अनामी शरण बबल
आज मेरी उम्र 51 साल
की चल रही है, मगर यह घटना चार साल पहले की है। अपने निवास कॉलोनी मयूर विहार
फेज-3 के सीआरपीएफ डीटीसी बस स्टैण्ड़
पर से मैने डीटीसी की एक 211 नंबर की एक बस ली।
बस में चढते ही गाड़ी चल पड़ी और मैं जेब से 50 रूपये का एक नोट देकर 40 रूपये वाली
एक पास देने को कहा। पास के लिए नाम और उम्र बतानी पड़ती है। बस पास को कंडक्टर
लोग सबसे बाद में बनाते है। पास बनाने की जब मेरी बारी आई तो मैने देखा कि कंडक्टर
एक महिला है। उम्र कोई 30-32 की होगी । सामान्य शकल सूरत जिसे बहुत सुदंर तो नहीं
मगर ठीक ठीक आर्कषक की श्रेणी में रखा जा सकता है। मैने फौरन कहा अनामी शरण 47।
मेरे नाम को पता नहीं वो ठीक से सुन या समझ नहीं सकी। अचकचाते हुए तुरंत बोली क्या नाम बताया ? मैने कहा अनामी 47। वो फिर मुझसे पूछी क्या यह आपका नाम है ?
मैंने शांतभाव से कहा जी आपको कोई दिक्कत ? मेरी बात सुनते ही हंस पड़ी। एकदम अनोखा नया और
अलग तरह का नाम है आपका । यहं तो मैं दिन भर रमेश दिनेश सुरेश राजेश मोहन सोहन
जितेन्द्र धर्मेन्द्र राजेन्द्र जैसे ही नाम सुनती और लिखती रहती हूं। मेरा नाम
लिखने पर बोली एज क्या कहा था? इस पर मैं हंस पड़ा। काम की रफ्तार तो आपकी बहुत
धीमी है। कैसे संभालती है दिन भर की भीड़ को आप ? मेरी आयु 47 है । 47
सुनते ही वो एकटक मुझे देखने लगी। लगते नहीं है आप। मैं कंडक्टर महिला के ऑपरेशन
से उकत्ता सा गया था। अजी मेरी आयु साढ़े 47 की है, और कहीं से भी उम्र छिपाने या
कम बताने का रोग नहीं है। मैं तो हर साल
अपनी बढती उम्र का स्वागत करता हूं और 12 नवम्बर को एज बढ़ाकर ही बोलने लगता हूं।
कंडक्टर महिला एक बार फिर टपक पड़ी। आपका बर्थडे 12 नवम्बर है ?
मुझे बोलना ही पड़ा जी आपको कोई आपति। वो एक खुलकर हंसने जी एकदम आपति ही आपति है।
य़हां पर मैं चौंका कि क्यों आपति होगी इसे। बीच में दो छोटे -2 बस स्टॉप आए जहां
से दो एक सवारी भी चढे जिनको टिकट देकर वो फ्री भी करती रही, मगर मेरा पास और
रूपये दोनों अभी तक उसके ही पास थे। अब जरा मुझे भी फ्री करिए ना कि मैं भी कोई
सीट देखू। मेरी बात सुनते ही वो अपना बैग बांए हाथ में टांग ली और आधी सीट को खाली
करती हुई बोली आप मेरी सीट पर ही बैठ जाइए न। मैने उनको धन्यबाद दिया और सलाह भी
कि अपनी सीट पर किसी को बैठने के लिए कभी ना कहा करें क्योंकि आपके पास पैसा टिकट
और भी बहुच सारी चीजे होती हैं जिसका शाम को हिसाब देना पड़ता है। मेरी बात सुनकर
