प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल-8
सावधान। सोनिया जी का भारत पधार चुकी है
जिस तरह दबे पांव कांग्रेस की मुखिया सोनिया गांधी विदेश गई थी, उसी तरह दबे पांव (देर रात को ) सन्नाटे में वे अपना इलाज आपरेशन और कैंसर रोग से निजात पाकर भारत लौट आई है। जाने से पहले संसद और अन्ना हजारे का हंगामा होना था। और जब लौटकर आ गई है तो ठीक आने से पहले आतंकवादियों ने स्वागत में आतिशबाजी में बम फोड़कर स्वागत कर दिखाया है। मैडम के आने के साथ ही अब अस्पताल में मरीजों को देखने की बजाय दर्शनार्थ चंपूओं की दरबार में हाजिरी लगने लगेगी। मैडम द्वारा देश का हाल चाल लेने के बाद उठापटक का दौर शुरू होगा। अन्ना आपरेशन मे पार्टी की पिटी भद्द पर मनमोहन टीम की पेशी होगी और खासकर विकिलीप्स के फॅारकास्ट पर मंथन भी होगा। हालांकि यूपी चुनाव को देखते हुए बाबा जी फिर मना करेंगे, मगर लगातार बढ़ते प्रेशर को देखते हुए मैडम को ही यह फैसला करना है कि मन साहब के डूबते पतवार को बाबा को सहारा मिलेगा या बसपा के आगे पार्टी को बर्बाद ही रखा जाएगा। मैडम की सारथी के तौर पर भाई बहनों की जोड़ी को अब प्ले ग्राउंड में उतारने का प्रेशर सिर बोलने लगा है। हालांकि मन साहब के साथ मलाई चाट रहा एक गुट इसका खिलाफत करेगा, मगर खुलकर तो खिलाफत करने की हिम्मत आज तक किसी कांग्रेसी ने कभी ना की है ना करेगा।
कहीं यह प्रायोजित बिस्फोट तो नहीं
राजनीति में कुछ भी संभव है। हालांकि इसका मेरे पास कोई ना सबूत है और ना ही कोई प्रामाणिक तथ्य ही है। मगर आम लोगों की चर्चाओं में नागरिकों का यह संदेह भी लगातार गहराता जा रहा है कि यह विस्फोट हुआ है या कहीं कराया तो नहीं गया है? पिछले दिनों कई मुद्दों से परेशान यूपीए सरकार सब पर से अपनी सुप्रीमो और जनता का ध्यान हटाने के लिए कहीं यह प्रायोजित विस्फोट तो नहीं है। ज्यादातर लोग तो इसी आरोप से मन सरकार को लांछित कर रहे है। ज्यादातर लोगों का कहना है कि सबूत नष्ट हो गए। पुलिस समेत तमाम खुफिया एजेंसियों के हाथ कुछ मिल नहीं रहा है। अन्ना प्रकरण से अपनी भद्द करवा चुकी मन सरकार के सामने नाना प्रकार की चुनौतियां है। जिसके सामने सरकार बौनी साबित होती दिख रही है। मुझे पूरा यकीन है कि शायद जनता में अविश्वसनीय बन गई मन सरकार के प्रति लोगों की यह धारणा गलत हो, मगर 48 घंटे गुजर जाने के बाद भी हमारी तमाम कमांड़ो और सतर्क एंजेंसियों की नाकामी से यदि सरकार पर लोगों का संदेह पक्का ही होता जा रहा है तो उसके लिए कमसे कम मैं तो बिल्कुल जिम्मेदार नहीं हूं। क्यों मन साब है ना ?
