मंगलवार, 7 जून 2016

बुलंद हौसले वाली दोनों लड़कियों को आज भी सलाम






अनामी शरण बबल

इधर जब से मैने अपनी सबसे अच्ची रिपोर्ट को फिर से लिखने की ठानी है तो
बहुत सारी कथाओं के नायक नायिकाओं में से ही दो गुमनाम सी लड़कियों (अब औरतें बनकर करीब 50 साल की होंगी) को आज भी मैं भूल नहीं पाया हूं । जिन्होने अपनी हिम्मत और हौसले के बूते वैवाहिक जीवन तक को दांव पर लगा दी। तो दूसरी लड़की ने तो सार्वजनिक तौर पर अपनी साहस से उन तमाम लड़कियों को भी बल दिया होगा जो किसी न किसी आंटियों यानी जिस्म की दलाली करने वाली धोखेबाजों के फेर में पड़ कर कहीं सिसक रही होंगी। हालांकि अब तो मुझे इनका सही सही चेहरा भी याद नहीं है मगर इनकी हिम्मत और हौसले की कहानी को यहां पर लिखने से पहले ही सैकड़ों उन लड़कियों को इनकी कहानी सुना चुका हूं जो अपना घर छोड़कर नगर या महानगर जाने वाली होती थी।
यह मुलाकात 1990 की है, जब मैं चौथी दुनिया साप्ताहिक अखबार में बतौर रिपोर्टर काम करता था। आगरा के भगवान सिनेमा पर से दिल्ली के लिए बस पकड़ा ही था। गेट पर ही खड़ा होकर बस के अंदर अपने लिए सीट देख रहा था। पूरे बस में केवल एक ही सीट खाली थी जिसमें एक औरत अपने एक बच्चे के साथ बैठी थी और दूसरा सीट मेरा इंतजार कर रहा था। मैं वहां पर जाकर ज्योंहि बैठने लगा तो चार पांच साल के अबोध बच्चे ने मासूमियत के साथ बोला अंकल यहां पर आप बैठ जाओगे तो मैं कहां बैठूंगा ? बच्चे की इस मासूमियत पर भला मैं कहां बैठने वाला। गाड़ी खुल चुकी थी और मैं बच्चे के लिए बस में खडा ही था। यह बात उसकी मां को असहज सी लग रही होगी। उन्होने गोद में बच्चे को लेते हुए मुझे बैठने के लिए कहा, मगर मैं खड़ा ही रहा और कोई दिक्कत ना महसूसने को कहा। इस पर प्यारा सा बच्चा मुझसे कुछ कहने के लिए नीचे झुकने का संकेत किया। चलती बस में मैं नीचे झुककर बच्चे के बराबर हो गया तो उसने कहा एक शर्त पर आप यहां बैठ सकते हो? मैं बिना कुछ कहे उसकी तरफ देखने लग तो बालक ने कह कि मम्मी की तबियत ठीक नहीं है, यदि आप मुझे अपनी गोद में बैठा कर ले चल सकते हो तो मैं आपके लिए सीट छोड़ सकत हूं। मैं उसके इस ऑफर पर खुश होते हुए प्यार से उसके गाल मसल डाले। इस पर नाराज होते हुए बालक ने अपनी मम्मी से यह शिकायत कर बैठा कि ये अंकल भी गाल खिंचते है। मेरे और बच्चे के बीच हो रहे संवाद पर आस पास के कई यात्री ठटाकर हंस पड़े, तो वह शरमाते हुए मेरे सहारे ही सीट पर खड़ा हो गया और बैठने से पहले चेतावनी भी दे डाली कि बस में दोबारा यदि गाल खिचोगे तो वहीं पर सीट से उठा दूंगा। मैं भी हंसते हुए कान पकड़कर ऐसा नहीं करने का भरोसा दिय। सीट पर बैठते ही मैं अपने बैग से कुछ नमकीन टॉफी और बिस्कुट निकाल कर बच्चे को थमाया। जिसे उसकी मम्मी को बुरा भी लग रहा था, मगर इन चीजों को पाकर बच्चा निहाल सा हो गया।
बच्चा मेरी गोद में सो गया था और मैं भी नींद की झपकियां ले रहा था, तभी बस कहीं पर चाय नाश्ता के लिए रूक गयी। मैने बालक की मां से पूछा कि आप कुछ लेंगी ? इससे पहले की उसकी मम्मी कुछ बोलती उससे पहले ही बालक बोल पड़ा हां अंकल क्रीम वाली बिस्कुट। बच्चे को गोद में लेकर मैं बस से उतर गया। चाय तो मैं नीचे ही पी लिया और खिड़की से ना नुकूर के बाद भी बालक की मम्मी को एक समोसा और चाय पकडाया। बालक के पसंद वाले बिस्कुट के दो पैकेट लेकर हम दोनें बस में सवार हो गए। बस में सीट पर