उत्तर भारत को दक्षिण भारत से जोड़ने वाले उत्तर-दक्षिण गलियारे का भविष्य केंद्रीय मंत्री कमलनाथ की जिद के कारण खतरे में पड़ता दिखाई दे रहा है. व्यक्तिगत लाभ के लिए व्यास नदी की धारा को मोड़ने वाले कमलनाथ अब विशेषज्ञों द्वारा स्वीकृत उत्तर-दक्षिण गलियारे को अपने संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा की ओर मोड़ना चाहते हैं. कमलनाथ की जिद के कारण राष्ट्रीय महत्व का यह गलियारा सिवनी ज़िले तक बनने के बाद सुप्रीम कोर्ट की पेशी के लिए लटक गया है. इस मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने में भी कमलनाथ की ही भूमिका है.
यह अपने संसदीय क्षेत्र के प्रति केंद्रीय मंत्री कमलनाथ का लगाव है या कुछ और, पर वह व्यास नदी की धारा की तरह उत्तर-दक्षिण गलियारे को भी छिंदवाड़ा की ओर मोड़ना चाहते हैं. उनकी जिद के कारण राष्ट्रीय महत्व के इस गलियारे का भविष्य खतरे में पड़ गया है.वर्ष 2002 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा स्वीकृत स्वर्णिम चतुर्भुज योजना को राष्ट्रीय हित की योजना मानते हुए वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने व्यक्तिगत रुचि लेकर पूरा करने के निर्देश दिए थे. इस परियोजना में उत्तर भारत के श्रीनगर को दक्षिण भारत के अंतिम छोर कन्या कुमारी तक फोर लाईन सड़क से जोड़ा जाना है, जिसे नॉर्थ साउथ कॉरीडोर का नाम दिया गया था. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद टी.आर. बालू के स्थान पर कमलनाथ सड़क परिवहन मंत्री बनाए गए. उत्तर-दक्षिण गलियारा उनके संसदीय क्षेत्र छिंदवाड़ा से मात्र 70 किलोमीटर दूर सिवनी ज़िले से होकर नागपुर जा रहा था. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मित्र रहे कमलनाथ को लगा कि व्यास नदी की धारा को व्यक्तिगत हितों के लिए मोड़ लेने के बाद वे इस नार्थ-साउथ कॉरीडोर की दिशा भी बदल सकते हैं. कमलनाथ स्वयं सड़क परिवहन मंत्री के पद पर जब से आसीन हुए हैं तभी से नार्थ-साउथ कॉरीडोर को छिंदवाड़ा ले जाने का षडयंत्र प्रारंभ हुआ. सबसे पहले वर्ष 2007 के अंतिम महीनों में एक काल्पनिक खबर में बताया गया कि कान्हा नेशनल पार्क से एक बाघ 180 किलोमीटर पैदल चलकर पेंच नेशनल पार्क पहुंच गया. इससे लगभग 15 किलोमीटर दूर फोर लाईन की सड़क को बनाया जाना है. कमलनाथ के चचेरे भाई अशोक कुमार वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट का एक संगठन वन्य प्राणियों के संरक्षण के नाम से चलाते हैं. अशोक ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर निवेदन किया कि सिवनी से नागपुर के मध्य कॉरीडोर की फोन लाइन सड़क पेंच नैशनल पार्क के वन्य प्राणियों पर दुष्प्रभाव डालेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने वन्य प्राणी विशेष तौर पर बाघों को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय साधिकार समिति से जांचकर रिपोर्ट सौंपने को कहा. केंद्रीय साधिकार समिति (सी.ई.सी.) की टीम ने कमलनाथ के प्रभाव वाले नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉर्टी के सदस्य डॉ. राजेश गोपाल को वन्य जीव विशेषज्ञ के तौर पर शामिल किया. उम्मीद के मुताबिक़ डॉ. राजेश गोपाल ने सिवनी ज़िले के जंगलों की ऐसी रिपोर्ट कुछ ऐसे तैयार की जैसे कि देश के सारे बाघ इसी क्षेत्र में रहते हैं. डॉ. गोपाल ने पेंच और कान्हा नेशनल पार्क के बीच की दूरी 200 किलोमीटर बताते हुए कॉरीडोर के मार्ग को ही बाघों का प्राकृतिक रास्ता बता दिया. जबकि वास्तविकता यह है कि पेंच और कान्हा किसी भी तरह से जंगल से जुड़े नहीं है, दोनों के बीच किसी भी मार्ग से 200 किलोमीटर की दूरी पार कर जुड़ पाना संभव नहीं है.
डॉ. गोपाल की रिपोर्ट काल्पनिक होने के बावजूद पर्यावरण एवं वन्य प्राणियों के लिए सहानुभूति का कारण बन गई और महानगरों में बंटे हुए पर्यावरणविदों और मीडिया ने सिवनी से गुज़रने वाले नार्थ साउथ कॉरीडोर की फोर लाईन सड़क को जंगली जानवरों के लिए नुकसानदेह बता दिया. स्वयं कमलनाथ के भाई और वन्य प्राणियों के कथित संरक्षक अशोक कुमार को छिंदवाड़ा के जंगलों की वास्तविकता पता नहीं है. पेंच नेशनल पार्क छिंदवाड़ा के घने जंगलों से जुड़ा हुआ है. छिंदवाड़ा के ये घने जंगल प्रसिद्ध पर्यटन क्षेत्र पंचमढ़ी तक सतपुड़ा की पर्वत माला की जैव-विविधताओं के साथ जुड़े हुए हैं. इन क्षेत्रों में वन विभाग और ग्रामीणों ने अक्सर बाघ के पद चिन्ह भी देखे हैं.
