रेन से नहीं आया था मगर इस बार आया हूं तो उसको ही देख रहा हूं कि शायद हमारी रेल वाली बहिनजी मिल ही जाए कहीं। दोनों के चेहरे पर गंभीरता आ गयी। कौन है रे अनारकली जिसको इतना सुंदर भाई मिला है रे बाबा। एक ने बेताबी से कहा कि चलो नहीं मिलेगी तो हमलोग ही तेरी बहिन सी है। इस पर मैं जोर से खिलखिला पडा। मेरी हंसी से दोनों अवाक हो गयी। एक ने पूछा कोई नाम पहिचान रंग रूप उम्र बताओं न ताकि तेरा संदेशा तेरी अनारकली तक तो पहुंचाया जा सके। मैने कहा यही कोई 24- 25 की होगी। इस पर अब तक सो रही तीसरी छक्की कराहते हुए उठी और बेताबी से बोली नहीं भैय्या 28 की हूं।  अरे सो रही तीसरी छक्की वही थी जिसको खोजने के लिए मैं कैंट स्टेशन तक आया था। वह एकदम काली और कमजोर सी दिख रही थी। उसको देखते ही मैं बेताब सा हो उठा और झट से उसके पास पहुंचा और हाथों को थामकर पूछा क्या हुआ? इस पर अपना दाहिना पांव दिखाते हुए बोली कि ट्रेन से गिर गयी थी भईया। पांवो में घुटने के नीचे सूखते जख्म को देखकर लग रहा था कि घाव 15 से 20 दिन पहले का है। अब तक दोनो इसके संगी साथी एकदम खामोश खड़े थे तो 50 का एक नोट देते हुए मैने कहा अरे यार कुछ तो लाओं ताकि यह भी हमारे संग चाय पी ले। ज्योंहि एक छक्की जाने के लिए मुडी कि आवाज देकर मैने रोका और जेब से फिर सौ रूपए का एक नोट देते हुए कहा कि इसके लिए कुछ बिस्कुट भी ले लेना।
मैने उसको घाव दिखाने को कहा तो वह धीरे धीरे अपने सलवार को उपर कर कराहते हुए सूखते घाव को दिखाई। मेरे पास दर्द हर मलहम था मैने अपने बैग से उसे निकाला और उसके पैरो में लगा दिया। पांच मिनट के अंदर वो राहत महसूस की होगी, बहुत अच्छा लग रहा है भईया। मैने इस उपदेश के साथ कि दिन में दो तीन बार लगाओगी तो  तुम्हें राहत मिलेगी के साथ ही मलहम की डिबिया उसे थमा दिया। उसके चेहरे को गौर से देखा तो वो बोली क्या देख रहे हो भैय्या ?  हंसकर मैने कहा कि तू अब काफी मोटी तगडी और सुदंर सी दिख रही है। इस पर तुनकते हुए बोली मेरा मजाक उडा रहे हो। इस पर मैं भी पीटने का नाटक करते हुए कहा कि अगली दफा भी तू इसी तरह दिखी न तो तेरी पिटाई करूंगा। इस पर वो खिलखिला पडी। 
जब मैं इस सेवा और मनुहार  और प्यार दुलार से बाहर निकला तो  देखा कि रेलवे स्टेशन पर तो हमलोगों के इर्दगिर्द मजमा सा लगा हुआ है। मुझे थोडी लज्जा भी आई। मैने पास में ही खडी छक्की को कहा कि यहां तो पूरा मेला लग गया है। लोग अजीब तरह से हमलोगों को देख रहे थे। उसके पांव में मलहम लगाने के लिए मैं प्लेटफॉर्म के फर्श पर ही घुटना टेक बैठा था। तब तक चाय नास्ता आदि लेकर दूसरी छक्की बिफरते हुए आ गयी। अरे तेरी अंम्मा की सगाई हो रही है जो यहां पर खडा है साले, चल भाग । चाय पानी नास्ता आ जाने के बाद वे लोग खाने में बिजी हो गए। मैने भी दो चार बिस्कुट निकालकर उसको दिए, तो चाय पीकर वो कुछ भली सी लगी। मैने उससे पूछा कि तेरा नाम क्या है? इस पर मुस्कान बिखेरती हुई बोली भईया हमलोग के कई नाम होते है। आगरा में कुछ झांसी में कुछ तो ग्वालियर में कोई और नाम। पर तू मेरे को होली कहना इस नाम को सब जानते है। मैने फोटो के लिए कहा तो चारा डालते हुए बोली कि तुमको मना करते ठीक नहीं लगता है भईया पर फोटू खींचने से