बैठते ही सामान के बदले कुछ रूपए जबरन पकड़ाने लगी। किसी तरह पैसे नहीं लेने पर मैं उनको राजी किया तो पता चला कि वे आगरा दयालबाग के निकट अदनबाग में रहती है। मैने भी जब दयालबाग से अपने जुड़ाव को बताया तो बच्चे की मां सरला ने भी कहा कि उसके मम्मी पापा भी दयालबाग से ही जुड़े है। बस के चालू होते ही इस बार हमदोनों के बीच बातचीत का सिलसिला भी चालू हो गया। सरला ( जहां तक मुझे याद है कि महिला का नाम सरला ही था) ने बताया कि वह दिल्ली नगर निगम के किसी प्राईमरी स्कूल में टीचर है। ससुराल के बारे में पूछे जाने पर उसने बताया कि हमलोग में तलाक हो गया है और मैं यमुनापार के गीता कॉलोनी में रहती हूं, क्योंकि यहां से स्कूल करीब है। पति के बारे में पूछे जाने पर वह रूआंसी हो गयी। सरला ने कहा कि उसका पति कमल रेस्तरां और बार में काम करता था और नौकरी छोड़कर कॉलगर्ल बनने की जिद करता था। वो बार बार कहता था कि तू जितना एक माह में तू कमाती है, उतनी कमाई एक रात में हो सकती है। तीन साल तक मैं किसी तरह उसके साथ रही मगर जब उसने अपनी जिद्द पूरी करने और परेशान करने या फोन पर रूपयों का ऑफर देने का कॉल करने या कराने लगा तो मैं उसके अलग रहने लगी। मेरे तलाक का फैसला 1989 नवम्बर में तय हो गया। सरला ने बताया कि अब वो खुद को बेरोजगार दिखाकर मेरे वेतन से ही पैसे की मांग करने लगा है। कहा जाता है कि लड़कियों के लिए शादी एक कवच होता है, मगर इस तरह के दलाल पति के साथ रहने से तो अच्छा होता है बिन शादी का रहना या अपने नामर्द पति के चेहरे पर जूते मारकर सबको बताना कि इस तरह के पति से बढिया होता है किसी विधवा का जीवन। मैं सफर भर उसकी बाते सुनता रहा और साहस तथा हिम्मत दाद भी दिया। उसने यह भी कहा कि मेरे मकान का मालिक भी इतने सरल और ध्यान रखने वाले हैं कि दिल्ली में भी अपना घर सा ही लगता है।
मैने सरला से पूछा कि क्या तुम्हारी रिपोर्ट छाप सकता हूं ? तो वह चहक सी गयी। बस्स अपना फोटो या बच्चे की फोटो नहीं छापने का आग्रह की। उसने कहा कि मेरी जो कहानी है, ऐसी सैकड़ों लड़कियों की भी हो सकती है। मैं जरूर चाहूंगी कि यह खबर छपे ताकि पति के वेश में दलाल और पत्नी को ही रंडी बनाने वाले पति और ससुराल का पर्दाफश हो। सरला की यह कहनी चौथी दुनिया में छपी भी और इसकी बड़ी प्रतिक्रिया भी हुई। । चौथी दुनियां की 25 प्रति मैने सरला तक पहुचाने की व्यवस्था करा दिए, मगर आज 26 साल के बाद जब सरला की उम्र भी आज 54-55 से कम नहीं होगी मेरी गोद में बैठा बालक भी आज करीब 30 साल का होगा। तो बेशक इनके संघर्ष की कहानी का दूसरा पहलू आरंभ हो गया होगा । आज जब मैं 26 साल के बाद यह कहानी फिर लिख रहा हूं तो मुझे यह भरोसा है कि वे आज कहीं भी हो मगर अपनी पुरानी पीड़ाओं से उबर कर एक खुशहाल जीवन जरूर जी रही होंगी।
जिस्म के दलालों से टक्कर
यह कहानी भी यमुनापार की है। लक्ष्मीनगर के ही किसी एक मोहल्ले में तीन अविवाहित लड़कियं रहती थी और घर में केवल एक बुढा लाचार सा बाप था। इनकी मां की मौत हो चुकी थी और घर में आय के नाम पर केवल चार पांच कमरों के किराये से मिलने वाली राशि थी। मैं सभी लड़कियों को जानता था सभी मुझे अच्छी भली तथा साहसी भी लगती थी। यह कहानी सुमन (बदला हुआ नाम है) की है। घर में मां के नहीं होने के कारण यह कहा जा सकता है कि इन पर लगाम की कमी थी। मैं इसी घर के आसपास में ही किरायें पर रहता था । सारी