गुरुवार, 24 सितंबर 2015

कई पति के साथ जीवन



विविधताओं से भरे भारत वर्ष में अलग-अलग रिवाजों और संस्कृतियों को मानने वाले लोग रहते हैं. भिन्न-भिन्न समुदाय और जातियों के लोगों की परंपराओं और मान्यताओं में भिन्नता होना स्वाभाविक है. बहुत वर्ष पहले भारत में बहु विवाह जैसी प्रथा अत्याधिक प्रचलित थी. जिसके अंतर्गत पुरुष को यह अधिकार दिया गया था कि वह एक से अधिक महिलाओं के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत कर सकता था. लेकिन महिलाओं के मामले में यह व्यवस्था लागू नहीं होती थी. परंतु प्रगतिशील भारत में अब जब महिलाओं को समान अधिकार और उनके सशक्तिकरण जैसे मुद्दे उठने लगे हैं तो ऐसे में बहुपतित्व की परंपरा देखना आश्चर्य पैदा करता है.

भारत के हिमाचल और केरल प्रदेश में बहुपतित्व प्रथा का प्रचलन है जिसके अनुसार एक महिला एक से अधिक पुरुषों के साथ वैवाहिक संबंध बना सकती है. प्राचीन समय में बहुपत्नी जैसी प्रथा महिलाओं के मानसिक और भावनात्मक शोषण का जरिया बनती थी वहीं यह बहुपतित्व नामक प्रथा भावनात्मक के साथ शारीरिक शोषण को भी बढ़ावा दे रही है.

इस व्यवस्था के अंतर्गत पहले से ही यह निर्धारित कर दिया जाता है कि प्रत्येक पति कितने दिन संबंधित महिला यानि कि अपनी पत्नी के साथ शारीरिक संबंध बनाएगा. पतियों के बीच महिला का उपभोग करने के दिन बंटे होते हैं. महिला जिस संतान को जन्म देती है वह भी सभी पतियों की मानी जाती है. इतना ही नहीं वह संतान उम्र में बड़े पुरुष को तेग बावाल और छोटे पुरुष को गोटा बावाल कहकर संबोधित करती है.

यह प्रथा कई भारतीय राज्यों के विभिन्न क्षेत्रों में देखने को मिलती है. दक्षिण भारत के आदिवासी क्षेत्रों (विशेषकर टोडा जनजाति में), त्रावणकोर और मालाबार के नायरों में, उत्तरी भारत के जौनसर भवर में, हिमाचल के किन्नौर में और पंजाब के मालवा क्षेत्र में यह प्रथा बहुतायत में मिलती है.

हिंदू पुराणों में भी बहु पत्नी जैसी व्यवस्थाओं का उल्लेख मिलता है. कई राजा-महाराजाओं ने अपने वंश को बढ़ाने के लिए कई महिलाओं से विवाह किया. लेकिन महाभारत में पांचाली जिन्हें द्रौपदी के नाम से भी जाना जाता है, का उल्लेख शायद एकमात्र ऐसा उदाहरण है जो बहुपतित्व को प्रदर्शित करता है. उन्होंने पांचों पांडवों को अपने पति के रूप में स्वीकार किया था.

शनिवार, 19 सितंबर 2015

/ अनामी शरण बबल - 1







बिहारी दंगल में मुलायम इंट्री 
लडाई  मारपीट खींचतान उठापटक आरोप- प्रत्यारोपों जातिवाद और रंगदारी दादागिरी के लिए कुख्यात बिहार में इन दिनों चुनावी दंगल चालू है। भीतरघात में उलझे बिहार के तमाम कथित नेता फिलहाल बिहार के उत्थान विकास और बिहारियों की चिंता करने की बजाय अपने घर (पार्टी) को टूटने लूटने और उजडने से बचाने में लगे हैं। लालटेन में आग लगी है, तो विकास कुमार खेमा में भी भागमभाग मची है। कमल खेमा ही कमल को डूबो रही है। मझदार में कमल को ले जाकर मांझी ही बेदम हो रहे है। अपने पुराने साथियों से ज्यादा भगोड़ो और मौका परस्तों पर दांव लगाने के लिए बेकरार कमल की गिरती साख से दिल्ली बेदम है। इसी उठापटक में यूपी के पहलवान नेताजी का बिहार में जोर शोर से समाजवादी पताका लहराने से तमाम दलों के दलबदलूओं और मुलायम पार्टी में नयी जान आ गयी है। मुलायम दांव से कमल को राहत तो मिली है। हालांकि इस दांव के लिए नेताजी की मजबूरी को बिहारी पब्लिक सब जानती है। पुराने दुश्मन को समधि बनाकर भी रास्ते में छोड़ना किसी को भी नही भाएगा।

