10 अनोखी परम्परा और मान्यता ( India's 10 Amazing Tradition and Ritual)
भारत परम्पराओं का देश है। यहां के हर हिस्से से कोई ना कोई अनोखी परम्परा
जुडी हुई है। हमने इस लेख में भारत की 10 ऐसी ही अनोखी, अचरज भरी
परम्पराओं और रीती रिवाज़ों का संकलन किया है।
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1. बच्चों का लिंग पता करने की अनोखी परम्परा (Unique tradition to know the sex of the children) :
झारखंड के बेड़ो प्रखंड के खुखरा गाँव में माँ के गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग पता करने की एक अनोखी परम्परा पिछले 400 सालो से चली आ रही है। खुखरा गाँव में एक पहाड़ है जिस पर एक चाँद की आकर्ति खुदी हुई है इसलिए इसे चाँद पहाड़ कहते है। पहाड़ पर खुदी यही चाँद की आकर्ति बता देती है की माँ के गर्भ में पल रहा बच्चा बेटा है या बेटी। गर्भस्थ शिशु का लिंग पता करने के लिए गांव की गर्भवती महिलाओं को इस पहाड़ की ओर चांद की आकृति पर निश्चित दूरी से बस एक पत्थर फेंकना होता है। अगर गर्भवती स्त्री के हाथ से छूटा पत्थर चांद के भीतर लगे तो यह संकेत है कि बालक शिशु होगा, चांद आकृति से बाहर पत्थर लगने पर बालिका शिशु होगी। इस परम्परा पर यहाँ के ग्रामवासियों का अटूट विश्वास उनके अनुसार यह हमेशा सही होता है।
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1. बच्चों का लिंग पता करने की अनोखी परम्परा (Unique tradition to know the sex of the children) :
पहाड़ी पर बनी चाँद की आकर्ति Image Credit bhaskar.com |
झारखंड के बेड़ो प्रखंड के खुखरा गाँव में माँ के गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग पता करने की एक अनोखी परम्परा पिछले 400 सालो से चली आ रही है। खुखरा गाँव में एक पहाड़ है जिस पर एक चाँद की आकर्ति खुदी हुई है इसलिए इसे चाँद पहाड़ कहते है। पहाड़ पर खुदी यही चाँद की आकर्ति बता देती है की माँ के गर्भ में पल रहा बच्चा बेटा है या बेटी। गर्भस्थ शिशु का लिंग पता करने के लिए गांव की गर्भवती महिलाओं को इस पहाड़ की ओर चांद की आकृति पर निश्चित दूरी से बस एक पत्थर फेंकना होता है। अगर गर्भवती स्त्री के हाथ से छूटा पत्थर चांद के भीतर लगे तो यह संकेत है कि बालक शिशु होगा, चांद आकृति से बाहर पत्थर लगने पर बालिका शिशु होगी। इस परम्परा पर यहाँ के ग्रामवासियों का अटूट विश्वास उनके अनुसार यह हमेशा सही होता है।
चाँद पहाड़ी के ऊपर बना शिवलिंग Image Credit bhaskar.com |
चांद पहाड़ मूल रूप से नागवंशी राजाओं के मनोरंजन पार्क के रूप में विकसित
किया गया था। पहाड़ के ऊपर शिवलिंग और कुंड जैसी आकृतियां गवाह हैं कि वहां
नागवंशी राजा पूजा पाठ भी करते थे। इसके ठीक बगल में चांदनी पहाड़ है,
जहां नागवंशी रानियां विहार करती थीं।
2. मनोकामना पूर्ति के लिये जमीन पर लेटे
लोगों के ऊपर छोड़ दी जाती हैं गायें (Indian Men get trampled by cows in a
ritual at Ujjain) :
लेटे हुए लोगो को रौंदती हुई गाये |
भारत में मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले के कुछ गावों में एक अजीब सी परम्परा
का पालन सदियो से किया जा रहा है। इसमें लोग जमीन पर लेट जाते हैं और उनके
ऊपर से दौड़ती हुए गाये गुजारी जाती हैं। इस परंपरा का पालन दीवाली के
अगले दिन किया जाता है जो कि एकादशी का पर्व कहलाता है। इस दिन उज्जैन जिले
के Bhidawad और आस पास के गाँव के लोग पहले अपनी गायों को रंगों और मेहंदी