मन साब की ईमानदार स्वीकृति
हमारे ईमानदार(?) प्रधानमंत्री मन साहब हमेशा सच और सही बोलते है। जैसा कि इस बार के बम फूटने पर भी कह ही दिया कि हम देख रहे है और आंतकवादियों से निपटने की कोशिश कर रह है। कायरों (?) के मंसूबों को कभी भी सफल नहीं होने दिया जाएगा। हम पूरी तरह इनसे निपटने में सक्षम है(?)। हमारी खुफिया एजेंसी और पुलिस कार्ऱवाई कर रही है और आतंकवादी ज्यादा देर तक सलाखों से दूर नहीं रह सकेगं। इसी तरह मानों बच्चों को स्कूल भेजने से पहले कोई मां द्वारा दी जाने वाली बच्चों को सीख का पाठ पढाते हुए मन साहब देश वासियों को जरा भी परेशान और चिंता नहीं करने की सलाह दे रहे थे। पीएम द्वारा देशवासियों को उल्लू बनाते देखकर मेरा मन बार बार यही सवाल कर रहा था कि यह बंदा किसको मूर्ख बना रहा है? हर बार कांग्रेसियों द्वारा मन मोहन की ईमानदारी का प्रवचन सुनकर मेरे मन में यही सवाल उठ कि इसे और कितने दिनों तक झेलना पड़ेगा ? इससे ज्यादा अच्छा तो शायद बाबा ही रहता, जो कम से कम युवा और ताजा है। मगर मन साहब इस तरह कुर्सी से चिपके या चिपकाये गए है कि पता नहीं क्यों अब इनकी ईमानदारी भी खटकने लगी है।
बम ब्लास्ट के बाद
आतंकवादियों ने दिल्ली हाई कोर्ट के रिसेप्शन पर धमाका करके नेताओं की नींद हराम कर दी। एक बार फिर अपने गृहमंत्रीजी ने बंदूक तानकर खुद को बेगुनाह और पुलिस और तमाम सुरक्षा एजेंसियों के निकम्मेपन को कोसने लगे। सांप के जाने के बाद लकीर पीटने की कहावत को सही करते हुए पुलिस और तमाम खुफिया एजेंसियों ने सूत्र तलाशने की कार्रवाई चालू कर दी है। कोई कुतो की मदद ले रहा है तो कोई कूडेदान तलाश रहा है। कोई स्केच बना रहा है तो कोई आतंकवादियों की सूचना देने पर लाखों रूपये के ईनाम की घोषणा कर रहे है। यानी अंधे के हाथ लगा बटेर की तरह सारे लोग अपनी सक्रियता और चुस्ती का पुलिंदा बांटने में लगे है। कोई मुआवजे की घोषणा कर रहा है तो कोई फल सब्जी लेकर हमदर्दी जताने में लगा है। हमारे नेता इसे कायराना हरकत बता कर देख लेने की चुनौती उछाल रहे है। यानी मरने वाला तो मर गया घायलों की हालत कैसी है यह किसी से छिपा नहीं है। मगर कोई भी नेता या नौकरशाह जिम्मेवारी लेने की बजाय नौटंकी करने में व्यस्त है। और संसद के इसी सत्र में अपने मियां मिठ्टू बनने वाले गृहमंत्री को क्या इससे कोई शर्म आएगी कि इन तमाम घटनाओं की पहली नैतिक जिम्मेदारी(अगर नैतिकता कांग्रेसियों में हो) उनकी ही बनती है। चिंदबरम के कार्य़काल में छह हमले हो चुके है। क्या इस छक्के पर चिंदबरम साहब कोई एंजाय पार्टी करना पसंद करेंगे ?
ऐसा तो बाबा ने सोचा ही नही
दिल्ली में बम ब्लास्ट क्या हो गया कि अपने एयरकंडीशन में बैठकर देश की चिंता करने वाले नेताओं को घर से बाहर निकलना पड़ा। आमतौर पर दिल्ली से परहेज करने वाले राहुल बाबा भी इस बार राम मनोहर अस्पताल में जाकर मरीजों को देखने का लोभ नहीं छोड़ सके। अपने लाव लश्कर के साथ बाबा की सवारी टेसूएं बहाने बस पहुंचने ही वाली थी कि अस्पताल के बाहर खड़े गुस्साए लोगों ने राहुल को देखते ही जमकर नारेबाजी करने लगे। अपने खिलाफ माहौल को देखकर भौंचक्क रह गए बाबा ने तो सोचा ही नही था कि लोग उनका इस तरह स्वागत करेंगे। चेहरे की सारी लाली उड़ गई। टीम बाबा के लोगो के चेहरे पर हवाईयां उडने लगी और सच तो ये है कि मरीजों को देखना बस एक नाटक था मगर राहुल के रक्षकों को अब बाबा की सुरक्षा की चिंता सताने लगी कि बाबा के खिलाफ चारो तरफ लोग यदि इसी तरह हाय-हाय करने लगे तो बाबा की राजनीति का क्या होगा भगवान ?