जनता परिवार के मुखिया जी


जीवन के उतरार्द्ध में पीएम बनने के लिए बेकरार नेताजी लोकसबा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त खाने के बाद भी सपने में ही है. पूरे विपक्ष को एक करने की मुहिम को अंजाम देते हुए नेताजी ने जनता परिवार बनाया। तीसरा मोर्चे में बनते ही बिखरने की आशंका लग रही थी। खासकर. बिहार चुनाव को लेकर सबों में डर था कि परिवार से बिखरने का परचम कौन लहराएगा, मगर यह क्या कि सबलोग साथ में ही रहे और नेताजी ही बिदक कर अलग हो गए। कहा तो जा रहा है कि इसके पीछे कमल सुप्रीमों से कुछ डील हुआ है, मगर यह तो समय ही बताएगा कि नेताजी के इस बगावत के पीछे कौन है. किसको बचाने के लिए नेताजी ने घुटने टेक दिए अपनी और अपने परिवार पर लगने वाले कलंक से डील है या नोएडा के बदनाम इंजीनियर के काले कारनामों की बदनामी से बचने के लिए ही नेताजी को परिवार से भागना  मुनासिव लगा।



बिहार चुनाव के चरितार्थ
बिहार के चुनावी दंगल का फैसला तो आठ नवम्बर को होगा। किसको क्या नसीब होगा यह सब इसी दिन पत्ता चलेगा, मगर अभी से यह तय हो गया है कि बिहार में कमल खिले या न खिले मगर 2017 में यूपी में तो कमल को ही खिलना है. चुनाव बिहार में है, मगर कमल की नजर लखनऊ पर है। यानी तोता (सीबीआई) को लेकर सौदेबाजी में नेताजी और बहनजी निशाने पर है। तोता से कोई बैर करना चाहता नही, क्योंकि इमेज पर बट्टा के साथ साथ कोर्ट मुकदमा जेल का अलग से टेरर। यानी कमल को खिलाने के लिए तोता को हाथ में देख कर दामाद जी के कारनामों के सामने तो पंजे की भी चुप्पी बनी रहेगी. तो फिर किसमें है दम जो कमल को करे बेदम । दल बदलने के लिए चर्चित वेस्ट यूपी के जाटछोरे में कहां दम जो दिल्ली की कुर्सी से टकरा जाए। यानी दिखावे की चुनौती के बीच अवध नगरी में जय श्री राम ।  

समय समय की बात

तोते का भय दिखाकर पूरे देश में 60 साल तक मस्ती से राज करने वाली कांग्रेस अब उसी तोते से आशंकित है। देश के दामादजी पर कई राज्य. में कई तरह के मामले लंबित है। कहीं घोटाला तो कहीं कौडियों के भाव जमीन (पाकर) खरीदकर मोटी कमाई का मामला है तो कहीं कुछ और तरह के मामले में पीतलनगरी का मैंगोमैन वांछित है. पंजा के युवराजा बाबा के बाबा साबित हो जाने के बाद लोगों की नजर बेटी पर है। अमेठी पुत्री बनने से कतरा रही पुत्री फिलहाल अपनी मां और भाई की गाडी को पटरी पर संभाल रही है. बहन को लाओ पार्टी बचाओं की बारम्बार मांग उठ रही है, तो मैंगोमैन दामाद पर तोते का खतरा मंडरा रहा है। सबों को पता है कि ज्योंहि बहनजी पार्टी में हेड बनी नहीं कि दामाद की गर्दन पर तोते का शिकंजा होगा और मैंगोमैन की कारस्तानियों का असर मैडम वाईफ और पार्टी पर पडेगा ही । यानी पंजे पर बहन की लगाम के आसार नहीं है, भले ही पंजा 44 से आठ  क्यों न हो जाए।

पंजे का हाल पर नो कमेंट्स

समय बडा बलवान होता है. एक समय था कि पूरे देश में चारो तरफ पंजे की ही धूम होती थी। इसका सूरज कभी नहीं डूबता था. 130 साल पुरानी इस पार्टी के पतन काल के इस दौर में धीरे धीरे लोग ही इससे किनारा करते जा रहे है। दूसरी पार्टियों की पूंछ बनकर बिहार में 40 सीटो पर पंजा मैदान में है, मगर लोगों के चित से लोप हो गयी पंजे के लिए कोई उम्मीदवार नहीं मिल रहा. उस पर बिहार प्रभारी बने पूर्व दिल्ली पुलिस आयुक्त और भूत राज्यपाल महोदय दिल्ली की बजाय टिकट बांटने का काम दिल्ली से चला रहे है. मां बेटे के बिहार दौरे के बावजूद देखना हैं कि क्या इस बार पंजा कैरमबोर्ड की टीम बनाती है या खाता के नाम पर सिफर या...या.... .। नो कमेंट्स

कमल के तीन सीएम

यदि चुनाव में कमल का सिक्का चल निकला तो यकीन मानिए बिहारके लिए तीन
मार ले गयी तो पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव के सिर पर ताज संभव है। और यादव पर भारी साबित होकर विकास कुमार को रोकने में कमल सफल रही तो दूसरे नंबर के सुशील मोदी पर भी ताज मुमकिन है. मगर दोनों में यदि तू बडा या मैं का गेम चालू हुआ तो पीएम संघ की पसंद पत्रकार से नेता बने दिग्गज राजीव शुक्ल के साले रविशंकर प्रसाद सीधे पैराशूट सीएम बनकर पटना में अवतरित हो सकते है। ज्.दातर सांसदो के मित्र रहे पत्रकार राजीव शुक्ला को अपने प्रति लाईटमूड करने के इस स्वर्णीम मौके को भाजपा जाने नहीं देगी जो किसी भी विपत्ति में सबों के लिए संकटमोचक हो सकते है। यानी रविशंकर प्रसाद की दावेदारी बिहारी नेताओं पर भारी पड सकती है।


तेज और चिराग की साख

नेताजी के सीएम बेटे की किस्मत से सुलगने वाले बिहार में कई नेता है.। कहावत है कि अपना बेटा और पराये की बीबी सबों को मनभावन लगती है। अपने बेटे को सचिन तेंदुलकर या शाहरूख खान बनाने के लिए बिहारी नेताओं ने अपना सारा पावर प्रेशर पोलटिक्स पैसा भी लगाया मगर सपना जो साकार ना हो सका.। गंगाजल को अपनाकर भी राजनीति का चिराग सुलग नहीं पाया।  तो तेंदुलकर ना बन पाए क्रिकेटर तेज एक भी मैच खेले बगैर ही आईपीएल दिल्ली टीम में दो बार रहे तेज करोडपति जरूर हो गए। दोनों पुत्रों पर बाप की बिरासत संभालने का बोझ है. देखना है कि इस चुनाव में किसका तेज और चिराग सलामत रह पाता है ? लगता है इस मामले में नेताजी भारी ही रहेंगे।   

मांझी के सुपुत्र

बड़बोले पन के लिए कुख्यात भूत सीएम मांझी के पुत्र कई लाख रूपयों के साथ पिछले दिन धऱ दबोचे गए। तो इसे भी विपक्ष की साजिश कहकर मामले की सफाई देने में पिताश्री को मैदान में उतरना पडा। भूत सीएम ने इसे लोकप्रियता के भय से दूसरों पर बदनाम करने का आरोप मढ दिया। 40 साल से राजनीति करते हुए और कई दफा मंत्री रह चुके मांझी की नेशनल पहचान अंतत खड़ाऊ सीएम बनकर ही मिली। और अब खुद को जनाधार वाले नेता मानकर दूसरों को गरियाने वाले मांझी जी को यह कौन समझाएं कि धन लेकर घूम रहे सुपुत्र के पास या तो काला धन होगा या कोई लेनदेन का । कोई विपक्ष लाखों गंवाकर मांझी सुपुत्र को बंदी बनवाना तो नहीं ही चाहेगा।
इस तरह तो बन जाएगा हार्दिक बडा नेता

