अनामी
शरण बबल
भरतपुर
राजस्थान के शाही घराने के कुंवर और पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह आजकल फिर
सुर्खियों में है। काबिल और अपनी बात को सलीके से रखने वाले नटवर सिंह अपनी किताब
को लेकर विवादों में है। , क्योंकि उन्होनें कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सामने बौना साबित कर दिया। नटवर जी की इस नटलीला के
आगे कांग्रेसियों नें हंगामा खड़ा कर दिया। हालांकि गरमागरम माहौल के दौरान मैं
दिल्ली से बाहर था, लिहाजा चाहकर भी नटवर के संग अपनी एक मधुर यादों को लिख नहीं
पाया था। दिल्ली वापस आते ही मेरे मन में नटवर सिंह के उपर कुछ लिखने का मन उताबला
सा हो गया।
बात
2006 सितम्बर की है। मैं क्नॉट प्लेस के रीगल और रिवोली सिनेमाघर के बीच स्थित
खादी की दुकान के पास से गुजर ही रहा था कि एकाएक देखा कि बेतरतीब भीड़ और आपा
धापी के बीच एकदम सामान्य और सहज चाल के
साथ पूर्व केंद्रीय मंत्री नटवर सिंह भी इसी भीड़ में शामिल चले जा रहे हैं। सच
यही है कि इससे पहले नटवर सिंह को आमने सामने कभी नहीं नहीं देखा था पर पिछले
15-17 साल के दौरान इनकी तस्वीर को हजारों दफा देखा था, और खबरिया चैनलों के चलते
भी नटवर सिंह को पहचानने में कोई देर ना हुई। भीड़ में एकदम सामान्य से लाव लश्कर
के बिना अकेले जा रहे थे। इनको देखते ही मेरे पांव ठिठक से गए। मैं यह तय नहीं कर
पा रहा था कि इस मौके पर एकदम सामान्य से प्रतीत हो रहे नटवर से कुछ नटखटपन किया
जाए या इनको यूं ही गुजर जाने दिया जाए ?
एक पस की दुविधा को मात देते हुए मैंने तय किया कि नहीं इस तरह के मौके कभी कभार ही
आते हैं। मैं पीछे से अपनी रफ्तार को तेज किया, और अगले ही पल मैं नटवर सिंह के
सामने था। हाथ जोड़कर नमस्कार करते हुए अपना परिचय दिया। राष्ट्रीय सहारा और अमर
उजाला के नाम को उपेक्षित करते हुए उन्होने मुझे देख एक मोहक मुस्कान बिखेर दी, और
मेरे हाथ को अपने हाथों में लेते हुए पूछा कि क्या आप फुर्सत में है ? मैं थोड़ा और सहज होते हुए जी कहा, तो
मेरे हाथ को पकड़कर आगे बढते हुए कहा फिर आइए मेरे साथ। हालांकि मैं उनके साथ साथ
हो तो लिया पर यह अंदाज नहीं लगा पा रहा था कि यह सफर कहां तक की है। रिवोली सिनेमाघर से आगे बढ़ते ही वे मोहन सिंह
कॉफी हाउस वाली बिल्डिंग में घुस गए। तीन मंजिल तक दनदनाते हुए सीढियों पर चढ़ने
के बाद वे मेरे साथ कॉफी होम में आ गए थे। मेरे को अपने साथ लेते हुए वे किनारे की
एक टेबल कुर्सी पर विराजमान हो गए। इस बीच कॉफी होम में दर्जनों लोगों ने पास आ आ कर
तो दूर से ही हाथ उठाकर इनको सलामी ठोकी। जिससे यह तो लग ही गया कि वे इस कॉफी हाउस
के पुराने दीवानों में से एक है। उनके बैठते ही दो वेटर एक ही साथ करीब आया और
पानी ग्लास रखने के बाद आर्डर की प्रतीक्षा
में खड़ा हो गया।
जान
पहिचान के बगैर भी हमलोग मूक संवाद और भावों के जरिए ही खासे परिचित से होकर पूरी
तरह सहज हो गए थे। एक बार फिर मेरी तरफ मुखातिब होकर उन्होने कहा कि यह बंदा तो बिना
आदेश लिए जाएगा नहीं। एक मेजबान की तरह पुरी सौम्यता के साथ पूछा कि आप क्या
खाएंगे यह बताइए ताकि इसको तो रूखसत किया जाए। उम्र दराज और शाही नटवर सिंह की इस
नम्रता और सादगी पर तो मैं कुर्बान सा ही हो गया। मुझे लगा कि यह आदमी कितना शालीन