सावधान, फिर करेंगे आडवाणी रथयात्रा
अगर आप लोगों की याद्दाश्त ज्यादा बुरी नहीं होगी तो श्रीमान लाल कृष्ण आडवाणी की 1992 में की गई राम जन्म मंदिर रथयात्रा की याद जरूर होगी। जी हां वही यात्रा जिसमें लरजते गरजते और बरसते हुए लालजी ने राम मंदिरके ना पर बाबरी मस्जिद को नेस्तनाबूद करवा के ढाह दिया। लालजी ने लोगों को इतना लाल करके लाल पीला यानी भड़काया कि बस पूरा देश पूर्वप्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की नपुंसकता (आज के मनमोहन भी उसी तरह शँट हो रहे है) बनी रही और बाबरी मस्जिद पर हमला करके गिरा दिया गया। करप्शन पर पहले रामदेव और बाद में अन्ना हजारे ने हंगामा करके यह जता दिया कि इस मुद्दे में अभी काफी जान बाकी है दोस्तो। अगले साल यूपी में चुनाव है। माया के सामने कमल का खिलना मुश्किल है। नोट4वोट में बीजेपी के कई सासंद सरकारी ससुराल (तिहाड) में आराम फरमा रहे है। इस बार यूपी में सत्ता दिलाने और बीजेपी में अभी भी खुद को सुपर पावर बताने दिखाने और साबित करने के लिए ही लालजी रथ यात्रा की घोषणा करके लोगों को दहशत में डाल दिया है। मगर जमाना बदल गया है लालजी। पार्टी में ही कोई नहीं देना चाहेगा सुप्रीम बनने का मौका। फिर लालू तो थोडा शरीफ थे कि बस पकड़ कर ही वाहवाही लूट लिया, मगर माया इतनी शरीफ नहीं है। फिर आपकी उम्र में भी 20 साल का इजाफा हो गया है। रथयात्राओं के लिए खासे इतिहास के काले पन्नों में दर्ज होने की बजाय लाल पीला ही होकर सबर कर ले। फिर कभी आपके मुखिया रहे बंगारू जी तो नोटों के साथ रंगोली खेलते हुए इस तरह दिखे कि आप इस मुद्दे को बस मुद्दा ही रहने दे। अन्ना या रामदेव ना ही बने तो बेहतर है और इसी में आप सबकी भलाई भी है।
कैग की आंच में पटेल
अटल बिहारी के राज में नागर विमानन मंत्री रहे कमल स्वरूप कमल छाप के हीरो लूक वाले यंग नेता और मंत्री रहे प्रफुल्ल पटेल ने भी अपने मंत्रालय में कम घपले नहीं किए। हवाई जहाज खरीदने के नाम पर सैकड़ों करोड़ रूपये कर्ज लेकर एयर इंडिया को इतना बोझिल बना दिया कि उसका आज तक दम उखड़ रहा है। कैग की आडिट रिपोर्ट मे पटेल साहब की हवाई जहाज खरीदने की हडबड़ी और जल्दबाजी से मंत्रालय और सरकार को चूना लगा। हमेशा पोलिटिकल लाईफ में दूसरों को चूना लगाने के लिए बदनाम नेता अक्सर सरकारी खरीद में अपनी सरकार और देश को चूना लगा ही देते है। पर क्या करेंगे पटेल साहब, मामला पुराना है और इस डील को लेकर बहुत सारी बाते आप भूल गए होगें, इत्यादि करप्शन को भी चूना लगाने वाले चूना तर्को के सहारे साफ निकल जाइए ना बाहर। जहां पर आपके लालजी करप्शन के खिलाफ देश व्यापी रथ यात्रा में आपको अपने साथ ले जाने के लिए इंतजार कर रहे है। और पटेल साब आप भी बस अपने करप्शन को भूल कर दूसरों के यानी कांग्रेसी करप्सन पर भाषण देने के लिए तैयार हो जाइए।
