गुरुवार, 8 सितंबर 2016

मेरे जीवन के कुछ इडियट्स- 7/ अनामी शरण बबल



अनामी शरण बबल 
दिल्ली में पांच ब्लॉक होते थे। जिनके अंदर लगभग 200गंव आते हैं। (यूं तो दिल्ली में 364 गांवों का इतिहास रहा है, मगर विकास की आंधी में कुछ गांव पूरी तरह खत्म हो गए तो कुछ केवल डीटीसी बस स्टॉप के नामों में सिमट कर रह गए। हर साल इन गांवों के नाम पर एक हजार करोड़ रूपयों की बंदरबॉट होती है और फाईलों में ही अनगिनत काम पूरा हो जाते हैं। 

खुद गांव से होने के नाते मेरे मन में गांवो को लेकर अजीब तरह का लगाव और आर्कषण रहा है। यह बात 1995 की है। मोरी गेट कोर्च में मैं अपने एक मित्र मेद सिंह के पास बैठा था। मेद डी मुझे आज तक बबल सेठ ही कहते है। उनसे गांवों की बदहाली और ग्राम सभा की सैकड़ों एकड़ जमीनों पर अवैध कब्जें की खबरें भी मुझे मिलती रहती थी। मेद सिंह इसी मामले के वकील थे। उन्होने मुझे मोरी गेट के उपरी तल पर बने पंचायत निदेशक से जाकर मिलने की सलाह दी।

मैं भी उस समय खाली था।  दूसरे ही पल मैं पंचायत निदेशक डी.आर.टम्टा के दफ्तर के बाहर था। कार्ड अंदर भेजा तो अगले ही पल मुझे अंदर बुला भी लिया। सामान्य शिष्टाचार और परिचय के बाद जब मैने बातचीत शुरू की। हां इस बीच निदेशक टम्टा ने चाय का आदेश भी दे दिया था। मेरे कार्ड को लेकर एकदम दार्शनिक अंदाज में टम्टा ने कहा मैं किसी मीडिया की परवाह नहीं करता । मेरे नाम को कार्ड पर देखकर फिर टम्टा बोले आपका नाम तो बहुत सुदंर और अलग है, पर आपके मन में जो आए बिना पूछे लिख सकते है। निदेशक की बेबाकी और नीडरता को देखकर मैं चकित सा था। एकदम आपको सबकुछ लिखने की छूट मैं दे रहा हूं अनामी । जो मन में आए लिख देना । जरा मैं भी देखूं कि कौन मीडिया वाला कितना लिख सकता है। निदेशक के तेवर को देखकर मैने भी अपनी कॉपी किताब बंद कर ली। मैने टम्टा से कहा कि यह बहुत बड़ा चैलेंज दे रहे हो । इस पर लगभग बौखलाते हुए कहा कि मैं नहीं डरता। मैने फिर कहा कि इतना साहस तो मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा भी मीडिया के सामने नहीं कर सकते। इस पर एक गाली निकालते हुए टम्टा ने कहा मैं इन मादर....की परवाह ही नहीं करता और मुझे कौन सा इलेक्शन लड़ना है। अपनी सरकारी नौकरी है जिसे कोई खा नहीं सकता । और ये नेत तो पांच साल बाद फिर सड़क छाप ही रहेंगे। पंचायत निदेशक की बातें मेरे लिए एकदम चैलेंज सा था। मैने उनकी साफगोई और हिम्मत की दाद दी मगर यह भी आगाह किया इस बार आपका पाला अनामी से हैं मैं भी आपको मीडिया की ताकत दिखाकर गुमान न तोड़ा तो आप भी क्या याद करोगे टम्टा जी । 

इस बीच चाय भी आ गयी। इस प्रकरण को बंद करने के नाम पर टम्टा बोले छोडो ये सब तो कल की बातें हैं कि क्या होगा, अभी तो आप मेरे साथ टी लीजिए। अपने बैग को संभालते हुए मैं खड़ा हो गय। मेरे खड़ा होने से वे दंग रह गए और कहा प्लीज टी। मैने कहा टम्टा जी अब कैसी चाय? मुझे तो मीडिया की लाज रखनी है। एकदम गांठ बांध ले कि मैं भी बहुतों के बीच आपकी नाक नहीं काटी तो उसी दिन ई पत्रकारिता छोड़कर चाय बेचना चालू कर दूंगा, यह आप जरूर याद रखना। बात मीठे गरम तेवरों के साथ खत्म हो गयी। निदेशक टम्टा ने बैठे बैठे ही अपना हाथ आगे कर दिया। मैने तुरंत हंसते हुए कहा कि मै बैठे हुए लोगों से हाथ नहीं मिलाता, या तो खड़ा हो नहीं तो अपना चैलेंज तो है ही। तब कहीं जाकर टम्टा ने अपनी कुर्सी छोड़ी और हाथ मिलाया। कमरे से बाहर निकल मैं मोरीगेट कोर्ट की तरफ चल पड़ा

