रविवार, 19 जून 2016

डीटीसी बस में एक प्रेमकथा







अनामी शरण बबल

आज मेरी उम्र 51 साल की चल रही है, मगर यह घटना चार साल पहले की है। अपने निवास कॉलोनी मयूर विहार फेज-3 के सीआरपीएफ डीटीसी बस स्टैण्ड़
 पर से मैने डीटीसी की एक 211 नंबर की एक बस ली। बस में चढते ही गाड़ी चल पड़ी और मैं जेब से 50 रूपये का एक नोट देकर 40 रूपये वाली एक पास देने को कहा। पास के लिए नाम और उम्र बतानी पड़ती है। बस पास को कंडक्टर लोग सबसे बाद में बनाते है। पास बनाने की जब मेरी बारी आई तो मैने देखा कि कंडक्टर एक महिला है। उम्र कोई 30-32 की होगी । सामान्य शकल सूरत जिसे बहुत सुदंर तो नहीं मगर ठीक ठीक आर्कषक की श्रेणी में रखा जा सकता है। मैने फौरन कहा अनामी शरण 47। मेरे नाम को पता नहीं वो ठीक से सुन या समझ नहीं सकी। अचकचाते हुए तुरंत बोली  क्या नाम बताया ?  मैने कहा अनामी 47।  वो फिर मुझसे पूछी क्या यह आपका नाम है ? मैंने शांतभाव से कहा जी आपको कोई दिक्कत ? मेरी बात सुनते ही हंस पड़ी। एकदम अनोखा नया और अलग तरह का नाम है आपका । यहं तो मैं दिन भर रमेश दिनेश सुरेश राजेश मोहन सोहन जितेन्द्र धर्मेन्द्र राजेन्द्र जैसे ही नाम सुनती और लिखती रहती हूं। मेरा नाम लिखने पर बोली एज क्या कहा था? इस पर मैं हंस पड़ा। काम की रफ्तार तो आपकी बहुत धीमी है। कैसे संभालती है दिन भर की भीड़ को आप ? मेरी आयु 47 है । 47 सुनते ही वो एकटक मुझे देखने लगी। लगते नहीं है आप। मैं कंडक्टर महिला के ऑपरेशन से उकत्ता सा गया था। अजी मेरी आयु साढ़े 47 की है, और कहीं से भी उम्र छिपाने या कम बताने  का रोग नहीं है। मैं तो हर साल अपनी बढती उम्र का स्वागत करता हूं और 12 नवम्बर को एज बढ़ाकर ही बोलने लगता हूं। कंडक्टर महिला एक बार फिर टपक पड़ी। आपका बर्थडे 12 नवम्बर है ? मुझे बोलना ही पड़ा जी आपको कोई आपति। वो एक खुलकर हंसने जी एकदम आपति ही आपति है। य़हां पर मैं चौंका कि क्यों आपति होगी इसे। बीच में दो छोटे -2 बस स्टॉप आए जहां से दो एक सवारी भी चढे जिनको टिकट देकर वो फ्री भी करती रही, मगर मेरा पास और रूपये दोनों अभी तक उसके ही पास थे। अब जरा मुझे भी फ्री करिए ना कि मैं भी कोई सीट देखू। मेरी बात सुनते ही वो अपना बैग बांए हाथ में टांग ली और आधी सीट को खाली करती हुई बोली आप मेरी सीट पर ही बैठ जाइए न। मैने उनको धन्यबाद दिया और सलाह भी कि अपनी सीट पर किसी को बैठने के लिए कभी ना कहा करें क्योंकि आपके पास पैसा टिकट और भी बहुच सारी चीजे होती हैं जिसका शाम को हिसाब देना पड़ता है। मेरी बात सुनकर फिर बोली मेरा जन्मदिन भी 12 नवम्बर को ही है। आप तो नवम्बर नहीं सेम डे फ्रेंड निकले और अपने हाथ को आगे कर दी । मैं बड़ा पशोपेश में था फिर भी अपना हाथ बढाकर उसके हाथ को मैने थाम ली। वो एक बार फिर खुश होकर बोल पड़ी, अरे वो आप तो एकाएक एकदम मेरे दोस्त बन गए । इस पर मैं भी हंसते हुए कह कि लगता है कि अपना बर्थडे इस बार आपके साथ ही मुझे मनानी पड़ेगी। मेरी बात सुनकर वो एकदम खिल पड़ी और बोली सच्ची। मैने फौरन कह मुच्ची। मेरे कहने पर वो फिर हंस पड़ी और मेरे  पास और 10 रूपये का नोट मुझे दे दी। पास लेकर जाने से पहले मैने भी एक स्माईल पास कर दी। वो भी मेरे स्माईल के जवाब में खिलखिला पडी। बस तो आगे निकलती रही और शाहदरा के बिहारी कॉलोनी स्टॉप पर मैं उतर गया। मैं बस के नीचे था और बस आगे बढ़ी तो कंडक्टर महिला बस के भीतर से ही हाथ हिलाकर स्माईल पास की।     दो चार घंटे तक तो वह महिला मेरे ध्यान में रही और फिर सामान्यत मैं लगभग भूल सा गया। करीब 15 दिन के बाद मुझे क्नॉट प्लेस जाना थआऔर मैं वही सीआरपीएफ डीटीसी बस स्टॉप पर से 378 नंबर की बस ली। बस में सवार होते ही जेब से फिर 50 का एक नोट निकाल कर मैने कंटक्टर की तरफ देखा तो इस बार इस बस में वही महिला कंडक्टर थी, जिससे करीब 15-17 दिन पहले मिला था। सवरियों की भीड़ छंटते ही जब मेरी बारी आई तो मैं नोट बढ़ाते हुए नमस्ते की और हंसकर बोला फिर टकरा गयी आप कैदी नंबर 12 नवम्बर। मेरी बात सुनते ही वो मुझे नमस्ते की और जोर से हंसने लगी। अरे आप कैसे है और कहां रहे? मैं तो रोजाना देखा करती थी कि शायद बस में सवार हो आप। मैने तुरंत कहा अच्छा जी नौकरी करती हैं डीटीसी की और चाकरी करती है मेरी। भरशक डीटीसी का बंटाधार हो रहा है। वो फिर हंसने लगी अरे नहीं आपसे हुई मुलाकात की बात जब मैने अपने बेटे को बताई तो वह आपसे मिलना चाहता है। और रोजाना पूछता है कि क्या अंकल से मुलाकात हुई ? मैने पास के लिए फिर अपने  नाम और उम्र की जानकारी दी अनामी  47। एक बार फिर वही उम्र का प्रलाप की देखने में 40 से ज्यादा नहीं लगते। मैने तुरंत कहा की पूरी दाढी सफेद है आप नहीं मानेंगी तो मैं कल से ही शेव करना बंद कर दूंगा तब एक माह में ही 55 का दिखने और लगने भी लगूंगा। मेरे बेटे से आप नहीं मिलेंगे ? उसकी बातें सुनकर मैं हंसने लगा। और आपके मिस्टर क्या करते हैं ? इस बार मुझे कंडक्टर सीट के ठीक पीछे वाली सीट मिल गयी थी तो बीच बीच में बातचीत करने का समय भी मिलता जा रहा था। मैं डाईवोर्सी हूं।  तो इसके लिए ज्यादा बदमाशी किसकी थी ? मैने तो माहौल को हल्का करने के लिए ही हवा हवा मे यह बात कह  दी मगरइस बातसे वो थोडी अपसेट सी हो गयी। इसमें हमदोनें की ही गलती मान सकते हैं,पर लोग हमेशा औरतों की तरफ ही देखते हैं। यह नौकरी कब से कर रही हैं ? इस पर वो तिलमिला सी गयी। मैं तो डबल एमए हूं। घर में पैसे की कोई दिक्कत भी नहीं हैं पर मैं जानबूझकर डीटीसी की नौकरी कर रही हूं क्योंकि  इसमें रोजाना हजारों तरह के लोगों से मिलती हूं। आंखे देखकर ही आदमी को पहचानने लगी हूं और इससे मेरा आत्मविश्वास बढा है। उसकी बाते सुनकर मैं फिर हंसने लगा आपका फेस रीडिंग बेकार है। मुझ जैसे नटवरलाल को तो आप बूझ ही नहीं सकी और दावा करती हो कि मैं लोगों को देखकर ही पहचान जाती हूं। अभी आपमें तो बहुत कमी है। मेरी बात सुनकर बोली अरे आपके जैसा नटवरलाल भी दोस्त रहेगा तो चलेगा। मैं तो आपका दोस्त हूं ही।  मेरी बात सुनते ही बोल पड़ी नहीं नहीं  यह तो जान पहचान है दोस्ती तो अलग होती है। मैं चौंकते हुए बोला और कौन सी दोस्ती होती है। मेरे तो सारे दोस्त इसी कैटेग्री के है। हां कोई बीमार है कोई कष्टमें हैं य किसी को मेरी जरूरत हो तो मैं हाजिर हो जाता हूं पर इसके अलवा तो मेरा कोई और दोस्त ही नहीं है। बहुत सारे तो ऐसे भी दोस्त हैं जिनसे सालो मिला नहीं बात भी नहीं की मगर प्यार अपनापन और विश्वास में कोई कमी नहीं। मित्रता तो एक भरोसे का नाम होता है । और प्यार किससे करते हैं ? उसके इस सवाल पर मैं हंसने लगा। खुद से प्यार करता हूं क्योंकि जो काम मैं खुद नहीं कर सकता वो दूसरों के लिए कहां और कैसे कर सकता हूं भला। मैं तो अपने दोस्तों में बसता हूं और मेरे तमाम दोस्त भी मेरे दिल में ही रहते हैं। तभी तो रोजाना उनको बिन देखे ही मैं देख भी लेता हूं और याद भी कर लेता हूं। एक सीमा से आगे बढ़ जाना प्यार या दोस्ती नहीं संबंधों पर अनाधिकार कब्जें का प्रयास होता है।

डीटीसी बस आईटीओ पर आ गयी थी। बस के खुलने के साथ ही वो एक बार फिर बोली क्या मैं आपका दोस्त हूं ? इस पर मै बोल पड़ा, पहली मुलाकात में तो एकदम नहीं पर अब आप मेरी दोस्त है। वो थोडी व्यग्रता से बोली तो हम मिल कैसे सकते है ? मैंने कहा यही सब तो दिक्कत है कि मेलजोल ज्यादा मुझे रास नहीं। जब जरूरत हो तो घंटो रह सकता हूं पर फालतू के लिए मिलना और समय गंवानाने  तो मूर्खता है। आप अपनी नौकरी करे चलते फिरते मेल मिलाप और बाते होती रहेंगी। कभी छुट्टी हो तो मेरे घर पर आइए बेटे को लेकर तो सबों से मेल जोल हो जाएगा। मेरी बीबी भी बहुत खुश होगी। सर्द आहें भरती हुई वो बोल पड़ी कि आप पहले आदमी हो यार जो मित्रता करने के लिए भी अपनी शर्ते पेल रहे हो, नहीं तो मर्द लोग तो दोस्ती करने के लिए बेहाल रहते है। उसकी बातें सुनकर मैंने कहा मित्रता एक भरोसे का नाम है कि कोई भी बात बेफ्रिक होकर कह दो क्योंकि मित्र दो नहीं एक होते हैं। मेरा यार कहना आपको बुरा लग ? नहीं यार मित्रता में कोई भी बात किसी को बुरी नहीं लगती, और जब बातें बुरी लगने लगे तो समझों कि कहीं पर मित्रता या भरोसे में कमी है।  बात करते करते मंडी हाउस स्टॉप पर बस आने वली थी, और मैं उतरने के लिए तैयार होने लगा ।             
वो व्यग्रता के साथ बोली मैं आजकल इसी रूट पर हूं। अपना हाथ आगे कर दी जिसे थामकर मैने आहिस्ता से छोड़ दिया। बस मंड़ीहाउस पर आ गयी थी और मैं मैं यहीं पर उतर गया।