तेरी गरीब बहिन को ही बडी जलालत झेलनी पड़ेगी, बाकी तुम जो ठीक समझो कर सकते हो। हां उसने मेरा नंबर जरूर ली और पूछी भी  जब कभी भी तेरी जरूरत पड़ेगी तो क्या तू आएगा ? इस सवाल पर मैं भी परास्त सा ही हो गया। फिर भी साफ कहा कि यदि बदमाशी से कभी मेरा टेस्ट ली तो फिर कभी नहीं आउंगा, मगर दिल से और सहीं में जरूरत पर बुलाओगी तो कोशिश जरूर करूंगा। पर यह बता कि मैं अकेला आकर तो तेरा क्या बचाव कर सकता हूं। इस पर वो मेरे गाल या चेहरे को छूते हुए  बोली नहीं भईया तुमसे शैतानी करूंगी तो सामने मगर इस तरह का मजाक कभी नहीं । फिर बोली कि तुंम आगरा तक ही आते हो? मेरे हां कहने पर मायूष होकर होली बोली अब मैं आगरा कम आती हूं भईया कई महीनो के बाद कल ही आगरा आई हूं। अब ज्यादातर झांसी में रहती हूं। इस पर मैंने उसके दोनों हाथ पकड लिए सच होली इस बार मैं भी तुमको बहुत याद कर रहा था, लगता है कि हमलोग इसी कारण इस बार मिल भी गए। मेरी बात सुनते ही होली समेत तीनों जोर से खिलखिला उठी। उनलोगों को हंसते देखकर मैं थोडा झेंप सा गया। तब एक ने कहा यार तू सिनेमा में चला जा एकदम राजकपूर की तरह अपनी होली से प्यार जता रहा था। मैं भी हंसता मुस्कुराता फर्श से खडा होकर अपने पैंट और टी शर्ट ठीक करने में लग गया। मोबाईल निकाल कर समय देखा तो एक बज रहे थे। कब और किस तरह दो घंटे निकल गए इसका अंदाजा ही नहीं लगा। मैने चौकीदार छक्कियों से नाम पूछा तो एक ने अपना नाम बुलबुल और दूसरे ने चंदा बताया। मैने दोनों से पूछा कि क्या फिर कुछ चाय पानी? मेरी बात सुनते ही चंदा ने 30-40 रूपए निकालकर मुझे पकडाने लगी। तुम तो अपने निकल गए तुमसे क्या पैसे लेना। मैने चंदा को प्यार से कहा कि अपने का मतलब क्या होता है जानी और चाय लाने को है का। खाना पीना तो चलेगा ही। मैने एक सौ रूपए का एक नोट पकडाते हुए चाय के लिए कहा। साथ ही अपना बैग खोलकर उसमें रखा पेठा का एक डिब्बा निकालकर होली को थमाया। यह तुमलोग के लिए है। पेठा
का डिब्बा देखकर होली बहुत खुश हुई मगर दूसरे ही पल वापस करती हुई बोली नहीं भैय्या घर के लिए ले जा रहे हो इसे मैं नहीं रखूंगी। इस पर पेठे का दूसरा डिब्बा दिखाते हुए मैने कहा कि देखो घर के लिए यह है। दूसरा डिब्बा तेरे लिए ही खरीदा था कि अगर तू मिल गयी तो कुछ मीठा तो होना ही चाहिए था न। पेठा निकालने पर बुलबुल बोली तुम तो काफी धनवान लग रहे हो भाई। इस पर मैने  कहा नहीं बुलबुल तेरा भाई दिल से तो बहुत अमीर है, पर धन से कोई खास नहीं। ये तो होली के नाम पर इतने रूपए जमा थे सो वहीं खर्च कर रहा हूं, नहीं तो फिर तेरे ही जेब पर डाका डाला जाता। बुलबुल फिर बोली तुम करते क्या हो
भाई ? मैं उसकी उत्कंठा पर हंस पडा कुछ नहीं यार बस्स इधर उधर लिखना और भाषण देता हूं कॉलेज में । वो सहज होकर बोली तुम नेता हो ? मैंने पलटते ही कहा मैं तुम्हें नेता लग रहा हूं। मैं तो पैंट टीशर्ट पहनता हूं जबकि नेता तो खद्दर पहनता है। इस पर वो फिर वोली नहीं भाई जमाना बदल गया है कपड़ो से अब कोई नहीं पहचाना जाता। तब तक चंदा कुछ सामान के साथ आ चुकी थी। तीनों खाने पर टूट पडी थी और मैं चाय ले रहा था। बुलबुल और चंदा ने कहा कि वैसे तो हमलोग का यहां स्टेशन पर उधार चलता है पर आज हमलोग के पास एकदम पैसे नहीं थे यह तो तुम टकरा गए कि तेरा भी काम हो गया और होली के चलते हमलोग भी पार्टी कर रहे है। दोनों ने कहा हमलोग भाई दिल की इतनी बुरी नहीं होती है पर रोजाना सैकड़ो मर्दो से टकराना होता है, लिहाजा जरा गरम वाचाल और उदंड स्वभाव रखना पड़ता है ताकि लोग हमलोगों से डरे.और दूर ही रहे।
