Pradeep Kumar Mathur shared his photo.
पुराने
कागजों में दबी यह धुंधली होती हुई फोटो जब मिली तो मन अतीत की स्मृतियों
में खो गया। पुरानी बातों को याद कर आंखे भर आयी। कैसे थे वह दिन और वह
लोग। फोटो सम्पादकाचार्य चन्द्र कुमार जी
की है जिनके साथ वाराणसी की गौरवशाली पत्रकारिता के स्वर्णिम युग का
इतिहास जुड़ा है। विष्णु राव पराड़कर की परम्परा के वाहक चन्द्रकुमार जी उस
युग में दैनिक आज के सम्पादक थे जब वह स्वतंत्रता संग्राम में अपने अनूठे
योगदान के लिये जाना जाता था।
बात 20-22 साल पुरानी है। मुझे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में एक
संगोष्ठी में आमंत्रित किया गया था। जैसा सामान्यत होता है मैं अपना सामान
लेकर विश्वविद्यालय के अतिथि गृह पहुँचा। वहाँ क्षमा याचना के साथ मुझे
बताया गया कि एक दिन पहले यकायक कुछ विदेशी मेहमानों के आने के कारण अतिथि
गृह में कमरा खाली नहीं है इसलिये मेरी व्यवस्था लंका (विश्वविद्यालय के
मुख्य द्वार के पास) के एक होटल में कर दी गई है।
होटल मामूली सा था। देर हो रही थी इसलिये मैं जल्दी से अपना सामान पटक कर तैयार होकर संगोष्ठी में चला गया। शाम को आया तो होटल वाले ने बताया कि आपको अब होटल में नहीं ठहरना है क्योंकि चन्द्र कुमार जी ने कहा है कि आप उनके साथ ठहरेंगे और आपका सामान अपने घर मंगवा लिया है।
चन्द्र कुमार जी के साथ उनके घर, उनके और उनकी धर्मपत्नी प्रभा जी के साथ बिताये तीन-चार दिन मेरे जीवन की सबसे सुखद अनुभूतियों में से एक है। माँ बड़ी बहन और भाभी तीनों मिलकर जैसा किसी का ध्यान रख सकती हैं वैसा आतिथ्य प्रेम उन्होंने मुझे दिया।
अब न जाने क्या हो गया है। या तो भगवान ने इतने अच्छे लोग बनाने बंद कर दिये हैं या उनकी परिभाषा बदल गई है जो अपने अज्ञान के कारण मेरे जैसे लोग नहीं समझ पाते हैं।
होटल मामूली सा था। देर हो रही थी इसलिये मैं जल्दी से अपना सामान पटक कर तैयार होकर संगोष्ठी में चला गया। शाम को आया तो होटल वाले ने बताया कि आपको अब होटल में नहीं ठहरना है क्योंकि चन्द्र कुमार जी ने कहा है कि आप उनके साथ ठहरेंगे और आपका सामान अपने घर मंगवा लिया है।
चन्द्र कुमार जी के साथ उनके घर, उनके और उनकी धर्मपत्नी प्रभा जी के साथ बिताये तीन-चार दिन मेरे जीवन की सबसे सुखद अनुभूतियों में से एक है। माँ बड़ी बहन और भाभी तीनों मिलकर जैसा किसी का ध्यान रख सकती हैं वैसा आतिथ्य प्रेम उन्होंने मुझे दिया।
अब न जाने क्या हो गया है। या तो भगवान ने इतने अच्छे लोग बनाने बंद कर दिये हैं या उनकी परिभाषा बदल गई है जो अपने अज्ञान के कारण मेरे जैसे लोग नहीं समझ पाते हैं।
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