शनिवार, 19 सितंबर 2015

/ अनामी शरण बबल - 1







बिहारी दंगल में मुलायम इंट्री 
लडाई  मारपीट खींचतान उठापटक आरोप- प्रत्यारोपों जातिवाद और रंगदारी दादागिरी के लिए कुख्यात बिहार में इन दिनों चुनावी दंगल चालू है। भीतरघात में उलझे बिहार के तमाम कथित नेता फिलहाल बिहार के उत्थान विकास और बिहारियों की चिंता करने की बजाय अपने घर (पार्टी) को टूटने लूटने और उजडने से बचाने में लगे हैं। लालटेन में आग लगी है, तो विकास कुमार खेमा में भी भागमभाग मची है। कमल खेमा ही कमल को डूबो रही है। मझदार में कमल को ले जाकर मांझी ही बेदम हो रहे है। अपने पुराने साथियों से ज्यादा भगोड़ो और मौका परस्तों पर दांव लगाने के लिए बेकरार कमल की गिरती साख से दिल्ली बेदम है। इसी उठापटक में यूपी के पहलवान नेताजी का बिहार में जोर शोर से समाजवादी पताका लहराने से तमाम दलों के दलबदलूओं और मुलायम पार्टी में नयी जान आ गयी है। मुलायम दांव से कमल को राहत तो मिली है। हालांकि इस दांव के लिए नेताजी की मजबूरी को बिहारी पब्लिक सब जानती है। पुराने दुश्मन को समधि बनाकर भी रास्ते में छोड़ना किसी को भी नही भाएगा।

जनता परिवार के मुखिया जी


जीवन के उतरार्द्ध में पीएम बनने के लिए बेकरार नेताजी लोकसबा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त खाने के बाद भी सपने में ही है. पूरे विपक्ष को एक करने की मुहिम को अंजाम देते हुए नेताजी ने जनता परिवार बनाया। तीसरा मोर्चे में बनते ही बिखरने की आशंका लग रही थी। खासकर. बिहार चुनाव को लेकर सबों में डर था कि परिवार से बिखरने का परचम कौन लहराएगा, मगर यह क्या कि सबलोग साथ में ही रहे और नेताजी ही बिदक कर अलग हो गए। कहा तो जा रहा है कि इसके पीछे कमल सुप्रीमों से कुछ डील हुआ है, मगर यह तो समय ही बताएगा कि नेताजी के इस बगावत के पीछे कौन है. किसको बचाने के लिए नेताजी ने घुटने टेक दिए अपनी और अपने परिवार पर लगने वाले कलंक से डील है या नोएडा के बदनाम इंजीनियर के काले कारनामों की बदनामी से बचने के लिए ही नेताजी को परिवार से भागना  मुनासिव लगा।



बिहार चुनाव के चरितार्थ
बिहार के चुनावी दंगल का फैसला तो आठ नवम्बर को होगा। किसको क्या नसीब होगा यह सब इसी दिन पत्ता चलेगा, मगर अभी से यह तय हो गया है कि बिहार में कमल खिले या न खिले मगर 2017 में यूपी में तो कमल को ही खिलना है. चुनाव बिहार में है, मगर कमल की नजर लखनऊ पर है। यानी तोता (सीबीआई) को लेकर सौदेबाजी में नेताजी और बहनजी निशाने पर है। तोता से कोई बैर करना चाहता नही, क्योंकि इमेज पर बट्टा के साथ साथ कोर्ट मुकदमा जेल का अलग से टेरर। यानी कमल को खिलाने के लिए तोता को हाथ में देख कर दामाद जी के कारनामों के सामने तो पंजे की भी चुप्पी बनी रहेगी. तो फिर किसमें है दम जो कमल को करे बेदम । दल बदलने के लिए चर्चित वेस्ट यूपी के जाटछोरे में कहां दम जो दिल्ली की कुर्सी से टकरा जाए। यानी दिखावे की चुनौती के बीच अवध नगरी में जय श्री राम ।  