करीब 10-12 दिन के बाद मुझे लक्ष्मीनगर जाना था और मैं स्टॉप पर खड़ा ही था कि दोपहर लंच के बाद चलने वाली बस में एक बार फिर अपनी कंडक्टर दोस्त के सामने टिकट के लिए खड़ा था। मेरे को देखते ही शिकायती लहजे में बोली अरे आप तो लापता ही हो गए। फोन तक नहीं किए। मेरे पास तो आपका नंबर ही नहीं है। तो मांग लेते। मैं किसी भी लड़की से पहले नंबर नहीं मांगता। मैं तो आपक नाम तक नहीं जानती? वो हैरान सी थी । सही कहा आपने मैं भी कहां जानती हूं  आपका नाम  क्या है  नाम भी इतना सरल कहां जो एकपल में याद हो जाए।?  बस में ज्यादा भीड़ नहीं और मैं एक बार फिर कंडक्टर सीट के पीछे वाली सीट पर आ बैठा। मैने पूछा और आपका बेटा ठीक है ? हां वो ठीक है मगर आपके बारे में पूछता रहता है। मैने अचरज जाहिर की बड़ा कुशग्र है लडका कि महीनो तक याद रखा है। इस पर वो बात को समझ नहीं सकी आप मेरे बेटे की तारीफ कर रहे हैं या हंसी उडा रहे है ? मैं फौरन बोल पडा अरे बच्चे का मैं क्यों उपहास करूंगा आपकी तो उपहास कर सकता हूं ? मेरे को अपना नंबर देती हुई और मेरे नंबर को अपने पास लेती हुई उसने बात करने की वादा की।

 करीब 15 दिनों के बाद शाहदरा जाने के लिए मैं ज्योंहि 211 नंबर पर सवार हुआ तो मेरे सामने मेरी डीटीसी दोस्त नजर आय़ी। इस बार की मुलाकात में वो थोडी परेशान थी। उसने मुझसे बीच में उतरने की बजाय अंतिम स्टॉप मोरी गेट तक ,साथ चलने का आग्रह की। उसने वापसी में अपने स्टॉप पर उतरने का निवेदन की। मेरे पास भी कोई अर्जेंट सा काम था नहीं सो मैं मोरी गेट तक साथ रहा। रास्ते में खास बातें नहीं हो सकी पर मोरी गेट पर बस के अंदर ही छोले भटूरे की एक एक प्लेट खाया। उसने बताया कि उसका पूर्व पति बस में या घर के बाहर आकर पोस्टर लगाकर तंग करना शुरू कर दिया है। मैने उसको पुलिस या महिला आयोग की मदद लेने की सलाह दी। उसने यह भी बताया कि उसके पति ने शादी भी कर ली है। मैने बेसाख्ता कहा कि आप भी देख भाल कर और अपने मां पापा से बात करे और फिर से शादी कर ले। फिर अभी तो आपकी कोई उम्र भी नहीं है। कौन करेगा मुझसे शादी बेटा है न ? आजकल जमाना बदल गया है और लोगोंके विचारों में उदारता आयी है। आप पेपर में एड देकर तो देखो.। पर ध्यान रखना बिन देखे पहली शादी की तरह ही इस बार धोख न खाना.।

हमलोग बस के भीतर भटूरे खा भी रहे थे और सवारी भी बस में सवार होने लगी थी। बस खुलने में कोई 10 मिनट अभी बाकी थी। तब तक चाय भी आ गयी। चाय पीते हुए मुझसे एकाएक बोल पड़ी क्या आप मुझसे शादी करेंगे ? मैं एक मिनट के लिए तो इस सवाल को ही समझ हीं नहीं पाया पर एकटक उसको देखता रहा। क्या बकवास कर रही हो। मेरी उम्र 47 है मेरी बेटी 17 साल की है। तुम एकदम उतावली ना हो मैं तो तो तेरा मित्र हूं अखबार में विज्ञापन देने और सही आवेदन को छांटने तथा सही लड़के की तलाश करने में भी मदद करूंगा। तुम घबराओं नहीं बल्कि हौसला रखो क्योंकि तेरा एक बेटा भी है। और सबसे बड़ी दिक्कत तो यह है कि तुम्हारा कोई भाई नहीं केवल तुम दो बहने ही हो और बाप की अच्छी खासी प्रोपर्टी भी है तो बहुत सारे लालची भी टपक सकते है। तुमको तो बहुत सावधानी बरतनी होगी। अपने रिश्तेदारों में देखो क्या कोई है जो तुम्हारे लायक है। वो निराश होकर बोली एक तू ही मुझे दिख रहा था और मैं तीन माह से तुम्हें वाच भी कर रही थी पर तुमने तो ना कर दी। मैं तेरा दोस्त हूं और एक दोस्त मां बाप भाई कभी बेटा तो कभी किसी भी रिश्ते में दिख सकता है मगर एक दोस्त पति की जगह नहीं ले सकत।  

बस खुलने का समय हो गया था और मोरीगेट पर ही गड़ी खचाखच भर गयी। वैसे तो मैं कंडक्टर सीट के पीछे ही बैठा था पर यात्रियों की भरमार के चलते वह टिकटौर पास बनाने में ही व्यस्त रही। बीच में दो चार बातें हुई मगर यात्रियों की भीड़ ने बातों पर लगाम लगाए रखा। वापसी में मैं बिहारी कॉलोनी पर उतरने के लिए खड़ा हुआ तो उसमे अपना हाथ फिर बढा दी, जिसे मैने थामकर छोड़ दिया। फिर मिलने का वादा कर मैं शाहदरा में ही उतर गया।

इसके करीब चार माह तक फिर उससे किसी भी रूट की किसी बस में मुलाकात नहीं हुई। मगर एम्स जाने के लिए मैं किसी दिन रूट नंबर 611 की बस में सवार हुआ तो मेरी डीटीसी दोस्त सामने थी। मुझे देखते ही वह खिल पड़ी। उसने मुझे बताया कि अगले माह मैं डीटीसी की नौकरी छोड़ दूंगी, क्योंकि घर के पास में ही एक स्कूल में नौकरी मिल गयी है। चहकते हुए बोली मैं भी काफी दिनों से आपको तलाश रही थी यही खबर सुनाने के लिए ।  मैने भी खुशी प्रकट की और पार्टी देने के लिए कहा। इस पर वो एकदम राजी हो गयी। मेरा हाथ पकड़कर बोलने लगी यह नौकरी मेरे विश्वास को बढाया है पर तुमसे मेरा परिचय होना मेरा सौभाग्य रहा। मैने भी कह डाला कि जब दो लोगों के सौभाग्य बढिया होते है तभी दो अच्छे दोस्त मिलते है। पर तू जब भी इस मित्रता से बाहर होना चाहो तो यह तेरा अधिकार है। क्योंकि मित्रता कोई एग्रीमेंट नहीं होता है। मेरी बाते सुनकर वो भावुक सी हो गयी और थोड़ी देर में मैं अपने स्टॉप एम्स, पर उससे हाथ मिलाकर उतर गया। यह अलग बात है कि इस मुलाकात के चार साल हो जाने के बाद भी न उसका कोई फोन आया और न ही पार्टी के लिए बुलावा।  यह अलग बात है कि उस लड़की की मोहक बातें आज भी कभी कभी याद आने पर मोहक ही लगती है।    