लगता है कि युवा हार्दिक पटेल को बीजेपी गुजरात का जननेता बनाकर ही दम लेगी। हार्दिक को कमतर आंकने की भूल करके कमल की बड़ी किरकिरी हो चुकी है, इसके बावजूद कोई सीख लेने की बजाय हार्दिक को मौके बेमौके पकड़कर उसको खबर बनने दिया जा  सहा है। सरकार का यही हाल सरकारी रहा तो इसमें कोई शक नहीं कि 2017 में पटेल के हार्दिक स्वागत के लिए भी तैयार रहना होगा. तमाम सरकारी बंदिशों के बाद भी राजधानी में 10 लाख की भीड जुटा लेना सीएम मैडम के लिए भी आसान नहीं है। पीएम के खिलाफ आग उगदलने वाला यह नेता तो बिहार में भी जाने वाला है यानी खुद को कद से ज्यादा कर चुका यह गुजराती सिरदर्द कहीं पीएम के विकास के मॉडल स्टेट पर ही न  काबू कर ले.



अनामी शरणबबल






.
कल न जाए ?







    




सड़क से संसद तक............  / अनामी शरण बबल - 1

या
.......हाजिर हो  / अनामी शरण बबल - 1


बिहारी दंगल में मुलायम इंट्री
लडाई  मारपीट खींचतान उठापटक आरोप- प्रत्यारोपों जातिवाद और रंगदारी दादागिरी के लिए कुख्यात बिहार में इन दिनों चुनावी दंगल चालू है। भीतरघात में उलझे बिहार के तमाम कथित नेता फिलहाल बिहार के उत्थान विकास और बिहारियों की चिंता करने की बजाय अपने घर (पार्टी) को टूटने लूटने और उजडने से बचाने में लगे हैं। लालटेन में आग लगी है, तो विकास कुमार खेमा में भी भागमभाग मची है। कमल खेमा ही कमल को डूबो रही है। मझदार में कमल को ले जाकर मांझी ही बेदम हो रहे है। अपने पुराने साथियों से ज्यादा भगोड़ो और मौका परस्तों पर दांव लगाने के लिए बेकरार कमल की गिरती साख से दिल्ली बेदम है। इसी उठापटक में यूपी के पहलवान नेताजी का बिहार में जोर शोर से समाजवादी पताका लहराने से तमाम दलों के दलबदलूओं और मुलायम पार्टी में नयी जान आ गयी है। मुलायम दांव से कमल को राहत तो मिली है। हालांकि इस दांव के लिए नेताजी की मजबूरी को बिहारी पब्लिक सब जानती है। पुराने दुश्मन को समधि बनाकर भी रास्ते में छोड़ना किसी को भी नही भाएगा।

जनता परिवार के मुखिया जी


जीवन के उतरार्द्ध में पीएम बनने के लिए बेकरार नेताजी लोकसबा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त खाने के बाद भी सपने में ही है. पूरे विपक्ष को एक करने की मुहिम को अंजाम देते हुए नेताजी ने जनता परिवार बनाया। तीसरा मोर्चे में बनते ही बिखरने की आशंका लग रही थी। खासकर. बिहार चुनाव को लेकर सबों में डर था कि परिवार से बिखरने का परचम कौन लहराएगा, मगर यह क्या कि सबलोग साथ में ही रहे और नेताजी ही बिदक कर अलग हो गए। कहा तो जा रहा है कि इसके पीछे कमल सुप्रीमों से कुछ डील हुआ है, मगर यह तो समय ही बताएगा कि नेताजी के इस बगावत के पीछे कौन है. किसको बचाने के लिए नेताजी ने घुटने टेक दिए अपनी और अपने परिवार पर लगने वाले कलंक से डील है या नोएडा के बदनाम इंजीनियर के काले कारनामों की बदनामी से बचने के लिए ही नेताजी को परिवार से भागना  मुनासिव लगा।