समय समय की बात

तोते का भय दिखाकर पूरे देश में 60 साल तक मस्ती से राज करने वाली कांग्रेस अब उसी तोते से आशंकित है। देश के दामादजी पर कई राज्य. में कई तरह के मामले लंबित है। कहीं घोटाला तो कहीं कौडियों के भाव जमीन (पाकर) खरीदकर मोटी कमाई का मामला है तो कहीं कुछ और तरह के मामले में पीतलनगरी का मैंगोमैन वांछित है. पंजा के युवराजा बाबा के बाबा साबित हो जाने के बाद लोगों की नजर बेटी पर है। अमेठी पुत्री बनने से कतरा रही पुत्री फिलहाल अपनी मां और भाई की गाडी को पटरी पर संभाल रही है. बहन को लाओ पार्टी बचाओं की बारम्बार मांग उठ रही है, तो मैंगोमैन दामाद पर तोते का खतरा मंडरा रहा है। सबों को पता है कि ज्योंहि बहनजी पार्टी में हेड बनी नहीं कि दामाद की गर्दन पर तोते का शिकंजा होगा और मैंगोमैन की कारस्तानियों का असर मैडम वाईफ और पार्टी पर पडेगा ही । यानी पंजे पर बहन की लगाम के आसार नहीं है, भले ही पंजा 44 से आठ  क्यों न हो जाए।

पंजे का हाल पर नो कमेंट्स

समय बडा बलवान होता है. एक समय था कि पूरे देश में चारो तरफ पंजे की ही धूम होती थी। इसका सूरज कभी नहीं डूबता था. 130 साल पुरानी इस पार्टी के पतन काल के इस दौर में धीरे धीरे लोग ही इससे किनारा करते जा रहे है। दूसरी पार्टियों की पूंछ बनकर बिहार में 40 सीटो पर पंजा मैदान में है, मगर लोगों के चित से लोप हो गयी पंजे के लिए कोई उम्मीदवार नहीं मिल रहा. उस पर बिहार प्रभारी बने पूर्व दिल्ली पुलिस आयुक्त और भूत राज्यपाल महोदय दिल्ली की बजाय टिकट बांटने का काम दिल्ली से चला रहे है. मां बेटे के बिहार दौरे के बावजूद देखना हैं कि क्या इस बार पंजा कैरमबोर्ड की टीम बनाती है या खाता के नाम पर सिफर या...या.... .। नो कमेंट्स

कमल के तीन सीएम

यदि चुनाव में कमल का सिक्का चल निकला तो यकीन मानिए बिहारके लिए तीन
मार ले गयी तो पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव के सिर पर ताज संभव है। और यादव पर भारी साबित होकर विकास कुमार को रोकने में कमल सफल रही तो दूसरे नंबर के सुशील मोदी पर भी ताज मुमकिन है. मगर दोनों में यदि तू बडा या मैं का गेम चालू हुआ तो पीएम संघ की पसंद पत्रकार से नेता बने दिग्गज राजीव शुक्ल के साले रविशंकर प्रसाद सीधे पैराशूट सीएम बनकर पटना में अवतरित हो सकते है। ज्.दातर सांसदो के मित्र रहे पत्रकार राजीव शुक्ला को अपने प्रति लाईटमूड करने के इस स्वर्णीम मौके को भाजपा जाने नहीं देगी जो किसी भी विपत्ति में सबों के लिए संकटमोचक हो सकते है। यानी रविशंकर प्रसाद की दावेदारी बिहारी नेताओं पर भारी पड सकती है।


तेज और चिराग की साख

नेताजी के सीएम बेटे की किस्मत से सुलगने वाले बिहार में कई नेता है.। कहावत है कि अपना बेटा और पराये की बीबी सबों को मनभावन लगती है। अपने बेटे को सचिन तेंदुलकर या शाहरूख खान बनाने के लिए बिहारी नेताओं ने अपना सारा पावर प्रेशर पोलटिक्स पैसा भी लगाया मगर सपना जो साकार ना हो सका.। गंगाजल को अपनाकर भी राजनीति का चिराग सुलग नहीं पाया।  तो तेंदुलकर ना बन पाए क्रिकेटर तेज एक भी मैच खेले बगैर ही आईपीएल दिल्ली टीम में दो बार रहे तेज करोडपति जरूर हो गए। दोनों पुत्रों पर बाप की बिरासत संभालने का बोझ है. देखना है कि इस चुनाव में किसका तेज और चिराग सलामत रह पाता है ? लगता है इस मामले में नेताजी भारी ही रहेंगे।   