सोमवार, 13 जून 2016

रेल वाली छक्की बहिन होली से ठिठोली








अनामी शरण बबल


आगरा से मेरा एक अनकहा सा नाता है कि जब जहां और जिस तरह भी मौका मिला नहीं कि खुद को आगरा मे ही पाता हूं। एक साल में 20-25 दफा तो आगरा जाना सामान्य तौर पर हो ही जाता है। पहले तो मैं आगरा बस से जाता था पर पिछले पांच सात साल से रेल ही मेरे सफर का साधन है। यदि ताज एक्सप्रेस से कभी जाना संभव नहीं हो पाता है तो अमूमन मैं जेनरल टिकट पर ही सफर करता हूं और रेल में गुजारे गए तीन घंटे का सफर मेरे लिए भारतीय जनता के मूड को परखने समझने का सबसे सरल और नायाब साधन होता है। तीन घंटे तक कहीं पर राजनीति तो कहीं खेल कहीं सिनेमा कहीं गंदगी कहीं मोदी की सफाई तो कही लालू मोदी मुलायम अखिलेश या आजम खान ही लोगों की जुबांन पर होते है। रेल यात्रा के दौरान ही मुझे एक छक्की से मुलाकात हुई थी, और संयोग इस तरह का रहा कि उसकी बातों, उसकी मासूमियत और उसकी निश्छलता का मुझ पर इस तरह का गहरा प्रभाव पडा कि अपनी जेब में हाथ डालकर सारे रूपए उसके आगे कर दिए। मगर कमाल कि वो केवल 10 या 20 रूपए से कभी ज्यादा हाथ नहीं लगाई। पहली मुलाकात के बाद वह दो बार और मिली। हर बार मुझे देखते ही वो तमाम सवारियों को छोड़कर मेरे पास दौडी आती है। रेल का यह स्नेहिल याराना मुझे हमेशा उसको तलाशने के लिए भी बाध्य करता था। पिछले काफी समय से मैं ट्रेन से आगरा नहीं जा सका था और इस बार 24 अप्रैल 2016 को आगरा ताज से गया। जाते समय मैं मथुरा स्टेशन पर उतर कर भी इधर उधर निगाह डाली और आगरा राजा की मंडी में भी देखा मगर वो अनाम छक्की नहीं दिखी। एक मई 2016 को आगरा से दिल्ली लौटते समय हम पांच सात लोग थे। किसी ने यमुना एक्सप्रेस वे वाली बस पकड़ने की सलाह दी तो किसी ने राजा मंडी रेलवे स्टेशन से ही ट्रेन पकड़ने पर जोर दिया, मगर मैं आगरा कैंट जाने के लिए अडा रहा। मेरे साथ दो लोग और थे। हमलोग पौने 11 बजे स्टेशन पर आकर टिकट ले लिए। मगर कांगो एक्सप्रेश हीराकुंड़ एक्सप्रेस  केरल एक्सप्रेस समता एक्सप्रेस आदि सारी ट्रेने दो से लेकर चार घंटे लेट चल रही थी। मेरे साथ यात्रा कर रहे दोनो लड़के मुझपर बिफर पड़े अंकल आपके कारण ही हमलोग फंस गए। इसी वाद विवाद के बीच मैं ज्योंहि स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक में घुसा ही था कि सामने ही तीन छक्की लड़कियों पर मेरी नजर पडी। दो तो बैठी थी, मगर एक लेटी हुई थी। इनको देखकर मेरा मन खिल गया। मैने अपने साथियों से कहा कि तुमलोग प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर चलकर बैठो मैं जरा इन से मिलकर आता हूं। ट्रेन के बारे में कोई सूचना हो तो फोन कर देना, नहीं तो मैं बस्स आ ही रहा हूं। मेरे साथियों को बड़ी हैरानी हुई। मैने अपने दोस्तों से कहा तू दूर जाकर देख तो सही ये लोग भी मेरे दोस्त ही हैं यार। टिकट और 20-25 रूपए हाथ में लेकर मैं उनकी तरफ बढा और उसी चौकोर सिमेंट के बैठने वाले चबूतरे पर जा बैठा। मुझे देखते ही एक ने टोका कहां जाना है राजा। मैने तुरंत पलटवार किया कौन राजा कौन रानी कौन राज है यार राजा खाजा के अलावा कुछ और नहीं बोल सकती क्या। खामोश बैठी दूसरी छक्की हाथ हिलाते हुए बोल पड़ी, कुछ खिलाएगा पिलाएगा भी कि बाते ही करेगा। मैने तुरंत 30 रूपए आगे कर दिए मैं जानता था कि तू खाने पीने की ही बात करेगी, इसी लिए पैसे निकाल कर ही इधर बैठने आया था। पैसे लेकर पहली खडी होती हुई बोली बस्स तीस रूपए। मैने कहा क्यों 15 में तीन चाय और बाकी के कुछ अपने लिए ले लेना। इस पर दूसरी ने टोका बडा महाजन है साला हिसाब लगाकर पईसा दे रहा है। उसकी बातें सुनकर मैं खिलखिला उठा, और खड़े होकर 20 रूपए और दिए साथ ही मैंने कहा कि मैं केवल चाय पीउंगा बाकी तुमलोग खाना। तभी एक ने जोडा कि और जो सोई हुई है उसके लिए कुछ नहीं। इस पर मैने कहा कि यार सफर में हूं और कितना दूं तू ही बता न। दोनों ने आंखो में आंखे डालकर सांकेतिक बात की। मैने बात को आगे बढाते हुए कहा कि मैं भी तो यार तुम्हारी ही एक सहेली की तलाश में हूं अगर मिल गयी तो उसको एक सौ रूपए देना है, और नहीं मिली तो तुमलोग को वो सौ रूपईया दे  दूंगा। सहेली की बात सुनते ही दोनों चहक उठी। बता न तेरी रानी कैसी है। तू यार है क्या उसका?  मैने तुरंत विरोध जताया तुमलोग भी अजीब हो राजा रानी सैंय्या के अलावा कोई और नाता नहीं होता क्या ? इस पर दोनों ने कहा कि हम कौन सी घरेलू है कि नातेदारी जाने । रोजाना हरामखोर बहिन...मादर,,,, मर्दो से ही तो पाला पड़ता है जो खाने के लिए पईसा उछालते है। इस तेवर पर मैं खामोश रहा। मैने उन दोनों को इस अनाम छक्की लड़की से हुई तीन मुलाकात का हाल बयान किया।  तुमलोग ही बताओं न क्या यह कोई नाता नहीं है। मैं तो बहुत दिनों से इधर ट्रेन से नहीं आया था मगर इस बार जब आया हूं तो उसको ही देख रहा हूं कि शायद हमारी रेल वाली बहिनजी मिल ही जाए कहीं। दोनों के चेहरे पर गंभीरता आ गयी। कौन है रे अनारकली जिसको इतना सुंदर भाई मिला है रे बाबा। एक ने बेताबी से कहा कि चलो नहीं मिलेगी तो हमलोग ही तेरी बहिन सी है। इस पर मैं जोर से खिलखिला पडा। मेरी हंसी से दोनों अवाक हो गयी। एक ने पूछा कोई नाम पहिचान रंग रूप उम्र बताओं न ताकि तेरा संदेशा तेरी अनारकली तक तो पहुंचाया जा सके। मैने कहा यही कोई 24- 25 की होगी। इस पर अब तक सो रही तीसरी छक्की कराहते हुए उठी और बेताबी से बोली नहीं भैय्या 28 की हूं।  अरे सो रही तीसरी छक्की तो वही थी जिसको खोजने के लिए मैं कैंट स्टेशन तक आया था। वह एकदम काली और कमजोर सी दिख रही थी। उसको देखते ही मैं बेताब सा हो उठा और झट से उसके पास पहुंचा और हाथों को थामकर पूछा क्या हुआ? इस पर अपना दाहिना पांव दिखाते हुए बोली कि ट्रेन से गिर गयी थी भईया। पांवो में घुटने के नीचे सूखते जख्म को देखकर लग रहा था कि घाव 15 से 20 दिन पहले का है। अब तक दोनो इसके संगी साथी एकदम खामोश खड़े थे तो 50 का एक नोट देते हुए मैने कहा अरे यार कुछ तो लाओं ताकि यह भी हमारे संग चाय पी ले। ज्योंहि एक छक्की जाने के लिए मुडी कि आवाज देकर मैने रोका और जेब से फिर सौ रूपए का एक नोट देते हुए कहा कि इसके लिए कुछ बिस्कुट भी ले लेना।
मैने उसको घाव दिखाने को कहा तो वह धीरे धीरे अपने सलवार को उपर कर कराहते हुए सूखते घाव को दिखाई। मेरे पास दर्द हर मलहम था मैने अपने बैग से उसे निकाला और उसके पैरो में लगा दिया। पांच मिनट के अंदर वो राहत महसूस की होगी, बहुत अच्छा लग रहा है भईया। मैने इस उपदेश के साथ कि दिन में दो तीन बार लगाओगी तो  तुम्हें राहत मिलेगी मलहम की डिबिया उसे थमा दिया। उसके चेहरे को गौर से देखा तो वो बोली क्या देख रहे हो भैय्या ?  हंसकर मैने कहा कि तू अब काफी मोटी तगडी और सुदंर सी दिख रही है। इस पर तुनकते हुए बोली मेरा मजाक उडा रहे हो। इस पर मैं भी पीटने का नाटक करते हुए कहा कि अगली दफा भी तू इसी तरह दिखी न तो तेरी पिटाई करूंगा। इस पर वो खिलखिला पडी। 
जब मैं इस सेवा और मनुहार  और प्यार दुलार से बाहर निकला तो  देखा कि रेलवे स्टेशन पर तो हमलोगों के इर्दगिर्द मजमा सा लगा हुआ है। मुझे थोडी लज्जा भी आई। मैने पास में ही खडी छक्की को कहा कि यहां तो पूरा मेला लग गया है। लोग अजीब तरह से हमलोगों को देख रहे थे। उसके पांव में मलहम लगाने के लिए मैं प्लेटफॉर्म के फर्श पर ही घुटना टेक बैठा था। तब तक चाय नास्ता आदि लेकर दूसरी छक्की बिफरते हुए आ गयी। अरे तेरी अंम्मा की सगाई हो रही है क्या जो यहां पर खडा है साले, चल भाग । चाय पानी नास्ता आ जाने के बाद वे लोग खाने में लग गए। मैने भी दो चार बिस्कुट निकालकर उसको दिए, तो चाय पीकर वो कुछ भली सी लगी। मैने उससे पूछा कि तेरा नाम क्या है? इस पर मुस्कान बिखेरती हुई बोली भईया हमलोग के कई नाम होते है। आगरा में कुछ झांसी में कुछ तो ग्वालियर में कोई और नाम। पर तू मेरे को होली कहना इस नाम को सब जानते है। मैने फोटो के लिए कहा तो चारा डालते हुए बोली कि तुमको मना करते ठीक नहीं लगता है भईया पर फोटू खींचने से तेरी गरीब बहिन को ही बडी जलालत झेलनी पड़ेगी, बाकी तुम जो ठीक समझो कर सकते हो। हां उसने मेरा मोबाइल  नंबर जरूर ली और पूछी भी  जब कभी भी तेरी जरूरत पड़ेगी तो क्या तू आएगा ? इस सवाल पर मैं भी परास्त सा ही हो गया। फिर भी साफ कहा कि यदि बदमाशी से कभी मेरा टेस्ट ली तो फिर कभी नहीं आउंगा, मगर दिल से और सहीं में जरूरत पर बुलाओगी तो कोशिश जरूर करूंगा। पर यह तो बता कि मैं अकेला आकर भला  तेरा क्या बचाव कर सकता हूं ? इस पर वो मेरे गाल या चेहरे को छूते हुए बोली नहीं भईया तुमसे शैतानी करूंगी तो तेरे ही सामने मगर इस तरह का मजाक कभी नहीं । फिर बोली कि तुंम आगरा तक ही आते हो? मेरे हां कहने पर मायूष होकर होली बोली अब मैं आगरा कम ही आती हूं भईया कई महीनो के बाद कल ही आगरा आई हूं। अब ज्यादातर मैं झांसी में रहती हूं। इस पर मैंने उसके दोनों हाथ पकड लिए सच होली इस बार मैं भी तुमको बहुत याद कर रहा था, लगता है कि हमलोग इसी कारण इस बार मिल भी गए। मेरी बात सुनते ही होली समेत तीनों जोर से खिलखिला पड़ी। उनलोगों को हंसते देखकर मैं थोडा झेंप सा गया। तब एक ने कहा यार तू सिनेमा में चला जा एकदम राजकपूर की तरह अपनी होली से प्यार जता रहा था। मैं भी हंसता मुस्कुराता फर्श से खडा होकर अपने पैंट और टी शर्ट ठीक करने में लग गया। मोबाईल निकाल कर समय देखा तो एक बज रहे थे। कब और किस तरह दो घंटे निकल गए इसका अंदाजा ही नहीं लगा। मैने चौकीदार छक्कियों से नाम पूछा तो एक ने अपना नाम बुलबुल और दूसरे ने चंदा बताया। मैने दोनों से पूछा कि क्या फिर कुछ चाय पानी? मेरी बात सुनते ही चंदा ने 30-40 रूपए निकालकर मुझे पकडाने लगी। तुम तो अपने निकल गए तुमसे क्या पैसे लेना। मैने चंदा को प्यार से कहा कि अपने का मतलब क्या होता है जानी और चाय लाने को है का। खाना पीना तो चलेगा ही। मैने एक सौ रूपए का एक नोट पकडाते हुए चाय के लिए कहा। साथ ही अपना बैग खोलकर उसमें रखे पेठे का एक डिब्बा निकालकर होली को थमाया। यह तुमलोग के लिए है। पेठा का डिब्बा देखकर होली बहुत खुश हुई मगर दूसरे ही पल वापस करती हुई बोली नहीं भैय्या घर के लिए ले जा रहे हो इसे नहीं रखूंगी। इस पर मैने पेठे का दूसरा डिब्बा दिखाते हुए मैने कहा कि यह देखो घर के लिए यह है । दूसरा डिब्बा तेरे लिए ही खरीदा था कि अगर तू मिल गयी तो कुछ मीठा तो होना ही चाहिए न। पेठा निकालने पर बुलबुल बोली तुम तो काफी धनवान लग रहे हो भाई। इस पर मैने  कहा नहीं बुलबुल तेरा भाई दिल से तो बहुत अमीर है, पर धन से कोई खास नहीं। ये तो होली के नाम पर इतने रूपए जमा थे सो वहीं खर्च कर रहा हूं, नहीं तो फिर तेरे ही जेब पर डाका डाला जाता। बुलबुल फिर बोली तुम करते क्या हो भाई ? मैं उसकी उत्कंठा पर हंस पडा कुछ नहीं यार बस्स इधर उधर लिखना और भाषण देता हूं कॉलेज में । वो सहज होकर बोली तुम नेता हो ?  मैंने पलटते ही कहा मैं तुम्हें नेता लग रहा हूं। मैं तो पैंट टीशर्ट पहनता हूं जबकि नेता तो खद्दर पहनते है। इस पर वो फिर वोली नहीं भाई जमाना बदल गया है कपड़ो से अब कोई नहीं पहचाना जाता। तब तक चंदा कुछ सामान के साथ आ चुकी थी। तीनों खाने पर टूट पडी थी  और मैं चाय ले रहा था। बुलबुल और चंदा ने कहा कि वैसे तो हमलोग का यहां स्टेशन पर उधारी भी चलता है पर आज हमलोग के पास एकदम पैसे नहीं थे यह तो तुम टकरा गए कि तेरा भी काम हो गया और होली के चलते हमलोग भी पार्टी कर रहे है। दोनों ने कहा हमलोग भाई दिल की इतनी बुरी नहीं होती है पर रोजाना सैकड़ो मर्दो से टकराना होता है, लिहाजा जरा गरम वाचाल और उदंड स्वभाव रखना पड़ता है ताकि लोग हमलोगों से डरे.और दूर ही रहे।
खान पान के बाद मैने होली से चलने की इजाजत मांगी। अपने बैग से दो नया तौलिया और चार पांच सफेद रूमाल निकालकर होली के सामने रख दिया कि यह सब रखो और आपस में बांट लेना। मेरे पास नया केवल दो ही तौलिया था। साथ ही प्रसाद का एक पैकेट भी निकालकर होली को थमाया। इन सामान को देखकर वे लोग एकदम चकित थी। एक साथ बोली अरे भाई इसको तुम ही रखो घर ले जा रहे हो । तब मैने लाचारी जाहिर की। यार मेरे पास कोई यादगार चीज ही नहीं है कि तुमलोग को दे सकूं। इस तरह ढाई घंटे बीत गए यह पता ही नहीं लगा। सबो ने थोडी देर और रूकने का मनुहार किया। रूकने की बजाय मैने होली के सिर पर हाथ फेरा और कहा कि ढाई बजे तक दिल्ली के लिए तीन ट्रेन है अगर यह छूट गयी तो घर पहुंचने में काफी रात हो जाएगी। जेब से सौ रूपए का नोट निकाल कर होली के हाथों में रख दिया, तो वह रोने लगी। बैठी ही बैठी वो मुझसे लिपट गई।  भईया मैने जरूर अच्छे कोई कर्म किए होगें तभी तो मेरे को भगवान ने छक्की बनाकर भी तुम जैसा भाई सौंप दिया है। अमूमन मैं जरा कठोर सा हूं आंखों में आंसू नहीं आते पर मेरा गला भी भर्रा उठा। मैने भी उससे कहा कि होली तुमको पाकर मैं भी बडा सौभाग्यशाली ही मान रहा हूं। रेलवे स्टेशन पर बडा अजीब सा ड्रामा हो रहा ता। मेरे आस पास 100 से ज्यादा लोग खड़े थे। और नयी नयी बहिन बनी चंदा और बुलबुल भी रो रही थी। मैने चुटकी ली जानती है जब मैने होली को पहली बार भाई कहा था तो वो बोली थी कि भईया सारे मेरे भाई ही बन जाओगे तो पैसा कौन देगा। और अब मैं तुमलोग से कह रहा हूं चंदा बुलबुल रानी कि तुम सब मेरी बहिन ही बन जाएगी तो तेरा भईया किस पर लाईन मारेगा जी। मेरी बात सुनकर तीनों ठहाका मारकर हंसने लगी। मैं भी जरा माहौल के  तनाव को खुशनुमा बनाते हुए फिऱ अपनी होली बहिन को दवा समय पर खाने और बाम लगाने और दो एक दिन में झांसी जाकर आराम करने की सलाह दी। तब तक मेरे दोनों  मित्र भी पास में आकर बताया कि दो बजकर 10 मिनट में मैसूर निजामुद्दीन सुपर फास्ट आ रही है सो बस चला जाए। मैं भी सामान उठाने लगा। तीनो से फिर मुलाकात होने की उम्मीद के साथ मैं अपने मित्रों के साथ चल पडा। तभी होली ने आवाज दी एक मिनट इधर आना। मैं उसके पास पहुंचा ही था कि वह बडे अदब से मेरा पैर छूकर प्रणाम की और बोली कि मैं चलने लायक नहीं हूं भैय्या, नहीं तो तेरे संग दिल्ली तक जाकर ही लौटती। तेरे को जाने देने का तो मन नहीं कर रहा है पर क्या करे। मैने भी होली के हाथ को पकड़कर कहा कि मेरा भी जाने का मन एकदम नहीं कर रहा है पर जाना भी जरूरी है होली। वो बस्स हां भईया बोली और मैं अपना सामान उठाकर तेजी से आगे बढ़ गया। मेरे साथ ही साथ वहां पर जमा भीड भी इधर उधर हो गयी। मगर पीछे मुड़कर उन तीनों को देखने की मेरी हिम्मत नहीं हुई और मैं भी स्टेशन के फूटओवर ब्रिज पर चढने लगा।  

रविवार, 12 जून 2016

ट्रेन वाली बहिन होली से ठिठोली







अनामी शरण बबल


आगरा से मेरा एक अनकहा सा नाता है कि जब जहां और जिस तरह भी मौका मिला नहीं कि खुद को आगरा मे ही पाता हूं। एक साल में 20-25 दफा तो आगरा जाना सामान्य तौर पर हो ही जाता है। पहले तो मैं आगरा बस से जाता था पर पिछले पांच सात साल से रेल ही मेरे सफर का साधन है। यदि ताज से जाना संभव नहीं हो पाता है तो अमूमन मैं जेनरल टिकट पर ही सफर करता हूं और रेल में गुजारे गए तीन घंटे का सफर भारतीय जनता के मूड को परखने समझने का सबसे सरल और नायाब साधन होता है। तीन घंटे तक कहीं पर राजनीति तो कहीं खेल कहीं सिनेमा कहीं गंदगी कहीं मोदी की सफाई तो कही लालू मोदी मुलायम अखिलेश या आजम खान ही लोगों की जुबांन पर होते है। रेल यात्रा के दौरान ही मुझे एक छक्की से मुलाकात हुई थी, और संयोग इस तरह का रहा कि उसकी बात उसकी मासूमियत और उसकी निश्छलता का मुझ पर इस तरह का प्रभाव पडा कि अपनी जेब में हाथ डालकर सारे रूपए उसके आगे कर दिए। मगर कमाल कि वो केवल 10 या 20 रूपए से कभी ज्यादा हाथ नहीं लगाई। पहली मुलाकात के बाद वह दो बार और मिली। हर बार मुझे देखते ही वो तमाम सवारियों को छोड़कर मेरे पास दौडी आती है। रेल का यह स्नेहिल याराना मुझे हमेशा उसको तलाशने के लिए बाध्य करता था। पिछले काफी समय से मैं ट्रेन से आगरा नहीं जा सका था और इस बार 24 अप्रैल 2016 को आगरा ताज से गया। जाते समय मैं मथुरा स्टेशन पर उतर कर भी इधर उधर निगाह डाली और आगरा राजा की मंडी में भी देखा मगर वो अनाम छक्की नहीं दिखी। एक मई 2016 को आगरा से दिल्ली लौटते समय हम पांच सात लोग थे। किसी ने यमुना एक्सप्रेस वे वाली बस पकड़ने की सलाह दी तो किसी ने राजा मंडी रेलवे स्टेशन से ही ट्रेन पकड़ने पर जोर दिया, मगर मैं आगरा कैंट जाने के लिए अडा रहा। मेरे साथ दो लोग और थे। हमलोग पौने 11 बजे स्टेशन पर आकर टिकट ले लिए। मगर कांगो एक्सप्रेश हीराकुंड़ एक्सप्रेस  केरल एक्सप्रेस समता एक्सप्रेस आदि सारी ट्रेने दो से लेकर चार घंटे लेट चल रही थी। मेरे साथ यात्रा कर रहे दोनो लड़के मुझपर बिफर पड़े अंकल आपके कारण ही हमलोग फंस गए । इसी वाद विवाद के बीच मैं ज्योंहि स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर एक में घुसा ही था कि सामने ही तीन छक्की लड़कियों पर मेरी नजर पडी। दो तो बैठी थी, मगर एक लेटी हुई थी। इनको देखकर मेरा मन खिल गया। मैने अपने साथियों से कहा कि तुमलोग प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर चलकर बैठो मैं जरा इन से मिलकर आता हूं। ट्रेन के बारे में कोई सूचना हो तो फोन कर देना , नहीं तो मैं बस्स आ ही रहा हूं। मेरे साथियों को बड़ी हैरानी हुई। मैने अपने दोस्तों से कहा तू दूर जाकर देख ये लोग भी मेरे दोस्त ही हैं यार। टिकट और 20-25 रूपए हाथ में लेकर मैं उनकी तरफ बढा और उसी चौकोर सिमेंट के बैठने वाले चबूतरे पर जा बैठा। मुझे देखते ही एक ने टोका कहां जाना है राजा। मैने तुरंत पलटवार किया कौन राजा कौन रानी कौन राज है यार राजा खाजा के अलावा कुछ और नहीं बोल सकती क्या। खामोश बैठी दूसरी छक्की हाथ हिलाते हुए बोल पड़ी, कुछ खिलाएगा पिलाएगा भी कि बाते ही करेगा। मैने तुरंत 30 रूपए आगे कर दिए मैं जानता था कि तू खाने पीने की ही बात करेगी, इसी लिए पैसे निकाल कर ही इधर बैठने आया था। पैसे लेकर पहली खडी होती हुई बोली बस्स तीस रूपए। मैने कहा क्यों 15 में तीन चाय और बाकी के कुछ ले लेना। इस पर दूसरी ने टोका बडा महाजन है साला हिसाब लगाकर पईसा दे रहा है। उसकी बातें सुनकर मैं खिलखिला उठा, और खड़े होकर 20 रूपए और दिए साथ ही मैंने कहा कि मैं केवल चाय पीउंगा तेरे साथ तुमलोग खाना। तभी एक ने जोडा कि और जो सोई हुई है उसके लिए कुछ नहीं। इस पर मैने कहा कि यार सफर में हूं और कितना दूं तू ही बता न। दोनों आंखो में आंखे डालकर सांकेतिक बात की। मैने बात को आगे बढाते हुए कहा कि मैं भी तो तुम्हारी ही एक सहेली की तलाश में हूं अगर मिल गयी तो उसको एक सौ रूपए देना है, और नहीं मिली तो तुमलोग को वो सौ रूपईया दे  दूंगा। सहेली की बात सुनते ही दोनों चहक उठी। बता न तेरी रानी कैसी है। तू यार है क्या उसका?  मैने तुरंत विरोध जताया तुमलोग भी अजीब हो राजा रानी सैंय्या के अलावा कोई और नाता नहीं होता क्या ? इस पर दोनों ने कहा कि हम कौन सी घरेलू है कि नातेदारी जाने । रोजाना हरामखोर बहिन...मादर,,,, मर्दो से ही तो पाला पड़ता है जो खाने के लिए पईसा उछालते है। इस तेवर पर मैं खामोश रहा। मैने उन दोनों को इस अनाम छक्की लड़की से हुई तीन मुलाकात का हाल बयान किया।  तुमलोग ही बताओं न क्या यह कोई नाता नहीं है। मैं तो बहुत दिनों से इधर ट्रेन से नहीं आया था मगर इस बार आया हूं तो उसको ही देख रहा हूं कि शायद हमारी रेल वाली बहिनजी मिल ही जाए कहीं। दोनों के चेहरे पर गंभीरता आ गयी। कौन है रे अनारकली जिसको इतना सुंदर भाई मिला है रे बाबा। एक ने बेताबी से कहा कि चलो नहीं मिलेगी तो हमलोग ही तेरी बहिन सी है। इस पर मैं जोर से खिलखिला पडा। मेरी हंसी से दोनों अवाक हो गयी। एक ने पूछा कोई नाम पहिचान रंग रूप उम्र बताओं न ताकि तेरा संदेशा तेरी अनारकली तक तो पहुंचाया जा सके। मैने कहा यही कोई 24- 25 की होगी। इस पर अब तक सो रही तीसरी छक्की कराहते हुए उठी और बेताबी से बोली नहीं भैय्या 28 की हूं।  अरे सो रही तीसरी छक्की वही थी जिसको खोजने के लिए मैं कैंट स्टेशन तक आया था। वह एकदम काली और कमजोर सी दिख रही थी। उसको देखते ही मैं बेताब सा हो उठा और झट से उसके पास पहुंचा और हाथों को थामकर पूछा क्या हुआ? इस पर अपना दाहिना पांव दिखाते हुए बोली कि ट्रेन से गिर गयी थी भईया। पांवो में घुटने के नीचे सूखते जख्म को देखकर लग रहा था कि घाव 15 से 20 दिन पहले का है। अब तक दोनो इसके संगी साथी एकदम खामोश खड़े थे तो 50 का एक नोट देते हुए मैने कहा अरे यार कुछ तो लाओं ताकि यह भी हमारे संग चाय पी ले। ज्योंहि एक छक्की जाने के लिए मुडी कि आवाज देकर मैने रोका और जेब से फिर सौ रूपए का एक नोट देते हुए कहा कि इसके लिए कुछ बिस्कुट भी ले लेना।
मैने उसको घाव दिखाने को कहा तो वह धीरे धीरे अपने सलवार को उपर कर कराहते हुए सूखते घाव को दिखाई। मेरे पास दर्द हर मलहम था मैने अपने बैग से उसे निकाला और उसके पैरो में लगा दिया। पांच मिनट के अंदर वो राहत महसूस की होगी, बहुत अच्छा लग रहा है भईया। मैने इस उपदेश के साथ कि दिन में दो तीन बार लगाओगी तो  तुम्हें राहत मिलेगी के साथ ही मलहम की डिबिया उसे थमा दिया। उसके चेहरे को गौर से देखा तो वो बोली क्या देख रहे हो भैय्या ?  हंसकर मैने कहा कि तू अब काफी मोटी तगडी और सुदंर सी दिख रही है। इस पर तुनकते हुए बोली मेरा मजाक उडा रहे हो। इस पर मैं भी पीटने का नाटक करते हुए कहा कि अगली दफा भी तू इसी तरह दिखी न तो तेरी पिटाई करूंगा। इस पर वो खिलखिला पडी। 
जब मैं इस सेवा और मनुहार  और प्यार दुलार से बाहर निकला तो  देखा कि रेलवे स्टेशन पर तो हमलोगों के इर्दगिर्द मजमा सा लगा हुआ है। मुझे थोडी लज्जा भी आई। मैने पास में ही खडी छक्की को कहा कि यहां तो पूरा मेला लग गया है। लोग अजीब तरह से हमलोगों को देख रहे थे। उसके पांव में मलहम लगाने के लिए मैं प्लेटफॉर्म के फर्श पर ही घुटना टेक बैठा था। तब तक चाय नास्ता आदि लेकर दूसरी छक्की बिफरते हुए आ गयी। अरे तेरी अंम्मा की सगाई हो रही है जो यहां पर खडा है साले, चल भाग । चाय पानी नास्ता आ जाने के बाद वे लोग खाने में बिजी हो गए। मैने भी दो चार बिस्कुट निकालकर उसको दिए, तो चाय पीकर वो कुछ भली सी लगी। मैने उससे पूछा कि तेरा नाम क्या है? इस पर मुस्कान बिखेरती हुई बोली भईया हमलोग के कई नाम होते है। आगरा में कुछ झांसी में कुछ तो ग्वालियर में कोई और नाम। पर तू मेरे को होली कहना इस नाम को सब जानते है। मैने फोटो के लिए कहा तो चारा डालते हुए बोली कि तुमको मना करते ठीक नहीं लगता है भईया पर फोटू खींचने से तेरी गरीब बहिन को ही बडी जलालत झेलनी पड़ेगी, बाकी तुम जो ठीक समझो कर सकते हो। हां उसने मेरा नंबर जरूर ली और पूछी भी  जब कभी भी तेरी जरूरत पड़ेगी तो क्या तू आएगा ? इस सवाल पर मैं भी परास्त सा ही हो गया। फिर भी साफ कहा कि यदि बदमाशी से कभी मेरा टेस्ट ली तो फिर कभी नहीं आउंगा, मगर दिल से और सहीं में जरूरत पर बुलाओगी तो कोशिश जरूर करूंगा। पर यह बता कि मैं अकेला आकर तो तेरा क्या बचाव कर सकता हूं। इस पर वो मेरे गाल या चेहरे को छूते हुए  बोली नहीं भईया तुमसे शैतानी करूंगी तो सामने मगर इस तरह का मजाक कभी नहीं । फिर बोली कि तुंम आगरा तक ही आते हो? मेरे हां कहने पर मायूष होकर होली बोली अब मैं आगरा कम आती हूं भईया कई महीनो के बाद कल ही आगरा आई हूं। अब ज्यादातर झांसी में रहती हूं। इस पर मैंने उसके दोनों हाथ पकड लिए सच होली इस बार मैं भी तुमको बहुत याद कर रहा था, लगता है कि हमलोग इसी कारण इस बार मिल भी गए। मेरी बात सुनते ही होली समेत तीनों जोर से खिलखिला उठी। उनलोगों को हंसते देखकर मैं थोडा झेंप सा गया। तब एक ने कहा यार तू सिनेमा में चला जा एकदम राजकपूर की तरह अपनी होली से प्यार जता रहा था। मैं भी हंसता मुस्कुराता फर्श से खडा होकर अपने पैंट और टी शर्ट ठीक करने में लग गया। मोबाईल निकाल कर समय देखा तो एक बज रहे थे। कब और किस तरह दो घंटे निकल गए इसका अंदाजा ही नहीं लगा। मैने चौकीदार छक्कियों से नाम पूछा तो एक ने अपना नाम बुलबुल और दूसरे ने चंदा बताया। मैने दोनों से पूछा कि क्या फिर कुछ चाय पानी? मेरी बात सुनते ही चंदा ने 30-40 रूपए निकालकर मुझे पकडाने लगी। तुम तो अपने निकल गए तुमसे क्या पैसे लेना। मैने चंदा को प्यार से कहा कि अपने का मतलब क्या होता है जानी और चाय लाने को है का। खाना पीना तो चलेगा ही। मैने एक सौ रूपए का एक नोट पकडाते हुए चाय के लिए कहा। साथ ही अपना बैग खोलकर उसमें रखा पठे का एक डिब्बा निकालकर होली को थमाया।यह तुमलोग के लिए है। पेटा का डिब्बा देखकर होली बहुत खुश हुई मगर दूसरे ही पल वापस करती हुई बोली नहीं भैय्या घर के ले ले जा रहे हो इसे नहीं रखूंगी। इस पर पेठे का दूसरा डिब्बा दिकाते हे मैने कहा कि दोखो घर के ले यह है । दूसरा डिब्बा तेरे लिए ही खरीदा था कि अगर तू मिल गयी तो कुछ मीठा तो होना ही चाहिए न। पेठा निकालने पर बुलबुल बोली तुम तो काफी धनवान लग रहे हो भाई। इस पर मैने  कहा नहीं बुलबुल तेरा भाई दिल से तो बहुत अमीर है, पर धन से कोई खास नहीं। ये तो होली के नाम पर इतने रूपए जमा थे सो वहीं खर्च कर रहा हूं, नहीं तो फिर तेरे ही जेब पर डाका डाला जाता। बुलबुल फिर बोली तुम करते क्या हो भाई ? मैं उसकी उत्कंठा पर हंस पडा कुछ नहीं यार बस्स इधर उधर लिखना और भाषण देता हूं कॉलेज में । वो सहज होकर बोली तुम नेता हो ? मैंने पलटते ही कहा मैं तुम्हें नेता लग रहा हूं। मैं तो पैंट टीशर्ट पहनता हूं जबकि नेता तो खद्दर पहनता है। इस पर वो फिर वोली नहीं भाई जमाना बदल गया है कपड़ो से अब कोई नहीं पहचाना जाता। तब तक चंदा कुछ सामान के साथ आ चुकी थी। तीनों खाने पर टूट पडी थी  और मैं चाय ले रहा था। बुलबुल और चंदा ने कहा कि वैसे तो हमलोग का यहां स्टेशन पर उधार चलता है पर आज हमलोग के पास एकदम पैसे नहीं थे यह तो तुम टकरा गए कि तेरा भी काम हो गया और होली के चलते हमलोग भी पार्टी कर रहे है। दोनों ने कहा हमलोग भाई दिल की इतनी बुरी नहीं होती है पर रोजाना सैकड़ो मर्दो से टकराना होता है, लिहाजा जरा गरम वाचाल और उदंड स्वभाव रखना पड़ता है ताकि लोग हमलोगों से डरे.और दूर ही रहे।
खान पान के बाद मैने होली से चलने की इजाजत मांगी। अपने बैग से दो नया तौलिया और चार पांच सफेद रूमाल निकालकर होली के सामने रख दिया कि यह सब रखो और आपस में बांट लेना। मेरे पास नया केवल दो ही तौलिया था। साथ ही प्रसाद का एक पैकेट भी निकालकर होली को थमाया। इन सामान को देखकर वे लोग एकदम चकित थी। एक साथ बोली अरे भाई इसको तुम ही रखो घर ले जा रहे हो । तब मैने लाचारी जाहिर की। यार मेरे पास कोई यादगार चीज ही नहीं है कि तुमलोग को दे सकूं। इस तरह ढाई घंटे बीत गए यह पता ही नहीं लगा। सबो ने थोडी देर और रूकने का मनुहार किया। रूकने की बजाय मैने होली के सिर पर हाथ फेरा और कहा कि ढाई बजे तक दिल्ली के लिए तीन ट्रेन है अगर यह छूट गयी तो घर पहुंचने में काफी रात हो जाएगी। जेब से सौ रूपए का नोट निकाल कर होली के हाथों में रख दिया, तो वह रोने लगी। बैठी ही बैठी वो मुझसे लिपट गई।  भईया मैने जरूर अच्छे कोई कर्म किए होगें तभी मेरे को भगवान ने छक्की बनाकर भी तुम जैसा भाई सौंप दिया है। अमूमन मैं जरा कठोर सा हूं आंखों में आंसू नहीं आते पर मेरा गला भी भर्रा उठा। मैने भी उससे कहा कि होली तुमको पाकर मैं भी बडा सौभाग्यशाली ही मान रहा हूं। रेलवे स्टेशन पर बडा अजीब सा ड्रामा हो रहा ता। मेरे आस पास 100 से ज्यादा लोग खड़े थे। और नयी नयी बहिन बनी चंदा और बुलबुल भी रो रही थी। मैने चुटकी ली जानती है जब मैने होली को पहली बार भाई कहा था तो वो बोली थी कि भईया सारे मेरे भाई ही बन जाओगे तो पैसा कौन देगा। और अब मैं कह रहा हूं चंदा बुलबुल रानी कि तुम सब मेरी बहिन ही बन जाएगी तो तेरा भईया किस पर लाईन मारेगा जी। मेरी बात सुनकर तीनों ठहाका मारकर हंसने लगी। मैं भी जरा माहौल के  तनाव को खुशनुमा बनाते हुए फिऱ अपनी होली बहिन को दवा समय पर खाने और बाम लगाने और दो एक दिन में झांसी जाकर आराम करने की सलाह दी। तब तक मेरे दोनों  मित्र भी पास में आकर बताया कि दो बजकर 10 मिनट में मैसूर निजामुद्दीन सुपर फास्ट आ रही है सो बस चला जाए। मैं भी सामान उठाने लगा। तीनो से फिर मुलाकात होने की उम्मीद के साथ मैं अपने मित्रों के साथ चल पडा। तभी होली ने आवाज दी एक मिनट इधर आना। मैं उसके पास पहुंचा ही था कि वह बडे अदब से मेरा पैर छूकर प्रणाम की और बोली कि मैं चलने लायक नहीं हूं भैय्या, नहीं तो तेरे संग दिल्ली तक जाकर ही लौटती। तेरे को जाने देने का तो मन नहीं कर रहा है पर क्या करे। मैने भी होली के हाथ को पकड़कर कहा कि मेरा भी जाने का मन एकदम नहीं कर रहा है पर जाना भी जरूरी है होली। वो बस्स हां भईया बोली और मैं अपना सामान उठाकर तेजी से आगे बढ़ गया। मेरे साथ ही साथ वहां पर जमा भीड भी इधर उधर हो गयी। मगर पीछे मुड़कर उन तीनों को देखने की मेरी हिम्मत नहीं हुई और मैंतेजी से स्टेशन के फूटओवर ब्रिज पर चढने लगा।  