बहनें मुझे जानती थी और यदा कदा जब कभी कहीं पर भी मिलती तो नमस्ते जरूर करती। सारी बहने हिन्दी टाईप जानती थी और मुझे किसी न्यूज पेपर में काम दिलाने के लिए कहती भी रहती थी। घर के आस पास में कई ब्यूटी पार्लर खुले थे और इनका धंधा भी धीरे धीरे पांव पसारने लगा था। एक दिन मैं घर पर दोपहर तक था और कुछ लिखने में तल्लीन था कि गली में कोहराम सा मच गया। एकाएक शोर हंगामा और मारपीट तोड फोड़ की तेज आवाजों के बीच मैं बाहर निकलने के लिए कपड़े बदलने लग। तभी जोर जोर से सुमन की आवाज आने लगी। मैं थोड़ा व्यग्र सा होकर जल्दी से बाहर भागा। एक ब्यूटीपार्लर के बाहर हंगामा बरपाया हुआ था। सुमन के हाथ में झाडू था और वह किसी रणचंडी की तरह ब्यूटीपार्लर की मालकिन के सामने खड़ी होकर उसकी बोलती बंद कर रखी थी। गली के ज्यातर लोग भी सुमन के साथ ही थे मगर एकाएक ब्यूटीपार्लर को कबाड़ बना देने का माजरा किसी को समझ नहीं आ रहा था। ब्यूटीपार्लर की मालकिन सुमन के साथ अब भिड़ने लगी थी और बार बार पुलिस को बुलाने का धौंस मार रही थी। इस पर मैं आगे बढा और पूरी बात जाने बगैर ही बीच में टपक सा पड़ा। सुमन को पीछे करके मैने भी धौंस दी कि कि मामला क्या है यह तो अभी पता चल जाएगा मगर तू बार बार पुलिस का क्या धौंस मार रही है। तू पुलिस बुलाती है या मैं फोन करके पुलिस को यहां पर बुलाउं। मेरे साथ कई और लड़के तथा बुजुर्गो के हो जाने के बाद ब्यूटीपार्लर वाली आंटी अपने कबाड़ में तब्दील पार्लर को यूं ही छोड़कर कहीं खिसक गयी। तीनों बहन गली मे ही थी। मैने तीनो को घर में जाने को कहा, मगर वे लोग गली मे लगे मजमे के बीच ही खड़ी रही। थोडी देर के बाद जब मेरी नजर इन तीनों पर पड़ी तो सबसे बड़ी बहन को डॉटते हुए कहा कि इस तमाशे तो खत्म कराना है न तो जाओं सब अंदर और हाथ पकड़कर तीनो बहनों को घर के भीतर धकेल कर बाहर से दरवाजा लगा दिया। थोड़ी देर तक बाजार गरम रहा। सबों को इतनी सीधी लड़की के एकाएक झांसी की रानी बन जाने पर आश्चर्य हो रहा था। मैने भी कहा कि कोई न कोई बात गहरी है तभी यह लड़की फूटी है, मगर हम सबलोगों को सुमन का साथ देना है, क्योंकि हमारे गली मोहल्ले और घर की बात है । इस पर हां हां की जोरदार सहमति बनी और यह तमाशा खत्म हुआ। गली की ज्यादातर महिलाओं ने सुमन के हौसले की सराहना कीऔर यह जानने की पहल की आखिरकार माजरा क्या था अपने घर में ही सुमन ने सभी महिलाओं को बताया कि यह आंटी जबरन रंडी कॉलगर्ल बनाना चाहती थी। नौकरी के नाम पर कभी कभार पैसे देने लगी थी तो जबरन ब्यूटीपार्लर में चेहरे को भी ठीक कर देती थी, यह कहते हुए कि तेरा उधार हिसाब लिख रहीं हूं और नौकरी मिलते ही सब वसूल लूंगी।
काफी देर तक उसके घर पर गली मोहल्ले की औरतों का मजमा लगा रहा। मैने भी तमाम महिलाओं से यह निवेदन करके ही बाहर निकला कि आप सबको इसका साथ देना हैं, क्योंकि यह आंटी तो हमलोगों के घर की ही किसी लड़की पर घात लगाएगी। मेरी बात पर सबों ने जोरदार समर्थन किया। मैने तीनों को आज घर से बाहर किसी भी सूरत में नहीं निकलने की चेतावनी दी। पता नहीं गली के बाहर या कहीं उसके लोग हो। मेरी बात पर सहमति प्रकट की तो मैं घर से बाहर निकल गया। खराब मूड को ठीक करने के लिए दोपहर के बाद मैं अपने एक पत्रकार मित्र राकेश थपलियाल के घर चल गया और दो एक घंटे तक बैठकर फिर वापस आकर सो गया। राकेश को सारी बातें बताकर मैने कल सुबह कमरे पर आने को कहा.