मांझी के सुपुत्र

बड़बोले पन के लिए कुख्यात भूत सीएम मांझी के पुत्र कई लाख रूपयों के साथ पिछले दिन धऱ दबोचे गए। तो इसे भी विपक्ष की साजिश कहकर मामले की सफाई देने में पिताश्री को मैदान में उतरना पडा। भूत सीएम ने इसे लोकप्रियता के भय से दूसरों पर बदनाम करने का आरोप मढ दिया। 40 साल से राजनीति करते हुए और कई दफा मंत्री रह चुके मांझी की नेशनल पहचान अंतत खड़ाऊ सीएम बनकर ही मिली। और अब खुद को जनाधार वाले नेता मानकर दूसरों को गरियाने वाले मांझी जी को यह कौन समझाएं कि धन लेकर घूम रहे सुपुत्र के पास या तो काला धन होगा या कोई लेनदेन का । कोई विपक्ष लाखों गंवाकर मांझी सुपुत्र को बंदी बनवाना तो नहीं ही चाहेगा।
इस तरह तो बन जाएगा हार्दिक बडा नेता

लगता है कि युवा हार्दिक पटेल को बीजेपी गुजरात का जननेता बनाकर ही दम लेगी। हार्दिक को कमतर आंकने की भूल करके कमल की बड़ी किरकिरी हो चुकी है, इसके बावजूद कोई सीख लेने की बजाय हार्दिक को मौके बेमौके पकड़कर उसको खबर बनने दिया जा  सहा है। सरकार का यही हाल सरकारी रहा तो इसमें कोई शक नहीं कि 2017 में पटेल के हार्दिक स्वागत के लिए भी तैयार रहना होगा. तमाम सरकारी बंदिशों के बाद भी राजधानी में 10 लाख की भीड जुटा लेना सीएम मैडम के लिए भी आसान नहीं है। पीएम के खिलाफ आग उगदलने वाला यह नेता तो बिहार में भी जाने वाला है यानी खुद को कद से ज्यादा कर चुका यह गुजराती सिरदर्द कहीं पीएम के विकास के मॉडल स्टेट पर ही न  काबू कर ले.



अनामी शरणबबल






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कल न जाए ?







    




सड़क से संसद तक............  / अनामी शरण बबल - 1

या
.......हाजिर हो  / अनामी शरण बबल - 1


बिहारी दंगल में मुलायम इंट्री
लडाई  मारपीट खींचतान उठापटक आरोप- प्रत्यारोपों जातिवाद और रंगदारी दादागिरी के लिए कुख्यात बिहार में इन दिनों चुनावी दंगल चालू है। भीतरघात में उलझे बिहार के तमाम कथित नेता फिलहाल बिहार के उत्थान विकास और बिहारियों की चिंता करने की बजाय अपने घर (पार्टी) को टूटने लूटने और उजडने से बचाने में लगे हैं। लालटेन में आग लगी है, तो विकास कुमार खेमा में भी भागमभाग मची है। कमल खेमा ही कमल को डूबो रही है। मझदार में कमल को ले जाकर मांझी ही बेदम हो रहे है। अपने पुराने साथियों से ज्यादा भगोड़ो और मौका परस्तों पर दांव लगाने के लिए बेकरार कमल की गिरती साख से दिल्ली बेदम है। इसी उठापटक में यूपी के पहलवान नेताजी का बिहार में जोर शोर से समाजवादी पताका लहराने से तमाम दलों के दलबदलूओं और मुलायम पार्टी में नयी जान आ गयी है। मुलायम दांव से कमल को राहत तो मिली है। हालांकि इस दांव के लिए नेताजी की मजबूरी को बिहारी पब्लिक सब जानती है। पुराने दुश्मन को समधि बनाकर भी रास्ते में छोड़ना किसी को भी नही भाएगा।