जब मेरे घर पर ही लड़की बुलाने का ऑफर दिया





अनामी शरण बबल

कभी कभी जिन लोगों को हम बहुत आदर और सम्मान से देखते है तो हमेशा पाते हैं कि वहीं आदमी कभी कभी अपनी नीचता के कारण एकदम बौना सा लगने लगता है। इसी तरह की एक घटना मेरे साथ भी हुई कि सैकड़ो कैसेट का एक गायक और जानदार नामदार आदमी को अपने घर से दुत्कार कर निकालना पड़ा। जिस आदमी के करीब होने से जहां मैं खुद को भी गौरव सा महसूस कर रहा था कि अचानक सबकुछ खत्म हो गय। यह घटना 1994 की है। जब एकाएक मेरे एक मित्र ने मेरे घर में आकर इस तरह का ऑफर रख दिया कि मन में आग लग गयी, और ...। घर में मेरे अलावा उन दिनों कोई और यानी पत्नी नहीं थी। मेरी पत्नी का प्रसव होना था। प्रसूति तो दिसम्बर मे होना था मगर वे कई माह पहले ही चली गयी थी। खानपान का पूरा मामला बस्स नाम का ही चल रहा था। होटल ही बडा सहारा था। खैर मेरे फ्लैट के आस पास में ही एक भोजपुरी गायक रहते थे और भोजपुरी संसार में बड़ा नाम था। उस समय तक उनके करीब 250 कैसेट निकल चुके थे। वे लगातार गायन स्टेज शो और रिकॉर्डिग में ही लगे रहते थे। समय मिलने पर मैं माह में एकाध बार उनके घर जरूर चला जाता था। मेरी इनसे दोस्ती या परिचय कैसे हुआ यह संयोग याद नहीं आ रहा है। मगर हमलोग ठीक
ठीक से मित्र थे। संभव है कि उस समय मयूर विहार फेज-3 बहुत आबाद नहीं था तो ज्यादातर लोग एक दूसरे से जान पहचान बढाने के लिए भी दोस्त बन रहे थे। अपनी सुविधा के लिए हम इस गायक का नाम मोहन रख लेते हैं ताकि लिखने और समझने में आसानी हो सके। हालांकि मैं यहां पर उनका नाम भी लिख दूं तो वे मेरा क्या बिगाड़ लेंगे, मगर हर चीज की एक मर्यादा और सीमा होती है, और इसी लक्ष्मण रेखा का पालन करना ही सबों को रास भी आता है। राष्ट्रीय सहारा अखबर में मेरा उस दिन ऑफ था या मैं छुट्टी लेकर घर पर ही था यह भी याद नहीं हैं । मैं इन दिनों अपने घर पर अकेला ही हूं, यह मोहन को पता था। मैं घर पर बैठा कुछ कर ही रहा हो सकता था कि दरवाजे पर घंटी बजी और बाहर जाकर देखा तो अपने गायक मोहन थे। उस समय शाम के करीब पांच बज रहे होंगे। मैं उनको बैठाकर जल्दी से चाय बनाने लगा। चाय बनाने में मैं उस्ताद हूं, और पाककला में केवल यही एक रेसिपी माने या जो कहे उसमें मेरा कोई मुकाबला नही। हां तो चाय  के साथ जो भी रेडीमेड  नमकीन  के साथ हमलोग गप्पियाते हुए खा और पी भी रहे थे । जब यह दौर खत्म हो गया तो मोहन जी मेरे अकेलेपन और पत्नी से दूर रहने के विछोह पर बड़ी तरस खाने लगे। बार बार वे इस अलगाव को कष्टदायक बनाने में लगे रहे। मैं हंसते हुए बोला कि आपकी शादी के तो 20 साल होने जा रहे हैं फिर भी बडी प्यार है भाई। अपन गयी हैं तो कोई बात नहीं। मामले को रहस्यम रोमांच से लेकर यौन बिछोह को बड़ी सहानुभूति के साथ मेरे संदर्भ से जोडने में लगे रहे। थोडी देर के बाद उनकी बाते मुझे खटकने लगी। मैने कहा कि यार मोहन जी मैं आपकी तरह अपनी बीबी को इतना प्यर नहीं करता कि एक पल भी ना रह सकूं । मेरे लिए दो चार माह अलग रहना कोई संकट नहीं है बंधु। इसके बावजूद वे मेरे पत्नी विछोह पर अपना दर्द  किसी न किसी रूप में जारी ही रखा। मोहन जी के विलाप से उकता कर मैने कहा अब बस्स भी करो यार मैं तो इतना सोचता भी नहीं जितना आप आधे घंटे में बखान कर गए। इस चैप्टर को बंद करे । तभी मेरे पास आकर  मोहन जी ने कहा क्या मैं आपके लिए कोई व्यवस्था करूं। यह सुनते ही मेरा तन मन सुलग उठा पर मैं उनकी तरफ देखता रहा कि यह कहां तक जा सकते है। मेरी खामोशी को सहमति मानकर खुल गए और बताया कि इनका जीजा नोएडा में किसी बिल्डर के यहां का लेबर मैनेजर है। उसने कहा कि आप कहे तो शाम को ही एक औरत को लेकर जीजा यहां आ जाएगा और दो चार घंटे के बाद सब निकल जाएंगे। मेरी तरफ देखे बगैर ही हांक मारी कि जब तक आपकी फेमिली नहीं आती हैं तब तक चाहे तो सप्ताह में दो तीन दिन मौज मस्ती की जा सकती है। मोहन की बाते सुनकर मैने भी हां और ना वाला भाव चेहरे पर लाया। तो वे एकदम खुव से गए अरे बबल जी चिंता ना करो जीजा रोजाना नए नए को ही लाएगा। मुझे क्या करना है मैं सोच चुका था पर इन हरामखोरो के सामने भी कुछ इसी तरह का प्रस्ताव रखने की ठान ली। मैंने कह मोहन आईडिया तो कोई खास बुरा नहीं है पर मैं उसके साथ आ ही नहीं सकता जो 44 के नीचे आई हो। मेरे लिए तो कोई एकदम फ्रेश माल लाना होगा। मेरी बात सुनकर वे चौंके क्या मतलब
? एकदम फ्रेश । मोहन जी एक ही शर्त पर मैं अपने घर को रंगमहल बना सकता हूं कि मेरे लिए आपको अपनी बेटी लाना होगा। मेरी बात सुनते ही वे चौंक उठे, कमाल है अनामी जी आप क्या बोल रहे हो। मैने तुरंत कहा इससे कम पर कुछ नहीं।  इसमें दिक्कत क्या है आपका जीजा आपके साथ मिलकर आपकी बहन और अपनी बीबी के साथ दगाबजी कर रहे हो तो एक तरफ बहिन तो दूसरी तरफ बेटी होगी और क्या। मेरे अंदाज से मोहन भांप गया कि बात नहीं बनेगी तो थोडा गरम होने की चेष्टा करने लगा। तब मैं एकदम बौखला उठा और सीधे सीधे घर से निकल जाने को कहा। सारी शराफत बस दिखावे के लिए है। मेरे से यह बात आपने कैसे कर दी यही सोच कर मुझे अपने उपर घिन आ रही है कि तू मेरे बारे में कितनी नीची ख्यालात रखता है।  कंधे पर हाथ लगाया और सीढियों  पर साथ साथ चलते हुए मैने जीवन मे फिर कभी घर पर नहीं आने की चेतावनी दी। इस तरह की एय्याशियों या साझा सेक्स की तो मैं दर्जनों घटनाओं को जानता हूं, पर कभी मैं इस तरह के साझ समूह सेक्स के लिए कोई मुझे कहे या मेरे घर को ही रंगमहल सा बनाने को कहे यह मेरे लिए एकदम अनोखा और नया अनुभव सा था। मैं घर में लौटकर काफी देर तक अपसेट रहा । इस घटना के बारे मैं अपनी पत्नी समेत कईयों को बताया। और इसी बीच मेरे और मोहन के बीच संवाद का रिश्ता खत्म हो गया।

तभी 1996 में होली के दिन मोहन मेरे घर पर एकाएक आ गए। उसको देखते ही मेरा मूड उखड सा गय पह माफी मांगी मगर होली में यह सामान्य होने के बाद भी मैं यह नहीं देख सका जब मोहन मेरी पत्नी के गालों पर गुलाल और रंग लगाने लगा। यह देखते ही मैं उबल पड़ा और फौरन मोहन को घर से जानवे की चेतावनी दी। तू मित्र लायक नहीं है यार अभी कटुता को भूले एक क्षण भी नहीं हुआ कि तू रंग बदलने लगा। तू बड़ा गायक होगा तो अपने घर का यहां से चल भाग। पर्व त्यौहार में अमूमन घर आए किसी मेहमान के साथ इस तरह की अभद्रता करना कहीं से भी शोभनीय नहीं होता, मगर कुछ संबंधों में सब कुछ जायज होता है।           