तिहाड दर्शन
जय हो जय हो करप्शन देवता की जय हो। तेरी लीला अपरम्पार। आज से 10 साल पहले तिहाड जेल की नौकरी या यहां ट्रांसफर होने को एक सजा की तरह देखा जाता था, मगर जब से तिहाड पोलिटिशियन लोगों के लिए मक्का मदीना या चारो धाम जैसा तीर्थस्थल बना है, तभी से तिहाड का डिमांड काफी बढ़ गया है। यहां पर तो अब रिश्वत देकर लोग अपना ट्रांसफर करवाने लगे है। ताजा मामला हमेशा बेगाने की शादी में अब्दुल्ला दीवाना बन जाने वाले श्रीमान अमर सिंह की जेल यात्रा का है। हमेशा दूसरों के लिए उपलब्ध दूसरों के काम आने वाले और दूसरों के मामले में टांग डाल देने के लिए (कु)विख्यात अमर सिंह भैय्या वाकई कांग्रेसी साजिश के शिकार हो गए। हालांकि अमर सिंह कोई बच्चा नहीं बल्कि कई बच्चों के बाप होने के बाद भी श्रीमान के मनमोहक चाल के शिकार हो गए। मन साहब को बचाने के लिए मनमोहक अदा के साथ कई कमली छाप सांसदों को नोट फॅार वोट देकर मन साहब की सरकार को पाताल में जाने से तो बचा लिया मगर इसबार अमर बाबू तिहाड जाने से खुद को नहीं बचा सके। तिहाड में एक और अति विशिष्ट मेहमान के तौर पर अमर भैय्या पधार चुके है। इसी बहाने गुमनामी में नौकरी करने वाले पुलिसिया अधिकारियों को फिर से खबरिया चैनलों के माईक के सामने बयान देने का सुअवसर मिला है। अन्ना मामले में तो यहां के अधिकारियों की कई दिनों तक हाई डिमांड बनी रही थी। कल तक घास नहीं डालने वाले ज्यादातर पत्रकार भी अब इनसे दोस्ती गांठने लगे है ताकि मौके पर( जो अक्सर आ रहे है) तिहाड दर्शन करने और कराने में आसानी हो सके।
माया महिमा
विकीलिप्स पर गुस्सा करने की और कोर्ट में घसीटने की धमकी देकर यूपी की सीएम और प्रधानमंत्री(बनने का सपना देखने वाली) की भावी दावेदारों में एक मायावती जी काफी गरम है। वे मीडिया को कोसती हुई विपक्षी दलों के साथ मिलकर साजिश करने का आरोप लगा रही है। इन आरोपों की सच्चाई क्या है यह तो एक शोध अनुसंधान का विषय है। मगर सुश्री मायावती जी ने यह नही साफ या सफाई (दे पा रही है) दी कि अपनी जूती मंगवाने के लिए क्या लखनऊ से वे कोई खाली जहाज को मुबंई भेजा था ? इसमें शरम की क्या बात है माया जी। लोगों का काम है कहना मगर सफल लोगों का काम है आगे बढना। अपनी तमिलनाडू वाली जयललिता को ही देखिए अपने वार्डरॅाब में अनगिनत कपड़ों के अलावा जूतियों की 1800 जोडी भी साथ रखती हैं तो किसी नाशपीटे की नजर वहां पर तो नहीं जाती। मगर केवल एक जोडी जूती लाने हवाई जहाज मुबंई क्या गई कि इसे चारो तऱफ हंगामा मच गया। आप बिलकुल ना घबराना मायाजी सत्ता बार बार ना साथ रहती है और ना ही इस तरह के सरकारी खर्चे पर एय्याशी का मौका मिलता है। जानने वाले तो आपको उस समय से जानते है जब आप फटीचर चप्पल पहनकर त्रिलोकपुरी के एमसीजी स्कूल में टीचरी की नौकरी करती थी।
कितना बढेगा किराया ?