जनता परिवार के मुखिया जी


जीवन के उतरार्द्ध में पीएम बनने के लिए बेकरार नेताजी लोकसबा चुनाव में बुरी तरह शिकस्त खाने के बाद भी सपने में ही है. पूरे विपक्ष को एक करने की मुहिम को अंजाम देते हुए नेताजी ने जनता परिवार बनाया। तीसरा मोर्चे में बनते ही बिखरने की आशंका लग रही थी। खासकर. बिहार चुनाव को लेकर सबों में डर था कि परिवार से बिखरने का परचम कौन लहराएगा, मगर यह क्या कि सबलोग साथ में ही रहे और नेताजी ही बिदक कर अलग हो गए। कहा तो जा रहा है कि इसके पीछे कमल सुप्रीमों से कुछ डील हुआ है, मगर यह तो समय ही बताएगा कि नेताजी के इस बगावत के पीछे कौन है. किसको बचाने के लिए नेताजी ने घुटने टेक दिए अपनी और अपने परिवार पर लगने वाले कलंक से डील है या नोएडा के बदनाम इंजीनियर के काले कारनामों की बदनामी से बचने के लिए ही नेताजी को परिवार से भागना  मुनासिव लगा।



बिहार चुनाव के चरितार्थ
बिहार के चुनावी दंगल का फैसला तो आठ नवम्बर को होगा। किसको क्या नसीब होगा यह सब इसी दिन पत्ता चलेगा, मगर अभी से यह तय हो गया है कि बिहार में कमल खिले या न खिले मगर 2017 में यूपी में तो कमल को ही खिलना है. चुनाव बिहार में है, मगर कमल की नजर लखनऊ पर है। यानी तोता (सीबीआई) को लेकर सौदेबाजी में नेताजी और बहनजी निशाने पर है। तोता से कोई बैर करना चाहता नही, क्योंकि इमेज पर बट्टा के साथ साथ कोर्ट मुकदमा जेल का अलग से टेरर। यानी कमल को खिलाने के लिए तोता को हाथ में देख कर दामाद जी के कारनामों के सामने तो पंजे की भी चुप्पी बनी रहेगी. तो फिर किसमें है दम जो कमल को करे बेदम । दल बदलने के लिए चर्चित वेस्ट यूपी के जाटछोरे में कहां दम जो दिल्ली की कुर्सी से टकरा जाए। यानी दिखावे की चुनौती के बीच अवध नगरी में जय श्री राम ।  

समय समय की बात

तोते का भय दिखाकर पूरे देश में 60 साल तक मस्ती से राज करने वाली कांग्रेस अब उसी तोते से आशंकित है। देश के दामादजी पर कई राज्य. में कई तरह के मामले लंबित है। कहीं घोटाला तो कहीं कौडियों के भाव जमीन (पाकर) खरीदकर मोटी कमाई का मामला है तो कहीं कुछ और तरह के मामले में पीतलनगरी का मैंगोमैन वांछित है. पंजा के युवराजा बाबा के बाबा साबित हो जाने के बाद लोगों की नजर बेटी पर है। अमेठी पुत्री बनने से कतरा रही पुत्री फिलहाल अपनी मां और भाई की गाडी को पटरी पर संभाल रही है. बहन को लाओ पार्टी बचाओं की बारम्बार मांग उठ रही है, तो मैंगोमैन दामाद पर तोते का खतरा मंडरा रहा है। सबों को पता है कि ज्योंहि बहनजी पार्टी में हेड बनी नहीं कि दामाद की गर्दन पर तोते का शिकंजा होगा और मैंगोमैन की कारस्तानियों का असर मैडम वाईफ और पार्टी पर पडेगा ही । यानी पंजे पर बहन की लगाम के आसार नहीं है, भले ही पंजा 44 से आठ  क्यों न हो जाए।

पंजे का हाल पर नो कमेंट्स

समय बडा बलवान होता है. एक समय था कि पूरे देश में चारो तरफ पंजे की ही धूम होती थी। इसका सूरज कभी नहीं डूबता था. 130 साल पुरानी इस पार्टी के पतन काल के इस दौर में धीरे धीरे लोग ही इससे किनारा करते जा रहे है। दूसरी पार्टियों की पूंछ बनकर बिहार में 40 सीटो पर पंजा मैदान में है, मगर लोगों के चित से लोप हो गयी पंजे के लिए कोई उम्मीदवार नहीं मिल रहा. उस पर बिहार प्रभारी बने पूर्व दिल्ली पुलिस आयुक्त और भूत राज्यपाल महोदय दिल्ली की बजाय टिकट बांटने का काम दिल्ली से चला रहे है. मां बेटे के बिहार दौरे के बावजूद देखना हैं कि क्या इस बार पंजा कैरमबोर्ड की टीम बनाती है या खाता के नाम पर सिफर या...या.... .। नो कमेंट्स