से अलग-अलग पैटर्न से सजाते हैं। उसके
बाद लोग अपने गले में माला डालकर रास्ते में लेट जाते है और अंत में दौड़ती हुए गायें उन पर से गुजर जाती हैं।
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3. शाटन देवी मंदिर, छत्तीसगढ़ - यहाँ बच्चो के अच्छे स्वास्थ्य लिए देवी को चढ़ाते है लौकी :
शाटन देवी Image Credit bhaskar.com |
छत्तीसगढ़ के रतनपुर में स्थित शाटन देवी मंदिर(बच्चों का मंदिर) से एक
अनोखी परंपरा जुड़ी है। मंदिरों में आमतौर पर फूल, प्रसाद, नारियल आदि
भगवान को चढ़ाने का विधान है, लेकिन शाटन देवी मंदिर में देवी को लौकी और
तेंदू की लकड़ियां चढ़ाई जाती हैं। इस मंदिर को बच्चों का मंदिर भी कहते
हैं। श्रद्धालु यहां अपने बच्चों की तंदुरुस्ती के लिए प्रार्थना करते हैं
और माता को लौकी और तेंदू की लकड़ी अर्पण करते हैं। इस मंदिर में यह परंपरा
कैसे शुरू हुई यह कोई नहीं जानता, लेकिन ऐसी मान्यता है कि जो भी यहां
लौकी और तेंदू की लकड़ी चढ़ाता है, उनकी मनोकामना पूरी होती है।
4. जंगमवाड़ी मठ, वाराणसी - यहाँ परिजनों की
मृत्यु पर दान करते है शिवलिंग (JAngamwadi Math, Varanasi - Here
families member donate Shiv Lings on the occasion of dead) :
जंगमवाड़ी मठ में रखे शिवलिंग Image Credit bhaskar.com |
जंगमवाड़ी मठ
वाराणसी (Jangamwadi Math, Varanasi) के सारे मठो में सबसे पुराना है। इस
मठ में शिवलिंगों की स्थापना को लेकर एक विचित्र परंपरा चली आ रही है।
यहां आत्मा की शांति के लिए पिंडदान नहीं बल्कि शिवलिंग दान होता है। इस मठ
में एक दो नहीं बल्कि कई लाख शिवलिंग एक साथ विराजते हैं। यहां मृत लोगों
की मुक्ति और अकाल मौत की आत्मा की शांति के लिए शिवलिंग स्थापित किए जाते
हैं। सैकड़ों वर्षों से चली आ रही इस परंपरा के चलते एक ही छत के नीचे दस
लाख से भी ज्यादा शिवलिंग स्थापित हो चुके हैं।
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5. अनोखी परम्परा - पति कि सलामती के लिए जीती है विधवा का जीवन (Unique Tradition - For husband safety, wives lives as a widow) :
ताड़ का वृक्ष |
हमारे देश भारत में आज भी कुछ ऐसी परम्पराय जीवित है जो हमे अचरज में डालती
है। ऐसी ही एक परम्परा है पति कि सलामती के लिए पत्नी का विधवा का जीवन
जीना। यह परम्परा गछवाह समुदाय से जुडी है। यह समुदाय पूर्वी उत्तरप्रदेश
के गोरखपुर, देवरिया और इससे सटे बिहार के कुछ इलाकों में रहता है। ये
समुदाय ताड़ी के पेशे से जुड़ा है। इस समुदाय के लोग ताड़ के पेड़ों से
ताड़ी निकालने का काम करते है। ताड़ के पेड़ 50 फीट से ज्यादा ऊंचे होते
है तथा एकदम सपाट होते है। इन पेड़ों पर चढ़ कर ताड़ी निकालना बहुत ही
जोखिम का काम होता है। ताड़ी निकलने का काम चैत मास से सावन मास तक, चार
महीने किया जाता है। गछवाह महिलाये (जिन्हे कि तरकुलारिष्ट भी कहा जाता है )
इन चार महीनो में ना तो मांग में सिन्दूर भरती है और ना ही कोई श्रृंगार
करती है। वे अपने सुहाग कि सभी निशानिया तरकुलहा देवी के पास रेहन रख कर
अपने पति कि सलामती कि दुआ मांगती है।
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6. भाई दूज मनाने की अनोखी परम्परा - बहने
भाई को देती है मर जाने का श्राप (Unique Tradition to celebrate Bhai Duj -
Sisters gives dying curse) :
Image credit Vikrant Pathak via webduniya.com |
कुछ उत्तर भारतीय समुदायों में भाई दूज बनाने की अनोखी प्रथा है। इसमें
बहने भाई दूज के दिन याम देवता की पूजा करती है। पूजा के दौरान वो
अपने भाइयों को कोसती है तथा उन्हें मर जाने तक का श्राप देती है। हालांकि
वो श्राप देने के बाद अपनी जीभ पर काँटा चुभा कर इसका प्रायश्चित भी करती
है। इसके पीछे यह मान्यता है की यम द्वितीया (भाई दूज) भाइयों को गालियां व
श्राप देने से उन्हें मृत्यु का भय नहीं रहता है।
7. अजीबोगरीब परम्परा - भूतों का साया और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हटाने के नाम पर करवाते हैं बच्चियों कि कुत्तों से शादी :
इसे परम्परा ना कहकर कुरुति कहा जाए तो ज्यादा उपयुक्त होगा। इसमें भूतों
का साया और अशुभ ग्रहों का प्रभाव हटाने के नाम पर बच्चियों की शादी
कुत्तों से करवाई जाती है। हालाकि ये शादी सांकेतिक होती हैं, पर होती हैं
असली हिन्दू तरीके और रीती रिवाज़ से। लोगों को शादी में आने का निमंत्रण
दिया जाता है। पंडित, हलवाई सब बुक किये जाते है। बाकायदा मंडप तैयार होता
है और पुरे मन्त्र विधान से शादी सम्पन कराई जाती है। इस शादी में एक असली
शादी जितना ही खर्चा बैठता है और उससे भी बड़ी बात कि समाज एवं रिश्तेदार
भी इसमें बढ़ चढ़ के हिस्सा लेते है। शायद आपको एक बार तो यकीन ही नहीं
होगा कि ऐसा भी हो सकता है। लेकिन यह बिलकुल सत्य है। हमारे देश में
झारखण्ड राज्य के कई इलाकों में परंपरा के नाम पर ऐसी शादियां सदियों से
कराई जा रही है।
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8. नागपंचमी पर गुड़िया पीटने की अनोखी परम्परा :
नागपंचमी का त्योहार यूँ तो हर वर्ष देश के विभिन्न भागों में मनाया जाता
है लेकिन उत्तरप्रदेश में इसे मनाने का ढंग कुछ अनूठा है। श्रावण मास के
शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को इस त्योहार पर राज्य में गुडि़या को पीटने की
अनोखी परम्परा है।
नागपंचमी को महिलाएँ घर के पुराने कपडों से गुड़िया बनाकर चौराहे पर डालती
हैं और बच्चे उन्हें कोड़ो और डंडों से पीटकर खुश होते हैं। इस परम्परा की
शुरूआत के बारे में एक कथा प्रचलित है।
तक्षक नाग के काटने से राजा परीक्षित की मौत हो गई थी। समय बीतने पर तक्षक
की चौथी पीढ़ी की कन्या राजा परीक्षित की चौथी पीढ़ी में ब्याही गई। उस
कन्या ने ससुराल में एक महिला को यह रहस्य बताकर उससे इस बारे में किसी को
भी नहीं बताने के लिए कहा लेकिन उस महिला ने दूसरी महिला को यह बात बता दी
और उसने भी उससे यह राज किसी से नहीं बताने के लिए कहा। लेकिन धीरे-धीरे यह
बात पूरे नगर में फैल गई।
तक्षक के तत्कालीन राजा ने इस रहस्य को उजागर करने पर नगर की सभी लड़कियों
को चौराहे पर इकट्ठा करके कोड़ों से पिटवा कर मरवा दिया। वह इस बात से
क्रुद्ध हो गया था कि औरतों के पेट में कोई बात नहीं पचती है। तभी से
नागपंचमी पर गुड़िया को पीटने की परम्परा है।
9. बारिश के लिए कराई जाती है मेंढकों की शादी :
Image Credit bhaskar.com |
महाराष्ट्र में अच्छी बारिश के लिए मेंढकों की शादी कराई जाती है। शादी के
लिए मेंढकों को फूल-माला पहनाकर सजाया जाता है। इसके बाद धूमधाम से इनकी
शादी रचाई जाती है। लोगों का मानना है कि इससे बारिश के देवता खुश होते हैं
और बारिश कर देते हैं। मेंढकों की शादी में इंसानों की तरह पूरे
विधि-विधान का पालन किया जाता है। उन्हें वरमाला पहनाई जाती है और सामान्य
शादी की सारी रस्में निभाई जाती हैं। शादी के बाद दोनों को एक साथ गांव के
तालाब या कोई अन्य जलाशय में छोड़ दिया जाता है।