करीब दो साल के बाद मैं अपनी पत्नी को लेकर गांव चिल्ला सरौदा  के पास स्कूल में गया। जहां पर उनको अपने स्कूल की बोर्ड परीक्षा दे रही तमाम लडकियों  से मिलकर हौसला अफजाई के साथ साथ विश करना था। तभी एकाएक एक बार फिर मोहन टकरा गए। उनकी दूसरी बेटी भी बोर्ड की परीक्षा देने वाली थी। मोहन से टीक ठाक मिला तो उन्होने अपनी बड़ी बेटी से मेरी पत्नी का परिचय कराया जिसकी पिछले साल ही शादी हुई थी। वो हमदोनों के पैर छूकर प्रणाम की तो मैं उसको गले लगा लिया । माफ करना बेटा एक बार किसी कारण से तेरे को मैं गाली दे बैठ था पर तू तो परी की तरह राजकुमरी हो । माफ करन बेटा. मेरे इस रूप और एकाएक माफी मांगने से वह लड़की अचकचा गयी। पर मेरे मन में कई सालों का बोझ उतर गया। जिसको बेटी की तरह देखो और उसको ही किसी कारण से कामुक की तरह संबोधित करना वाकई बुरा लगता है। इस घटना के बाद करीब 18 साल का समय गुजर गया, मगर गायक मोहन या इसके परिवार के किसी भी सदस्यों से फिर कभी मुलाकात नहीं हुई।   