मैं एक बार फिर अपने मित्र मेद सिंह के पास था। उसने चहक कर कहा हो गयी बात। मैने टम्टा से हुई बात का पूरा ब्यौरा सुना दिया। मैने कहा मेद भाई अब तुम्हारे छोटे भाई की इज्जत तेरे हाथ में हैं । खड़ा होकर मेरे को गले से लगाते हुए मेद सिंह ने कहा बबल सेठ अरे चिंता किस बात की। हमलोग मिलकर उसको सूर्पनखा बनाएंगे। तीन चार स्टोरी के फौरन दस्तावेज और कॉपी निकाल कर मुझे स्टोरी समझाते हुए दे दी। जिसमें पंचो और ग्रामप्रधानो द्वारा ग्राम सभा की सरकरी जमीन बेचने का मामल था। इसी मीटिंग में तय हुआ कि सोमवार और शुक्रवार को इसी कोर्ट में हर सप्ताह मिलेंगे और निदेशक टम्टा का मिलजुल कर चीरहरण करेंगे। 

फिर तो जो धुंआधार खबरों की ऐसी रेल चली कि किसी किसी दिन तो ग्रामसभा की गड़बड़ियों की तीन तीन खबरें छपने लगी। पंचायतों की लापरवाही और ग्राम प्रधानों और पंचों के कारनामों घोटाले की झड़ी लगा दी। सभी खबरो के अंत में मैं यह जरूर लिखता कि पूछे जाने पर पंचायत निदेशक ( नाम जरूर देता था) ने अनभिज्ञता प्रकट की या कभी खबर में श्री टम्टा ने कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया या फिर किसी किसी खबर में यह भी लिख देता था कि निदेशक टम्टा ने बताया कि इस मामले की जांच हो रही है। आदि इत्यादि। उधर पंचायत निदेशालय में आग लगी थी। विकास मंत्री का भी प्रभार संभाल रहे मुख्यमंत्री साहिव सिंह वर्मा ने भी कई बार टम्टा को अपने दफ्तर में बुलाकर भला बुरा कहते हुए सफाई मांगी। जवाब तलब किया। मगर एक बात माननी होगी या दाद देनी होगी कि निदेशक टम्टा ने कभी भी फोन करके खबरों को रोकने या उस पर अपनी आपत्ति जाहिर नहीं की ।
 इसी बीच 1996 में लोकसभा चुनाव हुआ। भाजपा के छह उम्मीदवार छह संसदीय क्षेत्रों से चुनाव लड़ रहे थे। मगर बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र से वरिष्ठ नेता कृष्ण लाल शर्मा के लिए पूरी पार्टी लगी हुई थी। बाहरी दिल्ली से ही आने वाले मुख्यमंत्री की भी इससे लाज जुड़ी थी। एक लाख 98 हजार वोट से कांग्रेस के दिग्गज सांसद सज्जन कुमार को भाजपा के शर्मा जी ने पराजित कर दिया । जीत की खुशी में मुख्यमंत्री ने तमाम पत्रकारों को पार्टी दी थी। मैं भी मुख्यमंत्री के पास ही बैठा था कि एकाएक कहीं से पंचायत निदेशक टम्टा प्रकट हुए और अपना सिर मुख्यमंत्री की गोद में छिपाकर सुबकने लगे। एकाएक इतने सीनियर अधिकारी के इस तरह रोने से मुख्यमंत्री भी अवाक रह गए। उन्होने टम्टा को सांत्वना देते हुए जिज्ञासा प्रकट की। टम्टा ने मेरी तरफ संकेत किया और बोले मुझे इस भूत से बचाइए। ये न मुझसे बात करते हैं और कोई बात सुनते हैं और मेरा नाम दे देकर मुझे कही का नहीं रहने दिया है। मैं भी तुरंत खड़ा हुआ और जोश में कहा कि झूठा कहीं का। मुझे तो जूते निकल कर तुम्हें मारना चाहिए पर मैं सीएम का लिहाज कर रहा हूं। मैने फौरन सीएम स्री वर्मा से कहा ये साला तो आपकी मां को गाली दिया था। पूछिए न क्या मैं झूठ बोल रहा हूं। इसने मुझे खुला चैलेंज दिया था कि मैं मीडिया की परवाह नहीं करता जो मन मे आए जितना लिखना है लिखते रहो। मेरा प्रवचन जारी रहा और इसके चैम्बर में ही मैने कहा था कि यदि मीडिया की लाज नहीं रख सका तो पत्रकारिता छोड़कर चाय की दुकान लगा लूंगा। टम्टा के सामने आकर मैने पूछा ये बातें याद हैं आपको कि हुई थी न ? सुबकते हुए टम्टा चेहरा लटकाए खामोश खड़ा रहा। तब सीएम वर्मा ने उससे कहा जरूर तेरी गलती होगी मैं अनामी को सालों से जानता हूं वो बिना आग लगे इतना बौखला ही नहीं सकता। 

पार्टी का खुशनुमा माहौल फिर सामान्य सा हो चला था। मायूष खड़े ट्म्टा के पास मैं खुद गया और कहा कि चलो यार जब चैलेंज ही खत्म हो गयी तो फिर शिकवे गिले भी छोड़ो। मेरे अनुरोध के बाद भी वे वहीं खड़े रहे तो मै भी टम्टा से अलग होकर पार्टी और अपने दोस्तों में खो गया। बाद में जब मुझे अखबार में बतौर बीट परिवहन मंत्रालय दी गयी तो मैं संभवत अप्रैल 2003 में किसी एक दिन दिल्ली परिवहन निगम के मुख्यालय में गया। सामने डी. आर टम्टा का बोर्ड टंगा था । मैने मिलने की कोई पहल नहीं की,। उनका पहले ही ट्रांसफर हो चुका था। अगली दफा जाने पर पर मालूम चला कि वे दिल्ली सचिवालय में चले गए हैं।

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