10 . बेंत मार गांगुर - एक अनोखी परम्परा - जिसमे कुंवारे लड़के शादी के लिए औरतों से खाते है मार
यह परम्परा राजस्थान के जोधपुर में निभाई जाती है। जहां देश भर में महिलाओं की आजादी की मुहिम छेड़ी गई है। वहीं जोधपुर की इस परंपरा के अनुसार एक रात औरतों की होती है और उसकी बादशाहत घर के अंदर नहीं, बल्कि बाहर होती है। रात में औरतें सजधजकर बाहर निकलती है। अलग-अलग रंगों के कपड़े और गहने से लदी महिलाओं के हाथ में एक डंडा भी होता है। लेकिन इस डंडे को लेकर घूम रही लड़कियों के लिए ये डंडा शादी की इलेजिबिलिटी नापने का पैमाना है। दरअसल, रात में महिलाएं इस डंडे से कुंवारे लड़कों की पिटाई करती हैं और लड़के चुपचाप मार खाते हैं। मान्यता है कि जो लड़का मार खाता है, उसकी एक साल में शादी हो जाती है। मतलब मार खाओ ब्याह रचाओ और खास बातें ये कि इसमें विधवाएं भी हिस्सा लेती है। ये परम्परा सदियों से चली आ रही है, जिसमें अब विदेशी महिलाए भी भाग लेती है। वैसे तो ये सब कुछ 16 दिन पहले से ही शुरू हो जाता है, यहां परम्परा के अनुसार औरते सुहाग की लंबी उम्र के लिए 16 दिन का उपवास रखती है और आखिरी दिन ये उत्सव मनाया जाता है, जिसमें शादी-शुदा महिलाओं के साथ कुंवारी लड़किया भी भाग लेती हैं। वैसे तो कई परंपराएं महिलाओं को बेडियों में जकड़ती भी है, पर ये परंपरा खास इसलिए है कि ये महिलाओं की आजादी का जश्न मनाने की इजाजत देती है
10 . बेंत मार गांगुर - एक अनोखी परम्परा - जिसमे कुंवारे लड़के शादी के लिए औरतों से खाते है मार
Image Credit samachar24 |
यह परम्परा राजस्थान के जोधपुर में निभाई जाती है। जहां देश भर में महिलाओं की आजादी की मुहिम छेड़ी गई है। वहीं जोधपुर की इस परंपरा के अनुसार एक रात औरतों की होती है और उसकी बादशाहत घर के अंदर नहीं, बल्कि बाहर होती है। रात में औरतें सजधजकर बाहर निकलती है। अलग-अलग रंगों के कपड़े और गहने से लदी महिलाओं के हाथ में एक डंडा भी होता है। लेकिन इस डंडे को लेकर घूम रही लड़कियों के लिए ये डंडा शादी की इलेजिबिलिटी नापने का पैमाना है। दरअसल, रात में महिलाएं इस डंडे से कुंवारे लड़कों की पिटाई करती हैं और लड़के चुपचाप मार खाते हैं। मान्यता है कि जो लड़का मार खाता है, उसकी एक साल में शादी हो जाती है। मतलब मार खाओ ब्याह रचाओ और खास बातें ये कि इसमें विधवाएं भी हिस्सा लेती है। ये परम्परा सदियों से चली आ रही है, जिसमें अब विदेशी महिलाए भी भाग लेती है। वैसे तो ये सब कुछ 16 दिन पहले से ही शुरू हो जाता है, यहां परम्परा के अनुसार औरते सुहाग की लंबी उम्र के लिए 16 दिन का उपवास रखती है और आखिरी दिन ये उत्सव मनाया जाता है, जिसमें शादी-शुदा महिलाओं के साथ कुंवारी लड़किया भी भाग लेती हैं। वैसे तो कई परंपराएं महिलाओं को बेडियों में जकड़ती भी है, पर ये परंपरा खास इसलिए है कि ये महिलाओं की आजादी का जश्न मनाने की इजाजत देती है
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डायन प्रथा - 15 वि शताब्दी में हारांगुल गांव से हुई थी शुरुआत
स्काई बुरिअल(Sky Burial) - एक विभित्स अंतिम संस्कार किर्या - लाश के छोटे छोटे टुकड़े कर खिला देते हैं गिद्धों को
दुनिया के 10 अजीबो गरीब रस्मोरिवाज (10 Bizarre Rituals Around The World)
लैंड डाइविंग - वनातू आइलैंड - एक खतरनाक परम्परा जिसमे 100 फ़ीट ऊंचे लकड़ी के टावर से लगाते है छलांग
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