बाहर से खाना खाकर जब मैं रात करीब 10 बजे अपने कमरे पर लौटा। कुछ पढ़ने के लिए किताब या किसी रिपोर्ट को खोज ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवज खोलते ही देखा कि तीनों बहनें खड़ी है। मैं कुछ बोलता उससे पहले ही सुमन ही बोल पड़ी आप मेरे घर पर आओ भैय्या आपको कुछ बतान है। मैं चकित नहीं हुआ। मुझे पता था कि वह अपना राज खोलेगी, मगर मेरे से यह बोलेगी इसका तो मुझे भान तक नहीं था। मैने उनलोगों को घर पर जाने को कहा कि मैं अभी आया। उसके घर में जाते ही मैने कहा कि खाना खा चुका हूं लिहाजा चाय नहीं बनाना प्लीज। घर में उसके पापा समेत तीनों बहनें खुलकर समर्थन करने के लिए हाथ जोड दी। यह देखकर मैं बड़ी शर्मिंदगी सा महसूसने लगा और कहा कि यह हाथ जोडने वाली बात ही नहीं है। तुमलोग सामान्य रहो, मगर अभी थोडा संभलकर सावधान रहो क्योंकि आंटी अपने साथ कुछ आदमी को लेकर कल आ सकती है। उसके पाप मेरे पास आकर विनय स्वर में बोले कि कल आप घर पर ही रहें ताकि हमलोग का मनोबल बना रहे। मैने उनके हाथ को पकड़ लिया और कल घर पर ही रहने का भरोसा दिया। इस पर सुमन बोल पड़ी भैय्या तुम तो खुद एक किरायेदार हो और पता नहीं आगे कहां चले जाओगे, मगर जिस हक के साथ आज तुम मेरे साथ खड़े हो गए उसको मैं सलाम करती हूं। कोई अपना भी इस तरह बिना जाने सामने खड़ा नहीं होता। मैं इस परिवार की कृतज्ञता व्यक्त करने पर ही बडा असहज सा महसूसने लगा। इसके बाद सुमन बोल पड़ी आप पर मुझे भरोसा है भैय्या इस कारण आज की घटना क्यों हुई है यह आपको बतान चाहती हूं। मैं बड़ा हैरान परेशान कि क्या बोलूं। मैने कहा कि कहानी बताने की कोई जरूरत नहीं है सुमन मैं तो तुमको जानता हूं और मुझे पूरा भरोसा है कि इसमें तेरी गलती हो ही नहीं सकती। इसके बावजूद वो अपनी कहानी बताने के लिए अडी रही।
मैं उसके साथ कमरे में था। उसने बताया कि यह आंटी किस तरह इस पर डोरे डाल रही थी। नौकरी दिलाने का भरोसा दे रही थी और करीब एक माह पहले उसने 1500 रूपये भी दी थी। अचानक एक दिन वो बोली तेरी नौकरी वेलकम करने की रहेगी, जो लोग बाहर से गेस्ट आएंगे, तो उनके साथ रहने की नौकरी। माह में ज्यादा से ज्यादा चार पांच बार गेस्ट का वेलकम करने की नौकरी। उसने बताया कि करीब 20 दिन पहले यह आंटी मुझे लेकर एक कोठी में गयी और वो दूसरे कमरे में बैठी रही। मुझे कमरे के अंदर भेजा। जहां पर थोडी देर तक तो सारे शरीफ बने रहे मगर ड्रीक में कुछ मिलाकर मेरे साथ खेलने लगे और इसे आप मेरा रेप कहो या......