और सरल है। इनके सामने तो दंभ और अभिमान के पहाड़ भी शर्मसार हो जाए। इनकी सरलता
और सादगी के सामने तो मैं भी संकोची सा हो गया। मैं क्या बोलूं, यह तय नहीं कर पा
रहा था। मेरे संकोच को पढ़ते हुए वे मुस्कुरा उठे।, फिर एक बार मेरे हाथ को फिर से
पकड़ते हुए कहा क्षमा करेंगे और अपना नाम एक बार फिर से जरा बताइए। आपके नाम को मैं याद नहीं कर पाया। मैं तब तक
संभल चुका था और सहज होकर कहा अनामी शरण बबल। मेरे नाम को सुनते ही उन्होने नाम को
दो तीन बार दोहराया। फिर कहा, अरे वाह यह नाम तो बहुत खूबसूरत है अनामी। मगर एकाएक
सचेत होते होते हुए वे बोल पड़े कि नाम पर तो अभी गुफ्तगू करेंगे पर पहले यह बताएं
कि आप क्या खाएंगे। तब मैने भी चुटकी ली और कहा कि सर मैं आपके साथ एक समान होने
का दावा तो कर ही नहीं सकता पर आज मैं वहीं खाउंगा, जो आप खाएंगे।, ताकि मैं अपने
दोस्तों को बता सकूं कि एक मामले में मैं नटवर सिंह के समान था। मेरी बात सुनकर वे
खिलखिला पड़े। अपने उपर काबू करते हुए उन्होने वेटर को कई प्रकारके व्यजंन लाने को
कहकर उसको ऱूखसत किया।
उसके जाने के साथ ही वे एक बार फिर मेरे नाम अनामी
प्रसंग पर आ गए। एकदम अलग तरह का नाम है अनामी .. शरण। अनामी में तो बड़ा भावनात्मक तरंग है। फिर
कौतुहल दर्शाते हुए पूछा कि अनामी शरण तो ठीक है , इसमें गंभीरता लालित्य और
सार्थकता है, मगर बबल में तो कुछ भी नहीं है। यह तो महज बबलू डबलू मोनू सोनू सा सामान्य
लग रहा है। बबल क्या कोई जाति है ?
अपने नाम के इस ऑपरेशन से मैं तंग सा हो
गया था, पर नटवर जी मेरे नाम को लेकर नटलीला करते रहे। तब बताना ही पड़ा कि शरण के
बाद तो मेरी जाति सूचक उपनाम सिन्हा (कायस्थ्य) है, मगर बिहार में जाति को लेकर
अगाध प्रेम के खिलाफ मैने सिन्हा को काटकर उपनाम बबलू को थोड़ा संशोधित करते हुए बबल
बना जोड़ लिया। मेरे स्पष्टीकरण के बाद उनकी जिज्ञासा शांत हो गयी।
अपने
नाम की अनामी लीला से बाहर आते ही नटवर जी से बहुत सारे सवाल पूछे। राजनीति गांधी
परिवार कांग्रेस राजस्थान और आजादी के बाद भारत के विकास को लेकर दर्जनों सवालों
के बीच नटवर जी मुस्कान बिखेरते हुए अपनी बात कही। बहुत सारे विवादास्पद मुद्दो विवादों को हवा दी
और एक साथ खाते पीते (दारू नहीं केवल पानी और शीतलपेय) लगभग डेढ़ घंटे तक एक दूसरे
में खोए रहे। इस बीच बगैर पूछे तीन बार कॉफी आ गयी थी। प्यार अपनापन स्नेह, सहजता
हास्य ठहाको और मजाक के बीच हम दोनों के बीच उम्र और तमाम असमानताओं का कोई मतलब
नहीं रह गया था। जब हमलोग एक दूसरे से पूरी तरह संतुष्ट होकर उठने लगे तब जाकर कहीं
नटवर जी मुझसे मेरा मोबाइल नंबर मांगा, और कहा कि मेरी यह बातचीत एक पत्रकार से
नहीं हुई है। फिर भी मेरी शालीनता को ध्यान में रखते हुए आप कुछ भी लिखने के लिए
आजाद है।
नमस्कार करके जब मैं विदा हुआ तो मेरे मन में इस
सहज आदमी को लेकर आदर भाव था कि बगैर जान पहचान के एकाएक यह आदमी किसी का कितना
अपना सा हो जाता है। इस एकाएक मुलाकात के कई साल बीत चुके हैं.। जब कभी भी लानत
मलानत या अपनी उपेक्षा से बिचलित होकर भरतपुर नरेश नटवर सिंह जी का एकाएक बौखला
उठते हैं तो मैं इनकी पीड़ा में शामिल सा पाता हूं,. और यह तय नहीं कर पाता कि
इतना सहज सरल शाही परिवार के मुखिया के ह्रदय के भीतर कितनी आग है, बौखलाहट और असंतोष
है। जिसका अंदाजा कांग्रेस और इसके युवराज कभी लगा नहीं पाए।