रविवार, 11 अगस्त 2013

खजाना मालामाल गांव बेहाल






अनामी शरण बबल
पंचायती व्यवस्था के खत्म होने के बाद राजधानी दिल्ली के सैकड़ों गांवों का हाल बेहाल है। हालांकि गांवों की खास सुध लेने के ले ग्रामीण समिति और यमुनापार विकास बोर्ड द्वारा यमुनापार के गांवों की देखरेख की जी रही है, इसके बावजूद दिल्ली के गांवं की बेहाली देखकर वाकई लगता है कि भारत माता ग्रामवासिनी के गांवों का कोई भविष्य नहीं है। आज से 24 साल पहले 1989 में ग्रामीण पंचायती व्यवस्था और दिल्ली नगर निगम को भंग कर दिया गया था। उस समय ग्रामीण खाते में जमा राशि पिछले 25 सालों में दोगुनी से भी ज्यादा हो चुकी है अधिकतर गांवों के खाते में करोड़ो रूपये है, इसके बावजूद इस धनराशि का उपयोग नहीं हो पा रहा है। डेडमनी की तरह अरबों रूपये के होने के बावजूद ज्यादातर गांवों का हाल बेहाल है। अलबता नाना प्रकार के फंड और योजनाओं के तहद ज्यादातर गांवों में बेहिसाब रूपयो खर्च हो रहे है, इसके बावजूद गांवों की सूरत है कि बदल नहीं रहीं है.
उल्लेखनीय है कि पंचायती राज व्यवस्था के तहत गांव के खाते की रकम को खर्च करने का अधिकार केवल पंचायती राज में चुने गए मुखिया और सरपंचो को होता है। 1989 में पंचायती राज के खात्में के बाद गांवों की पूरी राशि मंडलायुक्त कार्यालय के अधीन आ गया। गौरतलब है कि दिल्ली देहात के कई प्रकार है। दिल्ली गांवों तथा देहाती गांवों में परिवर्तित हुए ग्रामीण पंचायतों में कुल एक सौ 44 करोड़ 37 लाख हजार 266 रूपये( ,44,00,37,266 रूपये मात्र)  जमा थे।  यह रकम आज 2013 में मोटे तौर पर लगभग 300 करोड़ हो चुकी है, मगर दिल्ली सरकार की इच्छा शक्ति में कमी और नौकरशाहों की लालफीताशाही की वजह से पंचायती रकम को उपयोग नहीं हो पा रहा है। मंड़लीय आयुक्त कार्यालय ने दिल्ली सरकार पर इस रकम को लेकर उदासीनता का आरोप लगाया मंड़लीय आयुक्त कार्यालय सूत्रों ने कहा कि 2008 विधानसभा चुनाव से पहले सरकार इस मद का उपयोग करना चाहती थी और केंद्र सरकार तक कागजात भी गए, मगर बाद में चुनाव में जीत मिलने के बाद सारी सक्रियता खत्म हो गयी  एक सवाल के जवाब में सूत्रों ने कहा कि खासकर पंचायतो के भंग होने पर पंचायती राशि को फिर से उपयोग में लाने की प्रक्रिया थोड़ी जटिल जरूर है, मगर नामुमकिन कुछ भी नहीं होता
  
1989 में नगर निगम और पंचायती राज व्यवस्था को भंग कर दिया गया. जिसमें नगर निगम को तो नौ साल के बाद फिर से बहाल कर दिया गया. दिल्ली नगर निगम तो 1998 में 143 वार्डो के साथ बहाल हो गयी., मगर दिल्ली में कई स्थानीय निकायों के होने की वजह से दिल्ली नगर निगम, नयी दिल्ली नगरपालिका परिषद और दिल्ली छावनी बोर्ड के सक्रियता के चलते सन 2000 में पंचायती व्यवस्था की तमाम संभावनाओं को समाप्त कर दिया गया. इस बीच 1954 में समाप्त कर दिए गए विधानसभा प्रणाली को 40 सालों के बाद फिर से दिल्ली में लागू कर दी गयी. 