बिहार चुनाव के चरितार्थ
बिहार के चुनावी दंगल का फैसला तो आठ नवम्बर को होगा। किसको क्या नसीब होगा यह सब इसी दिन पत्ता चलेगा, मगर अभी से यह तय हो गया है कि बिहार में कमल खिले या न खिले मगर 2017 में यूपी में तो कमल को ही खिलना है. चुनाव बिहार में है, मगर कमल की नजर लखनऊ पर है। यानी तोता (सीबीआई) को लेकर सौदेबाजी में नेताजी और बहनजी निशाने पर है। तोता से कोई बैर करना चाहता नही, क्योंकि इमेज पर बट्टा के साथ साथ कोर्ट मुकदमा जेल का अलग से टेरर। यानी कमल को खिलाने के लिए तोता को हाथ में देख कर दामाद जी के कारनामों के सामने तो पंजे की भी चुप्पी बनी रहेगी. तो फिर किसमें है दम जो कमल को करे बेदम । दल बदलने के लिए चर्चित वेस्ट यूपी के जाटछोरे में कहां दम जो दिल्ली की कुर्सी से टकरा जाए। यानी दिखावे की चुनौती के बीच अवध नगरी में जय श्री राम ।  

समय समय की बात

तोते का भय दिखाकर पूरे देश में 60 साल तक मस्ती से राज करने वाली कांग्रेस अब उसी तोते से आशंकित है। देश के दामादजी पर कई राज्य. में कई तरह के मामले लंबित है। कहीं घोटाला तो कहीं कौडियों के भाव जमीन (पाकर) खरीदकर मोटी कमाई का मामला है तो कहीं कुछ और तरह के मामले में पीतलनगरी का मैंगोमैन वांछित है. पंजा के युवराजा बाबा के बाबा साबित हो जाने के बाद लोगों की नजर बेटी पर है। अमेठी पुत्री बनने से कतरा रही पुत्री फिलहाल अपनी मां और भाई की गाडी को पटरी पर संभाल रही है. बहन को लाओ पार्टी बचाओं की बारम्बार मांग उठ रही है, तो मैंगोमैन दामाद पर तोते का खतरा मंडरा रहा है। सबों को पता है कि ज्योंहि बहनजी पार्टी में हेड बनी नहीं कि दामाद की गर्दन पर तोते का शिकंजा होगा और मैंगोमैन की कारस्तानियों का असर मैडम वाईफ और पार्टी पर पडेगा ही । यानी पंजे पर बहन की लगाम के आसार नहीं है, भले ही पंजा 44 से आठ  क्यों न हो जाए।

पंजे का हाल पर नो कमेंट्स

समय बडा बलवान होता है. एक समय था कि पूरे देश में चारो तरफ पंजे की ही धूम होती थी। इसका सूरज कभी नहीं डूबता था. 130 साल पुरानी इस पार्टी के पतन काल के इस दौर में धीरे धीरे लोग ही इससे किनारा करते जा रहे है। दूसरी पार्टियों की पूंछ बनकर बिहार में 40 सीटो पर पंजा मैदान में है, मगर लोगों के चित से लोप हो गयी पंजे के लिए कोई उम्मीदवार नहीं मिल रहा. उस पर बिहार प्रभारी बने पूर्व दिल्ली पुलिस आयुक्त और भूत राज्यपाल महोदय दिल्ली की बजाय टिकट बांटने का काम दिल्ली से चला रहे है. मां बेटे के बिहार दौरे के बावजूद देखना हैं कि क्या इस बार पंजा कैरमबोर्ड की टीम बनाती है या खाता के नाम पर सिफर या...या.... .। नो कमेंट्स

कमल के तीन सीएम

यदि चुनाव में कमल का सिक्का चल निकला तो यकीन मानिए बिहारके लिए तीन
मार ले गयी तो पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव के सिर पर ताज संभव है। और यादव पर भारी साबित होकर विकास कुमार को रोकने में कमल सफल रही तो दूसरे नंबर के सुशील मोदी पर भी ताज मुमकिन है. मगर दोनों में यदि तू बडा या मैं का गेम चालू हुआ तो पीएम संघ की पसंद पत्रकार से नेता बने दिग्गज राजीव शुक्ल के साले रविशंकर प्रसाद सीधे पैराशूट सीएम बनकर पटना में अवतरित हो सकते है। ज्.दातर सांसदो के मित्र रहे पत्रकार राजीव शुक्ला को अपने प्रति लाईटमूड करने के इस स्वर्णीम मौके को भाजपा जाने नहीं देगी जो किसी भी विपत्ति में सबों के लिए संकटमोचक हो सकते है। यानी रविशंकर प्रसाद की दावेदारी बिहारी नेताओं पर भारी पड सकती है।