फिर बोली मेरा जन्मदिन भी 12 नवम्बर को ही है। आप तो नवम्बर नहीं सेम डे फ्रेंड निकले
और अपने हाथ को आगे कर दी । मैं बड़ा पशोपेश में था फिर भी अपना हाथ बढाकर उसके हाथ
को मैने थाम ली। वो एक बार फिर खुश होकर बोल पड़ी, अरे वो आप तो एकाएक एकदम मेरे
दोस्त बन गए । इस पर मैं भी हंसते हुए कह कि लगता है कि अपना बर्थडे इस बार आपके
साथ ही मुझे मनानी पड़ेगी। मेरी बात सुनकर वो एकदम खिल पड़ी और बोली सच्ची। मैने
फौरन कह मुच्ची। मेरे कहने पर वो फिर हंस पड़ी और मेरे पास और 10 रूपये का नोट मुझे दे दी। पास लेकर जाने
से पहले मैने भी एक स्माईल पास कर दी। वो भी मेरे स्माईल के जवाब में खिलखिला पडी।
बस तो आगे निकलती रही और शाहदरा के बिहारी कॉलोनी स्टॉप पर मैं उतर गया। मैं बस के
नीचे था और बस आगे बढ़ी तो कंडक्टर महिला बस के भीतर से ही हाथ हिलाकर स्माईल पास की।
दो चार घंटे तक तो वह महिला मेरे ध्यान में रही
और फिर सामान्यत मैं लगभग भूल सा गया। करीब 15 दिन के बाद मुझे क्नॉट प्लेस जाना
थआऔर मैं वही सीआरपीएफ डीटीसी बस स्टॉप पर से 378 नंबर की बस ली। बस में सवार होते
ही जेब से फिर 50 का एक नोट निकाल कर मैने कंटक्टर की तरफ देखा तो इस बार इस बस
में वही महिला कंडक्टर थी, जिससे करीब 15-17 दिन पहले मिला था। सवरियों की भीड़
छंटते ही जब मेरी बारी आई तो मैं नोट बढ़ाते हुए नमस्ते की और हंसकर बोला फिर टकरा
गयी आप कैदी नंबर 12 नवम्बर। मेरी बात सुनते ही वो मुझे नमस्ते की और जोर से हंसने
लगी। अरे आप कैसे है और कहां रहे? मैं तो रोजाना देखा करती थी कि शायद बस में सवार
हो आप। मैने तुरंत कहा अच्छा जी नौकरी करती हैं डीटीसी की और चाकरी करती है मेरी।
भरशक डीटीसी का बंटाधार हो रहा है। वो फिर हंसने लगी अरे नहीं आपसे हुई मुलाकात की
बात जब मैने अपने बेटे को बताई तो वह आपसे मिलना चाहता है। और रोजाना पूछता है कि
क्या अंकल से मुलाकात हुई ? मैने
पास के लिए फिर अपने नाम और उम्र की
जानकारी दी अनामी 47। एक बार फिर वही उम्र
का प्रलाप की देखने में 40 से ज्यादा नहीं लगते। मैने तुरंत कहा की पूरी दाढी सफेद
है आप नहीं मानेंगी तो मैं कल से ही शेव करना बंद कर दूंगा तब एक माह में ही 55 का
दिखने और लगने भी लगूंगा। मेरे बेटे से आप नहीं मिलेंगे ?
उसकी बातें सुनकर मैं हंसने लगा। और आपके मिस्टर क्या करते हैं ?
इस बार मुझे कंडक्टर सीट के ठीक पीछे वाली सीट मिल गयी थी तो बीच बीच में बातचीत करने
का समय भी मिलता जा रहा था। मैं डाईवोर्सी हूं। तो इसके लिए ज्यादा बदमाशी किसकी थी ?