पिछले पांच वर्षों के दौरान नेशनल पार्कों के अंदर मारे जा रहे बाघों की चिंता डॉ. राजेश गोपाल और अशोक कुमार को नहीं है. वह मीडिया को गुमराह करते हुए फोर लाइन सड़क को नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा होते हुए नागपुर ले जाने के पक्ष में हैं. ऐसा कर उन्होंने इस क्षेत्र की सर्वश्रेष्ठ जैव-विविधता, लाखों पेड़ों और देश में लुप्त होते हुए बाघों के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है.
केंद्रीय मंत्री कमलनाथ की वजह से भविष्य में फोर लाइन का छिंदवाड़ा होते हुए नागपुर जाना, देश के लोगों को 70 किलोमीटर का अतिरिक्त मार्ग तय करने के लिए बाध्य करेगा. 70 किलोमीटर यात्रा के दौरान 900 टन कार्बन का उत्सर्जन प्रतिवर्ष होगा, जिसकी परवाह कमलनाथ या उनके सहयोगियों को नहीं है. यदि छिंदवाड़ा से नागपुर के बीच होता हुआ फोर लाइन गुज़रेगा तो इस क्षेत्र के 81581 वृक्षों की बलि देनी होगी. छिंदवाड़ा से नागपुर के बीच जलेबी आकार का 22 किलोमीटर लंबा घाट पेंच नेशनल पार्क के क़रीब है. यदि फोर लाइन सड़क बना भी दी जाए तो इस घाटी से बड़े वाहन मुश्किल से निकलेंगे. ऊपर से 22 किलोमीटर लंबी इस घाटी के घाट को कम करने के लिए उसका विस्तार 30 से 32 किलोमीटर तक करना पड़ेगा. इससे होने वाला पर्यावरण का नुकसान कम नहीं आंका जा सकता.
पहले स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना विशेषज्ञों द्वारा किए गए सर्वेक्षण के आधार पर टी.आर. बालू के परिवहन मंत्री काल तक सुगमता से चल रही थी. कमलनाथ के सड़क परिवहन मंत्री बनने के बाद छिंदवाड़ा क्षेत्र में ही यह परियोजना क्यों न्यायालय में उलझ गई. इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पा रहा है. कमलनाथ ने एक ही मंजिल के लिए तीन रास्तों के विकल्प दिए हैं. उद्योगपति कमलनाथ छिंदवाड़ा से नागपुर के बीच के क्षेत्र में आदिवासियों को मिली बेहिसाब छूट का लाभ उठाकर अपने मित्रों के हित में विशेष आर्थिक क्षेत्र छिंदवाड़ा में बनवाकर अपनी राजनीतिक साख को मजबूत करना चाहते हैं. अपने क्षेत्र को मजबूत करने के लिए कमलनाथ राष्ट्रीय हितों को साख पर रखने में भी परहेज नहीं कर रहे.
एक शक्तिशाली नेता के मंसूबों को पूरा करने के लिए सिवनी-लखनादोन मार्ग में सिवनी के आगे 12 किलोमीटर फोर लाइन सड़क बनाने में खर्च हुए 1200 करोड़ रुपयों के साथ-साथ अभी तक काटे गए लाखों वृक्षों की भरपाई कौन करेगा. इसका जवाब भी किसी के पास नहीं है. अंग्रेजों के शासनकाल में सिवनी के आदिवासियों ने सत्याग्रह कर वृक्षों की कटाई रोकने के लिए अपनी जान तक दे दी थी. अगर वर्तमान में सिवनी से नागपुर जाने वाली फोर लाईन सड़क बन जाती है तो यह आदिवासियों के विकास को अंतर्राष्ट्रीय आयाम देने में महत्वपूर्ण भमिका निभा सकती है. लेकिन कमलनाथ की जिद और कूटनीतिक चालें इस राष्ट्रीय परियोजना को अपने पक्ष में मोड़ने के लिए तत्पर है. सिवनी में अब तक कमलनाथ के 100 से ज़्यादा पुतले जलाए जा चुके हैं. इतना ही नहीं राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के अधिकारी भी सिवनी-नागपुर फोर लाइन सड़क के पक्ष में है. सिवनी के दस लाख लोग कमलनाथ की राजनीतिक चाल के खिला़फ पर्यावरण, वन और आदिवासी विकास के मुद्दे पर एकजुट होकर खड़े हुए हैं. दूसरी ओर कमलनाथ राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए प्रजातंत्र के 10 लाख पहरियों को अपनी ताक़त का एहसास दिला रहे हैं. निर्णय सुप्रीम कोर्ट के हाथों में हैं. देखतें हैं फैसला किसके पक्ष में होगा.
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