70 विधानसभा क्षेत्रों में आवंटित दिल्ली विधानसभा की बहाली के बावजूद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को अभी तक पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सका है अभी भी दिल्ली केंद्र शासित राज्य की श्रेणी में ही मान्य है दिल्ली सरकार के अधीन आज भी पुलिस और भूमि अधिकार के साथ दिल्ली विकास प्राधिकरण डीडीए को दिल्ली सरकार के हाथों नहीं सौंपा गया है। अलबता परिसीमन के दैरान ही मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने एक दिल्ली नगर निगम को तीन नगर निगमों में बांट दिया, और 1998 में 134 पार्षदों वाली नगर निगम आज 272 पार्षदों वाली हो गयी है। एनडीएमसी इलाके के केवल दो विधानसभा गोल मार्केट और मिंटो रोड़ को छोड़कर शेष दिल्ली के 68 विधानसभा क्षेत्र में पहले की तरह दो पार्षद की जगह पर अब चार पार्षदों को नियुक्त कर दिया गया। यानी एक विधानसभा को एक विधायक के साथ चार पार्षद कमान थामेंगे. दिल्ली राज्य सरकारक की गद्दी पर भले ही कांग्रेस की शीला दीक्षित 15 वां साल पूरा कर रही हो , या तीन पारी के बाद अब चौथी पारी को लेकर गंभीर हो, मगर तीनों नगर निगमो में बीजेपी का एकाधिकार बना हुआ है।
दिल्ली सरकार ने दिल्ली ग्रामीण समिति को प्रमुखता दी है.मगर 1989 में दिल्ली के सभी गांवों के खाते में जमा राशि सुरक्षित पड़डी है। इस राशिको निकालने के लिए दिल्ली सरकार को विधानसभा में एक प्रस्ताव को मंजूर कराना होगा. अगर बात .यहां तक रहती तो भी हमेशा रूपयों का राग अलापने वाली शीला सरकार के लिए इस रकम का सदुपयोग करना कठिन नहीं था, मगर इस रकम के बजट को केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय और पंचायती राज के तहत ङी अपनी योजनाओं को बताने के साथ रकम के उपयोग का ब्यौरा देना होगा। इन तमाम लफड़ों की वजह से ही दिल्ली सरकार अपने सिर पर कोई नया तमाशा खड़ा करने से परहेज कर रही है।  
बैंक ब्याज को जोड़कर यह राशि करीब 300 करोड़ से उपर जा पहुंची है। 2005 के दस्तावेज के अनुसार दिल्ली के कंझावला गांव के खाते में सबसे अधिक 23 करोड़ 18 लाख 54 हजार 461 रूपये है. मोटे तोर पर यह रकम अब करीब 30 करोड़ की हो चुकी है। दिल्ली के 175 गांवों की सूची में  सबसे कम राशि मात्र 489 रूपये गांव असौला के खाते में जमा है। पिछले पांच सालों में विकास और वित मंत्रियों को लेकर उठापटक का दौर रहा।ग्रामीण विकास मंत्री रहे राजकुमार चौहान का मानना है कि इस राशि को दूसरे मद में खर्च नहीं करने की बाध्यता के चलते ही इस राशि को लेकर शंका बनी रहती है। काम के बीच में बजट खत्म होने पर भी अदूरे काम को किसी और मद के रकम से पूरा कराना कठिन हो जाता है जबकि पूर्व वित मंत्री ड़ा. अशोक कुमार वालिया ने माना कि इस मद के रकम को खर्च करने से पहले काफी तहकीकात और जांच होते है, जिससे राज्य सरकार इस पंचायती राशि को दूसरे मद में उपयोग करने से हिचकती हैं  
दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने इन आरोपों को नकारा कि पंचायती कोष कता उपयोग नहीं किया जा रहा है। श्री मती शीला ने कहा कि पिछले 10 साल के दौरान गांवों पर कई हजार करोड़ रूपये खर्च हुए है, लिहाजा कभी जरूरत ही नहीं पड़ी।  उन्होने कहा कि करीब 175 गांवों में लगभग एक सौ गांवों में क लाख रूपये से भी कम राशि है, जिससे एक मोहल्ले की सड़क तक नहीं बन सकती इसमें किसी और मद की राशि नहीं लगायी जा सकती है, दबकि कुछ गांवो के खजाने में करोड़ों और लाखों की रकम है, दिसको लेकर गांव के चौपाल या झीलों को ठीक कराये जा सकते है  सरकार की नजर इस मद के रकम पर है, मगर सभी गांवों में इससे समुचित विकास कराना संभव नहीं है   दिल्ली सरकार के ग्रामीण विकास मंत्री अरविंदर सिंह लवली ने इस रकम को लेकर सरकार की गंभीरता पर खासा जोर दिया। बकौल श्री लवली  राज के मद को दूसरे मद में उपयोग करने से पहले लंबी प्रक्रिया से जबझना पड़ता है खासकर जब पंचायतें भंगद हो गयी हो तब तो इसके लिए केंद्र सरकार के पास योजनाओं को भेजना पड़ता है गांव की रकम को केवल उसी गांव में ही उपयोग किया जा सकता है यमुनापार विकास बोर्ड के अध्यक्ष डा.नरेन्द्र नाथ ने कहा कि यमुनापार का रूका इलाका दिल्ली में 1912 के बाद जुड़ा है, लिहाजा पंचायती राज के बावजूद गांवों के खाते में पंचायती राशि का पैसा नहीं जमा है। यमुनापार के गांवों में विकास कार्य  सरकार यमुनापार विकास बोर्ड के मार्फत कराती है बाजपा समर्थित अकाली नेता पार्षद जितेन्द्र सिंह शंटी ने सरकार पर यमुनापार के गांवों की उपेक्षा करने का आरोप लगाया बाजपा के उपमहापौर और निगम ग्रामीण समिति के प्रधान रह चुके पार्षद राजेश गहलौत ने सरकार पर केवल जुबानी विकास और मामले को उलझाने का आरोप लगाया
Box    
खजाने में कहीं करोड़ो तो कहीं हजार भी नहीं
कंझावला        23 करोड़ 18 लाख 54 हजार 461 रूपये मात्र
बवाना .................11 करोड़ 96 लाख 26 हजार 255 रूपये
खेड़ाखुर्द......... 11 करोड़ 52 लाख 18 लाख 792 रूपये मात्र
शाहाबाद दौलतपुर       सात करोड़ 89 लाख 64 हजार 987 रूपये
जौनापुर .......सात करोड़ 37 लाख 87 हजार 755 रूपये
बापरौला..........चार करोड़ 60 लाख 75 हजार 17 रूपये
छावला........... दो करोड़ 12 लाख 50 हजार 959 रूपये
हसनपुर .........एक करोड़ 02 लाख 90 हजार 371 रपये
मैदानगढ़ी....... एक करोड़ 38 लाख 43 हजार 898 रूपये
सैदुल्लाजाब.... एक करोड़ 53 लाख तीन हजार 608 रूपये
बुराड़ी ....... एक करोड़ 73 लाख 78 हजार 840 रूपये
उजवा........... एक करोड़ 12 लाख 19 हजार 429 रूपये
दौलतपुर...........एक करोड़ 58 लाख 43 हजार 303 रूपये
आर्यानगर ....    .मात्र 2086 रूपये
मोलड़बंद ............मात्र 1259 रूपये
ताजपुर.............मात्र. 1868 रूपये
गढञी मांडू   ........मात्र 1529 रूपये
सतबड़ी .................मात्र 3403 रूपये
खैरा             मात्र 597 रूपये
खड़खड़ी जठमल ....... मात्र 557 रूपये
असौला .....   .... मात्र 489 रूपये
इब्राहिमपुर         मात्र 498 रूपये
दीनदानपुर .....   .... मात्र 369 रूपये
खजूरी खास ..... ..मात्र 62 रूपये 86 पैसे

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