तेज और चिराग की साख

नेताजी के सीएम बेटे की किस्मत से सुलगने वाले बिहार में कई नेता है.। कहावत है कि अपना बेटा और पराये की बीबी सबों को मनभावन लगती है। अपने बेटे को सचिन तेंदुलकर या शाहरूख खान बनाने के लिए बिहारी नेताओं ने अपना सारा पावर प्रेशर पोलटिक्स पैसा भी लगाया मगर सपना जो साकार ना हो सका.। गंगाजल को अपनाकर भी राजनीति का चिराग सुलग नहीं पाया।  तो तेंदुलकर ना बन पाए क्रिकेटर तेज एक भी मैच खेले बगैर ही आईपीएल दिल्ली टीम में दो बार रहे तेज करोडपति जरूर हो गए। दोनों पुत्रों पर बाप की बिरासत संभालने का बोझ है. देखना है कि इस चुनाव में किसका तेज और चिराग सलामत रह पाता है ? लगता है इस मामले में नेताजी भारी ही रहेंगे।   

मांझी के सुपुत्र

बड़बोले पन के लिए कुख्यात भूत सीएम मांझी के पुत्र कई लाख रूपयों के साथ पिछले दिन धऱ दबोचे गए। तो इसे भी विपक्ष की साजिश कहकर मामले की सफाई देने में पिताश्री को मैदान में उतरना पडा। भूत सीएम ने इसे लोकप्रियता के भय से दूसरों पर बदनाम करने का आरोप मढ दिया। 40 साल से राजनीति करते हुए और कई दफा मंत्री रह चुके मांझी की नेशनल पहचान अंतत खड़ाऊ सीएम बनकर ही मिली। और अब खुद को जनाधार वाले नेता मानकर दूसरों को गरियाने वाले मांझी जी को यह कौन समझाएं कि धन लेकर घूम रहे सुपुत्र के पास या तो काला धन होगा या कोई लेनदेन का । कोई विपक्ष लाखों गंवाकर मांझी सुपुत्र को बंदी बनवाना तो नहीं ही चाहेगा।
इस तरह तो बन जाएगा हार्दिक बडा नेता

लगता है कि युवा हार्दिक पटेल को बीजेपी गुजरात का जननेता बनाकर ही दम लेगी। हार्दिक को कमतर आंकने की भूल करके कमल की बड़ी किरकिरी हो चुकी है, इसके बावजूद कोई सीख लेने की बजाय हार्दिक को मौके बेमौके पकड़कर उसको खबर बनने दिया जा  सहा है। सरकार का यही हाल सरकारी रहा तो इसमें कोई शक नहीं कि 2017 में पटेल के हार्दिक स्वागत के लिए भी तैयार रहना होगा. तमाम सरकारी बंदिशों के बाद भी राजधानी में 10 लाख की भीड जुटा लेना सीएम मैडम के लिए भी आसान नहीं है। पीएम के खिलाफ आग उगदलने वाला यह नेता तो बिहार में भी जाने वाला है यानी खुद को कद से ज्यादा कर चुका यह गुजराती सिरदर्द कहीं पीएम के विकास के मॉडल स्टेट पर ही न  काबू कर ले.



अनामी शरणबबल






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कल न जाए ?







    

बुधवार, 2 सितंबर 2015

भारत के मंदिर)


 

 

 

 Temples of India (भारत के मंदिर)

Shiv Temple  (शिव मंदिर)

असीरगढ़ का किला - श्रीकृष्ण के श्राप के कारण यहां आज भी भटकते हैं अश्वत्थामा, किले के शिवमंदिर में प्रतिदिन करते है पूजा

काठगढ़ महादेव - यहां है आधा शिव आधा पार्वती रूप शिवलिंग (अर्धनारीश्वर शिवलिंग)

स्तंभेश्वर महादेव - शिव पुत्र कार्तिकेय ने करी थी स्थापना, दिन में दो बार नज़रों से ओझल होता है यह मंदिर

