गुरुवार, 12 मई 2022

रिश्ते ही रिश्ते वाले प्रो.. अरोड़ा / अनामी शरण बबल

 वाह प्रो. अरोड़ा 🙏🏿. 1984 में जब पहली बार मैं दिल्ली के  लिए चला तो कालका मेल के साथ सफर  आरंभ किया औऱ मुग़ल सराय में सुबह हो गयी. इसके बाद शाम होते होटे टूंडला स्टेशन  पार किया. यूपी के न जाने कितने स्टेशन गांव देहात शहर से रेल गुजरती रही मग़र रेल पटरियों के करीब के दीवारों पर केवल एक ही  विज्ञापन लिखा देखा. रिश्ते  ही रिश्ते  प्रो. अरोड़ा 28 रैगर पूरा delhi 110055 रेल में बैठा मैं बिस्मित प्रो अरोड़ा की प्रचार शैली पर मुग्ध था.


 पहली बार दिल्ली आ रहा था मगर दिल्ली आने से पहले ही मेरे लिए एक हीरो की तरह प्रो. अरोड़ा का उदय हो चुका था. दिल्ली में बैठे एक आदमी की ताक़त औऱ काम के फैलाव क़ो लेकर मैं अचंभित सा था. उस समय मेरी उम्र 19 साल की थी लिहाज़ा समझ से अधिक उमंग  उत्साह भरा था. प्रो अरोड़ा औऱ विवाह का यह स्टाइल दोनों मेरे लिए नये थे. प्रो. अरोड़ा से मिलने  इंटरव्यू करने की चाहत मन में जगी थी मगर पहली बार दिल्ली जाने औऱ उसके भूगोल से अनजान  मैं इस चाहत क़ो मन में ही दबा सा दिया,


अलबत्ता मेरे दिमाग़ पर प्रो. अरोड़ा छा  गये थे. राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग़ के करोलबाग़ ब्रांच का सतसंग हॉल के ऊपर वाले गेस्ट रूम मेरा पहला पड़ाव बना था. अगले दिन सुबह सुबह दिल्ली का मेरा दोस्त अखिल अनूप / अब ( अनूप शुक्ला ) भगवान दास मोरवाल के साथ मिलने आ गया.


 उल्लेखनीय है कि करीब 30-32'साल के बाद पालम गांव के अपने घर पर मोरवाल जी ने बताया कि अखिल के साथ मैं ही मिलने करोलबाग़ आया था.  यह सुनकर मैं खुश भी हुआ औऱ अफ़सोस  भी यह हुआ कि उस समय मैं मोरवाल जी क़ो जानता भी नहीं था.


 हा तो मैं करोलबाग़ के 28  के एकदम पास मे ही टिका था तो यह जानते ही दोपहर के बाद अपने पड़ोसी प्रो.  अरोड़ा के घर के बाहर  काल बेल बजा कर खड़ा था. घर सामान्य सा ही था तभी दरवाजा खुला औऱ एक अधेड़ सा आदमी ने दरवाजा खोला. नमस्कार उपरांत मैंने कहा  मैं अनामी शरण  बबल  पत्रकार, देव औरंगाबाद बिहार से आया हूँ.. दो दिन पहले ही पहली बार दिल्ली आया औऱ मुगलसराय के बाद से लेकर दिल्ली तक दीवारों पर लिखें आपके विज्ञापनो क़ो देखते देखते आपसे मिलने कि चाहत हुई.


मेरी बातों क़ो सुनकर वे  खिलखिला कर हंस पड़े औऱ तुरंत मुझे अंदर आने के लिए कहते हुए रास्ता छोड़ दी. विदेशो में भी शादी कराने का दावा करने वाले प्रो. अरोड़ा  ने बताया कि इनके माध्यम से विवाहित  कुछ जोड़े विदेशो में भी है औऱ उनकी मदद से ही कुछ विदेशी जोड़ो कि भी शादियां हुई है लिहाज़ा विज्ञापन कि शब्दावली में विदेश भी जुड़ गया.


सहज सरल मीठे स्वभाव के प्रो. अरोड़ा से कोई एक घंटे तक बात की इस दौरान उन्होंने चाय औऱ नाश्ता भी कराया.  मैंने उनसे कहा भी की ट्रेन यात्रा के  दौरान आप मेरे दिमाग़ पर हीरो की तरह छा गये थे मगर आपसे मेरी मुलाक़ात होगी यह सोचा नहीं था. मेरी बातें सुनकर वे खुश होते मुस्कुराते सहज भाव से अपने बारे में बताते.  मैं विज्ञापनो के इस राजकुमार प्रो अरोड़ा की सरलता पर चकित था दिल्ली से बिहार लौटने के बाद प्रो. अरोड़ा  के इंटरव्यू क़ो कई अखबारों में छपवाया. ढेरों लोगों क़ो प्रो. अरोड़ा के बारे में बताया. प्रो. अरोड़ा  के पास सारे कतरन भेजा. कई पत्रचार भी हुए औऱ अक्सर धन्यवाद ज्ञापन के पत्र मेरे पास आए, जिसमें दिल्ली आने पर मिलने के लिए वे जरूर लिखते थे.

  जुलाई 1987  से तो मैं दिल्ली में ही आ गया औऱ 1990  से दिल्ली का ही होकर दिल्लीवासी या डेल हाईट हो गया.  मगर प्रो. अरोड़ा से फिर कभी मिल नहीं सका.  विवेक जी आपने प्रो. अरोड़ा पर लिख कर दिल्ली की पहली यात्रा के साथ साथ उनसे हुई 37 साल पहले की मोहक यादों क़ो जिंदा कर दिया  बहुत सुंदर लिखा है आपने औऱ कमैंट्स लिखने के बहाने मैंने भी प्रो. अरोड़ा पर  पूरा रामायण अंकित कर दी.  वाह शुक्ला जी गज़ब ✌🏼👌👍🏼

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