कांग्रेस आई है और महंगाई लाई है जैसे विपक्षी दलों के जुमले लगातार सही साबित होते रहे है। इस बार सात साल के बाद रेल का भाड़ा बढ़ना लगभग तय हो चुका है। जय हो जय हो श्रीमान बिहार को सदियों पीछे धकेलने के लिए बदनाम लालू जी कि आपने रेल में ऐसा जंतर फूंका कि रेल किराया महंगा किए बगैर ही रेल की सेहत को मोटा ताजा बनाए रखा। तुनक मिजाजी के लिए जानी जाने वाली ममता दीदी ने भी बगैर कोई उपाय किए लालू के कदमों का पालन तो किया मगर हमेशा लाभ में चलने वाली रेल को पाताल में धकेल दिया। अब सीएम बनकर कोलकाता में तो अपना सपना पूरा कर रही है, मगर इस सपने का खलनायक बनने जा रहे दिनेश त्रिवेदी पर किराया 10-से लेकर 15 प्रतिशत बढाने का प्रेशर है। पीएम मन साहब भी मैडम की गैरहाजिरी में हरी झंड़ी नहीं दिखा रहे थे, मगर देखना है कि बीमारी के बाद आतंकवादी घटना से दहले भारत पर मैडम किराया ज्यादा करने की मंजूरी कब तक देती है। उनकी नजर यूपी समेत कई स्टेट में हो रहे इलेक्शन पर भी है कि किराया ज्यादा होने का असर भी तब तक मिट जाए। यानी इस साल के अंत तक भैय्या किराया बढना जरूरी है, क्योंकि प्रणव दादा भी मैडम पर प्रेशर बनाने में कभी चूकने वाल नहीं है। दादा और दीदी के चक्कर में सोनिया जी असमंजस में हो सकती है क्योंकि रेलवे अधिकारी तो 25 फीसदी बढ़ोतरी का दवाब बना रहे है। यानी खलनायकों की लिस्ट में त्रिवेदी जी आपका स्वागत है। विपक्ष और जनता से जूते खाने के लिेए बस तैयार रहे।से
हवा में उडान भरते है रेल मंत्री
श्रीमान दिनेश त्रिवेदी जी है तो रेल मंत्री मगर रेल से सफर करने की बजाय उन्हे हवा में उड़ना ज्यादा रास आता है। बेचारे क्या करे उनकी ममता दीदी फोनवा पर तुगलकी फरमान जारी करती है कि जल्दी कोलकाता पहुंचो। तो जाहिर है कि सबसे तेज रेल से भी जाने में एक दिन लग ही जाएगा। जबकि दीदी के साथ मीटिंग करके तो श्रीमान को अगले पांच घंटे के बाद वापस (बे) दिल्ली में भी आना है। लिहाजा हवाई में जाने और आने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचता। सही फरमाया दिनेश जी रेल को और ज्यादा बेहतर और आधुनिक बनाने के लिए आसमानी रास्ते से भी रेल के लिए कोई व्यवस्था करनी होगी, नहीं तो हवाई जहाज रेल के यात्रियों पर डाका डालता रहेगा और आप दीदी के फरमान को मानते ही रह जाएंगे।
महिला विशेषांक और मेरी चूक
राष्ट्रीय सहारा और सहारा टेलीविजन को छोड़कर जबसे ओंकारेश्वर पांडेय श्रीमान अरिदंम चौधरी की कई भाषाओं की श्रृंखला द संडे इंडियन (पहले साप्ताहिक और अब पाक्षिक) के संपादक का कार्यभार संभाला है, तभी से लगातार यादगार अंकों को लाने की योजना को साकार कर रहे है। नया अंक सदी की 111 लेखिकाओं पर केंन्द्रित था। इस अंक को लेकर कई बार बाते भी हुई। मगर 8-9 दिन के लिए मैं आगरा क्या गया कि इस बार यह अंक मुझे मिल ही नहीं पाया। जबतक मैं स्टॅाल पर पहुंचता उससे पहले अंक बिक चुके थे। अंक कैसा बन पड़ा होगा मैं केवल इसकी कल्पना कर सकता हूं। इससे पहले मीडिया पर जनवाणी कार्यक्रम के बंद होने के 25 साल पर केंन्द्रित अंक की भी खासी चर्चा हुई थी। और सबसे मजेदार पहलू तो यह है कि द संडे इंडियन का जल्द ही एक अंक भोजपूरी फिल्मों पर आने वाला है। यानी जो पाठक अब तक इसकी उपेक्षा करते रहे हो वे अब इससे बच नहीं सकते। श्रीमान ओंकारेश्वर पांडेय जी को कोटिश: साधुवाद कि एक व्यावसायिक पत्रिका को भी इन मुद्दों पर अंक निकालने के लिए वे राजी कर ही ले रहे हैं।