मैने तो माहौल को हल्का करने के लिए ही हवा हवा मे यह बात कह दी मगरइस बातसे वो थोडी अपसेट सी हो गयी। इसमें
हमदोनें की ही गलती मान सकते हैं,पर लोग हमेशा औरतों की तरफ ही देखते हैं। यह
नौकरी कब से कर रही हैं ? इस पर वो तिलमिला सी गयी। मैं तो डबल एमए हूं।
घर में पैसे की कोई दिक्कत भी नहीं हैं पर मैं जानबूझकर डीटीसी की नौकरी कर रही
हूं क्योंकि इसमें रोजाना हजारों तरह के
लोगों से मिलती हूं। आंखे देखकर ही आदमी को पहचानने लगी हूं और इससे मेरा
आत्मविश्वास बढा है। उसकी बाते सुनकर मैं फिर हंसने लगा आपका फेस रीडिंग बेकार है।
मुझ जैसे नटवरलाल को तो आप बूझ ही नहीं सकी और दावा करती हो कि मैं लोगों को देखकर
ही पहचान जाती हूं। अभी आपमें तो बहुत कमी है। मेरी बात सुनकर बोली अरे आपके जैसा
नटवरलाल भी दोस्त रहेगा तो चलेगा। मैं तो आपका दोस्त हूं ही। मेरी बात सुनते ही बोल पड़ी नहीं नहीं यह तो जान पहचान है दोस्ती तो अलग होती है। मैं
चौंकते हुए बोला और कौन सी दोस्ती होती है। मेरे तो सारे दोस्त इसी कैटेग्री के
है। हां कोई बीमार है कोई कष्टमें हैं य किसी को मेरी जरूरत हो तो मैं हाजिर हो
जाता हूं पर इसके अलवा तो मेरा कोई और दोस्त ही नहीं है। बहुत सारे तो ऐसे भी
दोस्त हैं जिनसे सालो मिला नहीं बात भी नहीं की मगर प्यार अपनापन और विश्वास में
कोई कमी नहीं। मित्रता तो एक भरोसे का नाम होता है । और प्यार किससे करते हैं ?
उसके इस सवाल पर मैं हंसने लगा। खुद से प्यार करता हूं क्योंकि जो काम मैं खुद
नहीं कर सकता वो दूसरों के लिए कहां और कैसे कर सकता हूं भला। मैं तो अपने दोस्तों
में बसता हूं और मेरे तमाम दोस्त भी मेरे दिल में ही रहते हैं। तभी तो रोजाना उनको
बिन देखे ही मैं देख भी लेता हूं और याद भी कर लेता हूं। एक सीमा से आगे बढ़ जाना
प्यार या दोस्ती नहीं संबंधों पर अनाधिकार कब्जें का प्रयास होता है।
डीटीसी बस आईटीओ पर
आ गयी थी। बस के खुलने के साथ ही वो एक बार फिर बोली क्या मैं आपका दोस्त हूं ?
इस पर मै बोल पड़ा, पहली मुलाकात में तो एकदम नहीं पर अब आप मेरी दोस्त है। वो
थोडी व्यग्रता से बोली तो हम मिल कैसे सकते है ? मैंने कहा यही सब
तो दिक्कत है कि मेलजोल ज्यादा मुझे रास नहीं। जब जरूरत हो तो घंटो रह सकता हूं पर
फालतू के लिए मिलना और समय गंवानाने तो
मूर्खता है। आप अपनी नौकरी करे चलते फिरते मेल मिलाप और बाते होती रहेंगी। कभी
छुट्टी हो तो मेरे घर पर आइए बेटे को लेकर तो सबों से मेल जोल हो जाएगा। मेरी बीबी
भी बहुत खुश होगी। सर्द आहें भरती हुई वो बोल पड़ी कि आप पहले आदमी हो यार जो
मित्रता करने के लिए भी अपनी शर्ते पेल रहे हो, नहीं तो मर्द लोग तो दोस्ती करने
के लिए बेहाल रहते है। उसकी बातें सुनकर मैंने कहा मित्रता एक भरोसे का नाम है कि
कोई भी बात बेफ्रिक होकर कह दो क्योंकि मित्र दो नहीं एक होते हैं। मेरा यार कहना
आपको बुरा लग ? नहीं यार मित्रता में कोई भी बात किसी को बुरी
नहीं लगती, और जब बातें बुरी लगने लगे तो समझों कि कहीं पर मित्रता या भरोसे में कमी
है। बात करते करते मंडी हाउस स्टॉप पर बस
आने वली थी, और मैं उतरने के लिए तैयार होने लगा ।
वो व्यग्रता के साथ
बोली मैं आजकल इसी रूट पर हूं। अपना हाथ आगे कर दी जिसे थामकर मैने आहिस्ता से छोड़
दिया। बस मंड़ीहाउस पर आ गयी थी और मैं मैं यहीं पर उतर गया।
करीब 10-12 दिन के
बाद मुझे लक्ष्मीनगर जाना था और मैं स्टॉप पर खड़ा ही था कि दोपहर लंच के बाद चलने
वाली बस में एक बार फिर अपनी कंडक्टर दोस्त के सामने टिकट के लिए खड़ा था। मेरे को
देखते ही शिकायती लहजे में बोली अरे आप तो लापता ही हो गए। फोन तक नहीं किए। मेरे
पास तो आपका नंबर ही नहीं है। तो मांग लेते। मैं किसी भी लड़की से पहले नंबर नहीं
मांगता। मैं तो आपक नाम तक नहीं जानती? वो हैरान सी थी । सही कहा आपने मैं भी कहां
जानती हूं आपका नाम क्या है नाम भी इतना सरल कहां जो एकपल में याद हो जाए।? बस में ज्यादा भीड़ नहीं और मैं एक बार फिर
कंडक्टर सीट के पीछे वाली सीट पर आ बैठा। मैने पूछा और आपका बेटा ठीक है ?
हां वो ठीक है मगर आपके बारे में पूछता रहता है। मैने अचरज जाहिर की बड़ा कुशग्र
है लडका कि महीनो तक याद रखा है। इस पर वो बात को समझ नहीं सकी आप मेरे बेटे की तारीफ
कर रहे हैं या हंसी उडा रहे है ? मैं फौरन बोल पडा अरे बच्चे का मैं क्यों उपहास
करूंगा आपकी तो उपहास कर सकता हूं ? मेरे को अपना नंबर देती हुई और मेरे नंबर को
अपने पास लेती हुई उसने बात करने की वादा की।
करीब 15 दिनों के बाद शाहदरा जाने के लिए मैं
ज्योंहि 211 नंबर पर सवार हुआ तो मेरे सामने मेरी डीटीसी दोस्त नजर आय़ी। इस बार की
मुलाकात में वो थोडी परेशान थी। उसने मुझसे बीच में उतरने की बजाय अंतिम स्टॉप
मोरी गेट तक ,साथ चलने का आग्रह की। उसने वापसी में अपने स्टॉप पर उतरने का निवेदन
की। मेरे पास भी कोई अर्जेंट सा काम था नहीं सो मैं मोरी गेट तक साथ रहा। रास्ते
में खास बातें नहीं हो सकी पर मोरी गेट पर बस के अंदर ही छोले भटूरे की एक एक
प्लेट खाया। उसने बताया कि उसका पूर्व पति बस में या घर के बाहर आकर पोस्टर लगाकर
तंग करना शुरू कर दिया है। मैने उसको पुलिस या महिला आयोग की मदद लेने की सलाह दी।
उसने यह भी बताया कि उसके पति ने शादी भी कर ली है। मैने बेसाख्ता कहा कि आप भी
देख भाल कर और अपने मां पापा से बात करे और फिर से शादी कर ले। फिर अभी तो आपकी
कोई उम्र भी नहीं है। कौन करेगा मुझसे शादी बेटा है न ?
