*मन पर ईर्ष्या का बोझ क्यों*❓❓❓
एक बार एक महात्मा ने अपने शिष्यों को सात दिन अपने आश्रम में प्रवचन सुनने के लिए आमंत्रित किया और उनसे कहा कि प्रवचन में आते समय अपने साथ एक थैले में बड़े आलू के बराबर उतने पत्थर लाए ,जिससे तुम ईर्ष्या रखते हो। गुरु के आदेशानुसार सभी शिष्य अपने साथ थैले लेकर आए, जिसमे पत्थर थे जिनसे वे ईर्ष्या रखते थे। महात्मा जी ने शिष्यों के थैले को देखा तो उनके थैले में पत्थर थे,जो 2 से लेकर 8 तक पत्थर थे।महात्मा जी ने अपने सभी शिष्यों से कहा कि,"तुम्हे अगले सात दिनों तक ये पत्थर जहाँ भी जाएं, खाते-पीते,सोते-जागते अपने साथ रखेंगे।"
शिष्यों को कुछ समझ में नही आया कि गुरुदेव हमसे क्या चाहते है,लेकिन उन्होंने महात्मा के आदेश का पालन पूरी तरह किया।दो-तीन दिन के बाद ही शिष्यों ने आपस में एक दूसरे से शिकायत करना शुरू कर दिया।जिनके पत्थर ज्यादा थे,वे ज्यादा कष्ट में थे। जैसे-जैसे उन्होंने सात दिन बिताए और महात्मा जी के पास पहुँचे।महात्मा जी ने कहा,अब अपने-अपने पत्थरों के थैले निकालकर रख दें।इस पर सभी शिष्यों ने चैन की सांस ली।
महात्मा जी ने पूछा कि विगत सात दिनों का अनुभव कैसा रहा?शिष्यों ने महात्मा जी को आपबीती सुनाई और अपने कष्टों का विवरण दिया।उन्होंने पत्थरों के बोझ से होने वाली दैनिक परेशानियों के बारे में भी बताया।उन्होंने बताया कि पत्थरो का थैला साथ होने की वजह से वे कोई भी काम ठीक से नही कर पाते थे।सभी ने कहा कि अब बड़ा हल्का महसूस हो रहा है।
महात्मा जी ने कहा कि जब मात्र सात दिनों में ही आपको यह पत्थर असहनीय बोझ जैसे लगने लगे,तब सोचिए कि आप जिन व्यक्तियों से ईर्ष्या या नफरत करते है,उनका कितना बोझ आपके मन पर होता होगा और वह बोझ आप लोग तमाम जिंदगी ढोते रहते है,सोचिए कि आपके मन और मस्तिष्क की इस ईर्ष्या के बोझ से क्या हालत होती होगी? यह ईर्ष्या तुम्हारे मन पर अनावश्यक बोझ डालती है,इसलिए अपने मन और मस्तिष्क से ईर्ष्या-नफरत को तत्काल ही निकाल दो।
यह सनातन सत्य है कि ईर्ष्या-राग-द्वेष से जीवन कदापि सुखमय नही होता है और न ही जीवन के कष्ट-क्लेश मिट पाते है। कष्टों का निवारण ईर्ष्या-राग-द्वेष से परे जीवन जीने से ही सम्भव है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें