शनिवार, 12 जनवरी 2013

दिल्ली और लंदन का फर्क / पंकज झा




पोस्टेड ओन: 30 Sep, 2011 जनरल डब्बा में
अगले साल लंदन में संपन्न होने वाले ओलंपिक खेल आयोजन से संबंधित एक रिपोर्ट वास्तव में हमें आईना दिखाने के लिए काफी है। इस रिपोर्ट के अनुसार खेल आयोजन की लगभग सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं और स्टेडियम बनकर तैयार हो चुके हैं। बस कुछ सजावट का काम बाकी है और वह भी जल्द ही पूरी कर ली जाएगी। इस तरह स्टेडियम साल भर तक ओलंपिक के शुभारंभ का इंतज़ार करेगा। इसमें पूरी दुनिया के 205 देशों के 14,700 प्रतिभागी हिस्सा लेने वाले हैं। अब इस खबर के संदर्भ में भारत में संपन्न राष्ट्रमंडल खेलों को याद किया जा सकता है। यह याद दिलाने की आवश्यकता नहीं कि इस खेल में हमने लंदन से कोई सबक नहीं लिया। एक गरीब देश का पैसा पानी की तरह बहाने के बावजूद उस खेल के नाम पर भारत में कितने खेल हो गए आज यह सबको पता है। आज भी आप नई दिल्ली के कनॉट प्लेस घूम आइए। खुले हुए मेनहोल, कीचड़ से सना गलियारा, हल्की बारिश में भी जमा हो जाने वाला घुटने भर पानी आपको शर्म से पानी-पानी होने को मजबूर कर देगा। देश की राष्ट्रीय राजधानी के हृदय स्थल कहे जाने वाले इस इलाके के हालात बड़ी संख्या में वहां पहुचने वाले विदेशियों को शेष भारत की चुगली करता ही नजर आएगा। हालांकि यह जानकर आपको ताज्जुब होगा कि कनॉट प्लेस की हालत ऐसी इसलिए है, क्योंकि वहां वह काम अभी तक जारी है जो राष्ट्रमंडल खेल आयोजन का हिस्सा थे। खेल कब का खत्म हो चुका है, विजेतागण पदकों के साथ अपने-अपने देश कब का रवाना हो चुके हैं।

कलमाड़ी साहब भी लाख कोशिशों के बावजूद तिहाड़ में आराम फरमा रहे हैं। दिल्ली सरकार भी इस मामले में लोकायुक्त और कैग की प्रतिकूल टिप्पणियों के बावजूद अड़ी और डटी हुई है, लेकिन राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी चल रही है। आपकी जेब इस नाम पर तो कब के साफ हो गए, लेकिन शहर की सफाई बदस्तूर जारी है। ऑस्ट्रेलिया से आए मजदूर भी अब अपने वतन को लौट चुके हैं। सौ रुपये के सामान का हजार रुपये किराया वसूलने वाली कंपनिया भी अपनी बैलेंसशीट चमका कर अगले शिकार की तैयारी में जुट गई होंगी, लेकिन लूटने का काम जारी है। अब आप लंदन और यहां की परिस्थितियों की तुलना करेंगे तो अपने देश में बेरोजगारों की लंबी फौज के कारण जाहिर है, श्रम यहां काफी सस्ता है। विशेषज्ञों की भी यहां कोई कमी नहीं है। ऐसी बात नहीं कि लंदन में काम नियत समय से पहले पूरा होना और ओलंपिक समिति द्वारा तत्काल हरी झंडी भी दिखा देना किसी और कारण से है, लेकिन याद कीजिए कॉमनवेल्थ के समय कितनी छीछालेदर हुई थी। तब खेल की शुरुआत से कुछ दिन पहले तक उसे अधूरी तैयारियों के कारण कॉमनवेल्थ समिति द्वारा हरी झंडी तक मिलना मुश्किल हो गया था। आखिर कारण क्या है? केवल और केवल राजनीतिज्ञों की अक्षमता और भ्रष्टाचार के कारण इस आयोजन के लिए इतनी फजीहत हुई थी। हर तरह की योजनाओं में जब तक नेताओं-अधिकारियों का हिस्सा सुरक्षित न हो जाए तब तक काम की रफ्तार इसी तरह रहनी होती है, लेकिन जहां भी उनका हिस्सा सुनिश्चित हो वहां रफ्तार को पंख लग जाते हैं।

अभी दिल्ली हाईकोर्ट के सामने आतंकी हमले के बाद गृह मंत्री चिदंबरम का एक बयान यह भी आया था कि हाईकोर्ट में लगाने के लिए क्लोज सर्किट कैमरा खरीदने के लिए चार बार टेंडर निरस्त करने के बाद भी पीडब्ल्यूडी कैमरा खरीदने का निर्णय नहीं कर पाया, क्योंकि उसे डर था कि भ्रष्टाचार के आरोप लग जाएंगे। इस मासूमियत पर कौन न मर जाए? कौन भरोसा करेगा उनकी इस दलील पर कि जिस सरकार में तमाम नियमों को ताक पर रख कर अनावश्यक रूप से 111 हवाई जहाज खरीदने के लिए कैग की फटकार के बावजूद सत्ताधारियों पर बल नहीं पड़े और जहां बड़ी हड़बड़ी में बहुमूल्य 2जी स्पेक्ट्रम को अपनी चहेती कंपनियों को लुटा दिया गया और कैग की ही रिपोर्ट के अनुसार देश को 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये का चूना लगाया गया हो और जहां इसी राष्ट्रमंडल खेल में दस रुपये के मैट्रेस की खरीदी बीस-बीस गुना कीमत पर की गई हो। इस आयोजन में जहां कई रसूख वाले नेताओं पर कथित कंसल्टेंसी फीस के नाम पर ही करोड़ों रुपये लुटा दिए गए हों, वहां पीडब्लूडी विभाग सुरक्षा के लिए जरूरी महज कुछ लाख की खरीदी करने में ही डर गया।

सरकारी अमला के पास कितने मासूम तर्क हैं। हालांकि क्या बात महज इतनी ही रही होगी कि थोड़े से रकम से हो जाने वाली कैमरे की खरीदी के लिए अधिकारी इतनी माथा-पच्ची भला क्यों करते? वास्तविकता तो यही है किइतनी ऊर्जा खर्च करके तो इससे सैकड़ों गुना बड़े सौदे हो सकते थे। हमारे देश में न केवल लालफीताशाही और भ्रष्टाचार, बल्कि नेताओं द्वारा इस देश के खजाने को जी भरकर लूटने की बेशर्मी भी हमे बार-बार शर्मशार होने पर मजबूर करती है। हमारे यहां मुश्किल तो यही है कि हर बात में हम विदेशों का अंधानुकरण करते रहते हैं, लेकिन उनसे सीखते कुछ नहीं। हमारे कर्णधार विदेशों की अच्छी बातों को भला सीखेंगे भी क्यों, जब उन्हें अपनी ही चलानी है और अपना लाभ देखना है। नेताओं को अपने देश के भी इक्के-दुक्के उदहारण भी इसलिए रास नहीं आते, क्योंकि उनकी नीयत में ही खोट है। इसी दिल्ली में मेट्रो परियोजना के प्रमुख श्रीधरन का उदाहरण ही देख लेते तो भी अच्छा होता। केवल इस एक व्यक्ति के अच्छे और जिम्मेदार होने के कारण आज काफी महात्वाकांक्षी और मुश्किल मेट्रो की हर परियोजना न केवल तय समय से पहले, बल्कि अनुमानित लागत से कम पैसों में ही पूरी हुई और इसकी हर जगह प्रशंसा हो रही है। श्रीधरन के कारण ही निर्धारित बजट से काफी कम रकम खर्च करके अच्छी गुणवत्ता का काम हो पाना संभव हुआ और लाखों-करोड़ की लागत के बावजूद कहीं भी किसी तरह के भ्रष्टाचार की कोई बात सामने नहीं आ पाई।

अगर विशुद्ध सरकारी कामों की ही बात करें तो देश के एक छोटे राज्य छत्तीसगढ़ के पीडीएस सिस्टम की बात की जा सकती है। देश में सबसे भ्रष्ट योजनाओं में से एक माना जाने वाला जनवितरण प्रणाली वहां अपने उन्हीं सरकारी कर्मचारियों की बदौलत नक्सल चुनौतियों के बावजूद आज प्रदेश के पहुंचविहीन क्षेत्रों तक में आदिवासियों तक को मात्र एक रुपये किलो की दर से खाद्यान्नों की आपूर्ति सुनिश्चित कर रहा है। आम लोगों के हालात से बिलकुल अनभिज्ञ देश के सत्ताधारी कोई प्रेरणा लेने को तैयार दिखते हों, ऐसा भी संकेत नजर नहीं आता। कोई भी उपाय कर केवल सत्ता पाने को ही अपना साध्य समझने वाले नेताओं को देश के स्वाभिमान, जनता की आकांक्षाओं को जानने में शायद ही कोई दिलचस्पी होती है। ये यही सोचकर निश्चिंत हैं कि बस 32 रुपये मिल जाएं जनता को तो वह अमीर हो जाएगी। उन्हें इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि उनके खुद के एक डिनर पार्टी पर ही लाखों खर्च कर हो जाता है। यह देश को तय करना है कि उसे कलमाड़ी मॉडल चाहिए या श्रीधरन मॉडल।

लेखक पंकज झा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

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shaktisingh के द्वारा
October 1, 2011
दिल्ली को पैरिस बनाने की कोशिश की जा रही है, दिल्ली, दिल्ली ही बनी रहे तो बढ़िया है.




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शनिवार, 5 जनवरी 2013

बेटा मेहर


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कुमार और कुमरा की जो़ड़ी

ये हैं हमारे हिन्दी पत्रकारिता विभाग के पहले बैच की पहली जोड़ी. नदी की धारा सी बहती एक छोटी सी लव स्टोरी भी.

Parthiv Kumar Parmanand Arya Anami Sharan Babal Mukesh Kaushik
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पार्थिव और सुविधा हिन्दी पत्रकारिता विभाग के 1987-88 बैच के हैं. पार्थिव समाचार एजेंसी यूनीवार्ता में विशेष संवाददाता हैं.........सुविधा योजना आयोग में सहायक सूचना अधिकारी.परिवार में 14 साल का पुत्र अनिंद्य है..दिनः 24 दिसंबर, 1996...वक्तः शाम तकरीबन आठ बजे..आज जहां विवेक विहार का अंडरपास है वहां उन दिनों रेलवे फाटक हुआ करता था. फाटक के नजदीक ही चाय का एक ढाबा था. ढाबे के पटरे पर एक लड़का और एक लड़की चुपचाप बैठे थे. सर्दियों की उस शाम कोहरा छाने लगा था और सड़क पर आमदरफ्त कम हो चली थी. सड़क के दोनों तरफ दिन भर की मेहनत के बाद सुस्ता रहे ट्रकों की कतार थी......................
.लड़की ने पूछा, “क्या सोचा है”......................“किस बारे में”- लड़के ने पूछा...........................लड़की- “अपनी शादी के बारे में”..........................सोचने के लिए ज्यादा कुछ था नहीं. लिहाजा उस छोटी सी बातचीत में फैसला हो गया. दोनों ने चाय के खाली गिलास पटरे पर रखे और साथ-साथ चल पड़े- एक कभी न खत्म होने वाले सफर पर......................अगले साल 11 फरवरी को वसंत पंचमी के दिन सुविधा और पार्थिव ने कुछेक करीबी दोस्तों की मौजूदगी में शादी कर ली. इस तरह भारतीय जन संचार संस्थान में नौ साल पहले शुरू हुई दास्तान-ए-मोहब्बत अपने मुकाम पर पहुंच गई...............................विशेष धन्यवादः............................
.आईआईएमसी हॉस्टल के सामने चाय बेचने वाले बाबा का- जिनकी कभी भी समय पर नहीं बनने वाली चाय ने हम दोनों को एक-दूसरे को बेहतर ढंग से जानने और समझने का मौका दिया...अनामी शरण बबल और परमानंद आर्य का- जिन्होंने शादी के लिए बार-बार उकसा कर हमें इस ओर सोचने पर मजबूर किया..दिवंगत रामजी प्रसाद सिंह का- हमें साथ देख कर जिनके चेहरे पर हमेशा एक रहस्यमय मुस्कान छा जाती थी..संस्थान के बाकी साथियों का- जिनके साथ गुजारे खट्टे-मीठे पल अब भी हमारी यादों में बसे हैं...नोएडा के सेक्टर-33 के आर्य समाज मंदिर के पुजारी का- जिनकी शादी कराने की दक्षिणा अब भी बकाया है.
by: IIMC Alumni As

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

अमिताभ स्पेशल: 70 होगा तेरा बाप




 गुरुवार, 11 अक्तूबर, 2012 को 18:11 IST तक के समाचार
अमिताभ बच्चन की पहली फिल्म में उनकी सहनायिका रहीं शहनाज आनंद से लेकर निर्देशक रमेश सिप्पी, संगीतकार आनंद जी और अमिताभ के मेकअप मैन रहे दीपक सावंत ने बीबीसी के साथ बांटी उनकी कुछ दिलचस्प यादें.
फिल्म कुली की शूटिंग के दौरान अभिनेता पुनीत इस्सर का दुर्भाग्यवश घूंसा लगने से अमिताभ बच्चन को जानलेवा चोट लगी थी. आखिर कैसे हुआ था ये हादसा बता रहे हैं खुद पुनीत इस्सर.
अमिताभ 11 अक्टूबर को 70 साल के हो रहे हैं. इस खास पेशकश में पढ़िए अमिताभ को 'डॉन' बनाने वाले निर्देशक चंद्रा बारोट कुछ यादें.
गांधी परिवार के साथ रिश्तों पर आम तौर पर चुप रहने वाले अमिताभ बच्चन ने कहा है कि उनके और गांधी परिवार के बीच मनमुटाव नहीं है.
एक ऑनलाइन चयन प्रक्रिया में अमिताभ बच्चन को भारत का अब तक का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पाया गया है. खुद अमिताभ इससे असहमत हैं.
अमिताभ के दोस्त कादर खान उनके साथ फिल्म बनाना चाहते थे. 30 सालों बाद भी उनकी ये तमन्ना पूरी नहीं हो सकी.
अगर कोई आप से पूछे कि अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान की पहली मुलाकात कब हुई होगी, तो आपका जवाब क्या होगा.

तस्वीरों में अमिताभ

बुधवार, 7 नवंबर 2012

अनामी से डरना क्या






अभी ब्लोगजगत में अनामी की धूम मची हुई है। अच्छे-अच्छे धुरंधर महारथी ब्लोगर अनामी का नाम सुनते ही थर-थर कांप उठते हैं और मोडरेशन के बिल में जा दुबकते हैं। पर इससे आखिर ब्लोगरी का ही नुकसान हो रहा है। जब पोस्ट पर माडरेशन लगा दिया जाता है, तो टिप्पणियां तुरंत नजर नहीं आतीं, जब ब्लोग स्वामी को फुरसत होती है, तब कहीं जाकर प्रकट होती हैं। अभी हिंदी में फुलटाइम ब्लोगिंग की विलासिता बहुत कम लोगों के बस की बात है। अधिकांश ब्लोगर सुबह पोस्ट करते हैं आफिस जाने से पहले, या आफिस पहुंचकर दफ्तरी कामकाज में उलझने से पहले। और दिन में एक दो बार अपना ब्लोग देख लेते हैं, या शाम को घर आकर। इस तरह टिप्पणियां पोस्ट होने और ब्लोग स्वामी द्वारा उनके अनुमोदित किए जाने में काफी समय बीत जाता है। इसका नुकसान यह हो रहा है कि टिप्पणियों की विविधता ही नष्ट हो रही है। टिप्पणीकर यह नहीं जान पाते कि पहले के टिप्पणीकारों ने क्या लिखा है, इसलिए कई बार एक ही बात बिना पूर्वापर संबंध स्थापित किए कई टिप्पणियों में दुहराई जा रही है। इससे विचार विमर्श में बाधा पड़ रही है।दूसरा नुकसान यह हो रहा है कि टिप्पणियों में दी गई नई जानकारी, नए दृष्टिकोण, आदि को ध्यान में रखते हुए टिप्पणियां लिखना संभव नहीं हो पा रहा है। इससे टिप्पणियों का गुणस्तर गिरने लगा है।ब्लोगरों को भूलना नहीं चाहिए कि प्रत्येक पोस्ट के दो अन्योन्याश्रित भाग होते हैं, एक, स्वयं पोस्ट, और दूसरा, उस पर आई टिप्पणियां। पाठक पर इन दोनों का समग्र प्रभाव पड़ता है। यदि टिप्पणियां बेदम हों, तो पोस्ट भी नीरस और फीका हो जाता है। कई बार टिप्पणियां मूल पोस्ट से ज्यादा रोचक और ज्ञानवर्धक होती हैं।वैसे बेनामी से डरना क्या। यदि वह कोई अटपटी टिप्पणी लगा भी दे, तो उस टिप्पणी को दो सेकंड में हटाया भी तो जा सकता है? माडरेशन लगाना मुझे अति-प्रतिक्रिया मालूम पड़ती है। जिन ब्लोगरों ने उसका सहारा लिया है, उनसे मेरा अनुरोध है कि वे पुनर्विचार करें।

शनिवार, 1 सितंबर 2012

प्रेस क्लब (press / club ) / अनामी शरण बबल - 12






02 सितम्बरर 2012/



कोयले की कालिख में मन की (अ) सहाय ईमानदारी

ब्लैक स्टोन कोयले को भले ही लोग नापंसद करते हो, मगर कोयले के खान में लोटपोट करके सुदंर बनने की ख्वाईश ज्यादातर सफेद कपड़ों में लैस रहने वाले नेताओं के मन में रहती ही है। अपनी ईमानदारी के लिए ग्लोबल लेबल पर (कु) ख्यात अपने मनमोहन साहब भी इस बार सीधे सीधे आरोपों की जद में आ ही गए। सरल कोमल सुकोमल से प्रतीत होने वाले मन साहब के मुखारबिंद को देखते ही लगता है मानो बस अब रोकर ही दम लेंगे । मगर खासकर शायराना अंदाज में तो खुद को ईमानदार और सीएजी की रिपोर्ट को खारिज करते हुए मन साहब ने दहाड़ा कि मुझे तो प्रधानमंत्री पद की गरिमा रखनी है , भला मैं क्यों दूं इस्तीफा ? विपक्ष पर चुटकी लेते हुए मन साहब ने विपक्ष को पीएम की कुर्सी के लिए 2014 तक इंतजार करने की नसीहत तक दे डाली। सचमुच मन साहब जनता से तो आपका निकट का रिश्ता है नहीं अन्यथा यह जानकर शायद आप भी शर्मसार हो जाते कि आपके सुशोभित होने से यह पद कितना और किस तरह शर्मसार हो रहा है।

सुबोध सफाई

बिहार विभाजन से पहले केवल रांची के लिमिट में रहने वाले लालाजी झारखंड राज्य बनते के बाद भी पावर (लेस) के मामले में हमेशा असहाय से ही दिखने वाले अपने सुबोधकांत सहाय जी पर किस्मत मेहरबान है। मन साहब की ही तरह ही पपेट मिनिस्टर (अ) सहायजी कोल घोटाला के बाद एकाएक पावरफुल हो गए। मन साहब भी भीतर से काफी संतुष्ट से है कि चलो कोल स्कैम में कमसे कम सहाय का सहारा तो मिला। अपने रिश्तेदारों के लिए पत्र लिखकर सिफारिश करने वाले सुबोध की कलई खुलते ही वे पहले तो असहाय से हो गए मगर अगले ही दिन मन साहब की तरह ही पावर दिखाते हुए अपने उपर लगे या लगाए गए तमाम आरोपों को सिरे से नकार कर अपने आपको चंद्रगुप्त वंशी लाला होने का ला ला ला राग से ईमानदारी का सुबोध सफाई दे डाली।
अमेठी और रायबरेली से बाहर भी यूपी है
आमतौर पर सोनिया गांधी संसद में अपनी शान को हमेशा मेनटेन रखती है, मगर सबको हैरान करके वे सपा के पापाजी मुलायम के पास जाकर कई मिनट तक कनफुसियाती रही। मीडिया में जोरदार हंगामा मचा और इसे कई तरह से प्रस्तुत किया गया, मगर देर रात तक सब पर्दाफाश हो गया। अमेठी और रायबरेली में खराब बिजली संकट को फौरन बहाल करते हुए इन जिलो में 24x7 यानी हमेशा और लगातार बेरोकटोक बिजली देने के सरकारी फरमान जारी हो गया। जाहिर है कि कांग्रेस के कुतुबमीनारों को खुश रखने के लिए यूपी दूसरे जिलों को अंधेरे में रखा जाएगा। पहले से ही अंधेरे में रहने के आदी हो गए यूपी के लाखो लोगों का गुस्सा अखिलेश वाया सपा के पापा की तरफ ही जाएगा। मौके के मुताबिक समय को अपने लिए मैनेज करने में सपाई पापाजी को अमेठी और रायबरेली के अलावा भी यूपी के नागरिको के मन पर हाथ रखकर ही गांधी वंदना करना सुखद रहेगा।

मुलायम मन

पहलवान की तरह राजनीति करने वाले सपा के नेताजी मुलायम सिंह यादव अपने नफा और नुकसान का रोजाना हिसाब किताब करके ही अपना नया दांव चलते है। कुश्ती शैली से राजनीति करने वाले मुलायम बस केवल नाम भर के लिए ही मुलायम है। इसीलिए मौसम की तरह विश्वसनीय माने जाने वाले मुलायम तो कभी ममता दीदी पर भी भारी पड़ जाते है। मनमोहन से भला रिश्ता होने के बाद भी मन को कभी प्रमोट करके प्रेसीडेंट का दांव चलने वाले नेताजी दूसरे ही दिन पीएम के इस्तीफे का राग अलाप कर पंजा सुप्रीमों सोनिया के तापमान को गरमा दिया। समय समय पर अपने मुहाबरों से लोगों को बेचैन करने में माहिर नेताजी के मन में कोल करप्शन के बाद क्या दाल पक रही है इसको लेकर पंजा से लेकर कमल तक में दिलटस्पी बनी हुई है।

मन का (अ) घोषित आपात (काल)

मन साहब के चारो तरफ इस तरह के लोगों का जमावड़ा फैला है कि मन चाहे या ना चाहे पर मन साहब के मन को मन ही मन में (गमगीन) होकर भी बात माननी ही पड़ती है। मन के क्रोधी सिपहसालारों के आदेश संकेत और निर्देश पर दो दो बार रामदेव और अन्ना और पोलटिक्स में सुपर स्टार बनने का ड्रीम देख रहे अरविंद केजरीवाल एंड कंपनी को सरकार विरोध का खामियाजा चुकाना पड़ रहा है। काला धन का नारा देते देते राम देव पर जांच का शिंकजा इस तरह कसता दिख रकहा है कि योग गुरू देव राम राम राम राम कहते (चिल्लाते कहना जल्दबाजी होगी) थक नहीं रहे है। टीम अन्ना का पुरा कुनवा ही बेघर हो गया और अन्ना नंबर टू बनने का सपना देख रहे केजरीवाल साहब अपने लिए ही सबसे बड़े चीन की दीवार बन गए है।

.युवराज में किसका इंटरेस्ट (बचा) है ?

रामदेव प्रकरण के खत्म होते ही अपने पंजा के अधेड़ युवराज ने फरमाया कि मुझए रामदेव में कोई इंटरेस्ट नहीं है, क्योंकि मेरे पास देश के लिए बहुत सारी योजनाएं है। धन्य हो युवराज कि देश के लिए तमाम डायरी प्रोग्राम पन्नों से बाहर आ नहीं पा रहे है, फिर भी वे बिजी है, मगर काला धन के मुद्दे को हवा देकर मनमोहन सो लेकर पंजा सुप्रीमो को बेहाल करने वाले बाबा के प्रति राहुल बाबा के पास वक्त ही नहीं है। पिछले 10 साल से देश को सुधारने के चक्कर में खुद लाईन से उतर चुके राहुल बाबा को अपवे चम्मचो की भीड़ से यह पता ही नहीं लग पा रहा है कि अब उनमें पूरे देश का ही इंटरेस्ट खत्म होता जा रहा है।

प्रियंका के हवाले रायबरेली

करीब 20 माह का समय शेष होने के बाद भी लोगों में लोकसभा चुनाव 2014 में होगा या 2013 में का सट्टा लगने लगा है। मीडिया में भी इस बात की चरचा ए आम गरम होने लगा है कि क्या होगा मन साहब का और क्या राहुल बाबा पीएम की कुर्सी पर (चाहे जितने भी दिन के लिए हो) आसीन होंगे ? इस बीच पंजा सुप्रीमों ने अपनी लगातार खराब होती सेहत का हवाला देकर अपनी पुत्री को रायबरेली के काम काज का दायित्व सौंप दिया है। लगातार बिगड़ती सेहत को देखते हुए तो यही लग रहा है कि बस अब पुत्री को राजनीति में लाकर धृतराष्ट्र की कुर्सी पर फुल टाईम बाठने का मन सोनिया जी बना रही है। यानी लोकसभा (भले ही मध्यावधि चुनाव क्यों ना हो जाए) के लिए प्रियंका बेबी का टिकट अभी से कनफर्म दिख रहा है।

प्रियंका VS डिंपल

समय की नब्ज को भांपने में जगत विख्यात मुलायम सिंह यादव के खजाने में सबकी काट मौजूद है। प्रोफेसर और पहलवानों से लेकर हीरो हिरोईनों और मवालियो के समाजवाद में एक यंग लेड़ीज नेता की कमी काफी दिनों से खल रही थी। कांग्रेसी घराने में प्रियंका की धूम को कुतरने के लिए अब मुलायम खजाने में अब डिंपल शस्त्र है। अपनी बहू को अंग्रेजी और नेतागिरी का ककहरा और पोलिटिक्स के गूर सीखाने और बताने का बाकायदा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके पीछे अपन मुलायम भैय्या मुनाव तक अपनी बहू को मांजकर एक सपा के एक नए स्टार फेस के तौर पर सामने लाने की राजीति और रणनीति पर बाकायदा काम कर रहे है, ताकि पंजा बेबी के सामने साईकिल की रफ्तार बनी रहे।

पंजा प्रवक्ता है या ........

आमतौर पर पार्टी और सरकार के मुखिया को अपने चेहरे पर मुस्कान लपेट कर रखना पड़ता है, ताकि लोगों में अपनी इमेज के साथ साथ पार्टी की भी इमेज कायम रहे। खासकर कांग्रेस में तो सोनिया राहुल औऍर अपने मौनी बाबा मनजी तो इतने शालीन और सुसंस्कृत है कि कभी कभी तो पंजा में लीडर का ही अकाल सा लगने लगता है। मगर आमतौर पर प्रेस से बेहतर रिश्ता बनाए रखने के लिए प्रवक्ता इस तरह का रखा जाता है कि मीडिया के लोग घुलमिल जाए, मगर इस मामले में अपन कांग्रेसी प्रवक्ता मनीष तिवारी सबसे अलग है। बोलने का लहजाऔर लट्ठमार तरीके से जबाव देना और हावी होकर बात करने का लड़ाका अंदाज को टीवी पर देखकर अक्सर लगता है कि ये महोदय तो किसी कोण से प्रवक्ता नजर ही नहीं आते। लगता है कि सोनिया जी के आक्रामक होने के आदेश को मनीष बाबू शुरू से ही बांधकर सेवा कर रहे है।

.... और लालू बोले मोटा माल....
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रिन साबुन लगाकर भी चारा दाग मिटाने में विफल रहे अपन यादव (राज-द) सुप्रीमो लालू यादव की ईमानदारी कमाल की है। मनमोहन और बीजेपी के बीच ईमानदारी की वाकयुद्ध में मोटा माल खाने का जिक्र सामने आया। मोटा माल का जिक्र आते ही चारा माल के लिए (दागी) सेलेब्रेटी बने लालू ने भी मीडिया के सामने मोटा माल खाने की सफाई मांगने लगे। लालू द्वारा मोटा माल का हिसाब मांगने पर ज्यादातर उनके ही साथी खिलखिला उठे। मोटा माल के चक्कर में लगता है कि अपन लालू भाई चारा मामले को भल से गए होंगे। यानी लगता है कि आने वाले दिनों में इडियट बॉक्स के सामने धीरे धीरे चारा छाप लालू की ईमानदारी भरे प्रवचन को भी झेलना पड़ेगा।

शौचालय (सचिवालय) चलो

अंगूठाटेक सीएम के तौर पर पूरे बिहार में मशहूर राबड़ी देवी के नाम पर आज दिल्ली में राबड़ी भवन है। जिसमें राजद का राष्ट्रीय पार्टी का दफ्तर है। चारा के चलते सीएम पद से हटने वाले लालू ने अपने घर की रसोई से अपनी पत्नी राबड़ी को निकाल कर सीधे मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठा दिया। नीतिश कुमार के कारण राजनीतिक बेरोजगारी झेल रही राबड़ी आजकल चरचे से नदारद है। पिछले दिनों बिहार भवन में लालू के बहुत ही करीब रह चुके और आज भी करीबी ही माने जाने वाले एक नेता ने यह बताकर पूरे माहौल को खिलखिला दिया। मुख्यमंत्री बनने के बाद एक दिन राबड़ी ने अपने –ड्राईवर को शौचालय
चलने का आदेश दिया। सीएम के आदेश पर ड्राईवर बेचारा हैरान कि कहां चले। वो कुछ देर तक तो सहमा सा खड़ा रहा । तभी सीएम के सहायक ने ड्राईवर के पास आकर कान में फटकारा कि शौचालय नहीं रे मूरख सचिवालय चलो सचिवालय। सीएम भी सचिवालय चलने को ही कह रही है। इस घटना के करीब 114-15 साल हो गए है। मगर बिहार भवन में बैठे दर्जनों एमएलए अपनी भूत (पूर्व) सीएम के ज्ञान और कौशल को जानकर खिलखिला उठे।

गुरुवार, 16 अगस्त 2012

फीचर लेखन

फीचर लेखन

फीचर
फीचर को अंग्रेजी शब्द फीचर के पर्याय के तौर पर फीचर कहा जाता है। हिन्दी में फीचर के लिये रुपक शब्द का प्रयोग किया जाता है लेकिन फीचर के लिये हिन्दी में प्रायः फीचर शब्द का ही प्रयोग होता है। फीचर का सामान्य अर्थ होता है – किसी प्रकरण संबंधी विषय पर प्रकाशित आलेख है। लेकिन यह लेख संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित होने वाले विवेचनात्मक लेखों की तरह समीक्षात्मक लेख नही होता है।
फीचर समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाली किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव – जन्तु, तीज – त्योहार, दिन, स्थान, प्रकृति – परिवेश से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित वह विशिष्ट आलेख होता है जो कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। अर्थात फीचर किसी रोचक विषय पर मनोरंजक ढंग से लिखा गया विशिष्ट आलेख होता है।
फीचर के प्रकार
·          व्यक्तिपरक फीचर
·          सूचनात्मक फीचर
·          विवरणात्मक फीचर
·          विश्लेषणात्मक फीचर
·          साक्षात्कार फीचर
·          इनडेप्थ फीचर
·          विज्ञापन फीचर
·          अन्य फीचर
फीचर की विशेषतायें
·         किसी घटना की सत्यता या तथ्यता फीचर का मुख्य तत्व होता है। एक अच्छे फीचर को किसी सत्यता या तथ्यता पर आधारित होना चाहिये।
·         फीचर का विषय समसामयिक होना चाहिये।
·         फीचर का विषय रोचक होना चाहिये या फीचर को किसी घटना के दिलचस्प पहलुओं पर आधारित होना चाहिये।
·         फीचर को शुरु से लेकर अंत तक मनोरंजक शैली में लिखा जाना चाहिये।
·         फीचर को ज्ञानवर्धक, उत्तेजक और परिवर्तनसूचक होना चाहिये।
·         फीचर को किसी विषय से संबंधित लेखक की निजी अनुभवों की अभिव्यक्ति होनी चाहिये।
·         फीचर लेखक किसी घटना की सत्यता या तथ्यता को अपनी कल्पना का पुट देकर फीचर में तब्दील करता है।
·         फीचर को सीधा सपाट न होकर चित्रात्मक होना चाहिये।
·         फीचर कीभाषा सरल, सहज और स्पष्ट होने के साथ – साथ कलात्मक और बिंबात्मक होनी चाहिये।
फीचर लेखन की प्रक्रिया
·         विषय का चयन
·         सामग्री का संकलन
·         फीचर योजना
विषय का चयन
किसी भी फीचर की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि वह कितना रोचक, ज्ञानवर्धक और उत्प्रेरित करने वाला है। इसलिये फीचर का विषय समयानुकूल, प्रासंगिक और समसामयिक होना चाहिये। अर्थात फीचर का विषय ऐसा होना चाहिये जो लोक रुचि का हो, लोक – मानव को छुए, पाठकों में जिज्ञासा जगाये और कोई नई जानकारी दे।
सामग्री का संकलन
फीचर का विषय तय करने के बाद दूसरा महत्वपूर्ण चरण है विषय संबंधी सामग्री का संकलन। उचित जानकारी और अनुभव के अभाव में किसी विषय पर लिखा गया फीचर उबाऊ हो सकता है। विषय से संबंधित उपलब्ध पुस्तकों, पत्र – पत्रिकाओं से सामग्री जुटाने के अलावा फीचर लेखक को बहुत सामग्री लोगों से मिलकर, कई स्थानों में जाकर जुटानी पड़ सकती है।
फीचर योजना
फीचर से संबंधित पर्याप्त जानकारी जुटा लेने के बाद फीचर लेखक को फीचर लिखने से पहले फीचर का एक योजनाबद्ध खाका बनाना चाहिये।
फीचर लेखन की संरचना
·         विषय प्रतिपादन या भूमिका
·         विषय वस्तु की व्याख्या
·         निष्कर्ष
विषय प्रतिपादन या भूमिका
फीचर लेखन की संरचना के इस भाग में फीचर के मुख्य भाग में व्याख्यायित करने वाले विषय का संक्षिप्त परिचय या सार दिया जाता है। इस संक्षिप्त परिचय या सार की कई प्रकार से शुरुआत की जा सकती है। किसी प्रसिद्ध कहावत या उक्ति के साथ, विषय के केन्द्रीय पहलू का चित्रात्मक वर्णन करके, घटना की नाटकीय प्रस्तुति करके, विषय से संबंधित कुछ रोचक सवाल पूछकर।  मिका का आरेभ किसी भी प्रकार से किया जाये इसकी शैली रोचक होनी चाहिये मुख्य विष्य का परिचय इस तरह देना चाहिये कि वह पूर्ण भी लगे लेकिन उसमें ऐसा कुछ छूट जाये जिसे जानने के लिये पाठक पूरा फीचर पढ़ने को बाध्य हो जाये।
विषय वस्तु की व्याख्या
फीचर की भूमिका के बाद फीचर के विषय या मूल संवेदना की व्याख्या की जाती है। इस चरण में फीचर के मुख्य विषय के सभी पहलुओं को अलग – अलग व्याख्यायित किया जाना चाहिये। लेकिन सभी पहलुओं की प्रस्तुति में एक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष क्रमबद्धता होनी चाहिये। फीचर को दिलचस्प बनाने के लिये फीचर में मार्मिकता, कलात्मकता, जिज्ञासा, विश्वसनीयता, उत्तेजना, नाटकीयता आदि का समावेश करना चाहिये।
निष्कर्ष
फीचर संरचना के इस चरण में व्याख्यायित मुख्य विषय की समीक्षा की जाती है। इस भाग में फीचर लेखक अपने ऴिषय को संक्षिप्त रुप में प्रस्तुत कर पाठकों की समस्त जिज्ञासाओं को समाप्त करते हुये फीचर को समाप्त करता है। साथ ही वह कुछ सवालों को पाठकों के लिये अनुत्तरित भी छोड़ सकता है। और कुछ नये विचार सूत्र पाठकों से सामने रख सकता है जिससे पाठक उन पर विचार करने को बाध्य हो सके।
फीचर संरचना से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण पहलू
शीर्षक
किसी रचना का यह एक जरुरी हिस्सा होता है और यह उसकी मूल संवेदना या उसके मूल विषय का बोध कराता है। फीचर का शीर्षक मनोरंजक और कलात्मक होना चाहिये जिससे वह पाठकों में रोचकता उत्पन्न कर सके।
छायाचित्र
छायाचित्र होने से फीचर की प्रस्तुति कलात्मक हो जाती है जिसका पाठक पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। विषय से संबंधित छायाचित्र देने से विषय और भी मुखर हो उठता है। साथ ही छायाचित्र ऐसा होना चाहिये जो फीचर के विषय को मुखरित करे फीचर को कलात्मक और रोचक बनाये तथा पाठक के भीतर विषय की प्रस्तुति के प्रति विश्वसनीयता बनाये।