पत्रिकाओं की कीमत और ये पाठक
और राज्यों के बारे में तो मैं नहीं कह सकता, पर बिहार के दर्जनों पुस्तक प्रेमियों को मैं जरूर जानता हूं जो आपस में सहकारी आधर पर किताबें और पत्रिकाएं खरीद कर पढते है। कुछ कमीशन छोड़ देने वाले बुक स्टॅाल के ये लोग पक्के ग्राहक होते है। मसलन हंस (तब मूल्य 20 रूपए था) इन सबों को 17 रूपए में ही मिलती है। पांच सात दोस्त तीन या चार रुपए मिलाकर पत्रिका खरीद कर आपस में ना केवल अध्ययन करते है बल्कि खास मुद्दो पर चर्चा भी करते है। गया औरंगाबाद आरा हजारीबाग डालटेनगंज आजि कई शहरों मे कई दोस्त मिलकर हर माह दर्जनों पत्रिकाएं और किताबें खरीद कर साहित्य प्रेम की जिजीविषा को जिंदा रखते है। मगर शहरी आबोहवा में रहकर ज्यादातर साहित्यिक संपादक मनमाने ढंग से कीमत रख देते है। अभी पाखी का भारी भरकम महा विशेषांक श्रीमान राजेन्द्र यादव पर आया है। 350 पृष्ठों के इस अंक की कीमत 70 रूपए है। दाम देखकर तो पहले मैं भी चौंक पड़ा। हालांकि अंक तो पहली नजर में मैं भी नहीं खरीदा। मगर अंक तो खरीदना ही पड़ेगा। मगर मेरे जेहन में बार बार यही सवाल कौंध रहा है कि बिहार के हमारे पुस्तक प्रेमी मित्र मंडली इस अंक को कैसे खरीदेंगे? हालांकि मेरे भीतर भी पहले जैसा साहित्य प्रेम अब कुलांचे नहीं भरता। यही वजह है कि हर माह एक हजार रूपए का मेरा बजट कई बार शेष रह जाता है। खासकर मंडी हाऊस से वाणी प्रकाशन के बुक स्टॅाल के हटने के बाद तो किताबों और पुस्तकों को एक साथ देखने की हसरत बनी हुई है।
तुस्सी ग्रेट हो संत हापुडिया जी महाराज
संत शिरोमणि कृपालुजी महाराज रहते भले ही यूपी में हों, मगर इनकी ख्याति और नाम दुनियां भर में है। करीब 22-23 साल पुराने मेरे एक मित्र का नाम सुनील हापुडिया है। चीनी रस के खांड का कारोबार करने वाले इस मित्र की कमाई ठीक ठाक हो जाती थी, मगर बचपन में ही मां और पिताजी के निधन के बाद अपना रखवाला खुद था। हास्य कवि भोंपूजी के दूर के रिश्तेदार होने के चलते इसमें भी हास्य कविता लिखने और गाने का शौक चर्राया। एक कवि के रूप में थोड़ी बहुत धाक भी थी। इसके जीवन में कई कन्याओं की इंट्री भी हुई मगर एक ओडिया कन्या ने तो अपनी बड़ी बहन से शादी करने का प्रस्ताव तक रख डाला। एक निराश प्रेमी की तरह हमेशा तलाश में रहा, और शादी भी की तो ऐसा परिवार और मानसिक बीमार कन्या मिली कि तलाक के बगैर ही शादी का बंधन खत्म हो गया। चीनी का बिजनेस त्याग कर सुनील ने .योग गुरू का धंधा शुरू किया, और जापान तक हो आया। अब योगगुरू का धंधा भी छोड़कर संतई और गुरू का धंधा में लग गया है।.बाल बढ़ा लेने से इसका चेहरा मोहरा काफी हद तक कृपालुजी महाराज से मिलता है. पिछले कई माह से रहकर अमरीका में ज्ञान बांट रहा मेरा दोस्त सुनील हापुडिया की इमेज संत आशाराम या जैसी हो गई है। पिछले कई दिनों से अमरीका के महाराज सुनील जी रोजाना मुझे फोन या फेसबुक पर अपना अनुभव के साथ साथ कविताएं भी सुना रहे है। मेरे घर पर दर्जनों बार पधार चुके इस विदेशी संतावतार पर हैरानी हो रही है तो यह जानकर दंग भी रह गया कि कानपुर की एक महिला इससे पांच घंटे तक फेसबुक पर चैट करके गीता महाभारत रामायण और भारतीय संस्कृति, सभ्यता और नाना प्रकार के आध्यात्मिक बातों से ज्ञानरस की गंगा में डूबकी लगाती रही. तुस्सी ग्रेट हो संत हापुडिया जी महाराज ।