टूटी झरना मंदिर- रामगढ़(झारखंड) - यहाँ स्वयं माँ गंगा करती है शिवजी का जलाभिषेक

बिजली महादेव- कुल्लू -हर बारह साल में शिवलिंग पर गिरती है बिजली

लिंगाई माता मंदिर - स्त्री रूप में होती है शिवलिंग की पूजा

अचलेश्वर महादेव - अचलगढ़ - एक मात्र मंदिर जहां होती है शिव के अंगूठे की पूजा

ममलेश्वर महादेव मंदिर - यहां है 200 ग्राम वजनी गेहूं का दाना - पांडवों से है संबंध

नागचंद्रेश्वर मंदिर - साल में मात्र एक दिन खुलता है मंदिर

चमत्कारिक भूतेश्वर नाथ शिवलिंग - हर साल बढ़ती है इसकी लम्बाई

अनोखा शिवलिंग - महमूद गजनवी ने इस पर खुदवाया था कलमा

महादेवशाल धाम - जहाँ होती है खंडित शिवलिंग की पूजा - गई थी एक ब्रिटिश इंजीनियर की जान

निष्कलंक महादेव - गुजरात - अरब सागर में स्तिथ शिव मंदिर - यहां मिली थी पांडवों को पाप से मुक्ती

परशुराम महादेव गुफा मंदिर - मेवाड़ का अमरनाथ - स्वंय परशुराम ने फरसे से चट्टान को काटकर किया था निर्माण

कमलनाथ महादेव मंदिर - झाडौल - यहां भगवान शिव से पहले की जाती है रावण की पूजा

कामेश्वर धाम कारो - बलिया - यहाँ भगवान शिव ने कामदेव को किया था भस्म

अचलेश्वर महादेव - धौलपुर(राजस्थान) - यहाँ पर है दिन मे तीन बार रंग बदलने वाला शिवलिंग

लक्ष्मणेश्वर महादेव - खरौद - यहाँ पर है लाख छिद्रों वाला शिवलिंग (लक्षलिंग)

भोजेश्वर मंदिर (Bhojeshwar Temple) - भोपाल - यहाँ है एक ही पत्थर से निर्मित विशव का सबसे बड़ा शिवलिंग (World's tallest shivlinga made by one rock)
जंगमवाड़ी मठ - वाराणसी : जहा अपनों की मृत्यु पर शिवलिंग किये जाते हे दान

एक हथिया देवाल- मात्र एक हाथ से और एक रात में बने इस प्राचीन शिव मंदिर के शिवलिंग की नहीं होती है पूजा, आखिर क्यों? 

Mata Temple  (माता के मंदिर)

ज्वालामुखी देवी - यहाँ अकबर ने भी मानी थी हार - होती है नौ चमत्कारिक ज्वाला की पूजा

दंतेश्वmरी मंदिर - दन्तेवाड़ा - एक शक्ति पीठ - यहाँ गिरा था सती का दांत

51 Shakti Peeth (51 शक्ति पीठ)

करणी माता मंदिर, देशनोक (Karni Mata Temple , Deshnok) - इस मंदिर में रहते है 20,000 चूहे, चूहों का झूठा प्रसाद मिलता है भक्तों को
कामाख्या मंदिर - सबसे पुराना शक्तिपीठ - यहाँ होती हैं योनि कि पूजा, लगता है तांत्रिकों व अघोरियों का मेला

तरकुलहा देवी (Tarkulha Devi) - गोरखपुर - जहाँ चढ़ाई गयी थी कई अंग्रेज सैनिकों कि बलि

तनोट माता मंदिर (जैसलमेर) - जहा पाकिस्तान के गिराए 3000 बम हुए थे बेअसर

दैवीय चमत्कार- 50 लाख लीटर पानी से भी नहीं भरा शीतला माता के मंदिर में स्तिथ ये छोटा सा घडा़

जीजी बाई का मंदिर- एक अनोखा मंदिर जहाँ मन्नत पूरी होने पर मां दुर्गा को चढ़ती है चप्पल और सैंडिल

जीण माता मंदिर- औरंगजेब भी नहीं कर पाया था इस मंदिर को खंडित, मधुमक्खियों ने की थी रक्षा

सिमसा माता मंदिर- जहां फर्श पर सोने से होती है नि:संतान महिलाओं को संतान की प्राप्ति

मां बम्लेश्वरी मंदिर- ऊंचे पहाड़ पर स्थित माता के इस मंदिर से जुड़ी है एक प्रसिद्ध प्रेम कहानी