मंगलवार, 7 जून 2016

बुलंद हौसले वाली दोनों लड़कियों को आज भी सलाम






अनामी शरण बबल

इधर जब से मैने अपनी सबसे अच्ची रिपोर्ट को फिर से लिखने की ठानी है तो
बहुत सारी कथाओं के नायक नायिकाओं में से ही दो गुमनाम सी लड़कियों (अब औरतें बनकर करीब 50 साल की होंगी) को आज भी मैं भूल नहीं पाया हूं । जिन्होने अपनी हिम्मत और हौसले के बूते वैवाहिक जीवन तक को दांव पर लगा दी। तो दूसरी लड़की ने तो सार्वजनिक तौर पर अपनी साहस से उन तमाम लड़कियों को भी बल दिया होगा जो किसी न किसी आंटियों यानी जिस्म की दलाली करने वाली धोखेबाजों के फेर में पड़ कर कहीं सिसक रही होंगी। हालांकि अब तो मुझे इनका सही सही चेहरा भी याद नहीं है मगर इनकी हिम्मत और हौसले की कहानी को यहां पर लिखने से पहले ही सैकड़ों उन लड़कियों को इनकी कहानी सुना चुका हूं जो अपना घर छोड़कर नगर या महानगर जाने वाली होती थी।
यह मुलाकात 1990 की है, जब मैं चौथी दुनिया साप्ताहिक अखबार में बतौर रिपोर्टर काम करता था। आगरा के भगवान सिनेमा पर से दिल्ली के लिए बस पकड़ा ही था। गेट पर ही खड़ा होकर बस के अंदर अपने लिए सीट देख रहा था। पूरे बस में केवल एक ही सीट खाली थी जिसमें एक औरत अपने एक बच्चे के साथ बैठी थी और दूसरा सीट मेरा इंतजार कर रहा था। मैं वहां पर जाकर ज्योंहि बैठने लगा तो चार पांच साल के अबोध बच्चे ने मासूमियत के साथ बोला अंकल यहां पर आप बैठ जाओगे तो मैं कहां बैठूंगा ? बच्चे की इस मासूमियत पर भला मैं कहां बैठने वाला। गाड़ी खुल चुकी थी और मैं बच्चे के लिए बस में खडा ही था। यह बात उसकी मां को असहज सी लग रही होगी। उन्होने गोद में बच्चे को लेते हुए मुझे बैठने के लिए कहा, मगर मैं खड़ा ही रहा और कोई दिक्कत ना महसूसने को कहा। इस पर प्यारा सा बच्चा मुझसे कुछ कहने के लिए नीचे झुकने का संकेत किया। चलती बस में मैं नीचे झुककर बच्चे के बराबर हो गया तो उसने कहा एक शर्त पर आप यहां बैठ सकते हो? मैं बिना कुछ कहे उसकी तरफ देखने लग तो बालक ने कह कि मम्मी की तबियत ठीक नहीं है, यदि आप मुझे अपनी गोद में बैठा कर ले चल सकते हो तो मैं आपके लिए सीट छोड़ सकत हूं। मैं उसके इस ऑफर पर खुश होते हुए प्यार से उसके गाल मसल डाले। इस पर नाराज होते हुए बालक ने अपनी मम्मी से यह शिकायत कर बैठा कि ये अंकल भी गाल खिंचते है। मेरे और बच्चे के बीच हो रहे संवाद पर आस पास के कई यात्री ठटाकर हंस पड़े, तो वह शरमाते हुए मेरे सहारे ही सीट पर खड़ा हो गया और बैठने से पहले चेतावनी भी दे डाली कि बस में दोबारा यदि गाल खिचोगे तो वहीं पर सीट से उठा दूंगा। मैं भी हंसते हुए कान पकड़कर ऐसा नहीं करने का भरोसा दिय। सीट पर बैठते ही मैं अपने बैग से कुछ नमकीन टॉफी और बिस्कुट निकाल कर बच्चे को थमाया। जिसे उसकी मम्मी को बुरा भी लग रहा था, मगर इन चीजों को पाकर बच्चा निहाल सा हो गया।
बच्चा मेरी गोद में सो गया था और मैं भी नींद की झपकियां ले रहा था, तभी बस कहीं पर चाय नाश्ता के लिए रूक गयी। मैने बालक की मां से पूछा कि आप कुछ लेंगी ? इससे पहले की उसकी मम्मी कुछ बोलती उससे पहले ही बालक बोल पड़ा हां अंकल क्रीम वाली बिस्कुट। बच्चे को गोद में लेकर मैं बस से उतर गया। चाय तो मैं नीचे ही पी लिया और खिड़की से ना नुकूर के बाद भी बालक की मम्मी को एक समोसा और चाय पकडाया। बालक के पसंद वाले बिस्कुट के दो पैकेट लेकर हम दोनें बस में सवार हो गए। बस में सीट पर बैठते ही सामान के बदले कुछ रूपए जबरन पकड़ाने लगी। किसी तरह पैसे नहीं लेने पर मैं उनको राजी किया तो पता चला कि वे आगरा दयालबाग के निकट अदनबाग में रहती है। मैने भी जब दयालबाग से अपने जुड़ाव को बताया तो बच्चे की मां सरला ने भी कहा कि उसके मम्मी पापा भी दयालबाग से ही जुड़े है। बस के चालू होते ही इस बार हमदोनों के बीच बातचीत का सिलसिला भी चालू हो गया। सरला ( जहां तक मुझे याद है कि महिला का नाम सरला ही था) ने बताया कि वह दिल्ली नगर निगम के किसी प्राईमरी स्कूल में टीचर है। ससुराल के बारे में पूछे जाने पर उसने बताया कि हमलोग में तलाक हो गया है और मैं यमुनापार के गीता कॉलोनी में रहती हूं, क्योंकि यहां से स्कूल करीब है। पति के बारे में पूछे जाने पर वह रूआंसी हो गयी। सरला ने कहा कि उसका पति कमल रेस्तरां और बार में काम करता था और नौकरी छोड़कर कॉलगर्ल बनने की जिद करता था। वो बार बार कहता था कि तू जितना एक माह में तू कमाती है, उतनी कमाई एक रात में हो सकती है। तीन साल तक मैं किसी तरह उसके साथ रही मगर जब उसने अपनी जिद्द पूरी करने और परेशान करने या फोन पर रूपयों का ऑफर देने का कॉल करने या कराने लगा तो मैं उसके अलग रहने लगी। मेरे तलाक का फैसला 1989 नवम्बर में तय हो गया। सरला ने बताया कि अब वो खुद को बेरोजगार दिखाकर मेरे वेतन से ही पैसे की मांग करने लगा है। कहा जाता है कि लड़कियों के लिए शादी एक कवच होता है, मगर इस तरह के दलाल पति के साथ रहने से तो अच्छा होता है बिन शादी का रहना या अपने नामर्द पति के चेहरे पर जूते मारकर सबको बताना कि इस तरह के पति से बढिया होता है किसी विधवा का जीवन। मैं सफर भर उसकी बाते सुनता रहा और साहस तथा हिम्मत दाद भी दिया। उसने यह भी कहा कि मेरे मकान का मालिक भी इतने सरल और ध्यान रखने वाले हैं कि दिल्ली में भी अपना घर सा ही लगता है।
मैने सरला से पूछा कि क्या तुम्हारी रिपोर्ट छाप सकता हूं ? तो वह चहक सी गयी। बस्स अपना फोटो या बच्चे की फोटो नहीं छापने का आग्रह की। उसने कहा कि मेरी जो कहानी है, ऐसी सैकड़ों लड़कियों की भी हो सकती है। मैं जरूर चाहूंगी कि यह खबर छपे ताकि पति के वेश में दलाल और पत्नी को ही रंडी बनाने वाले पति और ससुराल का पर्दाफश हो। सरला की यह कहनी चौथी दुनिया में छपी भी और इसकी बड़ी प्रतिक्रिया भी हुई। । चौथी दुनियां की 25 प्रति मैने सरला तक पहुचाने की व्यवस्था करा दिए, मगर आज 26 साल के बाद जब सरला की उम्र भी आज 54-55 से कम नहीं होगी मेरी गोद में बैठा बालक भी आज करीब 30 साल का होगा। तो बेशक इनके संघर्ष की कहानी का दूसरा पहलू आरंभ हो गया होगा । आज जब मैं 26 साल के बाद यह कहानी फिर लिख रहा हूं तो मुझे यह भरोसा है कि वे आज कहीं भी हो मगर अपनी पुरानी पीड़ाओं से उबर कर एक खुशहाल जीवन जरूर जी रही होंगी।
जिस्म के दलालों से टक्कर
यह कहानी भी यमुनापार की है। लक्ष्मीनगर के ही किसी एक मोहल्ले में तीन अविवाहित लड़कियं रहती थी और घर में केवल एक बुढा लाचार सा बाप था। इनकी मां की मौत हो चुकी थी और घर में आय के नाम पर केवल चार पांच कमरों के किराये से मिलने वाली राशि थी। मैं सभी लड़कियों को जानता था सभी मुझे अच्छी भली तथा साहसी भी लगती थी। यह कहानी सुमन (बदला हुआ नाम है) की है। घर में मां के नहीं होने के कारण यह कहा जा सकता है कि इन पर लगाम की कमी थी। मैं इसी घर के आसपास में ही किरायें पर रहता था । सारी बहनें मुझे जानती थी और यदा कदा जब कभी कहीं पर भी मिलती तो नमस्ते जरूर करती। सारी बहने हिन्दी टाईप जानती थी और मुझे किसी न्यूज पेपर में काम दिलाने के लिए कहती भी रहती थी। घर के आस पास में कई ब्यूटी पार्लर खुले थे और इनका धंधा भी धीरे धीरे पांव पसारने लगा था। एक दिन मैं घर पर दोपहर तक था और कुछ लिखने में तल्लीन था कि गली में कोहराम सा मच गया। एकाएक शोर हंगामा और मारपीट तोड फोड़ की तेज आवाजों के बीच मैं बाहर निकलने के लिए कपड़े बदलने लग। तभी जोर जोर से सुमन की आवाज आने लगी। मैं थोड़ा व्यग्र सा होकर जल्दी से बाहर भागा। एक ब्यूटीपार्लर के बाहर हंगामा बरपाया हुआ था। सुमन के हाथ में झाडू था और वह किसी रणचंडी की तरह ब्यूटीपार्लर की मालकिन के सामने खड़ी होकर उसकी बोलती बंद कर रखी थी। गली के ज्यातर लोग भी सुमन के साथ ही थे मगर एकाएक ब्यूटीपार्लर को कबाड़ बना देने का माजरा किसी को समझ नहीं आ रहा था। ब्यूटीपार्लर की मालकिन सुमन के साथ अब भिड़ने लगी थी और बार बार पुलिस को बुलाने का धौंस मार रही थी। इस पर मैं आगे बढा और पूरी बात