प्रस्तुति - निम्मी नर्गिस, अमित कुमार
वर्धा
वह शख्स रमेश अग्रवाल के छोटे से इंटरनेट कैफे में घुसा और रिवॉल्वर भिड़ा कर बोला, "बहुत बोलते हो." रमेश जब तक कुछ बोलते, वह दो गोली दाग कर मोटरसाइकिल से फरार हो गया. गोलियां पैर को छलनी कर गईं.
कोई दो साल पहले हुए इस हमले के पीछे एक कहानी है. अग्रवाल के मुकदमा करने
के बाद छत्तीसगढ़ के गांव में जिंदल स्टील और पावर लिमिटेड का कांट्रैक्ट
रोक दिया गया था. करीब एक दशक से अग्रवाल गांव वालों को कानूनी मदद दे रहे
हैं और बता रहे हैं कि किस तरह पर्यावरण को बचाया जा सकता है. उन्होंने
बड़ी कंपनियों के खिलाफ तीन मुकदमे जीते हैं और सात अभी अदालतों में हैं.
फिर निशाना बनूंगा
योग में महारथ रखने वाले अग्रवाल का कहना है, "जब मैंने यह संघर्ष शुरू किया, तो मुझे पता था कि मुझे निशाना बनाया जाएगा. यह दोबारा भी होगा. होने दीजिए. मैं कहीं नहीं जा रहा हूं." गोली लगने के बाद उन्हें चलने में दिक्कत होती है और छड़ी का सहारा लेना पड़ता है.
लेकिन उनके संघर्ष का नतीजा है कि 60 साल के रमेश अग्रवाल को इस साल सैन फ्रांसिस्को में गोल्डमैन इनवॉयरमेंटल पुरस्कार के लिए चुना गया, जिसे "ग्रीन नोबेल" भी कहते हैं. छह लोगों को दिए जाने वाले इस पुरस्कार में 1,75,000 डॉलर की इनामी राशि दी जाती है. कैलिफोर्निया जाने से पहले उन्होंने कहा, "यह मेरे जीवन में सबसे बड़ा पड़ाव है. लेकिन यह मुझे दुखी भी करता है कि विदेश में बैठा कोई आदमी, जिसे मैं जानता तक नहीं, वह कुछ करने को तैयार है और यहां लोगों को पता ही नहीं कि हमारा काम क्या है."
अग्रवाल के अलावा अमेरिका की वकील हेलेन स्लॉटये, दक्षिण अफ्रीका के डेसमंड डीसा, पेरू की रूथ बोएंडिया, रूस की सूरेन गाजार्यन और इंडोनेशिया के रूडी पुत्रा को भी ग्रीन नोबेल के लिए चुना गया.
बढ़ी जागरूकता
भारत में कार्यकर्ता, वकील और विश्लेषकों का कहना है कि सैकड़ों छोटे बड़े अभियानों से भारत में पर्यावरण को लेकर लोगों का नजरिया बदल रहा है. नई दिल्ली में पर्यावरणविद ऋत्विक दत्ता का कहना है, "लोगों में विश्वास बढ़ रहा है और वे आपा खो रहे हैं. ये लोग कोई जमी जमाई संस्था के लोग नहीं हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आंदोलन कर रहे हों. ये तो आम लोग हैं, जो रोजमर्रा की जिंदगी से परेशान हो चुके हैं."
कुछ ही दिन पहले मध्य प्रदेश में एक गांव के लोगों ने नदी के बीचों बीच भूख हड़ताल की थी, जिसे मीडिया ने काफी प्रचारित किया था. हिमाचल प्रदेश में सेब उपजाने वाले किसान बांध बनाने वालों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. अग्रवाल का कहना है, "आम तौर पर लोग कह देते हैं कि बड़े लोगों से आप नहीं भिड़ सकते हैं. लेकिन जब हमने एक दो केस जीतने शुरू किए, लोगों में भरोसा जगा और उन्हें इस देश में भी भरोसा हुआ."
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फिर निशाना बनूंगा
योग में महारथ रखने वाले अग्रवाल का कहना है, "जब मैंने यह संघर्ष शुरू किया, तो मुझे पता था कि मुझे निशाना बनाया जाएगा. यह दोबारा भी होगा. होने दीजिए. मैं कहीं नहीं जा रहा हूं." गोली लगने के बाद उन्हें चलने में दिक्कत होती है और छड़ी का सहारा लेना पड़ता है.
लेकिन उनके संघर्ष का नतीजा है कि 60 साल के रमेश अग्रवाल को इस साल सैन फ्रांसिस्को में गोल्डमैन इनवॉयरमेंटल पुरस्कार के लिए चुना गया, जिसे "ग्रीन नोबेल" भी कहते हैं. छह लोगों को दिए जाने वाले इस पुरस्कार में 1,75,000 डॉलर की इनामी राशि दी जाती है. कैलिफोर्निया जाने से पहले उन्होंने कहा, "यह मेरे जीवन में सबसे बड़ा पड़ाव है. लेकिन यह मुझे दुखी भी करता है कि विदेश में बैठा कोई आदमी, जिसे मैं जानता तक नहीं, वह कुछ करने को तैयार है और यहां लोगों को पता ही नहीं कि हमारा काम क्या है."
अग्रवाल के अलावा अमेरिका की वकील हेलेन स्लॉटये, दक्षिण अफ्रीका के डेसमंड डीसा, पेरू की रूथ बोएंडिया, रूस की सूरेन गाजार्यन और इंडोनेशिया के रूडी पुत्रा को भी ग्रीन नोबेल के लिए चुना गया.
बढ़ी जागरूकता
भारत में कार्यकर्ता, वकील और विश्लेषकों का कहना है कि सैकड़ों छोटे बड़े अभियानों से भारत में पर्यावरण को लेकर लोगों का नजरिया बदल रहा है. नई दिल्ली में पर्यावरणविद ऋत्विक दत्ता का कहना है, "लोगों में विश्वास बढ़ रहा है और वे आपा खो रहे हैं. ये लोग कोई जमी जमाई संस्था के लोग नहीं हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ आंदोलन कर रहे हों. ये तो आम लोग हैं, जो रोजमर्रा की जिंदगी से परेशान हो चुके हैं."
कुछ ही दिन पहले मध्य प्रदेश में एक गांव के लोगों ने नदी के बीचों बीच भूख हड़ताल की थी, जिसे मीडिया ने काफी प्रचारित किया था. हिमाचल प्रदेश में सेब उपजाने वाले किसान बांध बनाने वालों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं. अग्रवाल का कहना है, "आम तौर पर लोग कह देते हैं कि बड़े लोगों से आप नहीं भिड़ सकते हैं. लेकिन जब हमने एक दो केस जीतने शुरू किए, लोगों में भरोसा जगा और उन्हें इस देश में भी भरोसा हुआ."
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- तारीख 28.04.2014
- पन्ना 1 | 2 | पूरी रिपोर्ट
- कीवर्ड रमेश, अग्रवाल, भारत, छत्तीसगढ़, खनन माफिया
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