चौसठ योगिनी मंदिर, मुरैना- यह मंदिर कहलाता था तांत्रिक विश्वविद्यालय, होते थे तांत्रिक अनुष्ठान

Hanuman Temple (हनुमान मंदिर)

भारत के प्रसिद्ध 16 हनुमान मंदिर

गिरजाबंध हनुमान मंदिर - रतनपुर - एक अति प्राचीन मंदिर जहाँ स्त्री रूप में होती है हनुमान कि पूजा

तेलंगाना में है हनुमान जी और उनकी पत्नी सुवर्चला का मंदिर

कष्टभंजन हनुमान मंदिर- जहाँ हनुमान जी के पैरों में स्त्री रूप में बैठे है शनि देव

भारत में दो जगह है हनुमान पुत्र मकरध्वज के मंदिर


Other Temple (अन्य मंदिर)

भारत के 10 प्रसिद्ध सूर्य मंदिर

पाकिस्तान स्तिथ हिन्दुओं के 20 प्राचीन, पौराणिक और ऐतिहासिक मंदिर

भारत के 10 सबसे अमीर मंदिर

अद्भुत हैंगिंग लेपाक्षी टेम्पल

अदभुत गणेश प्रतिमा - दंतेवाड़ा में 3000 फ़ीट की ऊँचाई पर स्थापित 10 वि सदी की गणेश प्रतिमा

अष्टविनायक - गणेश जी के आठ अति प्राचीन मंदिर, जहाँ है स्वयंभू गणेश जी

चमत्कारिक कनिपक्कम गणपति मंदिर (आंध्रप्रदेश) - लगातार बढ़ा रहा है मूर्ति का आकार

भारत के प्रमुख तीर्थ - 51 शक्ति पीठ, 12 ज्योतिर्लिंग, 7 सप्तपुरी और 4 धाम

पहाड़ी मंदिर - रांची - भारत का एक मात्र मंदिर जहाँ राष्ट्रीय पर्वो पर फहराया जाता है तिरंगा

बाबा हरभजन सिंह मंदिर - सिक्किम - इस मृत सैनिक की आत्मा आज भी करती है देश की रक्षा

बुलेट बाबा का मंदिर - जहाँ कि जाती हैं बुलेट बाइक कि पूजा, माँगी जाती हैं सकुशल यात्रा कि मन्नत

महात्मा गांधी जी का मंदिर - उड़ीसा

जानिये भारत में स्तिथ यमराज (धर्मराज) के चार प्राचीन मंदिरों के बारे में

गंधेश्वर शिवलिंग - खुदाई में मिला 2000 साल पुराना शिवलिंग - आती है तुलसी की सुगंध

क्यों है ब्रह्मा जी का पुरे भारत में एक मंदिर ?

लादा महादेव टंगरा - यहां चट्टान पर हाथ फेरने से रिसता है पानी, दिखते हैं सीता-राम के पद-चिन्ह

रहस्यमयी और चमत्कारिक काल भैरव मंदिर - जहां भगवान काल भैरव करते है मदिरा पान

12 ज्योतिर्लिंग (12 Jyotirlinga)

7 धार्मिक स्थल जहाँ महिलाओं के प्रवेश पर है पाबंदी

लोहार्गल - यहां पानी में गल गए थे पांडवों के अस्त्र-शस्त्र, मिली थी परिजनों की हत्या के पाप से मुक्ति

टाइगर टेंपल- थाईलैंड- जहाँ सैकड़ों टाइगर रहते है बौद्ध भिक्षुओं के साथ

मलूटी- झारखंड - इसे कहते है मंदिरों का गाँव और गुप्त काशी

आदि केशव पेरुमल मंदिर - श्री पेरंबदूर - शिवजी के भूत गणों ने किया था इसका निर्माण

भारत के इन 10 मंदिरों में मिलता है अजब गजब प्रसाद

शृंग ऋषि और भगवान राम की बहन 'शांता' का मंदिर

आंजन धाम- मान्यता है की यही माँ अंजनी ने दिया था हनुमान को जन्म

कहानी भारत के 5 रहस्यमयी मंदिरों की

भगवान श्रीराम के 10 प्रमुख मंदिर

ये है भारत में वो स्थान जहाँ होती है रावण की पूजा

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