जाने बगैर ही बीच में टपक सा पड़ा। सुमन को पीछे करके मैने भी धौंस दी कि कि मामला क्या है यह तो अभी पता चल जाएगा मगर तू बार बार पुलिस का क्या धौंस मार रही है। तू पुलिस बुलाती है या मैं फोन करके पुलिस को यहां पर बुलाउं। मेरे साथ कई और लड़के तथा बुजुर्गो के हो जाने के बाद ब्यूटीपार्लर वाली आंटी अपने कबाड़ में तब्दील पार्लर को यूं ही छोड़कर कहीं खिसक गयी। तीनों बहन गली मे ही थी। मैने तीनो को घर में जाने को कहा, मगर वे लोग गली मे लगे मजमे के बीच ही खड़ी रही। थोडी देर के बाद जब मेरी नजर इन तीनों पर पड़ी तो सबसे बड़ी बहन को डॉटते हुए कहा कि इस तमाशे तो खत्म कराना है न तो जाओं सब अंदर और हाथ पकड़कर तीनो बहनों को घर के भीतर धकेल कर बाहर से दरवाजा लगा दिया। थोड़ी देर तक बाजार गरम रहा। सबों को इतनी सीधी लड़की के एकाएक झांसी की रानी बन जाने पर आश्चर्य हो रहा था। मैने भी कहा कि कोई न कोई बात गहरी है तभी यह लड़की फूटी है, मगर हम सबलोगों को सुमन का साथ देना है, क्योंकि हमारे गली मोहल्ले और घर की बात है । इस पर हां हां की जोरदार सहमति बनी और यह तमाशा खत्म हुआ। गली की ज्यादातर महिलाओं ने सुमन के हौसले की सराहना कीऔर यह जानने की पहल की आखिरकार माजरा क्या था अपने घर में ही सुमन ने सभी महिलाओं को बताया कि यह आंटी जबरन रंडी कॉलगर्ल बनाना चाहती थी। नौकरी के नाम पर कभी कभार पैसे देने लगी थी तो जबरन ब्यूटीपार्लर में चेहरे को भी ठीक कर देती थी, यह कहते हुए कि तेरा उधार हिसाब लिख रहीं हूं और नौकरी मिलते ही सब वसूल लूंगी।
काफी देर तक उसके घर पर गली मोहल्ले की औरतों का मजमा लगा रहा। मैने भी तमाम महिलाओं से यह निवेदन करके ही बाहर निकला कि आप सबको इसका साथ देना हैं, क्योंकि यह आंटी तो हमलोगों के घर की ही किसी लड़की पर घात लगाएगी। मेरी बात पर सबों ने जोरदार समर्थन किया। मैने तीनों को आज घर से बाहर किसी भी सूरत में नहीं निकलने की चेतावनी दी। पता नहीं गली के बाहर या कहीं उसके लोग हो। मेरी बात पर सहमति प्रकट की तो मैं घर से बाहर निकल गया। खराब मूड को ठीक करने के लिए दोपहर के बाद मैं अपने एक पत्रकार मित्र राकेश थपलियाल के घर चल गया और दो एक घंटे तक बैठकर फिर वापस आकर सो गया। राकेश को सारी बातें बताकर मैने कल सुबह कमरे पर आने को कहा.
बाहर से खाना खाकर जब मैं रात करीब 10 बजे अपने कमरे पर लौटा। कुछ पढ़ने के लिए किताब या किसी रिपोर्ट को खोज ही रहा था कि दरवाजे पर दस्तक हुई। दरवज खोलते ही देखा कि तीनों बहनें खड़ी है। मैं कुछ बोलता उससे पहले ही सुमन ही बोल पड़ी आप मेरे घर पर आओ भैय्या आपको कुछ बतान है। मैं चकित नहीं हुआ। मुझे पता था कि वह अपना राज खोलेगी, मगर मेरे से यह बोलेगी इसका तो मुझे भान तक नहीं था। मैने उनलोगों को घर पर जाने को कहा कि मैं अभी आया। उसके घर में जाते ही मैने कहा कि खाना खा चुका हूं लिहाजा चाय नहीं बनाना प्लीज। घर में उसके पापा समेत तीनों बहनें खुलकर समर्थन करने के लिए हाथ जोड दी। यह देखकर मैं बड़ी शर्मिंदगी सा महसूसने लगा और कहा कि यह हाथ जोडने वाली बात ही नहीं है। तुमलोग सामान्य रहो, मगर अभी थोडा संभलकर सावधान रहो क्योंकि आंटी अपने साथ कुछ आदमी को लेकर कल आ सकती है। उसके पाप मेरे पास आकर विनय स्वर में बोले कि कल आप घर पर ही रहें ताकि हमलोग का मनोबल बना रहे। मैने उनके हाथ को पकड़ लिया और कल घर पर ही रहने का भरोसा दिया। इस पर सुमन बोल पड़ी भैय्या तुम तो खुद एक किरायेदार हो और पता नहीं आगे कहां चले जाओगे, मगर जिस हक के साथ आज तुम मेरे साथ खड़े हो गए उसको मैं सलाम करती हूं। कोई अपना भी इस तरह बिना जाने सामने खड़ा नहीं होता। मैं इस परिवार की कृतज्ञता व्यक्त करने पर ही बडा असहज सा महसूसने लगा। इसके बाद सुमन बोल पड़ी आप पर मुझे भरोसा है भैय्या इस कारण आज की घटना क्यों हुई है यह आपको बतान चाहती हूं। मैं बड़ा हैरान परेशान कि क्या बोलूं। मैने कहा कि कहानी बताने की कोई जरूरत नहीं है सुमन मैं तो तुमको जानता हूं और मुझे पूरा भरोसा है कि इसमें तेरी गलती हो ही नहीं सकती। इसके बावजूद वो अपनी कहानी बताने के लिए अडी रही।
मैं उसके साथ कमरे में था। उसने बताया कि यह आंटी किस तरह इस पर डोरे डाल रही थी। नौकरी दिलाने का भरोसा दे रही थी और करीब एक माह पहले उसने 1500 रूपये भी दी थी। अचानक एक दिन वो बोली तेरी नौकरी वेलकम करने की रहेगी, जो लोग बाहर से गेस्ट आएंगे, तो उनके साथ रहने की नौकरी। माह में ज्यादा से ज्यादा चार पांच बार गेस्ट का वेलकम करने की नौकरी। उसने बताया कि करीब 20 दिन पहले यह आंटी मुझे लेकर एक कोठी में गयी और वो दूसरे कमरे में बैठी रही। मुझे कमरे के अंदर भेजा। जहां पर थोडी देर तक तो सारे शरीफ बने रहे मगर ड्रीक में कुछ मिलाकर मेरे साथ खेलने लगे और इसे आप मेरा रेप कहो या......जो भी नाम दो मेरे साथ हुआ। यह कहते हुए वह अपना चेहरा छिपाकर रोने लगी। फिर शांत होते हुए बोली कि जब मैं कमरे से बाहर निकली तो यही आंटी बाहर थी और मैं इनसे लिपट कर रोने लगी। तब मेरे पर्स में एक हजार रूपये डालती हुई बोलने लगी होता है होता है दो एक बार में झिझक खत्म हो जाएगी। और मेरे को एक ऑटो में लेकर मुझे घर तक छोड़ दी। मैं कई दिनों तक इसी उहापोह में फंसी रही कि आगे क्या करना है। मैं बाद में इसी निष्कर्ष पर आकर टिक गयी कि इस दलाल आंटी को बेनकाब करना है। इसके बाद वह तुरंत बोली कि रेप की घटना को छिपाकर मैने केवल आंटी पर रंडी बनाने के लिए फंसाने का आरोप लगाया है। और जब आप मेरे साथ खड़े हो तो आपको यह बताना जरूरी था। मैं कमरे में खड़ा होते हुए उसके हाथों को पकड़ लिया। मेरे मन में तेरे लिए इज्जत और बढ़ गयी है सुमन । आगे हमलोग इस घटना को छिपाकर केवल उसकी चालबाजियों को ही खोलना है। वह भैय्या कहती हुई मुझसे लिपट गयी। आप मेरे साथ खड़े हैं तो कोई मेरा बिगाड़ नहीं सकता भैय्या। मैने उसके कहा आंसू पोछ दे और हमलोग कमरे से बाहर निकल गए। तो उसकी दो बहने तथा पापाजी चाय के साथ मेरा इंतजर कर रहे थे।
इस घटना के अगले दिन बड़ा धमाल हुआ। अपने कई गुर्गो के साथ आंटी एक बार फिर गली में अवतरित हुई। और गली से ही नाम लेते हुए उनके गुर्गो चुनौती देने लगा। एक रणनीति के साथ हमलोग बाहर निकले तो मुझे देखते ही आंची ने अपने गुर्गो को आगाह किया। अपने साथ एक दर्जन लड़को और दर्जनों महिलाओं की ताकत थी। इस भीड़ को देखकर उसकी टोली सहम सी गयी मगर जुबानी बहादुरी बघारने लगी। चल बाहर निकल कर दिखा तो मैं यह कर दूंगा वह कर दूंगा। इस पर मैं आगे बढा और आंटी को बोला कि इन कुतो को लेकर चली जाओ। तू पुलिस बुलाएगी हमलोग ने तो तेरे खिलफ कल ही एफआईआर भी करा दिया है । और यह भी अगर कोई हमला या मारपीट होती है तो यह तुम्हारे कुत्तो काम होगा। तू कहां भागेगी उन हरामजादों का स्केच भी बनवा लिया है और जिस कोठी में गयी थी न उसका पता भी मिल गया है। साली तेरे साथ साथ तेरे तमाम ग्राहको को भी भीतर ना कराया तो देख लेना। अखबार में खबर छपेगी सो अलग। लड़कियों को रंडी बनाने का धंधा चलाती है। मैने जोर से आवाज दी सुमन जरा एफआईआर की कॉपी तो लाना इन लोगों को पहले भीतर ही करवाते है। लाना जरा जल्दी से लाना तो । मेरे साथ दर्जनों युवकों की एक स्वर में मारने पीटने के बेताब होने का अंदाज ने उनके हौसले को ही तोड़ दिया। गली के युवको ने सारे लफंगों को काफी दूर तक खदेड़ दिया। इसके बाद गली के कई बुजुर्गो ने इनके खिलाफ पुलिस में रपट दर्ज कराने पर सराहना करने लगे और इस तरह ब्यूटी पार्लर की आड़ में जिस्म की धंधा करने वाली एक दलाल को सब लोग ने मिलजुल कर भगा दिया। और मेरे झूठ पर तीनों बहने पेट पकड़ पकड़ कर हंसने लगी कि वाह भैय्या कुछ किए बिना ही रौब मर दिए। ये तीनो बहने अब कहां कैसी और किस तरह रह रही है। यह मैं नहीं जानता, मगर उसकी बहादुरी आज भी मन में जीवित है । कभी कभी खुद पर भी बेसाख्ता हंसने लगता हूं कि इतना हिम्मती और रौब दाब गांठने वाला नहीं होने के बाद भी यह कैसे कर गया।