आजकल जमाना बदल गया है और लोगोंके विचारों में उदारता आयी है। आप पेपर में एड देकर
तो देखो.। पर ध्यान रखना बिन देखे पहली शादी की तरह ही इस बार धोख न खाना.।
हमलोग बस के भीतर
भटूरे खा भी रहे थे और सवारी भी बस में सवार होने लगी थी। बस खुलने में कोई 10
मिनट अभी बाकी थी। तब तक चाय भी आ गयी। चाय पीते हुए मुझसे एकाएक बोल पड़ी क्या आप
मुझसे शादी करेंगे ? मैं एक मिनट के लिए तो इस सवाल को ही समझ हीं
नहीं पाया पर एकटक उसको देखता रहा। क्या बकवास कर रही हो। मेरी उम्र 47 है मेरी
बेटी 17 साल की है। तुम एकदम उतावली ना हो मैं तो तो तेरा मित्र हूं अखबार में
विज्ञापन देने और सही आवेदन को छांटने तथा सही लड़के की तलाश करने में भी मदद
करूंगा। तुम घबराओं नहीं बल्कि हौसला रखो क्योंकि तेरा एक बेटा भी है। और सबसे
बड़ी दिक्कत तो यह है कि तुम्हारा कोई भाई नहीं केवल तुम दो बहने ही हो और बाप की
अच्छी खासी प्रोपर्टी भी है तो बहुत सारे लालची भी टपक सकते है। तुमको तो बहुत
सावधानी बरतनी होगी। अपने रिश्तेदारों में देखो क्या कोई है जो तुम्हारे लायक है।
वो निराश होकर बोली एक तू ही मुझे दिख रहा था और मैं तीन माह से तुम्हें वाच भी कर
रही थी पर तुमने तो ना कर दी। मैं तेरा दोस्त हूं और एक दोस्त मां बाप भाई कभी
बेटा तो कभी किसी भी रिश्ते में दिख सकता है मगर एक दोस्त पति की जगह नहीं ले सकत।
बस खुलने का समय हो
गया था और मोरीगेट पर ही गड़ी खचाखच भर गयी। वैसे तो मैं कंडक्टर सीट के पीछे ही
बैठा था पर यात्रियों की भरमार के चलते वह टिकटौर पास बनाने में ही व्यस्त रही।
बीच में दो चार बातें हुई मगर यात्रियों की भीड़ ने बातों पर लगाम लगाए रखा। वापसी
में मैं बिहारी कॉलोनी पर उतरने के लिए खड़ा हुआ तो उसमे अपना हाथ फिर बढा दी,
जिसे मैने थामकर छोड़ दिया। फिर मिलने का वादा कर मैं शाहदरा में ही उतर गया।
इसके करीब चार माह
तक फिर उससे किसी भी रूट की किसी बस में मुलाकात नहीं हुई। मगर एम्स जाने के लिए
मैं किसी दिन रूट नंबर 611 की बस में सवार हुआ तो मेरी डीटीसी दोस्त सामने थी।
मुझे देखते ही वह खिल पड़ी। उसने मुझे बताया कि अगले माह मैं डीटीसी की नौकरी छोड़
दूंगी, क्योंकि घर के पास में ही एक स्कूल में नौकरी मिल गयी है। चहकते हुए बोली
मैं भी काफी दिनों से आपको तलाश रही थी यही खबर सुनाने के लिए । मैने भी खुशी प्रकट की और पार्टी देने के लिए
कहा। इस पर वो एकदम राजी हो गयी। मेरा हाथ पकड़कर बोलने लगी यह नौकरी मेरे विश्वास
को बढाया है पर तुमसे मेरा परिचय होना मेरा सौभाग्य रहा। मैने भी कह डाला कि जब दो
लोगों के सौभाग्य बढिया होते है तभी दो अच्छे दोस्त मिलते है। पर तू जब भी इस मित्रता
से बाहर होना चाहो तो यह तेरा अधिकार है। क्योंकि मित्रता कोई एग्रीमेंट नहीं होता
है। मेरी बाते सुनकर वो भावुक सी हो गयी और थोड़ी देर में मैं अपने स्टॉप एम्स, पर
उससे हाथ मिलाकर उतर गया। यह अलग बात है कि इस मुलाकात के चार साल हो जाने के बाद
भी न उसका कोई फोन आया और न ही पार्टी के लिए बुलावा। यह अलग बात है कि उस लड़की की मोहक बातें आज भी
कभी कभी याद आने पर मोहक ही लगती है।
मर्मस्पर्शी। ...... संभव है कि यह महज़ इनफेचुएशन हो पर सच यह है जिंदगी को साहिल तक ले जाने के लिए एक अदद तलबगार की जरुरत होती है।
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