खान पान के बाद मैने होली से चलने की इजाजत मांगी। अपने बैग से दो नया तौलिया और चार पांच सफेद रूमाल निकालकर होली के सामने रख दिया कि यह सब रखो और आपस में बांट लेना। मेरे पास नया केवल दो ही तौलिया था। साथ ही प्रसाद का एक पैकेट भी निकालकर होली को थमाया। इन सामान को देखकर वे लोग एकदम चकित थी। एक साथ बोली अरे भाई इसको तुम ही रखो घर ले जाओ। तब मैने लाचारी जाहिर की। यार मेरे पास कोई यादगार चीज ही नहीं है कि तुमलोग को दे सकूं। इस तरह ढाई घंटे बीत गए यह पता ही नहीं लगा। सबो ने थोडी देर और रूकने का मनुहार किया। रूकने की बजाय मैने होली के सिर पर हाथ फेरा और कहा कि ढाई बजे तक दिल्ली के लिए तीन ट्रेन है अगर यह छूट गयी तो घर पहुंचने में काफी रात हो जाएगी। जेब से सौ रूपए का नोट निकाल कर होली के हाथों में रख दिया, तो वह रोने लगी। बैठी ही बैठी वो मुझसे लिपट गई।  भईया मैने जरूर अच्छे कोई कर्म किए होगें तभी मेरे को भगवान ने छक्की बनाकर भी तुम जैसा भाई सौंप दिया है। अमूमन मैं जरा कठोर सा हूं आंखों में आंसू नहीं आते पर मेरा गला भी भर्रा उठा। मैने भी उससे कहा कि होली तुमको पाकर मैं भी बडा सौभाग्यशाली ही मान रहा हूं। रेलवे स्टेशन पर बडा अजीब सा ड्रामा हो रहा ता। मेरे आस पास 100 से ज्यादा लोग खड़े थे। और नयी नयी बहिन बनी चंदा और बुलबुल भी रो रही थी। मैने चुटकी ली जानती है जब मैने होली को पहली बार भाई कहा था तो वो बोली थी कि भईया सारे मेरे भाई ही बन जाओगे तो पैसा कौन देगा। और अब मैं कह रहा हूं चंदा बुलबुल रानी कि तुम सब मेरी बहिन ही बन जाएगी तो तेरा भईया किस पर लाईन मारेगा जी। मेरी बात सुनकर तीनों ठहाका मारकर हंसने लगी। मैं भी जरा माहौल के तनाव को खुशनुमा बनाते हुए फिऱ अपनी होली बहिन को दवा समय पर खाने और बाम लगाने और दो एक दिन में झांसी जाकर आराम करने की सलाह दी। तब तक मेरे दोनों  मित्र भी पास में आकर बताया कि दो बजकर 10 मिनट में मैसूर निजामुद्दीन सुपर फास्ट आ रही है सो बस चला जाए। मैं भी सामान उठाने लगा। तीनो से फिर मुलाकात होने की उम्मीद के साथ मैं अपने मित्रों के साथ चल पडा। तभी होली ने आवाज दी एक मिनट इधर आना। मैं उसके पास पहुंचा ही था कि वह बडे अदब से मेरा पैर छूकर प्रणाम की और बोली कि मैं चलने लायक नहीं हूं भैय्या, नहीं तो तेरे संग दिल्ली तक जाकर ही लौटती। तेरे को जाने देने का तो मन नहीं कर रहा है पर क्या करे। मैने भी होली के हाथ को पकड़कर कहा कि मेरा भी जाने का मन एकदम नहीं कर रहा है पर जाना भी जरूरी है होली। वो बस्स हां भईया बोली और मैं अपना सामान उठाकर तेजी से आगे बढ़ गया। मेरे साथ ही साथ वहां पर जमा भीड भी इधर उधर हो गयी। मगर पीछे मुड़कर उन तीनों को देखने की मेरी हिम्मत नहीं हुई और मैं तेजी से स्टेशन के फूटओवर ब्रिज पर चढने लगा।       

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