जो भी नाम दो मेरे साथ हुआ। यह कहते हुए वह अपना चेहरा छिपाकर रोने लगी। फिर शांत होते हुए बोली कि जब मैं कमरे से बाहर निकली तो यही आंटी बाहर थी और मैं इनसे लिपट कर रोने लगी। तब मेरे पर्स में एक हजार रूपये डालती हुई बोलने लगी होता है होता है दो एक बार में झिझक खत्म हो जाएगी। और मेरे को एक ऑटो में लेकर मुझे घर तक छोड़ दी। मैं कई दिनों तक इसी उहापोह में फंसी रही कि आगे क्या करना है। मैं बाद में इसी निष्कर्ष पर आकर टिक गयी कि इस दलाल आंटी को बेनकाब करना है। इसके बाद वह तुरंत बोली कि रेप की घटना को छिपाकर मैने केवल आंटी पर रंडी बनाने के लिए फंसाने का आरोप लगाया है। और जब आप मेरे साथ खड़े हो तो आपको यह बताना जरूरी था। मैं कमरे में खड़ा होते हुए उसके हाथों को पकड़ लिया। मेरे मन में तेरे लिए इज्जत और बढ़ गयी है सुमन । आगे हमलोग इस घटना को छिपाकर केवल उसकी चालबाजियों को ही खोलना है। वह भैय्या कहती हुई मुझसे लिपट गयी। आप मेरे साथ खड़े हैं तो कोई मेरा बिगाड़ नहीं सकता भैय्या। मैने उसके कहा आंसू पोछ दे और हमलोग कमरे से बाहर निकल गए। तो उसकी दो बहने तथा पापाजी चाय के साथ मेरा इंतजर कर रहे थे।
इस घटना के अगले दिन बड़ा धमाल हुआ। अपने कई गुर्गो के साथ आंटी एक बार फिर गली में अवतरित हुई। और गली से ही नाम लेते हुए उनके गुर्गो चुनौती देने लगा। एक रणनीति के साथ हमलोग बाहर निकले तो मुझे देखते ही आंची ने अपने गुर्गो को आगाह किया। अपने साथ एक दर्जन लड़को और दर्जनों महिलाओं की ताकत थी। इस भीड़ को देखकर उसकी टोली सहम सी गयी मगर जुबानी बहादुरी बघारने लगी। चल बाहर निकल कर दिखा तो मैं यह कर दूंगा वह कर दूंगा। इस पर मैं आगे बढा और आंटी को बोला कि इन कुतो को लेकर चली जाओ। तू पुलिस बुलाएगी हमलोग ने तो तेरे खिलफ कल ही एफआईआर भी करा दिया है । और यह भी अगर कोई हमला या मारपीट होती है तो यह तुम्हारे कुत्तो काम होगा। तू कहां भागेगी उन हरामजादों का स्केच भी बनवा लिया है और जिस कोठी में गयी थी न उसका पता भी मिल गया है। साली तेरे साथ साथ तेरे तमाम ग्राहको को भी भीतर ना कराया तो देख लेना। अखबार में खबर छपेगी सो अलग। लड़कियों को रंडी बनाने का धंधा चलाती है। मैने जोर से आवाज दी सुमन जरा एफआईआर की कॉपी तो लाना इन लोगों को पहले भीतर ही करवाते है। लाना जरा जल्दी से लाना तो । मेरे साथ दर्जनों युवकों की एक स्वर में मारने पीटने के बेताब होने का अंदाज ने उनके हौसले को ही तोड़ दिया। गली के युवको ने सारे लफंगों को काफी दूर तक खदेड़ दिया। इसके बाद गली के कई बुजुर्गो ने इनके खिलाफ पुलिस में रपट दर्ज कराने पर सराहना करने लगे और इस तरह ब्यूटी पार्लर की आड़ में जिस्म की धंधा करने वाली एक दलाल को सब लोग ने मिलजुल कर भगा दिया। और मेरे झूठ पर तीनों बहने पेट पकड़ पकड़ कर हंसने लगी कि वाह भैय्या कुछ किए बिना ही रौब मर दिए। ये तीनो बहने अब कहां कैसी और किस तरह रह रही है। यह मैं नहीं जानता, मगर उसकी बहादुरी आज भी मन में जीवित है । कभी कभी खुद पर भी बेसाख्ता हंसने लगता हूं कि इतना हिम्मती और रौब दाब गांठने वाला नहीं होने के बाद भी यह कैसे कर गया।

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