कमल के तीन सीएम

यदि चुनाव में कमल का सिक्का चल निकला तो यकीन मानिए बिहारके लिए तीन
मार ले गयी तो पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव के सिर पर ताज संभव है। और यादव पर भारी साबित होकर विकास कुमार को रोकने में कमल सफल रही तो दूसरे नंबर के सुशील मोदी पर भी ताज मुमकिन है. मगर दोनों में यदि तू बडा या मैं का गेम चालू हुआ तो पीएम संघ की पसंद पत्रकार से नेता बने दिग्गज राजीव शुक्ल के साले रविशंकर प्रसाद सीधे पैराशूट सीएम बनकर पटना में अवतरित हो सकते है। ज्.दातर सांसदो के मित्र रहे पत्रकार राजीव शुक्ला को अपने प्रति लाईटमूड करने के इस स्वर्णीम मौके को भाजपा जाने नहीं देगी जो किसी भी विपत्ति में सबों के लिए संकटमोचक हो सकते है। यानी रविशंकर प्रसाद की दावेदारी बिहारी नेताओं पर भारी पड सकती है।


तेज और चिराग की साख

नेताजी के सीएम बेटे की किस्मत से सुलगने वाले बिहार में कई नेता है.। कहावत है कि अपना बेटा और पराये की बीबी सबों को मनभावन लगती है। अपने बेटे को सचिन तेंदुलकर या शाहरूख खान बनाने के लिए बिहारी नेताओं ने अपना सारा पावर प्रेशर पोलटिक्स पैसा भी लगाया मगर सपना जो साकार ना हो सका.। गंगाजल को अपनाकर भी राजनीति का चिराग सुलग नहीं पाया।  तो तेंदुलकर ना बन पाए क्रिकेटर तेज एक भी मैच खेले बगैर ही आईपीएल दिल्ली टीम में दो बार रहे तेज करोडपति जरूर हो गए। दोनों पुत्रों पर बाप की बिरासत संभालने का बोझ है. देखना है कि इस चुनाव में किसका तेज और चिराग सलामत रह पाता है ? लगता है इस मामले में नेताजी भारी ही रहेंगे।   

मांझी के सुपुत्र

बड़बोले पन के लिए कुख्यात भूत सीएम मांझी के पुत्र कई लाख रूपयों के साथ पिछले दिन धऱ दबोचे गए। तो इसे भी विपक्ष की साजिश कहकर मामले की सफाई देने में पिताश्री को मैदान में उतरना पडा। भूत सीएम ने इसे लोकप्रियता के भय से दूसरों पर बदनाम करने का आरोप मढ दिया। 40 साल से राजनीति करते हुए और कई दफा मंत्री रह चुके मांझी की नेशनल पहचान अंतत खड़ाऊ सीएम बनकर ही मिली। और अब खुद को जनाधार वाले नेता मानकर दूसरों को गरियाने वाले मांझी जी को यह कौन समझाएं कि धन लेकर घूम रहे सुपुत्र के पास या तो काला धन होगा या कोई लेनदेन का । कोई विपक्ष लाखों गंवाकर मांझी सुपुत्र को बंदी बनवाना तो नहीं ही चाहेगा।
इस तरह तो बन जाएगा हार्दिक बडा नेता

लगता है कि युवा हार्दिक पटेल को बीजेपी गुजरात का जननेता बनाकर ही दम लेगी। हार्दिक को कमतर आंकने की भूल करके कमल की बड़ी किरकिरी हो चुकी है, इसके बावजूद कोई सीख लेने की बजाय हार्दिक को मौके बेमौके पकड़कर उसको खबर बनने दिया जा  सहा है। सरकार का यही हाल सरकारी रहा तो इसमें कोई शक नहीं कि 2017 में पटेल के हार्दिक स्वागत के लिए भी तैयार रहना होगा. तमाम सरकारी बंदिशों के बाद भी राजधानी में 10 लाख की भीड जुटा लेना सीएम मैडम के लिए भी आसान नहीं है। पीएम के खिलाफ आग उगदलने वाला यह नेता तो बिहार में भी जाने वाला है यानी खुद को कद से ज्यादा कर चुका यह गुजराती सिरदर्द कहीं पीएम के विकास के मॉडल स्टेट पर ही न  काबू कर ले.



अनामी शरणबबल






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कल न जाए ?







    

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